"भारत में जनभागीदारी और जन आंदोलन से जल संरक्षण और प्रकृति संरक्षण का अनूठा अभियान चल रहा है"
"जल संरक्षण केवल नीति नहीं, एक प्रयास भी है और पुण्य भी है"
"भारतीयों की संस्कृति ऐसी है, जिसमें जल को भगवान का रूप, नदियों को
देवी और सरोवरों को देवताओं का निवास माना जाता है"
"हमारी सरकार ने समग्र समाज और समग्र सरकार के दृष्टिकोण से काम किया है"
"जल संरक्षण और प्रकृति संरक्षण भारत की सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा हैं"
"जल संरक्षण केवल नीतियों का मामला नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिबद्धता का भी मामला है"
"हमें देश में भविष्‍य के लिए जल संरक्षण को सुरक्षित करने के लिए 'रिड्यूस, रीयूज, रिचार्ज और रीसाइकिल' के मंत्र को अपनाना होगा"
"हम सब मिलकर भारत को पूरी मानवता के लिए जल संरक्षण का प्रतीक बनाएंगे"

गुजरात के मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्रीय मंत्रिपरिषद में मेरे साथी सी. आर. पाटिल, निमुबेन, गुजरात सरकार के मंत्रीगण, सांसदगण, विधायकगण, देश के सभी जिलों के डीएम, कलेक्टर, अन्य महानुभाव और मेरे सभी भाइयों एवं बहनों!

आज गुजरात की धरती से जलशक्ति मंत्रालय द्वारा एक अहम अभियान का शुभारंभ हो रहा है। उसके पूर्व पिछले दिनों देश के हर कोने में जो वर्षा का तांडव हुआ, देश का शायद ही कोई इलाका होगा, जिसको इस मुसीबत से संकट को झेलना ना पड़ा हो। मैं कई वर्षों तक गुजरात का मुख्यमंत्री रहा, लेकिन एक साथ इतने सभी तहसीलों में इतनी तेज बाारिश मैंने कभी ना सुना था, ना देखा था। लेकिन इस बार गुजरात में बहुत बड़ा संकट आया। सारी व्यवस्थाओं की ताकत नहीं थी कि प्रकृति के इस प्रकोप के सामने हम टिक पाएं। लेकिन गुजरात के लोगों का अपना एक स्वभाव है, देशवासियों का स्वभाव है, सामर्थ्य है कि संकट की घड़ी में कंधे से कंधा मिलाकर के हर कोई, हर किसी की मदद करता है। आज भी देश के कई भाग ऐसे हैं, जो भयंकर वर्षा के कारण परेशानियों से गुजर रहे हैं।

साथियों,

जल-संचय, ये केवल एक पॉलिसी नहीं है। ये एक प्रयास भी है, और यूं कहें तो ये एक पुण्य भी है। इसमें उदारता भी है, और उत्तरदायित्व भी है। आने वाली पीढ़ियाँ जब हमारा आंकलन करेंगी, तो पानी के प्रति हमारा रवैया, ये शायद उनका पहला पैरामीटर होगा। क्योंकि, ये केवल संसाधनों का प्रश्न नहीं है। ये प्रश्न जीवन का है, ये प्रश्न मानवता के भविष्य का है। इसीलिए, हमने sustainable future के लिए जिन 9 संकल्पों को सामने रखा है, उनमें जल-संरक्षण पहला संकल्प है। मुझे खुशी है, आज इस दिशा में जनभागीदारी के जरिए एक और सार्थक प्रयास शुरू हो रहा है। मैं इस अवसर पर, भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय को, गुजरात सरकार को, और इस अभियान में भाग ले रहे देश के सभी लोगों को शुभकामनाएँ देता हूँ।

साथियों,

आज जब पर्यावरण और जल-संरक्षण की बात आती है, तो कई सच्चाइयों का हमेशा ध्यान रखना है। भारत में दुनिया के कुल fresh water का सिर्फ 4 प्रतिशत ही है। हमारे गुजरात के लोग समझेंगे सिर्फ 4 प्रतिशत ही है। कितनी ही विशाल नदियां भारत में हैं, लेकिन हमारे एक बड़े भूभाग को पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है। कई जगहों पर पानी का स्तर लगातार गिर रहा है। क्लाइमेट चेंज इस संकट को और गहरा रहा है।

और साथियों,

इस सबके बावजूद, ये भारत ही है जो अपने साथ-साथ पूरे विश्व के लिए इन चुनौतियों के समाधान खोज सकता है। इसकी वजह है भारत की पुरातन ज्ञान परंपरा। जल संरक्षण, प्रकृति संरक्षण ये हमारे लिए कोई नए शब्द नहीं है, ये हमारे लिए किताबी ज्ञान नहीं है। ये हालात के कारण हमारे हिस्से आया हुआ काम भी नहीं है। ये भारत की सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा है। हम उस संस्कृति के लोग हैं, जहां जल को ईश्वर का रूप कहा गया है, नदियों को देवी माना गया है। सरोवरों को, कुंडों को देवालय का दर्जा मिला है। गंगा हमारी माँ है, नर्मदा हमारी माँ है। गोदावरी और कावेरी हमारी माँ हैं। ये रिश्ता हजारों वर्षों का है। हजारों वर्ष पहले भी हमारे पूर्वजों को जल और जल-संरक्षण का महत्व पता था। सैकड़ों साल पुराने हमारे ग्रन्थों में कहा गया है- अद्भिः सर्वाणि भूतानि, जीवन्ति प्रभवन्ति च। तस्मात् सर्वेषु दानेषु, तयोदानं विशिष्यते॥ अर्थात्, सब प्राणी जल से ही उत्पन्न हुये हैं, जल से ही जीते हैं। इसलिए, जल-दान, दूसरों के लिए पानी बचाना, ये सबसे बड़ा दान है। यही बात सैकड़ों साल पहले रहीमदास ने भी कही थी। हम सबने पढ़ा है। रहीमदास ने कहा था- रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून! जिस राष्ट्र का चिंतन इतना दूरदर्शी और व्यापक रहा हो, जलसंकट की त्रासदी के हल खोजने के लिए उसे दुनिया में सबसे आगे खड़ा होना ही होगा।

साथियों,

आज का ये कार्यक्रम गुजरात की उस धरती पर प्रारंभ हो रहा है, जहां जन-जन तक पानी पहुंचाने और पानी बचाने की दिशा में कई सफल प्रयोग हुए हैं। दो-ढाई दशक पहले तक सौराष्ट्र के क्या हालात थे, ये हम सबको याद है, उत्तर गुजरात की क्या दशा थी हमें पता है। सरकारों में जल संचयन को लेकर जिस विजन की आवश्यकता होती है, पहले के समय में उसकी भी कमी थी। तभी मेरा संकल्प था कि मैं दुनिया को बता के रहूँगा कि जल संकट का भी समाधान हो सकता है। मैंने दशकों से लटके पड़े सरदार सरोवर डैम का काम पूरा करवाया। गुजरात में सौनी योजना शुरू हुई। जहां पानी की अधिकता थी, वहाँ से पानी, जलसंकट वाले इलाकों में पहुंचाया गया। विपक्ष के लोग तब भी हमारा मजाक उड़ाते थे कि पानी के जो पाइप बिछाए जा रहे हैं उनमें से हवा निकलेगी, हवा। लेकिन आज गुजरात में हुए प्रयासों के परिणाम सारी दुनिया के सामने हैं। गुजरात की सफलता, गुजरात के मेरे अनुभव मुझे ये भरोसा दिलाते हैं कि हम देश को जल-संकट से निजात दिला सकते हैं।

साथियों,

जल-संरक्षण केवल नीतियों का नहीं, बल्कि सामाजिक निष्ठा का भी विषय है। जागरूक जनमानस, जनभागीदारी और जनआंदोलन ये इस अभियान की सबसे बड़ी ताकत है। आप याद करिए, पानी के नाम पर, नदियों के नाम पर पहले भी दशकों तक हजारों करोड़ की योजनाएँ आती रहीं। लेकिन, परिणाम इन्हीं 10 वर्षों में देखने को मिले हैं। हमारी सरकार ने whole of society और whole of government की approach के साथ काम किया है। आप 10 वर्षों की सभी बड़ी योजनाओं को देखिए। पानी से जुड़े विषयों पर पहली बार silos को तोड़ा गया। हमने whole of the government के कमिटमेंट पर पहली बार एक अलग जलशक्ति मंत्रालय बनाया। जल-जीवन मिशन के रूप में पहली बार देश ने 'हर घर जल' इसका संकल्प लिया। पहले देश के केवल 3 करोड़ घरों में पाइप से पानी पहुंचता था। आज देश के 15 करोड़ से अधिक ग्रामीण घरों को पाइप से पानी मिलने लगा है। जल-जीवन मिशन के जरिए देश के 75 प्रतिशत से ज्यादा घरों तक नल से साफ पानी पहुँच चुका है। जल-जीवन मिशन की ये ज़िम्मेदारी स्थानीय जल समितियां संभाल रही हैं। और जैसा गुजरात में पानी समिति में महिलाओं ने कमाल किया था, वैसे ही पूरे देश में अब पानी समिति में महिलाएं शानदार काम कर रही हैं। इसमें कम से कम 50 प्रतिशत भागीदारी गाँव की महिलाओं की है।

भाइयों और बहनों,

आज जलशक्ति अभियान एक राष्ट्रीय mission बन चुका है। पारंपरिक जलस्रोतों का renovation हो, नए structures का निर्माण हो, stakeholders से लेकर सिविल सोसाइटी और पंचायतों तक, हर कोई इसमें शामिल है। जनभागीदारी के जरिए ही हमने आज़ादी के अमृत महोत्सव में हर जिले में अमृत सरोवर बनाने का काम भी शुरू किया था। इसके तहत देश में जनभागीदारी से 60 हजार से ज्यादा अमृत सरोवर बने। आप कल्पना कर सकते हैं देश की भावी पीढ़ी के लिए ये कितना बड़ा काम है। इसी तरह, ग्राउंड वॉटर के रीचार्ज के लिए हमने अटल भूजल योजना शुरू की। इसमें भी जल स्रोतों के मैनेजमेंट की ज़िम्मेदारी गाँव में समाज को ही दी गई है। 2021 में हमने Catch the rain कैम्पेन शुरू किया। आज शहरों से लेकर गाँवों तक, catch the rain से लोग बड़ी संख्या में जुड़ रहे हैं। 'नमामि गंगे' योजना का भी उदाहरण हमारे सामने है। 'नमामि गंगे' करोड़ों देशवासियों के लिए एक भावनात्मक संकल्प बन गया है। हमारी नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए लोग रूढ़ियों को भी छोड़ रहे हैं, अप्रासंगिक रीतियों को भी बदल रहे हैं।

साथियों,

आप सब जानते हैं, मैंने पर्यावरण के लिए देशवासियों से 'एक पेड़ माँ के नाम' लगाने की अपील की है। जब वृक्ष लगते हैं तो ग्राउंड वॉटर लेवेल तेजी से बढ़ता है। बीते कुछ सप्ताह में ही माँ के नाम पर देश में करोड़ों पेड़ लगाए जा चुके हैं। ऐसे कितने ही अभियान हैं, कितने ही संकल्प हैं, 140 करोड़ देशवासियों की भागीदारी से आज ये जन-आंदोलन बनते जा रहे हैं।

साथियों,

जल-संचयन के लिए आज हमें reduce, reuse, recharge और recycle के मंत्र पर बढ़ने की जरूरत है। यानी, पानी तब बचेगा जब हम पानी का दुरुपयोग रोकेंगे- reduce करेंगे। जब हम पानी को reuse करेंगे, जब हम जलस्रोतों को recharge करेंगे, और दूषित जल को recycle करेंगे। इसके लिए हमें नए तौर-तरीकों को अपनाना होगा। हमें इनोवटिव होना होगा, टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना होगा। हम सब जानते हैं कि हमारी पानी की जरूरतों का 80 प्रतिशत हिस्सा, खेती के कामों में आता है। इसलिए, sustainable agriculture की दिशा में हमारी सरकार drip irrigation जैसी तकनीकों को लगातार बढ़ा रही है। Per drop more crop जैसे अभियान इनसे पानी की बचत भी हो रही है, कम पानी वाले इलाकों में किसानों की आय भी बढ़ रही है। सरकार दलहन, तिलहन और मिलेट्स जैसी कम पानी की खपत वाली फसलों की खेती को भी बढ़ावा दे रही है। कुछ राज्य जल-संरक्षण के लिए वैकल्पिक फसलों पर किसानों को incentive भी दे रहे हैं। मेरा आग्रह है, इन प्रयासों को और गति देने के लिए सभी राज्यों को साथ आना चाहिए, मिशन मोड में काम करना चाहिए। खेतों के पास तालाब-सरोवर बनाना, रीचार्ज वेल बनाना हमें कई नई तकनीक के साथ ऐसे पारंपरिक ज्ञान को भी बढ़ावा देना होगा।

साथियों,

साफ पानी की उपलब्धता, जल संरक्षण की सफलता, इससे एक बहुत बड़ी वॉटर इकोनॉमी भी जुड़ी है। जैसे जल जीवन मिशन ने लाखों लोगों को रोजगार और स्वरोजगार के मौके दिए हैं। बड़ी संख्या में इंजीनियर्स, प्लंबर्स, इलेक्ट्रिशियन्स और मैनेजर्स जैसी जॉब्स लोगों को मिली हैं। WHO का आकलन है कि हर घर पाइप से जल पहुँचने से देश के लोगों के करीब साढ़े 5 करोड़ घंटे बचेंगे। ये बचा हुआ समय विशेषकर हमारी बहनों-बेटियों का समय फिर सीधे देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में लगेगा। वॉटर इकोनॉमी का एक पहलू, अहम पहलू हेल्थ भी है- आरोग्य। रिपोर्ट्स कहती हैं जल जीवन मिशन से सवा लाख से ज्यादा बच्चों की असमय मौत भी रोकी जा सकेगी। हम हर साल 4 लाख से ज्यादा लोगों को डायरिया जैसी बीमारियों से भी बचा पाएंगे यानि बीमारियों पर लोगों का जो खर्च होता था, वो भी कम हुआ है।

साथियों,

जनभागीदारी के इस मिशन में बहुत बड़ा योगदान हमारे उद्यम क्षेत्र का भी है। आज मैं उन इंडस्ट्रीज को भी धन्यवाद दूंगा, जिन्होंने net zero liquid discharge standards और water recycling goals को पूरा किया है। कई industries ने corporate social responsibilities के तहत जल संरक्षण के काम शुरू किए हैं। गुजरात ने जल संरक्षण के लिए CSR का इस्तेमाल करने का एक नया कीर्तिमान बनाया है। सूरत, वलसाड, डांग, तापी, नवसारी मुझे बताया गया है कि इस सब जगहों पर CSR initiatives की मदद से करीब 10 हजार बोरवेल रिचार्ज स्ट्रक्चर्स का काम पूरा हुआ है। अब 'जल संचय-जन भागीदारी अभियान' के माध्यम से जलशक्ति मंत्रालय और गुजरात सरकार ने साथ मिलकर 24 हजार और ऐसे स्ट्रक्चर्स बनाने का अभियान शुरू किया है। ये अभियान अपने आप में एक ऐसा मॉडल है, जो भविष्य में अन्य राज्यों को भी ऐसा प्रयास करने की प्रेरणा देगा। मुझे आशा है, हम साथ मिलकर भारत को जल संरक्षण की दिशा में पूरी मानवता के लिए एक प्रेरणा बनाएँगे। इसी विश्वास के साथ, मैं आप सभी को एक बार फिर इस अभियान की सफलता के लिए अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद।

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प्रधानमंत्री 24 नवंबर को 'ओडिशा पर्व 2024' में हिस्सा लेंगे
November 24, 2024

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 24 नवंबर को शाम करीब 5:30 बजे नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में 'ओडिशा पर्व 2024' कार्यक्रम में भाग लेंगे। इस अवसर पर वह उपस्थित जनसमूह को भी संबोधित करेंगे।

ओडिशा पर्व नई दिल्ली में ओडिया समाज फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक प्रमुख कार्यक्रम है। इसके माध्यम से, वह ओडिया विरासत के संरक्षण और प्रचार की दिशा में बहुमूल्य सहयोग प्रदान करने में लगे हुए हैं। परंपरा को जारी रखते हुए इस वर्ष ओडिशा पर्व का आयोजन 22 से 24 नवंबर तक किया जा रहा है। यह ओडिशा की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करते हुए रंग-बिरंगे सांस्कृतिक रूपों को प्रदर्शित करेगा और राज्य के जीवंत सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक लोकाचार को प्रदर्शित करेगा। साथ ही विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख पेशेवरों एवं जाने-माने विशेषज्ञों के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय सेमिनार या सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा।