मेरे प्यारे देशवासियो, 2016 की ये पहली ‘मन की बात’ है। ‘मन की बात’ ने मुझे आप लोगों के साथ ऐसे बाँध के रखा है, ऐसे बाँध के रखा है कि कोई भी चीज़ नज़र आ जाती है, कोई विचार आ जाता है, तो आपके बीच बता देने की इच्छा हो जाती है। कल मैं पूज्य बापू को श्रद्धांजलि देने के लिये राजघाट गया था। शहीदों को नमन करने का ये प्रतिवर्ष होने वाला कार्यक्रम है। ठीक 11 बजे 2 मिनट के लिये मौन रख करके देश के लिये जान की बाज़ी लगा देने वाले, प्राण न्योछावर करने वाले महापुरुषों के लिये, वीर पुरुषों के लिये, तेजस्वी-तपस्वी लोगों के लिये श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर होता है। लेकिन अगर हम देखें, हम में से कई लोग हैं, जिन्होंने ये नहीं किया होगा। आपको नहीं लगता है कि ये स्वभाव बनना चाहिए, इसे हमें अपनी राष्ट्रीय जिम्मेवारी समझना चाहिए? मैं जानता हूँ मेरी एक ‘मन की बात’ से ये होने वाला नहीं है। लेकिन जो मैंने कल feel किया, लगा आपसे भी बातें करूँ। और यही बातें हैं जो देश के लिये हमें जीने की प्रेरणा देती हैं। आप कल्पना तो कीजिए, हर वर्ष 30 जनवरी ठीक 11 बजे सवा-सौ करोड़ देशवासी 2 मिनट के लिये मौन रखें। आप कल्पना कर सकते हैं कि इस घटना में कितनी बड़ी ताक़त होगी? और ये बात सही है कि हमारे शास्त्रों ने कहा है –
“संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम” - “हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोलें, हमारे मन एक हों।” यही तो राष्ट्र की सच्ची ताक़त है और इस ताक़त को प्राण देने का काम ऐसी घटनायें करती हैं।
मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ दिन पहले मैं सरदार पटेल के विचारों को पढ़ रहा था। तो कुछ बातों पर मेरा ध्यान गया और उनकी एक बात मुझे बहुत पसंद आई। खादी के संबंध में सरदार पटेल ने कहा है, हिन्दुस्तान की आज़ादी खादी में ही है, हिन्दुस्तान की सभ्यता भी खादी में ही है, हिन्दुस्तान में जिसे हम परम धर्म मानते हैं, वह अहिंसा खादी में ही है और हिन्दुस्तान के किसान, जिनके लिए आप इतनी भावना दिखाते हैं, उनका कल्याण भी खादी में ही है। सरदार साहब सरल भाषा में सीधी बात बताने के आदी थे और बहुत बढ़िया ढंग से उन्होंने खादी का माहात्म्य बताया है। मैंने कल 30 जनवरी को पूज्य बापू की पुण्य तिथि पर देश में खादी एवं ग्रामोद्योग से जुड़े हुए जितने लोगों तक पहुँच सकता हूँ, मैंने पत्र लिख करके पहुँचने का प्रयास किया। वैसे पूज्य बापू विज्ञान के पक्षकार थे, तो मैंने भी टेक्नोलॉजी का ही उपयोग किया और टेक्नोलॉजी के माध्यम से लाखों ऐसे भाइयों–बहनों तक पहुँचने का प्रयास किया है। खादी अब एक symbol बना है, एक अलग पहचान बना है। अब खादी युवा पीढ़ी के भी आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है और खास करके जो-जो holistic health care और organic की तरफ़ झुकाव रखते हैं, उनके लिए तो एक उत्तम उपाय बन गया है। फ़ैशन के रूप में भी खादी ने अपनी जगह बनाई है और मैं खादी से जुड़े लोगों का अभिनन्दन करता हूँ कि उन्होंने खादी में नयापन लाने के लिए भरपूर प्रयास किया है। अर्थव्यवस्था में बाज़ार का अपना महत्व है। खादी ने भी भावात्मक जगह के साथ-साथ बाज़ार में भी जगह बनाना अनिवार्य हो गया है। जब मैंने लोगों से कहा कि अनेक प्रकार के fabrics आपके पास हैं, तो एक खादी भी तो होना चाहिये। और ये बात लोगों के गले उतर रही है कि हाँ भई, खादीधारी तो नहीं बन सकते, लेकिन अगर दसों प्रकार के fabric हैं, तो एक और हो जाए। लेकिन साथ-साथ मेरी बात को सरकार में भी एक सकारात्मक माहौल पनप रहा है। बहुत सालों पहले सरकार में खादी का भरपूर उपयोग होता था। लेकिन धीरे-धीरे आधुनिकता के नाम पर ये सब ख़त्म होता गया और खादी से जुड़े हुए हमारे ग़रीब लोग बेरोज़गार होते गए। खादी में करोड़ों लोगों को रोज़गार देने की ताकत है। पिछले दिनों रेल मंत्रालय, पुलिस विभाग, भारतीय नौसेना, उत्तराखण्ड का डाक-विभाग – ऐसे कई सरकारी संस्थानों ने खादी के उपयोग में बढ़ावा देने के लिए कुछ अच्छे Initiative लिए हैं और मुझे बताया गया कि सरकारी विभागों के इस प्रयासों के परिणामस्वरूप खादी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए, इस requirement को पूरा करने के लिए, सरकार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, अतिरिक्त – extra - 18 लाख मानव दिन का रोज़गार generate होगा। 18 lakh man-days, ये अपने आप में एक बहुत बड़ा jump होगा। पूज्य बापू भी हमेशा Technology के up-gradation के प्रति बहुत ही सजग थे और आग्रही भी थे और तभी तो हमारा चरखा विकसित होते-होते यहाँ पहुँचा है। इन दिनों solar का उपयोग करते हुए चरखा चलाना, solar energy चरखे के साथ जोड़ना बहुत ही सफल प्रयोग रहा है। उसके कारण मेहनत कम हुई है, उत्पादन बढ़ा है और qualitative गुणात्मक परिवर्तन भी आया है। ख़ास करके solar चरखे के लिए लोग मुझे बहुत सारी चिट्ठियाँ भेजते रहते हैं। राजस्थान के दौसा से गीता देवी, कोमल देवी और बिहार के नवादा ज़िले की साधना देवी ने मुझे पत्र लिखकर कहा है कि solar चरखे के कारण उनके जीवन में बहुत परिवर्तन आया है। हमारी आय double हो गयी है और हमारा जो सूत है, उसके प्रति भी आकर्षण बढ़ा है। ये सारी बातें एक नया उत्साह बढ़ाती हैं। और 30 जनवरी, पूज्य बापू को जब स्मरण करते हैं, तो मैं फिर एक बार दोहराऊँगा - इतना तो अवश्य करें कि अपने ढेर सारे कपड़ों में एक खादी भी रहे, इसके आग्रही बनें।
प्यारे देशवासियो, 26 जनवरी का पर्व बहुत उमंग और उत्साह के साथ हम सबने मनाया। चारों तरफ़, आतंकवादी क्या करेंगे, इसकी चिंता के बीच देशवासियों ने हिम्मत दिखाई, हौसला दिखाया और आन-बान-शान के साथ प्रजासत्ताक पर्व मनाया। लेकिन कुछ लोगों ने हट करके कुछ बातें कीं और मैं चाहूँगा कि ये बातें ध्यान देने जैसी हैं, ख़ास-करके हरियाणा और गुजरात, दो राज्यों ने एक बड़ा अनोखा प्रयोग किया। इस वर्ष उन्होंने हर गाँव में जो गवर्नमेंट स्कूल है, उसका ध्वजवंदन करने के लिए, उन्होंने उस गाँव की जो सबसे पढ़ी-लिखी बेटी है, उसको पसंद किया। हरियाणा और गुजरात ने बेटी को माहात्म्य दिया। पढ़ी-लिखी बेटी को विशेष माहात्म्य दिया। ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ - इसका एक उत्तम सन्देश देने का उन्होंने प्रयास किया। मैं दोनों राज्यों की इस कल्पना शक्ति को बधाई देता हूँ और उन सभी बेटियों को बधाई देता हूँ, जिन्हें ध्वजवंदन, ध्वजारोहण का अवसर मिला। हरियाणा में तो और भी बात हुई कि गत एक वर्ष में जिस परिवार में बेटी का जन्म हुआ है, ऐसे परिवारजनों को 26 जनवरी के निमित्त विशेष निमंत्रित किया और वी.आई.पी. के रूप में प्रथम पंक्ति में उनको स्थान दिया। ये अपने आप में इतना बड़ा गौरव का पल था और मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने अपने ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान का प्रारंभ हरियाणा से किया था, क्योंकि हरियाणा में sex-ratio में बहुत गड़बड़ हो चुकी थी। एक हज़ार बेटों के सामने जन्म लेने वाली बेटियों की संख्या बहुत कम हो गयी थी। बड़ी चिंता थी, सामाजिक संतुलन खतरे में पड़ गया था। और जब मैंने हरियाणा पसंद किया, तो मुझे हमारे अधिकारियों ने कहा था कि नहीं-नहीं साहब, वहाँ मत कीजिए, वहाँ तो बड़ा ही negative माहौल है। लेकिन मैंने काम किया और मैं आज हरियाणा का ह्रदय से अभिनन्दन करता हूँ कि उन्होंने इस बात को अपनी बात बना लिया और आज बेटियों के जन्म की संख्या में बहुत तेज़ी से वृद्धि हो रही है। मैं सचमुच में वहाँ के सामाजिक जीवन में जो बदलाव आया है, उसके लिए अभिनन्दन करता हूँ।
पिछली बार ‘मन की बात’ में मैंने दो बातें कही थीं। एक, एक नागरिक के नाते हम महापुरुषों के statue की सफाई क्यों न करें! statue लगाने के लिये तो हम बड़े emotional होते हैं, लेकिन बाद में हम बेपरवाह होते हैं। और दूसरी बात मैंने कही थी, प्रजासत्ताक पर्व है तो हम कर्तव्य पर भी बल कैसे दें, कर्तव्य की चर्चा कैसे हो? अधिकारों की चर्चा बहुत हुई है और होती भी रहेगी, लेकिन कर्तव्यों पर भी तो चर्चा होनी चाहिए! मुझे खुशी है कि देश के कई स्थानों पर नागरिक आगे आए, सामाजिक संस्थायें आगे आईं, शैक्षिक संस्थायें आगे आईं, कुछ संत-महात्मा आगे आए और उन सबने कहीं-न-कहीं जहाँ ये statue हैं, प्रतिमायें हैं, उसकी सफ़ाई की, परिसर की सफ़ाई की। एक अच्छी शुरुआत हुई है, और ये सिर्फ़ स्वच्छता अभियान नहीं है, ये सम्मान अभियान भी है। मैं हर किसी का उल्लेख नहीं कर रहा हूँ, लेकिन जो ख़बरें मिली हैं, बड़ी संतोषजनक हैं। कुछ लोग संकोचवश शायद ख़बरें देते नहीं हैं। मैं उन सबसे आग्रह करता हूँ – MyGov portal पर आपने जो statue की सफ़ाई की है, उसकी फोटो ज़रूर भेजिए। दुनिया के लोग उसको देखते हैं और गर्व महसूस करते हैं।
उसी प्रकार से 26 जनवरी को ‘कर्तव्य और अधिकार’ - मैंने लोगों के विचार माँगे थे और मुझे खुशी है कि हज़ारों लोगों ने उसमें हिस्सा लिया।
मेरे प्यारे देशवासियो, एक काम के लिये मुझे आपकी मदद चाहिए और मुझे विश्वास है कि आप मेरी मदद करेंगे। हमारे देश में किसानों के नाम पर बहुत-कुछ बोला जाता है, बहुत-कुछ कहा जाता है। खैर, मैं उस विवाद में उलझना नहीं चाहता हूँ। लेकिन किसान का एक सबसे बड़ा संकट है, प्राकृतिक आपदा में उसकी पूरी मेहनत पानी में चली जाती है। उसका साल बर्बाद हो जाता है। उसको सुरक्षा देने का एक ही उपाय अभी तो ध्यान में आता है और वो है फ़सल बीमा योजना। 2016 में भारत सरकार ने एक बहुत बड़ा तोहफ़ा किसानों को दिया है - ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’। लेकिन ये योजना की तारीफ़ हो, वाहवाही हो, प्रधानमंत्री को बधाइयाँ मिलें, इसके लिये नहीं है। इतने सालों से फ़सल बीमा की चर्चा हो रही है, लेकिन देश के 20-25 प्रतिशत से ज़्यादा किसान उसके लाभार्थी नहीं बन पाए हैं, उससे जुड़ नहीं पाए है। क्या हम संकल्प कर सकते हैं कि आने वाले एक-दो साल में हम कम से कम देश के 50 प्रतिशत किसानों को फ़सल बीमा से जोड़ सकें? बस, मुझे इसमें आपकी मदद चाहिये। क्योंकि अगर वो फ़सल बीमा के साथ जुड़ता है, तो संकट के समय एक बहुत बड़ी मदद मिल जाती है। और इस बार ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’ की इतनी जनस्वीकृति मिली है, क्योंकि इतना व्यापक बना दिया गया है, इतना सरल बना दिया गया है, इतनी टेक्नोलॉजी का Input लाए हैं। और इतना ही नहीं, फ़सल कटने के बाद भी अगर 15 दिन में कुछ होता है, तो भी मदद का आश्वासन दिया है। टेक्नोलॉजी का उपयोग करके, उसकी गति तेज़ कैसे हो, बीमा के पैसे पाने में विलम्ब न हो - इन सारी बातों पर ध्यान दिया गया है। सबसे बड़ी बात है कि फ़सल बीमा की प्रीमियम की दर, इतनी नीचे कर दी गयी, इतनी नीचे कर दी गयी हैं, जो शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा। नयी बीमा योजना में किसानों के लिये प्रीमियम की अधिकतम सीमा खरीफ़ की फ़सल के लिये दो प्रतिशत और रबी की फ़सल के लिए डेढ़ प्रतिशत होगी। अब मुझे बताइए, मेरा कोई किसान भाई अगर इस बात से वंचित रहे, तो नुकसान होगा कि नहीं होगा? आप किसान नहीं होंगे, लेकिन मेरी मन की बात सुन रहे हैं। क्या आप किसानों को मेरी बात पहुँचायेंगे? और इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप इसको अधिक प्रचारित करें। इसके लिए इस बार मैं एक आपके लिये नयी योजना भी लाया हूँ। मैं चाहता हूँ कि मेरी ‘प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना’ ये बात लोगों तक पहुँचे। और ये बात सही है कि टी.वी. पर, रेडियो पर मेरी ‘मन की बात’ आप सुन लेते हैं। लेकिन बाद में सुनना हो तो क्या? अब मैं आपको एक नया तोहफ़ा देने जा रहा हूँ। क्या आप अपने मोबाइल फ़ोन पर भी मेरे ‘मन की बात’ सुन सकते हैं और कभी भी सुन सकते हैं। आपको सिर्फ़ इतना ही करना है – बस एक missed call कर दीजिए अपने मोबाइल फ़ोन से। ‘मन की बात’ के लिये मोबाइल फ़ोन का नंबर तय किया है – 8190881908. आठ एक नौ शून्य आठ, आठ एक नौ शून्य आठ। आप missed call करेंगे, तो उसके बाद कभी भी ‘मन की बात’ सुन पाएँगे। फ़िलहाल तो ये हिंदी में है, लेकिन बहुत ही जल्द आपको अपनी मातृभाषा में भी ‘मन की बात’ सुनने का अवसर मिलेगा। इसके लिए भी मेरा प्रबन्ध जारी है।
मेरे प्यारे नौजवानो, आपने तो कमाल कर दिया। जब start-up का कार्यक्रम 16 जनवरी को हुआ, सारे देश के नौजवानों में नयी ऊर्जा, नयी चेतना, नया उमंग, नया उत्साह मैंने अनुभव किया। लाखों की तादाद में लोगों ने उस कार्यक्रम में आने के लिए registration करवाया। लेकिन इतनी जगह न होने के कारण, आखिर विज्ञान भवन में ये कार्यक्रम किया। आप पहुँच नहीं पाए, लेकिन आप पूरा समय on-line इसमें शरीक हो करके रहे। शायद कोई एक कार्यक्रम इतने घंटे तक लाखों की तादाद में नौजवानों ने अपने-आप को जोड़ करके रखा और ऐसा बहुत rarely होता है, लेकिन हुआ! और मैं देख रहा था कि start-up का क्या उमंग है। और लेकिन एक बात, जो सामान्य लोगों की सोच है कि start-up मतलब कि I.T. related बातें, बहुत ही sophisticated कारोबार। start-up के इस event के बाद ये भ्रम टूट गया। I.T. के आस-पास का start-up तो एक छोटा सा हिस्सा है। जीवन विशाल है, आवश्यकतायें अनंत हैं। start-up भी अनगिनत अवसरों को लेकर के आता है।
मैं अभी कुछ दिन पहले सिक्किम गया था। सिक्किम अब देश का organic state बना है और देश भर के कृषि मंत्रियों और कृषि सचिवों को मैंने वहाँ निमंत्रित किया था। मुझे वहाँ दो नौजवानों से मिलने का मौका मिला – IIM से पढ़ करके निकले हैं – एक हैं अनुराग अग्रवाल और दूसरी हैं सिद्धि कर्नाणी। वो start-up की ओर चल पड़े और वो मुझे सिक्किम में मिल गए। वे North-East में काम करते हैं, कृषि क्षेत्र में काम करते हैं और herbal पैदावार हैं, organic पैदावार हैं, इसका global marketing करते हैं। ये हुई न बात!
पिछ्ली बार मैंने मेरे start-up से जुड़े लोगों से कहा था कि ‘Narendra Modi App’ पर अपने अनुभव भेजिए। कइयों ने भेजे हैं, लेकिन और ज़्यादा आयेंगे, तो मुझे ख़ुशी होगी। लेकिन जो आये हैं, वो भी सचमुच में प्रेरक हैं। कोई विश्वास द्विवेदी करके नौजवान हैं, उन्होंने on-line kitchen start-up किया है और वो मध्यम-वर्गीय लोग, जो रोज़ी-रोटी के लिए आये हुए हैं, उनको वो on-line networking के द्वारा टिफ़िन पहुँचाने का काम करते हैं। कोई मिस्टर दिग्नेश पाठक करके हैं, उन्होंने किसानों के लिए और ख़ास करके पशुओं का जो आहार होता है, animal feed होता है, उस पर काम करने का मन बनाया है। अगर हमारे देश के पशु, उनको अच्छा आहार मिलेगा, तो हमें अच्छा दूध मिलेगा, हमें अच्छा दूध मिलेगा, तो हमारा देश का नौजवान ताक़तवर होगा। मनोज गिल्दा, निखिल जी, उन्होंने agri-storage का start-up शुरू किया है। वो scientific fruits storage system के साथ कृषि उत्पादों के लिए bulk storage system develop कर रहे हैं। यानि ढेर सारे सुझाव आये हैं। आप और भी भेजिए, मुझे अच्छा लगेगा और मुझे बार-बार ‘मन की बात’ में अगर start-up की बात करनी पड़ेगी, जैसे मैं स्वच्छता की बात हर बार करता हूँ, start-up की भी करूँगा, क्योंकि आपका पराक्रम, ये हमारी प्रेरणा है।
मेरे प्यारे देशवासियो, स्वच्छता अब सौन्दर्य के साथ भी जुड़ रही है। बहुत सालों तक हम गंदगी के खिलाफ़ नाराज़गी व्यक्त करते रहे, लेकिन गंदगी नहीं हटी। अब देशवासियों ने गंदगी की चर्चा छोड़ स्वच्छता की चर्चा शुरू की है और स्वच्छता का काम कहीं-न-कहीं, कुछ-न-कुछ चल ही रहा है। लेकिन अब उसमें एक कदम नागरिक आगे बढ़ गए हैं। उन्होंने स्वच्छता के साथ सौन्दर्य जोड़ा है। एक प्रकार से सोने पे सुहागा और ख़ास करके ये बात नज़र आ रही है रेलवे स्टेशनों पर। मैं देख रहा हूँ कि इन दिनों देश के कई रेलवे स्टेशन पर वहाँ के स्थानीय नागरिक, स्थानीय कलाकार, students - ये अपने-अपने शहर का रेलवे स्टेशन सजाने में लगे हैं। स्थानीय कला को केंद्र में रखते हुए दीवारों का पेंटिंग रखना, साइन-बोर्ड अच्छे ढंग से बनाना, कलात्मक रूप से बनाना, लोगों को जागरूक करने वाली भी चीज़ें उसमें डालनी हैं, न जाने क्या-क्या कर रहे हैं! मुझे बताया किसी ने कि हज़ारीबाग़ के स्टेशन पर आदिवासी महिलाओं ने वहाँ की स्थानीय सोहराई और कोहबर आर्ट की डिज़ाइन से पूरे रेलवे स्टेशन को सज़ा दिया है। ठाणे ज़िले के 300 से ज़्यादा volunteers ने किंग सर्किल स्टेशन को सजाया, माटुंगा, बोरीवली, खार। इधर राजस्थान से भी बहुत ख़बरें आ रही हैं, सवाई माधोपुर, कोटा। ऐसा लग रहा है कि हमारे रेलवे स्टेशन अपने आप में हमारी परम्पराओं की पहचान बन जायेंगे। हर कोई अब खिड़की से चाय-पकौड़े की लॉरी वालों को नहीं ढूंढ़ेगा, ट्रेन में बैठे-बैठे दीवार पर देखेगा कि यहाँ की विशेषता क्या है। और ये न रेलवे का Initiative था, न नरेन्द्र मोदी का Initiative था। ये नागरिकों का था। देखिये नागरिक करते हैं, तो कैसा करते हैं जी। लेकिन मैं देख रहा हूँ कि मुझे कुछ तो तस्वीरें मिली हैं, लेकिन मेरा मन करता है कि मैं और तस्वीरें देखूँ। क्या आप, जिन्होंने रेलवे स्टेशन पर या कहीं और स्वच्छता के साथ सौन्दर्य के लिए कुछ प्रयास किया है, क्या मुझे आप भेज सकते हैं? ज़रूर भेजिए। मैं तो देखूँगा, लोग भी देखेंगे और औरों को भी प्रेरणा मिलेगी। और रेलवे स्टेशन पर जो हो सकता है, वो बस स्टेशन पर हो सकता है, वो अस्पताल में हो सकता है, वो स्कूल में हो सकता है, मंदिरों के आस-पास हो सकता है, गिरजाघरों के आस-पास हो सकता है, मस्जिदों के आस-पास हो सकता है, बाग़-बगीचे में हो सकता है, कितना सारा हो सकता है! जिन्होंने ये विचार आया और जिन्होंने इसको शुरू किया और जिन्होंने आगे बढ़ाया, सब अभिनन्दन के अधिकारी हैं। लेकिन हाँ, आप मुझे फ़ोटो ज़रूर भेजिए, मैं भी देखना चाहता हूँ, आपने क्या किया है!
मेरे प्यारे देशवासियो, अपने लिए गर्व की बात है कि फ़रवरी के प्रथम सप्ताह में 4 तारीख़ से 8 तारीख़ तक भारत बहुत बड़ी मेज़बानी कर रहा है। पूरा विश्व, हमारे यहाँ मेहमान बन के आ रहा है और हमारी नौसेना इस मेज़बानी के लिए पुरजोश तैयारी कर रही है। दुनिया के कई देशों के युद्धपोत, नौसेना के जहाज़, आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम के समुद्री तट पर इकट्ठे हो रहे हैं। International Fleet Review भारत के समुद्र तट पर हो रहा है। विश्व की सैन्य-शक्ति और हमारी सैन्य-शक्ति के बीच तालमेल का एक प्रयास है। एक joint exercise है। बहुत बड़ा अवसर है। आने वाले दिनों में आपको टी.वी. मीडिया के द्वारा इसकी जानकारियाँ तो मिलने ही वाली हैं, क्योंकि ये बहुत बड़ा कार्यक्रम होता है और सब कोई इसको बल देता है। भारत जैसे देश के लिए ये बहुत महत्वपूर्ण है और भारत का सामुद्रिक इतिहास स्वर्णिम रहा है। संस्कृत में समुद्र को उदधि या सागर कहा जाता है। इसका अर्थ है अनंत प्रचुरता। सीमायें हमें अलग करती होंगी, ज़मीन हमें अलग करती होगी, लेकिन जल हमें जोड़ता है, समुद्र हमें जोड़ता है। समंदर से हम अपने-आप को जोड़ सकते हैं, किसी से भी जोड़ सकते हैं। और हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले विश्व भ्रमण करके, विश्व व्यापार करके इस शक्ति का परिचय करवाया था। चाहे छत्रपति शिवाजी हों, चाहे चोल साम्राज्य हो - सामुद्रिक शक्ति के विषय में उन्होंने अपनी एक नई पहचान बनाई थी। आज भी हमारे कई राज्य हैं कि जहाँ समुन्दर से जुड़ी हुई अनेक परम्पराएँ जीवित हैं, उत्सव के रूप में मनाई जाती हैं। विश्व जब भारत का मेहमान बन रहा है, नौसेना की शक्ति का परिचय हो रहा है। एक अच्छा अवसर है। मुझे भी सौभाग्य मिलेगा इस वैश्विक अवसर पर उपस्थित रहने का।
वैसे ही भारत के पूर्वी छोर गुवाहाटी में खेल-कूद समारोह हो रहा है, सार्क देशों का खेल-कूद समारोह। सार्क देशों के हज़ारों खिलाड़ी गुवाहाटी की धरती पर आ रहे हैं। खेल का माहौल, खेल का उमंग। सार्क देशों की नई पीढ़ी का एक भव्य उत्सव असम में गुवाहाटी की धरती पर हो रहा है। ये भी अपने आप में सार्क देशों के साथ नाता जोड़ने का अच्छा अवसर है।
मेरे प्यारे देशवासियो, मैंने पहले ही कहा था कि मन में जो आता है, मन करता है, आपसे खुल करके बांटूं। आने वाले दिनों में दसवीं और बारहवीं की परीक्षायें होंगी। पिछली बार ‘मन की बात’ में मैंने परीक्षा के संबंध में विद्यार्थियों से कुछ बातें की थीं। इस बार मेरी इच्छा है कि जो विद्यार्थियों ने सफलता पाई है और तनावमुक्त परीक्षा के दिन कैसे गुज़ारे हैं, परिवार में क्या माहौल बना, गुरुजनों ने, शिक्षकों ने क्या role किया, स्वयं ने क्या प्रयास किये, अपनों से सीनियर ने उनको क्या बताया और क्या किया? आपके अच्छे अनुभव होंगे। इस बार हम ऐसा एक काम कर सकते हैं कि आप अपने अनुभव मुझे ‘Narendra Modi App’ पर भेज दीजिये। और मैं मीडिया से भी प्रार्थना करूँगा, उसमें जो अच्छी बातें हों, वे आने वाले फ़रवरी महीने में, मार्च महीने में अपने मीडिया के माध्यम से प्रचारित करें, ताकि देशभर के students उसको पढ़ेंगे, टी.वी. पर देखेंगे और उनको भी चिंतामुक्त exam कैसे हो, तनावमुक्त exam कैसे हो, हँसते-खेलते exam कैसे दिए जाएँ, इसकी जड़ी-बूटी हाथ लग जाएगी और मुझे विश्वास है कि मीडिया के मित्र इस काम में ज़रूर मदद करेंगे। हाँ, लेकिन तब करेंगे, जब आप सब चीज़ें भेजेंगे। भेजेंगे न? पक्का भेजिए।
बहुत-बहुत धन्यवाद, दोस्तो। फिर एक बार अगली ‘मन की बात’ के लिए अगले महीने ज़रूर मिलेंगे। बहुत धन्यवाद।
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Prime Minister Shri Narendra Modi will participate in the ‘Odisha Parba 2024’ programme on 24 November at around 5:30 PM at Jawaharlal Nehru Stadium, New Delhi. He will also address the gathering on the occasion.
Odisha Parba is a flagship event conducted by Odia Samaj, a trust in New Delhi. Through it, they have been engaged in providing valuable support towards preservation and promotion of Odia heritage. Continuing with the tradition, this year Odisha Parba is being organised from 22nd to 24th November. It will showcase the rich heritage of Odisha displaying colourful cultural forms and will exhibit the vibrant social, cultural and political ethos of the State. A National Seminar or Conclave led by prominent experts and distinguished professionals across various domains will also be conducted.