लोकमान्य टिळकांची, आज एकशे तीन वी पुण्यतिथी आहे।
देशाला अनेक महानायक देणार्या, महाराष्ट्राच्या भूमीला,
मी कोटी कोटी वंदन करतो।
कार्यक्रम में उपस्थित आदरणीय श्री शरद पवार जी, राज्यपाल श्रीमान रमेश बैस जी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्रीमान एकनाथ शिंदे जी, उपमुख्यमंत्री श्रीमान देवेन्द्र फडणवीस जी, उपमुख्यमंत्री श्रीमान अजीत पवार जी, ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमान दीपक तिलक जी, पूर्व मुख्यमंत्री मेरे मित्र श्रीमान सुशील कुमार शिंदे जी, तिलक परिवार के सभी सम्मानित सदस्यगण एवं उपस्थित भाइयों और बहनों!
आज का ये दिन मेरे लिए बहुत अहम है। मैं यहाँ आकर जितना उत्साहित हूँ, उतना ही भावुक भी हूँ। आज हम सबके आदर्श और भारत के गौरव बाल गंगाधर तिलक जी की पुण्यतिथि है। साथ ही, आज अन्नाभाऊ साठे जी की जन्मजयंती भी है। लोकमान्य तिलक जी तो हमारे स्वतन्त्रता इतिहास के माथे के तिलक हैं। साथ ही, अन्नाभाऊ ने भी समाज सुधार के लिए जो योगदान दिया, वो अप्रतिम है, असाधारण हैं। मैं इन दोनों ही महापुरुषों के चरणों में श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ।
आज या महत्वाच्या दिवशी, मला पुण्याच्या या पावन भूमीवर, महाराष्ट्राच्या धर्तीवर येण्याची संधी मिळाली, हे माझे भाग्य आहे। ये पुण्य भूमि छत्रपति शिवाजी महाराज की धरती है। ये चाफेकर बंधुओं की पवित्र धरती है। इस धरती से ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले की प्रेरणाएँ और आदर्श जुड़े हैं। अभी कुछ ही देर पहले मैंने दगड़ू सेठ मंदिर में गणपति जी का आशीर्वाद भी लिया। ये भी पुणे जिले के इतिहास का बड़ा दिलचस्प पहलू है दगड़ू सेठ पहले व्यक्ति थे, जो तिलक जी के आह्वान पर गणेश प्रतिमा की सार्वजनिक स्थापना में शामिल हुए थे। मैं इस धरती को प्रणाम करते हुये इन सभी महान विभूतियों को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ।
साथियों,
आज पुणे में आप सबके बीच मुझे जो सम्मान मिला है, ये मेरे जीवन का एक अविस्मरणीय अनुभव है। जो जगह, जो संस्था सीधे तिलक जी से जुड़ी रही हो, उसके द्वारा लोकमान्य तिलक नेशनल अवार्ड मिलना, मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मैं इस सम्मान के लिए हिन्द स्वराज्य संघ का, और आप सभी का पूरी विनम्रता के साथ हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। और मैं ये भी कहना चाहूंगा, अगर ऊपर-ऊपर से थोड़ा नजर करे, तो हमारे देश में काशी और पुणे दोनों की एक विशेष पहचान है। विद्वत्ता यहां पर चिरंजीव है, अमरत्व को प्राप्त हुई है। और जो पुणे नगरी विद्वत्ता की दूसरी पहचान हो उस भूमि पे सम्मानित होना जीवन का इससे बड़ा कोई गर्व और संतोष की अनुभूति देने वाली घटना नहीं हो सकती है। लेकिन साथियों, जब कोई अवार्ड मिलता है, तो उसके साथ ही हमारी ज़िम्मेदारी भी बढ़ जाती है। आज जब उस अवार्ड से तिलक जी का नाम जुड़ा हो, तो दायित्वबोध और भी कई गुना बढ़ जाता है। मैं लोकमान्य तिलक नेशनल अवार्ड को 140 करोड़ देशवासियों के चरणों में समर्पित करता हूँ। मैं देशवासियों को ये विश्वास भी दिलाता हूं कि उनकी सेवा में, उनकी आशाओं-अपेक्षाओं की पूर्ति में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ूंगा। जिनके नाम में गंगाधर हो, उनके नाम पर मिले इस अवार्ड के साथ जो धनराशि मुझे दी गई है, वो भी गंगा जी को समर्पित कर रहा हूं। मैंने पुरस्कार राशि नमामि गंगे परियोजना के लिए दान देने का निर्णय लिया है।
साथियों,
भारत की आज़ादी में लोकमान्य तिलक की भूमिका को, उनके योगदान को कुछ घटनाओं और शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है। तिलक जी के समय और उनके बाद भी, स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़ी जो भी घटनाएँ और आंदोलन हुये, उस दौर में जो भी क्रांतिकारी और नेता हुये, तिलक जी की छाप सब पर थी, हर जगह थी। इसीलिए, खुद अंग्रेजों को भी तिलक जी को ‘The father of the Indian unrest’ कहना पड़ा था। तिलक जी ने भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन की पूरी दिशा ही बदल दी थी। जब अंग्रेज कहते थे कि भारतवासी देश चलाने के लायक नहीं हैं, तब लोकमान्य तिलक ने कहा कि- ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’। अंग्रेजों ने धारणा बनाई थी कि भारत की आस्था, संस्कृति, मान्यताएं, ये सब पिछड़ेपन का प्रतीक हैं। लेकिन तिलक जी ने इसे भी गलत साबित किया। इसीलिए, भारत के जनमानस ने न केवल खुद आगे आकर तिलक जी को लोकमान्यता दी, बल्कि लोकमान्य का खिताब भी दिया। और जैसा अभी दीपक जी ने बताया स्वयं महात्मा गांधी ने उन्हें ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ भी कहा। हम कल्पना कर सकते हैं कि तिलक जी का चिंतन कितना व्यापक रहा होगा, उनका विज़न कितना दूरदर्शी रहा होगा।
साथियों,
एक महान नेता वो होता है- जो एक बड़े लक्ष्य के लिए न केवल खुद को समर्पित करता है, बल्कि उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संस्थाएं और व्यवस्थाएं भी तैयार करता है। इसके लिए हमें सबको साथ लेकर आगे बढ़ना होता है, सबके विश्वास को आगे बढ़ाना होता है। लोकमान्य तिलक के जीवन में हमें ये सारी खूबियां दिखती हैं। उन्हें अंग्रेजों ने जब जेल में डाला, उन पर अत्याचार हुये। उन्होंने आज़ादी के लिए त्याग और बलिदान की पराकाष्ठा की। लेकिन साथ ही, उन्होंने टीम स्पिरिट के, सहभाग और सहयोग के अनुकरणीय उदाहरण भी पेश किए। लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल के साथ उनका विश्वास, उनकी आत्मीयता, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का स्वर्णिम अध्याय है। आज भी जब बात होती है, तो लाल-बाल-पाल, ये तीनों नाम एक त्रिशक्ति के रूप में याद किए जाते हैं। तिलक जी ने उस समय आज़ादी की आवाज़ को बुलंद करने के लिए पत्रकारिता और अखबार की अहमियत को भी समझा। अंग्रेजी में तिलक जी ने जैसा शरद राव ने कहा ‘द मराठा’ साप्ताहिक शुरू किया। मराठी में गोपाल गणेश अगरकर और विष्णुशास्त्री चिपलुंकर जी के साथ मिलकर उन्होंने ‘केसरी’ अखबार शुरू किया। 140 साल से भी ज्यादा समय से केसरी अनवरत आज भी महाराष्ट्र में छपता है, लोगों के बीच पढ़ा जाता है। ये इस बात का सबूत है कि तिलक जी ने कितनी मजबूत नींव पर संस्थाओं का निर्माण किया था।
साथियों,
संस्थाओं की तरह ही लोकमान्य तिलक ने परम्पराओं को भी पोषित किया। उन्होंने समाज को जोड़ने के लिए सार्वजनिक गणपति महोत्सव की नींव डाली। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के साहस और आदर्शों की ऊर्जा से समाज को भरने के लिए शिव जयंती का आयोजन शुरू किया। ये आयोजन भारत को सांस्कृतिक सूत्र में पिरोने के अभियान भी थे, और इनमें पूर्ण स्वराज की सम्पूर्ण संकल्पना भी थी। यही भारत की समाज व्यवस्था की खासियत रही है। भारत ने हमेशा ऐसे नेतृत्व को जन्म दिया है, जिसने आज़ादी जैसे बड़े लक्ष्यों के लिए भी संघर्ष किया, और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ नई दिशा भी दिखाई। आज की युवा पीढ़ी के लिए, ये बहुत बड़ी सीख है।
भाइयों-बहनों,
लोकमान्य तिलक इस बात को भी जानते थे कि आज़ादी का आंदोलन हो या राष्ट्र निर्माण का मिशन, भविष्य की ज़िम्मेदारी हमेशा युवाओं के कंधों पर होती है। वो भारत के भविष्य के लिए शिक्षित और सक्षम युवाओं का निर्माण चाहते थे। लोकमान्य में युवाओं की प्रतिभा पहचानने की जो दिव्य दृष्टि थी, इसका एक उदाहरण हमें वीर सावरकर से जुड़े घटनाक्रम में मिलता है। उस समय सावरकर जी युवा थे। तिलक जी ने उनकी क्षमता को पहचाना। वो चाहते थे कि सावरकर बाहर जाकर अच्छी पढ़ाई करें, और वापस आकर आज़ादी के लिए काम करें। ब्रिटेन में श्यामजी कृष्ण वर्मा ऐसे ही युवाओं को अवसर देने के लिए दो स्कॉलरशिप चलाते थे- एक स्कॉलरशिप का नाम था छत्रपति शिवाजी स्कॉलरशिप और दूसरी स्कॉलरशिप का नाम था-महाराणा प्रताप स्कॉलरशिप! वीर सावरकर के लिए तिलक जी ने श्यामजी कृष्ण वर्मा से सिफ़ारिश की थी। इसका लाभ लेकर वो लंदन में बैरिस्टर बन सके। ऐसे कितने ही युवाओं को तिलक जी ने तैयार किया। पुणे में न्यू इंग्लिश स्कूल, डेक्कन एजुकेशन सोसायटी और फर्गुसन कॉलेज, जैसी संस्थानों उसकी स्थापना उनके इसी विज़न का हिस्सा है। इन संस्थाओं से ऐसे कितने ही युवा निकले, जिन्होंने तिलक जी के मिशन को आगे बढ़ाया, राष्ट्रनिर्माण में अपनी भूमिका निभाई। व्यवस्था निर्माण से संस्था निर्माण, संस्था निर्माण से व्यक्ति निर्माण, और व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण, ये विज़न राष्ट्र के भविष्य के लिए रोडमैप की तरह होता है। इसी रोडमैप को आज देश प्रभावी ढंग से फॉलो कर रहा है।
साथियों,
वैसे तो तिलक जी पूरे भारत के लोकमान्य नेता हैं, लेकिन, जैसे पुणे और महाराष्ट्र के लोगों के लिए उनका एक अलग स्थान है, वैसा ही रिश्ता गुजरात के लोगों का भी उनके साथ है। मैं आज इस विशेष अवसर पर मैं उन बातों को भी याद कर रहा हूं। स्वतन्त्रता संग्राम के समय वो करीब डेढ़ महीने अहमदाबाद साबरमती जेल में रहे थे। इसके बाद, 1916 में तिलक जी अहमदाबाद आए, और आपको जानकर के खुशी होगी कि उस समय जब अंग्रेजों के पूरी तरह जुल्म चलते थे, अहमदाबाद में तिलक जी के स्वागत में और उनको सुनने के लिए उस जमाने में 40 हजार से ज्यादा लोग उनका स्वागत करने के लिए आए थे। और खुशी की बात ये है कि उनको सुनने के लिए उस समय ऑडियंस में सरदार वल्लभभाई पटेल भी थे। उनके भाषण ने सरदार साहब के मन में एक अलग ही छाप छोड़ी।
बाद में, सरदार पटेल अहमदाबाद नगर पालिका के प्रेसिडेंट बने, municipality के प्रेसिडेंट बने। और आप देखिए उस समय के व्यक्तित्व की सोच कैसी होती थी, उन्होंने अहमदाबाद में तिलक जी की मूर्ति लगाने का फैसला किया। और सिर्फ मूर्ति लगाने भर का फैसला नहीं किया, उनके निर्णय में भी सरदार साहब की लौह पुरूष की पहचान मिलती है। सरदार साहब ने जो जगह चुनी, वो जगह थी- विक्टोरिया गार्डन! अंग्रेजों ने रानी विक्टोरिया की हीरक जयंती मनाने के लिए अमदाबाद में 1897 में विक्टोरिया गार्डन का निर्माण किया था। यानी, ब्रिटिश महारानी के नाम पर बने पार्क में उनकी छाती पर सरदार पटेल ने, इतने बड़े क्रांतिकारी लोकमान्य तिलक की मूर्ति लगाने का फैसला कर लिया। और उस समय सरदार साहब पर इसके खिलाफ कितना ही दबाब पड़ा, उन्हें रोकने की कोशिश हुई। लेकिन सरदार तो सरदार थे, सरदार ने कह दिया वो अपना पद छोड़ देना पसंद करेंगे, लेकिन मूर्ति तो वहीं पर लगेगी। और वो मूर्ति बनी और 1929 में उसका लोकार्पण महात्मा गांधी ने किया। अहमदाबाद में रहते हुए मुझे कितनी ही बार उस पवित्र स्थान पर जाने का मौका मिला है और तिलक जी की प्रतिमा के सामने सर झुकाने का अवसर मिला है। वो एक अद्भुत मूर्ति है, जिसमें तिलक जी विश्राम मुद्रा में बैठे हुए हैं। ऐसा लगता है जैसे वो स्वतंत्र भारत के उज्ज्वल भविष्य की ओऱ देख रहे हैं। आप कल्पना करिए, गुलामी के दौर में भी सरदार साहब ने अपने देश के सपूत के सम्मान में पूरी अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दे दी थी। और आज की स्थिति देखिए। अगर आज हम किसी एक सड़क का नाम भी किसी विदेशी आक्रांता की जगह बदलकर भारतीय विभूति पर रखते हैं, तो कुछ लोग उस पर हल्ला मचाने लग जाते हैं, उनकी नींद खराब हो जाती है।
साथियों,
ऐसा कितना ही कुछ है, जो हम लोकमान्य तिलक के जीवन से सीख सकते हैं। लोकमान्य तिलक गीता में निष्ठा रखने वाले व्यक्ति थे। वो गीता के कर्मयोग को जीने वाले व्यक्ति थे। अंग्रेजों ने उन्हें रोकने के लिए उन्हें भारत के दूर, पूरब में मांडले की जेल में डाल दिया। लेकिन, वहाँ भी तिलक जी ने गीता का अपना अध्ययन जारी रखा। उन्होंने देश को हर चुनौती से पार पाने के लिए ‘गीता रहस्य’ के जरिए कर्मयोग की सहज-समझ दी, कर्म की ताकत से परिचित करवाया।
साथियों,
बाल गंगाधर तिलक जी के व्यक्तित्व के एक और पहलू की तरफ मैं आज देश के युवा पीढ़ी का ध्यान आकर्षित करना करना चाहता हूं। तिलक जी की एक बड़ी विशेषता थी कि वो लोगों को खुद पर विश्वास करने के बड़े आग्रही थे, और करना सिखाते थे, वो उन्हें आत्मविश्वास से भर देते थे। पिछली शताब्दी में जब लोगों के मन में ये बात बैठ गई थी कि भारत गुलामी की बेड़ियां नहीं तोड़ सकता, तिलक जी ने लोगों को आजादी का विश्वास दिया। उन्हें हमारे इतिहास पर विश्वास था। उन्हें हमारी संस्कृति पर विश्वास था। उन्हें अपने लोगों पर विश्वास था। उन्हें हमारे श्रमिकों, उद्यमियों पर विश्वास था, उन्हें भारत के सामर्थ्य पर विश्वास था। भारत की बात आते ही कहा जाता था, यहां के लोग ऐसे ही हैं, हमारा कुछ नहीं हो सकता। लेकिन तिलक जी ने हीनभावना के इस मिथक को तोड़ने का प्रयास किया, देश को उसके सामर्थ्य का विश्वास दिलाया।
साथियों,
अविश्वास के वातावरण में देश का विकास संभव नहीं होता। कल मैं देख रहा था, पुणे के ही एक सज्जन श्रीमान मनोज पोचाट जी ने मुझे एक ट्वीट किया है। उन्होंने मुझे 10 साल पहले की मेरी पुणे यात्रा को याद दिलाया है। उस समय, जिस फर्गुसन कॉलेज की तिलक जी ने स्थापना की थी, उसमें मैंने तब के भारत में ट्रस्ट डेफ़िसिट की बात की थी। अब मनोज जी ने मुझे आग्रह किया है कि मैं ट्रस्ट डेफ़िसिट से ट्रस्ट सरप्लस तक की देश की यात्रा के बारे में बात करूँ! मैं मनोज जी का आभार व्यक्त करूंगा कि उन्होंने इस अहम विषय को उठाया है।
भाइयों-बहनों,
आज भारत में ट्रस्ट सरप्लस पॉलिसी में भी दिखाई देता है, और देशवासियों के परिश्रम में भी झलकता है! बीते 9 वर्षों में भारत के लोगों ने बड़े-बड़े बदलावों की नींव रखी, बड़े-बड़े परिवर्तन करके दिखाए। आखिर कैसे भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया? ये भारत के लोग ही हैं, जिन्होंने ये कर के दिखाया। आज देश हर क्षेत्र में अपने आप पर भरोसा कर रहा है, और अपने नागरिकों पर भी भरोसा कर रहा है। कोरोना के संकटकाल में भारत ने अपने वैज्ञानिकों पर विश्वास किया और उन्होंने मेड इन इंडिया वैक्सीन बनाकर दिखाई। और पुणे ने भी उसमें बड़ी भूमिका निभाई। हम आत्मनिर्भर भारत की बात कर रहे हैं, क्योंकि हमें विश्वास है कि भारत ये कर सकता है
हम देश के आम आदमी को बिना गारंटी का मुद्रा लोन दे रहे हैं, क्योंकि हमें उसकी ईमानदारी पर, उसकी कर्तव्यशक्ति पर विश्वास है। पहले छोटे-छोटे कामों के लिए आम लोगों को परेशान होना पड़ता था। आज ज़्यादातर काम मोबाइल पर एक क्लिक पर हो रहे हैं। कागजों को अटेस्ट करने के लिए आपके अपने हस्ताक्षर पर भी आज सरकार विश्वास कर रही है। इससे देश में एक अलग माहौल बन रहा है, एक सकारात्मक वातावरण तैयार हो रहा है। और हम देख रहे हैं कि विश्वास से भरे हुए देश के लोग, देश के विकास के लिए कैसे खुद आगे बढ़कर काम कर रहे हैं। स्वच्छ भारत आंदोलन को इस जन विश्वास ने ही जन आंदोलन में बदला। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान को इस जन विश्वास ने ही जन आंदोलन में बदला। लाल किले से मेरी एक पुकार पर, की जो सक्षम हैं, उन्हें गैस सब्सिडी छोड़नी चाहिए, लाखों लोग ने गैस सब्सिडी छोड़ दी थी। कुछ समय पहले ही कई देशों का एक सर्वे हुआ था। इस सर्वे में सामने आया कि जिस देश के नागरिकों को अपनी सरकार में सबसे ज्यादा विश्वास है, उस सर्वे ने बताया उस देश का नाम भारत है। ये बदलता हुआ जन मानस, ये बढ़ता हुआ जन विश्वास, भारत के जन-जन की प्रगति का माध्यम बन रहा है।
साथियों,
आज आजादी के 75 वर्ष बाद, देश अपने अमृतकाल को कर्तव्यकाल के रूप में देख रहा है। हम देशवासी अपने-अपने स्तर से देश के सपनों और संकल्पों को ध्यान में रखकर काम कर रहे हैं। इसीलिए, आज विश्व भी भारत में भविष्य देख रहा है। हमारे प्रयास आज पूरी मानवता के लिए एक आश्वासन बन रहे हैं। मैं मानता हूँ कि लोकमान्य आज जहां भी उनकी आत्मा होगी वो हमें देख रहे हैं, हम पर अपना आशीर्वाद बरसा रहे हैं। उनके आशीर्वाद से, उनके विचारों की ताकत से हम एक सशक्त और समृद्ध भारत के अपने सपने को जरूर साकार करेंगे। मुझे विश्वास है, हिन्द स्वराज्य संघ तिलक के आदर्शों से जन-जन को जोड़ने में इसी प्रकार आगे आकर के अहम भूमिका निभाता रहेगा। मैं एक बार फिर इस सम्मान के लिए आप सभी का आभार प्रकट करता हूँ। इस धरती को प्रणाम करते हुए, इस विचार को आगे बढ़ाने में जुड़े हुए सबको प्रणाम करते हुए मैं मेरी वाणी को विराम देता हूं। आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद!