उन्होंने 'लचित बोरफुकन – असम्स हीरो हू हाल्टेड द मुगल्स' नामक पुस्तक का विमोचन किया
"लचित बोरफुकन का जीवन हमें 'राष्ट्र प्रथम' के मंत्र के साथ जीने के लिए प्रेरित करता है"
"लचित बोरफुकन का जीवन हमें यह सिखाता है कि भाई-भतीजावाद और वंशवाद के बजाय देश सर्वोच्च होना चाहिए"
"संतों और ऋषियों ने अनादिकाल से ही हमारे राष्ट्र का मार्गदर्शन किया है"
"लचित बोरफुकन जैसे बहादुरों ने यह दिखाया कि कट्टरता और आतंकी ताकतें नष्ट हो जाती हैं लेकिन भारतीय जीवन का अमर प्रकाश सदैव शाश्वत रहता है"
"भारत का इतिहास विजयी होने का है, यह अनगिनत महापुरुषों के पराक्रम के बारे में है"
“दुर्भाग्य से हमें आजादी के बाद भी वही इतिहास पढ़ाया गया जो गुलामी के दौरान एक साजिश के तौर पर लिखा गया था”
“जब कोई राष्ट्र अपने वास्तविक अतीत को जानता है, तभी वह अपने अनुभवों से सीख सकता है और अपने भविष्य के लिए सही दिशा में आगे बढ़ सकता है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि इतिहास की हमारी समझ कुछ दशकों और सदियों तक ही सीमित न रहे”
"हमें भारत को विकसित राष्ट्र और पूर्वोत्तर को भारत के विकास का केंद्र बनाना है"

मोहान नायोक, लासिट बो्डफुकोनोर जी, सारि खो बोसोरिया, जोयोंती उपोलोख्ये, देखोर राजधानीलोई ओहा, आरू इयात, होमोबेतो हुवा, आपुनालूक होकोलुके, मूर आंतोरिक ऑभिबादोन, आरू, हेवा जोनाइसु।

असम के राज्यपाल श्री जगदीश मुखी जी, लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री हिमंता बिस्वा सरमा जी, केंद्र व मंत्रिपरिषद के मेरे साथी सर्बानंद सोनोवाल जी, विधानसभा के अध्यक्ष श्रीमान बिस्वजीत जी, रिटायर्ड चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, तपन कुमार गोगोई जी, असम सरकार के मंत्री पिजूष हजारिका जी, सांसदगण, और इस कार्यक्रम में शामिल, और देश-विदेश में असम संस्कृति से जुड़े सभी महानुभाव।

सबसे पहले मैं असम की उस महान धरती को प्रणाम करता हूँ, जिसने मां भारती को लचित बोरफूकन जैसे अदम्य वीर दिये हैं। कल पूरे देश में वीर लचित बोरफूकन की 400वीं जन्म जयंती मनाई गई। इस अवसर पर दिल्ली में 3 दिनों के विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। ये मेरा सौभाग्य है कि इस कार्यक्रम से जुड़ने का मुझे अवसर मिला। मुझे बताया गया है कि इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में असम के लोग भी इन दिनों दिल्ली आए हुए हैं। मैं आप सभी का, असम की जनता को, और 130 करोड़ देशवासियों को इस अवसर पर अनेक-अनेक बधाई देता हूं, शुभकामनाएं देता हूँ।

साथियों,

हमें वीर लचित की 400वीं जन्मजयंती मनाने का सौभाग्य उस कालखंड में मिला है, जब देश अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। ये ऐतिहासिक अवसर, असम के इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है। मैं भारत की अमर संस्कृति, अमर शौर्य और अमर अस्तित्व के इस पर्व पर इस महान परंपरा को प्रणाम करता हूं। आज देश गुलामी की मानसिकता को छोड़ अपनी विरासत पर गर्व करने के भाव से भरा हुआ है। आज भारत न सिर्फ अपनी सांस्कृतिक विविधता को सेलिब्रेट कर रहा है, बल्कि अपनी संस्कृति के ऐतिहासिक नायक-नायिकाओं को गर्व से याद भी कर रहा है। लचित बोरफूकन जैसी महान विभूतियाँ, भारत माँ की अमर सन्तानें, इस अमृतकाल के संकल्पों को पूरा करने के लिए हमारी अविरत प्रेरणा हैं, निंरतर प्रेरणा हैं। उनके जीवन से हमें अपनी पहचान का, अपने आत्मसम्मान का बोध भी होता है, और इस राष्ट्र के लिए समर्पित होने की ऊर्जा भी मिलती है। मैं इस पुण्य अवसर पर लचित बोरफूकन के महान शौर्य और पराक्रम को नमन करता हूं।

साथियों,

मानव इतिहास के हजारों वर्षों में दुनिया की कितनी ही सभ्यताओं ने जन्म लिया। उन्होंने सफलता के बड़े-बड़े शिखरों को छुआ। ऐसी सभ्यताएं भी हुईं, जिन्हें देखकर लगता था कि वो अमर हैं, अपराजेय हैं। लेकिन, समय की परीक्षा ने बहुत सारी सभ्यताओं को परास्त कर दिया, चूर-चूर कर दिया। आज दुनिया उनके अवशेषों से इतिहास का आकलन करती है। लेकिन, दूसरी ओर ये हमारा महान भारत है। हमने अतीत के उन अप्रत्याशित झंझावातों का सामना किया। हमारे पूर्वजों ने विदेशों से आए आतताइयों के अकल्पनीय आतंक को झेला, सहन किया। लेकिन, भारत आज भी अपनी उसी चेतना, उसी ऊर्जा और उसी सांस्कृतिक गौरव के साथ जीवंत है, अमरत्व के साथ जीवंत है। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत में जब भी कोई मुश्किल दौर आया, कोई चुनौती खड़ी हुई, तो उसका मुक़ाबला करने के लिए कोई न कोई विभूति अवतरित हुई है। हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान को बचाने के लिए हर कालखंड में संत आए, मनीषी आए। भारत को तलवार के ज़ोर से कुचलने का मंसूबा पाले आक्रमणकारियों का माँ भारती की कोख से जन्मे वीरों ने डटकर मुकाबला किया। लचित बोरफूकन भी देश के ऐसी ही वीर योद्धा थे। उन्होंने दिखा दिया कि कट्टरता और आतंक की हर आग का अंत हो जाता है, लेकिन भारत की अमर-ज्योति, जीवन-ज्योति अमर बनी रहती है।

साथियों,

असम का इतिहास, अपने आप में भारत की यात्रा और संस्कृति की एक अनमोल विरासत है। हम अलग-अलग विचारों-विचारधाराओं को, समाजों-संस्कृतियों को, आस्थाओं-परंपरा को एक साथ जोड़ते हैं। आहोम राज में सबको साथ लेकर बने शिवसागर शिव दोउल, देवी दोउल और विष्णु दोउल आज भी इसके उदाहरण हैं। लेकिन, अगर कोई तलवार के ज़ोर से हमें झुकाना चाहता है, हमारी शाश्वत पहचान को बदलना चाहता है, तो हमें उसका जवाब देना भी आता है। असम और पूर्वोत्तर की धरती इसकी गवाह रही है। असम के लोगों ने अनेकों बार तुर्कों, अफगानों, मुगलों के आक्रमणों का मुक़ाबला किया, और आक्रमणकारियों को पीछे खदेड़ा। अपनी पूरी ताकत झोंककर मुगलों ने गुवाहाटी पर कब्ज़ा कर लिया था। लेकिन, फिर एक बार लचित बोरफूकन जैसे योद्धा आए, और अत्याचारी मुगल सल्तनत के हाथ से गुवाहाटी को आज़ाद करवा लिया। औरंगजेब ने हार की उस कालिख को मिटाने की हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन वो हमेशा-हमेशा असफल ही रहा। वीर लचित बोरफूकन ने जो वीरता दिखाई, सराईघाट पर जो साहस दिखाया, वो मातृभूमि के लिए अगाध प्रेम की पराकाष्ठा भी थी। असम ने अपने साम्राज्य के एक-एक नागरिक को जरूरत पड़ने पर अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तैयार किया था। उनका एक-एक युवा अपनी माटी का सिपाही था। लचित बोरफूकन जैसा साहस, उनके जैसी निडरता, यही तो असम की पहचान है। और इसीलिए तो हम आज भी कहते हैं- हुनिसाने लोराहोत, लासितोर कोथा मुगोल बिजोयी बीर, इतिहाखे लिखा अर्थात्, बच्चों तुमने सुनी है लचित की गाथा? मुगल-विजयी वीर का नाम इतिहास में दर्ज है।

साथियों,

हमारे हजारों वर्षों की जीवंतता, हमारे पराक्रम की निरंतरता, यही भारत का इतिहास है। लेकिन, हमें सदियों से ये बताने की कोशिश की गई कि हम हमेशा लुटने-पिटने वाले, हारने वाले लोग रहे हैं। भारत का इतिहास, सिर्फ गुलामी का इतिहास नहीं है। भारत का इतिहास योद्धाओं का इतिहास है, विजय का इतिहास है। भारत का इतिहास, अत्याचारियों के विरुद्ध अभूतपूर्व शौर्य और पराक्रम दिखाने का इतिहास है। भारत का इतिहास जय का है, भारत का इतिहास जंग का है, भारत का इतिहास त्याग का है, तप का है, भारत का इतिहास वीरता का है, बलिदान का है, महान परंपरा का है। लेकिन दुर्भाग्य से, हमें आज़ादी के बाद भी वही इतिहास पढ़ाया जाता रहा, जो गुलामी के कालखंड में साजिशन रचा गया था। आजादी के बाद जरूरत थी, हमें गुलाम बनाने वाले विदेशियों के एजेंडे को बदला जाए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। देश के हर कोने में मां भारती के वीर, बेटे-बेटियों ने कैसे आतताइयों का मुकाबला किया, अपना जीवन समर्पित कर दिया, इस इतिहास को जानबूझकर दबा दिया गया। क्या लचित बोरफूकन का शौर्य मायने नहीं रखता क्या? क्या देश की संस्कृति के लिए, पहचान के लिए मुगलों के खिलाफ युद्ध में लड़ने वाले असम के हजारों लोगों का बलिदान कोई मायने नहीं रखता? हम सब जानते हैं कि अत्याचारों से भरे लंबे कालखंड में अत्याचारियों पर विजय की भी हजारों गाथाएं हैं, जय की गाथाएं हैं, त्याग की गाथाएं हैं, तर्पण की गाथाएं हैं। इन्हें इतिहास की मुख्यधारा में जगह ना देकर पहले जो गलती हुई, अब देश उसे सुधार रहा है। यहां दिल्ली में हो रहा ये आयोजन इसी का प्रतिबिंब है। और मैं हिमंता जी और उनकी पूरी टीम को बधाई देता हूं कि ये कार्यक्रम दिल्ली में किया।

वीर लचित बोरफूकन की शौर्य गाथा, ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए असम सरकार ने कुछ ही दिन पहले एक म्यूजियम बनाने का एलान किया है। मुझे बताया गया है कि हिमंता जी की सरकार ने असम के ऐतिहासिक नायकों के सम्मान में एक मेमोरियल तैयार करने की भी योजना बनाई है। निश्चय ही ऐसे प्रयासों से हमारी युवा और आने वाली पीढ़ियों को भारत की महान संस्कृति को ज्यादा गहराई से समझने का अवसर मिलेगा। असम सरकार ने अपने विजन से जन-जन को जोड़ने के लिए एक थीम सॉन्ग भी लॉन्च किया है। इसके बोल भी बहुत अद्भुत हैं। ओखोमोर आकाखोर, ओखोमोर आकाखोर, भूटातोरा तुमि, हाहाहोर होकोटि, पोरिभाखा तुमि, यानि असम के आकाश का ध्रुवतारा तुम हो। साहस शक्ति की परिभाषा तुम हो। वाकई, वीर लचित बोरफूकन का जीवन हमें देश के सामने उपस्थित कई वर्तमान चुनौतियों का डटकर सामना करने की प्रेरणा देता है। उनका जीवन हमें प्रेरणा देता है कि- हम व्यक्तिगत स्वार्थों को नहीं, देशहित को सर्वोच्च प्राथमिकता दें। उनका जीवन हमें प्रेरणा देता है कि- हमारे लिए परिवारवाद, भाई-भतीजावाद, नहीं बल्कि देश सबसे बड़ा होना चाहिए।

कहते हैं कि राष्ट्र रक्षा के लिए अपनी ज़िम्मेदारी न निभा पाने पर वीर लचित ने मौमाई को भी सजा दी थी। उन्होंने कहा था- “देखोत कोई, मोमाई डांगोर नोहोय” यानी, मौमाई देश से बड़ा नहीं होता। यानी, कह सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति, कोई भी रिश्ता, देश से बड़ा नहीं होता। आप कल्पना करिए, जब वीर लचित की सेना ने ये सुना होगा कि उनका सेनापति देश को कितनी प्राथमिकता देता है, तो उस छोटे से सैनिक का हौसला कितना बढ़ गया होगा। और साथियों ये हौसला ही होता है जो जीत का आधार होता है। मुझे खुशी है कि आज का नया भारत, राष्ट्र प्रथम, नेशन फर्स्ट के इसी आदर्श को लेकर आगे बढ़ रहा है।

साथियों,

जब कोई राष्ट्र अपने सही अतीत को जानता है, सही इतिहास को जानता है, तो ही वो अपने अनुभवों से सीखता भी है। उसे भविष्य के लिए सही दिशा मिलती है। हमारी ये ज़िम्मेदारी है कि हम अपने इतिहास की दृष्टि को केवल कुछ दशकों या कुछ सदियों तक सीमित न रखें। मैं आज असम के प्रसिद्ध गीतकार द्वारा रचित और भारत रत्न भूपेन हजारिका द्वारा स्वरबद्ध एक गीत की दो पंक्तियां भी दोहराना चाहूंगा। इसमें कहा गया है- मोई लासिटे कोइसु, मोई लासिटे कोइसु, मुर होहोनाई नाम लुवा, लुइत पोरिया डेका डॉल। यानि, मैं लचित बोल रहा हूं, ब्रह्मपुत्र किनारे के युवाओं, मेरा बार-बार नाम लो। निरंतर स्मरण करके ही हम आने वाली पीढ़ियों को सही इतिहास से परिचित करा सकते हैं। अभी थोड़ी देर पहले मैंने लचित बोरफूकन जी के जीवन पर आधारित एक प्रदर्शनी देखी, बहुत ही प्रभावित करने वाली थी, शिक्षा देने वाली थी। साथ ही मुझे उनकी शौर्य गाथा पर लिखी किताब के विमोचन का भी सौभाग्य मिला। इस तरह के आयोजनों के जरिए ही देश के सही इतिहास और ऐतिहासिक घटनाओं से जन-जन को जोड़ा जा सकता है।

साथियों,

जब मैं देख रहा था तो मेरे मन में एक विचार आया असम के और देश के कलाकारों को जोड़कर के हम इस पर सोच सकते है जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज पर एक एक जाणता राजा नाट्य प्रयोग है। करीब 250-300 कलाकार, हाथी, घोड़े सारे कार्यक्रम में होते हैं और बड़ा प्रभावित कार्यक्रम है। क्या हम लचित बोरफूकन जी के जीवन पर ऐसा ही एक नाट्य प्रयोग तैयार करें और हिन्दुस्तान के कोने-कोने में लें जाए। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का जो संकल्प हैं ना उसमें ये सारी चीजें बहुत बड़ी ताकत देते है। हमें भारत को विकसित भारत बनाना है, पूर्वोत्तर को भारत के सामर्थ्य का केंद्रबिंदु बनाना है। मुझे विश्वास है, वीर लचित बोरफूकन की 400वीं जन्म जयंती हमारे इन संकल्पों को मजबूत करेगी, और देश अपने लक्ष्यों को हासिल करेगा। इसी भावना के साथ, मैं फिर एक बार असम सरकार का, हिमंता जी का, असम के लोगों का ह्दय से आभारी हूं। इस पवित्र समारोह में मुझे भी पुण्य कमाने का अवसर मिल गया। मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं।

धन्यवाद।

 

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Chairman and CEO of Microsoft, Satya Nadella meets Prime Minister, Shri Narendra Modi
January 06, 2025

Chairman and CEO of Microsoft, Satya Nadella met with Prime Minister, Shri Narendra Modi in New Delhi.

Shri Modi expressed his happiness to know about Microsoft's ambitious expansion and investment plans in India. Both have discussed various aspects of tech, innovation and AI in the meeting.

Responding to the X post of Satya Nadella about the meeting, Shri Modi said;

“It was indeed a delight to meet you, @satyanadella! Glad to know about Microsoft's ambitious expansion and investment plans in India. It was also wonderful discussing various aspects of tech, innovation and AI in our meeting.”