श्री स्वामी नारायण जय देव, His excellency Sheikh Nahyan Al Mubarak, पूज्य महंत स्वामी जी महाराज, भारत यूएई और विश्व के विभिन्न देशों से आए अतिथिगण, और दुनिया के कोने-कोने से इस आयोजन से जुड़े मेरे भाईयों और बहनों!

आज यूनाटेड अरब अमीरात की धरती ने मानवीय इतिहास का एक नया स्वर्णिम अध्याय लिखा है। आज आबूधाबी में भव्य और दिव्य मंदिर का लोकार्पण हो रहा है। इस पल के पीछे वर्षों की मेहनत लगी है। इसमें वर्षों पुराना सपना जुड़ा हुआ है। और इसमें भगवान स्वामी नारायण का आशीर्वाद जुड़ा है। आज प्रमुख स्वामी जिस दिव्य लोक में होंगे, उनकी आत्मा जहां होगी वहां प्रसन्नता का अनुभव कर रही होगी। पूज्य प्रमुख स्वामी जी के साथ मेरा नाता एक प्रकार से पिता पुत्र का नाता रहा। मेरे लिए एक पितृ तुल्य भाव से जीवन के एक लंबे कालखंड़ तक उनका सानिध्य मिलता रहा। उनके आशीर्वाद मिलत रहे और शायद कुछ लोगों को सुनकर आश्चर्य होगा कि मैं सीएम था तब भी, पीएम था तब भी, अगर कोई चीज उनको पसंद नहीं आती थी, तो मुझे स्पष्ट शब्दों में मार्गदर्शन करते थे। और जब दिल्ली में अक्षरधाम का निर्माण हो रहा था, तो उनके आशीर्वाद से मैं शिलान्यास कार्यक्रम में था। तब तो मैं राजनीति में भी कुछ नहीं था। और उस दिन मैंने कहा था कि गुरू की हम बहुत तारीफ तो करते रहते हैं। लेकिन कभी सोचा है कि किसी गुरू ने कहा कि यमुना के तट पर अपना भी कोई स्थान हो, और शिष्यरूपी हो। प्रमुख स्वामी महाराज ने अपने गुरू की उस इच्छा को परिपूर्ण कर दिया था। आज मैं भी उसी एक शिष्य भाव से यहां आपके सामने उपस्थित हूं कि आज प्रमुख स्वामी महाराज का सपना हम पूरा कर पाए हैं। आज बसंत पंचमी का पवित्र त्योहार भी है। पूज्य शास्त्री जी महाराज की जन्मजयंती भी है। ये बसंत पंचमी ये पर्व मां सरस्वती का पर्व है। मां सरस्वती यानि बुद्धि और विवेक की मानवीय प्रज्ञा और चेतना की देवी। ये मानवीय प्रज्ञा ही है, जिसने हमें सहयोग, सामंजस्य, समन्वय और सौहार्द जैसे आदर्शों को जीवन में उतारने की समझ दी है। मुझे आशा है कि ये मंदिर भी मानवता के लिए, बेहतर भविष्य के लिए बसंत का स्वागत करेगा। ये मंदिर पूरी दुनिया के लिए सांप्रदायिक सौहार्द और वैश्विक एकता का प्रतीक बनेगा।

भाइयों और बहनों,

यूएई के Minister of Tolerance, His excellency Sheikh Nahyan Al Mubarak यहां विशेष तौर पर उपस्थित हैं। और उन्होंने भाव भी जो व्यक्त किए, जो बातें हमारे सामने रखी, वो हमारे उन सपनों को मजबूत करने का उनके शब्दों में उन्होंने वर्णन किया है, मैं उनका आभारी हूं।

साथियों,

इस मंदिर के निर्माण में यूएई की सरकार की जो भूमिका रही है, उसकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। लेकिन इस भव्य मंदिर का स्वप्न साकार करने में अगर सबसे बड़ा सहयोग किसी का है तो मेरे ब्रदर His Highness Sheikh Mohammed bin Zayed का है। मुझे पता है कि President of UAE की पूरी गवर्मेंट ने कितने बड़े दिल से करोड़ों भारतवासियों की इच्छा को पूरा किया है। और इन्होंने सिर्फ यहां नहीं 140 करोड़ हिन्दुस्तानियों के दिल को जीत लिया है। मैं इस मंदिर के विचार से लेकर एक प्रकार से प्रमुख स्वामी जी के स्वप्न से लेकर के स्वप्न बाद में विचार में परिवर्तित हुआ। यानि विचार से लेकर के इसके साकार होने तक पूरी यात्रा में इससे जुड़ा रहा हूं, ये मेरा सबसे बड़ा सौभाग्य है। और इसलिए मैं जानता हूं कि His Highness Sheikh Mohammed bin Zayed की उदारता के लिए धन्यवाद ये शब्द भी बहुत छोटा लगता है, इतना बड़ा उन्होंने काम किया। मैं चाहता हूं उनके इस व्यक्तित्व को, भारत यूएई रिश्तों की गहराई को केवल यूएई और भारत के लोग ही नहीं बल्कि पूरा विश्व भी जाने। मुझे याद है, जब मैं 2015 में यूएई में जब यहां आया था और तब मैंने His Highness Sheikh Mohammed से इस मंदिर के विचार पर चर्चा की थी। मैंने भारत के लोगों की इच्छा उनके सामने रखी तो उन्होंने पलक झपकते ही उसी पल मेरे प्रस्ताव के लिए हां कर दिया। उन्होंने मंदिर के लिए बहुत कम समय में ही इतनी बड़ी जमीन भी उपलब्ध करवाई। यही नहीं, मंदिर से जुड़े एक और विषय का समाधान किया। मैं साल 2018 में जब दोबारा यूएई आया तो यहां संतों ने मुझे जिसका ब्रह्मविहारी स्वामी जी ने अभी जिसका वर्णन किया। मंदिर के दो मॉडल दिखाए। एक मॉडल भारत की प्राचीन वैदिक शैली पर आधारित भव्य मंदिर का था, जो हम देख रहे हैं। दूसरा एक सामान्य सा मॉडल था, जिसमें बाहर से कोई हिंदू धार्मिक चिन्ह नहीं थे। संतों ने मुझे कहा कि यूएई की सरकार जिस मॉडल को स्वीकार करेगी उसी पर आगे काम होगा। जब ये सवाल His Highness Sheikh Mohammed के पास गया, तो उनकी सोच साफ एक दम साफ थी। उनका कहना था कि अबुधाबी में जो मंदिर बने वो अपने पूरे वैभव और गौरव के साथ बने। वे चाहते थे कि यहां सिर्फ यहां मंदिर बने ही नहीं बल्कि वो मंदिर जैसा दिखे भी।

साथियों,

ये छोटी बात नहीं है, ये बहुत बड़ी बात है। यहां सिर्फ यहां मंदिर बने ही नहीं लेकिन वो मंदिर जैसा दिखे भी। भारत से बंधुत्व की ये भावना वाकई हमारी बहुत बड़ी पूंजी है। हमें इस मंदिर की जो भव्यता दिख रही है, उसमें His Highness Sheikh Mohammed के विशाल सोच की भी झलक है। अब तक जो यूएई बुर्ज खलिफा, फ्यूचन म्युजियम, शेख जायद मस्जिद और दूसरी हाईटेक बिल्डिंग के लिए जाना जाता था। अब उसकी पहचान में एक और सांस्कृतिक अध्याय जुड़ गया है। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आएंगे। इससे यूएई आने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ेगी और people to people कनेक्ट भी बढ़ेगा। मैं पूरे भारत और विश्वभर में रहने वाले करोड़ों भारतवासियों की ओर से President His Highness Sheikh Mohammed को और यूएई सरकार को बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं। मैं आप सबसे प्रार्थना करता हूं, हम सब यूएई के President को यहां से standing ovation दें। बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं यूएई के लोगों का भी उनके सहयोग के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।

साथियों,

भारत और यूएई की दोस्ती को आज पूरी दुनिया में आपसी विश्वास और सहयोग के एक उदाहरण के रूप में देखा जाता है। खासकर बीते वर्षों में हमारे संबंधों ने एक नई ऊंचाई हासिल की है। लेकिन भारत अपने इन रिश्तों को केवल वर्तमान संदर्भ में ही नहीं देखता। हमारे लिए इन रिश्तों की जड़ें हजारों साल पुरानी है। अरब जगत सैंकड़ों वर्ष पहले भारत और यूरोप के बीच व्यापार में एक ब्रिज की भूमिका निभाता था। मैं जिस गुजरात से आता हूं, वहां के व्यापारियों के लिए हमारे पूर्वजों के लिए तो अरब जगत व्यापारिक रिश्तों का प्रमुख केंद्र होता था। सभ्यताओं के इस समागम से ही नई संभावनाओं का जन्म होता है। इसी संगम से कला साहित्य और संस्कृति की नई धाराएं निकलती हैं। इसलिए अबूधाबी में बना ये मंदिर इसलिए इतना महत्वपूर्ण है। इस मंदिर ने हमारे प्राचीन रिश्तों में नई सांस्कृतिक ऊर्जा भर दी है।

साथियों,

अबूधाबी का ये विशाल मंदिर केवल एक उपासना स्थली नहीं है। ये मानवता की सांझी विरासत का shared हैरिटेज का प्रतीक है। ये भारत और अरब के लोगों के आपसी प्रेम का भी प्रतीक है। इसमें भारत यूएई के रिश्तों का एक आध्यात्मिक प्रतिबिंब भी है। इस अद्भुत निर्माण के लिए मैं बीएपीएस संस्था और उनके सदस्यों की सराहना करता हूं। हरि भक्तों की सराहना करता हूं। बीएपीएस संस्था के लोगों द्वारा, हमारे पूज्य संतों के द्वारा पूरे विश्व में मंदिर बनाए गए हैं। इन मंदिरों में जितना ध्यान वैदिक बारीकियों का रखा जाता है। उतनी ही आधुनिकता भी उसमें झलकती है। कठोर प्राचीन नियमों का पालन करते हुए आप आधुनिक जगत से कैसे जुड़ सकते हैं, स्वामी नारायण सन्यास परंपरा इसका उदाहरण है। आपका प्रबंध कौशल, व्यवस्था संचालन और उसके साथ-साथ हर श्रद्धालु को लेकर संवेदनशीलता, हर कोई इससे बहुत कुछ सीख सकता है। ये सब भगवान स्वामीनारायण की कृपा का ही परिणाम है। मैं इस महान अवसर पर भगवान स्वामीनारायण के चरणों में भी प्रणाम करता हूं। मैं आप सभी को और देश विदेश के सभी श्रद्धालुओं को बधाई देता हूं।

साथियों,

ये समय भारत के अमृतकाल का समय है, ये हमारी आस्था और संस्कृति के लिए भी अमृतकाल का समय है। और अभी पिछले महीने ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर का सदियों पुराना सपना पूरा हुआ है। रामलला अपने भवन में विराजमान हुए हैं। पूरा भारत और हर भारतीय उस प्रेम में, उस भाव में अभी तक डुबा हुआ है। और अभी मेरे मित्र ब्रह्मविहारी स्वामी कह रहे थे कि मोदी जी तो सबसे बड़े पुजारी हैं। मैं जानता नहीं हूँ, मैं मंदिरों की पूजारी की योग्यता रखता हूं या नहीं रखता हूं। लेकिन मैं इस बात का गर्व अनुभव करता हूं कि मैं मां भारती का पूजारी हूं। परमात्मा ने मुझे जितना समय दिया है, उसका हर पल और परमात्मा ने जो शरीर दिया है, उसका कण-कण सिर्फ और सिर्फ मां भारती के लिए है। 140 करोड़ देशवासी मेरे आराध्य देव हैं।

साथियों,

अयोध्या के हमारे उस परम आनंद को आज अबूधाबी में मिली खुशी की लहर ने और बढ़ा दिया है। और मेरा सौभाग्य है ये कि मैंने पहले अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर और फिर अब अबूधाबी में इस मंदिर का साक्षी बना हूं।

साथियों,

हमारे वेदों ने कहा है 'एकम् सत् विप्रा बहुधा वदन्ति' अर्थात एक ही ईश्वर को, एक ही सत्य को विद्वान लोग अलग-अलग तरह से बताते हैं। ये दर्शन भारत की मूल चेतना का हिस्सा है। इसलिए हम स्वभाव से ही न केवल सबको स्वीकार करते हैं, बल्कि सबका स्वागत भी करते हैं। हमें विविधता में बैर नहीं दिखता, हमें विविधता ही विशेषता लगती है। आज वैश्विक संघर्षों और चुनौतियों के सामने ये विचार हमें एक विश्वास देता है। मानवता में हमारे विश्वास को मजबूत करता है। इस मंदिर में आपको पग-पग पर विविधता में विश्वास की एक झलक दिखेगी। मंदिर की दीवारों पर हिन्दू धर्म के साथ-साथ Egypt की hieroglyph और बाइबल की कुरान की कहानियां भी उकेरी गई हैं। मैं देख रहा था, मंदिर में प्रवेश करते ही वॉल ऑफ हारमनी के दर्शन होते हैं। इसे हमारे बोहरा मुस्लिम समाज के भाइयों ने बनवाया है। इसके बाद इस बिल्डिंग का इम्प्रेसिव थ्री डी एक्सपीरियंस होता है। इसे पारसी समाज ने शुरू करवाया है। यहां लंगर की जिम्मेदारी के लिए हमारे सिख भाई-बहन सामने आए हैं। मंदिर के निर्माण में हर धर्म संप्रदाय के लोगों ने काम किया है। मुझे ये भी बताया गया है कि मंदिर के सात स्तंभ या मीनारें यूएई के सात अमीरात के प्रतीक हैं। यही भारत के लोगों का स्वभाव भी है। हम जहां जाते हैं, वहां की संस्कृति को, वहां के मूल्यों को सम्मान भी देते हैं और उन्हें आत्मसात भी करते हैं, और ये देखना कितना सुखद है कि सबके सम्मान का यही भाव His Highness Sheikh Mohammed के जीवन में भी साफ दिखता है। मेरे ब्रदर, मेरे मित्र Sheikh Mohammed bin Zayed का भी विजन है, we are all brothers. उन्होंने अबूधाबी में House of Abrahamic Family बनाया। इस एक complex में मस्जिद भी है, चर्च भी है और Synagogue भी है। और अब अबूधाबी में भगवान स्वामी नारायण का ये मंदिर विविधता में एकता के उस विचार को नया विस्तार दे रहा है।

साथियों,

आज इस भव्य और पवित्र जगह से मैं एक और खुशखबरी देना चाहता हूं। आज सुबह यूएई के उपराष्ट्रपति हिज हाइनेश शेख मोहम्मद बिन राशिद ने दुबई में भारतीय श्रमिकों के लिए एक अस्पताल बनाने के लिए जमीन देने की घोषणा की है। मैं उनका और मेरे ब्रदर हिज हाइनेश शेख मोहम्मद बिन जायद का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।

साथियों,

हमारे वेद हमें सिखाते हैं कि समानो मंत्र: समिति: समानी, समानम् मनः सह चित्तम् एषाम्। अर्थात हमारे विचार एकजुट हों, हमारे मन एक दूसरे से जुड़े, हमारे संकल्प एकजुट हों, मानवीय एकता का ये आह्वान ही हमारे आध्यात्म का मूलभाव रहा है। हमारे मंदिर इन शिक्षाओं के, इन संकल्पों के केंद्र रहे हैं। इन मंदिरों में हम एक स्वर में ये घोष करते हैं कि प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो, मंदिरों में वेद की जिन ऋचाओं का पाठ होता है। वो हमें सिखाती हैं- वसुधैव कुटुम्बकम- अर्थात पूरी पृथ्वी ही हमारा परिवार है। इस विचार को लेकर आज भारत विश्व शांति के अपने मिशन के लिए प्रयास कर रहा है। भारत की प्रेसिडेंसी में इस बार जी-20 देशों ने One Earth, One Family, One Future के संकल्प को और मजबूत बनाया है, आगे बढ़ाया है। हमारे ये प्रयास One sun, One World, One Grid जैसे अभियानों को दिशा दे रहे हैं। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया का भाव लेकर भारत One Earth, One Health इस मिशन के लिए भी काम कर रहा है। हमारी संस्कृति, हमारी आस्था, हमें विश्व कल्याण के इन संकल्पों का हौसला देती है। भारत इस दिशा में सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के मंत्र पर काम कर रहा है। मुझे विश्वास है कि अबूधाबी के मंदिर की मानवीय प्रेरणा हमारे इन संकल्पों को ऊर्जा देगी, उन्हें साकार करेगी। इसी के साथ आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं। मैं भव्य दिव्य विशाल मंदिर को पूरी मानवता को समर्पित करता हूं। पूज्य महंत स्वामी के श्रीचरणों में प्रणाम करता हूं। पूज्य प्रमुख जी स्वामी का पुण्य स्मरण करते हुए मैं श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं और सभी हरिभक्तों को जय श्री स्वामी नारायण।

 

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!