मेरे प्यारे देशवासियो, पिछली बार जब मैंने आपसे मन की बात की थी, तब भूकंप की भयंकर घटना ने मुझे बहुत विचलित कर दिया था। मन बात करना नहीं चाहता था फिर भी मन की बात की थी। आज जब मैं मन की बात कर रहा हूँ, तो चारों तरफ भयंकर गर्म हवा, गर्मी, परेशानियां उसकी ख़बरें आ रही हैं। मेरी आप सब से प्रार्थना है कि इस गर्मी के समय हम अपना तो ख़याल रखें... हमें हर कोई कहता होगा बहुत ज़्यादा पानी पियें,शरीर को ढक कर के रखें... लेकिन मैं आप से कहता हूँ, हम अपने अगल-बगल में पशु-पक्षी की भी दरकार करें। ये अवसर होता है परिवार में बच्चों को एक काम दिया जाये कि वो घर के बाहर किसी बर्तन में पक्षियों को पीने के लिए पानी रखें, और ये भी देखें वो गर्म ना हो जाये। आप देखना परिवार में बच्चों के अच्छे संस्कार हो जायेंगें। और इस भयंकर गर्मी में पशु-पक्षियों की भी रक्षा हो जाएगी।

ये मौसम एक तरफ़ गर्मी का भी है, तो कहीं ख़ुशी कहीं ग़म का भी है। एग्ज़ाम देने के बाद जब तक नतीजे नहीं आते तब तक मन चैन से नहीं बैठता है। अब सी.बी.एस.ई., अलग-अलग बोर्ड एग्ज़ाम और दूसरे एग्ज़ाम पास करने वाले विद्यार्थी मित्रों को अपने नतीजे मिल गये हैं।  मैं उन सब को बधाई देता हूँ। बहुत बहुत बधाई। मेरे मन की बात की सार्थकता मुझे उस बात से लगी कि जब मुझे कई विद्यार्थियों ने ये जानकारी दी, नतीजे आने के बाद कि एग्ज़ाम के पहले आपके मन की बात में जो कुछ भी सुना था, एग्ज़ाम के समय मैंने उसका पूरी तरह पालन किया था और उससे मुझे लाभ मिला। ख़ैर, दोस्तो आपने मुझे ये लिखा मुझे अच्छा लगा। लेकिन आपकी सफलता का कारण कोई मेरी एक मन की बात नहीं है... आपकी सफलता का कारण आपने साल भर कड़ी मेहनत की है, पूरे परिवार ने आपके साथ जुड़ करके इस मेहनत में हिस्सेदारी की है। आपके स्कूल,आपके टीचर, हर किसी ने प्रयास किया है। लेकिन आपने अपने आप को हर किसी की अपेक्षा के अनुरूप ढाला है। मन की बात, परीक्षा में जाते-जाते समय जो टिप मिलती है न, वो प्रकार की थी। लेकिन मुझे आनंद इस बात का आया कि हाँ, आज मन की बात का कैसा उपयोग है, कितनी सार्थकता है। मुझे ख़ुशी हुई। मैं जब कह रहा हूँ कहीं ग़म, कहीं ख़ुशी... बहुत सारे मित्र हैं जो बहुत ही अच्छे मार्क्स से पास हुए होंगे। कुछ मेरे युवा मित्र पास तो हुए होंगे, लेकिन हो सकता है मार्क्स कम आये होंगे। और कुछ ऐसे भी होंगे कि जो विफल हो गये होंगे। जो उत्तीर्ण हुए हैं उनके लिए मेरा इतना ही सुझाव है कि आप उस मोड़ पर हैं जहाँ से आप अपने करियर का रास्ता चुन रहे हैं। अब आपको तय करना है आगे का रास्ता कौन सा होगा। और वो भी, किस प्रकार के आगे भी इच्छा का मार्ग आप चुनते हैं उसपर निर्भर करेगा। आम तौर पर ज़्यादातर विद्यार्थियों को पता भी नहीं होता है क्या पढ़ना है, क्यों पढ़ना है, कहाँ जाना है, लक्ष्य क्या है। ज़्यादातर अपने सराउंन्डिंग में जो बातें होती हैं, मित्रों में, परिवारों में, यार-दोस्तों में, या अपने माँ-बाप की जो कामनायें रहती हैं, उसके आस-पास निर्णय होते हैं। अब जगत बहुत बड़ा हो चुका है। विषयों की भी सीमायें नहीं हैं, अवसरों की भी सीमायें नहीं हैं। आप ज़रा साहस के साथ आपकी रूचि, प्रकृति, प्रवृत्ति के हिसाब से रास्ता चुनिए। प्रचलित मार्गों पर ही जाकर के अपने को खींचते क्यों हो? कोशिश कीजिये। और आप ख़ुद को जानिए और जानकर के आपके भीतर जो उत्तम चीज़ें हैं, उसको सँवारने का अवसर मिले, ऐसी पढ़ाई के क्षेत्र क्यों न चुनें? लेकिन कभी ये भी सोचना चाहिये, कि मैं जो कुछ भी बनूँगा, जो कुछ भी सीखूंगा, मेरे देश के लिए उसमें काम आये ऐसा क्या होगा?

बहुत सी जगहें ऐसी हैं... आपको हैरानी होगी... विश्व में जितने म्यूज़ियम बनते हैं, उसकी तुलना में भारत में म्यूज़ियम बहुत कम बनते हैं। और कभी कभी इस म्यूज़ियम के लिए योग्य व्यक्तियों को ढूंढना भी बड़ा मुश्किल हो जाता है। क्योंकि परंपरागत रूप से बहुत पॉपुलर क्षेत्र नहीं है। ख़ैर, मैं कोई, कोई एक बात पर आपको खींचना नहीं चाहता हूँ। लेकिन, कहने का तात्पर्य है कि देश को उत्तम शिक्षकों की ज़रूरत है तो उत्तम सैनिकों की भी ज़रूरत है, उत्तम वैज्ञानिकों की ज़रूरत है तो उत्तम कलाकार और संगीतकारों की भी आवश्यकता है। खेल-कूद कितना बड़ा क्षेत्र है, और खिलाडियों के सिवाय भी खेल कूद जगत के लिए कितने उत्तम ह्यूमन रिसोर्स की आवश्यकता होती है। यानि इतने सारे क्षेत्र हैं, इतनी विविधताओं से भरा हुआ विश्व है। हम ज़रूर प्रयास करें, साहस करें। आपकी शक्ति, आपका सामर्थ्य, आपके सपने देश के सपनों से भी मेलजोल वाले होने चाहिये। ये मौक़ा है आपको अपनी राह चुनने का।

जो विफल हुए हैं, उनसे मैं यही कहूँगा कि ज़िन्दगी में सफलता विफलता स्वाभाविक है। जो विफलता को एक अवसर मानता है, वो सफलता का शिलान्यास भी करता है। जो विफलता से खुद को विफल बना देता है, वो कभी जीवन में सफल नहीं होता है। हम विफलता से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। और कभी हम ये क्यों न मानें, कि आज की आप की विफलता आपको पहचानने का एक अवसर भी बन सकती है, आपकी शक्तियों को जानने का अवसर बन सकती है? और हो सकता है कि आप अपनी शक्तियों को जान करके, अपनी ऊर्जा को जान करके एक नया रास्ता भी चुन लें।

 मुझे हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति श्रीमान ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी की याद आती है। उन्होंने अपनी किताब‘माई जर्नी – ट्रांस्फोर्मिंग ड्रीम्स इनटू एक्शन’, उसमें अपने जीवन का एक प्रसंग लिखा है। उन्होंने कहा है कि मुझे पायलट बनने की इच्छा थी, बहुत सपना था, मैं पायलट बनूँ। लेकिन जब मैं पायलट बनने गया तो मैं फ़ेल हो गया, मैं विफल हो गया, नापास हो गया। अब आप देखिये, उनका नापास होना, उनका विफल होना भी कितना बड़ा अवसर बन गया। वो देश के महान वैज्ञानिक बन गये। राष्ट्रपति बने। और देश की आण्विक शक्ति के लिए उनका बहुत बड़ा योगदान रहा। और इसलिये मैं कहता हूँ दोस्तो, कि विफलता के बोझ में दबना मत। विफलता भी एक अवसर होती है। विफलता को ऐसे मत जाने दीजिये। विफलता को भी पकड़कर रखिये। ढूंढिए। विफलता के बीच भी आशा का अवसर समाहित होता है। और मेरी ख़ास आग्रहपूर्वक विनती है मेरे इन नौजवान दोस्तों को, और ख़ास करके उनके परिवारजनों को, कि बेटा अगर विफल हो गया तो माहौल ऐसा मत बनाइये की वो ज़िन्दगी में ही सारी आशाएं खो दे। कभी-कभी संतान की विफलता माँ-बाप के सपनों के साथ जुड़ जाती है और उसमें संकट पैदा हो जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिये। विफलता को पचाने की ताक़त भी तो ज़िन्दगी जीने की ताक़त देती है। मैं फिर एक बार सभी मेरे सफल युवा मित्रों को शुभकामनाएं देता हूँ। और विफल मित्रों को अवसर ढूँढने का मौक़ा मिला है,  इसलिए भी मैं इसे शुभकामनाएं ही देता हूँ। आगे बढ़ने का, विश्वास जगाने का प्रयास कीजिये।

पिछली मन की बात और आज जब मैं आपके बीच बात कर रहा हूँ, इस बीच बहुत सारी बातें हो गईं। मेरी सरकार का एक साल हुआ, पूरे देश ने उसका बारीकी से विश्लेषण किया, आलोचना की और बहुत सारे लोगों ने हमें डिस्टिंक्शन मार्क्स भी दे दिए। वैसे लोकतंत्र में ये मंथन बहुत आवश्यक होता है, पक्ष-विपक्ष आवश्यक होता है। क्या कमियां रहीं, उसको भी जानना बहुत ज़रूरी होता है। क्या अच्छाइयां रहीं, उसका भी अपना एक लाभ होता है।

लेकिन मेरे लिए इससे भी ज़्यादा गत महीने की दो बातें मेरे मन को आनंद देती हैं। हमारे देश में ग़रीबों के लिए कुछ न कुछ करने की मेरे दिल में हमेशा एक तड़प रहती है। नई-नई चीज़ें सोचता हूँ, सुझाव आये तो उसको स्वीकार करता हूँ। हमने गत मास प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, अटल पेंशन योजना - सामाजिक सुरक्षा की तीन योजनाओं को लॉन्च किया। उन योजनाओं को अभी तो बीस दिन नहीं हुए हैं, लेकिन आज मैं गर्व के साथ कहता हूँ... शायद ही हमारे देश में, सरकार पर भरोसा करके, सरकार की योजनाओं पर भरोसा करके, इतनी बड़ी मात्रा में सामान्य मानवी उससे जुड़ जाये... मुझे ये बताते हुए ख़ुशी होती है कि सिर्फ़ बीस दिन के अल्प समय में आठ करोड़, बावन लाख से अधिक लोगों ने इन योजनाओं में अपना नामांकन करवा दिया, योजनाओं में शरीक हो गये। सामाजिक सुरक्षा की दिशा में ये हमारा बहुत अहम क़दम है। और उसका बहुत लाभ आने वाले दिनों में मिलने वाला है।

जिनके पास अब तक ये बात न पहुँची हो उनसे मेरा आग्रह है कि आप फ़ायदा उठाइये। कोई सोच सकता है क्या, महीने का एक रुपया, बारह महीने के सिर्फ़ बारह रूपये, और आप को सुरक्षा बीमा योजना मिल जाये। जीवन ज्योति बीमा योजना - रोज़ का एक रूपये से भी कम, यानि साल का तीन सौ तीस रूपये। मैं इसीलिए कहता हूँ कि ग़रीबों को औरों पर आश्रित न रहना पड़े। ग़रीब स्वयं सशक्त बने। उस दिशा में हम एक के बाद एक क़दम उठा रहे हैं। और मैं तो एक ऐसी फौज बनाना चाहता हूँ, और फौज भी मैं ग़रीबों में से ही चुनना चाहता हूँ। और ग़रीबों में से बनी हुई मेरी ये फौज, ग़रीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ेगी, ग़रीबी को परास्त करेगी। और देश में कई वर्षों का हमारे सर पर ये बोझ है, उस ग़रीबी से मुक्ति पाने का हम निरंतर प्रयास करते रहेंगे और सफलता पायेंगे।

दूसरी एक महत्वपूर्ण बात जिससे मुझे आनंद आ रहा है, वो है किसान टीवी चैनल । वैसे तो देश में टीवी चैनेलों की भरमार है, क्या नहीं है, कार्टून की भी चैनलें चलती हैं, स्पोर्ट्स की चैनल चलती हैं, न्यूज़ की चलती है, एंटरटेनमेंट की चलती हैं। बहुत सारी चलती हैं। लेकिन मेरे लिए किसान चैनल महत्वपूर्ण इसलिए है कि मैं इससे भविष्य को बहुत भली भांति देख पाता हूँ।          

मेरी दृष्टि में किसान चैनल एक खेत खलियान वाली ओपन यूनिवर्सिटी है। और ऐसी चैनल है, जिसका विद्यार्थी भी किसान है, और जिसका शिक्षक भी किसान है। उत्तम अनुभवों से सीखना, परम्परागत कृषि से आधुनिक कृषि की तरफ आगे बढ़ना, छोटे-छोटे ज़मीन के टुकड़े बचे हैं। परिवार बड़े होते गए, ज़मीन का हिस्सा छोटा होता गया, और तब हमारी ज़मीन की उत्पादकता कैसे बढ़े, फसल में किस प्रकार से परिवर्तन लाया जाए - इन बातों को सीखना-समझना ज़रूरी है। अब तो मौसम को भी पहले से जाना जा सकता है। ये सारी बातें लेकर के,ये टी० वी० चैनल काम करने वाली है और मेरे किसान भाइयों-बहिनों, इसमें हर जिले में किसान मोनिटरिंग की व्यवस्था की गयी है। आप उसको संपर्क ज़रूर करें।

मेरे मछुवारे भाई-बहनों को भी मैं कहना चाहूँगा, मछली पकड़ने के काम में जुड़े हुए लोग, उनके लिए भी इस किसान चैनल में बहुत कुछ है, पशुपालन भारत के ग्रामीण जीवन का परम्परागत काम है और कृषि में एक प्रकार से सहायक होने वाला क्षेत्र है, लेकिन दुनिया का अगर हिसाब देखें, तो दुनिया में पशुओं की संख्या की तुलना में जितना दूध उत्पादन होता है, भारत उसमें बहुत पीछे है। पशुओ की संख्या की तुलना में जितना दूध उत्पादन होना चाहिए, उतना हमारे देश में नहीं होता है। प्रति पशु अधिक दूध उत्पादन कैसे हो, पशु की देखभाल कैसे हो, उसका लालन-पालन कैसे हो, उसका खान पान क्या हो - परम्परागत रूप से तो हम बहुत कुछ करते हैं,लेकिन वैज्ञानिक तौर तरीकों से आगे बढ़ना बहुत ज़रूरी है और तभी जा करके कृषि के साथ पशुपालन भी आर्थिक रूप से हमें मजबूती दे सकता है, किसान को मजबूती दे सकता है, पशु पालक को मजबूती दे सकता है। हम किस प्रकार से इस क्षेत्र में आगे बढें, किस प्रकार से हम सफल हो, उस दिशा में वैज्ञानिक मार्गदर्शन आपको मिले।

मेरे प्यारे देश वासियों! याद है 21 जून? वैसे हमारे इस भू-भाग में 21 जून को इसलिए याद रखा जाता है कि ये सबसे लंबा दिवस होता है। लेकिन 21 जून अब विश्व के लिए एक नई पहचान बन गया है। गत सितम्बर महीने में यूनाइटेड नेशन्स में संबोधन करते हुए मैंने एक विषय रखा था और एक प्रस्ताव रखा था कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग-दिवस के रूप में मनाना चाहिए। और सारे विश्व को अचरज हो गया, आप को भी अचरज होगा, सौ दिन के भीतर भीतर एक सौ सतत्तर देशो के समर्थन से ये प्रस्ताव पारित हो गया, इस प्रकार के प्रस्ताव ऐसा यूनाइटेड नेशन्स के इतिहास में, सबसे ज्यादा देशों का समर्थन मिला, सबसे कम समय में प्रस्ताव पारित हुआ, और विश्व के सभी भू-भाग, इसमें शरीक हुए, किसी भी भारतीय के लिए, ये बहुत बड़ी गौरवपूर्ण घटना है।

लेकिन अब जिम्मेवारी हमारी बनती है। क्या कभी सोचा था हमने कि योग विश्व को भी जोड़ने का एक माध्यम बन सकता है? वसुधैव कुटुम्बकम की हमारे पूर्वजों ने जो कल्पना की थी, उसमें योग एक कैटलिटिक एजेंट के रूप में विश्व को जोड़ने का माध्यम बन रहा है। कितने बड़े गर्व की, ख़ुशी की बात है। लेकिन इसकी ताक़त तो तब बनेगी जब हम सब बहुत बड़ी मात्रा में योग के सही स्वरुप को, योग की सही शक्ति को, विश्व के सामने प्रस्तुत करें। योग दिल और दिमाग को जोड़ता है, योग रोगमुक्ति का भी माध्यम है, तो योग भोगमुक्ति का भी माध्यम है और अब तो में देख रहा हूँ, योग शरीर मन बुद्धि को ही जोड़ने का काम करे, उससे आगे विश्व को भी जोड़ने का काम कर सकता है।

हम क्यों न इसके एम्बेसेडर बने! हम क्यों न इस मानव कल्याण के लिए काम आने वाली, इस महत्वपूर्ण विद्या को सहज उपलब्ध कराएं। हिन्दुस्तान के हर कोने में 21 जून को योग दिवस मनाया जाए। आपके रिश्तेदार दुनिया के किसी भी हिस्से में रहते हों, आपके मित्र परिवार जन कहीं रहते हो, आप उनको भी टेलीफ़ोन करके बताएं कि वे भी वहाँ लोगो को इकट्ठा करके योग दिवस मनायें। अगर उनको योग का कोई ज्ञान नहीं है तो कोई किताब लेकर के, लेकिन पढ़कर के भी सबको समझाए कि योग क्या होता है। एक पत्र पढ़ लें, लेकिन मैं मानता हूँ कि हमने योग दिवस को सचमुच में विश्व कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण क़दम के रूप में, मानव जाति के कल्याण के रूप में और तनाव से ज़िन्दगी से गुजर रहा मानव समूह, कठिनाइयों के बीच हताश निराश बैठे हुए मानव को, नई चेतना, ऊर्जा देने का सामर्थ योग में है।

मैं चाहूँगा कि विश्व ने जिसको स्वीकार किया है, विश्व ने जिसे सम्मानित किया है, विश्व को भारत ने जिसे दिया है, ये योग हम सबके लिए गर्व का विषय बनना चाहिए। अभी तीन सप्ताह बाकी है आप ज़रूर प्रयास करें,ज़रूर जुड़ें और औरों को भी जोडें, ये मैं आग्रह करूंगा।

मैं एक बात और कहना चाहूँगा खास करके मेरे सेना के जवानों को, जो आज देश की सुरक्षा में जुटे हुए उनको भी और जो आज सेना से निवृत्त हो करके अपना जीवन यापन कर रहे, देश के लिए त्याग तपस्या करने वाले जवानों को, और मैं ये बात एक प्रधानमन्त्री के तौर पर नहीं कर रहा हूँ। मेरे भीतर का इंसान, दिल की सच्चाई से, मन की गहराई से, मेरे देश के सैनिकों से मैं आज बात करना चाहता हूँ।

वन-रैंक, वन-पेंशन, क्या ये सच्चाई नहीं हैं कि चालीस साल से सवाल उलझा हुआ है? क्या ये सच्चाई नहीं हैं कि इसके पूर्व की सभी सरकारों ने इसकी बातें की, किया कुछ नहीं? मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ। मैंने निवृत्त सेना के जवानों के बीच में वादा किया है कि मेरी सरकार वन-रैंक,  वन-पेंशन लागू करेगी। हम जिम्मेवारी से हटते नहीं हैं और सरकार बनने के बाद, भिन्न-भिन्न विभाग इस पर काम भी कर रहे हैं। मैं जितना मानता था उतना सरल विषय नहीं हैं, पेचीदा है, और चालीस साल से उसमें समस्याओं को जोड़ा गया है। मैंने इसको सरल बनाने की दिशा में, सर्वस्वीकृत बनाने की दिशा में, सरकार में बैठे हुए सबको रास्ते खोज़ने पर लगाया हुआ है। पल-पल की ख़बरें मीडिया में देना ज़रूरी नहीं होता है। इसकी कोई रनिंग कमेंट्री नहीं होती है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ यही सरकार, मैं फिर से कहता हूँ - यही सरकार आपका वन-रैंक, वन-पेंशन का मसला, सोल्यूशन लाकर के रहेगी - और जिस विचारधारा में पलकर हम आए हैं , जिन आदर्शो को लेकर हम आगे बढ़ें हैं, उसमें आपके जीवन का महत्व बहुत है।

मेरे लिए आपके जीवन के साथ जुड़ना आपकी चिंता करना ये सिर्फ़ न कोई सरकारी कार्यक्रम है, न ही कोई राजनितिक कार्यक्रम है, मेरे राष्ट्रभक्ति का ही प्रकटीकरण है। मैं फिर एक बार मेरे देश के सभी सेना के जवानों को आग्रह करूंगा कि राजनैतिक रोटी सेंकने वाले लोग चालीस साल तक आपके साथ खेल खेलते रहे हैं।  मुझे वो मार्ग मंज़ूर नहीं है, और न ही मैं कोई ऐसे क़दम उठाना चाहता हूँ, जो समस्याओं को जटिल बना दे। आप मुझ पर भरोसा रखिये, बाक़ी जिनको बातें उछालनी होंगी, विवाद करने होंगे, अपनी राजनीति करनी होगी, उनको मुबारक। मुझे देश के लिए जीने मरने वालों के लिए जो कर सकता हूँ  करना है - ये ही मेरे इरादे हैं, और मुझे विश्वास है कि मेरे मन की बात जिसमें सिवाय सच्चाई के कुछ नहीं है, आपके दिलों तक पहुंचेगी। चालीस साल तक आपने धैर्य रखा है - मुझे कुछ समय दीजिये, काम करने का अवसर दीजिये, और हम मिल बैठकर के समस्याओं का समाधान करेंगे। ये मैं फिर से एक बार देशवासियों को विश्वास देता हूँ।

छुट्टियों के दिनों में सब लोग कहीं न कहीं तो गए होंगे। भारत के अलग-अलग कोनों में गए होंगे। हो सकता है कुछ लोग अब जाने का कार्यक्रम बनाते होंगे। स्वाभाविक है ‘सीईंग इज़ बिलीविंग’ - जब हम भ्रमण करते हैं,कभी रिश्तेदारों के घर जाते हैं, कहीं पर्यटन के स्थान पर पहुंचते हैं। दुनिया को समझना, देखने का अलग अवसर मिलता है। जिसने अपने गाँव का तालाब देखा है, और पहली बार जब वह समुन्दर देखता है, तो पता नहीं वो मन के भाव कैसे होते हैं,  वो वर्णन ही नहीं कर सकता है कि अपने गाँव वापस जाकर बता ही नहीं सकता है कि समुन्दर कितना बड़ा होता है। देखने से एक अलग अनुभूति होती है।

आप छुट्टियों के दिनों में अपने यार दोस्तों के साथ, परिवार के साथ कहीं न कहीं ज़रूर गए होंगे, या जाने वाले होंगे। मुझे मालूम नहीं है आप जब भ्रमण करने जाते हैं, तब डायरी लिखने की आदत है कि नहीं है। लिखनी चाहिए, अनुभवों को लिखना चाहिए, नए-नए लोगों से मिलतें हैं तो उनकी बातें सुनकर के लिखना चाहिए, जो चीज़ें देखी हैं, उसका वर्णन लिखना चाहिए, एक प्रकार से अन्दर, अपने भीतर उसको समावेश कर लेना चाहिए। ऐसी सरसरी नज़र से देखकर के आगे चले जाएं ऐसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये भ्रमण अपने आप में एक शिक्षा है। हर किसी को हिमालय में जाने का अवसर नहीं मिलता है, लेकिन जिन लोगों ने हिमालय का भ्रमण किया है और किताबें लिखी हैं उनको पढ़ोगे तो पता चलेगा कि क्या आनन्ददायक यात्राओं का वर्णन उन्होंने किया है।

मैं ये तो नहीं कहता हूँ कि आप लेखक बनें! लेकिन भ्रमण की ख़ातिर भ्रमण ऐसा न होते हुए हम उसमें से कुछ सीखने का प्रयास करें, इस देश को समझने का प्रयास करें, देश को जानने का प्रयास करें, उसकी विविधताओं को समझें। वहां के खान पान कों, पहनावे, बोलचाल, रीतिरिवाज, उनके सपने, उनकी आकांक्षाएँ,उनकी कठिनाइयाँ, इतना बड़ा विशाल देश है, पूरे देश को जानना समझना है - एक जनम कम पड़ जाता है,आप ज़रूर कहीं न कहीं गए होंगे, लेकिन मेरी एक इच्छा है, इस बार आप यात्रा में गए होंगे या जाने वाले होंगे। क्या आप अपने अनुभव को मेरे साथ शेयर कर सकते हैं क्या? सचमुच में मुझे आनंद आएगा। मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि आप इन्क्रेडिबल इंडिया हैश टैग, इसके साथ मुझे अपनी फोटो, अपने अनुभव ज़रूर भेजिए और उसमें से कुछ चीज़ें जो मुझे पसंद आएंगी मैं उसे आगे औरों के साथ शेयर करूँगा।

देखें तो सही आपके अनुभवों को, मैं भी अनुभव करूँ, आपने जो देखा है, मैं उसको मैं दूर बैठकर के देखूं। जिस प्रकार से आप समुद्रतट पर जा करके अकेले जा कर टहल सकते हैं, मैं तो नहीं कर पाता अभी, लेकिन मैं चाहूँगा आपके अनुभव जानना और आपके उत्तम अनुभवों को, मैं सबके साथ शेयर करूँगा।

अच्छा लगा आज एक बार फिर गर्मी की याद दिला देता हूँ, मैं यही चाहूँगा कि आप अपने को संभालिए, बीमार मत होना, गर्मी से अपने आपको बचाने के रास्ते होतें हैं, लेकिन उन पशु पक्षियों का भी ख़याल करना। यही मन की बात आज बहुत हो गयी, ऐसे मन में जो विचार आते गए, मैं बोलता गया। अगली बार फिर मिलूँगा, फिर बाते करूँगा, आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं, बहुत बहुत धन्यवाद।

 

Explore More
140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी
Annual malaria cases at 2 mn in 2023, down 97% since 1947: Health ministry

Media Coverage

Annual malaria cases at 2 mn in 2023, down 97% since 1947: Health ministry
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
Prime Minister condoles passing away of former Prime Minister Dr. Manmohan Singh
December 26, 2024
India mourns the loss of one of its most distinguished leaders, Dr. Manmohan Singh Ji: PM
He served in various government positions as well, including as Finance Minister, leaving a strong imprint on our economic policy over the years: PM
As our Prime Minister, he made extensive efforts to improve people’s lives: PM

The Prime Minister, Shri Narendra Modi has condoled the passing away of former Prime Minister, Dr. Manmohan Singh. "India mourns the loss of one of its most distinguished leaders, Dr. Manmohan Singh Ji," Shri Modi stated. Prime Minister, Shri Narendra Modi remarked that Dr. Manmohan Singh rose from humble origins to become a respected economist. As our Prime Minister, Dr. Manmohan Singh made extensive efforts to improve people’s lives.

The Prime Minister posted on X:

India mourns the loss of one of its most distinguished leaders, Dr. Manmohan Singh Ji. Rising from humble origins, he rose to become a respected economist. He served in various government positions as well, including as Finance Minister, leaving a strong imprint on our economic policy over the years. His interventions in Parliament were also insightful. As our Prime Minister, he made extensive efforts to improve people’s lives.

“Dr. Manmohan Singh Ji and I interacted regularly when he was PM and I was the CM of Gujarat. We would have extensive deliberations on various subjects relating to governance. His wisdom and humility were always visible.

In this hour of grief, my thoughts are with the family of Dr. Manmohan Singh Ji, his friends and countless admirers. Om Shanti."