मंत्री परिषद के मेरे साथी श्रीमान राजनाथ सिंह जी, Northeast के सभी आदरणीय मुख्य मंत्री, श्री किरन रिजिजू जी, विभाग के सभी अधिकारी और पुलिस बेड़े के सभी leaders.आज जिन लोगों का सम्माीन हुआ है, उन सबको मैं हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

चाणक्य के समय से हम लोग पढ़ते आए है कि किसी भी राष्ट्र रक्षा के भीतर जितना सामर्थ्य शस्त्र में होता है, उससे ज्यादा सामर्थ्य यह शस्त्र किसके पास है उस पर निर्भर रहता है और उससे भी आगे, शस्त्र भी हो, शस्र् धारी भी हो,लेकिन राष्ट्र रक्षा की सफलता की मूलधारा तो गुप्ताचर तंत्र के सहारे ही चलती है। जिस व्यवस्था के पास उत्तम प्रकार की गुप्त चर व्यवस्था होती है। उस व्यवस्था को कभी भी, न शस्त्रधारी की जरूरत पड़ती है न कभी शस्त्र की जरूरत पड़ती है और शस्त्र के उपयोग की तो कभी आवश्याकता ही नहीं रहती है और इसलिए रक्षा के क्षेत्र में सुरक्षा के विषय पर सर्वाधिक महत्वरपूर्ण कोई ईकाई होती है, तो वो होता है गुप्त चर तंत्र। और उस क्षेत्र में सेवा करने वाले उन अधिकारियों का सम्मा्न करने का मुझे अवसर मिला है। मैं फिर एक बार उनकी इस उत्तम सेवा के लिए हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, बंधाई देता हूं।

सबको आश्चर्य हो रहा है कि इतने सालों से जो परंपरा चल रही थी। उसे तोड़कर के दिल्ली के बाहर, गुवाहाटी क्यों। ले जाया गया। लेकिन आपने देखा होगा दिल्ली में मीटिंग होती है तो आप अपनी भी बहुत व्यस्तताएं लेकर के आते हैं। आपको लगता है कि आए हैं तो चार काम और भी कर लें। Ministry में चले जाए, Secretaries को मिल लें। राज्ये के सवालों पर थोड़ा-थोड़ा ध्यान केंद्रित करें। दिल्ली के बाहर जाने के कारण आप जब से आएं हो तब से पूरी तरह एक-दूसरे में घुल-मिल गए होंगे। यहां कोई और activity नहीं है इसलिए पूरा Focus यहां की activity पर आया होगा। और सबसे ज्यादा लाभ Northeast में यहां के जो लोग हैं उनका इतना उत्साह बढ़ा होगा, यहां के पुलिस बेड़े का इतना उत्साजह बढ़ा होगा, तो अपने आप में यह थोड़ा-सा ही बदलाव कितने बड़े परिणाम ला सकता है यह अनुभव आप भी करते होंगे। हो सकता है आगे जाकर के आप भी करेंगे। एक शुभ शुरूआत है। आगे भी हम चाहेंगे कि इस प्रकार के Event दिल्ली के बाहर हुआ करें और राज्योंं में जाते-जाते कभी दिल्लीे की भी बारी आएगी ऐसा तो नहीं कि दिल्ली में नहीं आएगी। लेकिन दिल्लीभ में जब कार्यक्रम होता है तो दिल्ली पुलिस का कोई Role ही नहीं होता है। वो भारत सरकार और एक विज्ञान भवन रेडिमेड रहता है और आप अपने भवनों में रहते हैं और चले आते हैं। यह एक बदलाव है और यह बदलाव व्यवस्था में प्राण बहुत आवश्यडक होते हैं। Roboticव्येवस्थाडएं नहीं चलती हैं। व्यवस्थाएं जीवंत होनी चाहिए, व्य्वस्थाेएं प्राणवान होनी चाहिए। व्यवस्थाओं में से प्राणशक्ति में इजाफा होना चाहिए और यह बदलाव आपको उस दिशा में ले जाएगा। आप भी अपने राज्य में इसी प्रकार के प्रयोगों की ओर जाएंगे ऐसा मुझे विश्वाेस है।

कल से आप लोग बैठे हैं कुछ Serious Nature की बातें, कुछ हल्की -फुल्कीआ बातें लेकिन एक अच्छे माहौल में हुआ है। मैं भी आज दोपहर तक आपके बीच रहने वाला हूं। मैं ज्याoदा समय आपको सुनने में लगाना चाहता हूं। लेकिन एक दो विषय है जो आज मैं बताना चाहता हूं। देश आजाद होने के बाद 33 thousand पुलिस के जवान देश की रक्षा के लिए शहीद हो जाएं, नागरिकों की सुख-सुविधा के लिए शहीद हो जाएं,यह घटना छोटी नहीं है। लेकिन क्याु पुलिस बेड़े के लोगों को पता है कि अपने साथियों ने 33 हजार लोगों ने भारत के नागरिकों की रक्षा के लिए अपने प्राण दे दिए हैं। सामान्यर नागरिक को तो पता होने का सवाल ही नहीं उठता है। मुझे पहली आवश्यककता लगती है, यह 33 हजार बलिदान व्यदर्थ नहीं जाने चाहिए। समाज में उनके प्रति सम्मालन कैसे बढ़े? वो भी तो किसी मां का लाल था। और Duty के लिए मरा है वो, लेकिन पता नहीं क्योंल किसी न किसी हालात के कारण इसके प्रति एक उदासीनता बरती गई है। मैं चाहूंगा कि आपमें से एक छोटा सा Taskforce बने। कुछ सीनियर अनुभवी लोगों का बने। हम इस बलिदान की विरासत को ऐसी कौन सी चीजों को Incorporate करे ताकि यह हमेशा-हमेशा के लिए हमारी प्रेरणा का कारण बने। हम ऐसे Protocol कैसे तय करे। जिन Protocol के कारण,जो शहीद पुलिस है उसके शरीर की अंत्ये ष्टि की सारी क्रिया का एक Protocol कैसे हो, ताकि उसके सम्मा न की ओर कोई व्यीवस्थाc विकसित हो। हर राज्य। की अपनी एक पुलिस अकादमी होती है। वहां New Recruits की training होती है। क्यात उनके अंदर एक Syllabus, एक किताब उस राज्य के जितने भी पुलिस बेड़े के जवान शहीद हुए हैं, उनके जीवन पर लिखी हुई एक किताब हो सकती है क्याी? हर राज्यह की अपनी एक किताब होनी चाहिए। Official Government Book होनी चाहिए। जिसने प्राण दिया है, किस अवसर पर दिया, कैसे दिया, कैसा साहस दिखाया, कितनो की जिंदगी बचाई। जो नई पीढ़ी की पुलिस आएगी, नया Constable की भर्ती होगी और चीज सीखेगा। इस किताब को भी उसको पढ़ना होगा। इस किताब पर Exam देना होगा। उसको अपने आपको पता लगेगा, मेरे बेड़े में मेरे पहले इतने लोग बलि चढ़ चुके थे। यह अपने में पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़ता चला जाएगा। हर साल किताब की नई Edition निकले क्या। हम अभी तय कर सकते हैं कि हर राज्यक एक E-book निकालें। जिस E-book में इन 33 thousand बलिदानी लोगों के बारे में सबकी फोटो शायद संभव न भी हो। उस परिवार के पास हो तो लेनी चाहिए। लेकिन एक E-book हो। वो जिस प्रदेश में बलिदान हुआ, उस प्रदेश की भाषा में भी हो और National Languages में भी हो। प्रकल्पआ छोटा होगा, लेकिन प्रेरणा अपरम्पारर होगी। उसी प्रकार से मैंने देखा है कि Police Welfare के लिए कई छोटे-बड़े कार्यक्रम पुलिस डिपार्टमेंट करता रहता है। Cine कलाकार आते हैं, नृत्यर-नाटक का भी कार्यक्रम करते हैं। मुंबई वाले तो ज्यादा ही करते हैं। उस समय एक Souvenir भी निकालते हैं। उसमें एक Advertisement लेते हैं Fund Collect होता है। उसकी बारीकियों में तो मैं गया नहीं हूं, जाना भी नहीं चाहता हूं, लेकिन क्यात हम यह तय कर सकते हैं कि साल में जब ऐसा Souvenir निकलेगा, उस Souvenir की मुख्य। विभीषाएं उस वर्ष के उस राज्य के बलिदान हुए पुलिसों की जीवन गाथा ही उसमें छपेगी। हमें तय करना होगा। उनके जीवन को ऐसे खत्म नहीं होने देना चाहिए। वो शरीर से रहा या न रहा हो लेकिन पुलिस बेड़े के लिए और समाज के लिए वो कभी मरना नहीं चाहिए। यह हमारा दायित्वस है। आगे हुआ हो या न हुआ उसकी मुझे चर्चा करने का कोई कारण नहीं बनता है, लेकिन आगे हो इस पर भी तो हम सोच सकते हैं और मैं मानता हूं कि इन चीजों का बहुत बड़ा लाभ होगा।

दूसरी बात है पुलिस वेलफेयर मैं जानता हूं कि सबसे ज्यादा, तनाव भरी जिंदगी अगर किसी की है, तो पुलिस बेड़े की है। वो अपने जीवन को दांव पर लगाता है। अगर उसके परिवार में सुख, शांति और संतोष नहीं होगा, तो वो Duty नहीं कर पाएगा। वो कितना ही त्या गी, तपस्वीन, बलिदानी अफसर होगा तो भी परिवार की बैचेनी उसको बैचेन बनाती है। यह सरकार का और हम सबका दायित्वव है कि हम पुलिस परिवार के वेलफयेर के लिए कोई Systematic व्यववस्थााएं विकसित कर सकते हैं ? जैसे उनका अपने परिवार का Medical Check up कैसे हो, Including पुलिस के लोग, उनके बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के संबंध में क्याो हो। ज्या दातर जो नीचे तबके के जो पुलिस के जवान है, उनके रहने की सुविधाएं कैसी है। उस पर हम कोई ध्या न दे सकते हैं? ऐसा नहीं है कि ये सब होता नहीं है। अब हमारे लिए एक अच्छा है कि हमारे जो गृहमंत्री जी है, वो हिंदुस्ता न के सबसे बड़े राज्यध के मुख्यममंत्री रहे हैं और सफल मुख्यृमंत्री रहे हैं। और इसलिए उनको इन विषयों की बहुत बारीकियों का ज्ञान है। उनका मार्गदर्शन आने वाले दिनों में हमें बहुत काम आने वाला है। मेरा भी सौभाग्यक रहा कि मैं लम्बे् अर्से तक मुख्यममंत्री रहा तो Home Department अपने पास होने से उसकी बारीकियों से मैं परिचित हूं। धरती पर क्याe चल रहा है, उससे मैं जानकार हूं। और इस कारण यह संभावना है कि हमारी यह Priority हैं। हम चाहते हैं कि हमारे पुलिस वेलफेयर के काम को हम वैज्ञानिक तरीके से विकसित करें और Minimum इतना तो होना ही चाहिए। यह अगर हम करेंगे, तो देखिए बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा, बहुत बड़ा बदलाव आएगा।

कभी-कभार हम पुलिस के लोगों का मुश्किल क्या होता है जी, सामान्या मानव के दिमाग में आप, की Movies ने पता नहीं इसको ऐसा Paint करके रखा हुआ है। मैंने अभी बहुत कम ऐसी Movies देखी कि जहां पुलिस के त्याग और तपस्याी की कोई कथाल आई हो। और उसके कारण जन-मानस पर ऐसी छवि बन गई है। हमें Special Efforts करने चाहिए। भारत सरकार ने कोई PR Agency करके इन सारे Film Producer से मिलना चाहिए। उनको बताना चाहिए कि भाई यह क्याक कर रहे हो आप लोग। अगर हम समाज की रक्षा करने वाली इतनी बड़ी शक्ति का सम्माअन और गौरव नहीं बढांएगे, तो उनकी बुराईयां भी कम नहीं होगी। हम परिवार में भी एक बच्चा् गलती करता है तो बार-बार गलती, गलती, गलती, गलती दोहरा करके उसकी गलती ठीक नहीं करते। उसकी गलती ध्यान में रखते हैं लेकिन अच्छाईयों की ओर ले जाते हैं, तो अच्छाल अपने आप बनना शुरू हो जाता है। कमियां होगी, किसमें नहीं है। लेकिन कमियों को दूर करने का रास्ताह भी तो होता है और समाज के सहयोग के बिना नहीं होताऔर मैं चाहता हूं कि एक लम्बीी दूरी की सोच के साथ भारत के पुलिस के संबंध में लोगों की सोच बदली जा सकती है और धरती की हकीकत के द्वारा उसको किया जा सकता है। कभी-कभार क्या होता है पुलिस से जुड़ी हुई एक Negative खबर इतने दिनों तक Media में छाई रहती है, लेकिन उसी कालखंड में सैकड़ों अच्छीत चीजें हुई होती हैं, वो कभी भी उजागर नहीं होती हैं।

जब मैं गुजरात में था, मैंने तो एक छोटा प्रयोग किया था, अगर आप लोगों को उचित लगे तो आप उस प्रयोग पर सोचिए। मेरे गुजरात छोड़ने के बाद क्याग हुआ, मुझे मालूम नहीं है। उसमें कुछ काम हो रहा है या नहीं हो रहा है। लेकिन मैंने एक आग्रह किया था। हर पुलिस थाने की अपनी वेबसाइट हो,पुलिस थाने की वेबसाइट। और वो पुलिस थाना, उस पुलिस थाने में उस Week में जो अच्छीे से अच्छीए समाज की सेवा की कोई गतिविधि हुई हो, कोई दुखी आया उसको बहुत अच्छे ढंग से Treat किया हो, किसी का बहुत नुकसान होना था पुलिस पहुंचकर बचा लिया। मदद कर दी। हजारों घटनाएं कम नहीं है। हजारों घटनाएं कम नहीं है जी। अब निराश मत होना आपके माध्यम से देश के बहुत अच्छे काम हो रहे हैं। लेकिन आप ही उसको उजागर नहीं करते। क्याो पुलिस थाने की अपनी वेबसाइट हो और हर हफ्ता एक सच्ची and100 Percent सच्ची होनी चाहिए। Positive story हम Online रखे। आप फिर कभी उसको देखिए आपको ध्यान आयेगा कितनी लाखों सकारात्मक चीजें पुलिस के माध्य म से हो रही है जो समाज का फायदा कर सकती है। आर्टिफिशल कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। है, धरती पर है। हर आदमी आपको मिलेगा और कहेगा कि हां भाई मेरे जीवन में तो मुझे एक-आध बार पुलिस की अच्छी मदद मिल गई। कोई न कोई मिल जाएगा आपको। लेकिन Collectively ये चीजें लोगों के सामने नही आती है।मैं चाहूंगा कि आप उस दिशा में कुछ सक्रियता से सोचें और सक्रियता से सोचकर के उसको कैसे आगे बढ़ाया जाए, कैसे किया जाए। जब मिलेंगे तो इन विषयों में विस्तार से बात करेंगे।

एक मेरे मन में है smart police का मेरे मन में concept है। smart police, smart police,smart police बेड़ा। इसको लेकर के हम किस प्रकार से काम कर सकते हैं। और जब मैं smart police की बात करता हूं तबS –Strict लेकिन साथ-साथ S for Sensitivity, Police Strict भी हो Police –Sensitive भी हो। M- Modern हो और Mobility हो, stagnancy नही होनी चाहिए, A – Alert भी हो Accountable भी हो, R–Reliable हो Responsive भी हो, T – Techno Savvy हो Trained हो। Smart Police - S for Strict and Sensible, M for Modern and Mobility, A for Alert and Accountable R for Reliable and Responsive, T for Techno Savvy and Trained इन पांच बिंदुओं को लेकर हम आगे बढ़े। मुझे विश्वाvस है हम पूरे पुलिस बेड़े में एक नई जान भर सकते हैं। एक नई चेतना भर सकते हैं।

फिर एक बार आज जिनको मुझे सम्मान करने का अवसर मिला है। उन सबको मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आगे भी इस प्रकार के पराक्रमों से भरा हुआ हमारा पुलिस बेड़ा सामान्य नागरिक की सेवा करने में, उसको सुरक्षा देने में और सबसे बड़ी बात उसमें विश्वा स पैदा करने में हम सफल होंगे। बाकी हम जब मिलेंगे तब विस्तार से बातें करेंगे।

बहुत-बहुत शुभकामनाएं, धन्यसवाद।

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 'मन की बात', यानि देश के सामूहिक प्रयासों की बात, देश की उपलब्धियों की बात, जन-जन के सामर्थ्य की बात, ‘मन की बात' यानि देश के युवा सपनों, देश के नागरिकों की आकांक्षाओं की बात | मैं पूरे महीने, 'मन की बात' का इंतजार करता रहता हूँ, ताकि, आपसे सीधा संवाद कर सकूँ । कितने ही सारे संदेश, कितने ही messages ! मेरा पूरा प्रयास रहता है कि ज्यादा- से-ज्यादा संदेश को पढूँ, आपके सुझावों पर मंथन करूँ ।

साथियो, आज बड़ा ही खास दिन है - आज NCC दिवस है | NCC का नाम सामने आते ही हमें स्कूल-कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं | मैं स्वयं भी NCC Cadet रहा हूँ, इसलिए, पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इससे मिला अनुभव मेरे लिए अनमोल है | 'NCC' युवाओं में अनुशासन, नेतृत्व और सेवा की भावना पैदा करती है । आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए NCC के cadets जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में NCC को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । 2014 में करीब 14 लाख युवा NCC से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा NCC से जुड़े हैं | पहले के मुकाबले पाँच हजार और नए स्कूल-कॉलेजों में अब NCC की सुविधा हो गई है, और सबसे बड़ी बात, पहले NCC में girls cadets की संख्या करीब 25% (percent) के आस-पास ही होती थी | अब NCC में girls cadets की संख्या करीब-करीब 40% (percent) हो गई है | बॉर्डर किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा NCC से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है । मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में NCC से जुड़ें | आप देखिएगा आप किसी भी career में जाएं, NCC से आपके व्यक्तित्व निर्माण में बड़ी मदद मिलेगी |

साथियो, विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है | युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं । आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश 'युवा दिवस' मनाता है । अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue’ | भारत-भर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, block, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue' के लिए जुटेंगे | आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आहवान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का political background नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे | ‘विकसित भारत Young Leaders Dialogue' भी ऐसा ही एक प्रयास है । इसमें देश और विदेश से experts आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी | मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा | युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने ideas को रखने का अवसर मिलेगा | देश इन ideas को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस roadmap बन सकता है? इसका एक blueprint तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं | जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए I मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी address किया है जैसे लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, वो बुजुर्गों को Digital life certificate के काम में मदद करते हैं I आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी Pensioners को साल में एक बार Life Certificate जमा कराना होता है I 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी I अब ये व्यवस्था बदल चुकी है I अब Digital Life Certificate देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता I बुजुर्गों को Technology की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है I वो, अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं I इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को tech savvy भी बना रहे हैं ऐसे ही प्रयासों से आज Digital Life certificate पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है I इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है I

साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को Digital क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं I भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को Mobile के माध्यम से Payment करना सिखाया है I इन बुजुर्गों के पास smart phone तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था I बुजुर्गों को Digital arrest के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं I अहमदाबाद के राजीव, लोगों को Digital Arrest के खतरे से आगाह करते हैं I मैंने ‘मन की बात’ के पिछले episode में Digital Arrest की चर्चा की थी I इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं I ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और cyber fraud से बचने में मदद करें I हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि Digital Arrest नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है - ये सरासर झूठ, लोगों को फ़साने का एक षड्यन्त्र है मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं I

मेरे प्यारे देशवासियो, आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं | कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े - कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी | मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे share करना चाहता हूं | यहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है | इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है | इस library का idea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है | विदेश में अपने काम के दौरान वे latest technology की दुनिया से जुड़े रहे | लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे | भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया | इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है | किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं | Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है |

साथियो, हैदराबाद में ‘Food for Thought’ Foundation ने भी कई शानदार libraries बनाई हैं | इनका भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें | बिहार में गोपालगंज के ‘Prayog Library’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है | इस library से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, library पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है | कुछ libraries तो ऐसी हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में students के बहुत काम आ रही हैं | ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज library का बेहतरीन उपयोग हो रहा है | आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं | भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘Mini भारत’ बसता है | आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था | आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं | गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं | जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था - जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे share कर रहा हूं | गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं | दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं | क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ share करें | आप इन कहानियों को NaMo App पर या MyGov पर #IndianDiasporaStories के साथ भी share कर सकते हैं |

साथियो, आपको ओमान में चल रहा एक extraordinary project भी बहुत दिलचस्प लगेगा | अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं | इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं | इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण link तैयार किए थे | आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है | ओमान में भारतीय दूतावास और National Archives of India के सहयोग से एक team ने इन परिवारों की history को preserve करने का काम शुरू किया है | इस अभियान के तहत अब तक हजारों documents जुटाए जा चुके हैं | इनमें diary, account book, ledgers, letters और telegram शामिल हैं | इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं | ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं | बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े - ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है | ‘Oral History Project’ ये भी इस mission का एक महत्वपूर्ण आधार है | इस mission में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं | लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है |

साथियो ऐसा ही एक ‘Oral History Project’ भारत में भी हो रहा है | इस project के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं | अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है | ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है |

साथियो, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है | इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक Directory बनाई है | समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है | इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा Museum भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई manuscript हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, National Archives of India की मदद से सहेज सकते हैं |

साथियो, मुझे Slovakia में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है | यहां पहली बार Slovak language में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है | इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है | हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे देश की एक ऐसी उपलब्धि साझा करना चाहता हूं जिसे सुनकर आपको खुशी भी होगी और गौरव भी होगा, और अगर आपने नहीं किया है, तो शायद पछतावा भी होगा | कुछ महीने पहले हमने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान शुरू किया था | इस अभियान में देश-भर के लोगों ने बहुत उत्साह से हिस्सा लिया | मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि इस अभियान ने सौ करोड़ पेड़ लगाने का अहम पड़ाव पार कर लिया है | सौ करोड़ पेड़, वो भी, सिर्फ पाँच महीनों में - ये हमारे देशवासियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है | इससे जुड़ी एक और बात जानकर आपको गर्व होगा | ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अब दुनिया के दूसरे देशों में भी फैल रहा है | जब मैं गयाना में था, तो वहां भी, इस अभियान का साक्षी बना | वहां मेरे साथ गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली, उनकी पत्नी की माता जी, और परिवार के बाकी सदस्य, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में शामिल हुए |

साथियो, देश के अलग-अलग हिस्सों में ये अभियान लगातार चल रहा है | मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत, पेड़ लगाने का record बना है - यहां 24 घंटे में 12 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए | इस अभियान की वजह से इंदौर की Revati Hills के बंजर इलाके, अब, green zone में बदल जाएंगे | राजस्थान के जैसलमेर में इस अभियान के द्वारा एक अनोखा record बना - यहां महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25 हजार पेड़ लगाए | माताओं ने मां के नाम पेड़ लगाया और दूसरों को भी प्रेरित किया। यहां एक ही जगह पर पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मिलकर पेड़ लगाए - ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है । ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कई सामाजिक संस्थाएँ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पेड़ लगा रही हैं । उनका प्रयास है कि जहां पेड़ लगाए जाएँ वहाँ पर्यावरण के अनुकूल पूरा Eco System Develop हो । इसलिए ये संस्थाएँ कहीं औषधीय पौधे लगा रहीं हैं, तो कहीं, चिड़ियों का बसेरा बनाने के लिए पेड़ लगा रहीं हैं । बिहार में ‘JEEViKA Self Help Group’ की महिलाओं ने 75 लाख पेड़ लगाने का अभियान चला रहीं हैं । इन महिलाओं का focus फल वाले पेड़ों पर है, जिससे आने वाले समय में आय भी की जा सके ।

साथियो, इस अभियान से जुड़कर कोई भी व्यक्ति अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगा सकता है । अगर माँ साथ है तो उन्हें साथ लेकर आप पेड़ लगा सकते हैं, नहीं तो उनकी तस्वीर साथ में लेकर आप इस अभियान का हिस्सा बन सकते हैं । पेड़ के साथ आप अपनी Selfie भी mygov.in पर पोस्ट कर सकते हैं । माँ, हम सबके लिए जो करती है हम उनका ऋण कभी नहीं चुका सकते, लेकिन, एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम उनकी उपस्थिति को हमेशा के लिए जीवंत बना सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया या Sparrow को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा । गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है । हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं । हमारे आसपास Biodiversity को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है । बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है । आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है । ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं । चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए स्कूल के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है । संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है । ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की training देते है । इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा सा घर बनाना सिखाया । इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया । ये ऐसे घर होते हैं जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है । बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे दस हज़ार घोंसले तैयार किए हैं । कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी ।

साथियो, कर्नाटका के मैसुरू की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘Early Bird’ नाम का अभियान शुरू किया है । ये संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की library चलाती है । इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘Nature Education Kit’ तैयार किया है। इस Kit में बच्चों के लिए Story Book, Games, Activity Sheets और jig-saw puzzles हैं । ये संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है । इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं । ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है | आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा | सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं | बरसों-बरस तक ये फाइलें Office में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी - ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और Scrap को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया | आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं | साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है | इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक Ownership का भाव भी आया है | अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है |

सथियो, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है | हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है | देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं | तरह-तरह के innovation कर रहे हैं | इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं | ये युवा अपने प्रयासों से sustainable lifestyle को भी बढ़ावा दे रहे हैं | मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है | अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं | आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है | अक्षरा और प्रकृति की Team उन्हीं कपड़ों के कचरे को Fashion Product में बदलती है | कतरन से बनी टोपियां, Bag हाथों-हाथ बिक भी रही है |

साथियो, साफ-सफाई को लेकर UP के कानपुर में भी अच्छी पहल हो रही है | यहाँ कुछ लोग रोज सुबह Morning Walk पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले Plastic और अन्य कचरे को उठा लेते हैं | इस समूह को ‘Kanpur Ploggers Group’ नाम दिया गया है | इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी | धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया | शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं | इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं | इस कचरे से Recycle Plant में tree guard तैयार किए जाते हैं, यानि, इस Group के लोग कचरे से बने tree guard से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं|

साथियो, छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है | इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है | इतिशा corporate दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं | पर्यटकों की वजह से वहां काफी plastic waste जमा होने लगा था | वहां की नदी जो कभी साफ थी वो plastic waste की वजह से प्रदूषित हो गई थी | इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है | उनके group के लोग वहां आने वाले tourist को जागरूक करते हैं और plastic waste को collect करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं |

साथियो, ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है | ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है | आपके आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा | आप मुझे ऐसे प्रयासों के बारे में जरूर लिखते रहिए |

साथियो, ‘मन की बात’ के इस episode में फिलहाल इतना ही | मुझे तो पूरे महीने, आपकी प्रतिक्रियाओं, पत्रों और सुझावों का खूब इंतजार रहता है | हर महीने आने वाले आपके संदेश मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देते हैं | अगले महीने हम फिर मिलेंगे, ‘मन की बात’ के एक और अंक में - देश और देशवासियों की नई उपलब्धियों के साथ, तब तक के लिए, आप सभी देशवासियों को, मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं |

बहुत-बहुत धन्यवाद |