मंत्रिपरिषद के मेरे साथी डॉ. हर्षवर्द्धन, मंचस्‍थ सभी महानुभाव और आज के दिवस के केंद्र बिन्‍दु वे सभी डिग्रीधारी जो आज इस कैंपस को छोड़ करके एक नई जिम्‍मेदारी की ओर कदम रख रहे हैं। 

मैं आप सबको हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। 

मैं कभी अच्‍छा स्‍टूडेंट नहीं रहा हूं, और न ही मुझे इस प्रकार से कभी अवॉर्ड प्राप्‍त करने का सौभाग्‍य मिला है। इसलिए मुझे बहुत बारीकियों का ज्ञान नहीं है। लेकिन इतनी समझ जरूर है कि विद्यार्थी का जब Exam होता है, उस हफ्ते बड़ा ही टेंशन में रहता है, बड़ा ही गंभीर रहता है। खाना भी जमता नहीं, बड़े तनाव में रहता है। लेकिन आज एक प्रकार से वो सारी झंझटों से मुक्ति का पर्व है और आप इतने गंभीर क्‍यों हैं? 

मैं कब से देख रहा था, कि क्‍या कारण है यहां! क्या, मिश्राजी, क्‍या कारण है? मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप अपने दायित्‍व पर उससे भी ज्‍यादा गंभीर हों - अच्छी चीज़ है - लेकिन जीवन को गंभीर मत बना देना। जिंदगी को हंसते-खेलते, संकटों से गुजरने की आदत बनाते हुए चलना, और उसका जो आनंद है, वह बड़ा ही अलग होता है। हमारे देश में, अगर पुराने शास्‍त्रों की तरफ देखें, तो पहला convocation, इसका उल्‍लेख तेत्रैय उपनिषद में आता है। वेद काल में गुरू-शिष्‍य जब परंपरा थी, और शिष्‍य जब विद्यार्थी काल समाप्‍त करके जाता था, तो उसका प्रथम उल्‍लेख तैत्रेय उपनिषद में आता है कि कैसे Convocation की क्‍या कल्‍पना थी। 

वो परंपरा अब भी चल रही है, नए रंग-रूप के साथ चल रही है। मेरा एक-दो सुझाव जरूर है। क्‍या कभी हम इस Convocation में एक Special guest की परंपरा खड़ी कर सकते हैं क्‍या? और Special guest का मेरा मतलब है कि गरीब बस्‍ती में जो Schools हैं, गरीब परिवार के बच्‍चे जहां पढ़ते हैं, ऐसे एक Selected 8वीं 9वीं कक्षा वे बच्‍चे, 30, 40, 50 जो भी आपकी Capacity में हो, उनको ये Convocation में Special guest के रूप में बुलाया जाए, बिठाया जाए, और वे देखें, ये दुनिया क्‍या है। जो काम शायद उसका टीचर नहीं कर पाएगा, उस बालक मन में एक घंटे-डेढ़ घंटे का ये अवसर उसके मन में जिज्ञासा पैदा करेगा। उसके मन में भी सपने जगाएगा। उसको भी लगेगा कि कभी मेरी जिंदगी में ये अवसर आए। 

आप कल्‍पना कर सकते हैं, कितना बड़ा इसका impact हो सकता है। चीज बहुत छोटी है। लेकिन ताकत बहुत गहरी है और यही चीजें हैं जो बदलाव लाती है। मेरा आग्रह रहेगा, वे गरीब बच्‍चे। डॉक्‍टर का बच्‍चा आएगा तो उसको लगेगा कि मेरे पिताजी ने भी ये किया है, उसको नहीं लगेगा। समाज जीवन में अपने सामान्‍य बातों से हम कैसे बदलाव ला सकते हैं। उस पर हम सोचें। जो डॉक्‍टर बनकर आज जा रहे हैं, अपने जीवन में अचीवमेंट किया है, मेरे जाने के बाद भी शायद हर्षवर्द्धन जी कईयों को अवॉर्ड देने वाले हैं, सर्टिफिकेट देने वाले हैं। लेकिन आज आप जा रहे हैं, बीता हुआ कल और आने वाला कल के बीच कितना बड़ा अंतर है। 

आपने जब पहली बार AIIMS में कदम रखा होगा तो घर से बहुत सारी सूचनाएं दी गई होंगी, मां ने कहा होगा, पिताजी ने कहा होगा। चाचा ने कहा होगा, देखो ऐसा करना, ऐसा मत करना। ट्रेन में बैठे होंगे तो कहा होगा कि देख खिड़की के बाहर मत देखना। कोई अनजान व्‍यक्ति कुछ देता है तो मत लेना। बहुत कुछ कहा होगा। एक प्रकार से आज भी वही पल है। Convocation एक प्रकार से आखिरी कदम रखते समय परामर्श देने का एक पल होता है। 

कभी आप सोचे हैं कि जब आप क्‍लासरूम में थे, Institute में थे, जब आप पढ़ रहे थे, तब आप कितने protected थे? कोई कठिनाई आई तो सीनियर साथी मिल जाता था, बताता था। समाधान नहीं हुआ तो प्रोफेसर मिल जाते थे। प्रोफेसर नहीं मिले तो डीन मिल जाते थे। बहुत avenues रहते थे कि जहां पर आप आपकी समस्‍याओं का, आपकी जिज्ञासा का समाधान खोज सकते थे। आप कभी यहां काम करते थे, आपका हॉस्‍टल लाइफ रहा होगा। परिवार का कोई नहीं होगा, जो आपको हर पल ये कहता होगा, ये करो, ये मत करो। लेकिन कोई तो कोई होगा आरे यार क्‍या कर रहे हो भाई ? किसी ने कहा होगा भाई तुम्‍हारे पिताजी ने कितनी मेहनत करके भेजा है, तुम ये कर हो क्‍या ? बहुत कुछ सुना होगा आपने। और तब आपको बुरा भी लगा होगा कि क्‍या ये मास्‍टर जी देते हैं, हमें मालूम नहीं है क्‍या हमारी जिंदगी का? लेकिन कोई तो था जो आपको कहता था कि ये करो, ये मत करो। 

आप उस अवस्‍था से गुजरे हैं और काफी लंबा समय गुजरे हैं, जहां, आपको स्‍वयं को निर्णय करने की नौबत बहुत कम आई होगी और निर्णय करने की नौबत आई होगी, तब भी protected environment में आई होगी, जहां पर आपको पूरा Confidence था कि मेरे निर्णय को इधर-उधर कुछ भी हो जाएगा तो कोई तो बैठा है जो मुझे मदद करेगा, बचा लेगा मुझे या मेरा हाथ पकड़ लेगा। इसके बाद आप एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं, जहां कोई आपका हाथ पकड़ने वाला नहीं है। जहां पर कोई आपको ये करो, ये मत करो, कहने वाला नहीं है। जहां आपका कोई protected environment नहीं है। आप एक चारदीवारी वाले classroom से एक बहुत बड़े विशाल classroom में enter हो रहे हैं। और तब जाकर के एकलव्‍य की मानसिकता आवश्‍यक होती है। एकलव्‍य को protected environment नहीं मिला था, लेकिन उसका लक्ष्‍य था achievement का। और उसने अपने काल्‍पनिक सृष्टि की रचना की और काल्‍पनिक सृष्टि के माध्‍यम से ज्ञान अर्जित करने का प्रयास किया था। 

जिस पल, खास करके medical protection के लोग या professional क्षेत्र में जाने वाले लोग, विद्यार्थी काल की समाप्ति मानते हैं, मैं समझता हूं, अगर हमारे मन में यह अहसास हो कि चलो यार, छुट्टी हुई, बहुत दिन बिता लिए। वही Hostel, वहीं gown, वहीं stethoscopes, इधर दौड़ो, उधर दौड़ो। चलो मुक्ति हो गई। जो ये मानता है कि आज end of the journey है उसकी और एक नई journey में entry कर रहा है, मैं समझता हूं, अगर ये मन का भाव आया, तो मेरा निश्चित मत है, कि आप ठहराव की ओर जा करके फंस जाएंगे। रूकावटों की झंझटों में उलझ जाएंगे। 

लेकिन अगर आप एक बंद classroom से एक विशाल classroom में जा रहे हैं। विद्यार्थी अवस्‍था भीतर हमेशा रहती है। जिन लोगों को आज सम्‍मानित करने का सौभाग्‍य आज मिला, 70-80 साल की आयु वाले सभी हैं। लेकिन अज उनसे आप मिलेगा तो मुझे विश्‍वास है, आज भी medical science के latest Development के बारे में उनको पता होगा। इसलिए नहीं कि उनको किसी पेशेंट की जरूरत है, इसलिए कि उनके भीतर का विद्यार्थी जिंदा है। जिसके भीतर का विद्यार्थी जिंदा होता है, वही जीवन में कुछ कर पाता है, कर गुजरता है। लेकिन अगर यहां से जाने के बाद इंस्‍टीट्यूट पूरी हुई तो विद्यार्थी जीवन भी पूरा हुआ। अगर ये सोच है तो मैं समझता हूं कि उससे बड़ा कोई ठहराव नहीं हो सकता है। विद्यार्थी अवस्‍था, मन की विद्यार्थी अवस्‍था जीवन के अंत काल तक जीवन को प्राणवान बनाती है, ऊर्जावान बनाती है। और जिस पल मन की विद्यार्थी अवस्‍था समाप्‍त हो जाती है, मृत्‍यु की ओर पहला कदम शुरू हो जाता है। 

अभी मैं आया तो वो सज्‍जन बता रहे थे, कि लोगों को अचरज है, मोदीजी की energy का। अचरज जैसा कुछ है नहीं, आप लोग medical science के लोग हैं, थोड़ा इतना जोड़ दीजिए, हर पल नया करने की, सीखने की इच्‍छा आपके भीतर की ऊर्जा कभी समाप्‍त नहीं होती है। कभी energy समाप्‍त नहीं होती। आपकी स्थिति कुछ और भी बनेगी, जब आप hostel में रहते होंगे, OPD में आपको कई पेशेंट को डील करना होता होगा। कभी दोपहर को दोस्‍तों के साथ मूवी देखना तय किया है तो मन करता था कि OPD ऐसा करो निकालो। हमें सिनेमा देखने जाना है। मैं आपकी बात नहीं बता रहा हूं, ये तो मैं कहीं और की बात बता रहा हूं। 

आपने पेशेंट को कहा होगा ये खाना चाहिए, ये नहीं चाहिए। इतना खाना चाहिए, इतना नहीं खाना चाहिए। लेकिन जैसे ही आप मेस में पहुंचते होंगे, सब साथियों ने मिलके स्‍पर्धा लगाई होगी, आज तो special Dish है। Sweet है, देखते हैं कौन ज्‍यादा खाता है। ये सब किया होगा। और वही तो जिंदगी होती है, दोस्‍तो। लेकिन आपने किसी को कहा होगा, ये खाओ, ये मत खाओ। तब जा करके अपनी आत्‍मा से पूछा है, मैंने उसको तो ये कहा था, मैं ये कर रहा हूं। इसलिए सफलता की पहली शर्त होती है। कल तक की बात अच्‍छी थी, किया, अच्‍छा किया। मैं उसको appreciate करता हूं। लेकिन आने वाले कल में, मैं कैंसर का डॉक्‍टर हूं और शाम को धुंआधार सिगरेट जलाता रहता हूं और मैं दुनिया को कहूंगा कि भाई इससे कैंसर होता है तो किसी को गले नहीं उतरेगा। ऊपर से हम एक उदाहरण बन जाएंगे- हां यार, कैंसर के डॉक्‍टर सिगरेट पीते हैं तो मुझे क्‍या फर्क पड़ता है। 

इसलिए मैं एक ऐसे व्‍यवसाय में हूं, मैं एक ऐसे क्षेत्र में कदम रख रहा हूं, जहां मेरा जीवन मेरे पेशेंट की जिंदगी बन सकता है। शायद हमने बहुत कम लोगों ने सोचा होगा कि क्‍या एक डॉक्‍टर का जीवन एक पेशेंट की जिंदगी बन सकता है? आप कभी सोचना, आपका हर मिनट, हर बात, हर संपर्क पेशेंट की जिंदगी बन सकती है। कभी सोच करके देखिए, बहुत कम लोग हैं, जो जीवन को इस रूप में देखते हैं। मैं आशा करता हूं, आज जो नई पीढ़ी जा रही है, वो इस पर सोचेगी। 

उसी प्रकार से, हम डॉक्‍टर बने हैं, कभी अपनी ओर देखें - क्‍या आपके पिताजी के पास पैसे थे, इसलिए आपने पाया? क्‍या आपके प्रोफेसर बहुत अच्‍छे थे, इसलिए ये सब हुआ? क्‍या सरकार ने बहुत बढि़या इमारत बनाई थी, AIIMS बन गया था, इसके कारण हुआ? आप थोड़े मेहनती थे, इसलिए हुआ? अगर यही सोच हमारी सीमित रही तो शायद जिंदगी की ओर देखने का दृष्टिकोण पूर्णता की ओर हमें नहीं ले जाएगा। कभी सोचिये, यहां पर जब आप पहले दिन आए होंगे तो एक ऑटो-रिक्‍शा वाला या टैक्‍सी वाला होगा जिसने आपकी मदद की होगी। बहुत अच्‍छे ढंग से यहां लाया होगा, पहली बार दिल्‍ली में कदम रखा होगा, बहुतों ने। तो क्‍या आज स्थिति को प्राप्‍त करते समय आपकी जीवन की यात्रा का पहला चरण जिस ऑटो ड्राइवर के साथ किया, या उस टैक्‍सी वाले के साथ किया, क्‍या कभी स्‍मरण आता है? 

Exam के दिन रहे होंगे, थकान महसूस हुई होगी, रात के 12 बजे पढ़ते-पढ़ते कमरे से बाहर निकले होंगे, ठंड का मौसम होगा और एक पेड़ के नीचे कोई चाय बेचने वाला बैठा होगा। आपका मन करता होगा, चाय मिल जाए तो अच्‍छा हो, क्‍योंकि रात भर पढ़ना है। और उस ठंडी रात में सोये हुए, उस पेड़ के नीचे सोये हुए उस चाय बेचेने वाले को आपके जगाया होगा, कि चाय पिला दे यार। और उसने अपना चेहरा बिगाड़े बिना, आप डॉक्‍टर बने इसलिए, आपका Exam अच्‍छा जाए, इसलिए, ठंड में भी जग करके कही से दूध लाके आपको चाय पिलाई होगी। तब जा करके आपकी जिंदगी की सफलता का आरंभ हुआ होगा। 

कभी-कभार एकाध peon भी, कोई paramedical staff का बूढ़ा व्‍यक्ति, जिसके पास जीवन के अनुभव वा तर्जुबा रहा होगा, उसने कहा होगा, नहीं साब, सिरींज को ऐसे नहीं पकड़ते हैं, ऐसे पकड़ते हैं। हो सकता है, classroom का वह teacher नहीं होगा, लेकिन जिंदगी का वह Teacher बना होगा। कितने-कितने लोग होंगे, जिन्‍होंने आपकी जिंदगी को बनाया होगा। एक प्रकार से बहुत बड़ा क़र्ज़ लेकर के आप जा रहे हैं। 

अब तक तो स्थिति ऐसी थी कि कर्ज लेना आपका हक भी था, लेकिन अब कर्ज चुकाना जिम्‍मेवारी है। और इसलिए भली-भांति उस हक का उपयोग किया है, अच्‍छा किया है। लेकिन अब भली-भांति उस कर्ज को चुकाना हमारा दायित्‍व बन जाता है। और उस दायित्‍व को हम पूरा करें। मुझे विश्‍वास है कि हम समाज के प्रति हमारा दायित्‍व अपने profession में आगे बढ़ते हुए भी निभा सकते हैं। आप अमीर घर के बेटे हो सकते हैं, गरीब परिवार के बेटे हो सकते हैं, मध्‍यम वर्ग के परिवार के बेटे / बेटी हो सकते हैं, लेकिन क्‍या कभी सोचा है कि आपकी पढ़ाई कैसे हुई है? क्‍या आपके फीस के कारण पढ़ाई हुई है? नहीं, क्‍या scholarship के कारण हुई है? नहीं। 

इन व्‍यवस्‍थाओं का विकास तब हुआ होगा, जब किसी गरीब के स्‍कूल बनाने का बजट यहां divert हुआ होगा। किसी गांव के अंदर बस जाए तो गांव वालों की सुविधा बढ़े, हो सकता है कि वह बस चालू नहीं हुई होगी, वह बजट यहां divert किया गया होगा। समाज के कई क्षेत्रों के विकास की संभावनाओं को रोक करके इसे develop करने के लिए कभी न कभी प्रयास हुआ होगा। एक प्रकार से उसका हक छिन कर हमारे पास पहुंचा है, जिसके कारण हम लाभान्वित हुए हैं। और ये जरूरत थी, इसलिए यहां करना पड़ा होगा। क्‍योंकि अगर इतने बड़े देश में medical profession को बढ़ावा नहीं देते हैं तो बहुत बड़ा संकट आ सकता है, अनिवार्य रहा होगा। लेकिन कोई तो कारण होगा कि समाज के किसी न किसी का हक मैने लिया है, तब जाकर आज इस स्‍तर तक पहुंचा हूं। क्‍या मैं हर पल अपने जीवन में उस बात को याद करूंगा कि हां भाई, मैं सिर्फ डॉक्‍टर बना हूं, ऐसा नहीं है? ये मेरे सामने आया हर व्‍यक्ति किसी न किसी तरीके से योगदान दिया है, तब जाकर मैं इस अवस्‍था को पहुंचा हूं। मुझ पर उसका अधिकार है। 

मैं नहीं जानता हूं, जो लोग यहां से पढ़ाई की और विदेश चले गए, उनके दिल में यह बात पहुंचेगी कि नहीं पहुंचेगी। कभी-कभार, अपने profession में बहुत आगे निकल गए और निकलना भी है। हम नहीं चाहते हैं कि सब पिछड़ेपन की अवस्‍था में हमारे साथी रहें। लेकिन कभी हम भी तो यार दोस्‍तों के साथ छुट्टी मनाने जाते हैं। कितने भी पेशेंट क्‍यों न हो, कितनी भी बीमारियों की संभावना क्‍यों न हो, लेकिन जिंदगी ऐसी है कि कभी न कभी उसकी चेतना अगले 7 दिन, 10 दिन अपने साथियों के साथ बाहर जाते हैं। कभी-कभार ये भी तो सोचिये कि भले ही बहुत बड़ी जगह पर बैठेंगे, लेकिन कम से कम सब साथियों को ले करके साल में एक बार पांच दिन, सात दिन दूर-सुदूर जंगलों में जा करके, गरीबों के साथ बैठ करके, मेरे पास जो ज्ञान है, अनुभव है, कहीं उनके लिए भी तो कर पाएं। मैं सात दिन, 365 दिन करने की जरूरत नहीं है, न कर पाएं, लेकिन ये तो कर सकते हैं। अगर इस प्रकार का हम संकल्‍प करके जाते हैं तो इतनी बड़ी शक्ति अगर लगती है। समाज की शक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं हो सकती है। हम एक समाज के बहुत चेतनमंद ऊर्जा है। हम क्‍या कुछ नहीं कर सकते है इस भाव को लेकर अगर हम चलते हैं तो हम बहुत बड़ी सेवा समाज की कर सकते हैं। 

कभी-कभार मैंने देखा है, सफल डॉक्‍टर और विफल डॉक्‍टर के बीच में आपने अंतर कभी देखा है क्‍या? कुछ डॉक्‍टर होते हैं जो बीमारी के संबंध में बहुत focused होते हैं, और इतनी गहराई से उन चीजों को handle करते हैं, और उनके profession में उनकी बड़ी तारीफ होती है। भाई, देखिए इस विषय में तो इन्‍हीं को पूछिए। consult करना है तो उनको पूछिए। लेकिन कभी-कभार उसकी सीमा आ जाती है। 

दूसरे प्रकार के डॉक्‍टर होते हैं। वे बीमारी से ज्‍यादा बीमार के साथ जुड़ते हैं। यह बहुत बड़ा फर्क होता है। बीमारी से जुड़ने वाला बहुत Focused activity करके बीमारी को Treat करता है, लेकिन वो डॉक्‍टर जो बीमार से जुड़ता है, वो उसके भीतर बीमारी से लड़ने की बहुत बड़ी ताकत पैदा कर देता है। और इसलिए डॉक्‍टर के लिए यह बहुत बड़ी आवश्‍यकता होती है कि वह उस इंसान को इंसान के रूप में Treat कर रहा है, कि उसके उस पुर्जे को हाथ लगा रहा है, जिस पुर्जे की तकलीफ है? मैं नहीं मानता हूं कि वो डॉक्‍टर लोकप्रिय हो सकता है। वह सफल हो सकता है। डॉक्‍टर का लोकप्रिय होना बहुत आवश्‍यक होता है, क्‍योंकि सामान्‍य व्‍यक्ति डॉक्‍टर के शब्‍दों पे भरोसा करता है। 

हमें भी अंदाज नहीं होता है। हम कहते है तो कह देते हैं कि देखो भई, जरा इतना संभाल लेना। बहुत पेशेंट होते हैं जो, उस एक शब्द को घोष वाक्‍य मान करके जिंदगी भर के लिए स्‍वीकार कर लेते हैं। तब जा करके हमारा दायित्‍व कितना बढ़ जाता है। और इसलिए हमें उस डॉक्‍टर समूहों की आवश्‍यकता है, जो सिर्फ बीमारों की नहीं, बीमारी की नहीं, लेकिन पेशेंट के confidence level को Build up करने की दृष्टि से जो कदम उठाए जाएं। और मैं नहीं जानता कि जब आप पढ़ते होंगे, तब classroom में ये बातें आई होगी। क्‍योकि आपको इतनी चीजें देखनी होती होगी, क्‍योंकि भगवान ने शरीर में इतनी चीजें भर रखी हैं, कि उसी को समझते-समझते ही कोर्स पूरा हो जाता है। सारे गली-मोहल्‍ले में Travel करते-करते पता नहीं कहां निकलोगे आप? इसलिए ये बहुत बड़ी आवश्‍यकता होती है कि मैं इस क्षेत्र में जा रहा हूं, तो मैं एक समाज की जिम्‍मेवारी ले रहा हूं। और समाज की जिम्‍मेवारी ने निभाने के लिए हम कोशिश कर रहे हैं। 

हमारे देश में by and large, पहले के लोग थे, जो रात में भी मेहनत कर करके रिकॉर्ड मेंटेन करते थे। और वो पेशेंट की history, बीमारी की history, कभी-कभार भविष्‍य के लिए बहुत काम आती है। आज युग बदल चुका है। Digital Revolution एक बहुत बड़ी ताकत है। एक डॉक्‍टर के नाते मैं अभी से दो या तीन क्षेत्रों में focus करके case history के रिकॉर्ड्स बनाता चलूं, बनाता चलूं, बनाता चलूं। उसका analysis करता चलूं। कभी-कभार मेरे सीनियरों से उसका debate करूं, चर्चा करूं। science Magazines के अंदर मेरे Article छापे, इसके लिए आग्रही बनो। 

भारत के लिए बहुत अनिवार्य है दोस्‍तों कि हमारे Medical Profession के लोग, अमेरिका के अंदर उसका बड़ा दबदबा है। दुनिया के कई देश ऐसे हैं, कि गंभीर से गंभीर बीमारी हो, अस्‍पताल में आपरेशन थियेटर में ले जाते हों, लेकिन जब तक वो हिन्‍दुस्‍तानी डॉक्टर का चेहरा नहीं देखते हैं, तब तक उनका विश्‍वास नहीं बढ़ता है। यह हमने achieve किया है। By and large, हर पेशेंट विश्‍व में जहां भी उसको परिचय आया, कुछ ऐसा नहीं यार, आप तो हैं, लेकिन जरा उनको बुला लीजिए। ये कोई छोटी बात नहीं है। लेकिन, हम Research के क्षेत्र में बहुत पीछे है। और Research के क्षेत्र में यह आवश्‍यक है कि हम Case history के प्रति ज्‍यादा Conscious बनें। हम पेशेंट की हर चीज को बारीकी से लिखते रहें, analysis करते रहें, 10 पेशेंट को देखते रहें। हो सकता है कि धीरे-धीरे 2-4 साल की आपकी इस मेहनत का परिणाम यह आएगा कि आप मानव जाति के लिए बहुत बड़ा Contribute कर सकते हैं। और हो सकता है कि आपमें से कोई Medical Science का Research Scientist बन सकता है। 

मानव जाति के कल्‍याण के लिए मैं समस्‍याओं को Treat करता रहूं, एक रास्‍ता है, लेकिन मैं मानव जाति की संभावित समस्‍याओं के समाधान के लिए कुछ नई चीजें खोज कर दे दूं। हो सकता है, मेरा Contribution बहुत बड़ा हो सकता है। और ये काम कोई दूसरा नहीं करेगा। और आज Medical Science, आज से 10 साल पहले और आज में बहुत बड़ा बदलाव आया है। Technology ने बहुत बड़ी जगह ले ली है, Medical Science में। 

एक जमाना था, जब गांव में एक वैद्यराज हुआ करते थे, और गांव स्‍वस्‍थ होता था। गांव बीमार नहीं होता था। आज आंख का डॉक्‍टर अलग है, कान का अलग है। वो दिन भी दूर नहीं, बाईं आंख वाला एक होगा, दाईं आंख वाला दूसरा होगा। लेकिन एक वैद्यराज से गांव स्‍वस्‍थ रहता था और बायें-दायें होने के बावजूद भी स्‍वस्‍थता के संबंध में सवालिया निशान लगा रहता है। तब जा करके बदले हुए समय में Research में कहीं न कहीं हमारी कमी महसूस होती है। Technological development इतना हो रहा है, आप मुझे बताइए, अगर Robot ही ऑपरेशन करने वाला है तो आपका क्‍या होगा? एक programming हो जाएगा, programme के मुताबिक robot जाएगा जहां भी काटना-वाटना है, काट करके बाहर निकल जाएगा, बाद में paramedical staff हैं, वहीं देखता रहेगा। आप तो कहीं निकल ही जाएंगे। 

मैं आपको डरा नहीं रहा हूं। लेकिन इतना तेजी से बदलाव आ रहा है, आपमें से कितने लोग जानते हैं, मुझे मालूम नहीं है। एक बहुत बड़ा साइंस, जो कि हम सदियों पहले जिसके विषय में जानकारी रखते थे, बताई जाती थी हमारे पूर्वजों को, वह आज medical science में जगह बना रहा है। पुराने जमाने में ऋषि-मुनियों की तस्‍वीर होती थी, उसके ऊपर एक aura हुआ करता था, कभी हमको लगता था कि aura अच्‍छी designing के लिए शायद paint किया गया हो। लेकिन आज विज्ञान स्‍वीकार करने लगा है कि aura Medical Science के लिए सबसे बड़ा input बन सकता है। Kirlian Photography शुरू हुई, जिसके कारण aura की फोटोग्राफी शुरू हो गई। Aura की photography से पता चलने लगा कि इस व्‍यक्ति के जीवन में ये Deficiency है, शरीर में 25 साल के बाद ये बीमारी आ सकती है, 30 साल के बाद ये बीमारी आ सकती है, ओरा साइंस बहुत बड़ी बात है, वो develop हो रहा है। 

आज के हमारे Medical Science के सबसे जुड़ा हुआ Aura Science नहीं है। Full Proof भले ही नहीं होगा, पर एक वर्ग है दुनिया में, विदेशों में, जो लोग इसी पर बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। अगर ये Aura Science की स्‍वीकृति हो गई तो शायद Medical Science की Terminology बदल जाएगी। एक बहुत बड़े Revolution की संभावना पड़ी है। हम Revolution से डरते नहीं है। हम चाहते हैं, Innovations होते रहने चाहिए। लेकिन चिंता ये है कि हम उसके अपने आप के साथ मेल बिठा रहे हैं कि हम उन पुरानी किताबों को पढ़ें, क्‍योंकि हमारे professor भी आए होंगे, वो भी वही पुरानी किताब लेके आए होंगे। उनके टीचर ने उनको दी होगी। और हम भी शायद प्रोफेसर बन गए तो आगे किसी को सरका देंगे कि देख यार, मैं यहीं पढ़ाता रहा हूं, तुम भी यही पढ़ाते रहो। तो शायद बदलाव नहीं आ सकता है। 

इसलिए नित नूतन प्राणवान व्‍यवस्‍था की ओर हमारा मन रहता है, तो हम Relevant रहते हैं। हम समाज के बदलाव की स्थिति में जगह बना सकते हैं। उसे बनाने की दिशा में अगर प्रयास करते हैं तो मैं मानता हूं कि हम बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं। आप एक ऐसे Institution के Students हैं, जिसने हिन्‍दुस्‍तान में अपना एक Trademark सिद्ध किया हुआ है। आज हिन्‍दुस्‍तान में कहीं पर भी अच्‍छा अस्‍पताल बनाना हो, या Medical Science में कुछ काम करना हो, कॉलेज अच्‍छे बनाने हो तो लोग क्‍या कहते हैं? पूरे देश के हर कोने में। हमारे यहां एक AIIMS बना दो। और कुछ उसे मालूम नहीं है। इतना कह दिया मतलब सब आ गया। उसको मालूम है AIIMS आया, मतलब सब आया। 

इसका मतलब, आप कितने भाग्‍यवान हैं कि पूरा हिन्‍दुस्‍तान जिस AIIMS के साथ जुड़ना चाहता है, हर कोने में कोई कहता है, पेशेंट भी चाहता है कि यार मुझे AIIMS में Admission मिल जाए तो अच्‍छा होगा, Students भी चाहता है कि पढ़ने को यदि AIIMS में मिल जाए तो exposure बहुत अच्‍छा मिलेगा, Faculty अच्‍छी मिल जाए, बहुत बड़ा जीवन में सीखने को मिलेगा। आप भाग्‍यवान हैं, आप एक ऐसे Institution से निकल रहे है, जिस Institution ने देश और दुनिया में अपनी जगह बनाई है। ये बहुत बड़ा सौभाग्‍य ले करके आप जा रहे हैं। 

मुझे विश्‍वास है कि आपके जीवन में माध्‍यम से भविष्‍य में समाज को कुछ न कुछ मिलता रहेगा और “स्‍वस्‍थ भारत” के सपने को पूरा करने में आप भी भारत माता की संतान के रूप में, जिस समाज ने आपको इतना सारा दिया है, उस समाज को आप भी कुछ देंगे। इस अपेक्षा के साथ में आज, जिन्‍होंने यह अचीवमेंट पाई है, उन सबको हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। मेरी शुभकामनाएं हैं, और मैं आपका साथी हूं। आपके कुछ सुझाव होंगे, जरूर मुझे बताइए। हम सब मिल करके अच्‍छे रास्‍ते पर जाने की कोशिश करेंगे। 

आपके बीच आने का मुझे अवसर मिला, मैं भी हैरान हूं कि मुझे क्‍यों बुलाया? ना मैं अच्‍छा पेशेंट हूं। भगवान करे, ना बनूं। डॉक्‍टर तो हूं ही नहीं। लेकिन मुझे इसलिए बुलाया कि मैं प्रधानमंत्री हूं। और हमारे देश का दुर्भाग्‍य ऐसा है कि हम लोग सब जगह पे चलते हैं। खैर, मुझे आप लोगों से मिलने का अवसर मिला, मैं आपका आभारी हूं। 

धन्‍यवाद। 

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 'मन की बात', यानि देश के सामूहिक प्रयासों की बात, देश की उपलब्धियों की बात, जन-जन के सामर्थ्य की बात, ‘मन की बात' यानि देश के युवा सपनों, देश के नागरिकों की आकांक्षाओं की बात | मैं पूरे महीने, 'मन की बात' का इंतजार करता रहता हूँ, ताकि, आपसे सीधा संवाद कर सकूँ । कितने ही सारे संदेश, कितने ही messages ! मेरा पूरा प्रयास रहता है कि ज्यादा- से-ज्यादा संदेश को पढूँ, आपके सुझावों पर मंथन करूँ ।

साथियो, आज बड़ा ही खास दिन है - आज NCC दिवस है | NCC का नाम सामने आते ही हमें स्कूल-कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं | मैं स्वयं भी NCC Cadet रहा हूँ, इसलिए, पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इससे मिला अनुभव मेरे लिए अनमोल है | 'NCC' युवाओं में अनुशासन, नेतृत्व और सेवा की भावना पैदा करती है । आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए NCC के cadets जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में NCC को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । 2014 में करीब 14 लाख युवा NCC से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा NCC से जुड़े हैं | पहले के मुकाबले पाँच हजार और नए स्कूल-कॉलेजों में अब NCC की सुविधा हो गई है, और सबसे बड़ी बात, पहले NCC में girls cadets की संख्या करीब 25% (percent) के आस-पास ही होती थी | अब NCC में girls cadets की संख्या करीब-करीब 40% (percent) हो गई है | बॉर्डर किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा NCC से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है । मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में NCC से जुड़ें | आप देखिएगा आप किसी भी career में जाएं, NCC से आपके व्यक्तित्व निर्माण में बड़ी मदद मिलेगी |

साथियो, विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है | युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं । आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश 'युवा दिवस' मनाता है । अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue’ | भारत-भर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, block, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue' के लिए जुटेंगे | आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आहवान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का political background नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे | ‘विकसित भारत Young Leaders Dialogue' भी ऐसा ही एक प्रयास है । इसमें देश और विदेश से experts आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी | मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा | युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने ideas को रखने का अवसर मिलेगा | देश इन ideas को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस roadmap बन सकता है? इसका एक blueprint तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं | जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए I मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी address किया है जैसे लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, वो बुजुर्गों को Digital life certificate के काम में मदद करते हैं I आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी Pensioners को साल में एक बार Life Certificate जमा कराना होता है I 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी I अब ये व्यवस्था बदल चुकी है I अब Digital Life Certificate देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता I बुजुर्गों को Technology की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है I वो, अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं I इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को tech savvy भी बना रहे हैं ऐसे ही प्रयासों से आज Digital Life certificate पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है I इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है I

साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को Digital क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं I भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को Mobile के माध्यम से Payment करना सिखाया है I इन बुजुर्गों के पास smart phone तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था I बुजुर्गों को Digital arrest के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं I अहमदाबाद के राजीव, लोगों को Digital Arrest के खतरे से आगाह करते हैं I मैंने ‘मन की बात’ के पिछले episode में Digital Arrest की चर्चा की थी I इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं I ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और cyber fraud से बचने में मदद करें I हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि Digital Arrest नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है - ये सरासर झूठ, लोगों को फ़साने का एक षड्यन्त्र है मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं I

मेरे प्यारे देशवासियो, आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं | कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े - कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी | मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे share करना चाहता हूं | यहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है | इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है | इस library का idea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है | विदेश में अपने काम के दौरान वे latest technology की दुनिया से जुड़े रहे | लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे | भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया | इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है | किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं | Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है |

साथियो, हैदराबाद में ‘Food for Thought’ Foundation ने भी कई शानदार libraries बनाई हैं | इनका भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें | बिहार में गोपालगंज के ‘Prayog Library’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है | इस library से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, library पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है | कुछ libraries तो ऐसी हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में students के बहुत काम आ रही हैं | ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज library का बेहतरीन उपयोग हो रहा है | आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं | भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘Mini भारत’ बसता है | आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था | आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं | गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं | जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था - जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे share कर रहा हूं | गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं | दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं | क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ share करें | आप इन कहानियों को NaMo App पर या MyGov पर #IndianDiasporaStories के साथ भी share कर सकते हैं |

साथियो, आपको ओमान में चल रहा एक extraordinary project भी बहुत दिलचस्प लगेगा | अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं | इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं | इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण link तैयार किए थे | आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है | ओमान में भारतीय दूतावास और National Archives of India के सहयोग से एक team ने इन परिवारों की history को preserve करने का काम शुरू किया है | इस अभियान के तहत अब तक हजारों documents जुटाए जा चुके हैं | इनमें diary, account book, ledgers, letters और telegram शामिल हैं | इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं | ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं | बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े - ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है | ‘Oral History Project’ ये भी इस mission का एक महत्वपूर्ण आधार है | इस mission में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं | लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है |

साथियो ऐसा ही एक ‘Oral History Project’ भारत में भी हो रहा है | इस project के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं | अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है | ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है |

साथियो, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है | इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक Directory बनाई है | समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है | इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा Museum भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई manuscript हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, National Archives of India की मदद से सहेज सकते हैं |

साथियो, मुझे Slovakia में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है | यहां पहली बार Slovak language में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है | इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है | हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे देश की एक ऐसी उपलब्धि साझा करना चाहता हूं जिसे सुनकर आपको खुशी भी होगी और गौरव भी होगा, और अगर आपने नहीं किया है, तो शायद पछतावा भी होगा | कुछ महीने पहले हमने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान शुरू किया था | इस अभियान में देश-भर के लोगों ने बहुत उत्साह से हिस्सा लिया | मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि इस अभियान ने सौ करोड़ पेड़ लगाने का अहम पड़ाव पार कर लिया है | सौ करोड़ पेड़, वो भी, सिर्फ पाँच महीनों में - ये हमारे देशवासियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है | इससे जुड़ी एक और बात जानकर आपको गर्व होगा | ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अब दुनिया के दूसरे देशों में भी फैल रहा है | जब मैं गयाना में था, तो वहां भी, इस अभियान का साक्षी बना | वहां मेरे साथ गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली, उनकी पत्नी की माता जी, और परिवार के बाकी सदस्य, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में शामिल हुए |

साथियो, देश के अलग-अलग हिस्सों में ये अभियान लगातार चल रहा है | मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत, पेड़ लगाने का record बना है - यहां 24 घंटे में 12 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए | इस अभियान की वजह से इंदौर की Revati Hills के बंजर इलाके, अब, green zone में बदल जाएंगे | राजस्थान के जैसलमेर में इस अभियान के द्वारा एक अनोखा record बना - यहां महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25 हजार पेड़ लगाए | माताओं ने मां के नाम पेड़ लगाया और दूसरों को भी प्रेरित किया। यहां एक ही जगह पर पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मिलकर पेड़ लगाए - ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है । ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कई सामाजिक संस्थाएँ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पेड़ लगा रही हैं । उनका प्रयास है कि जहां पेड़ लगाए जाएँ वहाँ पर्यावरण के अनुकूल पूरा Eco System Develop हो । इसलिए ये संस्थाएँ कहीं औषधीय पौधे लगा रहीं हैं, तो कहीं, चिड़ियों का बसेरा बनाने के लिए पेड़ लगा रहीं हैं । बिहार में ‘JEEViKA Self Help Group’ की महिलाओं ने 75 लाख पेड़ लगाने का अभियान चला रहीं हैं । इन महिलाओं का focus फल वाले पेड़ों पर है, जिससे आने वाले समय में आय भी की जा सके ।

साथियो, इस अभियान से जुड़कर कोई भी व्यक्ति अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगा सकता है । अगर माँ साथ है तो उन्हें साथ लेकर आप पेड़ लगा सकते हैं, नहीं तो उनकी तस्वीर साथ में लेकर आप इस अभियान का हिस्सा बन सकते हैं । पेड़ के साथ आप अपनी Selfie भी mygov.in पर पोस्ट कर सकते हैं । माँ, हम सबके लिए जो करती है हम उनका ऋण कभी नहीं चुका सकते, लेकिन, एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम उनकी उपस्थिति को हमेशा के लिए जीवंत बना सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया या Sparrow को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा । गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है । हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं । हमारे आसपास Biodiversity को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है । बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है । आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है । ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं । चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए स्कूल के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है । संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है । ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की training देते है । इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा सा घर बनाना सिखाया । इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया । ये ऐसे घर होते हैं जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है । बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे दस हज़ार घोंसले तैयार किए हैं । कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी ।

साथियो, कर्नाटका के मैसुरू की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘Early Bird’ नाम का अभियान शुरू किया है । ये संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की library चलाती है । इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘Nature Education Kit’ तैयार किया है। इस Kit में बच्चों के लिए Story Book, Games, Activity Sheets और jig-saw puzzles हैं । ये संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है । इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं । ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है | आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा | सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं | बरसों-बरस तक ये फाइलें Office में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी - ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और Scrap को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया | आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं | साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है | इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक Ownership का भाव भी आया है | अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है |

सथियो, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है | हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है | देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं | तरह-तरह के innovation कर रहे हैं | इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं | ये युवा अपने प्रयासों से sustainable lifestyle को भी बढ़ावा दे रहे हैं | मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है | अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं | आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है | अक्षरा और प्रकृति की Team उन्हीं कपड़ों के कचरे को Fashion Product में बदलती है | कतरन से बनी टोपियां, Bag हाथों-हाथ बिक भी रही है |

साथियो, साफ-सफाई को लेकर UP के कानपुर में भी अच्छी पहल हो रही है | यहाँ कुछ लोग रोज सुबह Morning Walk पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले Plastic और अन्य कचरे को उठा लेते हैं | इस समूह को ‘Kanpur Ploggers Group’ नाम दिया गया है | इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी | धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया | शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं | इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं | इस कचरे से Recycle Plant में tree guard तैयार किए जाते हैं, यानि, इस Group के लोग कचरे से बने tree guard से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं|

साथियो, छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है | इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है | इतिशा corporate दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं | पर्यटकों की वजह से वहां काफी plastic waste जमा होने लगा था | वहां की नदी जो कभी साफ थी वो plastic waste की वजह से प्रदूषित हो गई थी | इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है | उनके group के लोग वहां आने वाले tourist को जागरूक करते हैं और plastic waste को collect करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं |

साथियो, ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है | ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है | आपके आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा | आप मुझे ऐसे प्रयासों के बारे में जरूर लिखते रहिए |

साथियो, ‘मन की बात’ के इस episode में फिलहाल इतना ही | मुझे तो पूरे महीने, आपकी प्रतिक्रियाओं, पत्रों और सुझावों का खूब इंतजार रहता है | हर महीने आने वाले आपके संदेश मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देते हैं | अगले महीने हम फिर मिलेंगे, ‘मन की बात’ के एक और अंक में - देश और देशवासियों की नई उपलब्धियों के साथ, तब तक के लिए, आप सभी देशवासियों को, मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं |

बहुत-बहुत धन्यवाद |