“बोल मारी माँ, बोल मारी माँ!”
जय मां अंबे!
आज मां के पांचवें स्वरूप, स्कंदमाता की पूजा का दिन है। इस शुभ अवसर पर आज मां अंबे के दर्शन और पूजन करने का सौभाग्य मिल रहा है। अंबाजी में माता के दर्शन करने के लिए एक प्रकार से मैं कहूं तो मां की गोद में ही हमारी जिंदगी बीती है, आप सबकी भी बीती है और हम हमेशा अनुभव करते हैं, जब भी यहां आते हैं एक नई ऊर्जा, नई प्रेरणा लेकर के जाते हैं, नया विश्वास लेकर के जाते हैं। इस बार ऐसे समय में यहां आया हूं, जब विकसित भारत का विराट संकल्प देश ने लिया है। 130 करोड़ देशवासियों ने लिया है कि 25 साल के अंदर-अंदर हम हिन्दुस्तान को विकसित राष्ट्र बना के रहेंगे। मां अंबा के आशीर्वाद से हमें हमारे सभी संकल्पों की सिद्धि के लिए शक्ति मिलेगी, ताकत मिलेगी। इस पावन अवसर पर मुझे बनासकांठा के साथ-साथ गुजरात के अनेक जिलों को हजारों करोड़ रुपए की योजनाओं का उपहार देने का अवसर भी मिला है। आज जिन 45 हज़ार से अधिक घरों का लोकार्पण और करीब लोकार्पण और शिलान्यास मिला दें तो 61 हजार, उन सभी लाभार्थियों को भी मेरी तरफ से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। उन बहनों को विशेष शुभकामनाएं, जिन्हें आज अपना घर मिला है। इस बार आप सभी की दिवाली नए घर में मनेगी, अपने खुद के घर में मनेगी। हमें आनंद होगा कि नहीं होगा, खुद के घर में दिवाली मनाने की बात की जाए, जिसने जिदंगी झोपड़ी में बिताई हो, तब वह खुद के पक्के घर में दिवाली मनाए, तब यह उसके जिदंगी की बड़ी से बड़ी दिवाली होगी कि नहीं होगी।
भाइयों और बहनों,
जब हम नारी सम्मान की बात करते हैं, तो हमारे लिए ये बहुत सहज सी बात लगती है। लेकिन जब हम गंभीरता से इस पर विचार करते हैं, तो पाते हैं कि हमारे संस्कारों में नारी सम्मान कितना रचा-बसा है। दुनियाभर में जो शक्तिशाली लोग होते हैं, जहां शक्ति की चर्चा होती है उनके साथ उनके पिता का नाम जुड़ता है। आपने सुना होगा कि वो फलाना भाई का लड़का बहादुर है, ऐसा कहते हैं कि नहीं। भारत में हमारे यहां वीर पुरुषों के साथ मां का नाम जोड़ा गया है। मैं उदाहरण देता हूं, आप भी सोचिए, अब देखिए, अर्जुन, महान वीर पुरुष थे, लेकिन कभी हमने ये नहीं सुनते हैं कि पांडु पुत्र अर्जुन, ऐसा नहीं बोलते लोग, लोग क्या कहते हैं हम जब भी सुनते हैं तो उनका नाम पार्थ सुना, ये पार्थ क्या है, जो पृथा यानि कुंति के पुत्र हैं। अर्जुन का जब वर्णन आता है तो कौन्तेय के पुत्र कुंतिपुत्र के नाम से भी जाना गया है। इसी प्रकार से भगवान श्री कृष्ण, सर्वशक्तिमान उनका भी जब परिचय दिया जाता है तो देवकीनंदन कहते हैं। देवकी का पुत्र कृष्ण, इस प्रकार से कहते हैं। हनुमान जी की बात आती है तो हनुमान जी को भी, हनुमान जी से बड़ा कोई वीर तो हमने कभी सुना नहीं है, लेकिन उनकी भी बात आती है तो कहते हैं अंजनी पुत्र हनुमान यानि मां के नाम के साथ वीरों के नाम हमारे देश में, ये मां के नाम के महात्म्य को, नारी के महात्म्य को, स्त्री शक्ति का महात्म्य हमें हमारी संस्कार की पूंजी के साथ हमें मिला हुआ है। इतना ही नहीं, ये हमारे संस्कार ही हैं, कि हम अपने देश भारत को भी मां के रूप में देखते हैं, खुद को मां भारती की संतान मानते हैं।
साथियों,
ऐसी महान संस्कृति से जुड़े होने के बावजूद हमारे देश में ये भी हमने देखा, कि घर की संपत्ति पर, घर के आर्थिक फैसलों पर, ज्यादातर हक पिता का या बेटे का रहा। हम सबको पता है घर हो तो पुरुष के नाम, गाड़ी हो तो पुरुष के नाम पर, दुकान हो तो पुरुष के नाम पर, खेत हो तो पुरुष के नाम पर। महिला के नाम पर कुछ नहीं होता, और पति जो गुजर जाये तो सब कुछ पुत्र के नाम पर हो जाता है। हमने निर्णय लिया है कि प्रधानमंत्री आवास जो हम देंगे, दीनदयाल आवास जो हम देंगे उसमें माता का भी नाम होगा। इसलिए 2014 के बाद हमने फैसला लिया कि गरीबों को सरकार जो पक्के घर बनाकर दे रही है, वो मां के नाम होगा या फिर मां और उसके पति के नाम पर होगा, मां या उसके बेटे के संयुक्त नाम पर होगा। अभी तक देश में गरीबों को 3 करोड़ से अधिक घर बनाकर हमने गरीबों को दिए हैं। ये जो खुशी आप जिन लोगों के चेहरों पर देख रहे थे न इस देश के 3 करोड़ लोगों को घर मिला है और ऐसी ही खुशी उनके चेहरे पर आज नजर आ रही है और जिनमें से अधिकतर घरों की मालकिन माताएं बहनें हैं। अपना घर होने की वजह से, अब जो ये घर मिला है न, इस घर की जो कीमत हैं तो उससे ये सभी बहनें लखपति हो गई हैं, आप सभी को पीछे बराबर सुनाई दे रहा है न। मैं गुजरात सरकार को बधाई दूंगा कि वो हर गरीब को पक्का घर देने के अभियान को तेज़ी से पूरा करने में जुटी है। मैं भूपेंद्र भाई को धन्यवाद करता हूं। पिछले वर्ष ही डेढ़ लाख घर गुजरात में पूरे हो चुके हैं। त्योहारों के इस मौसम में गरीब परिवारों की बहनों को अपनी रसोई चलाने में समस्या ना हो, इसलिए सरकार ने मुफ्त राशन की योजना भी आने वाले तीन महीने के लिए और बढ़ा दी है। मुश्किल समय में देश के 80 करोड़ से अधिक साथियों को राहत देने वाली इस स्कीम पर केंद्र सरकार करीब-करीब 4 लाख करोड़ रुपए खर्च कर रही है। बीते 2 दशकों से माताओं-बहनों के सशक्तिकरण के लिए काम करने का बहुत बड़ा सौभाग्य मुझे मिला है। बनासकांठा तो इसका एक बहुत बड़ा साक्षी रहा है। मुझे बहुत कष्ट होता था कि जहां माता अंबाजी और माता नळेश्वरी विराजमान हैं, वहां बेटियों की पढ़ाई को लेकर भी हम पीछे क्यों हैं? इसलिए मैंने जब मां नर्मदा से बनासकांठा के खेत-खलिहान को लहलहाने का प्रण लिया था, तब आपसे मैंने मां सरस्वती को भी घर में स्थान देने का आग्रह किया था। मुझे याद है कि मैं बहनों से बार-बार कहता था कि बेटियां नहीं पढ़ेंगी, तो माँ सरस्वती घर में नहीं आएँगी। जहाँ सरस्वती न हो, वहाँ लक्ष्मीजी कभी पाँव तक नहीं रखती हैं। मुझे खुशी है कि बनासकांठा की बहनों ने, आदिवासी परिवारों ने मेरे आग्रह को स्वीकार किया। आज मां नर्मदा का नीर यहां की तकदीर बदल रहा है, तो बेटियां भी बड़े शौक से स्कूल-कॉलेज जा रही हैं। कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई में भी बनासकांठा ने बहुत सहयोग दिया है। प्रसूति के दौरान माताओं को सुखड़ी (रेसिपी) वितरण का कार्यक्रम हो या फिर दूध दान करने का अभियान, बनासकांठा ने सफलता के साथ इसे आगे बढ़ाया है।
भाइयों और बहनों,
मातृसेवा का जो संकल्प हमने यहां लिया, 2014 के बाद इसके लिए पूरे देश में काम चल रहा है। माताओं-बहनों-बेटियों के जीवन की हर पीड़ा, हर असुविधा, हर अड़चन को दूर करने के लिए, उन्हें भारत की विकास यात्रा का सारथी बनाया जा रहा है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से लेकर देश की सेना में बेटियों की संपूर्ण भागीदारी तक, बेटियों के लिए अवसरों के दरवाजे खोले जा रहे हैं। टॉयलेट्स हों, गैस कनेक्शन हों, हर घर जल हो, जनधन खाते हों, मुद्रा योजना के तहत मिल रहे बिना गारंटी के ऋण हों, केंद्र सरकार की हर बड़ी योजना के केंद्र में देश की मातृशक्ति है, नारी शक्ति है।
साथियों,
जब मां सुखी होती है, तो परिवार सुखी होता है, जब परिवार सुखी होता है, तो समाज सुखी होता है, और समाज सुखी होता है तो देश सुखी होता है मेरे भाइयों। यही सही विकास है, इसी विकास के लिए हम निरंतर काम कर रहे हैं। आप मुझे बताइए, यहां मंदिर के सामने जो इतना जाम लगता था, इससे मुक्ति मिलनी चाहिए थी कि नहीं मिलनी चाहिए थी? वहां शांति का वातावरण चाहिए था कि नहीं चाहिए था? मार्बल लेकर जो ये बड़े-बड़े ट्रक मंदिर के सामने से गुजरते हैं, इनके लिए अलग रास्ता होना चाहिए था कि नहीं चाहिए था? आज नई रेल लाइन और बाईपास के रूप में हम सभी की ये कामना पूरी कर रहे हैं।
भाइयों और बहनों,
आज मैं आपको एक हैरानी की बात भी बताऊंगा। आप सबको ये जानकर बड़ा आश्चर्य होगा कि आज जिस तारंगा हिल-अंबाजी-आबु रोड, मेहसाना ये जो रेल लाइन का शिलान्यास हुआ है न, देश जब गुलाम था, अंग्रेज जब राज करते थे, अंग्रेजों के ज़माने में ये रेल लाइन बनाने का फैसला अंग्रेजों ने 1930 में किया था, यानि करीब-करीब सौ साल पहले, फाइलें पड़ी हैं। इसकी परिकल्पना अंग्रेजों के जमाने में हुई थी। यानि इस क्षेत्र में रेल लाइन की कितनी अहमियत थी, रेल लाइन की जरूरत कितनी थी, ये सौ साल पहले पहचान लिया गया था। लेकिन साथियों, शायद ये काम भी परमात्मा ने, मां अंबा ने मुझे ही करने के लिए कहा होगा। दुर्भाग्य से आजादी के बाद ये काम नहीं हुआ। आज़ादी के इतने दशकों तक ये फाइल सड़ती रहीं। जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था तो इसके पीछे लगा हुआ था, इसका प्रस्ताव रखा था। लेकिन तब हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई, सरकार कुछ और थी। ये हमारा सौभाग्य है कि आज जब देश आजादी के 75 साल पूरे कर रहा है, तब हमारी डबल इंजन की सरकार को इसे माता के चरणों में समर्पित करने का अवसर मिला है। इस रेल लाइन से और बायपास से जाम और दूसरी समस्याओं से तो मुक्ति मिलेगी ही, साथ ही मार्बल उद्योग को भी बल मिलेगा। वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का एक बहुत बड़ा हिस्सा इसी क्षेत्र में है, जो आज चालू हो गया है। डेडिकेटेट फ्रेट कॉरिडोर से यहां का मार्बल, और ये हमारे किसान तो यहां आलू की खेती करने में मशगूल हो गए अब, सब्जियों की खेती कर रहे हैं, टमाटर की खेती कर रहे हैं और दूध में भी पीछे नहीं हैं। इन सारी चीज़ों के लिए बहुत आसानी से रास्ता मिल जाएगा, आसानी से इन्हें पहुंचाना सरल हो जाएगा। किसानों को विशेष लाभ इसलिए भी होगा क्योंकि आने वाले समय में विशेष किसान रेल भी यहां से चल सकती है।
भाइयों और बहनों,
सबसे बड़ा लाभ यहां के पर्यटन उद्योगों को होने वाला है। यहां तो अंबाजी मां स्वयं विराजमान हैं और जब मैं मुख्यमंत्री था तो हमने यहां 51 शक्तिपीठों का भी निर्माण किया है। मां अंबा स्वयं 51 शक्तिपीठों में से एक हैं और हमने दुनिया भर में जहां-जहां मां अंबा का स्थान है उसकी replica यहां बनाई है यानि एक प्रकार से ये 51 तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा अंबा जी में आने से हो जाती है। लेकिन मैंने देखा है, अभी भी लोग इतनी तेजी से आते हैं कि मां अंबा के दर्शन किये, फिर भाग जाते हैं। मैं ऐसी स्थिति पैदा करना चाहता हूं कि जो अंबा जी आएगा उसको दो-तीन दिन यहां रहना पड़े, इतनी सारी चीजें मुझे खड़ी कर देनी है ताकि यहां पूरी रोजी-रोटी बढ़ जाए। देखिए पास में गब्बर, अब हम गब्बर को बदल रहे हैं, आपको नजर आता होगा। किसी ने सोचा होगा क्या? आज गब्बर तीर्थ क्षेत्र के विकास के लिए मैं गुजरात की सरकार की बहुत प्रशंसा करता हूं। अब अजीतनाथ जैन मंदिर, तारांगा हिल, उसके दर्शन भी आसान हो जाएंगे जैसे पालीतला का महत्व बढ़ गया है, वैसे तारांगा हिल का भी महत्व बढ़ेगा। ये आप लिखकर करके रखिए। ट्रेन चलेगी तो ज्यादा तीर्थ यात्री यहां आएंगे, होटल-गेस्ट हाउस, दुकान-ढाबे वालों की यानि उनकी आय बढ़ेगी। छोटे-छोटे दुकानदारों को काम मिलेगा। युवाओं के लिए गाइड से लेकर टैक्सी सेवाओं तक नए मौके मिलेंगे। और धरोई डैम से लेकर के अंबा जी तक पूरा बेल्ट मुझे विकसित करना है। जैसे आप statue of unity पर जाकर के देखते हैं वैसा ही मैं यहां करना चाहता हूं। पूरा एक क्षेत्र धरोई डैम में वॉटर स्पोर्ट्स को लेकर संभावनाएं हैं, अब उन्हें भी और विस्तार मिलेगा।
भाइयों और बहनों,
एक तरफ आस्था और उद्योगों का ये गलियारा है और दूसरी तरफ हमारा बॉर्डर है, जहां हमारे वीर जवान राष्ट्र रक्षा में तैनात रहते हैं। हाल ही में सरकार ने सुईगाम तालुका में सीमा दर्शन प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। प्रयास ये है देशभर से लोग यहां आकर सीधे हमारे बीएसएफ के जवानों के अनुभवों को देखें, जान सकें। ये प्रोजेक्ट राष्ट्रीय एकता के पंच प्राण को भी ताकत देने वाला है और यहां पर्यटन से जुड़े नए रोजगारों का भी सृजन करेगा। मीठा-थराद-डीसा सड़क के चौड़ी होने से भी इस परियोजना को बल मिलेगा। डीसा में एयरफोर्स स्टेशन में रनवे और दूसरा इंफ्रास्ट्रक्चर बनने से हमारी वायुसेना की ताकत भी इस क्षेत्र में बढ़ने वाली है। रणनीतिक लिहाज़ से ये एयरफोर्स स्टेशन देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। जब इतना बड़ा स्टेशन यहां बन रहा है, तब आसपास व्यापार-कारोबार भी बढ़ेगा। यहां दूध-फल-सब्जी से लेकर अनेक प्रकार की ज़रूरतें पैदा होंगी। जिससे यहां के किसानों, पशुपालकों, सभी को लाभ तय है।
भाइयों और बहनों,
बीते 2 दशकों के निरंतर प्रयासों से बनासकांठा की तस्वीर बदल चुकी है। नर्मदा के नीर, सुजलाम-सुफलाम और ड्रिप इरीगेशन ने स्थिति को बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है। इसमें बहनों की भूमिका, इस भूमिका में बहनों का रोल बहुत अग्रणी रहा है। बनासकांठा में कभी अनार की खेती होगी, अंगूर की खेती होगी, आलू और टमाटर इतने बड़े पैमाने में पैदा होंगे, कुछ साल पहले तक ये कोई सोच भी नहीं सकता था। आज जो परियोजनाएं शुरू हुई हैं, वो किसानों, युवाओं, महिलाओं, सभी का जीवन बदलने का काम करेंगी। एक बार फिर मां के चरणों में वंदन करते हुए आप सभी को विकास परियोजनाओं की बहुत-बहुत बधाई। आपका भरपूर आशीर्वाद हमें ऐसे ही मिलता रहेगा, इसी कामना के साथ बहुत-बहुत धन्यवाद। और सबसे पहले मुझे तो आपसे माफी मांगनी है, क्योंकि मुझे यहाँ आते हुए देर हो गई, मुझे इसका अंदाजा नहीं था। मुझे लगा था कि यहाँ से सीधे निकलेंगे और पहुंच जायेंगे। रास्ते में इतनी विराट संख्या में ग्रामीणों से मुलाकात हुई, तो स्वाभाविक रुप से मेरा मन हो रहा था कि उनके पैर छूने का। तो ऐसा करते करते मुझे पहुंचने में देरी हो गई। इसलिए आप सबको ज्यादा इंतज़ार करना पड़ा, उसके लिए क्षमा चाहता हूँ। परंतु अपने बनासकांठा के भाइयों, और अब तो पास में अपना खेडब्रह्मा भी है, हमारे साबरकांठा का पट्टा भी सामने आता है। हम सबको विकास और प्रगति के नये शिखर पर पहुंचना है। और यह 25 सालों का बड़ा अवसर हमारे पास है, आज दुनिया में लोगों का भारत के लिए आकर्षण बढ़ा है। हम यह अवसर जाने दे सकते है? यह अवसर हम जाने दे सकते हैं क्या? मेहनत करनी पड़ेगी कि नहीं करनी पड़ेगी, विकास के कामों में जोर देना पड़ेगा कि नहीं। सबको साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहिए कि नहीं। यह करेंगे, तभी प्रगति होगी भाइयों और यह प्रगति करने के लिए आपने हंमेशा साथ और सहयोग दिया है। यही मेरी ताकत है, यही मेरी पूंजी है। यही आप सभी का आशीर्वाद हमें नया-नया करने के लिए प्रेरणा देता है। और इसलिए इस माता के धाम में से आप सभी गुजरात वासियों का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ। बहुत बहुत धन्यवाद।