"भगवान कृष्ण के चरणों में नमन करते हुए आप सभी को, सभी देशवासियों को गीता जयंती की हार्दिक बधाई देता हूँ"
"मैं सद्गुरु सदाफल देव जी को नमन करता हूँ, उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति को प्रणाम करता हूँ"
"हमारा देश इतना अद्भुत है कि, यहाँ जब भी समय विपरीत होता है, कोई न कोई संत-विभूति, समय की धारा को मोड़ने के लिए अवतरित हो जाती है। ये भारत ही है जिसकी आज़ादी के सबसे बड़े नायक को दुनिया महात्मा बुलाती है"
"जब हम बनारस के विकास की बात करते हैं, तो इससे पूरे भारत के विकास का रोडमैप भी बनता है"
"पुरातन को समेटे हुए नवीनता को अपनाकर बनारस देश को नई दिशा दे रहा है"
"आज देश के स्थानीय व्यापार-रोजगार को, उत्पादों को ताकत दी जा रही है, लोकल को ग्लोबल बनाया जा रहा है"

हर हर महादेव !

श्री सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः।

मंच पर उपस्थित उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी, उत्‍तर प्रदेश के ऊर्जावान-कर्मयोगी, मुख्यमंत्री श्रीमान योगी आदित्यनाथ जी, सद्गुरु आचार्य श्री स्वतंत्रदेव जी महाराज, संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज, केंद्र में मंत्रीपरिषद के मेरे साथी और इसी क्षेत्र के सांसद श्री महेंद्र नाथ पांडे जी, यहीं के आप के प्र‍तिनिधी और योगीजी सरकार में मंत्रीश्रीमान अनिल राजभर जी, देश विदेश से पधारे सभी साधक व श्रद्धालुगण, भाइयों और बहनों, सभी उपस्थित साथियों!

काशी की ऊर्जा अक्षुण्ण तो है ही, ये नित नया विस्तार भी लेती रहती है। कल काशी ने भव्य ‘विश्वनाथ धाम’ महादेव के चरणों में अर्पित किया और आज ‘विहंगम योग संस्थान’ का ये अद्भुत आयोजन हो रहा है। इस दैवीय भूमि पर ईश्वर अपनी अनेक इच्छाओं की पूर्ति के लिए संतों को ही निमित्त बनाते हैं और जब संतों की साधना पुण्यफल को प्राप्त करती है तो सुखद संयोग भी बनते ही चले जाते हैं।

आज हम देख रहे हैं, अखिल भारतीय विहंगम योग संस्थान का 98वां वार्षिकोत्सव, स्वतन्त्रता आंदोलन में सद्गुरु सदाफल देव जी की कारागार यात्रा के 100 वर्ष, और देश की आज़ादी का अमृत महोत्सव, ये सब, हम सब, एक साथ इनके साक्षी बन रहे हैं। इन सभी संयोगों के साथ आज गीता जयंती का पुण्य अवसर भी है। आज के ही दिन कुरुक्षेत्र की युद्ध की भूमि में जब सेनाएँ आमने-सामने थीं, मानवता को योग, आध्यात्म और परमार्थ का परम ज्ञान मिला था। मैं इस अवसर पर भगवान कृष्ण के चरणों में नमन करते हुए आप सभी को और सभी देशवासियों को गीता जयंती की हार्दिक बधाई देता हूँ।

भाइयों और बहनों,

सद्गुरु सदाफल देव जी ने समाज के जागरण के लिए, ‘विहंगम योग’ को जन-जन तक पहुंचाने के लिए, यज्ञ किया था, आज वो संकल्प-बीज हमारे सामने इतने विशाल वट वृक्ष के रूप में खड़ा है। आज इक्यावन सौ एक यज्ञ कुंडों के विश्व शांति वैदिक महायज्ञ के रूप में, इतने बड़े सह-योगासन प्रशिक्षण शिविर के रूप में, इतने सेवा प्रकल्पों के रूप में, और लाखों-लाख साधकों के इस विशाल परिवार के रूप में, हम उस संत संकल्प की सिद्धि को अनुभव कर रहे हैं।

मैं सद्गुरु सदाफल देव जी को नमन करता हूँ, उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति को प्रणाम करता हूँ। मैं श्री स्वतंत्रदेव जी महाराज और श्री विज्ञानदेव जी महाराज का भी आभार व्यक्त करता हूँ जो इस परंपरा को जीवंत बनाए हुए हैं, नया विस्तार दे रहे हैं और आज एक भव्‍य आध्‍यात्मिक भूमि का निर्माण हो रहा है। मुझे इसके दर्शन करने का अवसर मिला। जब ये पूर्ण हो जाएगा तो न सिर्फ काशी के लिए लेकिन हिंदुस्‍तान के लिए एक बहुत बड़ा नजराना बन जाएगा।

साथियों,

हमारा देश इतना अद्भुत है कि, यहाँ जब भी समय विपरीत होता है, कोई न कोई संत-विभूति, समय की धारा को मोड़ने के लिए अवतरित हो जाती है। ये भारत ही है जिसकी आज़ादी के सबसे बड़े नायक को दुनिया महात्मा बुलाती है, ये भारत ही है जहां आज़ादी के राजनीतिक आंदोलन के भीतर भी आध्यात्मिक चेतना निंरतर प्रवाहित रही है, और ये भारत ही है जहां साधकों की संस्था अपने वार्षिकोत्सव को आज़ादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रही है।

साथियों

यहां हर साधक गौरवान्वित है कि उनके पारमार्थिक गुरुदेव ने स्वाधीनता संग्राम को दिशा दी थी और असहयोग आंदोलन में जेल जाने वाले पहले व्यक्तियों में संत सदाफल देव जी भी थे। जेल में ही उन्होंने ‘स्वर्वेद’ के विचारों पर मंथन किया, जेल से रिहा होने के बाद उसे मूर्त स्वरूप दिया।

साथियों,

सैकड़ों साल के इतिहास में हमारे स्वाधीनता संग्राम के कितने ही ऐसे पहलू रहे हैं जिन्होंने देश को एकता के सूत्र में बांधे रखा। ऐसे कितने ही संत थे जो आध्यात्मिक तप छोड़कर आज़ादी के लिए जुटे। हमारे स्वाधीनता संग्राम की ये आध्यात्मिक धारा इतिहास में वैसे दर्ज नहीं की गई जैसे की जानी चाहिए थी। आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो इस धारा को सामने लाना हमारा दायित्व है। इसीलिए, आज देश आजादी की लड़ाई में अपने गुरुओं, संतों और तपस्वियों के योगदान को स्मरण कर रहा है, नई पीढ़ी को उनके योगदान से परिचित करा रहा है। मुझे खुशी है कि विहंगम योग संस्थान भी इसमें सक्रिय भूमिका निभा रहा है।

साथियों,

भविष्य के भारत को सुदृढ़ करने के लिए अपनी परम्पराओं, अपने ज्ञान दर्शन का विस्तार, आज समय की मांग है। इस सिद्धि के लिए काशी जैसे हमारे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र एक प्रभावी माध्यम बन सकते हैं। हमारी सभ्यता के ये प्राचीन शहर पूरे विश्व को दिशा दिखा सकते हैं। बनारस जैसे शहरों ने मुश्किल से मुश्किल समय में भी भारत की पहचान के, कला के, उद्यमिता के बीजों को सहेजकर रखा है। जहां बीज होता है, वृक्ष वहीं से विस्तार लेना शुरू करता है। और इसीलिए, आज जब हम बनारस के विकास की बात करते हैं, तो इससे पूरे भारत के विकास का रोडमैप भी बन जाता है।

भाइयों औऱ बहनों,

आज आप लाखों लोग यहाँ उपस्थित हैं। आप अलग-अलग राज्यों से, अलग-अलग जगहों से आए हैं। आप काशी में अपनी श्रद्धा, अपना विश्वास, अपनी ऊर्जा, और अपने साथ असीम संभावनाएं, कितना कुछ लेकर आए हैं। आप काशी से जब जाएंगे, तो नए विचार, नए संकल्प, यहाँ का आशीर्वाद, यहाँ के अनुभव, कितना कुछ लेकर जाएंगे। लेकिन वो दिन भी याद करिए, जब आप यहां आते थे तो क्या स्थिति थी। जो स्थान इतना पवित्र हो, उसकी बदहाली लोगों को निराश करती थी। लेकिन आज ये परिस्थिति बदल रही है।

आज जब देश-विदेश से लोग आते हैं तो एयरपोर्ट से निकलते ही उन्हें सब बदला-बदला लगता है। एयरपोर्ट से सीधे शहर तक आने में अब उतनी देर नहीं लगती। रिंगरोड का काम भी काशी ने रिकॉर्ड समय में पूरा किया है। बड़े वाहन और बाहर की गाडियाँ अब बाहर-बाहर ही निकल जाती हैं। बनारस आने वाली काफी सड़कें भी अब चौड़ी हो गई हैं। जो लोग सड़क के रास्ते बनारस आते हैं, वो अब इस सुविधा से कितना फर्क पड़ा है, ये अच्छी तरह से समझते हैं।

यहाँ आने के बाद आप चाहे बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने जाएँ या माँ गंगा के घाटों पर जाएँ, हर जगह काशी की महिमा के अनुरूप ही आभा बढ़ रही है। काशी में बिजली के तारों के जंजाल को अंडरग्राउंड करने का काम जारी है, लाखों लीटर सीवेज का ट्रीटमेंट भी हो रहा है। इस विकास का लाभ यहाँ आस्था और पर्यटन के साथ साथ, यहाँ की कला-संस्कृति को भी मिल रहा है।

Trade facilitation centre हो, रुद्राक्ष convention centre हो, या बुनकरों-कारीगरों के लिए चलाये जा रहे प्रोग्राम, आज काशी के कौशल को नई ताकत मिल रही है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी आधुनिक सुविधाओं और इनफ्रास्ट्रक्चर के कारण बनारस एक बड़े मेडिकल हब के रूप में उभर रहा है।

साथियों,

मैं जब काशी आता हूं या दिल्ली में भी रहता हूं तो प्रयास रहता है कि बनारस में हो रहे विकास कार्यों को गति देता रहूं। कल रात 12-12.30 बजे के बाद जैसे ही मुझे अवसर मिला, मैं फिर निकल पड़ा था अपनी काशी में जो काम चल रहे हैं, जो काम किया गया है, उनको देखने के लिए निकल पड़ा था। गौदोलिया में जो सुंदरीकरण का काम हुआ है, वो वाकई देखने योग्‍य बना है। वहां कितने ही लोगों से मेरी बातचीत हुई। मैंने मडुवाडीह में बनारस रेलवे स्टेशन भी देखा। इस स्टेशन का भी अब कायाकल्प हो चुका है। पुरातन को समेटे हुए, नवीनता को धारण करना, बनारस देश को नई दिशा दे रहा है।

साथियों,

इस विकास का सकारात्मक असर बनारस के साथ-साथ यहाँ आने वाले पर्यटकों पर भी पड़ रहा है। अगर हम 2019-20 की बात करें तो 2014-15 के मुक़ाबले में यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या दोगुनी हो गई है। 2019-20 में, कोरोना के कालखंड में अकेले बाबतपुर एयरपोर्ट से ही 30 लाख से ज्यादा यात्रियों का आना-जाना हुआ है। इस बदलाव से काशी ने ये दिखाया है कि इच्छाशक्ति हो तो परिवर्तन आ सकता है।

यही बदलाव आज हमारे दूसरे तीर्थस्थानों में भी दिख रहा है। केदारनाथ, जहां अनेक कठिनाइयाँ होती थीं, 2013 की तबाही के बाद लोगों का आना जाना कम हो गया था, वहाँ भी अब रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालु पहुँच रहे हैं। इससे विकास और रोजगार के कितने असीम अवसर बन रहे हैं, युवाओं के सपनों को ताकत मिल रही है। यही विश्वास आज पूरे देश में दिख रहा है, इसी गति से आज देश विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।

साथियों,

सद्गुरु सदाफल जी ने स्वर्वेद में कहा है-

दया करे सब जीव पर, नीच ऊंच नहीं जान।

देखे अंतर आत्मा, त्याग देह अभिमान॥

यानि सबसे प्रेम, सबके प्रति करुणा, ऊंच-नीच से, भेद-भाव से मुक्ति! यही तो आज देश की प्रेरणा है! आज देश का मंत्र है- सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास। मैं-मेरा के स्वार्थ से ऊपर उठकर आज देश ‘सबका प्रयास’ के संकल्प से आगे बढ़ रहा है।

साथियों,

स्वाधीनता संग्राम के समय सद्गुरु ने हमें मंत्र दिया था- स्वदेशी का। आज उसी भाव में देश ने अब ‘आत्मनिर्भर भारत मिशन’ शुरू किया है। आज देश के स्थानीय व्यापार-रोजगार को, उत्पादों को ताकत दी जा रही है, लोकल को ग्लोबल बनाया जा रहा है। गुरुदेव ने स्वर्वेद में हमें योग का, विहंगम योग का मार्ग भी दिया था। उनका सपना था कि योग जन-जन तक पहुंचे और भारत की योग शक्ति पूरे विश्व में स्थापित हो। आज जब हम पूरी दुनिया को योग दिवस मनाते हुये, योग का अनुसरण करते हुए देखते हैं तो हमें लगता है कि सद्गुरु का आशीर्वाद फलीभूत हो रहा है।

साथियों,

आज आज़ादी के अमृतकाल में भारत के लिए जितना महत्वपूर्ण स्वराज है, उतना ही महत्वपूर्ण सुराज भी है। इन दोनों का रास्ता भारतीय ज्ञान-विज्ञान, जीवनशैली और पद्धतियों से ही निकलेगा। मैं जानता हूँ, विहंगम योग संस्थान, वर्षों से इस विचार को आगे बढ़ा रहा है। आपका आदर्श वाक्य है- गावो विश्वस्य मातरः। गौमाता के साथ इस संबंध को सुदृढ़ करने के लिए, गो-धन को हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक स्तम्भ बनाने के लिए देश में अनेक प्रयास हो रहे हैं।

साथियों,

हमारा गो-धन हमारे किसानों के लिए केवल दूध का ही स्रोत न रहे, बल्कि हमारी कोशिश है कि गो-वंश, प्रगति के अन्य आयामों में भी मदद करे। आज दुनिया स्वास्थ्य को लेकर सजग हो रही है, केमिकल्स को छोड़कर organic फ़ार्मिंग की तरफ विश्व लौट रहा है, हमारे यहाँ गोबर कभी organic फ़ार्मिंग का बड़ा आधार होता था, हमारी ऊर्जा जरूरतों को भी पूरा करता था। आज देश गोबर-धन योजना के जरिए बायोफ्यूल को बढ़ावा दे रहा है, organic फ़ार्मिंग को बढ़ावा दे रहा है। और इन सबसे, एक तरह से पर्यावरण की रक्षा भी हो रही है।

आज से दो दिन बाद 16 तारीख को 'ज़ीरो बजट-नैचुरल फ़ार्मिंग' पर एक बड़ा राष्ट्रीय कार्यक्रम भी होने जा रहा है। इसमें पूरे देश से किसान जुड़ेंगे। मैं चाहूँगा कि आप सभी भी 16 दिसंबर को प्राकृतिक खेती के बारे में ज्‍यादा से ज्‍यादा जानकारी प्राप्‍त करें और बाद में किसानों को घर-घर जाकर बताएं। ये एक ऐसा मिशन है जिसे जन-आंदोलन बनना चाहिए, और इसमें आप सभी अहम भूमिका निभा सकते हैं।

साथियों,

आजादी के अमृत महोत्सव में देश अनेक संकल्पों पर काम कर रहा है। विहंगम योग संस्थान, सद्गुरु सदाफल देव जी के निर्देशों का पालन करते हुये लंबे समय से समाज कल्याण के कितने ही अभियान चला रहा है। आज से दो साल बाद आप सभी साधक यहाँ 100वें अधिवेशन के लिए एकत्रित होंगे। 2 साल का ये बहुत उत्तम समय है।

इसे ध्यान में रखकर मैं आज आप सभी से कुछ संकल्प लेने का आग्रह करना चाहता हूं। ये संकल्प ऐसे होने चाहिए जिसमें सद्गुरु के संकल्पों की सिद्धि हो, और जिसमें देश के मनोरथ भी शामिल हों। ये ऐसे संकल्प हो सकते हैं जिन्हें अगले दो साल में गति दी जाए, मिलकर पूरा किया जाए।

जैसे एक संकल्प हो सकता है- हमें बेटी को पढ़ाना है, हमें हमारी बेटियों को स्किल डवलपमेंट के लिए भी तैयार करना है। अपने परिवार के साथ-साथ जो लोग समाज में ज़िम्मेदारी उठा सकते हैं, वो एक दो गरीब बेटियों के स्किल डवलपमेंट की भी ज़िम्मेदारी उठाएँ।

एक और संकल्प हो सकता है पानी बचाने के लिए। हमें अपनी नदियों को, गंगा जी को, सभी जलस्रोतों को स्वच्छ रखना है। इसके लिए भी आपके संस्थान द्वारा नए अभियान शुरू किए जा सकते हैं। जैसा मैंने पहले भी बताया, देश आज प्राकृतिक खेती पर बल दे रहा है। इसके लिए लाखों-लाख किसान भाई-बहनों को प्रेरित करने में भी आप सब बहुत बड़ी मदद कर सकते हैं।

हमें अपने आस-पास सफाई-स्वच्छता का भी विशेष ध्यान देना है। किसी भी सार्वजनिक जगह पर गंदगी न फैले, ये ध्यान रखना है। परमात्मा के नाम से आपको कोई न कोई सेवा का ऐसा कार्य भी जरूर करना है जिसका लाभ पूरे समाज को हो।

मुझे विश्वास है, इस पवित्र अवसर पर संतों के आशीर्वाद से ये संकल्प जरूर पूरे होंगे, और नए भारत के सपनों को पूरा करने में सहयोग देंगे।

इसी विश्वास के साथ, आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।

पूज्‍य स्‍वामीजी का मैं आभारी हूं कि इस महत्‍वपूर्ण पवित्र अवसर पर मुझे भी आप सबके बीच आने का अवसर मिला। इस पवित्र स्‍थान का दर्शन करने का अवसर मिला। मैं फिर एक बार सबका आभार व्‍यक्‍त करता हूं।

हर हर महादेव !

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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PM to attend Christmas Celebrations hosted by the Catholic Bishops' Conference of India
December 22, 2024
PM to interact with prominent leaders from the Christian community including Cardinals and Bishops
First such instance that a Prime Minister will attend such a programme at the Headquarters of the Catholic Church in India

Prime Minister Shri Narendra Modi will attend the Christmas Celebrations hosted by the Catholic Bishops' Conference of India (CBCI) at the CBCI Centre premises, New Delhi at 6:30 PM on 23rd December.

Prime Minister will interact with key leaders from the Christian community, including Cardinals, Bishops and prominent lay leaders of the Church.

This is the first time a Prime Minister will attend such a programme at the Headquarters of the Catholic Church in India.

Catholic Bishops' Conference of India (CBCI) was established in 1944 and is the body which works closest with all the Catholics across India.