मुझसे सीधा संवाद करेंगे। ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मैं पुराने समय के साथियों से मिल पा रहा हूं। आइए देखते है सबसे पहले किससे बातचीत का अवसर मिलता है।
प्रधानमंत्री जी : क्या नाम आपका?
लाभार्थी : सोलंकी बागतसंग बचुजी
प्रधानमंत्री जी : तो आप जब हमने ‘स्वागत’ शुरु किया तो तब सबसे पहले आए थे क्या।
लाभार्थी बचुजी : हाँ जी सर, सबसे पहले मैं आया था ।
प्रधानमंत्री जी : तो आप इतने जागृत कैसे बने, आप को पता कैसे चला कि ‘स्वागत’ में जाएंगे तो सरकारी अधिकारी को ही कुछ कहना हो तो...
लाभार्थी बचुजी : हाँ जी सर, उसमें ऐसा था कि दहेगाम तहसिल से सरकारी आवास योजाना का हफ्ते का वर्कओर्डर मुझे 20-11-2000 में मिला था। लेकिन मकान का बांधकाम मैंने प्लीन्ट तक किया और उसके बाद मुझे कोई अनुभव नहीं था कि 9 की दीवार बनाऊँ या 14 की दीवार बनाऊँ, उसके बाद में भूकंप आया तो मैं डर गया था कि मैं मकान बनाऊँगा वह 9 की दीवार से टिकेगा की नहीं। फिर मैंने अपने आप मेहनत से 9 की जगह 14 कि दीवार बनाई, जब मैंने दूसरे हफ्ते की माँग की तो मुझे ब्लॉक विकास अधिकारी ने कहाँ कि आपने 9 की जगह 14 कि दीवार बनाई है इसलिए आप को दूसरा हफ्ता नहीं मिलेगा, जो आपको पहला हफ्ता 8253 रूपये दिया गया है वह हफ्ता आप ब्लॉक के दफतर में ब्याज के साथ वापस भर दो। मैंने कितनी बार जिले में और ब्लॉक में भी फरियाद की फिर भी मुझे कोई जवाब नहीं मिला, इसलिए मैंने गांधीनगर जिले में जाँच की तो मुझे एक भाई ने कहाँ आप रोज यहाँ क्यूं आते हो तो मैंने कहाँ कि मेरे से 9 की जगह 14 की दीवार बन गई हो, उसकी वजह से मुझे सरकारी आवास का हफ्ता मिल नहीं रहा है, और परिवार के साथ रहता हूं मेरा मकान नहीं तो मैं क्या करूं, मुझे बहुत दिक्कत हो रही है इसलिए मैं यहाँ वहाँ दौड रहा हूं। तो मुझे वह भाई ने बोला कि काका आप एक काम करो माननीय श्री नरेन्द्रभाई मोदी साहब का सचिवालय में ‘स्वागत’ हर महीने गुरुवार को होता है तो आप वहाँ चले जाओ, इसलिए साहब में सीधा, सचिवालय तक पहुँच गया, और मैंने मेरी फरियाद सीधी आपको रूबरू मिलके कर दी। आपने मेरी बात पूरी शांति से सुनी और आपने भी मेरी बात का पूरी शांति से जवाब दिया था। और आपने जो भी अधिकारी को हुकुम किया था और उससे जो मैंने 9 की जगह 14 की दीवार बनाई थी उसके बाकी के हफ्ते मुझे मिलना शुरु हो गए और आज मैं मेरे खुद के मकान में मेरे परिवार 6 बच्चो के साथ आनंद से रहता हूं । इसलिए साहब आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
प्रधानमंत्री जी : भरतभाई आपका यह पहला अनुभव सुनकर मुझे पुराने दिन याद आ गए और 20 साल के बाद आपको मिलने का मौका मिला, परिवार में सब बच्चे पढ़ते है या क्या करते है ?
भरतभाई : साहब 4 लडकियों की शादी की है और 2 लडकियाँ की शादी अभी हुई नहीं वह अभी 18 साल से कम उम्र की हैं ।
प्रधानमंत्री जी : पर आपका घर वही अभी बराबर है कि सब अभी पुराना हो गया है 20 साल में?
भरतभाई : साहब, पहले तो छत पर से पानी गिरता था, पानी की भी दिक्कत थी, छत में से अभी भी मिट्टी गीर रही है, छत पक्की नहीं बनाई ।
प्रधानमंत्री जी : आपको सभी जमाई तो अच्छे मिले है ना?
भरतभाई : साहब, सब अच्छे मिले हैं।
प्रधानमंत्री जी : ठीक है चलो, सुखी रहो। लेकिन आप लोगो को ‘स्वागत’
कार्यक्रम के बारे में कहते थे कि नहीं कहते थे दूसरे लोगो को भेजते थे की नहीं ?
भरतभाई : जी साहब भेजता था, और कहता था कि मुख्यमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी ने मुझे संतोषजनक जवाब दिया और मुझे शांति से सुना और मेरा संतोषजनक कार्य किया, तो आपकी कोई भी प्रश्न हो तो आप ‘स्वागत’ कार्यक्रम में जा सकते हो, और आप ना जा सको तो मैं साथ में आऊँगा और आपको दफ्तर दिखाऊँगा ।
प्रधानमंत्री जी : ठीक है, भरतभाई आनंद हो गया।
अब कौन है दूसरे सज्जन अपने पास।
विनयकुमार : नमस्कार सर, मैं हूं चौधरी विनयकुमार बालुभाई, मैं तापी जिले का वाघमेरा गाँव से हूं।
प्रधानमंत्री जी : विनयभाई नमस्कार ।
विनयभाई : नमस्कार साहब।
प्रधानमंत्री जी : कैसे है आप।
विनयभाई : बस साहब, आपके आशीर्वाद से मजे में है ।
प्रधानमंत्री जी : आपको पता है न अब हम दिव्यांग कहते है आप सबको।
आपको भी लोग कहते होंगे गाँव में सम्मान के साथ
विनयभाई : हाँ कहते है।
प्रधानमंत्री जी : मुझे बराबर याद है कि आपने अपने हक के लिए इतनी लडाई लड़ी थी उस समय, जरा सबको सुनाओ कि आपकी लड़ाई उस समय क्या थी और आप आखिर में मुख्यमंत्री तक जाकर अपना हक लेके हटे। वह बात सभी को समझाइए।
विनयभाई : साहब, मेरा प्रश्न उस समय अपने पेरो पर खडा होना था। उस समय मैंने अल्पसंख्यक वित्त आयोग में आवेदन दिया था लोन के लिए, वह आवेदन मंजूर तो हुआ लेकिन समय पर मुझे चेक नहीं दिया गया, मैं बहुत परेशान हुआ उसके बाद एक दोस्त से मुझे जानकारी मिली कि तेरे प्रश्नो का हल ‘स्वागत’ कार्यक्रम में मिलेगा जो चलता है गांधीनगर में उसमें तेरे प्रश्न की प्रस्तुति करनी पडेगी। तो साहब में तापी जिले के वाघमेरा गाँव से मैं बस में बैठकर गांधीनगर आया और आपके कार्यक्रम का मैंने लाभ लिया। आपने मेरा प्रश्न सुना और आपने त्वरीत मुझे 39245 रूपये का चेक दिलवाया, वह चेक से मैंने 2008 में मेरे घर में जनरल स्टोर खोला, आज भी वह स्टोर कार्यरत है, मैं उसी से मेरा घर चला रहा हूं। साहब मैंने स्टोर चालू करने के दो साल में शादी भी करली आज अभी मेरी दो लडकियाँ है, और उसी स्टोर से मैं उन्हे पढा रहा हूं। बड़ी लडकी 8वीं क्लास में है और छोटी 6वीं क्लास में है। और घर परिवार बहुत अच्छी तरह से आत्मनिर्भर बना। और दो साल से मैं स्टोर के साथ-साथ अपनी पत्नी के साथ खेती काम भी कर रहा हूं और अच्छी खासी आमदनी हो रही है।
प्रधानमंत्री जी : स्टोर में क्या क्या बैचते हो, विनयभाई।
विनयभाई : अनाज, किराना की सारी चीजे बैचते है।
प्रधानमंत्री जी : हम जो वोकल फोर लोकल करते है, तो क्या आपके वहाँ भी सब वोकल फोर लोकल खरीदने आते है।
विनयभाई : जी साहब आते है। अनाज, दाल, चावल, चीनी सभी लेने के लिए आते है।
प्रधानमंत्री जी : अब हम ‘श्री अन्न’ की मूवमेंट चलाते है, बाजरा, ज्वार सभी लोग खाए, आपके वहाँ श्री अन्न की बिक्री होती है की नहीं ?
विनयभाई : हा साहब होती है।
प्रधानमंत्री जी : आप दूसरो को रोजगार देते हो कि नहीं या आप खुद ही अपनी पत्नी के साथ काम कर लेते हो।
विनयभाई : मजदूर लेने पडते हैं।
प्रधानमंत्री जी : मजदूर लेने पडते है अच्छा, किनते लोगों को आपके कारण रोज़गार मिला है।
विनयभाई : मेरे कारण 4-5 लोगों को खेत में काम करने का रोजगार मिला है।
प्रधानमंत्री जी : अब हम सभी को कहते है कि आप डिजिटल पेमेंट करो, तो आप वहाँ डिजिटल पेमेंट करते हो। मोबाइल फोन से पैसे लेना देना, क्यू आर कोड माँगते है, ऐसा कुछ करते हो।
विनयभाई : हा साहब, कई लोग आते हैं वो लोग मेरा क्यू आर कोड माँगते है मेरे खाते में पैसा डाल देते है।
प्रधानमंत्री जी : अच्छा है, यानी आपके गाँव तक पहुँच गया है सब।
विनयभाई : हा पहुँच गया है सब।
प्रधानमंत्री जी : विनयभाई आपकी विशेषता यह है कि आपने ‘स्वागत’ कार्यक्रम को सफल बनाया और ‘स्वागत’ कार्यक्रम में जो भी लाभ मिला आपसे उसकी बात दूसरे लोग भी पूछते होंगे। आपको कि आपने इतनी सारी हिम्मत कि मुख्यमंत्री तक पहुँच गए, अब सभी अफसरों को पता चल गया कि आप फरियाद करके आए हो तो, वो सब आपको परेशान करेंगे, ऐसा तो हुआ होगा बाद में।
विनयभाई : जी सर ।
प्रधानमंत्री जी : की बाद में रास्ता खुल गया था ।
विनयभाई : खुल गया था साहब।
प्रधानमंत्री जी : अब विनयभाई गाँव में दादागिरी करते होंगे कि मेरा तो सीधा मुख्यमंत्री के साथ संबंध है। ऐसा नहीं करते न ?
विनयभाई : जी नहीं सर।
प्रधानमंत्री जी : ठीक है विनयभाई आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं, आपने अच्छा किया कि लडकियों को पढ़ा रहे हो, बहुत पढ़ाना, ठीक है।
प्रधानमंत्री जी : क्या नाम है आपका?
राकेशभाई पारेख : राकेशभाई पारेख
प्रधानमंत्री जी : राकेशभाई पारेख, कहां सूरत जिले से आए है?
राकेशभाई पारेख : हां, सूरत से आया हूं।
प्रधानमंत्री जी : मतलब सूरत में या सूरत के आसपास में कहीं रहते है?
राकेशभाई पारेख : सूरत में अपार्टमेन्ट में रहता हूं।
प्रधानमंत्री जी : हां, जी बताइए आपका क्या प्रश्न है?
राकेशभाई पारेख : प्रश्न ये है कि 2006 में रेल आई थी उसमें बिल्डिंग उतार दिया गया, उसमें 8 मंजिल वाला बिल्डिंग था, जिसमें 32 फ्लेट्स और 8 दुकानें थी। वह जर्जरित हो गया था, इस वजह से बिल्डिंग उतार दिया गया, हमें उसमें परमिशन मिल नहीं रही थी। हम कॉर्पोरेशन में जाकर आएं, उसमें परमिशन मिलती नहीं थी। हम सब इकठ्ठे हुए, उस समय में हमें पता चला कि स्वागत कार्यक्रम में नरेन्द्र मोदी साहब उस समय मुख्यमंत्री थे, मैंने कंप्लेंट दिया, उस समय मुझे गामित साब मिले थे, उन्होंने मुझे कहा कि आपकी शिकायत मिली है और हम उसके लिए तुरंत आपको बुलाएंगे। जितना जल्द हो सके उतना आपको जल्द बुला लेंगे। उन्होंने कहा कि आपके पास घर नहीं रहा मैं इस बात से दुःखी हुं, बाद में मुझे दूसरे दिन बुला लिया। और स्वागत कार्यक्रम में मुझे आपके साथ मौका मिला है। उस समय आपने मुझे मंजूरी तो दे दी। मैं भाडे के मकान में रहता था। 10 साल भाडे के मकान में रहा। और मंजूरी मिल गई, फिर हमने पूरा बिल्डिंग नए सिरे से बनवाया। उसमें आपने स्पेशल केस में मंजूरी दे दी थी, हमारी मीटिंग हुई और सबको मीटिंग में इंवॉल्व करके पूरा बिल्डिंग खडा किया। और हम सब फिर से रहने लगे। 32 परिवार और 8 दुकान वाले आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री जी : पारेखजी आपने तो आपके साथ 32 परिवारों का भी भला किया। और 32 लोगों के परिवारों को आज सुख शांति से जीने का मौका दिया। ये 32 लोग परिवार कैसे रहते है, सुख में है ना सभी।
राकेशभाई पारेख : सुख में है सब और मैं थोड़ी तकलीफ में हूं साहब।
प्रधानमंत्री जी : सब मिलजुल कर रहते है?
राकेशभाई पारेख : हा सब मिलजुल कर रहते है।
प्रधानमंत्रीजी : और आप फिर तकलीफ में आ गए?
राकेशभाई पारेख : हा साहब आपने कहा था कि कभी तकलीफ आएं तो मेरे बंगले में आकर रहना। तो आपने कहा था कि बिल्डिंग बने नहीं तब तक मेरे बंगले में रहना, बिल्डिंग बना तब तक तो मैं भाडे के मकान में रहा, अब बिल्डिंग बनने के बाद घर में परिवार के साथ अभी शांति से रहता हूं, मेरे दो लड़के है, उनके और पत्नी के साथ शांति से रहता हूं।
प्रधानमंत्री जी : लड़के क्या पढ़ रहे हैं?
राकेशभाई पारेख : एक लड़का है वो नौकरी कर रहा है और दूसरा लड़का कुकींग का काम कर रहा है। होटल मैनेजमेंट का काम कहते है ना, अभी उससे ही घर चलता है, अभी मेरी नस दब जाने की वजह से तकलीफ है और चला नहीं जाता है। डेढ़ साल से इस तकलीफ में हूं।
प्रधानमंत्री जी : लेकिन योगा, आदि कुछ करते है कि नहीं?
राकेशभाई पारेख : हां साहब एक्सरसाइज आदि चल रहा है।
प्रधानमंत्री जी : हां इसमें तो ऑपरेशन की जल्दबाजी करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए, अब तो हमारा आयुष्मान कार्ड भी बनता है, आयुष्मान कार्ड बनाया है आपने? और पांच लाख तक का खर्च भी उसमें से निकल जाता है। और गुजरात सरकार की भी सुंदर योजनाएं है मां कार्ड की योजना है, इनका लाभ लेकर तकलीफ एक बार दूर कर दें।
राकेशभाई पारेख : हा साहब ठीक है।
प्रधानमंत्री जी : आपकी आयु इतनी ज्यादा नहीं कि आप ऐसे थक जाएं।
प्रधानमंत्री जी : अच्छा राकेशभाई आपने स्वागत द्वारा अनेक लोगों की मदद की। एक जागरुक नागरिक कैसे मदद कर सकता है। उसका आप उदाहरण बने है, मेरे लिए भी संतोष है कि आपको और आपकी बात को सरकार ने गंभीरता से लिया। सालों पहले जो प्रश्न का निराकरण हुआ, अभी आपके संतान भी सेटल हो रहे हैं। चलो मेरी तरफ से सभी को शुभकामनाएं कहना भाई।
साथियों,
इस संवाद के बाद मुझे इस बात का संतोष है कि हमने जिस उद्देश्य से स्वागत को शुरू किया था वो पूरी तरह से सफल हो रहा है। इसके जरिए लोग ना सिर्फ अपनी समस्या का हल पा रहे हैं बल्कि राकेश जी जैसे लोग अपने साथ ही सैकड़ो परिवारों की बात उठा रहे हैं। मेरा मानना है कि सरकार का व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि सामान्य मानवी उससे अपनी बातें साझा करें, उसे दोस्त समझे और उसी के द्वारा हम आगे बढ़ते हुए गुजरात में, और मेरी खुशी है कि आज भूपेन्द्र भाई भी हमारे साथ है। मैं देख रहा हूं कि जिलों में कुछ मंत्रीगण भी हैं, अधिकारीगण भी दिख रहे हैं अब तो काफी नए चेहरे हैं, मैं बहुत कम लोगों को जानता हूं।
गुजरात के करोड़ों नागरिकों की सेवा में समर्पित 'स्वागत', 20 वर्ष पूरे कर रहा है। और मुझे अभी-अभी कुछ लाभार्थियों से पुराने अनुभवों को सुनने का, पुरानी यादों को ताजा करने का मौका मिला और देख रहा हूं कितना कुछ पुराना आंखों के सामने से घूम गया। स्वागत की सफलता में कितने ही लोगों का अनवरत श्रम लगा है, कितने ही लोगों की निष्ठा लगी है। मैं इस अवसर पर उन सभी लोगों को धन्यवाद करता हूँ, उनका अभिनंदन करता हूँ।
साथियों,
कोई भी व्यवस्था जब जन्म लेती है, तैयार होती है, तो उसके पीछे एक विज़न और नीयत होती है। भविष्य में वो व्यवस्था कहाँ तक पहुंचेगी, उसकी ये नियति, End Result, उसी नीयत से तय होती है। 2003 में मैंने जब 'स्वागत' की शुरुआत की थी, तब मुझे गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ था। उसके पहले मेरा वर्षों का जीवन कार्यकर्ता के रूप में बीता था, सामान्य मानवीयों के बीच में ही अपना गुजारा हुआ था। मुख्यमंत्री बनने के बाद आमतौर पर लोग मुझे कहते थे, और आमतौर पर ये बोला जाता है हमारे देश में अनुभव के आधार पर लोग बोलते रहते हैं कि भई एक बार कुर्सी मिल जाती है ना फिर सब चीजें बदल जाती हैं, लोग भी बदल जाते हैं ऐसा मैं सुनता रहता था। लेकिन मैं मनोमन तय करके बैठता था कि मैं वैसा ही रहूंगा जैसा मुझे लोगों ने बनाया है। उनके बीच जो सीखा हूं, उनके बीच से मैंने जो अनुभव प्राप्त किए हैं, मैं किसी भी हालत में कुर्सी की मजबूरियों का गुलाम नहीं बनूंगा। मैं जनता जनार्दन के बीच रहूंगा, जनता जनार्दन के लिए रहूंगा। इसी दृढ़ निश्चय से State Wide Attention on Grievances by Application of Technology, यानी 'स्वागत' का जन्म हुआ। स्वागत के पीछे की भावना थी- सामान्य मानवी का लोकतान्त्रिक संस्थाओं में स्वागत! स्वागत की भावना थी- विधान का स्वागत, समाधान का स्वागत! और, आज 20 वर्ष बाद भी स्वागत का मतलब है- Ease of living, reach of governance! ईमानदारी से किए गए प्रयासों का परिणाम है कि गवर्नेंस के इस गुजरात मॉडल की पूरी दुनिया में अपनी एक पहचान बन गई। सबसे पहले इंटरनेशनल टेलीकॉम ऑर्गनाइज़ेशन ने इसे e-transparency और e-accountability का उत्कृष्ट उदाहरण बताया। उसके बाद यूनाइटेड नेशन्स ने भी स्वागत की तारीफ की। इसे यूएन का प्रतिष्ठित पब्लिक सर्विस अवार्ड भी मिला। 2011 में जब कांग्रेस की सरकार थी, गुजरात ने स्वागत की बदौलत e-governance में भारत सरकार का गोल्ड अवार्ड भी जीता। और ये सिलसिला लगातार चल रहा है।
भाइयों बहनों,
मेरे लिए स्वागत की सफलता का सबसे बड़ा अवार्ड ये है कि इसके जरिए हम गुजरात के लोगों की सेवा कर पाये। स्वागत के तौर पर हमने एक practical system तैयार किया। ब्लॉक और तहसील लेवेल पर जन-सुनवाई के लिए स्वागत की पहली व्यवस्था की। उसके बाद डिस्ट्रिक्ट लेवेल पर जिलाधिकारी को ज़िम्मेदारी दी गई। और, राज्य स्तर पर ये ज़िम्मेदारी मैंने खुद अपने कंधो पर ली थी। और इसका मुझे खुद को भी बहुत लाभ हुआ। जब मैं सीधी जन-सुनवाई करता था, तो मुझे आखिरी छोर पर बैठे हुए लोग हैं, सरकार से उनको लाभ हो रहा है कि नहीं हो रहा है, लाभ उनकों पहुंच रहा है कि नहीं पहुंच रहा है, सरकार की नीतियों के कारण उनकी कोई मुसीबतें बढ़ तो नहीं रही हैं, किसी स्थानीय सरकारी अधिकारी की नियत के कारण वो परेशान तो नहीं है, उसके हक का है लेकिन कोई और छीन रहा है, उसके हक का है लेकिन उसको मिल नहीं रहा है। ये सारे फीडबैक मुझे बहुत आसानी से नीचे से मिलने लगे। और स्वागत की ताकत तो इतनी बढ़ गई, उसकी प्रतिष्ठा इतनी बढ़ गई कि गुजरात का सामान्य नागरिक भी बड़े से बड़े अफसर के पास जाता था और अगर उसका कोई सुनता नहीं, काम नहीं होता वो बोलता था- ठीक है आपको सुनना है तो सुनो मैं तो स्वागत में जाऊंगा। जैसे ही वो कहता था कि मैं स्वागत में जाऊंगा अफसर खड़े हो जाते थे उसको कहते आओ बैठो-बैठो और उसकी शिकायत ले लेते थे।
स्वागत ने इतनी प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। और मुझे जन-सामान्य की शिकायतों की, मुसीबतों की, तकलीफों की सीधी जानकारी मिलती थी। और सबसे ज्यादा, मुझे उनकी तकलीफ़ों को हल करके अपने कर्तव्यपालन का एक संतोष भी होता था। और बात यहां से रूकती नहीं थी। स्वागत कार्यक्रम तो महीने में एक दिन होता था लेकिन काम महीने भर करना पड़ता था क्योंकि सैकड़ो शिकायत आती थी और मैं इसका analysis करता था। क्या कोई ऐसा डिपार्टमेंट है जिसकी बार-बार शिकायत आ रही है, कोई ऐसा अफसर है जिसकी बार-बार शिकायत आ रही है, कोई ऐसा क्षेत्र है जहां बस शिकायतें-शिकायत भरी पड़ी हैं। क्या नीतियों की गड़बड़ के कारण हो रहा है, किसी व्यक्ति की नियत के कारण गड़बड़ हो रहा है। सारी चीजों का हम analysis करते थे। आवश्यकता पड़े तो नियम बदलते थे, नीतियां बदलते थे ताकि सामान्य को नुकसान न हो। और अगर व्यक्ति के कारण परेशानी होती थी तो व्यक्ति की भी व्यवस्था करते थे और उसके कारण स्वागत ने जनसामान्य के अंदर एक गजब का विश्वास पैदा किया था और मेरा तो विश्वास है लोकतंत्र का सबसे बड़ा तराजू जो है, लोकतंत्र की सफलता को तोलने का। एक महत्वपूर्ण तराजू है कि उस व्यवस्था में public grievance redressal कैसा है, जनसामान्य की सुनवाई की व्यवस्था क्या है, उपाय कि व्यवस्था क्या है। ये लोकतंत्र की कसौटी है और आज जब मैं देखता हूँ कि स्वागत नाम का ये बीज आज इतना विशाल वटवृक्ष बन गया है, तो मुझे भी गर्व होता है, संतोष होता है। और मुझे खुशी है कि मेरे पुराने साथी जो उस समय स्वागत कार्यक्रम का संभालते थे, मेरे सीएम ऑफिस में ए.के शर्मा उन्होंने आज economic times में इस स्वागत कार्यक्रम पर एक अच्छा आर्टिकल भी लिखा है, उस समय के अनुभव लिखें। आजकल तो वो भी मेरी दुनिया में आ गए है वो भी राजनीति में आ गए, मंत्री बन गए उत्तर प्रदेश में लेकिन उस समय वो एक सरकारी अफसर के रूप में स्वागत के मेरे कार्यक्रम को संभालते थे।
साथियों,
हमारे देश में दशकों से ये मान्यता चली आ रही थी कि कोई भी सरकार आए, उसे केवल बनी बनाई लकीरों पर ही चलते रहना होता है, वो समय पूरा कर देते थे, ज्यादा से ज्यादा कही जाकर फीते काटना, दीये जलाना बात पूरी। लेकिन, स्वागत के माध्यम से गुजरात ने इस सोच को भी बदलने का काम किया है। हमने ये बताया कि गवर्नेंस केवल नियम क़ानूनों और पुरानी लकीरों तक ही सीमित नहीं होती। गवर्नेंस होती है- इनोवेशन्स से! गवर्नेंस होती है- नए ideas से! गवर्नेंस से प्राणहीन व्यवस्था नहीं है। गवर्नेंस से जीवंत व्यवस्था होती है, गवर्नेंस एक संवेदनसील व्यवस्था होती है, गवर्नेंस ये लोगों की जिंदगियों से, लोगों के सपनों से, लोगों के संकल्पों से जुड़ी हुई एक प्रगतिशील व्यवस्था होती है। 2003 में जब स्वागत की शुरुआत हुई थी, तब सरकारों में टेक्नालजी और e-governance को उतनी प्राथमिकता नहीं मिलती थी। हर काम के लिए कागज बनते थे, फाइलें चलती थीं। चलते-चलते फाइलें कहाँ तक पहुँचती थीं, कहाँ गुम हो जाती थीं, किसी को पता नहीं होता था। अधिकतर, एक बार एप्लिकेशन देने के बाद फरियादी की बाकी जिंदगी उस कागज को खोजने में ही निकल जाती थी। विडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसी व्यवस्था से भी लोग बहुत कम परिचित थे। इन परिस्थितियों में, गुजरात ने futuristic ideas पर काम किया। और आज, स्वागत जैसी व्यवस्था गवर्नेंस के कितने ही सोल्युशंस के लिए प्रेरणा बन चुकी है। कितने ही राज्य अपने यहाँ इस तरह की व्यवस्था पर काम कर रहे हैं। मुझे याद है कई राज्य के delegation आते थे, उसका अध्धयन करते थे और अपने यहां शुरू करते थे। जब आपने मुझे यहां दिल्ली भेज दिया तो केंद्र में भी हमने सरकार के कामकाज की समीक्षा के लिए 'प्रगति' नाम से एक व्यवस्था बनाई है। पिछले 9 वर्षों में देश के तेज विकास के पीछे प्रगति की एक बड़ी भूमिका है। ये concept भी स्वागत के idea पर ही आधारित है। प्रधानमंत्री के तौर पर प्रगति की बैठकों में, मैं करीब 16 लाख करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स की समीक्षा कर चुका हूं। इसने देश की सैकड़ों परियोजनाओं को गति देने का काम किया है। अब तो प्रगति का प्रभाव ये है कि जैसे ही कोई परियोजना इसमें समीक्षा के लिए लिस्ट पे आती है, उससे जुड़े अवरोध सभी राज्य धमाधाम उसको समाप्त कर देते है ताकि जब actually मेरे सामने आए तो कहे कि साहब 2 दिन पहले वो काम हो गया है।
साथियों,
जैसे एक बीज एक वृक्ष को जन्म देता है, उस वृक्ष से सैकड़ों शाखाएँ निकलती हैं, हजारों बीजों से हजारों नए वृक्ष पैदा होते हैं, वैसे ही, मुझे विश्वास है, स्वागत का ये विचार बीज गवर्नेंस में हजारों नए इनोवेशन्स को जन्म देगा। ये public oriented गवर्नेंस का एक मॉडल बनकर ऐसे ही जनता की सेवा करता रहेगा। इसी विश्वास के साथ, 20 वर्ष इस तारीख को याद रखकर के फिर से एक बार मुझे आप सबके बीच आने का आपने अवसर दिया क्योंकि मैं तो काम करते-करते आगे बढ़ता चला गया अब इसको 20 साल हो गए जब आपका इस कार्यक्रम का निमंत्रण आया तब पता चला। लेकिन मुझे खुशी हुई कि गवर्नेंस के initiative का भी इस प्रकार से उत्सव मनाया जाए ताकि उसमें एक नए प्राण आते है, नई चेतना आती है। अब स्वागत कार्यक्रम और अधिक उत्साह से और अधिक उमंग से और अधिक विश्वसनीयता से आगे बढ़ेगा ये मेरा पक्का विश्वास है। मैं सभी मेरे गुजरात के प्यारे भाइयों बहनों को अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। और एक हफ्ते के बाद 1 मई गुजरात का स्थापना दिवस भी होगा और गुजरात तो अपने आप में स्थापना दिवस को भी विकास का अवसर बना देता है, विकास का उत्सव मना देता है तो बड़ी धूमधाम से तैयारियां चलती होगी। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। बहुत बहुत बधाई।