अतीत में जब भी कोई बड़ा मानवीय संकट आया है, साइंस ने बेहतर भविष्य का रास्ता तैयार किया है: प्रधानमंत्री मोदी
आज का भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर और सशक्त बनना चाहता है: प्रधानमंत्री मोदी
भारत के लक्ष्य इस दशक के साथ-साथ अगले दशक की जरूरतों के अनुरूप होने चाहिए: प्रधानमंत्री मोदी

कार्यक्रम में मेरे साथ जुड़ रहे कैबिनेट में मेरी सहयोगी निर्मला सीतारमण जी, पीयूष गोयल जी, डॉ हर्षवर्धन जी, प्रिन्सिपल साईंटिफ़िक एडवाइजर विजय राघवन जी, CSIR के डाइरेक्टर जनरलशेखर मंडे जी, सभी वैज्ञानिकगण, इंडस्ट्री और शिक्षाजगत के सम्मानित प्रतिनिधि और साथियों!

CSIR की आज की ये महत्वपूर्ण बैठक एक बेहद अहम कालखंड में हो रही है। कोरोना वैश्विक महामारी, पूरी दुनिया के सामने इस सदी की सबसे बड़ी चुनौती बनकर आई है। लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है, जब जब मानवता पर कोई बड़ा संकट आया है, science ने और बेहतर भविष्य के रास्ते तैयार कर दिए हैं। संकट में समाधान और संभावनाओं को तलाशना, एक नए सामर्थ्य का सृजन कर देना, यही तो science का मूलभूत बेसिक नेचर है। यही काम सदियों से दुनिया के और भारत के वैज्ञानिकों ने किया है, यही काम वो आज एक बार फिर कर रहे हैं। किसी आइडिया को theory के रूप में लाना, लैब्स में उसका practical करना, और फिर implement करके समाज को दे देना, ये काम पिछले डेढ़ सालों में हमारे वैज्ञानिकों ने जिस scale और speed पर किया है, वो अप्रत्याशित है! मानवता को इतनी बड़ी आपदा से उबारने के लिए एक साल के भीतर वैक्सीन बनाकर लोगों को दे देने का ये इतना बड़ा काम इतिहास में पहली बार हुआ है शायद।

बीती शताब्दी का अनुभव है जब पहले कोई खोज दुनिया के दूसरे देशों में होती थी तो भारत को उसके लिए कई-कई साल तक इंतज़ार करना पड़ता था। लेकिन आज हमारे देश के वैज्ञानिक दूसरे देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मानव जाति की सेवा करने में जुटे हुए हैं, चल रहे हैं, उतनी ही तेज गति से काम कर रहे हैं। हमारे वैज्ञानिकों ने एक साल में ही मेड इन इंडिया कोरोना वैक्सीन बनाई, और देशवासियों के लिए उपलब्ध भी करवा दी। एक साल में ही हमारे वैज्ञानिकों ने कोविड टेस्टिंग किट्स और जरूरी उपकरणों से देश को आत्मनिर्भर बना दिया। इतने कम समय में ही हमारे वैज्ञानिकों ने कोरोना से लड़ाई में नई-नई प्रभावी दवाएं तलाशीं, ऑक्सीज़न प्रॉडक्शन को स्पीड-अप करने के रास्ते खोजे। आपके इस योगदान से, इस असाधारण प्रतिभा से ही देश इतनी बड़ी लड़ाई लड़ रहा है। CSIR के वैज्ञानिकों ने, उन्होंने भी इस दौरान अलग अलग क्षेत्रों में अभूतपूर्व योगदान दिया है। मैं आप सभी, सभी वैज्ञानिकों का, हमारे institutes का, इंडस्ट्री का पूरे देश की ओर से धन्यवाद व्यक्त करता हूँ।

 

 

साथियों,

किसी भी देश में science और टेक्नालॉजी उतनी ही ऊंचाइयों को छूती है, जितना बेहतर उसका इंडस्ट्री से, मार्केट से संबंध होता है, coordination होता है, interlink व्यवस्था होती है। हमारे देश में CSIR science, सोसाइटी और इंडस्ट्री की इसी व्यवस्था को बनाए रखने के लिए एक institutional arrangement का काम कर रही है। हमारी इस संस्था ने देश को कितनी ही प्रतिभाएं दी हैं, कितने ही वैज्ञानिक दिये हैं। शांतिस्वरूप भटनागर जैसे महान वैज्ञानिक ने इस संस्था को नेतृत्व दिया है। मैं जब भी आपके बीच आया हूं और इसीलिए, हर बार इस बात पर जोर दिया है कि जब किसी संस्था की इतनी महान legacy हो तो भविष्य के लिए उसकी ज़िम्मेदारी भी उतनी ही बढ़ जाती है। आज भी मेरी और देश की, even मानवजाति की आप सबसे बहुत ज्यादा अपेक्षाएँ हैं, वैज्ञानिकों से, टैक्निश्यनों से बहुत अपेक्षाएँ हैं।

साथियों,

CSIR के पास research और patents का एक powerful eco-system है। आप देश की कई समस्याओं के समाधान के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन आज देश के लक्ष्य और देशवासियों के सपने 21वीं सदी की नींव पर आधारित हैं। और इसलिए CSIR जैसी संस्थाओं के हमारे लक्ष्य भी असाधारण हैं। आज भारत, agriculture से astronomy तक, Disaster management से defence technology तक, वैक्सीन से वर्चुअल रियलिटी तक, बायोटेक्नालजी से लेकर बैटरी टेक्नालजीज़ तक, हर दिशा में आत्मनिर्भर और सशक्त बनना चाहता है। आज भारत sustainable development और clean energy के क्षेत्र में दुनिया को रास्ता दिखा रहा है। आज हम software से लेकर satellites तक, दूसरे देशों के विकास को भी गति दे रहे हैं, दुनिया के विकास में प्रमुख engine की भूमिका निभा रहे हैं। इसलिए, हमारे लक्ष्य भी वर्तमान से दो कदम आगे ही होने चाहिए। हमें इस दशक की जरूरतों के साथ ही आने वाले दशकों की तैयारी अभी से करनी होगी।

आपदाओं के समाधान की दिशा में भी, कोरोना जैसी महामारी आज हमारे सामने है, लेकिन ऐसी ही कई चुनौतियाँ भविष्य के गर्भ में छिपी हो सकती हैं। उदाहरण के तौर पर, क्लाइमेट चेंज को लेकर एक बहुत बड़ी आशंका दुनिया भर के एक्स्पर्ट्स लगातार व्यक्त कर रहे हैं। हमारे वैज्ञानिकों को, हमारी सभी संस्थाओं को भविष्य की इन चुनौतियों के लिए अभी से एक scientific approach के साथ तैयारी करनी होगी। कार्बन capture से लेकर energy storage और green hydrogen technologies तक, हमें हर दिशा में लीड लेनी होगी।

साथियों,

अभी यहाँ आप सबकी ओर से इंडस्ट्री के साथ collaboration को और बेहतर बनाने पर खास ज़ोर दिया गया। लेकिन जैसा कि मैंने कहा, CSIR की भूमिका इससे भी एक कदम आगे की है। आपको इंडस्ट्री के साथ साथ समाज को भी साथ लेकर चलना होगा। मुझे खुशी है कि मैंने पिछले साल जो सुझाव रखा था, CSIR ने उसे implement करते हुये समाज से संवाद और सुझाव लेना भी शुरू कर दिया है। देश की जरूरतों को केंद्र में रखकर आपके ये प्रयास करोड़ों- करोड़ों देशवासियों का भविष्य भी बदल रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, 2016 में देश ने aroma mission launch किया था, और CSIR ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज देश के हजारों किसान floriculture से अपना भाग्य बदल रहे हैं। हींग जैसी चीज जो हर भारतीय रसोई का सदियों से हिस्सा रही है, भारत हींग के लिए हमेशा दुनिया के और देशों पर आयात पर ही निर्भर रहा है। CSIR ने इस दिशा में पहल की, और आज देश के भीतर ही हींग का उत्पादन शुरू हो गया है।

ऐसी कितनी ही संभावनाएं आपकी लैब्स में सच्चाई में बदलती हैं, विकसित होती हैं। कई बार तो आप इतना बड़ा काम कर देते हैं कि सरकार को, मंत्रालय को भी उसकी जानकारी होती, और जब पता चलता है तो हर कोई हतप्रभ हो जाते हैं। इसलिए, मेरा एक और सुझाव है आपसे और मेरा सुझाव है कि आपको आपकी ये सारी जानकारी लोगों के लिए सुलभ बनानी चाहिए। कोई भी व्यक्ति CSIR की researches के बारे में, आपके काम के बारे में search कर सके, और अगर कोई चाहता है तो उनसे जुड़ भी सके, इस पर भी आप सबने निरंतर जोर देना ही होगा। इससे, आपके काम और आपके products को भी support होगा, और समाज में, इंडस्ट्री में एक scientific approach भी बढ़ेगी।

साथियों,

आज जब देश आजादी के 75 साल पूरे करने का निकट भविष्य आने वाला है, बहुत ही जल्द हम पहुंच रहे हैं। तो हमें आजादी के 75 साल को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट संकल्पों के साथ, time bound framework के साथ निश्चित दिशा में roadmap के साथ आगे बढ़ना हमारे work culture को बदलने के लिए बहुत काम आयेगा। कोरोना के इस संकट ने रफ्तार भले कुछ धीमी की है लेकिन आज भी हमारा संकल्प है- आत्मनिर्भर भारत, सशक्त भारत। आज MSME से लेकर नए नए स्टार्टअप्स तक, कृषि से लेकर education sector, हर क्षेत्र में देश के सामने अनगिनत संभावनाओं का अंबार पड़ा हुआ है। इन संभावनाओं को सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी आप सबको उठानी है, देश के साथ मिलकर इन सपनों को पूरा करना है। हमारे वैज्ञानिकों ने, हमारी इंडस्ट्री ने जो भूमिका कोरोना के दौरान निभाई है, हमें इसी सफलता को आगे हर क्षेत्र में दोहराना है। मुझे विश्वास है, आपकी प्रतिभा और आपके institution की परंपरा और परिश्रम से देश इसी गति से नित-नए लक्ष्य हासिल करेगा, और 130 करोड़ से भी अधि‍क देशवासियों के सपनों को पूरा करेगा। मुझे आप सबके विचारों को सुनने का अवसर मिला, बहुत व्यावहारिक बाते आप बता रहे थे, अनुभव के आधार पर बता रहे थे।

मैं जरूर चाहूंगा कि जिन-जिन के पास इस काम का दायित्व है, आप साथि‍यों ने जो सुझाव दिये हैं, जो अपेक्षाएँ की हैं उसको पूरा करने में देर ना की जाए। हर चीज को एक साथ mission mood में momentum के साथ पूरा करने का प्रयास हो क्योंकि आखि‍‍रकर जब इतना समय देकर के आप सब बैठे हैं, तो बहुत उत्तम विचार आना बहुत स्वाभाविक है और इस मंथन में से जो अमृत निकले, वो जन-जन तक पहुंचाने का काम institutional arrangement के द्वारा लगातार upgrade करते हुए improvement करते हुए, हमने implement करना है। मैं आप सबको अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूँ और इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, आप सबके उत्तम स्वास्थ्य की भी कामना करता हूँ। आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद! नमस्कार!

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PM Modi visits the Indian Arrival Monument
November 21, 2024

Prime Minister visited the Indian Arrival monument at Monument Gardens in Georgetown today. He was accompanied by PM of Guyana Brig (Retd) Mark Phillips. An ensemble of Tassa Drums welcomed Prime Minister as he paid floral tribute at the Arrival Monument. Paying homage at the monument, Prime Minister recalled the struggle and sacrifices of Indian diaspora and their pivotal contribution to preserving and promoting Indian culture and tradition in Guyana. He planted a Bel Patra sapling at the monument.

The monument is a replica of the first ship which arrived in Guyana in 1838 bringing indentured migrants from India. It was gifted by India to the people of Guyana in 1991.