मंत्री परिषद के मेरे साथी श्रीमान राजनाथ सिंह जी, Northeast के सभी आदरणीय मुख्य मंत्री, श्री किरन रिजिजू जी, विभाग के सभी अधिकारी और पुलिस बेड़े के सभी leaders.आज जिन लोगों का सम्माीन हुआ है, उन सबको मैं हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

चाणक्य के समय से हम लोग पढ़ते आए है कि किसी भी राष्ट्र रक्षा के भीतर जितना सामर्थ्य शस्त्र में होता है, उससे ज्यादा सामर्थ्य यह शस्त्र किसके पास है उस पर निर्भर रहता है और उससे भी आगे, शस्त्र भी हो, शस्र् धारी भी हो,लेकिन राष्ट्र रक्षा की सफलता की मूलधारा तो गुप्ताचर तंत्र के सहारे ही चलती है। जिस व्यवस्था के पास उत्तम प्रकार की गुप्त चर व्यवस्था होती है। उस व्यवस्था को कभी भी, न शस्त्रधारी की जरूरत पड़ती है न कभी शस्त्र की जरूरत पड़ती है और शस्त्र के उपयोग की तो कभी आवश्याकता ही नहीं रहती है और इसलिए रक्षा के क्षेत्र में सुरक्षा के विषय पर सर्वाधिक महत्वरपूर्ण कोई ईकाई होती है, तो वो होता है गुप्त चर तंत्र। और उस क्षेत्र में सेवा करने वाले उन अधिकारियों का सम्मा्न करने का मुझे अवसर मिला है। मैं फिर एक बार उनकी इस उत्तम सेवा के लिए हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, बंधाई देता हूं।

सबको आश्चर्य हो रहा है कि इतने सालों से जो परंपरा चल रही थी। उसे तोड़कर के दिल्ली के बाहर, गुवाहाटी क्यों। ले जाया गया। लेकिन आपने देखा होगा दिल्ली में मीटिंग होती है तो आप अपनी भी बहुत व्यस्तताएं लेकर के आते हैं। आपको लगता है कि आए हैं तो चार काम और भी कर लें। Ministry में चले जाए, Secretaries को मिल लें। राज्ये के सवालों पर थोड़ा-थोड़ा ध्यान केंद्रित करें। दिल्ली के बाहर जाने के कारण आप जब से आएं हो तब से पूरी तरह एक-दूसरे में घुल-मिल गए होंगे। यहां कोई और activity नहीं है इसलिए पूरा Focus यहां की activity पर आया होगा। और सबसे ज्यादा लाभ Northeast में यहां के जो लोग हैं उनका इतना उत्साह बढ़ा होगा, यहां के पुलिस बेड़े का इतना उत्साजह बढ़ा होगा, तो अपने आप में यह थोड़ा-सा ही बदलाव कितने बड़े परिणाम ला सकता है यह अनुभव आप भी करते होंगे। हो सकता है आगे जाकर के आप भी करेंगे। एक शुभ शुरूआत है। आगे भी हम चाहेंगे कि इस प्रकार के Event दिल्ली के बाहर हुआ करें और राज्योंं में जाते-जाते कभी दिल्लीे की भी बारी आएगी ऐसा तो नहीं कि दिल्ली में नहीं आएगी। लेकिन दिल्लीभ में जब कार्यक्रम होता है तो दिल्ली पुलिस का कोई Role ही नहीं होता है। वो भारत सरकार और एक विज्ञान भवन रेडिमेड रहता है और आप अपने भवनों में रहते हैं और चले आते हैं। यह एक बदलाव है और यह बदलाव व्यवस्था में प्राण बहुत आवश्यडक होते हैं। Roboticव्येवस्थाडएं नहीं चलती हैं। व्यवस्थाएं जीवंत होनी चाहिए, व्य्वस्थाेएं प्राणवान होनी चाहिए। व्यवस्थाओं में से प्राणशक्ति में इजाफा होना चाहिए और यह बदलाव आपको उस दिशा में ले जाएगा। आप भी अपने राज्य में इसी प्रकार के प्रयोगों की ओर जाएंगे ऐसा मुझे विश्वाेस है।

कल से आप लोग बैठे हैं कुछ Serious Nature की बातें, कुछ हल्की -फुल्कीआ बातें लेकिन एक अच्छे माहौल में हुआ है। मैं भी आज दोपहर तक आपके बीच रहने वाला हूं। मैं ज्याoदा समय आपको सुनने में लगाना चाहता हूं। लेकिन एक दो विषय है जो आज मैं बताना चाहता हूं। देश आजाद होने के बाद 33 thousand पुलिस के जवान देश की रक्षा के लिए शहीद हो जाएं, नागरिकों की सुख-सुविधा के लिए शहीद हो जाएं,यह घटना छोटी नहीं है। लेकिन क्याु पुलिस बेड़े के लोगों को पता है कि अपने साथियों ने 33 हजार लोगों ने भारत के नागरिकों की रक्षा के लिए अपने प्राण दे दिए हैं। सामान्यर नागरिक को तो पता होने का सवाल ही नहीं उठता है। मुझे पहली आवश्यककता लगती है, यह 33 हजार बलिदान व्यदर्थ नहीं जाने चाहिए। समाज में उनके प्रति सम्मालन कैसे बढ़े? वो भी तो किसी मां का लाल था। और Duty के लिए मरा है वो, लेकिन पता नहीं क्योंल किसी न किसी हालात के कारण इसके प्रति एक उदासीनता बरती गई है। मैं चाहूंगा कि आपमें से एक छोटा सा Taskforce बने। कुछ सीनियर अनुभवी लोगों का बने। हम इस बलिदान की विरासत को ऐसी कौन सी चीजों को Incorporate करे ताकि यह हमेशा-हमेशा के लिए हमारी प्रेरणा का कारण बने। हम ऐसे Protocol कैसे तय करे। जिन Protocol के कारण,जो शहीद पुलिस है उसके शरीर की अंत्ये ष्टि की सारी क्रिया का एक Protocol कैसे हो, ताकि उसके सम्मा न की ओर कोई व्यीवस्थाc विकसित हो। हर राज्य। की अपनी एक पुलिस अकादमी होती है। वहां New Recruits की training होती है। क्यात उनके अंदर एक Syllabus, एक किताब उस राज्य के जितने भी पुलिस बेड़े के जवान शहीद हुए हैं, उनके जीवन पर लिखी हुई एक किताब हो सकती है क्याी? हर राज्यह की अपनी एक किताब होनी चाहिए। Official Government Book होनी चाहिए। जिसने प्राण दिया है, किस अवसर पर दिया, कैसे दिया, कैसा साहस दिखाया, कितनो की जिंदगी बचाई। जो नई पीढ़ी की पुलिस आएगी, नया Constable की भर्ती होगी और चीज सीखेगा। इस किताब को भी उसको पढ़ना होगा। इस किताब पर Exam देना होगा। उसको अपने आपको पता लगेगा, मेरे बेड़े में मेरे पहले इतने लोग बलि चढ़ चुके थे। यह अपने में पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़ता चला जाएगा। हर साल किताब की नई Edition निकले क्या। हम अभी तय कर सकते हैं कि हर राज्यक एक E-book निकालें। जिस E-book में इन 33 thousand बलिदानी लोगों के बारे में सबकी फोटो शायद संभव न भी हो। उस परिवार के पास हो तो लेनी चाहिए। लेकिन एक E-book हो। वो जिस प्रदेश में बलिदान हुआ, उस प्रदेश की भाषा में भी हो और National Languages में भी हो। प्रकल्पआ छोटा होगा, लेकिन प्रेरणा अपरम्पारर होगी। उसी प्रकार से मैंने देखा है कि Police Welfare के लिए कई छोटे-बड़े कार्यक्रम पुलिस डिपार्टमेंट करता रहता है। Cine कलाकार आते हैं, नृत्यर-नाटक का भी कार्यक्रम करते हैं। मुंबई वाले तो ज्यादा ही करते हैं। उस समय एक Souvenir भी निकालते हैं। उसमें एक Advertisement लेते हैं Fund Collect होता है। उसकी बारीकियों में तो मैं गया नहीं हूं, जाना भी नहीं चाहता हूं, लेकिन क्यात हम यह तय कर सकते हैं कि साल में जब ऐसा Souvenir निकलेगा, उस Souvenir की मुख्य। विभीषाएं उस वर्ष के उस राज्य के बलिदान हुए पुलिसों की जीवन गाथा ही उसमें छपेगी। हमें तय करना होगा। उनके जीवन को ऐसे खत्म नहीं होने देना चाहिए। वो शरीर से रहा या न रहा हो लेकिन पुलिस बेड़े के लिए और समाज के लिए वो कभी मरना नहीं चाहिए। यह हमारा दायित्वस है। आगे हुआ हो या न हुआ उसकी मुझे चर्चा करने का कोई कारण नहीं बनता है, लेकिन आगे हो इस पर भी तो हम सोच सकते हैं और मैं मानता हूं कि इन चीजों का बहुत बड़ा लाभ होगा।

दूसरी बात है पुलिस वेलफेयर मैं जानता हूं कि सबसे ज्यादा, तनाव भरी जिंदगी अगर किसी की है, तो पुलिस बेड़े की है। वो अपने जीवन को दांव पर लगाता है। अगर उसके परिवार में सुख, शांति और संतोष नहीं होगा, तो वो Duty नहीं कर पाएगा। वो कितना ही त्या गी, तपस्वीन, बलिदानी अफसर होगा तो भी परिवार की बैचेनी उसको बैचेन बनाती है। यह सरकार का और हम सबका दायित्वव है कि हम पुलिस परिवार के वेलफयेर के लिए कोई Systematic व्यववस्थााएं विकसित कर सकते हैं ? जैसे उनका अपने परिवार का Medical Check up कैसे हो, Including पुलिस के लोग, उनके बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के संबंध में क्याो हो। ज्या दातर जो नीचे तबके के जो पुलिस के जवान है, उनके रहने की सुविधाएं कैसी है। उस पर हम कोई ध्या न दे सकते हैं? ऐसा नहीं है कि ये सब होता नहीं है। अब हमारे लिए एक अच्छा है कि हमारे जो गृहमंत्री जी है, वो हिंदुस्ता न के सबसे बड़े राज्यध के मुख्यममंत्री रहे हैं और सफल मुख्यृमंत्री रहे हैं। और इसलिए उनको इन विषयों की बहुत बारीकियों का ज्ञान है। उनका मार्गदर्शन आने वाले दिनों में हमें बहुत काम आने वाला है। मेरा भी सौभाग्यक रहा कि मैं लम्बे् अर्से तक मुख्यममंत्री रहा तो Home Department अपने पास होने से उसकी बारीकियों से मैं परिचित हूं। धरती पर क्याe चल रहा है, उससे मैं जानकार हूं। और इस कारण यह संभावना है कि हमारी यह Priority हैं। हम चाहते हैं कि हमारे पुलिस वेलफेयर के काम को हम वैज्ञानिक तरीके से विकसित करें और Minimum इतना तो होना ही चाहिए। यह अगर हम करेंगे, तो देखिए बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा, बहुत बड़ा बदलाव आएगा।

कभी-कभार हम पुलिस के लोगों का मुश्किल क्या होता है जी, सामान्या मानव के दिमाग में आप, की Movies ने पता नहीं इसको ऐसा Paint करके रखा हुआ है। मैंने अभी बहुत कम ऐसी Movies देखी कि जहां पुलिस के त्याग और तपस्याी की कोई कथाल आई हो। और उसके कारण जन-मानस पर ऐसी छवि बन गई है। हमें Special Efforts करने चाहिए। भारत सरकार ने कोई PR Agency करके इन सारे Film Producer से मिलना चाहिए। उनको बताना चाहिए कि भाई यह क्याक कर रहे हो आप लोग। अगर हम समाज की रक्षा करने वाली इतनी बड़ी शक्ति का सम्माअन और गौरव नहीं बढांएगे, तो उनकी बुराईयां भी कम नहीं होगी। हम परिवार में भी एक बच्चा् गलती करता है तो बार-बार गलती, गलती, गलती, गलती दोहरा करके उसकी गलती ठीक नहीं करते। उसकी गलती ध्यान में रखते हैं लेकिन अच्छाईयों की ओर ले जाते हैं, तो अच्छाल अपने आप बनना शुरू हो जाता है। कमियां होगी, किसमें नहीं है। लेकिन कमियों को दूर करने का रास्ताह भी तो होता है और समाज के सहयोग के बिना नहीं होताऔर मैं चाहता हूं कि एक लम्बीी दूरी की सोच के साथ भारत के पुलिस के संबंध में लोगों की सोच बदली जा सकती है और धरती की हकीकत के द्वारा उसको किया जा सकता है। कभी-कभार क्या होता है पुलिस से जुड़ी हुई एक Negative खबर इतने दिनों तक Media में छाई रहती है, लेकिन उसी कालखंड में सैकड़ों अच्छीत चीजें हुई होती हैं, वो कभी भी उजागर नहीं होती हैं।

जब मैं गुजरात में था, मैंने तो एक छोटा प्रयोग किया था, अगर आप लोगों को उचित लगे तो आप उस प्रयोग पर सोचिए। मेरे गुजरात छोड़ने के बाद क्याग हुआ, मुझे मालूम नहीं है। उसमें कुछ काम हो रहा है या नहीं हो रहा है। लेकिन मैंने एक आग्रह किया था। हर पुलिस थाने की अपनी वेबसाइट हो,पुलिस थाने की वेबसाइट। और वो पुलिस थाना, उस पुलिस थाने में उस Week में जो अच्छीे से अच्छीए समाज की सेवा की कोई गतिविधि हुई हो, कोई दुखी आया उसको बहुत अच्छे ढंग से Treat किया हो, किसी का बहुत नुकसान होना था पुलिस पहुंचकर बचा लिया। मदद कर दी। हजारों घटनाएं कम नहीं है। हजारों घटनाएं कम नहीं है जी। अब निराश मत होना आपके माध्यम से देश के बहुत अच्छे काम हो रहे हैं। लेकिन आप ही उसको उजागर नहीं करते। क्याो पुलिस थाने की अपनी वेबसाइट हो और हर हफ्ता एक सच्ची and100 Percent सच्ची होनी चाहिए। Positive story हम Online रखे। आप फिर कभी उसको देखिए आपको ध्यान आयेगा कितनी लाखों सकारात्मक चीजें पुलिस के माध्य म से हो रही है जो समाज का फायदा कर सकती है। आर्टिफिशल कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। है, धरती पर है। हर आदमी आपको मिलेगा और कहेगा कि हां भाई मेरे जीवन में तो मुझे एक-आध बार पुलिस की अच्छी मदद मिल गई। कोई न कोई मिल जाएगा आपको। लेकिन Collectively ये चीजें लोगों के सामने नही आती है।मैं चाहूंगा कि आप उस दिशा में कुछ सक्रियता से सोचें और सक्रियता से सोचकर के उसको कैसे आगे बढ़ाया जाए, कैसे किया जाए। जब मिलेंगे तो इन विषयों में विस्तार से बात करेंगे।

एक मेरे मन में है smart police का मेरे मन में concept है। smart police, smart police,smart police बेड़ा। इसको लेकर के हम किस प्रकार से काम कर सकते हैं। और जब मैं smart police की बात करता हूं तबS –Strict लेकिन साथ-साथ S for Sensitivity, Police Strict भी हो Police –Sensitive भी हो। M- Modern हो और Mobility हो, stagnancy नही होनी चाहिए, A – Alert भी हो Accountable भी हो, R–Reliable हो Responsive भी हो, T – Techno Savvy हो Trained हो। Smart Police - S for Strict and Sensible, M for Modern and Mobility, A for Alert and Accountable R for Reliable and Responsive, T for Techno Savvy and Trained इन पांच बिंदुओं को लेकर हम आगे बढ़े। मुझे विश्वाvस है हम पूरे पुलिस बेड़े में एक नई जान भर सकते हैं। एक नई चेतना भर सकते हैं।

फिर एक बार आज जिनको मुझे सम्मान करने का अवसर मिला है। उन सबको मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आगे भी इस प्रकार के पराक्रमों से भरा हुआ हमारा पुलिस बेड़ा सामान्य नागरिक की सेवा करने में, उसको सुरक्षा देने में और सबसे बड़ी बात उसमें विश्वा स पैदा करने में हम सफल होंगे। बाकी हम जब मिलेंगे तब विस्तार से बातें करेंगे।

बहुत-बहुत शुभकामनाएं, धन्यसवाद।

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January 04, 2025
हमारा विजन गांवों को विकास और अवसर के जीवंत केंद्रों में बदलकर ग्रामीण भारत को सशक्त बनाना है: प्रधानमंत्री
हमने हर गांव में बुनियादी सुविधाओं की गारंटी के लिए अभियान शुरू किया है: प्रधानमंत्री
हमारी सरकार की नीयत, नीतियां और निर्णय ग्रामीण भारत को नई ऊर्जा के साथ सशक्त बना रहे हैं: प्रधानमंत्री
आज, भारत सहकारी संस्थाओं के जरिए समृद्धि हासिल करने में लगा हुआ है: प्रधानमंत्री

मंच पर विराजमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी, वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी जी, यहां उपस्थित, नाबार्ड के वरिष्ठ मैनेजमेंट के सदस्य, सेल्फ हेल्प ग्रुप के सदस्य,कॉपरेटिव बैंक्स के सदस्य, किसान उत्पाद संघ- FPO’s के सदस्य, अन्य सभी महानुभाव, देवियों और सज्जनों,

आप सभी को वर्ष 2025 की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। वर्ष 2025 की शुरुआत में ग्रामीण भारत महोत्सव का ये भव्य आयोजन भारत की विकास यात्रा का परिचय दे रहा है, एक पहचान बना रहा है। मैं इस आयोजन के लिए नाबार्ड को, अन्य सहयोगियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

साथियों,

हममें से जो लोग गाँव से जुड़े हैं, गाँव में पले बढ़े हैं, वो जानते हैं कि भारत के गाँवों की ताकत क्या है। जो गाँव में बसा है, गाँव भी उसके भीतर बस जाता है। जो गाँव में जिया है, वो गाँव को जीना भी जानता है। मेरा ये सौभाग्य रहा कि मेरा बचपन भी एक छोटे से कस्बे में एक साधारण परिवेश में बीता! और, बाद में जब मैं घर से निकला, तो भी अधिकांश समय देश के गाँव-देहात में ही गुजरा। और इसलिए, मैंने गाँव की समस्याओं को भी जिया है, और गाँव की संभावनाओं को भी जाना है। मैंने बचपन से देखा है, कि गाँव में लोग कितनी मेहनत करते रहे हैं, लेकिन, पूंजी की कमी के कारण उन्हें पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते थे। मैंने देखा है, गाँव में लोगों की कितने यानी इतनी विविधताओं से भरा सामर्थ्य होता है! लेकिन, वो सामर्थ्य जीवन की मूलभूत लड़ाइयों में ही खप जाता है। कभी प्राकृतिक आपदा के कारण फसल नहीं होती थी, कभी बाज़ार तक पहुँच न होने के कारण फसल फेंकनी पड़ती थी, इन परेशानियों को इतने करीब से देखने के कारण मेरे मन में गाँव-गरीब की सेवा का संकल्प जगा, उनकी समस्याओं के समाधान की प्रेरणा आई।

आज देश के ग्रामीण इलाकों में जो काम हो रहे हैं, उनमें गाँवों के सिखाये अनुभवों की भी भूमिका है। 2014 से मैं लगातार हर पल ग्रामीण भारत की सेवा में लगा हूँ। गाँव के लोगों को गरिमापूर्ण जीवन देना, ये सरकार की प्राथमिकता है। हमारा विज़न है भारत के गाँव के लोग सशक्त बने, उन्हें गाँव में ही आगे बढ़ने के ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलें, उन्हें पलायन ना करना पड़े, गांव के लोगों का जीवन आसान हो और इसीलिए, हमने गाँव-गाँव में मूलभूत सुविधाओं की गारंटी का अभियान चलाया। स्वच्छ भारत अभियान के जरिए हमने घर-घर में शौचालय बनवाए। पीएम आवास योजना के तहत हमने ग्रामीण इलाकों में करोड़ों परिवारों को पक्के घर दिए। आज जल जीवन मिशन से लाखों गांवों के हर घर तक पीने का साफ पानी पहुँच रहा है।

साथियों,

आज डेढ़ लाख से ज्यादा आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के बेहतर विकल्प मिल रहे हैं। हमने डिजिटल टेक्नालजी की मदद से देश के बेस्ट डॉक्टर्स और हॉस्पिटल्स को भी गाँवों से जोड़ा है। telemedicine का लाभ लिया है। ग्रामीण इलाकों में करोड़ों लोग ई-संजीवनी के माध्यम से telemedicine का लाभ उठा चुके हैं। कोविड के समय दुनिया को लग रहा था कि भारत के गाँव इस महामारी से कैसे निपटेंगे! लेकिन, हमने हर गाँव में आखिरी व्यक्ति तक वैक्सीन पहुंचाई।

साथियों,

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए बहुत आवश्यक है कि गांव में हर वर्ग को ध्यान में रखते हुए आर्थिक नीतियां बनें। मुझे खुशी है कि पिछले 10 साल में हमारी सरकार ने गांव के हर वर्ग के लिए विशेष नीतियां बनाई हैं, निर्णय लिए हैं। दो-तीन दिन पहले ही कैबिनेट ने पीएम फसल बीमा योजना को एक वर्ष अधिक तक जारी रखने को मंजूरी दे दी। DAP दुनिया, में उसका दाम बढ़ता ही चला जा रहा है, आसमान को छू रहा है। अगर वो दुनिया में जो दाम चल रहे हैं, अगर उस हिसाब से हमारे देश के किसान को खरीदना पड़ता तो वो बोझ में ऐसा दब जाता, ऐसा दब जाता, किसान कभी खड़ा ही नहीं हो सकता। लेकिन हमने निर्णय किया कि दुनिया में जो भी परिस्थिति हो, कितना ही बोझ न क्यों बढ़े, लेकिन हम किसान के सर पर बोझ नहीं आने देंगे। और DAP में अगर सब्सिडी बढ़ानी पड़ी तो बढ़ाकर के भी उसके काम को स्थिर रखा है। हमारी सरकार की नीयत, नीति और निर्णय ग्रामीण भारत को नई ऊर्जा से भर रहे हैं। हमारा मकसद है कि गांव के लोगों को गांव में ही ज्यादा से ज्यादा आर्थिक मदद मिले। गांव में वो खेती भी कर पाएं और गांवों में रोजगार-स्वरोजगार के नए मौके भी बनें। इसी सोच के साथ पीएम किसान सम्मान निधि से किसानों को करीब 3 लाख करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी गई है। पिछले 10 वर्षों में कृषि लोन की राशि साढ़े 3 गुना हो गई है। अब पशुपालकों और मत्स्य पालकों को भी किसान क्रेडिट कार्ड दिया जा रहा है। देश में मौजूद 9 हजार से ज्यादा FPO, किसान उत्पाद संघ, उन्हें भी आर्थिक मदद दी जा रही है। हमने पिछले 10 सालों में कई फसलों पर निरंतर MSP भी बढ़ाई है।

साथियों,

हमने स्वामित्व योजना जैसे अभियान भी शुरू किए हैं, जिनके जरिए गांव के लोगों को प्रॉपर्टी के पेपर्स मिल रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में, MSME को भी बढ़ावा देने वाली कई नीतियां लागू की गई हैं। उन्हें क्रेडिट लिंक गारंटी स्कीम का लाभ दिया गया है। इसका फायदा एक करोड़ से ज्यादा ग्रामीण MSME को भी मिला है। आज गांव के युवाओं को मुद्रा योजना, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाओं से ज्यादा से ज्यादा मदद मिल रही है।

साथियों,

गांवों की तस्वीर बदलने में को-ऑपरेटिव्स का बहुत बड़ा योगदान रहा है। आज भारत सहकार से समृद्धि का रास्ता तय करने में जुटा है। इसी उद्देश्य से 2021 में अलग से नया सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया। देश के करीब 70 हजार पैक्स को कंप्यूटराइज्ड भी किया जा रहा है। मकसद यही है कि किसानों को, गांव के लोगों को अपने उत्पादों का बेहतर मूल्य मिले, ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो।

साथियों,

कृषि के अलावा भी हमारे गाँवों में अलग-अलग तरह की पारंपरिक कला और कौशल से जुड़े हुए कितने ही लोग काम करते हैं। अब जैसे लोहार है, सुथार है, कुम्हार है, ये सब काम करने वाले ज़्यादातर लोग गाँवों में ही रहते आए हैं। रुरल इकॉनमी, और लोकल इकॉनमी में इनका बहुत बड़ा contribution रहा है। लेकिन पहले इनकी भी लगातार उपेक्षा हुई। अब हम उन्हें नई नई skill, उसमे ट्रेन करने के लिए, नए नए उत्पाद तैयार करने के लिए, उनका सामर्थ्य बढ़ाने के लिए, सस्ती दरों पर मदद देने के लिए विश्वकर्मा योजना चला रहे हैं। ये योजना देश के लाखों विश्वकर्मा साथियों को आगे बढ़ने का मौका दे रही है।

साथियों,

जब इरादे नेक होते हैं, नतीजे भी संतोष देने वाले होते हैं। बीते 10 वर्षों की मेहनत का परिणाम देश को मिलने लगा है। अभी कुछ दिन पहले ही देश में एक बहुत बड़ा सर्वे हुआ है और इस सर्वे में कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं। साल 2011 की तुलना में अब ग्रामीण भारत में Consumption खपत, यानी गांव के लोगों की खरीद शक्ति पहले से लगभग तीन गुना बढ़ गई है। यानी लोग, गांव के लोग अपने पसंद की चीजें खरीदने में पहले से ज़्यादा खर्च कर रहे हैं। पहले स्थिति ये थी कि गांव के लोगों को अपनी कमाई का 50 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा, आधे से भी ज्यादा हिस्सा खाने-पीने पर खर्च करना पड़ता था। लेकिन आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि ग्रामीण इलाकों में भी खाने-पीने का खर्च 50 प्रतिशत से कम हुआ है, और, और जीवन की चीजें खरीदने ती तरफ खर्चा बढ़ा है। इसका मतलब लोग अपने शौक की, अपनी इच्छा की, अपनी आवश्यकता जी जरूरत की और चीजें भी खरीद रहे हैं, अपना जीवन बेहतर बनाने पर खर्च कर रहे हैं।

साथियों,

इसी सर्वे में एक और बड़ी अहम बात सामने आई है। सर्वे के अनुसार शहर और गाँव में होने वाली खपत का अंतर कम हुआ है। पहले शहर का एक प्रति परिवार जितना खर्च करके खरीद करता था और गांव का व्यक्ति जो कहते है बहुत फासला था, अब धीरे-धीरे गांव वाला भी शहर वालो की बराबरी करने में लग गया है। हमारे निरंतर प्रयासों से अब गाँवों और शहरों का ये अंतर भी कम हो रहा है। ग्रामीण भारत में सफलता की ऐसी अनेक गाथाएं हैं, जो हमें प्रेरित करती हैं।

साथियों,

आज जब मैं इन सफलताओं को देखता हूं, तो ये भी सोचता हूं कि ये सारे काम पहले की सरकारों के समय भी तो हो सकते थे, मोदी का इंतजार करना पड़ा क्या। लेकिन, आजादी के बाद दशकों तक देश के लाखो गाँव बुनियादी जरूरतों से वंचित रहे हैं। आप मुझे बताइये, देश में सबसे ज्यादा SC कहां रहते हैं गांव में, ST कहां रहते हैं गांव में, OBC कहां रहते हैं गांव में। SC हो, ST हो, OBC हो, सामज के इस तबके के लोग ज्यादा से ज्यादा गांव में ही अपना गुजारा करते हैं। पहले की सरकारों ने इन सभी की आवश्यकताओं की तरफ ध्यान नहीं दिया। गांवों से पलायन होता रहा, गरीबी बढ़ती रही, गांव-शहर की खाई भी बढ़ती रही। मैं आपको एक और उदाहरण देता हूं। आप जानते हैं, पहले हमारे सीमावर्ती गांवों को लेकर क्या सोच होती थी! उन्हें देश का आखिरी गाँव कहा जाता था। हमने उन्हें आखिरी गाँव कहना बंद करवा दिया, हमने कहा सूरज की पहली किरण जब निकलती है ना, तो उस पहले गांव में आती है, वो आखिरी गांव नहीं है और जब सूरज डूबता है तो डूबते सूरज की आखिरी किरण भी उस गांव को आती है जो हमारी उस दिशा का पहला गांव होता है। और इसलिए हमारे लिए गांव आखिरी नहीं है, हमारे लिए प्रथम गांव है। हमने उसको प्रथम गाँव का दर्जा दिया। सीमांत गांवों के विकास के लिए Vibrant विलेज स्कीम शुरू की गई। आज सीमांत गांवों का विकास वहां के लोगों की आय बढ़ा रहा है। यानि जिन्हें किसी ने नहीं पूछा, उन्हें मोदी ने पूजा है। हमने आदिवासी आबादी वाले इलाकों के विकास के लिए पीएम जनमन योजना भी शुरू की है। जो इलाके दशकों से विकास से वंचित थे, उन्हें अब बराबरी का हक मिल रहा है। पिछले 10 साल में हमारी सरकार द्वारा पहले की सरकारों की अनेक गलतियों को सुधारा गया है। आज हम गाँव के विकास से राष्ट्र के विकास के मंत्र को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि, 10 साल में देश के करीब 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं। और इनमें सबसे बड़ी संख्या हमारे गांवों के लोगों की है।

अभी कल ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की भी एक अहम स्टडी आई है। उनका एक बड़ा अध्ययन किया हुआ रिपोर्ट आया है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट क्या कह रही है, वो कहते हैं 2012 में भारत में ग्रामीण गरीबी रूरल पावर्टी, यानि गांवों में गरीबी करीब 26 परसेंट थी। 2024 में भारत में रूरल पावर्टी, यानि गांवों में गरीबी घटकर के पहले जो 26 पर्सेंट गरीबी थी, वो गरीबी घटकर के 5 परसेंट से भी कम हो गई है। हमारे यहां कुछ लोग दशकों तक गरीबी हटाओ के नारे देते रहे, आपके गांव में जो 70- 80 साल के लोग होंगे, उनको पूछना, जब वो 15-20 साल के थे तब से सुनते आए हैं, गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ, वो 80 साल के हो गए हैं। आज स्थिति बदल गई है। अब देश में वास्तविक रूप से गरीबी कम होना शुरू हो गई है।

साथियों,

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं का हमेशा से बहुत बड़ा स्थान रहा है। हमारी सरकार इस भूमिका का और विस्तार कर रही है। आज हम देख रहे हैं गाँव में बैंक सखी और बीमा सखी के रूप में महिलाएं ग्रामीण जीवन को नए सिरे से परिभाषित कर रही हैं। मैं एक बार एक बैंक सखी से मिला, सब बैंक सखियों से बात कर रहा था। तो एक बैंक सखी ने कहा वो गांव के अंदर रोजाना 50 लाख, 60 लाख, 70 लाख रुपये का कारोबार करती है। तो मैंने कहा कैसे? बोली सुबह 50 लाख रुपये लेकर निकलती हूं। मेरे देश के गांव में एक बेटी अपने थैले में 50 लाख रुपया लेकर के घूम रही है, ये भी तो मेरे देश का नया रूप है। गाँव-गाँव में महिलाएं सेल्फ हेल्प ग्रुप्स के जरिए नई क्रांति कर रही हैं। हमने गांवों की 1 करोड़ 15 लाख महिलाओं को लखपति दीदी बनाया है। और लखपति दीदी का मतलब ये नहीं कि एक बार एक लाख रुपया, हर वर्ष एक लाख रुपया से ज्यादा कमाई करने वाली मेरी लखपति दीदी। हमारा संकल्प है कि हम 3 करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाएंगे। दलित, वंचित, आदिवासी समाज की महिलाओं के लिए हम विशेष योजनाएँ भी चला रहे हैं।

साथियों,

आज देश में जितना rural infrastructure पर फोकस किया जा रहा है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। आज देश के ज़्यादातर गाँव हाइवेज, एक्सप्रेसवेज और रेलवेज के नेटवर्क से जुड़े हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 10 साल में ग्रामीण इलाकों में करीब चार लाख किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई गई है। डिजिटल इनफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भी हमारे गाँव 21वीं सदी के आधुनिक गाँव बन रहे हैं। हमारे गांव के लोगों ने उन लोगों को झुठला दिया है जो सोचते थे कि गांव के लोग डिजिटल टेक्नोलॉजी अपना नहीं पाएंगे। मैं यहां देख रहा हूं, सब लोग मोबाइल फोन से वीडियो उतार रहे हैं, सब गांव के लोग हैं। आज देश में 94 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण परिवारों में टेलीफोन या मोबाइल की सुविधा है। गाँव में ही बैंकिंग सेवाएँ और UPI जैसी वर्ल्ड क्लास टेक्नालजी उपलब्ध है। 2014 से पहले हमारे देश में एक लाख से भी कम कॉमन सर्विस सेंटर्स थे। आज इनकी संख्या 5 लाख से भी ज्यादा हो गई है। इन कॉमन सर्विस सेंटर्स पर सरकार की दर्जनों सुविधाएं ऑनलाइन मिल रही हैं। ये इनफ्रास्ट्रक्चर गाँवों को गति दे रहा है, वहां के रोजगार के मौके बना रहा है और हमारे गाँवों को देश की प्रगति का हिस्सा बना रहा है।

साथियों,

यहां नाबार्ड का वरिष्ठ मैनेजमेंट है। आपने सेल्फ हेल्प ग्रुप्स से लेकर किसान क्रेडिट कार्ड जैसे कितने ही अभियानों की सफलता में अहम रोल निभाया है। आगे भी देश के संकल्पों को पूरा करने में आपकी अहम भूमिका होगी। आप सभी FPO’s- किसान उत्पाद संघ की ताकत से परिचित हैं। FPO’s की व्यवस्था बनने से हमारे किसानों को अपनी फसलों का अच्छा दाम मिल रहा है। हमें ऐसे और FPOs बनाने के बारे में सोचना चाहिए, उस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। आज दूध का उत्पादन,किसानों को सबसे ज्यादा रिटर्न दे रहा है। हमें अमूल के जैसे 5-6 और को-ऑपरेटिव्स बनाने के लिए काम करना होगा, जिनकी पहुंच पूरे भारत में हो। इस समय देश प्राकृतिक खेती, नेचुरल फ़ार्मिंग, उसको मिशन मोड में आगे बढ़ा रहा है। हमें नेचुरल फ़ार्मिंग के इस अभियान से ज्यादा से ज्यादा किसानों को जोड़ना होगा। हमें हमारे सेल्फ हेल्प ग्रुप्स को लघु और सूक्ष्म उद्योगों को MSME से जोड़ना होगा। उनके सामानों की जरूरत सारे देश में है, लेकिन हमें इनकी ब्रांडिंग के लिए, इनकी सही मार्केटिंग के लिए काम करना होगा। हमें अपने GI प्रॉडक्ट्स की क्वालिटी, उनकी पैकेजिंग और ब्राडिंग पर भी ध्यान देना होगा।

साथियों,

हमें रुरल income को diversify करने के तरीकों पर काम करना है। गाँव में सिंचाई कैसे affordable बने, माइक्रो इरिगेशन का ज्यादा से ज्यादा से प्रसार हो, वन ड्रॉप मोर क्रॉप इस मंत्र को हम कैसे साकार करें, हमारे यहां ज्यादा से ज्यादा सरल ग्रामीण क्षेत्र के रुरल एंटरप्राइजेज़ create हों, नेचुरल फ़ार्मिंग के अवसरों का ज्यादा से ज्यादा लाभ रुरल इकॉनमी को मिले, आप इस दिशा में time bound manner में काम करें।

साथियों,

आपके गाँव में जो अमृत सरोवर बना है, तो उसकी देखभाल भी पूरे गाँव को मिलकर करनी चाहिए। इन दिनों देश में ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान भी चल रहा है। गाँव में हर व्यक्ति इस अभियान का हिस्सा बने, हमारे गाँव में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगें, ऐसी भावना जगानी जरूरी है। एक और सबसे महत्वपूर्ण बात, हमारे गाँव की पहचान गाँव के सौहार्द और प्रेम से जुड़ी होती है। इन दिनों कई लोग जाति के नाम पर समाज में जहर घोलना चाहते हैं। हमारे सामाजिक ताने बाने को कमजोर बनाना चाहते हैं। हमें इन षडयंत्रों को विफल बनाकर गाँव की सांझी विरासत, गांव की सांझी संस्कृति को हमें जीवंत रखना है, उसको सश्क्त करना है।

भाइयों बहनों,

हमारे ये संकल्प गाँव-गाँव पहुंचे, ग्रामीण भारत का ये उत्सव गांव-गांव पहुंचे, हमारे गांव निरंतर सशक्त हों, इसके लिए हम सबको मिलकर के लगातार काम करना है। मुझे विश्वास है, गांवों के विकास से विकसित भारत का संकल्प जरूर साकार होगा। मैं अभी यहां GI Tag वाले जो लोग अपने अपने प्रोडक्ट लेकर के आए हैं, उसे देखने गया था। मैं आज इस समारोह के माध्यम से दिल्लीवासियों से आग्रह करूंगा कि आपको शायद गांव देखने का मौका न मिलता हो, गांव जाने का मौका न मिलता हो, कम से कम यहां एक बार आइये और मेरे गांव में सामर्थ्य क्या है जरा देखिये। कितनी विविधताएं हैं, और मुझे पक्का विश्वास है जिन्होंने कभी गांव नहीं देखा है, उनके लिए ये एक बहुत बड़ा अचरज बन जाएगा। इस कार्य को आप लोगों ने किया है, आप लोग बधाई के पात्र हैं। मेरी तरफ से आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएं, बहुत-बहुत धन्यवाद।