"राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मूल आधार, शिक्षा को संकुचित सोच के दायरों से बाहर निकालना और उसे 21वीं सदी के आधुनिक विचारों से जोड़ना है"
"अंग्रेजों द्वारा बनाई गई शिक्षा प्रणाली कभी भी भारतीय लोकाचार का हिस्सा नहीं थी"
"हमारे युवा स्किल्ड हों, कॉन्फिडेंट हों, प्रैक्टिकल और कैलकुलेटिव हों, शिक्षा नीति इसके लिए जमीन तैयार कर रही है"
"महिलाओं के लिए भी जो क्षेत्र पहले बंद हुआ करते थे, आज वो सेक्टर बेटियों की प्रतिभा के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं"
"राष्ट्रीय शिक्षा नीति' ने हमें असंख्य संभावनाओं को साकार करने का एक साधन दिया है"

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल, श्रीमती आनंदीबेन पटेल, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी धर्मेन्द्र प्रधान जी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन के. कस्तूरीरंगन जी, सरकार के अन्य मंत्रीगण, इस सम्मेलन में भाग ले रहे सभी वाइस चान्सलर्स, शिक्षा संस्थाओं के निदेशक, सभी शिक्षकगण, शिक्षाविद और देवियों और सज्जनों,

‘अखिल भारतीय शिक्षा समागम’ का ये आयोजन उस पवित्र धरती पर हो रहा है, जहाँ आज़ादी से पहले देश की इतनी महत्वपूर्ण यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई थी। ये समागम आज एक ऐसे समय में हो रहा है, जब देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। अमृतकाल में देश के अमृत संकल्पों को पूरा करने की बड़ी जिम्मेदारी हमारी शिक्षा व्यवस्था पर है, हमारी युवा पीढ़ी पर है। हमारे यहाँ उपनिषदों में भी कहा गया है- विद्यया अमृतम् अश्नुते। अर्थात्, विद्या ही अमरत्व और अमृत तक लेकर जाती है। काशी को भी मोक्ष की नगरी इसीलिए कहते हैं क्योंकि हमारे यहाँ मुक्ति का एकमात्र मार्ग ज्ञान को, विद्या को ही माना गया है और इसलिए, शिक्षा और शोध का, विद्या और बोध का इतना बड़ा मंथन जब सर्वविद्या के प्रमुख केंद्र काशी में होगा, तो इससे निकलने वाला अमृत अवश्य देश को नई दिशा देगा। मैं इस अवसर पर, महामना मालवीय जी के चरणों में नमन करते हुए इस आयोजन के लिए आप सभी को शुभकामनाएं देता हूँ। मैं काशी का सांसद हूं। मेरी काशी में आप पधारे हैं, तो एक प्रकार से मैं होस्ट भी हूं। आप इन सबके साथ-साथ मेरे भी मेहमान हैं। मुझे विश्वास है कि व्यवस्थाओं में ज्यादा आपको असुविधा नहीं होगी, प्रबंध करने का सबने भरपूर प्रयास भी किया होगा। लेकिन फिर भी अगर कोई कमी रह गई है। तो वो दोष मेरा रहेगा और एक होस्ट के नाते कोई भी आपको असुविधा हो जाये तो उसकी क्षमा मैं पहले से मांग लेता हूं।

साथियों,

मैं अभी एक कार्यक्रम करके आ रहा हूं। यहां मध्याह्न भोजन के लिए एक एक centralize kitchen का काम था। लेकिन वहां मुझे मेरी काशी की सरकारी स्कूल के 10-12 साल की उम्र के बच्चों के साथ गप्पे-गोष्ठी करने का अवसर मिला और वहां से निकलकर के यहां आया हूं, और मैं उनसे सुनकर के आया हूं और आपको सुनाने आया हूं। और मुझे कहना होगा मैं तो चाहुंगा, मैं जब अगली बार आऊंगा, तो जिस स्कूल के बच्चों से मुझे मिलना हुआ है। मैं उनके जो टीचर्स हैं, उनसे मिलना चाहुंगा। आप कल्पना कर सकते हैं कि ऐसा विचार मुझे क्यों आया होगा। मेरे मन पर इतना प्रभाव पैदा हुआ, 10-15 मिनट का ही वो अवसर था मेरे पास, लेकिन जो प्रतिभा उन बच्चों में थी, जो टैलेंट था, जो confidence था और जो विविधता थी और वो भी एक सरकारी स्कूल के हमारे सामान्य परिवार के बच्चों की। जो टैलेंट वो बच्चे वहां प्रस्तुत कर रहे थे, आपके परिवार में भी अगर आपका पोता नाती अगर ऐसी टैलेंट आपके सामने रखेगा तो जब भी मेहमान घर में आयेंगे आप उसको खड़ा कर देंगे, जरा देखो मेहमान आये वो तुम सुनाओ। मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि वर्तमान पीढ़ी का ये सामर्थ्य उनकी क्षमता जब वो आप जहां हैं वहां पहुंचेंगे पद पर नहीं उन institute में, आप तो नहीं होंगे, आप ऐसी institute बनाकर जाएंगे कि इस प्रतिभा के बच्चे आने वाले दिनों में आने वाले हैं। उनको वहां कमी नजर न आये ये काम सबसे बड़ा आपके जिम्मे है और मुझे विश्वास है कि अगले तीन दिनों तक यहाँ जो चर्चा और विमर्श होगा, उससे राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन को प्रभावी दिशा मिलेगी।

साथियों,

आप सभी जानते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मूल आधार, शिक्षा को संकुचित सोच के दायरों से बाहर निकालना और उसे 21वीं सदी के आधुनिक विचारों से जोड़ना है। हमारे देश में मेधा की कभी कोई कमी नहीं रही है। लेकिन, दुर्भाग्य से हमारे यहाँ ऐसी व्यवस्था बना कर दी गई थी जिसमें पढ़ाई का मतलब केवल और केवल नौकरी ही माना जाने लगा था। शिक्षा में ये विकार गुलामी के कालखंड में अंग्रेजों ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए, अपने लिए एक सेवक वर्ग तैयार करने के लिए किया था। आजादी के बाद, इसमें थोड़ा बहुत बदलाव हुआ भी लेकिन बहुत सारा बदलाव रह गया। अब अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था कभी भी भारत के मूल स्वभाव का हिस्सा नहीं थी और न हो सकती है। अगर हम हमारे देश के पुराने कालखंड की तरफ नजर करें। हमारे यहाँ शिक्षा में अलग-अलग कलाओं की धारणा थी। और बनारस तो मेरी काशी तो इसका जीवंत उदाहरण है। बनारस ज्ञान का केंद्र केवल इसलिए नहीं था, क्योंकि यहाँ अच्छे गुरुकुल और शिक्षण संस्थान थे। बनारस ज्ञान का केंद्र इसलिए था, क्योंकि यहाँ ज्ञान और शिक्षा, बहु आयामी Multi Sectoral थी। शिक्षा में यही विविधता हमारी शिक्षा व्यवस्था का भी प्रेरणास्रोत होनी चाहिए। हम केवल डिग्री धारक युवा तैयार न करें, बल्कि देश को आगे बढ़ने के लिए जितने भी मानव संसाधनों की जरूरत हो, हमारी शिक्षा व्यवस्था वो देश को उपलब्ध करायें, देश को दे। इस संकल्प का नेतृत्व हमारे शिक्षकों और शिक्षण संस्थानों को करना है। हमारे शिक्षक जितनी तेजी से इस भावना को आत्मसात करेंगे, छात्र-छात्राओं को देश के युवाओं को उतना ही ज्यादा, देश के आने वाले भविष्य को भी उतना ही ज्यादा लाभ होगा।

साथियों,

नए भारत के निर्माण के लिए, नई व्यवस्थाओं का निर्माण, आधुनिक व्यवस्थाओं का समावेश उतना ही जरूरी है। जो पहले कभी नहीं हुआ, जिन लक्ष्यों को पाने की देश कल्पना भी नहीं करता था, वो आज के भारत में हकीकत में हमारे सामने निर्माण हो रही है। अब आप देखिए, कोरोना की इतनी बड़ी महामारी से हम न केवल इतनी तेजी से उबरे, बल्कि आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ रही बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक हैं। आज हम दुनिया के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम हैं। स्पेस टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में, जहाँ पहले केवल सरकार ही सब करती थी, वहां अब प्राइवेट प्लेयर्स के जरिए युवाओं के लिए एक नई दुनिया तैयार हो रही है, पूरा अंतरिक्ष उनके बहुत पास में आ रहा है दोस्तों। देश की बेटियों के लिए, महिलाओं के लिए भी जो क्षेत्र पहले बंद हुआ करते थे, आज वो सेक्टर बेटियों की प्रतिभा के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।

साथियों,

जब देश का मिजाज़ ऐसा हो, जब देश की रफ़्तार ऐसी हो तो हमें अपने युवाओं को भी खुली उड़ान के लिए नई ऊर्जा से भरना होगा। अभी तक स्कूल, कॉलेज और किताबें ये तय करते आये थे कि बच्चों को किस दिशा में जाना है। लेकिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बाद अब युवाओं पर दायित्व और बढ़ गया है। और इसके साथ ही हमारी भी ये जिम्मेदारी बढ़ गई है कि हम युवाओं के सपनों और उड़ान को निरंतर प्रोत्साहित करें, उसके मन को समझें, उसकी आकांक्षाओं को समझें, तभी तो खाद पानी डाल पाएंगे। उसे समझे बिना कुछ भी थोपने वाला युग चला गया है दोस्तो। हमें इस बात का हमेशा ध्यान रखना होगा, हमें वैसा ही शिक्षण, वैसी ही स्ंस्थानों की व्यवस्थाएं, वैसा ही Human Resource Development का हमारा मिजाज, अपने आपको सज्ज करना ही होगा। नई नीति में पूरा फोकस बच्चों की प्रतिभा और चॉइस के हिसाब से उन्हें skilled बनाने पर है। हमारे युवा skilled हों, confident हों, practical हो, calculative हो, शिक्षा नीति इसके लिए जमीन तैयार कर रही है।

साथियों,

देश में तेजी से आ रहे परिवर्तन के बीच शिक्षा व्यवस्था और इससे जुड़े आप सभी महानुभावों की भूमिका कितनी अहम है, इसका एक उदाहरण मैं अपने गुजरात के मुख्यमंत्री काल के शुरुआत के कालखंड का एक अनुभव बताता हूं। मैं नया-नया मुख्यमंत्री बना था, सरकार वरकार की दुनिया से मेरा कोई नाता ही नहीं था मैं बहुत दूर था, अचानक काम आया था। तो मैंने एक कार्यक्रम मनाया था। मेरे सभी सचिवों को मैंने कहा कि आप ही आपके डिपार्टमेंट के मुख्यमंत्री हैं। और मुझे बताईये पांच साल में आप अपने डिपार्टमेंट को कहां ले जाओगे? कैसे ले जाओगे? अचीव क्या करोगे? उससे गुजरात के सामान्य मानवीय के जीवन को क्या लाभ होगा? उसका एक अपना विजन और पूरी डिटेल के साथ प्रेजेंटेशन कीजिए। ये मैंने सभी विभागों के सचिवों को कहा और हर दिन शाम को पांच बजे सभी मेरी मंत्रिपरिषद के मंत्री और सभी सचिव हम बैठते थे और एक सचिव आकर के अपने विभाग का पूरा प्रेजेंटेशन देते थे, फिर डिबेट होती थी। सभी सचिव जो पहले भी कोई एग्रीकल्चर सचिव रहा होगा, वो भी वहां बैठा हुआ है। सब लोग अपने अपने विचार रखते थे। डिबेट होती थी, हमारे मंत्री भी डिबेट करते थे। मैं सुनता रहता था। सीखने का प्रयास करता था। एक दिन और ये कार्यक्रम मेरा करीब महीने भर चला था और शाम के 5 बजे शुरू होता था, रात 10 बजे तो बड़ी मुश्किल से घर जाने की इजाजत मिलती थी। और बड़ी ही, बड़ा ही intense वो कार्यक्रम चला। और शायद हिन्दुस्तान के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ होगा। तो मेरे यहां उद्योग के जगत के संबंधित प्रेजेंटेशन हुआ। आने वाले दिनों में वो औद्योगिक क्या-क्या देखते हैं, आने वाले दिनों में औद्योगिक विकास कैसा होगा, सारा बता रहे थे। तो सारा कार्यक्रम पूरा होते ही शिक्षा सचिव मेरे पास आए। क्योंकि दूसरे दिन शिक्षा सचिव का कार्यक्रम था। उसने कहा साहब मैं कल नहीं कर पाऊंगा।

मैंने कहा क्या बात करते हो भई? एक महीने पहले आपको तैयारी करने के लिए कहा और आप last moment कह रहे हैं, मैं नहीं कर पाऊंगा। उन्होंने कहा तैयार तो है, मैं कर सकता हूं, लेकिन आज जो मैंने औद्योगिक विकास का जो प्रेजेंटेशन देखा उसको देखकर के मुझे लगता है कि हमारा उनका कोई मेल ही नहीं है। हम बाएं जा रहे हैं, वो दायें जा रहे हैं। तो मैं इसकी लाईट में मेरी जो प्रेजेंटेशन है, उसको modify करने के लिए मुझे समय चाहिए, तब जाकर के हम एक inclusive growth की दिशा में साथ मिलकर के शिक्षा और industry चल सकते हैं। हमें भी अब तो पूरी दुनिया का पता होना चाहिए, हर university के बारे के बारे में पता होना चाहिए कि दुनिया आगे किस तरफ जा रही है, कैसे जा रही है। उसमें हमारा देश कहां है। उसमें हमारे युवा कहां हैं। आने वाले 15-20 साल उन बच्चों के हाथ में भारत होगा, उनको मैं कैसे तैयार कर रहा हूं। ये हमारा बहुत बड़ा दायित्व है दोस्तों। और इसी तर्ज पर हमारे सभी शिक्षण संस्थानों को भी खुद से पूछने की जरूरत है कि क्या हम फ्यूचर रेडी हैं? मैं आज दिन बिता रहा हूं, एग्जाम दे रहा हूं। convocation कर रहा हूं, क्या यही मेरा मैं जिस पद पर हूं, वही काम है, क्या मेरा काम ये है कि मैं ऐसा संस्थान खड़ा करके जाऊंगा कि आज जो बच्चा मेरे स्कूल, कॉलेज में आएगा, आजादी के जब 100 साल होंगे, जब वह बहुत बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता होगा तब मेरा देश वहां पहुंचेगा, मैं वो व्यवस्था आज पैदा करके जाऊंगा। आप सबको वर्तमान संभालना है, आपके पहले जो करके गये हैं, उसको आगे बढ़ाना है, लेकिन आज जो काम कर रहे हैं, उनको future के लिए ही सोचना होगा और व्यवस्थाएं future के लिए विकसित करनी होगी। क्योंकि, आज बच्चों की जिज्ञासाएं ऐसी होती हैं जिनके उत्तर अभी मैंने कहा जिन बच्चों को मिलके आया हूं। आपको भी घर में पता चलता होगा छोटे-छोटे आपके पोते-पोती भी आपको सवाल पूछते होंगे, आपके नन्हें मुन्हें बेटे आपको सवाल पूछते होंगे, आपको सोचना पड़ता होगा अरे भई ये कहां सर खा रहा है। वो सर नहीं खा रहा है आपका सर उसको जवाब नहीं दे पा रहा है दोस्तो, वो सब है। आपके हर किसी के घर में ये अनुभव आया होगा जी, आज की पीढ़ी जिन बातों को लेकर के आती है। वो तो गूगल पर 10 चीजें सवाल पूछते हैं, बोलते हैं आप क्या कर रहे हो गूगल तो ये कह रहा है।

आपको counter करता है बच्चा। अब ये बच्चे आपकी university में दस साल के बाद आएंगे तब क्या हाल होगा आपका? हमें अभी से तैयार करना होगा अपने-आप को। आप घर में भी अपने बच्चों के साथ mismatch अनुभव कर रहे हैं। जब स्कूल, कॉलेज के कैंपस के अंदर बहुत बड़ी मात्रा में युवा पीढ़ी होगी। इस प्रकार से नई सोच के साथ आई होगी। और हम वहां उसके योग्य नहीं होंगे तो उनके साथ कितना बड़ा गहरा अन्याय हो जाएगा दोस्तों, और इसलिए आवश्यक है कि हम भाविष्य को जाने, समझें व्यवस्थाओं को विकसित करें। मैं अभी कुछ दिन पहले Digital India अभियान के तहत गांधीनगर में एक exhibition देखने गया था। वहां सरकारी स्कूल के बच्चें थे। बारहवीं, दसवीं eleventh के बच्चें थे। वहां बच्चों ने जो प्रोजेक्ट्स तैयार किये थे, जो ideas रखे थे, मैं बहुत उसको समझने की, देखने का प्रयास कर रहा था और मैं प्रभावित हुआ था इन बच्चों के काम। रिसर्च का ऐसा पोटेंशियल, कम उम्र में ऐसे ऐसे इनोवेशन वाली बातें सुनकर मैं दंग रह गया। वहां कई बच्चे बायोटेक और जेनेटिक्स में इंटरेस्टेड थे। उनकी क्लास में जब साइंस के फंडामेंटल्स पढाये जा रहे हैं, तब वो जीन मैपिंग, Affinity chromatography (एफिनिटी क्रो-मेटोग्राफी) और जेनेटिक लाइब्रेरी बेस्ड टूल्स की बात कर रहे थे। अब कितना बड़ा अंतर है आप कल्पना करिए। मैं उनके काम को देखकर सोच रहा था कि जब ये हायर एजुकेशन में पहुंचेगे, तो हमारे institutes इनकी आधुनिक सोच के मुताबिक तैयार होंगे क्या? अगर हम इन बच्चों के लिए उनके हायर एजुकेशन में पहुँचने का इंतजार करेंगे तब तक दुनिया बहुत आगे निकल जाएगी दोस्तो। इसलिए, हमें ये अभी सोचना होगा कि जिस उम्र में भी बच्चों के मन में मोटिवेशन है, उसी उम्र में उन्हें गाइडेंस और रिसोर्सेस मिलें, इसका प्रबंध हमने सोचना पड़ेगा। हमें अपने संस्थान में ऐसी व्यवस्था तैयार करने पर काम करना चाहिए।

साथियों,

इसी महीने के आखिर में, 29 जुलाई को राष्ट्रीय शिक्षा नीति को दो साल पूरे होने वाले हैं। और अभी धर्मेंद्र जी बता रहे थे कि बड़े मंथन के बाद ये शिक्षा नीति बनाई। कस्तूरीरंगन जी ने बहुत अच्छा नेतृत्व दिया, उसके कारण ये संभव हुआ। और इतना विविधता भरा देश और राष्ट्रीय शिक्षा नीति का इस प्रकार से स्वागत हो, ये अपने आप में बहुत बड़ी सिद्धि है जी। बहुत बड़ी सिद्धि है। लेकिन इसकी विशेषता देखिए, इसको बनाने में तो मंथन हुआ, आमतौर पर सरकार का स्वभाव होता है एक document बन जाता है और document समय के भरोसे छोड़ दिया जाता है, कुछ व्यक्तियों के भरोसे छोड़ दिया जाता है। आपके भी टेबल पर कुछ दिन शोभा बढ़ाता है document। फिर वो भी टेबल पे से हट जाता है कोई नया document आता है वो जगह ले लेता है। बात वहीं समाप्त हो जाती है। इसका अनुभव आपको भी है, यहां बैठे लोगो को भी है। हमने ऐसा नहीं होने दिया। हमने हर पल इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति को जिंदा रखा है। मैं स्वयं भी इतने कम समय में कम से कम 25 सेमिनार में गया हूं शायद। 25 से ज्यादा, और इसी विषय पर मैं बोलता रहा हूं। ये रिपोर्ट देने के बाद स्वयं कस्तूरीरंगन जी लगातार संवाद कर रहे हैं, हर क्षेत्र के लोगों से संवाद कर रहें हैं। उनके clarification चाहिए समझा रहे हैं, उनके पीछे का vision क्या है background information वो समझा रहे हैं। पूरी सरकार के सभी डिपार्टमेंट लगातार कोशिश कर रहे हैं कि ये क्योंकि 30 साल के बाद आया document सिर्फ कागज का ढर्रा हमारे पास पहुंच जाने होगा नहीं जी। आप भी यहां जब तीन दिन मंथन करोगे उसकी कई बारिकियां हैं जो शायद अपने पूरा पन्ना-पन्ना पढ़ लिया होगा लेकिन अब नए तरीके से आपके सामने उजागर होगी। इसलिए अपनी university के अंदर भी ऐसे ही निरंतर मंथन की योजना बनाकर के यहां से जाना है। सिर्फ यहां से आप सुनकर के मत चले जाना। आपके साथ जुड़े हुए जो बाकी साथी हैं। वे भी ऐसा ही मंथन करें, उसमें से और मंथन निकाले जी तब जाकर के इसका लाभ होगा। और इसके Implementation के लिए जो चुनौतियां हैं। उसकी हर बारीकि पर हमें गौर करते रहना चाहिए।

साथियों,

आज जब कोई काम अपने हाथों में लेता है, तो समस्यायों का समाधान भी तेजी से निकलता है। समस्या समझकर के यार मैं कहां पडूं, इसमें तो समाधान कभी नहीं निकलता है। साथियों, इन दो सालों में देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने की दिशा में कई ठोस कदम उठा चुका है। इस दौरान, Access, Quality और Future Readiness जैसे जरूरी विषयों पर हुई वर्कशॉप्स ने भी बहुत मदद की है। देश विदेश के academicians इनसे से जो चर्चाएँ हुईं, मेरा भी देश के शिक्षामंत्रियों के साथ, शिक्षाविदों के साथ जो संवाद हुआ, उसने भी इसकी गति को आगे बढ़ाया है और अभी कुद दिन पहले हमारे धर्मेंद्र जी ने देशभर के शिक्षा मंत्रियों को भी बुलाया है। जैसे आपके साथ चर्चा कर रहे हैं, उनके साथ भी की थी। लगातार कोशिश हो रही है कि इन चीजों को हम शत-प्रतिशत साकार कैसे करें पाएं ? राज्य सरकारों ने भी अपने अपने स्तर पर इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। और आज सभी के प्रयासों का परिणाम है कि देश, और खासकर देश का युवा इस बड़े बदलाव में भागीदार बन रहा है।

साथियों,

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए देश के एजुकेशन सेक्टर में एक बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर overhaul पर भी काम हुआ है। आज देश में बड़ी संख्या में नए कॉलेज खुल रहे हैं, नए विश्वविद्यालय खुल रहे हैं, नए IIT और IIM की स्थापना हो रही है| 2014 के बाद से, देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। युवाओं को बेहतर अवसर देने के लिए, यूनिवर्सिटीज़ में समान स्टैंडर्ड्स के लिए इस वर्ष से Common University Entrance Test (CUET) भी लागू किया गया है। ऐसे ही कई और भी Reforms किये गए हैं। देश के इन प्रयासों का परिणाम है कि World University Rankings में भारतीय संस्थानों की संख्या में धीरे-धीरे संख्या में वृद्धि हो रही है। ये बदलाव केवल शुरुआत है। अभी हमें इस दिशा में लम्बी दूरी तय करनी है।

साथियों,

मुझे ये भी संतोष है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति अब मातृभाषा में पढाई के रास्ते खोल रही है। इसी क्रम में, संस्कृत जैसी प्राचीन भारतीय भाषाओँ को भी आगे बढाया जा रहा है। मैं यहाँ देख रहा हूँ कि, इस आयोजन में भी संस्कृत से जुड़े लोगों के लिए विशेष व्यवस्था है। काशी की धरती से हुई ये शुरुआत निश्चित ही भारतीय भाषाओं और भारतीय संकल्पों को नई ऊर्जा देने का काम करेगी।

साथियों,

मुझे पूरा विश्वास है, आने वाले समय में भारत दुनिया में वैश्विक शिक्षा का एक बड़ा केंद्र बनकर उभर सकता है| भारत न केवल दुनिया के युवाओं के लिए एजुकेशन डेस्टिनेशन बन सकता है, बल्कि दुनिया के देशों में भी हमारे युवाओं के लिए नए अवसर बन सकते हैं। इसके लिए हमें अपने एजुकेशन सिस्टम को इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स पर तैयार करना होगा। इस दिशा में देश लगातार प्रयास भी कर रहा है। हायर एजुकेशन को इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स के हिसाब से तैयार करने के लिए नए दिशा निर्देश जारी किये गए हैं। करीब 180 उच्च शिक्षा संस्थानों में अंतर्राष्ट्रीय मामलों के लिए विशेष कार्यालय की स्थापना भी की गयी है। मैं चाहूँगा कि आप सभी इसी दिशा में न केवल जरूरी विमर्श करें, बल्कि भारत के बाहर की व्यवस्थाओं से भी परिचित होने का प्रयास करें। ये नई व्यवस्था, भारत की शिक्षा व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से भी जोड़ने में मदद करेंगी।

साथियों,

इन तीन दिनों में आप लोग अलग अलग sessions में कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करने वाले हैं। मैं चाहूँगा कि आपकी इस चर्चा से देश के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में नए रास्ते खुलें, युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन हो। दुनिया के कई देशों ने अलग-अलग क्षेत्रों में जो रफ़्तार पकड़ी है, उसमें एक बड़ा योगदान वहाँ की यूनिवर्सिटीज का भी है। यूनिवर्सिटीज लगातार सामाजिक आर्थिक और वैज्ञानिक विषयों पर रिसर्च करती हैं, सरकार को सुझाव देती हैं। यही कल्चर, यही कार्यपद्धति हमें अपने यहाँ भी विकसित करने की जरूरत है। इससे यंग जनरेशन को देश और देश की नीतियों की समझ आती है, और वो उसकी संभावनाओं से भी परिचित होते हैं। मेरा हमेशा से मानना रहा है कि देश के युवाओं की इनोवेटिव सोच और नए आइडियाज से नई व्यवस्थाओं को भी ज्यादा से ज्यादा जुड़ना चाहिए। इससे फ्रेश टैलेंट आता है, फ्रेश ideas आते हैं| मैं चाहूँगा कि इसे लेकर भी आप सब चर्चा करें, कोई रोडमैप तैयार करें। यूनिवर्सिटीज कैसे सरकार के साथ अलग-अलग क्षेत्रों में पार्टनरशिप कर सकती हैं, इस बारे में भी सोचा जाना चाहिए। अपनी एक्सपर्टीज आपको ही तय करनी है। आप जिस क्षेत्र में हैं, उसे लेकर सर्वे और स्टडी करें, सरकार को सुझाव दें। आपकी university का जो 50-100 किलोमीटर को जो दायरा होगा, वहां की जन सामान्य की समस्याएं क्या हैं? उसका उपाय क्या है? Resources क्या हैं? उस Resources के लिए क्या किया जा सकता है? वहां के सामान्य व्यक्तियों की वृत्ति प्रवत्ति क्या है? आपके स्टूडेंट्स को एक प्रोजैक्ट मिल जाएगा। स्थानीय रूप से बढ़िया रिपोर्ट बनेगी, सरकार की कोई योजना चलती है तो उसकी अच्छाईयां क्या है, कमियां क्या हैं, सुधार की संभावना क्या हैं, बढ़िया रिपोर्ट बन सकता है। ये सारी बाते सरकार के अंदर गंभीरता से अगर लिया जाए बहुत बड़ा परिणाम आता है। मुझे याद है मैं गुजरात में था तो एक बार सरदार पटेल यूनिवर्सिटी में मेरा कार्यक्रम था।

सरदार पटेल यूनिवर्सिटी के लोगों ने Rural Development में काफी रिसर्च करके कुछ किताबें तैयार की थी। उस दिन उन्होंने मुझे गिफ्ट की। मैंने जरा बड़ी बारीकि से उसे देखा, मुझे बड़ा इंटरेस्ट लगा। मैंने डिपार्टमेंट को काम दिया। मैंने कहा कि भई ये जो स्टूडेंट्स ने काम किया है। आप जरा देखिए सरकार जहां जा रही है और ये बच्चें जो कह रहे हैं, कितना अंतर है और आप हैरान हो जाएंगे उसमें से बहुत सी चीजें मुझे Rural Development के मेरे काम में इतने मदद आयी। विद्यार्थियों ने टीचर्स का किया हुआ काम था।। जो सरकार में Air Condition कमरे में बैठकर के निर्णय करना मुश्किल होता है जी। जो फील्ड में हमारी ये पीढ़ी जाती है बहुत अच्छा उसका अर्क निकालकर के ले आती है। और कुछ चीजों का कल्पना भर का लाभ हुआ हो ये भी ध्यान में आता है, और मुझे विश्वास है। अब जैसे हमारे यहां एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी है।

अब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लैब में जो करती है। कितना ही अच्छा काम करे, लेकिन उसको सर्टिफिकेट भी मिल जाये, international magazine में उसका आर्टिकल भी छप जाये। उसको डिग्री भी मिल जाये, लेकिन वो तो मामला लैब में ही रह जाएगा। हमारे पास लैब टू लैंड का रोडमैंप भी होना चाहिए ना। जो लैब में है वो लैंड में भी तो उतरना चाहिए ना। और जैसे लैब टू लैंड होना चाहिए वैसे ही लैंड पर यूनिवर्सिटी में नहीं गए ऐसे लोगों का अनुभव भी बहुत ज्यादा होता है। औरे जो लैंड का अनुभव है। उसको लैब में भी लाना चाहिए और लैब में वो कैसे आये? रिसर्च को कैसे enrich करे, परंपरागत अनुभव को कैसा करें ये सोचकर हम कदम उठा सकते हैं। इसी तरह, हमारे यहां ट्रेडिशनल मेडिसिन आयुर्वेद का हमारा ज्ञान हो उसको चुनौती तो आप भी नहीं करोगे, मैं भी नहीं करुंगा। लेकिन दुनिया के कई देश हैं, जो ट्रेडिशनल मेडिसिन में हमसे आगे निकल रहे हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि आज के समय में परिणाम और प्रमाण दोनों की जरूरत होती है। हम ये कहें कि भई मैं ये जड़ी-बूटी लेते हुए फायदा होता है, परिणाम मिलता है, लेकिन हम मान के चले और सभी यूनिवर्सिटी के छात्र मेरा कुछ न यहां से सुनकर के जाये चलेगा, दो शब्द मेरे सुनकर के चलके जाइएगा और उस पर मंथन कीजिएंगा। हमें परिणाम तो मिल जाते हैं, लेकिन प्रमाण नहीं होते हैं और इसलिए हमारे पास परिणाम के साथ-साथ प्रमाण होने चाहिए। हमारे पास डेटाबेस होना चाहिए। हमारे पास उसका पूरा डिटेल रिकॉर्ड होना चाहिए, कहां से कैसे बदलाव हुआ है। हम भावना के आधार पर दुनिया नहीं बदल सकते हैं। दुनिया के सामने उसे मॉडल के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं। और इसलिए परिणाम होने के बावजूद भी प्रमाण की आवश्यकता आज की विश्व को बहुत जरूरी है। और इसलिए अब हमारी यूनिवर्सिटीज जो परिणाम से हम परिचित हैं लेकिन जिसमें प्रमाण का अभाव है, उन प्रमाण की पूर्ति करने के लिए मैकेनिज्म बनाना, व्यवस्थाएं विकसित करना, परंपराएं विकसित करना ये आप सब साथियों के मदद के बिना होना नहीं है। एविडेंस बेस्ड ट्रेडिशनल मेडिसिन पर रिसर्च का ये काम भी हमारी यूनिवर्सिटीज बहुत अच्छी तरह कर सकती हैं।

साथियों,

हमारे देश में डेमोग्राफिक डिविडेंड हमारी बहुत बड़ी ताकत है। चर्चा भी करते हैं लेकिन क्या कोई यूनिवर्सिटी है जिसने इसका स्टडी किया है कि आखिर ये डेमोग्राफिक डिविडेंड है क्या। क्या दुनिया में जब डेमोग्राफिक डिविडेंड का अवसर आया था तब उस दुनिया के उद्देश्य ने किस प्रकार के कदम उठाये थे। वहां की यूनिवर्सिटिी कैसे व्यवहार करती थी और उसका बैनिफिट कैसे लिया। बहुत बार हम कहते हैं दोहराते रहते हैं। लेकिन डेमोग्राफिक डिविडेंड की संभावनाओं पर हम क्यों न काम करें, उस सामर्थ्य का उपयोग हम आने वाले 20,25,30 साल के लिए देश को कैसे दे सकते हैं। ऐसे ही, हम देखते हैं अब दुनिया के देशों की स्थिति देखिए समृद्ध से समृद्ध देश भी इस बात से परेशान है कि वहां लोगों की आयु बहुत बढ़ रही है। Ageing (एजिंग) प्रॉब्लम है और युवा पीढ़ी न के बराबर हो रही है। बहुत बड़ा बल्क बुजुर्गों का है। उनको जो दुनिया चलानी है उसको चला नहीं पाते हैं। अब ये चक्र ऐसा है कि इसमें हरेक को आना ही आना है। आज हमारे देश युवा है कभी हमारा देश भी ऐसा ही होगा। इसमें युवा कम होंगे, वृद्ध ज्यादा होंगे वो दिन आने वाले हैं। क्या दुनिया में अभी से कोई है जो इस प्रकार के वृद्धत्व के कारण देश की जो स्थितियां बनी है, उसके solution के लिए उन्होंने रास्ते क्या खोजें हैं। यूथ का अभाव में वो समस्याओं को समाधान कैसे कर रहे हैं। कौन से ऐसा मैकेनिज्म बनाया है कि चीजें बड़ी smoothly आगे बढ़ रही हैं। ये सारे सोचने का काम मेरी यूनिवर्सिटीज का सहज स्वभाव होना चाहिए। यूनिवर्सिटी में आपके लिए अभी से मैं मानता हूं रिसर्च और काम करने का अच्छा स्कोप होता है और इसके कारण जिन बच्चों को ये प्रोजैक्ट देते हैं उनका एक विजन बनता है। उनको भी नई चीजें समझने का अवसर मिलता है। अब क्लाइमेट चेंज की इतनी बड़ी चर्चा हो रही है। क्लाइमेट की फील्ड में भी हमारे लोग अगर काम करें तो असीमित संभावनाएं हैं हमारे पास। अब हमारे देश में एक योजना बनाई है CDRI की। क्लाइमेट की स्थिति में हमारा infrastructure ऐसा होना चाहिए जो उसका सामना कर सके। resilient होना चाहिए। अब उस पर हमारे रिसर्च के बिना हम कैसे करेंगे, पहले के जमाने में जो चीजे बनाते थे। तब न इतनी बाढ़ आती थी, न इतनी वर्षा होती थी कुदरत हमारे साथ चलती थी, हम कुदरत के साथ चलते थे। अब वो हमसे उलटा चल रही है, हम उससे उलटा चल रहे हैं और इसलिए हमें इस नए संकट के सामने जीना कैसे है उसको सिखने के लिए व्यवस्था करनी चाहिए। आज सारी दुनिया सोलर पॉवर की तरफ बढ़ रही है। भारत भाग्यवान है कि उसके पास तपता हुआ सूरज है। उस तपते हुए सूरज की मालिकी का हम कैसे उपयोग करेंगे। उसके सामर्थ्य को हम हमारे जीवन व्यवस्था का हिस्सा कैसे बनाएं। सोलर पावर को हमारे यहाँ इतना महत्व दिया गया है।

सरकार की नीतियों में दिया गया है। लेकिन हम रिसर्च के द्वारा, नए- नए अनुसंधान के द्वारा आज नए युग के हिसाब से नए वैज्ञानिक संसाधनों के साथ इस ऊर्जा को इस्तेमाल करने के लिए हमें काफी काम करने की जरूरत लगती है। उसी तरह साथियों, स्वच्छ भारत अभियान हर व्यक्ति के दिल में ये बात अब घर कर गई है। हां भई स्वच्छ भारत के विषय में कोई compromise नहीं होना चाहिए। लेकिन बात वहां से बनती नहीं है। जब तक हम वेस्ट टू वेल्थ की तरफ योजनाएं नहीं बनाते हैं, ये जो कूड़ा कचरा निकलता है, उसका सर्कुलर इकॉनामी क्या हो सकती है, उसका बेस्ट प्रोडक्ट क्या हो सकता है। ये तो यूनिवर्सिटी रिसर्च करके दे सकती है। हमारे नए-नए लोग होते हैं, प्रयोग करके देख सकते हैं। हम वेस्ट में से बेस्ट कैसे बनाएं। हम सर्कुलर इकॉनामी को कैसे मजबूत करें और खासकर लोकल लेवल पर सर्कुलर इकॉनामी जैसे कितने ही क्षेत्र आज हमारे स्टूडेंट्स के लिए खुले हुए हैं। आज देश स्पोर्ट्स के क्षेत्र में भी नए आत्मविश्वास के साथ नई उपलब्धियां हासिल कर रहा है| हमारी यूनिवर्सिटीज ऐसा नहीं होना चाहिए कि स्पोर्टस यूनिवर्सिटी यहां बन रहीं हैं इसलिए बाकी यूनिवर्सिटी के नौजवानों को स्पोटर्स से कोई लेना देना नहीं है, जी नहीं हमारी यूनिवर्सिटी की मैदान शाम को भरे रहने चाहिए। बच्चों को घर भेजने के लिए मेहनत करनी पड़े, ये वातावरण हर यूनिवर्सिटी के मैदान में होना चाहिए। हमारी यूनिवर्सिटी ये लक्ष्य बना सकती हैं। एक-एक यूनिवर्सिटी तय कर सकती है कि आने वाले वर्षों में मेरी यूनिवर्सिटी कितने गोल्ड मेडल्स ले आएगी, मेरे स्कूल के कितने विद्यार्थी, मेरे कॉलेज के कितने विद्यार्थी आगे बढ़ेंगे। ये यूनिवर्सिटी के टारगेट क्यों नहीं होने चाहिए दोस्तों। दुनिया के कितने देश में मेरी यूनिवर्सिटी के बच्चें खेलने के लिए जाएंगे, मैं उनको कैसे तैयार करूं। उनको exposure मिलेगा वे भी मेरी एक बहुत बड़ी अमानत बन जाएगा। साथियों मैं स्ट्रे विचारों को इसलिए रख रहा हूं। अनगिनत संभावनाएं हैं और राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने आपके हाथ में अवसर दिया है। जो पिछले वर्षों में हमारे पास नहीं था। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कारण आया है। ये हमारा काम है उसको आगे बढ़ाएं।

साथियों,

हम सबको याद रखना होगा कि देश के भविष्य निर्माण का, राष्ट्रीय शिक्षा नीति का नेतृत्व आप सब साथियों के हाथ में है। मुझे विश्वास है कि अखिल भारतीय शिक्षा समागम में आपके मंथन से निकला अमृत, आपके सुझाव, देश को एक नई दिशा देंगे। जिन नौजवानों के साथ आपका समय बीतता है, उनको वर्तमान के लिए नहीं आने वाले कल के लिए तैयार करना है। अगर आने वाले कल के लिए तैयार करना है तो आपको आने वाले साल के लिए तैयार होना है। अगर आप आने वाले साल के लिए तैयार होते हैं तो आपको institute को आने वाले 100 सालों के लिए तैयार करना है, तब जाकर के इस काम को प्राप्त कर सकते हैं और उसी भाव के साथ आप लोग काशी की इस पवित्र धरती पर हैं। मां गंगा के तट पर विराजमान हैं। सांस्कृतिक पूरी परंपरा हमें नई चेतना और प्रेरणा देने वाली परंपरा है। उस परंपरा में से कुछ न कुछ अमृत बिंदू आपके भी नसीब में आएंगे, जो अमृत बिंदू लेके जाएंगें। वहां जब आप उसको रखोगे वो युवा युवती भी आने वाले अमृतकाल में भारत के उज्जवल भविष्य को गढ़ने के लिए काम आएगी, मैं फिर एक बार विभाग का इस कार्यक्रम की रचना के लिए धन्यवाद करता हूं। आप सब उत्साह और उमंग के साथ इसमें शरीक हुए हैं। मुझे विश्वास है तीन दिन में आप थक नहीं जाएंगे, मैं बैठे–बैठे कार्यक्रम देख रहा था। मुझे लग रहा है पता नहीं आपका क्या होगा तीन दिन के बाद। लेकिन आप academic world के हैं तो जरूर उसको आगे बढ़ाएंगे, मेरी आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं,

बहुत-बहुत धन्यवाद!

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