कार्यक्रम में उपस्थित मेरे सहयोगी श्री जी. किशन रेड्डी जी, अर्जुनराम मेघवाल जी, मीनाक्षी लेखी जी, डायना केलॉग जी, दुनिया के विभिन्न देशों से आए अतिथिगण, कला जगत के सभी गणमान्य साथियों, देवियों और सज्जनों !
लाल किले का ये प्रांगण, अपने आप में बहुत ऐतिहासिक है। ये किला केवल इमारत नहीं है, ये एक इतिहास है। आजादी के पहले और आजादी के बाद कितनी ही पीढ़ियाँ गुजर गईं, लेकिन लाल किला अडिग है, अमिट है। इस वर्ल्ड हेरिटेज साइट लाल किले में आप सभी का बहुत-बहुत अभिनंदन है।
साथियों,
हर राष्ट्र के पास उसके अपने प्रतीक होते हैं जो विश्व को उसके अतीत से और उसके मूल्यों से परिचित करवाते हैं। और, इन प्रतीकों को गढ़ने का काम राष्ट्र की कला, संस्कृति और वास्तु का होता है। राजधानी दिल्ली तो ऐसे ही कितने प्रतीकों का केंद्र है, जिनमें हमें भारतीय वास्तु की भव्यता के दर्शन होते हैं। इसलिए, दिल्ली में आयोजित हो रहे ‘इंडिया आर्ट आर्किटेक्चर एंड डिज़ाइन बियनाले’ का ये आयोजन कई मायनों में खास है। मैं अभी यहाँ बनाए गए पवेलियन्स देख रहा था, और मैं आपकी क्षमा भी मांगता हूं कि मैं लेट भी इसी के कारण आया कि वहां एक से बढ़कर ऐसे देखने योग्य, समझने योग्य चीजें हैं कि मुझे आने में विलंब हो गया, और फिर भी मैं 2-3 स्थान तो छोड़ने पड़े मुझे। इन पवेलियन्स में कलर्स भी हैं, creativity भी है। इसमें कल्चर भी है, और community connect भी है। मैं इस सफल शुरुआत के लिए संस्कृति मंत्रालय, उसके सभी अधिकारी, इसमें प्रतिभाग कर रहे सभी देशों को, और आप सभी को बधाई देता हूँ। हमारे यहां कहा जाता है कि किताब जो है वो दुनिया देखने की एक छोटी सी window के रूप में वो शुरूआत करता है। मुझे लगता है कला मानव मन के भीतर की यात्रा का महामार्ग है।
साथियों,
भारत हजारों वर्ष पुराना राष्ट्र है। एक समय था जब दुनिया में भारत की आर्थिक समृद्धि के किस्से कहे जाते थे। आज भी भारत की संस्कृति, हमारी प्राचीन धरोहरें पूरी दुनिया के पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। आज देश ‘विरासत पर गर्व’ इस भावना को लेकर अपने उस गौरव को फिर से आगे बढ़ा रहा है। आज art और architecture से जुड़े हर क्षेत्र में आत्मगौरव की भावना से काम हो रहा है। चाहे केदारनाथ और काशी जैसे हमारे सांस्कृतिक केन्द्रों का विकास हो, महाकाल महालोक जैसे पुनर्निर्माण हों या आजादी के अमृतकाल में, भारत सांस्कृतिक समृद्धि के नए आयाम गढ़ रहा है, इसके लिए ठोस प्रयास कर रहा है। भारत में हो रहा ये बियनाले इस दिशा में एक और शानदार कदम है। इसके पहले हमने देखा है, यहां दिल्ली में ही International Museum Expo हुआ था। अगस्त में Festival of Libraries का आयोजन भी किया गया था। इन कार्यक्रमों के जरिए हमारा प्रयास है कि भारत में ग्लोबल कल्चरल initiative को संस्थागत बनाया जाए, उसको institutionalized किया जाए। एक आधुनिक व्यवस्था बनाई जाए। हम चाहते हैं कि वेनिस, साओ पाउलो, सिंगापुर, सिडनी, शारजाह जैसे बियनाले और दुबई-लंदन जैसे आर्ट फेयर्स की तरह दुनिया में भारत के आयोजनों की भी बड़ी पहचान बने। और इसकी जरूरत इसलिए भी होती है कि आज मानव जीवन पर टेक्नोलॉजी का प्रभाव इतना बढ़ गया है और कोई भी दूर का जो देखता है वो नहीं चाहेगा कि उसका समाज रोबोट हो जाए। हमें रोबोट तैयार नहीं करने हैं, हमें इंसान बनाने हैं। और उसके लिए संवेदनाएं चाहिए, उम्मीद चाहिए, सद्भावना चाहिए, उमंग चाहिए, उत्साह चाहिए। आशा-निराशा के बीच जीने के तरीके चाहिए। ये सारी चीजें कला और संस्कृति के माध्यम से पैदा होती हैं। जोड़-तोड़ के लिए टेक्नोलॉजी बहुत तेज काम कर सकती है। और इसलिए इस प्रकार की चीजें मानव की भीतर के सामर्थ्य को जानना-पहचानना, उसे जोड़ना इसके लिए एक बहुत बड़ा सहारा देती है।
और साथियों,
अपने इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए ही आज ‘आत्मनिर्भर भारत सेंटर फॉर डिज़ाइन’ का लोकार्पण भी हुआ है। ये सेंटर भारत की unique और rare crafts को, दुर्लभ कलाओं को, आगे बढ़ाने के लिए मंच देगा। ये कारीगरों और डिज़ाइनर्स को साथ लाने, मार्केट के हिसाब से उन्हें इनोवेशन करने में मदद करेगा। इससे कारीगरों को डिज़ाइन डेवलपमेंट की भी जानकारी मिलेगी, और वो डिजिटल मार्केटिंग में भी पारंगत होंगे। और हम जानते हैं, भारतीय शिल्पियों में इतनी प्रतिभा है कि आधुनिक जानकारी और संसाधनों के साथ वो पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ सकते हैं।
Friends,
भारत में 5 शहरों में कल्चरल स्पेस बनाने की शुरुआत होना भी एक ऐतिहासिक कदम है। दिल्ली के साथ-साथ कोलकाता, मुंबई, अहमदाबाद और वाराणसी में बनने वाले ये कल्चरल स्पेस, इन शहरों को सांस्कृतिक रूप से और समृद्ध करेंगे। ये सेंटर, लोकल आर्ट को enrich करने के लिए innovative ideas को भी आगे बढ़ाएंगे। आप सभी ने अगले 7 दिनों के लिए 7 महत्वपूर्ण थीम्स भी तय की हैं। इसमें ‘देशज भारत डिज़ाइन’ और ‘समत्व’, इन थीम्स को हमें एक मिशन के रूप में आगे लेकर चलना होगा। देशज यानी indigenous, indigenous डिज़ाइन को enrich करने के लिए ये जरूरी है कि हमारे युवाओं के लिए अध्ययन और रिसर्च का हिस्सा बने। समत्व थीम वास्तु के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को सेलिब्रेट करती है। मुझे विश्वास है, नारीशक्ति की कल्पनाशक्ति, उनकी रचनात्मकता इस क्षेत्र को नई ऊंचाई पर लेकर जाएगी।
साथियों,
भारत में कला को, रस और रंगों को जीवन का पर्याय, synonym of life माना गया है। हमारे पूर्वजों ने तो यहाँ तक कहा है कि- साहित्य संगीत कला विहीनः, साक्षात् पशुः पुच्छ विषाण हीनः। अर्थात्, मनुष्य और दूसरे जीव जंतुओं में साहित्य, संगीत और कला का ही मुख्य अंतर है। यानी, सोने-जागने और पेट भरने की आदतें अपनी स्वाभाविक होती हैं। लेकिन, ये कला, साहित्य और संगीत ही हैं जो मनुष्य के जीवन में रस घोलते हैं, उसे खास बनाते हैं। इसीलिए, हमारे यहाँ जीवन की अलग-अलग जरूरतों को, अलग-अलग दायित्वों को, चतुसाष्ट कला, 64 arts से उसे जोड़ा गया है। जैसे कि, गीत-संगीत के लिए वाद्य, नृत्य और गायन कलाएं हैं। इनमें भी water waves आदि पर आधारित ‘उदक-वाद्यम्’ यानी जल वाद्य जैसी specific arts भी हैं। हमारे यहां कितने ही तरह के सेंट्स या परफ्यूम बनाने के लिए ‘गन्ध-युक्तिः’ कला है। मीनाकारी और नक्काशी के लिए ‘तक्षकर्म’ कला सिखाई जाती है। कढ़ाई-बुनाई के सौन्दर्य की बारीकियों को सिखाने के लिए ‘सूचीवान-कर्माणि’ कला है। हमारे यहां ये सब काम कितने perfection के साथ किए जाते थे, इसका अंदाजा आप भारत में बनने वाले प्राचीन वस्त्रों से लगा सकते हैं। कहा जाता था कि कपड़े का पूरा थान मलमल ऐसा बनता था कि एक अंगूठी में से उसको पार किया जा सकता था। यानि ये, ये सामर्थ्य था। भारत में नक्काशी मीनाकारी जैसे काम भी केवल सजावट की चीजों तक सीमित नहीं थे। बल्कि, तलवारों, ढालों, भालों जैसी युद्ध की चीजों पर भी अद्भुत कलाकारी देखने को मिलती थी। इतना ही नहीं, अगर कोई मैं तो चाहूंगा कभी कोई इस थीम पर सोचे। हमारे यहां पशुओं के आभूषण घोड़े पर, अपना डॉग रखते थे उस पर, बैल होते थे, गाय होती थी। उस पर जो आभूषण में जो विविधताएं थी, कला थी यानि ये अपने आप अजूबा है। और कितना perfection था कि उस पशु को physically तकलीफ ना हो, इसकी पूरी केयर करके बनाया जाता था। यानि अगर इन चीजों को समाहित करके देखें तब पता चलता है कि कितना सामर्थ्य इसमें भरा हुआ है।
साथियों,
ऐसी कितनी ही आर्ट्स हमारे देश में रही हैं। और यही भारत का प्राचीन इतिहास रहा है और आज भी भारत के कोने-कोने में इसके निशान हमें मिलते हैं। मैं तो जिस शहर का सांसद हूं, वो काशी, इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। काशी को अविनाशी कहते हैं। क्योंकि, काशी गंगा के साथ-साथ साहित्य, संगीत और कलाओं के अमर प्रवाह की धरती है। आध्यात्मिक तौर पर कलाओं के जन्मदाता माने जाने वाले, भगवान शिव को काशी ने अपने हृदय में स्थापित किया है। ये कलाएं, ये शिल्प और संस्कृति मानवीय सभ्यता के लिए ऊर्जा प्रवाह की तरह हैं। और ऊर्जा अमर होती है, चेतना अविनाशी होती है। इसलिए काशी भी अविनाशी है।
Friends,
भारत के इस कल्चर को देखने के लिए दुनिया भर से जो लोग आते हैं, उनके लिए कुछ महीने पहले हमने एक नई शुरुआत की थी। हमने गंगा विलास क्रूज़ चलाया था, जो काशी से असम तक गंगा के अंदर प्रवास करते हुए यात्रियों को लेकर गया था। इसमें दुनिया के अनेक टूरिस्ट आए थे, करीब 45-50 दिन का वो कार्यक्रम था। एक ही यात्रा में उन्हें गंगा के किनारे बसे कितने ही शहरों और गाँवों और इलाकों का अनुभव प्राप्त हुआ। और हमारा मानव संस्कृति का विकास भी नदी के तटों पर हुआ है। अगर एक बार नदी के तट की कोई यात्रा करता है, तो जीवन की गहराई को जानने के लिए बहुत बड़ा अवसर होता है। और इसी एक विचार से ये गंगा क्रूज को हमने शुरू किया था।
Friends,
कला का कोई भी स्वरूप क्यों न हो, उसका जन्म प्रकृति के, नेचर के निकट ही होता है। यहां भी मैंने जितना देखा कहीं ना कहीं nature का element उस art के साथ जुड़ा हुआ है, उससे बाहर एक भी चीज नहीं है। इसीलिए, Art by nature, pro-nature और pro-environment and pro-climate है। जैसे दुनिया के देशों में रिवर फ्रंट की बहुत बड़ी चर्चा होती है कि भई फलाने देश में ढिकना रिवर फ्रंट वगैरह-वगैरह। भारत में हजारों वर्षों से नदियों के किनारे घाटों की परंपरा है। हमारे कितने ही पर्व और उत्सव इन्हीं घाटों से जुड़े होते हैं। इसी तरह, कूप, सरोवर, बावड़ी, स्टेप वेल्स की एक समृद्ध परंपरा हमारे देश में थी। गुजरात में रानी की वाव हो, राजस्थान में अनेक जगहों पर दिल्ली में भी, आज भी कई स्टेप वेल्स आपको देखने को मिल जाएंगे। और जो रानी की वाव है उसकी विशेषता ये है कि पूर उल्टा टेंपल है। यानि कैसे उस समय की कला सृष्टि को सोचने वाले लोगों ने इसका निर्माण किया होगा। कहने का तात्पर्य है कि इन सारे हमारे पानी से जुड़े जितने संग्रह के स्थान हैं इनका architecture आप देखिए, इनका डिज़ाइन देखिए! देखने में ये किसी mega-marvel से कम नहीं लगते हैं। इसी तरह, भारत के पुराने किलों और दुर्गों का वास्तु भी दुनिया भर के लोगों को हैरान करता है। हर किले का अपना आर्किटैक्चर है, अपना साइन्स भी है। मैं कुछ दिन पहले ही सिंधुदुर्ग में था, जहां समंदर के भीतर बहुत ही विशाल किला निर्मित है। हो सकता है, आप में से कुछ लोग जैसलमेर में भी पटवों की हवेली भी गए होंगे! पाँच हवेलियों के इस समूह को इस तरह बनाया गया था कि वो नेचुरल एयरकंडिशनिंग कि तरह काम करता है। ये सारा आर्किटैक्चर न केवल long-sustaining होता था, बल्कि environmentally sustainable भी होता था। यानि पूरी दुनिया के पास भारत के आर्ट एंड कल्चर से बहुत कुछ जानने, सीखने के लिए अवसर है।
Friends,
Art, architecture और culture, ये मानवीय सभ्यता के लिए diversity और unity, दोनों के स्रोत रहे हैं। हम दुनिया के सबसे विविधतापूर्ण राष्ट्र हैं, लेकिन साथ ही वही विविधता हमें आपस में जोड़ती है। जब मैं अभी किलों की बात कर रहा था। मैं 1-2 साल पहले कार्यक्रम के लिए बुंदेलखंड गया था तो झांसी के किले पर एक कार्यक्रम था, फिर मैंने वहां सरकार से बातचीत की, कि हमने बुंदेलखंड को Fort Tourism के लिए develop करना चाहिए। और बाद में उन्होंने सारा research किया, उसका जो ग्रंथ तैयार हुआ है, आप हैरान हो जाएंगे एक अकेले बुंदेलखंड में इतना rich heritage सिर्फ forts का है, सिर्फ झांसी का नहीं अनेक जगह पर और पास-पास में ही सारे। यानि इतना सामर्थ्यवान है, मैं तो चाहूंगा कभी हमारे जो fine arts के students हैं, वो वहां जाकर के उसको art work करने का एक बहुत बड़ा competition रखा जा सकता है। तभी जाकर के दुनिया को पता चलेगा कि हमारे पूर्वजों ने क्या कुछ निर्माण किया है। क्या आपने सोचा है कि भारत की इस diversity का स्रोत क्या है ? इसका स्रोत है- Mother of Democracy के रूप में भारत का democratic tradition! आर्ट, आर्किटैक्चर और कल्चर तभी फलते-फूलते हैं, जब समाज में विचारों की स्वतन्त्रता होती है, अपने ढंग से काम करने की आज़ादी मिलती है। Debate और dialogue की इस परंपरा से diversity अपने आप पनपती है। इसीलिए, आज भी हमारी सरकार जब कल्चर की बात करती है, तो हम हर तरह की विविधता का स्वागत भी करते हैं, उसे support भी करते हैं। देश के अलग-अलग राज्यों और शहरों में G-20 के आयोजन के जरिए हमने अपनी इसी विविधता को दुनिया के सामने शोकेस किया।
साथियों,
भारत ‘अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्’ इस विचार को जीने वाला देश है। अर्थात्, हम अपना पराया की सोच से जीने वाले लोग नहीं हैं। हम स्वयं की जगह वयं में आस्था रखने वाले लोग हैं। हम self की जगह यूनिवर्स की बात करने वाले लोग हैं। आज जब भारत दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभर रहा है, तो पूरा विश्व इसमें अपने लिए बेहतर भविष्य देख रहा है। जैसे भारत की economic growth से पूरे विश्व की प्रगति जुड़ी है, जैसे ‘आत्मनिर्भर भारत’ के हमारे विज़न में पूरे विश्व के लिए नए अवसर जुड़े हैं, वैसे ही, art और architecture जैसे क्षेत्रों में भी भारत के पुनरोदय से, भारत के सांस्कृतिक उत्थान से पूरे विश्व के हित जुड़े हैं। हमने योग जैसी अपनी विरासत को आगे बढ़ाया, तो आज इसका लाभ पूरी दुनिया को हो रहा है।
हमने आयुर्वेद को आधुनिक वैज्ञानिक मानकों पर मजबूत बनाने के लिए प्रयास शुरू किए तो इसकी अहमियत पूरी दुनिया समझ रही है। हमने अपने सांस्कृतिक मूल्यों को सामने रखकर sustainable लाइफस्टाइल के लिए नए विकल्प, संकल्प किए। आज मिशन LiFE जैसे अभियानों के जरिए पूरे विश्व को बेहतर भविष्य की उम्मीद मिल रही है। Art, architecture और design के क्षेत्र में भी भारत जितनी मजबूती से उभरेगा, उसका उतना ही लाभ पूरी मानवता को होने वाला है।
साथियों,
सभ्यताएं समागम और सहयोग से ही समृद्ध होती हैं। इसलिए, इस दिशा में दुनिया के दूसरे सभी देशों की भागीदारी, उनके साथ हमारी partnership बेहद महत्वपूर्ण है। मैं चाहूँगा कि आयोजन का आगे और भी विस्तार हो, इसमें ज्यादा से ज्यादा संख्या में देश साथ आयें। मुझे विश्वास है, ये आयोजन इस दिशा में एक अहम शुरुआत साबित होगा। इसी भावना के साथ, आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद! और देशवासियों से मेरा आग्रह है कि मार्च महीने तक ये आपके लिए उपलब्ध है, पूरा दिन निकालिए एक-एक चीज को देखिए हमारे यहां कैसी प्रतिभाएं हैं, कैसी परंपरा है, प्रकृति के प्रति हमारा कितना लगाव है, इन सारी बातों को एक जगह पर महसूस कर सकते हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद।