मंत्री परिषद के मेरे साथी श्रीमान राजनाथ सिंह जी, Northeast के सभी आदरणीय मुख्य मंत्री, श्री किरन रिजिजू जी, विभाग के सभी अधिकारी और पुलिस बेड़े के सभी leaders.आज जिन लोगों का सम्माीन हुआ है, उन सबको मैं हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
चाणक्य के समय से हम लोग पढ़ते आए है कि किसी भी राष्ट्र रक्षा के भीतर जितना सामर्थ्य शस्त्र में होता है, उससे ज्यादा सामर्थ्य यह शस्त्र किसके पास है उस पर निर्भर रहता है और उससे भी आगे, शस्त्र भी हो, शस्र् धारी भी हो,लेकिन राष्ट्र रक्षा की सफलता की मूलधारा तो गुप्ताचर तंत्र के सहारे ही चलती है। जिस व्यवस्था के पास उत्तम प्रकार की गुप्त चर व्यवस्था होती है। उस व्यवस्था को कभी भी, न शस्त्रधारी की जरूरत पड़ती है न कभी शस्त्र की जरूरत पड़ती है और शस्त्र के उपयोग की तो कभी आवश्याकता ही नहीं रहती है और इसलिए रक्षा के क्षेत्र में सुरक्षा के विषय पर सर्वाधिक महत्वरपूर्ण कोई ईकाई होती है, तो वो होता है गुप्त चर तंत्र। और उस क्षेत्र में सेवा करने वाले उन अधिकारियों का सम्मा्न करने का मुझे अवसर मिला है। मैं फिर एक बार उनकी इस उत्तम सेवा के लिए हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, बंधाई देता हूं।
सबको आश्चर्य हो रहा है कि इतने सालों से जो परंपरा चल रही थी। उसे तोड़कर के दिल्ली के बाहर, गुवाहाटी क्यों। ले जाया गया। लेकिन आपने देखा होगा दिल्ली में मीटिंग होती है तो आप अपनी भी बहुत व्यस्तताएं लेकर के आते हैं। आपको लगता है कि आए हैं तो चार काम और भी कर लें। Ministry में चले जाए, Secretaries को मिल लें। राज्ये के सवालों पर थोड़ा-थोड़ा ध्यान केंद्रित करें। दिल्ली के बाहर जाने के कारण आप जब से आएं हो तब से पूरी तरह एक-दूसरे में घुल-मिल गए होंगे। यहां कोई और activity नहीं है इसलिए पूरा Focus यहां की activity पर आया होगा। और सबसे ज्यादा लाभ Northeast में यहां के जो लोग हैं उनका इतना उत्साह बढ़ा होगा, यहां के पुलिस बेड़े का इतना उत्साजह बढ़ा होगा, तो अपने आप में यह थोड़ा-सा ही बदलाव कितने बड़े परिणाम ला सकता है यह अनुभव आप भी करते होंगे। हो सकता है आगे जाकर के आप भी करेंगे। एक शुभ शुरूआत है। आगे भी हम चाहेंगे कि इस प्रकार के Event दिल्ली के बाहर हुआ करें और राज्योंं में जाते-जाते कभी दिल्लीे की भी बारी आएगी ऐसा तो नहीं कि दिल्ली में नहीं आएगी। लेकिन दिल्लीभ में जब कार्यक्रम होता है तो दिल्ली पुलिस का कोई Role ही नहीं होता है। वो भारत सरकार और एक विज्ञान भवन रेडिमेड रहता है और आप अपने भवनों में रहते हैं और चले आते हैं। यह एक बदलाव है और यह बदलाव व्यवस्था में प्राण बहुत आवश्यडक होते हैं। Roboticव्येवस्थाडएं नहीं चलती हैं। व्यवस्थाएं जीवंत होनी चाहिए, व्य्वस्थाेएं प्राणवान होनी चाहिए। व्यवस्थाओं में से प्राणशक्ति में इजाफा होना चाहिए और यह बदलाव आपको उस दिशा में ले जाएगा। आप भी अपने राज्य में इसी प्रकार के प्रयोगों की ओर जाएंगे ऐसा मुझे विश्वाेस है।
कल से आप लोग बैठे हैं कुछ Serious Nature की बातें, कुछ हल्की -फुल्कीआ बातें लेकिन एक अच्छे माहौल में हुआ है। मैं भी आज दोपहर तक आपके बीच रहने वाला हूं। मैं ज्याoदा समय आपको सुनने में लगाना चाहता हूं। लेकिन एक दो विषय है जो आज मैं बताना चाहता हूं। देश आजाद होने के बाद 33 thousand पुलिस के जवान देश की रक्षा के लिए शहीद हो जाएं, नागरिकों की सुख-सुविधा के लिए शहीद हो जाएं,यह घटना छोटी नहीं है। लेकिन क्याु पुलिस बेड़े के लोगों को पता है कि अपने साथियों ने 33 हजार लोगों ने भारत के नागरिकों की रक्षा के लिए अपने प्राण दे दिए हैं। सामान्यर नागरिक को तो पता होने का सवाल ही नहीं उठता है। मुझे पहली आवश्यककता लगती है, यह 33 हजार बलिदान व्यदर्थ नहीं जाने चाहिए। समाज में उनके प्रति सम्मालन कैसे बढ़े? वो भी तो किसी मां का लाल था। और Duty के लिए मरा है वो, लेकिन पता नहीं क्योंल किसी न किसी हालात के कारण इसके प्रति एक उदासीनता बरती गई है। मैं चाहूंगा कि आपमें से एक छोटा सा Taskforce बने। कुछ सीनियर अनुभवी लोगों का बने। हम इस बलिदान की विरासत को ऐसी कौन सी चीजों को Incorporate करे ताकि यह हमेशा-हमेशा के लिए हमारी प्रेरणा का कारण बने। हम ऐसे Protocol कैसे तय करे। जिन Protocol के कारण,जो शहीद पुलिस है उसके शरीर की अंत्ये ष्टि की सारी क्रिया का एक Protocol कैसे हो, ताकि उसके सम्मा न की ओर कोई व्यीवस्थाc विकसित हो। हर राज्य। की अपनी एक पुलिस अकादमी होती है। वहां New Recruits की training होती है। क्यात उनके अंदर एक Syllabus, एक किताब उस राज्य के जितने भी पुलिस बेड़े के जवान शहीद हुए हैं, उनके जीवन पर लिखी हुई एक किताब हो सकती है क्याी? हर राज्यह की अपनी एक किताब होनी चाहिए। Official Government Book होनी चाहिए। जिसने प्राण दिया है, किस अवसर पर दिया, कैसे दिया, कैसा साहस दिखाया, कितनो की जिंदगी बचाई। जो नई पीढ़ी की पुलिस आएगी, नया Constable की भर्ती होगी और चीज सीखेगा। इस किताब को भी उसको पढ़ना होगा। इस किताब पर Exam देना होगा। उसको अपने आपको पता लगेगा, मेरे बेड़े में मेरे पहले इतने लोग बलि चढ़ चुके थे। यह अपने में पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़ता चला जाएगा। हर साल किताब की नई Edition निकले क्या। हम अभी तय कर सकते हैं कि हर राज्यक एक E-book निकालें। जिस E-book में इन 33 thousand बलिदानी लोगों के बारे में सबकी फोटो शायद संभव न भी हो। उस परिवार के पास हो तो लेनी चाहिए। लेकिन एक E-book हो। वो जिस प्रदेश में बलिदान हुआ, उस प्रदेश की भाषा में भी हो और National Languages में भी हो। प्रकल्पआ छोटा होगा, लेकिन प्रेरणा अपरम्पारर होगी। उसी प्रकार से मैंने देखा है कि Police Welfare के लिए कई छोटे-बड़े कार्यक्रम पुलिस डिपार्टमेंट करता रहता है। Cine कलाकार आते हैं, नृत्यर-नाटक का भी कार्यक्रम करते हैं। मुंबई वाले तो ज्यादा ही करते हैं। उस समय एक Souvenir भी निकालते हैं। उसमें एक Advertisement लेते हैं Fund Collect होता है। उसकी बारीकियों में तो मैं गया नहीं हूं, जाना भी नहीं चाहता हूं, लेकिन क्यात हम यह तय कर सकते हैं कि साल में जब ऐसा Souvenir निकलेगा, उस Souvenir की मुख्य। विभीषाएं उस वर्ष के उस राज्य के बलिदान हुए पुलिसों की जीवन गाथा ही उसमें छपेगी। हमें तय करना होगा। उनके जीवन को ऐसे खत्म नहीं होने देना चाहिए। वो शरीर से रहा या न रहा हो लेकिन पुलिस बेड़े के लिए और समाज के लिए वो कभी मरना नहीं चाहिए। यह हमारा दायित्वस है। आगे हुआ हो या न हुआ उसकी मुझे चर्चा करने का कोई कारण नहीं बनता है, लेकिन आगे हो इस पर भी तो हम सोच सकते हैं और मैं मानता हूं कि इन चीजों का बहुत बड़ा लाभ होगा।
दूसरी बात है पुलिस वेलफेयर मैं जानता हूं कि सबसे ज्यादा, तनाव भरी जिंदगी अगर किसी की है, तो पुलिस बेड़े की है। वो अपने जीवन को दांव पर लगाता है। अगर उसके परिवार में सुख, शांति और संतोष नहीं होगा, तो वो Duty नहीं कर पाएगा। वो कितना ही त्या गी, तपस्वीन, बलिदानी अफसर होगा तो भी परिवार की बैचेनी उसको बैचेन बनाती है। यह सरकार का और हम सबका दायित्वव है कि हम पुलिस परिवार के वेलफयेर के लिए कोई Systematic व्यववस्थााएं विकसित कर सकते हैं ? जैसे उनका अपने परिवार का Medical Check up कैसे हो, Including पुलिस के लोग, उनके बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के संबंध में क्याो हो। ज्या दातर जो नीचे तबके के जो पुलिस के जवान है, उनके रहने की सुविधाएं कैसी है। उस पर हम कोई ध्या न दे सकते हैं? ऐसा नहीं है कि ये सब होता नहीं है। अब हमारे लिए एक अच्छा है कि हमारे जो गृहमंत्री जी है, वो हिंदुस्ता न के सबसे बड़े राज्यध के मुख्यममंत्री रहे हैं और सफल मुख्यृमंत्री रहे हैं। और इसलिए उनको इन विषयों की बहुत बारीकियों का ज्ञान है। उनका मार्गदर्शन आने वाले दिनों में हमें बहुत काम आने वाला है। मेरा भी सौभाग्यक रहा कि मैं लम्बे् अर्से तक मुख्यममंत्री रहा तो Home Department अपने पास होने से उसकी बारीकियों से मैं परिचित हूं। धरती पर क्याe चल रहा है, उससे मैं जानकार हूं। और इस कारण यह संभावना है कि हमारी यह Priority हैं। हम चाहते हैं कि हमारे पुलिस वेलफेयर के काम को हम वैज्ञानिक तरीके से विकसित करें और Minimum इतना तो होना ही चाहिए। यह अगर हम करेंगे, तो देखिए बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा, बहुत बड़ा बदलाव आएगा।
कभी-कभार हम पुलिस के लोगों का मुश्किल क्या होता है जी, सामान्या मानव के दिमाग में आप, की Movies ने पता नहीं इसको ऐसा Paint करके रखा हुआ है। मैंने अभी बहुत कम ऐसी Movies देखी कि जहां पुलिस के त्याग और तपस्याी की कोई कथाल आई हो। और उसके कारण जन-मानस पर ऐसी छवि बन गई है। हमें Special Efforts करने चाहिए। भारत सरकार ने कोई PR Agency करके इन सारे Film Producer से मिलना चाहिए। उनको बताना चाहिए कि भाई यह क्याक कर रहे हो आप लोग। अगर हम समाज की रक्षा करने वाली इतनी बड़ी शक्ति का सम्माअन और गौरव नहीं बढांएगे, तो उनकी बुराईयां भी कम नहीं होगी। हम परिवार में भी एक बच्चा् गलती करता है तो बार-बार गलती, गलती, गलती, गलती दोहरा करके उसकी गलती ठीक नहीं करते। उसकी गलती ध्यान में रखते हैं लेकिन अच्छाईयों की ओर ले जाते हैं, तो अच्छाल अपने आप बनना शुरू हो जाता है। कमियां होगी, किसमें नहीं है। लेकिन कमियों को दूर करने का रास्ताह भी तो होता है और समाज के सहयोग के बिना नहीं होताऔर मैं चाहता हूं कि एक लम्बीी दूरी की सोच के साथ भारत के पुलिस के संबंध में लोगों की सोच बदली जा सकती है और धरती की हकीकत के द्वारा उसको किया जा सकता है। कभी-कभार क्या होता है पुलिस से जुड़ी हुई एक Negative खबर इतने दिनों तक Media में छाई रहती है, लेकिन उसी कालखंड में सैकड़ों अच्छीत चीजें हुई होती हैं, वो कभी भी उजागर नहीं होती हैं।
जब मैं गुजरात में था, मैंने तो एक छोटा प्रयोग किया था, अगर आप लोगों को उचित लगे तो आप उस प्रयोग पर सोचिए। मेरे गुजरात छोड़ने के बाद क्याग हुआ, मुझे मालूम नहीं है। उसमें कुछ काम हो रहा है या नहीं हो रहा है। लेकिन मैंने एक आग्रह किया था। हर पुलिस थाने की अपनी वेबसाइट हो,पुलिस थाने की वेबसाइट। और वो पुलिस थाना, उस पुलिस थाने में उस Week में जो अच्छीे से अच्छीए समाज की सेवा की कोई गतिविधि हुई हो, कोई दुखी आया उसको बहुत अच्छे ढंग से Treat किया हो, किसी का बहुत नुकसान होना था पुलिस पहुंचकर बचा लिया। मदद कर दी। हजारों घटनाएं कम नहीं है। हजारों घटनाएं कम नहीं है जी। अब निराश मत होना आपके माध्यम से देश के बहुत अच्छे काम हो रहे हैं। लेकिन आप ही उसको उजागर नहीं करते। क्याो पुलिस थाने की अपनी वेबसाइट हो और हर हफ्ता एक सच्ची and100 Percent सच्ची होनी चाहिए। Positive story हम Online रखे। आप फिर कभी उसको देखिए आपको ध्यान आयेगा कितनी लाखों सकारात्मक चीजें पुलिस के माध्य म से हो रही है जो समाज का फायदा कर सकती है। आर्टिफिशल कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। है, धरती पर है। हर आदमी आपको मिलेगा और कहेगा कि हां भाई मेरे जीवन में तो मुझे एक-आध बार पुलिस की अच्छी मदद मिल गई। कोई न कोई मिल जाएगा आपको। लेकिन Collectively ये चीजें लोगों के सामने नही आती है।मैं चाहूंगा कि आप उस दिशा में कुछ सक्रियता से सोचें और सक्रियता से सोचकर के उसको कैसे आगे बढ़ाया जाए, कैसे किया जाए। जब मिलेंगे तो इन विषयों में विस्तार से बात करेंगे।
एक मेरे मन में है smart police का मेरे मन में concept है। smart police, smart police,smart police बेड़ा। इसको लेकर के हम किस प्रकार से काम कर सकते हैं। और जब मैं smart police की बात करता हूं तबS –Strict लेकिन साथ-साथ S for Sensitivity, Police Strict भी हो Police –Sensitive भी हो। M- Modern हो और Mobility हो, stagnancy नही होनी चाहिए, A – Alert भी हो Accountable भी हो, R–Reliable हो Responsive भी हो, T – Techno Savvy हो Trained हो। Smart Police - S for Strict and Sensible, M for Modern and Mobility, A for Alert and Accountable R for Reliable and Responsive, T for Techno Savvy and Trained इन पांच बिंदुओं को लेकर हम आगे बढ़े। मुझे विश्वाvस है हम पूरे पुलिस बेड़े में एक नई जान भर सकते हैं। एक नई चेतना भर सकते हैं।
फिर एक बार आज जिनको मुझे सम्मान करने का अवसर मिला है। उन सबको मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आगे भी इस प्रकार के पराक्रमों से भरा हुआ हमारा पुलिस बेड़ा सामान्य नागरिक की सेवा करने में, उसको सुरक्षा देने में और सबसे बड़ी बात उसमें विश्वा स पैदा करने में हम सफल होंगे। बाकी हम जब मिलेंगे तब विस्तार से बातें करेंगे।
बहुत-बहुत शुभकामनाएं, धन्यसवाद।