Quoteजहान-ए-खुसरो के इस आयोजन में एक अनूठी खुशबू है, यह खुशबू हिंदुस्तान की मिट्टी की है, वो हिंदुस्तान, जिसकी तुलना हजरत अमीर खुसरो ने जन्नत से की थी: प्रधानमंत्री
Quoteभारत में सूफी परंपरा ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है: प्रधानमंत्री
Quoteकिसी भी देश की सभ्यता और तहजीब को स्वर उसके संगीत एवं गीतों से मिलते हैं: प्रधानमंत्री
Quoteहजरत खुसरो ने भारत को उस दौर की दुनिया के सभी बड़े देशों से महान बताया, वह संस्कृत को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ भाषा मानते थे: प्रधानमंत्री
Quoteहजरत खुसरो भारत के मनीषियों को बड़े-बड़े विद्वानों से भी महान मानते थे: प्रधानमंत्री

कार्यक्रम में उपस्थित डॉ. कर्ण सिंह जी, मुजफ्फर अली जी, मीरा अली जी, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों!

आज जहान-ए-खुसरो में आकर मन खुश होना बहुत स्वाभाविक है। हजरत अमीर खुसरो जिस बसंत के दीवाने थे, वो बसंत आज यहां दिल्‍ली में मौसम है ही नहीं, बल्कि जहान-ए-खुसरो की इस आबोहवा में भी घुला हुआ है। हजरत खुसरो के शब्दों में कहे तो-

सकल बन फूल रही सरसों, सकल बन फूल रही सरसों,

अम्बवा फूटे टेसू फूले, कोयल बोले डार-डार...

यहां माहौल वाकई कुछ ऐसा ही है। यहां महफिल में आने से पहले अभी मुझे तह बाजार घूमने का मौका मिला। उसके बाद बाग़-ए-फिरदौस में कुछ साथियों से भी अलब-दलब दुआ सलाम हुई। अभी नजर-ए-कृष्णा और जो विभिन्न आयोजन हुए, असुविधा के बीच कलाकार के लिए माइक की अपनी एक ताकत होती है, लेकिन उसके बाद भी प्रकृति के सहारे उन्होंने जो कुछ भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया, शायद उनको भी थोड़ी निराशा हुई होगी। जो लोग इस आनंद को पाने के लिए आए थे, उनको भी शायद निराशा हुई होगी। लेकिन कभी-कभी ऐसे अवसर भी जीवन में बहुत कुछ सीख देकर के जाते हैं। मैं मानता हूं आज की अवसर भी हमें सीख देकर के जाएगा।

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साथियों,

ऐसे मौके देश की कला-संस्कृति के लिए तो जरूरी होते ही हैं, इनमें एक सुकून भी मिलता है। जहान-ए-खुसरो का ये सिलसिला अपने 25 साल भी पूरे कर रहा है। इन 25 वर्षों में इस आयोजन का लोगों के जेहन में जगह बना लेना, ये अपने आप में इसकी सबसे बड़ी कामयाबी है। मैं डॉ. कर्ण सिंह जी, मित्र मुजफ्फर अली जी, बहन मीरा अली जी और अन्य सहयोगियों को इसके लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। जहान-ए-खुसरो का ये गुलदस्ता इसी तरह खिलता रहे, मैं इसके लिए रूमी फाउंडेशन को और आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। रमज़ान का मुबारक महीना भी शुरू होने वाला है। मैं आप सभी को और सभी देशवासियों को रमज़ान की भी मुबारकबाद देता हूं। आज मैं सुंदर नर्सरी आया हूं, तो His Highness प्रिंस करीम आगा ख़ान की भी याद आना मुझे बहुत स्वाभाविक है। सुंदर नर्सरी को सजाने-संवारने में उनका जो योगदान है, वो लाखों कला प्रेमियों के लिए वरदान बन गया है।

साथियों,

गुजरात में सूफी परंपरा का बड़ा सेंटर सरखेज रोज़ा रहा है। वक्त के थपेड़ों में एक समय उसकी हालत काफी खराब हो गई थी। जब मैं मुख्यमंत्री था, तब उसके रिस्टोरेशन पर काफी काम करवाया गया था और बहुत कम लोगों को मालूम होगा, एक जमाना था जहां सरखेज रोज़ा में बड़ी धूमधाम के साथ कृष्ण उत्सव मनाया जाता था और बहुत बड़ी मात्रा में बनाया जाता था और आज भी यहां कृष्ण भक्ति के रंग में हम सब रंग गए थे। मैं सरखेज रोज़ा में होने वाले सालाना सूफी संगीत कार्यक्रम में शिरकत भी औसतन किया करता था। सूफी संगीत एक ऐसी साझी विरासत है, जिसको हम सब मिल जुलकर जीते आए हैं। हम सब ऐसे ही बड़े हुए हैं। अब यहां नजर-ए-कृष्णा की जो प्रस्तुति हुई, उसमें भी हमारी साझी विरासत की झलक दिखाई देती है।

साथियों,

जहान-ए-खुसरो के इस आयोजन में एक अलग खुशबू है। ये खुशबू हिन्‍दुस्‍तान की मिट्टी की है। वो हिन्‍दुस्‍तान जिसकी तुलना हजरत अमीर खुसरो ने जन्नत से की थी। हमारा हिन्‍दुस्‍तान जन्नत का वो बगीचा है, जहां तहजीब का हर रंग फला-फूला है। यहां की मिट्टी के मिजाज में ही कुछ खास है। शायद इसलिए जब सूफी परंपरा हिन्‍दुस्‍तान आई, तो उसे भी लगा जैसे वो अपनी ही जमीन से जुड़ गई हो। यहां बाबा फरीद की रूहानी बातों ने दिलों को सुकून दिया। हजरत निजामुद्दीन की महफिलों ने मोहब्बत के दीये जलाए। हजरत अमीर खुसरो की बोलियों ने नए मोती पिरोए और जो नतीजा निकला, वो हजरत खुसरो की इन मशहूर पंक्तियों में व्यक्त हुआ।

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बन के पंछी भए बावरे, बन के पंछी भए बावरे,

ऐसी बीन बजाई सँवारे, तार तार की तान निराली,

झूम रही सब वन की डारी।

भारत में सूफी परंपरा ने अपनी एक अलग पहचान बनाई। सूफी संतों ने खुद को महज मस्जिदों या खानकाहों तक सीमित नहीं रखा, उन्होंने पवित्र कुरान के हर्फ पढ़े, तो वेदों के स्‍वर भी सुने। उन्होंने अजान की सदा में भक्ति के गीतों की मिठास जोड़ी और इसलिए उपनिषद जिसे संस्कृत में एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति कहते थे, हजरत निजामुद्दीन औलिया ने वही बात हर कौम रास्त राहे, दीने व किब्‍ला गाहे जैसे सूफी गीत गाकर कही। अलग-अलग भाषा, शैली और शब्द लेकिन संदेश वही, मुझे खुशी है कि आज जहान-ए-खुसरो उसी परंपरा की एक आधुनिक पहचान बन गया है।

साथियों,

किसी भी देश की सभ्यता, उसकी तहजीब को स्वर, उसके गीत, संगीत से मिलती है। उसकी अभिव्यक्ति कला से होती है। हजरत खुसरो कहते थे भारत के इस संगीत में एक सम्‍मोहन है, एक ऐसा सम्मोहन कि जंगल में हिरण अपने जीवन का डर भूलकर स्थिर हो जाते थे। भारतीय संगीत के इस समंदर में सूफी संगीत एक अलग रौ के तौर पर आकर के मिला था और ये समंदर की खूबसूरत लहर बन गया। जब सूफी संगीत और शास्त्रीय संगीत की वो प्राचीन धाराएं एक दूसरे से जुड़ी, तो हमें प्रेम और भक्ति की नई कल-कल सुनने को मिली। यही हमें हजरत खुसरो की कव्वाली में मिली। यहीं हमें बाबा फरीद के दोहे मिले। बुल्ले-शाह के स्वर मिले, मीर के गीत मिले, यहां हमें कबीर भी मिले, रहीम भी मिले और रसखान भी मिले। इन संतों और औलियायों ने भक्‍ति को एक नया आयाम दिया। आप चाहे सूरदास को पढ़ें या रहीम और रसखान को या फिर आप आंख बंद करके हजरत खुसरो को सुने, जब आप गहराई में उतरते हैं, तो उसी एक जगह पहुंचते हैं, ये जगह है अध्‍या‍त्‍मिक प्रेम की वो ऊंचाई जहां इंसानी बंदिशें टूट जाती हैं और इंसान और ईश्वर का मिलन महसूस होता है। आप देखिए, हमारे रसखान मुस्लिम थे, लेकिन वो हरि भक्त थे। रसखान भी कहते हैं- प्रेम हरी को रूप है, त्यों हरि प्रेम स्वरूप। एक होई द्वै यों लसैं, ज्यौं सूरज अरु धूप॥ यानी प्रेम और हरि दोनों वैसे ही एक ही रूप हैं, जैसे सूरज और धूप और यही एहसास तो हजरत खुसरो को भी हुआ था। उन्होंने लिखा था खुसरो दरिया प्रेम का, सो उलटी वा की धार। जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।। यानी प्रेम में डूबने से ही भेद की बाधाएं पार होती हैं। यहां अभी जो भव्य प्रस्तुति हुई, उसमें भी हमने यही महसूस किया है।

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साथियों,

सूफी परंपरा ने न केवल इंसान की रूहानी दूरियों को दूर किया, बल्कि दुनिया की दूरियों को भी कम किया है। मुझे याद है साल 2015 में जब मैं अफगानिस्तान की Parliament में गया था, तो वहां मैंने बड़े भाव भरे शब्दों में रूमी को याद किया था। आठ शताब्दी पहले रूमी वहां के ही बल्ख प्रांत में पैदा हुए थे। मैं रूमी के लिखे का हिंदी का एक तरजुमा जरूर यहां दोहराना चाहूंगा क्योंकि ये शब्द आज भी उतने ही प्रासंगिक है। रूमी ने कहा था, शब्दों को ऊंचाई दें, आवाज को नहीं, क्योंकि फूल बारिश में पैदा होते हैं, तूफान में नहीं।। उनकी एक और बात मुझे याद आती है, मैं थोड़ा देशज शब्दों में कहूं, तो उसका अर्थ है, मैं न पूरब का हूं न पश्चिम का, न मैं समंदर से निकला हूं और न मैं जमीन से आया हूं, मेरी जगह कोई है, है ही नहीं, मैं किसी जगह का नहीं हूं यानी मैं सब जगह हूं। ये विचार, ये दर्शन वसुधैव कुटुंबकम की हमारी भावना से अलग नहीं है। जब मैं दुनिया के विभिन्न देशों में भारत का प्रतिनिधित्व करता हूं, तो इन विचारों से मुझे ताकत मिलती है। मुझे याद है, जब मैं ईरान गया था, तो ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस के समय मैंने वहां मिर्जा गालिब का एक शेर पढ़ा था-

जनूनत गरबे, नफ्से-खुद, तमाम अस्त।

ज़े-काशी, पा-बे काशान, नीम गाम अस्त॥

यानी, जब हम जागते हैं तो हमें काशी और काशान की दूरी केवल आधा कदम ही दिखती है। वाकई, आज की दुनिया के लिए, जहां युद्ध मानवता का इतना बड़ा नुकसान कर रहा है, वहां ये संदेश कितने काम आ सकता हैं।

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साथियों,

हजरत अमीर खुसरो को ‘तूती-ए हिन्द’ कहा जाता है। भारत की तारीफ़ में, भारत से प्रेम में उन्होंने जो गीत गाये हैं, हिंदुस्तान की महानता और मनमोहकता का जो वर्णन किया है, वो उनकी किताब नुह-सिप्हर में देखने को मिलता है। हजरत खुसरो ने भारत को उस दौर की दुनिया के तमाम बड़े देशों से महान बताया। उन्होंने संस्कृत को दुनिया की सबसे बेहतरीन भाषा बताया। वो भारत के मनीषियों को बड़े-बड़े विद्वानों से भी बड़ा मानते हैं। भारत में शून्य का, गणित, और विज्ञान और दर्शन का ये ज्ञान कैसे बाकी दुनिया तक पहुंचा, कैसे भारत का गणित अरब पहुंचकर वहां पर जाकर के हिंदसा के नाम से जाना गया। हजरत खुसरो न केवल अपनी किताबों में उसका ज़िक्र करते हैं, बल्कि उस पर गर्व भी करते हैं। गुलामी के लंबे कालखंड में जब इतना कुछ तबाह किया गया, अगर आज हम अपने अतीत से परिचित हैं, तो इसमें हजरत खुसरो की रचनाओं की बड़ी भूमिका है।

साथियों,

इस विरासत को हमें निरंतर समृद्ध करते रहना है। मुझे संतोष है, जहान-ए-खुसरो जैसे प्रयास इस दायित्व को बखूबी निभा रहे हैं और अखंड रूप से 25 साल तक ये काम करना, ये छोटी बात नहीं है। मैं मेरे मित्र को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मैं, एक बार फिर आप सभी को इस आयोजन के लिए बधाई देता हूँ। कुछ कठिनाइयों के बीच भी इस समारोह का मजा लेने का कुछ अवसर भी मिल गया, मैं इसके लिए मेरे मित्र का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद! बहुत-बहुत शुक्रिया!

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Rajasthan Chief Minister meets Prime Minister
July 29, 2025

The Chief Minister of Rajasthan, Shri Bhajanlal Sharma met the Prime Minister, Shri Narendra Modi in New Delhi today.

The PMO India handle posted on X:

“CM of Rajasthan, Shri @BhajanlalBjp met Prime Minister @narendramodi.

@RajCMO”