महान आध्यात्मिक गुरु के सम्मान में स्मारक टिकट और सिक्का जारी किया
“चैतन्य महाप्रभु कृष्ण प्रेम के प्रतिमान थे; उन्होंने अध्यात्म और साधना को जन-साधरण के लिए सुलभ बना दिया”
“भक्ति हमारे ऋषियों द्वारा दिया गया एक भव्य दर्शन है; यह हताशा नहीं, बल्कि आशा और आत्मविश्वास है; भक्ति भय नहीं, उत्साह है”
"हमारे भक्ति मार्गी संतों ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में, बल्कि हर चुनौतीपूर्ण घड़ी में देश का मार्गदर्शन करने में भी अमूल्य भूमिका निभाई है"
हम देश को 'देव' मानते हैं और 'देव से देश' की दृष्टि से आगे बढ़ते हैं।''
"भारत के विविधता में एकता के मंत्र में विघटन के लिए कोई स्‍थान नहीं"
"'एक भारत श्रेष्ठ भारत' भारत की आध्यात्मिक आस्था है"
"बंगाल आध्यात्मिकता और बौद्धिकता का अविरल ऊर्जा-स्रोत है"

इस पवित्र आयोजन में उपस्थित सभी पूज्य संतगण, आचार्य गौडीय मिशन के श्रद्धेय भक्ति सुंदर सन्यासी जी, कैबिनेट में मेरे सहयोगी अर्जुनराम मेघवाल जी, मीनाक्षी लेखी जी, देश और दुनिया से जुड़े सभी कृष्ण भक्त, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों,

हरे कृष्ण! हरे कृष्ण! हरे कृष्ण! आज आप सबके यहां पधारने से भारत मंडपम् की भव्यता और बढ़ गई है। इस भवन का विचार भगवान् बसवेश्वर के अनुभव मंडपम् से जुड़ा हुआ है। अनुभव मंडपम् प्राचीन भारत में आध्यात्मिक विमर्शों का केंद्र था। अनुभव मंडपम् जन कल्याण की भावनाओं और संकल्पों का ऊर्जा केंद्र था। आज श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद जी की 150वीं जयंती के अवसर पर, भारत मंडपम् में वैसी ही ऊर्जा दिखाई दे रही है। हमारी सोच भी थी, कि ये भवन, भारत के आधुनिक सामर्थ्य और प्राचीन मूल्यों, दोनों का केंद्र बनना चाहिए। अभी कुछ ही महीने पहले G-20 समिट के जरिए यहाँ से नए भारत के सामर्थ्य के दर्शन हुए थे। और आज,इसे ‘वर्ल्ड वैष्णव कॉन्वेंशन’ को आयोजित करने इसका इतना पवित्र सौभाग्य मिल रहा है। और यही तो नए भारत की वो तस्वीर है...जहां विकास भी है, और विरासत भी दोनों का संगम है। जहां आधुनिकता का स्वागत भी है, और अपनी पहचान पर गर्व भी है।

ये मेरा सौभाग्य है कि इस पुण्य आयोजन में आप सब संतों के बीच यहाँ उपस्थित हूँ। और मैं अपना सौभाग्य मानता हूं कि आपमें से बहुत कई संतों के साथ मेरा निकट संपर्क रहा है। मुझे अनेक बार आप सबका सानिध्य मिला है। मैं ‘कृष्णम् वंदे जगद्गुरुम्’ की भावना से भगवान के श्री चरणों में प्रणाम करता हूँ। मैं श्रील भक्तिसिद्धान्त प्रभुपाद जी को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुये उन्हें आदरंजलि देता हूं, उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ। मैं प्रभुपाद के सभी के अनुयायियों को उनकी 150वीं जन्मजयंती की हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ। आज इस अवसर पर मुझे श्रील प्रभुपाद जी की स्मृति में पोस्टल स्टैम्प और स्मारक सिक्का जारी करने का सौभाग्य भी मिला, और मैं इसके लिए भी आप सभी को बधाई देता हूँ।

पूज्य संतगण,

प्रभुपाद गोस्वामी जी की 150वीं जयंती हम ऐसे समय में मना रहे हैं, जब कुछ ही दिन पहले भव्य राममंदिर का सैकड़ों साल पुराना सपना पूरा हुआ है। आज आपके चेहरों पर जो उल्लास, जो उत्साह दिखाई दे रहा है, मुझे विश्वास है, इसमें रामलला के विराजमान होने की खुशी भी शामिल है। ये इतना बड़ा महायज्ञ, संतों की साधना से, उनके आशीर्वाद से ही पूरा हुआ है।

साथियों,

आज हम सब अपने जीवन में ईश्वर के प्रेम को, कृष्ण लीलाओं को, और भक्ति के तत्व को इतनी सहजता से समझते हैं। इस युग में इसके पीछे चैतन्य महाप्रभु की कृपा की बहुत बड़ी भूमिका है। चैतन्य महाप्रभु, कृष्ण प्रेम के प्रतिमान थे। उन्होंने आध्यात्म और साधना को जन साधारण के लिए सुलभ बना दिया, सरल बना दिया। उन्होंने हमें बताया कि ईश्वर की प्राप्ति केवल सन्यास से ही नहीं, उल्लास से भी की जा सकती है। और मैं अपना अनुभव बताता हूं। मैं इस परंपराओं में पला बढ़ा इंसान हूं। मेरे जीवन के जो अलग-अलग पड़ाव हैं उसमें एक पड़ाव कुछ और ही था। मैं उस माहौल में बैठता था, बीच में रहता था, भजन-कीर्तन चलते थे में कोने में बैठा रहता था, सुनता था, मन भर के जी भरकर के उस पल को जीता था लेकिन जुड़ता नहीं था, बैठा रहता था। पता नहीं एक बार मेरे मन को काफी विचार चले। मैंने सोचा ये दूरी किस चीज की है। वो क्या है जो मुझे रोक रहा है। जीता तो हूं जुड़ता नहीं हूं। और उसके बाद जब मैं भजन कीर्तन में बैठने लगा तो खुद भी ताली बजाना, जुड़ जाना और मैं देखता चला गया कि मैं उसमें रम गया था। मैंने चैतन्य प्रभु की इस परंपरा में जो सामर्थ्य है उसका साक्षात्कार किया हुआ है। और अभी जब आप कर रहे थे तो मैं ताली बजाना शुरू हो गया। तो वहां लोगों को लग रहा है पीएम ताली बजा रहा है। पीएम ताली नहीं बजा रहा था, प्रभु भक्त ताली बजा रहा था।

चैतन्य महाप्रभु ने हमें वो दिखाया कि श्रीकृष्ण की लीलाओं को, उनके जीवन को उत्सव के रूप में अपने जीवन में उतारकर कैसे सुखी हुआ जा सकता है। कैसे संकीर्तन, भजन, गीत और नृत्य से आध्यात्म के शीर्ष पर पहुंचा जा सकता है, आज कितने ही साधक ये प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं। और जिसको अनुभव का आनंद होता है मुझे उसका साक्षात्कार हुआ है। चैतन्य महाप्रभु ने हमें श्रीकृष्ण की लीलाओं का लालित्य भी समझाया, और जीवन के लक्ष्य को जानने के लिए उसका महत्व भी हमें बताया। इसीलिए, भक्तों में आज जैसी आस्था भागवत जैसे ग्रन्थों के प्रति है, वैसा ही प्रेम, चैतन्य चरितामृत और भक्तमाल के लिए भी है।

साथियों,

चैतन्य महाप्रभु जैसी दैवीय विभूतियाँ समय के अनुसार किसी न किसी रूप से अपने कार्यों को आगे बढ़ाती रहती हैं। श्रील भक्तिसिद्धान्त प्रभुपाद, उन्हीं के संकल्पों की प्रतिमूर्ति थे। साधना से सिद्धि तक कैसे पहुंचा जाता है, अर्थ से परमार्थ तक की यात्रा कैसे होती है, श्रील भक्तिसिद्धान्त जी के जीवन में हमें पग-पग पर ये देखने को मिलता है। 10 साल से कम उम्र में प्रभुपाद जी ने पूरी गीता कंठस्थ कर ली। किशोरावस्था में उन्होंने आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ संस्कृत, व्याकरण, वेद-वेदांगों में विद्वता हासिल कर ली। उन्होंने ज्योतिष गणित में सूर्य सिद्धान्त जैसे ग्रन्थों की व्याख्या की। सिद्धान्त सरस्वती की उपाधि हासिल की, 24 वर्ष की उम्र में उन्होंने संस्कृत स्कूल भी खोल दिया। अपने जीवन में स्वामी जी ने 100 से अधिक किताबें लिखीं, सैकड़ों लेख लिखे, लाखों लोगों को दिशा दिखाई। यानि एक प्रकार से ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग दोनों का संतुलन जीवन व्यवस्था से जोड़ दिया। ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, पीर पराई जाने रे’ इस भजन से गांधी जी जिस वैष्णव भाव का गान करते थे, श्रील प्रभुपाद स्वामी ने उस भाव को... अहिंसा और प्रेम के उस मानवीय संकल्प को...देश-विदेश में पहुंचाने का काम किया।

साथियों,

मेरा जन्म तो गुजरात में हुआ है। गुजरात की पहचान ही है कि वैष्णव भाव कहीं भी जगे, गुजरात उससे जरूर जुड़ जाता है। खुद भगवान कृष्ण मथुरा में अवतरित होते हैं, लेकिन, अपनी लीलाओं को विस्तार देने के लिए वो द्वारका आते हैं। मीराबाई जैसी महान कृष्णभक्त राजस्थान में जन्म लेती हैं। लेकिन, श्रीकृष्ण से एकाकार होने वो गुजरात चली आती हैं। ऐसे कितने ही वैष्णव संत हैं, जिनका गुजरात की धरती से, द्वारिका से विशेष नाता रहा है। गुजरात के संत कवि नरसी मेहता उनकी भी जन्मभूमि भी । इसलिए, श्रीकृष्ण से संबंध, चैतन्य महाप्रभु की परंपरा, ये मेरे लिए जीवन का सहज स्वाभाविक हिस्सा है।

साथियों,

मैं 2016 में गौडीय मठ के शताब्दी समारोह में आप सबके बीच आया था। उस समय मैंने आपके बीच भारत की आध्यात्मिक चेतना पर विस्तार से बात की थी। कोई समाज जब अपनी जड़ों से दूर जाता है, तो वो सबसे पहले अपने सामर्थ्य को भूल जाता है। इसका सबसे बड़ा प्रभाव ये होता है कि, जो हमारी खूबी होती है, जो हमारी ताकत होती है, हम उसे ही लेकर हीनभावना का शिकार हो जाते हैं। भारत की परंपरा में, हमारे जीवन में भक्ति जैसा महत्वपूर्ण दर्शन भी इससे अछूता नहीं रहा। यहाँ बैठे युवा साथी मेरी बात से कनेक्ट कर पाएंगे, जब भक्ति की बात आती है, तो कुछ लोग सोचते हैं कि भक्ति, तर्क और आधुनिकता ये विरोधाभासी बातें हैं। लेकिन, असल में ईश्वर की भक्ति हमारे ऋषियों का दिया हुआ महान दर्शन है। भक्ति हताशा नहीं, आशा और आत्मविश्वास है। भक्ति भय नहीं, उत्साह है, उमंग है। राग और वैराग्य के बीच में जीवन में चैतन्य का भाव भरने का सामर्थ्य होता है भक्ति में। भक्ति वो है, जिसे युद्ध के मैदान में खड़े श्रीकृष्ण गीता के 12वें अध्याय में महान योग बताते हैं। जिसकी ताकत से निराश हो चुके अर्जुन अन्याय के खिलाफ अपना गाँडीव उठा लेते हैं। इसलिए, भक्ति पराभव नहीं, प्रभाव का संकल्प है।

लेकिन साथियों,

ये विजय हमें दूसरों पर नहीं, ये विजय हमें अपने ऊपर हासिल करनी है। हमें युद्ध भी अपने लिए नहीं, बल्कि ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे’ की भावना से मानवता के लिए लड़ना है। और यही भावना हमारी संस्कृति में, हमारी रगों में रची-बसी हुई है। इसीलिए, भारत कभी सीमाओं के विस्तार के लिए दूसरे देशों पर हमला करने नहीं गया। जो लोग इतने महान दर्शन से अपरिचित थे, जो इसे समझे नहीं, उनके वैचारिक हमलों ने कहीं न कहीं हमारे मानस को भी प्रभावित किया। लेकिन, हम श्रील प्रभुपाद जैसे संतों के ऋणी हैं, जिन्होंने करोड़ों लोगों को पुनः सच के दर्शन कराए, उन्हें भक्ति की गौरव भावना से भर दिया। आज आज़ादी के अमृतकाल में ‘गुलामी की मानसिकता से मुक्ति’ का संकल्प लेकर देश संतों के उस संकल्प को आगे बढ़ा रहा है।

साथियों,

यहाँ भक्ति मार्ग के इतने विद्वान संतगण बैठे हैं। आप सभी भक्ति मार्ग से भली-भांति परिचित हैं। हमारे भक्ति मार्गी संतों का योगदान,आजादी के आंदोलन में भक्ति आंदोलन की भूमिका, अमूल्य रही है। भारत के हर चुनौतीपूर्ण कालखण्ड में कोई न कोई महान संत, आचार्य, किसी न किसी रूप में राष्ट्र को दिशा देने के लिए सामने आए हैं। आप देखिए, मध्यकाल के मुश्किल दौर में जब हार भारत को हताशा दे रही थी, तब, भक्ति आंदोलन के संतों ने हमें ‘हारे को हरिनाम’, ‘हारे को हरिनाम’ मंत्र दिया। इन संतों ने हमें सिखाया कि समर्पण केवल परम सत्ता के सामने करना है। सदियों की लूट से देश गरीबी की गहरी खाई में था। तब संतों ने हमें त्याग और तितिक्षा से जीवन जीकर अपने मूल्यों की रक्षा करना सिखाया। हमें फिर से ये आत्मविश्वास हुआ कि जब सत्य की रक्षा के लिए अपना सब कुछ बलिदान किया जाता है, तो असत्य का अंत होकर ही रहता है। सत्य की ही विजय होती है- ‘सत्यमेव जयते’। इसीलिए, आजादी के आंदोलन को भी स्वामी विवेकानंद और श्रील स्वामी प्रभुपाद जैसे संतों ने असीम ऊर्जा से भर दिया था। प्रभुपाद स्वामी के पास नेताजी सुभाषचंद्र बोस, और महामना मालवीय जी जैसी हस्तियां उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शन लेने आती थीं।

साथियों,

बलिदान देकर भी अमर रहने का ये आत्मविश्वास हमें भक्ति योग से मिलता है। इसीलिए, हमारे ऋषियों ने कहा है- ‘अमृत-स्वरूपा च’ अर्थात्, वह भक्ति अमृत स्वरूपा है। आज इसी आत्मविश्वास के साथ करोड़ों देशवासी राष्ट्र भक्ति की ऊर्जा लेकर अमृतकाल में प्रवेश कर चुके हैं। इस अमृतकाल में हमने अपने भारत को विकसित बनाने का संकल्प लिया है। हम राष्ट्र को देव मानकर, ‘देव से देश’ का विज़न लेकर आगे बढ़ रहे हैं। हमने अपनी ताकत अपनी विविधता को बनाया है, देश के कोने-कोने के सामर्थ्य, यही हमारी ऊर्जा, हमारी ताकत, हमारी चेतना है।

साथियों,

यहाँ इतनी बड़ी संख्या में आप सब लोग एकत्रित हैं। कोई किसी राज्य से है, कोई किसी इलाके से है। भाषा, बोली, रहन-सहन भी अलग-अलग हैं। लेकिन, एक साझा चिंतन सबको कितनी सहजता से जोड़ता है। भगवान् श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं- ‘अहम् आत्मा गुडाकेश सर्व भूताशय स्थितः’। अर्थात्, सभी प्राणियों के भीतर, उनकी आत्मा के रूप में एक ही ईश्वर रहते हैं। यही विश्वास भारत के अन्तर्मन में ‘नर से नारायण’ और ‘जीव से शिव’ की अवधारणा के रूप में रचा-बसा है। इसलिए, अनेकता में एकता का भारत का मंत्र इतना सहज है, इतना व्यापक है कि उसमें विभाजन की गुंजाइश ही नहीं है। हम एक बार ‘हरे कृष्ण’ बोलते हैं, और एक दूसरे के दिलों से जुड़ जाते हैं। इसीलिए, दुनिया के लिए राष्ट्र एक राजनैतिक अवधारणा हो सकती है... लेकिन भारत के लिए तो ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’, ये एक आध्यात्मिक आस्था है।

हमारे सामने खुद श्रील भक्ति सिद्धान्त गोस्वामी का जीवन भी एक उदाहरण है! प्रभुपाद जी पुरी में जन्मे, उन्होंने दक्षिण के रामानुजाचार्य जी की परंपरा में दीक्षा ली और चैतन्य महाप्रभु की परंपरा को आगे बढ़ाया। और अपनी इस आध्यात्मिक यात्रा का केंद्र बनाया बंगाल में स्थापित अपने मठ को। बंगाल की धरती में बात ही कुछ ऐसी है कि वहां से अध्यात्म और बौद्धिकता निरंतर ऊर्जा पाती है। ये बंगाल की ही धरती है, जिसने हमें रामकृष्ण परमहंस जैसे संत दिये, स्वामी विवेकानंद जैसे राष्ट्र ऋषि दिये। इस धरती ने श्री अरबिंदो और गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे महापुरुष भी दिये, जिन्होंने संत भाव से राष्ट्रीय आंदोलनों को आगे बढ़ाया। यही से राजा राममोहन रॉय जैसे समाजसुधारक भी मिले। बंगाल चैतन्य महाप्रभु और प्रभुपाद जैसे उनके अनुयायियों की तो कर्मभूमि रही ही है। उनके प्रभाव से आज प्रेम और भक्ति एक वैश्विक मूवमेंट बन गए हैं।

साथियों,

आज भारत की गति-प्रगति की हर तरफ चर्चा हो रही है। आधुनिक इनफ्रास्ट्रक्चर में, हाइटेक सेवाओं में भारत विकसित देशों की बराबरी कर रहा है। कितनी ही फील्ड्स में हम बड़े-बड़े देशों से आगे भी निकल रहे हैं। हमें लीडरशिप के रोल में देखा जा रहा है। लेकिन साथ ही, आज भारत का योग भी पूरी दुनिया में घर-घर पहुँच रहा है। हमारे आयुर्वेद और naturopathy की तरफ विश्व का विश्वास और बढ़ता चला जा रहा है। तमाम देशों के प्रेसिडेंट और प्राइम मिनिस्टर आते हैं, delegates आते हैं, तो वो हमारे प्राचीन मंदिरों को देखने जाते हैं। इतनी जल्दी ये बदलाव आया कैसे? ये बदलाव आया कैसे? ये बदलाव आया है, युवा ऊर्जा से! आज भारत का युवा बोध और शोध, दोनों को साथ में लेकर के चलता है। हमारी नई पीढ़ी अब अपनी संस्कृति को पूरे गर्व से अपने माथे पर धारण करती है। आज का युवा Spirituality और Start-ups दोनों की अहमियत समझता है, दोनों की काबिलियत रखता है। इसलिए, हम देख रहे हैं, आज काशी हो या अयोध्या, तीर्थस्थलों में जाने वालों में बहुत बड़ी संख्या हमारे युवाओं की होती है।

भाइयों और बहनों,

जब देश की नई पीढ़ी इतनी जागरूक हो, तो ये स्वाभाविक है कि देश चंद्रयान भी बनाएगा, और ‘चन्द्रशेखर महादेव का धाम भी सजाएगा। जब नेतृत्व युवा करेगा तो देश चंद्रमा पर रोवर भी उतारेगा, और उस स्थान को ‘शिवशक्ति’ नाम देकर अपनी परंपरा को पोषित भी करेगा। अब देश में वंदेभारत ट्रेन भी दौड़ेंगी, और वृन्दावन, मथुरा, अयोध्या का कायाकल्प भी होगा। मुझे ये बताते हुये भी खुशी हो रही है कि हमने नमामि गंगे योजना के तहत बंगाल के मायापुर में सुंदर गंगाघाट का निर्माण भी शुरू किया है।

साथियों,

विकास और विरासत की ये, ये हमारा कदमताल 25 वर्षों के अमृतकाल में ऐसे ही अनवरत चलने वाला है, संतों के आशीर्वाद से चलने वाला है। संतों के आशीर्वाद से हम विकसित भारत का निर्माण करेंगे, और हमारा आध्यात्म पूरी मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा। इसी कामना के साथ, आप सभी को हरे कृष्ण! हरे कृष्ण! हरे कृष्ण! बहुत बहुत धन्यवाद!

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Chairman and CEO of Microsoft, Satya Nadella meets Prime Minister, Shri Narendra Modi
January 06, 2025

Chairman and CEO of Microsoft, Satya Nadella met with Prime Minister, Shri Narendra Modi in New Delhi.

Shri Modi expressed his happiness to know about Microsoft's ambitious expansion and investment plans in India. Both have discussed various aspects of tech, innovation and AI in the meeting.

Responding to the X post of Satya Nadella about the meeting, Shri Modi said;

“It was indeed a delight to meet you, @satyanadella! Glad to know about Microsoft's ambitious expansion and investment plans in India. It was also wonderful discussing various aspects of tech, innovation and AI in our meeting.”