आप सबको नमस्कार | वैसे मेरा बड़ा प्रिय कार्यक्रम है लेकिन कोरोना के कारण, बीच में, मैं आप मे से साथियों को मिल नहीं पाया। मेरे लिए आज का कार्यक्रम जरा विशेष खुशी का है। क्योंकि एक लंबे अंतराल के बाद आप सबसे मिलने का मौका मिला। मुझे नहीं लगता है कि परीक्षा का आप लोगों को कोई टेंशन होगा। मैं सही हूं ना? मैं सही हूं ना? आप लोगों को कोई टेंशन नहीं होगा ना? अगर टेंशन होगा तो आपके माता–पिता को होगा। कि ये क्या करेगा। सच में बताइए किसको टेंशन है आपको, कि आपके परिवार वालों को? जिनको खुद को टेंशन है वो हाथ ऊपर करें। अच्छा अभी भी लोग हैं, अच्छा। और जिनका पक्का विश्वास है कि मम्मी पापा को टेंशन है वो कौन–कौन हैं? ज्यादा लोग वो ही हैं। कल विक्रम संवत नव वर्ष शुरू हो रहा है। और वैसे भी अप्रैल महीना हमारे देश में अनेक त्योहारों से भरा रहता है। मेरी आने वाले सभी त्योहारों के लिए आप सबको बहुत बहुत शुभकामनाएं। लेकिन त्योहारों के बीच में एग्जाम भी होती है और इसलिए त्योहारों का मजा नहीं ले पाते। लेकिन अगर एग्जाम को ही त्योहार बना दें। तो फिर वो त्योहार में कई रंग भर जाते हैं। और इसलिए आज का हमारा कार्यक्रम हम हमारे एग्जाम्स में त्योहार का वातावरण कैसे बनाएं, उसको रंगों से कैसे भर दें, उमंग, उत्साह के साथ हम परीक्षा के लिए कैसे प्रस्थान करें? इन्हीं बातों को लेकर के हम चर्चा करेंगे। कई साथियों ने बहुत सारे सवाल मुझे भेजे भी हैं। कुछ लोगों ने मुझे ऑडियों मैसेज भी भेजा है।
कुछ लोगों ने वीडियो मैसेज भेजा है। मीडिया के साथियों ने भी स्थान–स्थान पर विद्यार्थीयों से बाते करके कई सवाल निकाले हैं। लेकिन समय सीमा में जितना कर सकता हूं उतना जरूर करूंगा। लेकिन मैं इस बार एक नया साहस करने वाला हूं। बस क्योंकि पिछले पांच बार का अनुभव है कि बाद में कुछ लोगों की शिकायत रहती है कि मेरी बात रह गई। मेरी बात नहीं आई, वगैरह । तो मैं एक काम करूंगा इस बार कि आज जितना हो सकता है। समय की सीमा में हम बातें करेंगे। लेकिन बाद में आपके जो सवाल हैं। उसको मैं अगर समय मिला तो वीडियो के माध्यम से कभी प्रवास करते समय मेरे पास मौका होगा तो ऑडियो के माध्यम से या तो फिर रिटन टैक्सट के रूप में मैं नमो एप पर सारे चर्चा को फिर से एक बार आपके सामने जो चीजें यहां छूट गई हैं उसको रखुंगा ताकि आप नमो एप पर जाकर के और उसमें भी इस बार एक नया प्रयोग किया है, माइक्रो साईट बनाई है। तो वहां पर भी जाकर के आप इसका लाभ उठा सकते हैं। तो आईए हम कार्यक्रम प्रारंभ करते हैं। सबसे पहले कौन है?
प्रस्तुतकर्ता : Thank You Honorable Prime Minister Sir, माननीय प्रधानमंत्री जी आपका प्रेरक एवं ज्ञानवर्धक उदबोधन सदैव हमें सकारात्मक उर्जा एवं विश्वास से भर देता है । आपके वृहद् अनुभव एव ज्ञानपूर्ण मार्गदर्शन की हम सब उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं। माननीय, आपके आर्शीवाद एव अनुमति से हम इस कार्यक्रम का शुभारंभ करना चाहते हैं। धन्यवाद मान्यवर। माननीय प्रधानमंत्री जी भारत की राजधानी ऐतिहासिक नगरी दिल्ली के विवेकानंद स्कूल की कक्षा 12वीं की छात्रा खुशी जैन आपसे प्रश्न पुछना चाहती हैं। खुशी कृप्या अपना प्रश्न पुछिए।
ये अच्छी बात है खुशी से शुरू हो रहा है। और यह हम भी चाहते हैं कि परीक्षा पूरी होने तक खुशी ही खुशी रहे।
खुशी : माननीय प्रधानमंत्री महोदय नमस्कार, मेरा नाम खुशी जैन है। मैं कक्षा बारहवीं विवेकानंद स्कूल आनंद विहर दिल्ली की छात्रा हूं। मान्यवर, मेरा प्रश्न है जब हम घबराहट की स्थिति में होते हैं तो परीक्षा के समय हम तैयारी कैसे करें? धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता : धन्यवाद खुशी, मान्यवर साहित्यिक परंपरा के परिपेक्ष्य में अत्यंत समृद्ध प्रदेश छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के कक्षा बारहवीं के छात्र ए. श्रीधर शर्मा कुछ इसी तरह की समस्या से जुझ रहे हैं। वो उत्सुक हैं प्रधानमंत्री जी के समक्ष अपनी बात रखने को श्रीधर कृप्या अपना प्रश्न पुछिए।
ए. श्रीधर शर्मा : नमस्कार माननीय प्रधानमंत्री महोदय, मैं ए. श्रीधर शर्मा दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे उच्चतर माध्यमिक विद्यालय न.1 छत्तीसगढ़ बिलासपुर के कक्षा बारहवीं आर्टस का छात्र हूं। महोदय मेरे प्रश्न कुछ इस प्रकार हैं – मैं परीक्षा संबंधी तनाव से कैसे निपटू? अगर मेरे अंक अच्छे नहीं आए तो क्या होगा? अगर मुझे अपेक्षित अंक प्राप्त नहीं हुए तो क्या होगा? और अंतत अगर मेरे ग्रेड अच्छे नहीं आए तो मैं अपने परिवार की निराशा से कैसे निपटु?
प्रस्तुतकर्ता : धन्यवाद श्रीधर, From the land where the Sabarmati Sant Mahatama Gandhi Ji started his Satyagrah Movement, I invite Keni Patel a Call 10th student of Vadodra who honestly seeks your guidance on similar challenges faced by her. Keni please ask your question.
Keni Patel : Greeting Prime Minister Sir, My name is Keni Patel, I am from Tree House High School, Vadodra, Gujarat from Class 10th. My Question is how to overcome the stress of completing the whole syllabus with the proper revision and hence advance in result & How to take proper sleeping and rest during the examination time. Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता : Thank You Keni, माननीय प्रधानमंत्री जी खुशी, श्रीधर शर्मा तथा कैनी पटेल परीक्षा के तनाव से व्यथित हैं। उन्हीं की तरह देश भर से अनेक विद्यार्थीयों ने exam stress से संबंधित प्रश्न पुछे हैं। परीक्षा के तनाव से लगभग सभी विद्यार्थी प्रभावित होते हैं। और आपके मार्गदर्शन के अभिलाषी हैं। माननीय प्रधानमंत्री जी,
प्रधानमंत्री जी : एक साथ आप लोगों ने इतने सवाल पूछ लिए हैं कि ऐसा लग रहा है कि मुझे ही पैनिक से गुजरना पड़ेगा। देखिए आपके मन में भय क्यों होता है। ये प्रश्न मेरे मन में है। क्या आप पहली बार एग्जाम देने जा रहे हैं क्या? आपमें से कोई नहीं है जो पहली बार एग्जाम देने जा रहा है। मतलब के आपने बहुत सारे एग्जाम दे चुके हैं। और अब तो आप एक प्रकार से एग्जाम के इस दौर से आखिरी छोर की तरफ पहुंच चुके हैं। इतना बड़ा समंदर पार करने के बाद किनारे पर डुबने का डर ये तो दिमाग में बैठता नहीं है। तो पहली बात है कि आप मन में एक बात तय कर लीजिए कि परीक्षा जीवन का एक सहज हिस्सा है। हमारी विकास यात्रा का छोटे – छोटे- छोटे पड़ाव है। और उस पड़ाव से हमे गुजरना है और हम गुजर चुके हैं। जब इतनी बार हम एग्जाम दे चुके हैं। एग्जाम देते देते देते एक प्रकार से हम एग्जाम प्रूफ हो चुके हैं। और जब ये विश्वास पैदा हो जाता है। तो ये नही आने वाली किसी भी एग्जाम के लिए ये अनुभव अपने आपमे आपकी ताकत बन जाते हैं। इसे आपके इन अनुभव को जिस प्रक्रिया से आप गुजरे हैं। उसको आप कतई छोटा मत मानिये। दूसरा, ये आपके मन में जो पैनिक होता है। क्या ये तो नहीं है कि प्रेपरेडनेस में कमी है।
कहने को तो हम कुछ कहते होंगे। लेकिन मन में रहता है। मेरा आपको सुझाव है। अब एग्जाम के बीच में समय तो ज्यादा है नहीं, इस बोझ को जीना है कि जो किया है उसमे विश्वास भर करके आगे बढ़ना है। हो सकता है एक दो चीजे छूट गई होगी। एक आध चीज में थोड़ी जितनी मेहनत चाहिए नहीं हुई होगी, इसमें क्या है। लेकिन जो हुआ है उसमे मेरा आत्मविश्वास भरपूर है। तो वो बाकी चीजों में भी ओवरकम कर जाता है। और इसलिए मेरा आपसे आग्रह है। कि आप इस प्रेशर में मत रहिए। पैनिक क्रिएट हो ऐसा वातावरण तो पनपने ही मत दीजिए। जितनी सहज दिनचर्या आपकी रहती है। उतनी ही सहज दिनचर्या मे आप अपने आने वाले परीक्षा के समय को भी बिताइये। एक्स्ट्रा कम अधिक जोड़ना तोड़ना वो आपके पूरे स्वभाव से डिस्टर्बेंस पैदा करेगा। वो ये करता है तो चलो मैं भी ये करूंगा। मेरा एक दोस्त ऐसा करता है इसलिए उसको अच्छे मार्क्स आते हैं मैं भी वो करूंगा। आप वो कुछ मत कीजिए जो आपने सुना है। आप वही कीजिए जो इतने समय से आप करते आए हैं। और उसमें आप विश्वास भरिये। मुझे पक्का भरोसा है आप पर कि आप बहुत सरलता से, उमंग से, उत्साह से एक फेस्टिव मूड में एग्जाम दे पाएंगे और सफल हो कर रहेंगे।
प्रस्तुतकर्ता : Thank You Hon’ble Prime Minister Sir, for teaching us to except exam as a natural experience to believe in ourselves. Hon’ble Prime Minister Sir, the next question comes from Mysore, in Karnataka renowned for its heritage destinations and national parks, Tarun MB who is a class 11th student here seeks a solution to his problem, Tarun may be have your question please.
Tarun : Good Morning Sir, I am Tarun MB studying in class 11th at Jawahar Navodaya Vidyalaya, Mysuru, Karnataka. I express my sincere attitude in being given an opportunity to participate in the 5th addition of Pariksha Pe Charcha 2022. My Question to Hon’ble Prime Minister Shri Narendra Modi Ji, Sir, How can a student be focused while studying in morning because there is so many distractions like Youtube, Whatsapp and other social Media app. It is very difficult to study online because of this Sir, is there any solution for this? Thank You sir.
प्रस्तुतकर्ता : Thank you Tarun, Hon’ble Prime Minister Sir, Sahid Ali a class 10th Student of Silver Oax School Delhi Containment Board is eager to ask his question on a similar subject, Sahid please ask your question.
Sahid : नमस्कार महोदय, माननीय प्रधानमंत्री जी, मैं शाहिद अली सिल्वर ओक्स स्कूल दिल्ली केंटोन्मेंट बोर्ड में 10वी कक्षा का छात्र हूं। पिछले दो वर्षों से हम अपनी पढ़ाई ऑनलाइन मोड में कर रहे हैं। इंटरनेट के इस्तेमाल से हम में से बहुत से बच्चे सोशल मीडिया और ऑनलाइन गैमिंग की एडिक्शन एडिक्शन सी हो गयी है। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए क्या करें। कृप्या हमारा मार्गदर्शन कीजिए।
प्रस्तुतकर्ता : Thank You Shahid, Hon’ble Sir, Keertana Nair, a class 10th Student from Thiruvananthapuram, Kerala is plagued by the same problem and expects to receive guidance from you. Sir, Keertana’s Question has been received from Times Now. Keertana please ask your Question.
Keertana : Hi I am Keertana from Class 10th in Krisal school Thiruvananthapuram, Kerala. As we all know our classes have shifted online during the pandemic. There are so much distraction in our homes in the form of mobile, social media etc. Sir, so my question is, how can we improve the learning through online classes.
प्रस्तुतकर्ता : Thank You Keertana, Hon’ble Sir, Online education has challenged not only students but teachers too. Mr. Chandachudeshwaran M a teacher from Krishnagiri seeks guidance and direction from you. Sir, please ask your question.
Chandachudeshwaran M : नमस्ते Hon’ble Prime Minister Sir, I am Chandachudeshwaran from the Ashok Lallan School, Hosur Tamilnadu. My question is - As a teacher, conducting online teaching and learning has become a challenge, How does to face it Sir, धन्यवाद महोदय।
प्रस्तुतकर्ता : Thank You Sir, Hon’ble Prime Minister Sir, Tarun, Shahid Keertana and Chandachudeshwaran Sir and all ensures about the online education has caused them to be addicted to and distracted by social media during the last two years. Hon’ble Sir from different part of the country we have received many similar questions. All of those, these are the selected ones that some of everyone’s concerns. I request you to please guide them Sir.
प्रधानमंत्री जी : मेरे मन में एक सवाल आता है कि आप लोगों ने बताया कि इधर – उधर भटक जाते हैं। थोड़ा अपने आप को पुछिए कि जब आप ऑनलाइल रिडिंग करते हैं। तो सचमुच में रीडिंग करते हैं। कि रील देखते हैं। अब मैं आपको हाथ ऊपर नहीं कराऊंगा। लेकिन आप समझ गए कि मैनें आपको पकड़ लिया है। हकीकत में दोष ऑनलाइन या ऑफलाइन इसका नहीं है। आप अनुभव किए होंगे क्लास में भी बहुत बार आपका शरीर क्लासरूम में होगा, आपकी आंखें टीचर की तरफ होगी। लेकिन कान में एक भी बात नहीं जाती होगी। क्योंकि आपका दिमाग कहीं ओर होगा। तन को तो कोई दरवाजा नहीं लगाया है कोई खिड़की नहीं लगाई लेकिन मन कहीं ओर है तो सुनना ही बंद हो जाता है। रजिस्टर ही नहीं होता है। जो चीजें ऑफलाइन होती हैं। वहीं चीजे ऑनलाइन भी होती हैं। इसका मतलब है कि माध्यम समस्या नहीं है। मन समस्या है। माध्यम ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, अगर मेरा मन उससे पूरी तरह जुड़ा हुआ है, उसमे डूबा हूआ है। मेरा एक खोजी मन है जो इसकी बारीकीयों को पकड़ने की कोशिश कर रहा है। तो आपके लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन, मैं नही मानता हूं कि कोई फर्क पड़ सकता है। और इसलिए हम, जैसे युग बदलता है तो माध्यम भी बदलते रहते हैं। अब पहले के जमाने में जो गुरुकुल चलते थे, सदियो पहले, सत्तर वर्ष पहले तो वहां तो प्रिंटिंग पेपर भी नहीं थे। तो उस समय कोई किताब भी नहीं थी। तो ऐसे ही कंठस्त से सब चलता था।
तो उनकी श्रवणशक्ति इतनी तेज रहती थी कि सुनते थे और उसको कंटस्थ कर लेते थे। और पीढ़ी दर पीढ़ी कान के द्वारा सीख कर के बाद में युग बदल गया प्रिंटिड मेटिरियल आ गया, किताबें आने लगी तो लोगों ने उसमे ढाल दिया। ये इवाल्यूशन लगातार चलता रहा है। ये और ये ही तो मानव जीवन की विशेषता है। तो वो इवाल्यूशन का एक हिस्सा है। कि हम आज डीजिटल गैजेट के माध्यम से, नए टेक्नोलोजिक्ल टूल के माध्यम से बड़ी आसानी से चीजों को प्राप्त कर सकते हैं और बड़े व्यापक रूप से प्राप्त कर सकते हैं। इसे हमने एक ऑपर्चुनिटी मानना चाहिए। हमने इसे समस्या नहीं मानना चाहिए। लेकिन ये भी सही है कि कभी हमने एक कोशिश करनी चाहिए हम ऑनलाइन हमारी पढ़ाई को एक रिवार्ड के रूप में अपने टाइम टेबल में रख सकते हैं। मुझे पक्का विश्वास है कि मान लीजिए आपने आपके टीचर के द्वारा मिली हुई नोट्स और स्टैंडर्ड मैटीरियल कहीं आपको ऑनलाइन अवेलबल है। दोनों को बराबर देखेंगे तो आप ही उसका वेल्यू एडिसन कर सकते हैं। आप कहेंगे हां टीचर ने इतना बताया था मुझे इतना याद रहा था। लेकिन यहां दो चीजे मुझे अच्छी मिल गई है। अच्छे तरीके से मिल गई है। मैं दोनों का जोड़ कर दूंगा तो वो आपकी ताकत बहुत बढ़ा देंगे। ऑनलाइन का दूसरा लाभ ये है आखिरकार शिक्षा का एक हिस्सा है। ज्ञान अर्जन करना अब ऑनलाइन और ऑफलाइन का सिद्धांत क्या हो सकता है।
मैं मानता हूं ऑनलाइन पाने के लिए है ऑफलाइन बनने के लिए है। मुझे कितना ज्ञान पाना है, कितना अर्जित करना है। मैं ऑनलाइन जाकर के दुनिया के जिस छोर से जो भी एवेलेबल है। मैं अपने मोबाइल फोन पर या अपने आईपैड पर ले आऊंगा। इसको मैं अंगीकृत करूंगा। और ऑफलाइन जो मैने वहां पाया है उसको पनपने के लिए मैं अवसर दूंगा। मैं ऑफलाइन उस जो चीजों को मान लीजिए यहां साउथ इंडिया के साथियों ने मुझे पुछा आखिर में वणक्कम कम करते हुए बात हुई। टीचर महोदय ने पूछा तो मैं यह कहूंगा। कि मां ऑनलाइल आपने डोसा कैसे बनता है। कौन से इंग्रेडिएंट होते हैं, क्या प्रोसेस होता है सब देख कर लिया लेकिन पेट भरेगा क्या? बढ़िया से बढिंया डोसा आपने कम्प्यूटर पर बना दिया। सारे इनग्रेडियन का उपयोग कर लिया | पेट भरेगा क्या? लेकिन वो ज्ञान अगर आपने कोशिश कि और आपने डोसा बना दिया तो पेट भरेगा कि नहीं भरेगा? तो ऑनलाइन को आपका आधार मजबूत करने के लिए उपयोग करें। आपको ऑफलाइन मे उसको जाकर के जीवन मे साकार करना है। शिक्षा का भी ऐसा ही है। पहले आपकी जो किताब हैं वो, आपके जो टीचर हैं वो, आपका जो सर्राउंडिंग है वो, बहुत सीमीत साधन थे ज्ञान प्राप्त करने के लिए।
आज असीमित संसाधन हैं। इसलिए आप अपने आपको कितना व्यापक कर सकते हैं। खुद का विस्तार कितना कर सकते हैं। उतनी ही चीजें आप उसको अडॉप्ट करते जाएंगे। और इसलिए ऑनलाइन को एक अवसर समझिये। लेकिन इधर – उधर भटककर के काम करते हैं तो फिर टूल भी एवेलेबल है। आपने देखा होगा आपके हर गैजेट में टूल है। जो आपको इंस्ट्रक्शन देते हैं। वॉरिंग देते हैं ये करो, ये मत करो, अब रूक जाओ, थोड़ी देर आराम करो, अब 15 मिनट के बाद फिर आना है। वो 15 मिनट के बाद आएंगे। आप इस टूल का उपयोग करके अपनेआप को डिसिप्लिन में ला सकते हैं। और मेने देखा है बहुत सारे बच्चे होते हैं। जो ऑनलाइन इन टूल्स का मैक्सिमम उपयोग करते हैं। अपने आप को रिस्ट्रिक्ट करते हैं। दूसरा, जीवन में खुद से भी जुड़ना ये भी उतना ही महत्व है। जितना आइपैड के अंदर घुसने में आनंद आता है। मोबाइल फोन के अंदर घुसने में आनंद होता है। उससे हजारो गुणा आनंद अपने भीतर घुसने का भी होता है। तो दिन भर में कुछ पल ऐसे निकालिये कि जब आप ऑनलाइन भी नहीं होंगे, ऑफलाइन भी नहीं होंगे। इनर लाइन होंगे। जितना अंदर जाएंगे आप अपनी ऊर्जा को अनुभव करेंगे। अगर इन चीजों को कर लेते हैं तो मुझे नहीं लगता है कि ये सारे संकट आपके लिए कठिनाई पैदा करेंगे।
प्रस्तुतकर्ता : माननीय प्रधानमंत्री जी आपने हमे मूलमंत्र दिया कि जब हम एकाग्र होकर अपनी पढ़ाई करें तो सफलता हमे अवश्य मिलेगी। धन्यवाद महोदय। माननीय प्रधानमंत्री जी वैदिक सभ्यता और सिंधु घाटी सभ्यता के मुख्य निवास स्थान पानीपत हरियाणा से सुश्री सुमन रानी जोकी एक शिक्षिका है आपके समक्ष एक प्रश्न रखना चाहती हैं। सुश्री सुमन रानी मैम, कृप्या अपना प्रश्न पुछिये।
सुमन रानी : नमस्कार प्रधानमंत्री महोदय जी मैं सुमन रानी टी.जी.टी सोशल साइंस, डीएवी पुलिस पब्लिक स्कूल पानीपत से, सर मेरा आपसे प्रश्न है कि नई शिक्षा नीति छात्रों को उनके कौशल को विकसित करने में नए अवसर कैसे प्रदान करेंगे? धन्यवाद महोदय।
प्रस्तुतकर्ता : धन्यवाद मैम, मान्यवर पूर्व के स्काटलैंड नाम से प्रसिद्ध मेघालय की ईस्ट खासी हील्स की कक्षा 9वी की छात्रा शीला वैष्णवी आपसे इसी विषय पर प्रश्न पुछना चाहती है। शीला कृप्या अपना प्रश्न रखें।
Sheela Vaishnav : Good Morning Sir, I am Sheela Vaishnav of Jawahan Navodaya Vidyalaya East Khasi Hills Meghalaya studying in class 9th. My Question to Hon’ble Prime Minister is – How Provisions of National Education Policy will empower students’ life in particular and society in general and pathway for Naya Bharat. Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता : Thank You Sheela. श्रद्धेय प्रधानमंत्री जी नई शिक्षा नीति को ध्यान मे रखते हुए इस तरह के कई और भी सवाल देश भर से प्राप्त हुए हैं। जिनमे विद्यार्थीयों ने यह अभिव्यक्त किया है कि हमारी रूचि कुछ ओर होती है हम विषय कोई ओर पढ़ रहे होते हैं। ऐसी स्थिति में क्या करें? कृप्या मार्गदर्शन कर कृतार्थ करें?
प्रधानमंत्री जी : जरा गंभीर प्रकार का सवाल पूछा है और इतने कम समय में उसका पूरा विस्तार से जवाब देना भी कठिन है। पहली बात तो है ये न्यू एजुकेशन पॉलिसी के बजाय हम ये कहें, ये नेशनल एजुकेशन पॉलिसी है। NEP, कुछ लोग N को न्यू कहते हैं। एक्चुअली ये नेशनल एजुकेशन पॉलिसी है। और मुझे अच्छा लगा कि आपने ये पूछा शायद दुनिया में शिक्षा की नीति निर्धारण में इतने लोगों का इंवॉल्वमेंट हुआ होगा, इतने स्तर पर हुआ होगा यह अपने आप में शायद में एक बहुत बड़ा वर्ल्ड रिकॉर्ड है।
2014 से जब मुझसे इस कार्य के लिए आप सब ने प्रश्न किया है, तो शुरुआत से ही इस काम पर हम लगे थे। करीब छै सात साल तक बहुत ब्रेनस्टॉर्मिंग हुआ, हर स्तर पर हुआ। गांव के शिक्षक के बीच हुआ, गांव के स्टूडेंट के बीच हुआ, शहर के शिक्षकों के बीच हुआ, शहर के स्टूडेंट के बीच हुआ। ब्वॉयज स्टूडेंट्स ने कहा, गर्ल्स स्टूडेंट्स ने कहा, दूर से दूर पहाड़ों में जंगलों में, यानी एक प्रकार से हिंदुस्तान के हर कोने में सालों तक इस विषय में ब्रेनस्टॉर्मिंग हुआ। उस सबके जीस्ट तैयार किए गए और देश के बहुत ही अच्छे विद्वान और वो भी आज के युग को ध्यान में रखते हुए जो लोग साइंस और टेक्नोलॉजी से जुड़े हुए थे, ऐसे लोगों के नेतृत्व में इसकी विशेष चर्चाएं हुई, उसमें से एक ड्राफ्ट तैयार हुआ। उस ड्राफ्ट को फिर लोगों के बीच में भेजा गया और 15-20 लाख इनपुट्स आए। यानी इतना बड़ा एक्सरसाइज इतनी व्यापक एक्सरसाइज उसके बाद एजुकेशन पॉलिसी आई है और यह एजुकेशन पॉलिसी को मैंने देखा है कि पॉलिटिकल पार्टी, सरकार कुछ भी करें तो कहीं ना कहीं से तो विरोध का स्वर कुछ ना कुछ तो हर कोई मौका ढूंढता रहता है। लेकिन आज मेरे लिए खुशी की बात है कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी का हिंदुस्तान के हर तबके में पुरजोर स्वागत हुआ है और इसलिए इस काम को करने वाले सब अभिनंदन के अधिकारी हैं लाखों लोग हैं जिन्होंने इसको बनाया है। ये सरकार ने नहीं बनाया है।
देश के नागरिकों ने बनाया है, देश के विद्यार्थियों ने बनाया है, देश के टीचर्स ने बनाया है और देश के भविष्य के लिए बनाया है। अब एक छोटा सा विषय पहले हमारे यहां खेलकूद एक एक्स्ट्रा एक्टिविटी माना जाता था। आपको जो पांचवी, छठी, सातवीं में पड़े होंगे उनको पता होगा। अब इस नेशनल एजुकेशन पॉलिसी में वो शिक्षा का हिस्सा बना दिया गया है। यानी खेलकूद, खेलना खिलने के लिए बहुत अनिवार्य होता है। बिना खेले कोई खिल नहीं सकता। अगर आप खिलना चाहते हैं, खुलना चाहते हैं तो खेल जीवन में बहुत जरूरी है। टीम स्पिरिट आता है, साहस आता है, अपने प्रतिस्पर्धी को समझने की ताकत आती है। यह सारी किताबों में से जो सीखते हैं, खेल के मैदान में आसानी से सीख सकते हैं। लेकिन वो पहले हमारी शिक्षा व्यवस्था से बाहर था, एक्स्ट्रा एक्टिविटी था। उसको प्रतिष्ठा दी, अब आप देखते हैं कि परिवर्तन आने वाला है और इन दिनों खेलकूद में जो रुचि बढ़ रही है, तो उस पर एक प्रतिष्ठा मिली है। पर मैं एक ऐसी चीज बता रहा हूं कि जो आप को ध्यान में आएं, कहने के लिए तो मेरे साथ बहुत सारी चीज़ें हैं। उसी प्रकार से क्या हम बीसवीं सदी की नीतियों को लेकर के 21वीं सदी का निर्माण कर सकते हैं क्या? मैं आप लोगों से पूछता हूं। 20वीं सदी की सोच, 20वीं सदी की व्यवस्था, 20वीं सदी की नीति, इससे 21वीं सदी में आगे बढ़ सकते हैं क्या? जरा जोर से बताइए ना।
प्रस्तुतकर्ता : नहीं सर!
प्रधानमंत्री जी : नहीं बढ़ सकते ना, तो हमें 21वी सदी के अनुकूल अपनी सारी व्यवस्थाओं को, सारी नीतियों को ढालना चाहिए कि नहीं ढालना चाहिए? अगर हम अपने आपको इवोल्व नहीं करेंगे तो हम ठहर जाएंगे और ठहर जाएंगे ऐसा नहीं हम पिछड़ जाएंगे। और इसलिए भी वैसे बीच में समय जितना जाना चाहिए उससे ज्यादा चला गया उसे देश का नुकसान हुआ है, लेकिन अब जब हम पहुंच चुके हैं, अब जैसे आज हम देखते हैं कि कभी कबार मां-बाप की इच्छा के कारण रिसोर्सेज के कारण, नजदीक में व्यवस्था के कारण, हम अपनी इच्छा की शिक्षा के लिए आगे नहीं बढ़ पाते हैं और सब प्रेशर के कारण और प्रतिष्ठा के कारण एक ढर्रे पर चले गए कि नहीं हां, डॉक्टर बनना है। लेकिन हमारा जो इंस्टिंक्ट है वो कुछ और है। मुझे वाइल्ड लाइफ में इंटरेस्ट है, मुझे पेंटिंग में इंटरेस्ट है, मुझे टेक्नोलॉजी में इंटरेस्ट है, मुझे साइंस में इंटरेस्ट है, मुझे रिसर्च में, अब कारणों से मैं मेडिकल में तो चला गया।
पहले तो गए हैं तो फिर इस पाइपलाइन में यहां घुसे आप, तो आपको वहीं निकलना पड़ेगा दूसरे छोर पर। अब हमने कह दिया ऐसा जरूरी नहीं है कि आप प्रवेश कर लिया लेकिन 1 साल 2 साल के बाद लगा कि भई नहीं नहीं, मेरा रास्ता ये नहीं है, मेरा तो मिजाज वो है, मैं वहां जाना चाहता हूं, तो अब नेशनल एजुकेशन पॉलिसी आपको नए रास्ते पर जाने का अवसर देती है सम्मान के साथ अवसर देती है। आज हम जानते हैं पूरी दुनिया में खेल का महत्व बहुत बढ़ गया है। सिर्फ शिक्षा, सिर्फ ज्ञान का भंडार, यह एनफ नहीं है, हुनर भी होना चाहिए, स्किल होनी चाहिए। अब इसको हमने सिलेबस का हिस्सा बनाया है। ताकि उसका पूर्ण विकास के लिए उसको खुद को अफसर मिले। मुझे आज खुशी हुई, मैं अभी आज एक प्रदर्शनी देख कर के आया। नेशनल एजुकेशन पॉलिसी का क्या रिफ्लेक्शन होता है, वह एक छोटे से रूप में आज शिक्षा विभाग के लोगों ने रखा था, मैं शिक्षा विभाग के लोगों को बधाई देता हूं यानी बहुत ही प्रभावी था।
आनंद आता था कि हमारे आठवीं-दसवीं कक्षा के बच्चे 3D प्रिंटर बना रहे हैं। आनंद आ रहा है कि हमारे आठवीं-दसवीं कक्षा के बच्चे वैदिक मैथमेटिक्स का ऐप चला रहे हैं और दुनिया भर के स्टूडेंट उनसे सीख रहे हैं। नंदिता और निवेदिता दो बहने मुझे मिली, मैं बहुत ही सरप्राइस था। हमारे यहां इन चीजों को बुरा माना जाने वाला एक वर्ग होता है। लेकिन उन्होंने दुनिया भर में अपने स्टूडेंट खोज लिए हैं। वो खुद स्टूडेंट्स हैं, लेकिन गुरु बन गए हैं। अब देखें उन्होंने टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग किया है। टेक्नोलॉजी से वो डरे नहीं है, टेक्नोलॉजी का उपयोग किया है। उसी प्रकार से मैंने देखा कुछ स्कल्पचर्स बनाए हुए हैं। कुछ अच्छे पेंटिंग बनाए हुए हैं और इतना ही नहीं, उसमें विज़न था। ऐसे ही करने के लिए कार्य नहीं किया गया। मैं उसे विज़न को अनुभव करता था, इसका मतलब हुआ कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी व्यक्तित्व के विकास के लिए बहुत सारे अवसर दे रही है और इस अर्थ में मैं कहूंगा कि हम जितनी बारीकी से नेशनल एजुकेशन पॉलिसी को समझेंगे और प्रत्यक्ष में उसको धरती पर उतरेंगे, आप देखिए मल्टीपल बेनिफिट्स आपके सामने होंगे। तो मेरी देशभर के टीचर्स को, देश भर के शिक्षाविदों से, देश भर के स्कूल से मेरा आग्रह है कि आप इसकी बारीकियों को जमीन पर उतारने के नए-नए तरीके डेवलप कीजिए और जितने ज्यादा तरीके होंगे उतने ही ज्यादा अवसर प्राप्त होंगे, मेरी शुभकामनाएं हैं।
प्रस्तुतकर्ता : Honourable Prime Minister sir, now we are absolutely confident that the National Education Policy will redefine the meaning of education for us and our future is brilliant. हम खेलेंगे तो अवश्य खिलेंगे। Honourable Sir, Roshni of Rajkiya Kanya Inter College in the industrial town of Ghaziabad seeks respected Prime Minister's help and guidance on certain issues. Roshni, please ask your question.
रोशनी : नमस्कार महोदय! माननीय प्रधानमंत्री जी, मैं रोशनी राजकीय कन्या इंटर कॉलेज विजय नगर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश में 11वीं कक्षा की छात्रा हूँ | मान्यवर मेरा प्रश्न यह है कि मुझे आश्चर्य है कि क्या छात्र परीक्षा से डरते हैं या अपने माता-पिता और शिक्षकों से ? क्या हमें परीक्षा को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए जैसे कि हमारे माता-पिता या शिक्षक हम से उम्मीद करते हैं या बस त्योहारों की तरह उन का आनंद लें? कृपया हमारा मार्गदर्शन करें, धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता : Thank you Roshni. पांच नदियों के क्षेत्र, गुरुओं की भूमि स्थित समृद्ध राज्य पंजाब के भटिंडा से दसवीं की छात्रा किरनप्रीत इसी विषय पर अपना प्रश्न पूछना चाहती हैं। किरनप्रीत, कृपया अपना प्रश्न पूछें।
किरनप्रीत : Good morning honourable Prime Minister sir, my name is Kiranpreet Kaur of class 10. I studied in Bloom Public Senior Secondary School, Kalyansukha, District Bhatinda, Punjab. Sir, my question to you is how do I deal with my family’s disappointment if my results are not good, I don't have negativity against my parents because I know they need more reassurance than I do. Thank you sir, please guide me.
प्रस्तुतकर्ता : धन्यवाद किरनप्रीत। Honourable Prime Minister sir, like many of us, Roshni and Kiranpreet also find a challenge to deal with the expectation of their parents and teachers, we look forward to your advice. Honourable sir.
प्रधानमंत्री जी : रोशनी क्या कारण है कि आपने जब यह सवाल पूछा तो सबसे ज्यादा तालियां बजी, क्या कारण हैं? मुझे लगता है कि आप ने सवाल स्टूडेंट के लिए नहीं पूछा है, आप ने बड़ी चतुराई से पेरेंट्स और टीचर के लिए पूछा है। और मुझे लगता है कि आप चाहती भी है कि मैं यहां से हर एक के पेरेंट्स को और टीचर्स को कुछ यहां से कह दूं ताकि आपके काम आ जाए। इसका मतलब के आप पर प्रेशर है टीचर्स का, आप पर प्रेशर है पेरेंट्स का और इसके लिए आपको उलझन है कि मैं मेरे लिए कुछ करूं कि उनके कहने पर कुछ करूं। अब उनको समझा नहीं पा रहे हैं और मैं अपना छोड़ नहीं पा रहा हूं, यह आपकी चिंता मैं महसूस कर रहा हूं। मैं सबसे पहले तो पेरेंट्स को और टीचर्स को यह जरूर कहना चाहूंगा की कृपा करके आप मन में सपने लेकर के जीते हैं या तो जो सपने आपके खुद के अधूरे रह गए हैं, आप जो करना चाहते थे अपने विद्यार्थी काल में, आप जो अपने जीवन में करना चाहते थे, वह नहीं कर पाए और इसलिए दिन रात आपको लगता है कि बस इसको तो वह बनाकर के रहूंगा। यानी आप अपने मन की बातों को, अपने सपनों को, अपनी अपेक्षाओं-आकांक्षाओं को अपने बच्चे में एक प्रकार से इंजेक्ट करने की कोशिश करते हैं। बच्चा आपको रिस्पेक्ट करता है, मां-बाप की बात को बहुत महत्व देता है, दूसरी तरफ टीचर कहते हैं देखो तुम्हें ये करना है यह करो, हमारे स्कूल में तो ये रहता है, हमारी तो यह परंपरा है।
अपका मन उत्साहित करता है और ज़्यादातर हमारे बच्चों के विकास में यह जो कंफ्यूज और कॉन्ट्रैक्टट्री जो प्रभावों के बीच से उसको गुजारना पड़ता है, यह उसके लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय होता है और इसके लिए पुराने जमाने में टीचर का परिवार से संपर्क रहता था। परिवार के हर लोग को टीचर जानते थे और परिवार भी अपने बच्चों के लिए क्या सोचता है उससे टीचर परिचित होते थे। टीचर क्या करते हैं कैसा करते हो उससे पैरंट परिचित होते थे। यानी एक प्रकार से शिक्षा चाहे स्कूल में चलती हो, चाहे घर में चलती हो, हर कोई एक ही प्लेटफार्म पर होता था और उसके कारण आप क्या हुआ है? बच्चा दिन भर क्या करता है मां-बाप को समय नहीं है, जानते नहीं है, टीचर को सिलेबस से लेना-देना है, मेरा सिलेबस पूरा हो गया, मेरा काम हो गया।
मैंने अच्छी तरह से पढ़ाया, बहुत मेहनत करके पढ़ाते हैं ऐसा नहीं है कि नहीं पढ़ाते, लेकिन उसको लगता है कि मेरी जिम्मेवारी हैं सिलेब्स पूरा करूं। वह मेरा दायित्व है लेकिन बच्चे का मन कुछ और करता है और इसलिए जब तक चाहे पेरेंट्स हो या टीचर्स हों या स्कूल का एनवायरनमेंट हो, हम बच्चे के शक्ति और उसकी सीमाएं, उसकी रूचि और उसकी प्रवृत्ति, उसकी अपेक्षा, उसकी आकांक्षा इन सब को बारीकी से ऑब्जर्व नहीं करते हैं। उसको जानने समझने का प्रयास नहीं करते हैं और हम उसको धक्का मारते जाते हैं तो कहीं ना कहीं वह लड़खड़ा जाता है और इसलिए मैं रोशनी के माध्यम से सभी पेरेंट्स को सभी टीचर्स को कहना चाहूंगा कि आप अपने मन की आशा अपेक्षा के अनुसार अपने बच्चों पर बोझ बढ़ जाए, इससे बचने का प्रयास करें और हर बच्चे के पास एक स्ट्रैंथ होती है, हर मां बाप को ये स्वीकारना होगा कि आपके तराजू में वो फिट हो या ना हो लेकिन परमात्मा ने उससे किसी ना किसी विशेष ताकत के साथ भेजा है। उसके अंदर कोई सामर्थ्य है, ये आपकी कमी है। यह आपकी कमी है कि आप उसके सामर्थ्य को पहचान नहीं पाते हो। यह आपकी कमी है कि आप उसके सपनों को समझ नहीं पा रहे हो और इसलिए दूरी वहीं से बन जाती है।
और मैं चाहूंगा बच्चों से क्या आप प्रेशर के बीच भी, अब यह तो मैं नहीं कहूंगा कि मां-बाप की मत सुनो, मैं यह तो नहीं कहूंगा कि टीचर की बात मत सुनो, यह तो सलाह ठीक नहीं होगी, सुनना तो है ही है। वह जो कहते हैं उसको समझना है लेकिन हमें उन चीजों को स्वीकार करना है जो हमारे भीतर बहुत सहज रूप से आपने देखा होगा, धरती भी वैसे तो निर्जीव लगती है, एक बीज बोएंगे तो उसमें से कुछ नहीं निकलता है, लेकिन उसी धरती पर दूसरा भी बोयेंगे तो बहुत कुछ निकल करके आता है बहुत बड़ा वट वृक्ष बन जाता है। वो उस धरती का नहीं है, कौन सा बीज बोया है उस पर है। और इसलिए आपको पता है कि कौन सी चीज आप आसानी से अडॉप्ट कर लेते हैं। कौन सी चीज आपके मन के साथ एक दम उसमें आगे बढ़ जाते हैं।
आप जी जान से उसमें बढ़ते जाइए आपको कभी बोझ महसूस नहीं होगा और शुरू में शायद शुरू में रुकावट आएगी लेकिन बाद में परिवार गर्व करने लग जाएगा, हां हम तो सोचते थे कि इसने ये बहुत अच्छा किया, आज तो हमारा नाम रोशन हो गया। 4 लोगों के बीच में बैठते हैं तो तारीफ होती है। जो कल तक आप की ताकत को स्वीकार नहीं करते थे वह आने वाले समय में आप ही की ताकत का गौरव गान करना शुरू कर देंगे और इसीलिए आप हंसते खेलते उमंग के साथ जो मिनिमम रिक्वायरमेंट है उसको पूरा करते हुए, अतिरिक्त जो सामर्थ्य है उसको जोड़ते हुए आगे बढ़ेंगे आपको बहुत फायदा होगा।
प्रस्तुतकर्ता : श्रद्धेय प्रधानमंत्री जी आपने अभिभावक एवं शिक्षक की आशाओं और अपेक्षाओं के बीच बच्चों की रुचि एवं आकांक्षाओं को नई शक्ति दी है, आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। Honourable Prime Minister sir, from the culturally rich city of Delhi, Vaibhav a class 10th student, of Kendriya Vidyalaya Janakpuri, honestly seeks your council regarding his problem. Vaibhav please ask your question.
वैभव : नमस्कार प्रधानमंत्री जी, मेरा नाम वैभव कनौजिया है | मैं कक्षा दसवीं का छात्र हूं | मैं केन्द्रीय विद्यालय जनकपुरी में पढ़ता हूं। महोदय मेरा आपसे एक प्रश्न है कि how to stay motivated and succeed when we have so many of backlog?
प्रस्तुतकर्ता : धन्यवाद वैभव, माननीय प्रधानमंत्री जी हम बच्चे ही नहीं हमारे अभिभावक भी आपसे अपनी समस्याओं का निदान चाहते हैं सुजीत कुमार प्रधान जी जो झाड़सुगुड़ा उड़ीसा से एक अभिभावक है आपसे इसी विषय में मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते हैं श्रीमान सुजीत प्रधान जी कृपया अपना प्रश्न पूछे।
सुजीत प्रधान जी : मेरे प्रधानमंत्री जी नमस्कार मेरा नाम सुजीत कुमार प्रधान। मेरा प्रश्न है पाठ्येत्तर गतिविधि करने के लिए बच्चों कैसे प्रेरित करें? धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता : धन्यवाद श्रीमान। माननीय प्रधानमंत्री जी स्थापत्य और चित्रकला के धनी राजस्थान के जयपुर के कक्षा 12वीं की छात्रा कोमल शर्मा आपसे अपनी परेशानी का हल चाहती हैं, कोमल कृपया अपना प्रश्न पूछें।
कोमल : नमस्कार माननीय प्रधानमंत्री जी महोदय मेरा नाम कोमल शर्मा है मैं राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय बगरू जयपुर कक्षा 12वीं की छात्रा हूं मेरा प्रश्न आपसे यह था कि मेरे एक सहपाठी का एक पेपर अच्छा नहीं गया तो मैं उसे दिलासा कैसे दूं?
प्रस्तुतकर्ता : धन्यवाद कोमल। Honourable Prime Minister sir, Aren Epen, a class 10th student of Qatar is overwhelmed by a similar problem, Eran please go ahead and ask a question.
Aran : Namaste sir, greetings from MES Indian school, Doha, Qatar. My name is Aran Epen of class 10th. My question is to the honorable Prime Minister of India are these- how to stop myself from procrastinating and how to keep away exam fears and the sense of lack of preparation.
प्रस्तुतकर्ता : Thank you Aran. Honourable Prime Minister sir, Vaibhav, Mr. Pradhan ji, Komal and Eran are eager to gain from your wisdom on how to handle the problem of lack of motivation and how to sustain commitment to academics. Also, many other students from all over India want to know how to ensure that they participate equally in extracurricular activities to be well integrated individuals. Kindly guide all of us sir.
प्रधानमंत्री जी: को यह सोचता है कि मोटिवेशन का कोई इंजेक्शन मिलता है और वह इंजेक्शन हम लगवा लें तो फिर मोटिवेशन का एश्योरेंस मिल जाता है किसी को लगता है कि यह फार्मूला मिल जाए तो फिर मोटिवेशन की कभी समस्या नहीं रहेगी तो मैं समझता हूं कि यह बहुत बड़ी गलती होगी लेकिन पहले तो खुद को आप ऑब्जर्व कीजिए कि आप वह कौन सी बातें होती हैं जिस से पूरी तरह डिमोटिवेटेड हो जाते हैं आपको पता चलेगा आप दिन भर देखेंगे सप्ताह भर देखेंगे महीने पर देखेंगे तो आप पकड़ पाएंगे कि कहां जब ऐसा होता है तो मुझे लगता है वह मैं कुछ नहीं कर सकता यह मेरे लिए कठिन है तो एक खुद को जानना और उसमें भी वह कौन सी बातें हैं जो मुझे हताश कर देती है निराश कर देती हैं एक बार उसको जान ले और उसको एक बार नंबर बॉक्स में डाल दें ठीक है फिर आप कोशिश कीजिए कि वह कौन सी चीज है जो सहज रूप से आप को मोटिवेट करती हैं जो बातें सहज रूप से आप को मोटिवेट करती हैं उसको आप आईडेंटिफाई कीजिए मान लीजिए आपने कोई बहुत अच्छा गाना सुना हुआ सिर्फ उसका संगीत नहीं उसके शब्दों में कुछ चीजें ऐसी हैं क्या आपको लगता है कि हां यार सोचने का तरीका ऐसा भी हो सकता है तो आपने देखा होगा कि आप अचानक नए सिरे से सोचना शुरु कर देते हैं किसी ने आपको बताया था नहीं बताया था लेकिन आपने खुद को तैयार किया था कि वह कौन सी चीज है जो मुझे मोटिवेट करती हैं आप ने पकड़ लिया तो आपका मन करेगा हां यह मेरे लिए बहुत काम की चीज है इसीलिए मैं चाहूंगा कि आप स्वयं के विषय में जरूर एनालिसिस करते रहिए। उसमे किसी और की मदद के चक्कर में मत पड़िए।
बार-बार किसी को यह जाकर मत कहो यार मेरा मूड नहीं है मुझे मजा नहीं आता है, फिर आपके अंदर एक ऐसी वीकनेस पैदा होगी कि हर बार आप sympathy चाहेंगे, फिर आपका मन करेगा कि मम्मी मेरे पास बैठे हैं जरा मुझे पुचकारे फुलकारी, मेरा उत्साहित करें, मेरा लालन पालन करें तो एक वीकनेस धीरे धीरे डेवलप हो जायेगी। कुछ पल तो अच्छे चले जायेंगे। इसलिए कभी भी उन चीजों के विषय में सिंपैथी गेन करने के लिए उपयोग मत कीजिए। कभी मत कीजिए। हां एक जीवन में मुसीबतें आई, निराशा आई, हताशा आई, मैं उसको खुद जाऊंगा, मैं उससे जमकर के उससे जंग करूंगा और मेरी ही निराशा मेरी उदासीनता को मैं ही खत्म कर दूंगा, मैं ही उसको कबर में गाड़ दूंगा। यह विश्वास पैदा होना चाहिए। दूसरा है, हम किन चीजों को ऑब्जर्व करते हैं। कभी-कभी कुछ चीजों को ऑब्जर्व करने से भी हमें बहुत प्रेरणा मिलती है अब मान लीजिए आपके ही घर में एक 3 साल का बच्चा है 2 साल का बच्चा है उसको कुछ लेना है लेकिन उसके लिए बड़ा मुश्किल है आप दूर से देखते रहिए कि वह गिर जाएगा पहुंच नहीं पाएगा थक जाएगा तो थोड़ी देर चला जाएगा फिर आएगा फिर कोशिश करें का मतलब आपको वह सिखा रहा है कि ठीक है मेरे लिए मुश्किल है लेकिन मैं अपनी कोशिश नहीं छोडूंगा यह मोटिवेशन क्या किसी स्कूल में किसी ने पढ़ाया था क्या? उस 2 साल के बच्चों को कोई प्राइम मिनिस्टर कहने के लिए गया था क्या ? किसी प्राइम मिनिस्टर ने समझाया था क्या? अरे मेरा बेटा जरा खड़े हो जाओ, दौड़ो, ऐसा किसी ने कहा था क्या, जी नहीं। ईश्वर ने एक इन्हेरेंट क्वालिटी हम सब में रखी हुई है जो हमें कुछ ना कुछ करने के लिए वो ड्राइविंग फोर्स बनती है छोटे बालक में भी होता है हमने कभी इन चीजों को अब्ज़र्व किया है।
आपने देखा होगा कि कोई दिव्यांग अपने कुछ गतिविधि करता है उसने अपने तरीके ढूंढ लिए हैं, बहुत अच्छे ढंग से करता है। लेकिन हमने minutely observe किया है कि देखिए भाई ईश्वर ने उसकी इतनी शरीर में कमियां दी है लेकिन उसने हार नहीं मानी उसने अपनी कमियों को ही शक्ति बना दिया है। और वह शक्ति खुद को तो दौड़ आती है वह शक्ति अगर देखने वाला नहीं ऑब्जर्व करने वाला, जो निरीक्षण करता है उसको भी प्रेरणा देती है हम कोशिश करें। हमारे आस पास जो चीजें हैं उसको हम उस रूप में ऑब्जर्व करें। उसकी वीकनेसेस को ऑब्जर्व ना करें उसकी कमियों को उसने कैसे मात किया है उन कमियों को वह कैसे मात करता है उस प्रक्रिया को बारीकी से देखिए। आप फिर अपने आप को उससे correlate करेंगे, कहां में ऐसा होता है तो मैं भी शायद ऐसा कर सकता हूं ईश्वर ने तो मुझे हाथ पैर सब बहुत बढ़िया दिया है मुझे तो कोई कमी नहीं है मैं क्यों चुप बैठा हूं आप खुद दौड़ने लग जाएंगे और इसलिए मुझे लगता है कि दूसरा एक विषय है क्या कभी आप खुद के एग्जाम लेते हैं क्या। आप आपने एग्जाम भी तो खुद लीजिए कोई आपके एग्जाम क्यों ले जैसे मैंने शायद मेरी जो किताब है Exam Warriors उसमें एक जगह पर यह लिखा हुआ है कि आप कभी एग्जाम को ही एक चिट्ठी लिख दो Hey Dear exam और उसको लिखो कि तुम क्या समझते हो, मैंने यह तैयारी की है, मैंने यह तैयारी की है, मैंने ये मेहनत की है, मैंने इतना प्रयास किया है, मैंने ये पढ़ा है, मैंने इतनी नोट भरे हैं, मैं टीचर के साथ इतने इतने घंटे बैठा हूं, मैंने मम्मी के साथ इतना समय बिताया है मैं मेरे पड़ोसी के अच्छे छात्र ने इतना अच्छा काम किया तो उससे जाकर के अरे, मैं इतना सीख करके आया हूं तुम कौन होते हो मेरा मुकाबला करने वाले, तुम कौन होते हो मेरा exam लेने वाले, मैं तुम्हारा exam ले रहा हूं।
मैं देखता हूं तुम मुझे नीचे गिरा करके दिखा दो, मैं तुम्हें नीचे गिरा करके दिखा देता हूं। कभी तो करिए। कभी-कभी आपको लगता है कि भाई मैं ये जो सोचता हूं, सही है गलत है। आप ऐसा कीजिए, एक बार replay करने की आदत बनाइए। Replay करने की आदत बनाएंगे तो आपको एक नई दृष्टि मिलेगी। जैसे मानो क्लास के अंदर कुछ सीख करके आए हो, आपके तीन-चार दोस्त हैं, बैठिए और आज जो सीखा है, आप भी टीचर बनके आपके तीन दोस्तों को सिखाइए। फिर दूसरा दोस्त और तीन दोस्त को सिखाए, फिर तीसरा दोस्त और तीन को सिखाए, फिर चौथा दोस्त...यानी एक प्रकार से जितना जिसने पाया होगा वो परोसेगा। और हरेक के ध्यान में आएगा देखें यार उसने इस बिंदु को पकड़ा था मुझसे छूट गया था, उसने इस प्वाइंट को पकड़ा था, मुझसे छूट गया था। चारों लोग जब replay करेंगे उस बात को, और खुद आप करिए, किताब नहीं है कुछ नहीं है, सुना-सुनाया है। अब देखिए, वो आपका अपना बन जाएगा।
आप चीजों को, अब आपने देखा होगा कहीं कोई घटना घटी हो, बड़े-बड़े पॉलिटिकल लीडर को भी ये टीवी वाले खड़े हो जाते हैं ना डंडा ले करके, और आपने देखा होगा वो जवाब देने में इधर-उधर, इधर-उधर हो जाते हैं। कुछ लोगों को तो पीछे से प्राम्प्टिंग करना पड़ता है, आपने देखा होगा। लेकिन एक गांव की महिला है और कहीं एक्सीडेंट हुआ है और कोईे टीवी वाला पहुंच गया। उसको बेचारी को टीवी क्या है, मालूम भी नहीं है और उसको पूछ लिया। आप देखिए, बड़े आत्मविश्वास के साथ वो सारा वर्णन कर देती है। कैसा हुआ था, फिर ऐसा हुआ था, फलाना ऐसे, ढिकना ऐसे यानी परफेक्टली चीजें बताई, क्यों, क्योंकि उसने जो अनुभव किया उसको वो आत्मसात कर लेते हैं और उसके कारण उसको replay बड़ी आसानी से कर लेते हैं। और इसलिए मैं मानता हूं कि आप अपने-आपको खुले मन से इन चीजों से जोड़ेंगे तो कभी भी निराशा आपके दरवाजे पर दस्तक नहीं दे सकती है।
प्रस्तुतकर्ता - Honorable Prime Minister Sir, Thank You for giving us the Mantra to think, observe and believe. Howsoever tall the summit, we assure you that we will never give up? माननीय प्रधानमंत्री जी, अपनी कला, संस्कृति और परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध खम्मन तेलंगाना से यादव अनुषा जो कि 12वीं कक्षा की छात्रा हैं, आपसे अपने प्रश्न का समाधान चाहती हैं। अनुषा, कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
अनुषा – माननीय प्रधान मंत्री जी नमस्कार। मेरा नाम अनुषा है। मैं गवर्नमेंट जूनियर कॉलेज में 12वीं कक्षा में पढ़ रही हूं। मैं खम्मन तेलंगाना से हूं। सर, मेरा सवाल यह है कि जब शिक्षक हमें पढ़ाते हैं तो हम समझ जाते हैं। लेकिन कुछ समय या कुछ दिन बाद हम भूल जाते हैं। कृपया इसके बारे में मेरी मदद करें। धन्यवाद सर।
प्रस्तुतकर्ता - धन्यवाद अनुषा। मान्यवर, हमें एक अन्य प्रश्न नमो ऐप के माध्यम से प्राप्त हुआ है। जिसमें प्रश्नकर्ता गायत्री सक्सेना जानना चाहती हैं, परीक्षा देते समय उनके साथ अक्सर ऐसा होता है जो पढ़े और याद किए हुए विषय हैं वो भी परीक्षा हाल में भूल जाते हैं। जबकि परीक्षा से पहले या परीक्षा के बाद साथियों से बात करते समय उन्हें वही जवाब ध्यान में रहता है। ऐसी स्थिति को बदलने के लिए क्या करना चाहिए। मान्यवर, अनुषा एवं गायत्री सक्सेना के जैसे प्रश्न अनेक अन्य लोगों के मन में भी हैं। जिनका संबंध स्मरण शक्ति से है। कृपया इस दिशा में मार्गदर्शन कर कृतार्थ करें, माननीय प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री जी - शायद हर विद्यार्थी के दिमाग में ये विषय कभी न कभी तो एक समस्या बन करके खड़ा हो ही जाता है। हरेक को लगता है कि मुझे याद नहीं रहता है, ये मैं भूल गया। लेकिन आप अगर देखेंगे तो इन exam के टाइम पर अचानक ऐसी चीजें आपकी निकलने लगेंगी कि आप, आपको कभी exam के बाद ध्यान में आएगा कि अरे, मैंने तो पिछले हफ्ते भर में कभी इस विषय को छुआ नहीं था, अचानक प्रश्न आ गया लेकिन मेरा जवाब बहुत अच्छा हो गया, मतलब कहीं पर स्टोर था। आपको भी ध्यान नहीं था, अंदर स्टोर था। और वो स्टोर क्यों था क्योंकि जब वो भर रहे थे तब दरवाजे खुले थे, cupboard खुला हुआ था इसलिए अंदर वो गया। अगर cupboard बंद होता, कितना ही परोसते कुछ नहीं जाता।
और इसलिए कभी-कभी ध्यान शब्द ऐसा है कि लोग उसको योगा, मेडिटेशन, हिमालय, ऋषि-मुनि, वहां जोड़ देते हैं। मेरा बड़ा सिंपल सा मत है, ध्यान का मतलब क्या है। अगर आप यहां हैं लेकिन अभी आप सोचते होंगे कि मम्मी घर पर टीवी देखती होगी, वो ढूंढती होगी मैं किस कोने में बैठा हूं। मतलब आप यहां नहीं हैं, आप घर में हैं। आपके दिमाग में यही है कि मम्मी टीवी देखती होगी, नहीं देखती होगी। मैं यहां बैठा हुआ उनको नजर आ रहा होऊंगा कि नहीं आ रहा होऊंगा। आपका ध्यान यहां होना चाहिए था लेकिन आपका ध्यान वहां है, मतलब आप बेध्यान हैं। अगर आप यहां हैं तो आप ध्यान में हैं। आप वहां हैं तो आप बेध्यान हैं। और इसलिए ध्यान को इतनी सरलता से जीवन में स्वीकार कीजिए आप, इतनी सरलता से स्वीकार कीजिए। ये कोई बहुत बड़ा साइंस है और कोई बहुत बड़ा नाक पकड़ करके हिमालय में जा करके बैठना पड़ता है, ऐसा नहीं है जी। बहुत सरल है। आप उस पल को जीने की कोशिश कीजिए। अगर उस पल को आप जी भरकर जीते हैं तो वो आपकी शक्ति बन जाता है।
बहुत से लोग आपने देखे होंगे, सुबह चाय पीते रहे होंगे, अखबार वढ़ते होंगे, परिवार के लोग कहते हैं अरे पानी गरम हो गया है चलो जल्दी नहाने के लिए चलो। मैं नहीं, मुझे अखबार पढ़ना है। फिर कहेंगे नाश्ता गरम है वो ठंडा हो जाएगा, फिर भी कहेंगे नहीं मुझे अखबार पढ़ना है। तभी मैं माताओं से इसलिए कहता हूं जो बहने ऐसी परेशानी में रहती हैं वो जरा शाम को पूछो कि आज अखबार में क्या पढ़ा था। मैं 99 पर्सेंट ये बताता हूं वो नहीं कह पाएंगे कि आज के अखबार की हेडलाइन क्या थी। क्यों, वो न जागृत हैं न वो उस पल को जी रहा है। वो आदतन पन्ने घुमा रहा है, आखें देख रही हैं, चीजें पढ़ी जा रही हैं, कुछ भी रजिस्टर नहीं हो रहा है। और अगर रजिस्टर नहीं हो रहा है तो memory chip में जाता नहीं है। अब इसलिए आपके लिए पहली आवश्यकता ये है, आप जो भी करें उसे उस वर्तमान को….और मेरा अभी भी मत है कि परमात्मा की इस सृष्टि को सबसे बड़ी कोई सौगात है, अगर मुझे कोई पूछेगा तो मैं तो कहूंगा वो सौगात वर्तमान है। जो इस वर्तमान को जान पाता है, जो इस वर्तमान को जी पाता है, जो इस वर्तमान को आत्मसात कर पाता है उसके लिए भविष्य के लिए कभी भी question mark नहीं होता है। और memory का भी यही कारण है कि हम उस पल को नहीं जीते हैं। और उसके कारण हम उसको गंवा देते हैं।
दूसरा, memory का जीवन से संबंध होता है। सिर्फ exam से है ये सोचोगे तो फिर तो आप उसकी कीमत ही नहीं समझते, उसका मूल्य ही नहीं समझते हैं। अगर मान लीजिए, आपके किसी दोस्त का जन्मदिन आपको याद रहा और आपने जन्मदिन पर उसको फोन किया है। आपकी तो वो memory थी जिसके कारण आपको जन्मदिन याद रहा। लेकिन वो memory आपके जीवन के विस्तार का कारण बन जाती है जब उस दोस्त को टेलीफोन जाता है, उसका, अरे वाह! उसको मेरा जन्मदिन इतना याद था। मतलब मेरे जीवन की अहमियत उसके जीवन में है। वो जीवनभर आपका बन जाता है, कारण क्या था वो memory. मैमोरी जीवन के विस्तार का बहुत बड़ा कैटेलिक एजेंट है। और इसलिए हम हमारी स्मृति को सिर्फ परीक्षा तक, सवाल-जवाब तक सीमित न करें। आप उसको विस्तार करते चलिए। जितना विस्तार करेंगे, चीजें अपने-आप जुड़ती जाएंगी।
दूसरा, आप कभी दो बर्तन लीजिए। दो बर्तन में पानी भरिए। पानी भर करके उसके अंदर एक coin रखिए, दोनों में। पानी शुद्ध है, स्वच्छ है, दोनों एक ही प्रकार का पानी है, दोनों में एक ही प्रकार के बर्तन हैं, दोनों एक ही प्रकार के उसमें coin हैं और आप उसको देखिए। लेकिन एक बर्तन है जो हिल रहा है, पानी इधर-उधर हो रहा है, नीचे coin है, दूसरा स्थिर हे। आप देखेंगे कि जो स्थिर पानी वाला coin है वो आपको perfect दिखता है, हो सकता है उस पर लिखी हुई चीज भी दिखाई दे और जो पानी हिल रहा है वहां पर भी वही coin, वही साइज है, उतना ही गहरा है लेकिन दिखता नहीं, क्यों, पानी हिल रहा है। बर्तन हिल रहा है। अगर मन भी ऐसे डोलता रहे और हम सोचें कि उसमें coin जो है मुझे दिखाई देखा, आपने देखा होगा exam में आपकी समस्या ये होती है कि देखो ये बगल वाला तो ऊपर देखता ही नहीं, लिखता ही रहता है, अब मैं पीछे रह जाऊंगा….यानी दिमाग उसी में लगा पड़ा है। आपका दिमाग इतना हालडोल-हालडोल कर रहा है कि जो भीतर मैमोरी रूपी जो coin है ना, आपको वो दिखता ही नहीं है। एक बार मन को स्थिर कर लीजिए। मन को स्थिर करने की दिक़्क़त है तो आप deep breathing कर लीजिए, तीन-चार बार गहरी सांस लीजिए। एक दम सीना तान करके, आंख बंद करके कुछ पल बैठिए, मन स्थिर हो जाते ही वो coin जैसे दिखने लगता है, आपकी मैमोरी के भीतर पड़ी हुई चीज यूं ही उभर करके आना शुरू हो जाती है। और इसलिए ईश्वर ने जिसकी मैमोरी ज्यादा है उसको कोई extra energy दी है, ऐसा नहीं है जी। हम सबको, हमारे सबका जो internal product है ना, परमात्मा ने बहुत ढंग से बनाया हुआ है। हम किसको घटाते हैं किसको बढ़ाते हैं उस पर निर्भर करता है। तो आप इसको बहुत आसानी से कर सकते हो।
आप में से जो लोग पुराने शास्त्रों को जानते होंगे, कुछ तो कभी यूट्यूब पर भी कुछ चीजें available होती हैं। कुछ शताब्दांगी लोग होते हैं, उनको एक साथ सौ चीजें याद आती हैं। हमारे देश में ये चीजें कभी-कभी इसकी बड़ी प्रचलन हुआ करती थीं। तो हम इसको ट्रेंड कर सकते हैं, अपने मन को भी ट्रेंड कर सकते हैं। लेकिन मैं आज आप परीक्षा में जा रहे हैं इसलिए मैं उस दिशा में आपको नहीं ले जाऊंगा, लेकिन मैं कहता हूं मन स्थिर रखिए। आप अपने पास चीजें पड़ी हैं, वो अपने-आप आना शुरू हो जाएंगी, आपको दिखना शुरू हो जाएंगी, आपको उसका स्मरण होना शुरू हो जाएगा और वो ही बहुत बड़ी ताकत बन जाएगा।
प्रस्तुतकर्ता - माननीय प्रधानमंत्री जी, आपने जिस स्नेहपूर्ण सरलता से हमें ध्यान की विधि सिखाई, निश्चय ही मेरी तरह सबका मन खिल उठा है। धन्यवाद महोदय। माननीय प्रधानमंत्री जी, खनिज संसाधनों से समृद्ध राज्य, मनोरम पर्यटन स्थल रारामगढ़, झारखंड से कक्षा 10वीं की छात्रा श्वेता कुमारी आपसे अपने प्रश्न का समाधान चाहती हैं। श्वेता, कृपया आप अपना प्रश्न रखिए।
श्वेता – माननीय प्रधानमंत्री जी, नमस्कार। मैं श्वेता कुमारी केंद्रीय विद्यालय पटाराटू की 10वीं की छात्रा हूं। मैं आपसे एक प्रश्न करना चाहती हूं। मेरी पढ़ाई में productivity रात के समय अधिक होती है पर सब मुझे दिन में पढ़ने को बोलते हैं। मैं क्या करूं? धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता - धन्यवाद श्वेता। आदरणीय प्रधानमंत्री जी, नमो ऐप के माध्यम से प्राप्त प्रश्न जिसमें राघव जोशी के सामने एक अजीब सी दुविधा है। मां-बाप हमेशा कहते हैं, पहले पढ़ाई करो फिर खेलकूद करो। लेकिन इन्हें लगता है कि खेलने-कूदने के बाद पढ़ाई करते हैं तो उन्हें चीजें बेहतर तरीके से समझ में आती हैं। कृपया राघव और श्वेता के साथ-साथ इन जैसे कई विद्यार्थियों को समझाएं कि वे ऐसा क्या करें कि उनकी productivity श्रेष्ठतम हो। हम सबकी दुविधा का समाधान करने की कृपा करें, माननीय प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री जी - ये बात सही है कि हर कोई चाहता है कि उसके समय का सदुपयोग हो। जिस काम के लिए समय ये लगाया है उसका उतना ही उसको लाभ मिले, और ये अच्छी सोच है। और ये आवश्यक भी सोच है कि हमें हमेशा जागृत रूप से प्रयास करना चाहिए कि क्या मैं जो समय लगा रहा हूं, मैं जो समय खपा रहा हूं, उसका मुझे outcome मिलता है कि नहीं मिलता है। Output तो दिखेगा, outcome नहीं दिखेगा। इसलिए पहले तो खुद में एक आदत डालनी चाहिए कि मैंने जितना invest किया है उतना मुझे प्राप्त हुआ कि नहीं हुआ। अब इसका हम हिसाब-किताब लगा सकते हैं और ये आदत हमको डालनी चाहिए कि भई मैंने आज mathematic के पीछे एक घंटा लगा दिया है। तो मुझे उस एक घंटे में जो मुझे करना था वो मैं कर पाया या नहीं कर पाया। उसमें जो सवाल मुझे कठिन लगते थे वो अब मुझे सहज हो गए कि नहीं हो गए। मतलब मेरा outcome improve हो रहा है। ये हमें analyses करने की आदत डालनी चाहिए। बहुत कम लोगों को analyses की आदत होती है। वो एक के बाद एक पूरा करते ही जाते हैं, करते ही जाते हैं, करते ही जाते हैं और बाद में, बाद में पता ही नहीं रहता कि अरे वो जरा ज्यादा ध्यान की जरूरत थी उसको मैंने ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नहीं थी। कभी-कभी क्या होता है हमारे अपने टाइम-टेबल में जो सबसे सरल है जो सबसे प्रिय है हम घूम-फिर करके उसी में घुस जाते हैं। मन करता है चलो इसी को कर लें, क्यों, आंनद आता है। अब उसके कारण जो कम पसंद है, थोड़ा कठिन है उससे बचने की कोशिश करते हैं।
आपने देखा होगा, हमारी बॉडी जो है ना, वो बॉडी...शब्द मेरा अच्छा नहीं है लेकिन सरलता के लिए बता देता हूं। कभी-कभी लगता है मेरा बॉडी cheater है। आप तय करें मुझे ऐसा बैठना है। आपको पता ही नहीं होगा कैसे, ऐसे हो जाते हो, पता ही नहीं होता है। मतलब आपके साथ आपका बॉडी cheating करता है। आपने मन से तय किया है कि मुझे ऐसे बैठना है, लेकिन थोड़ी ही देर में ढीले हो जाते हो, यानी जो original स्वभाव है वहां बॉडी आपकी ढल जाती है। फिर जागृत हो करके ऐसे कर लोगे, फिर हो जाओगे। मतलब ये बॉडी जैसे cheater है ना वैसे मन भी cheating करता है कभी-कभी। और इसलिए हमें इस cheating से बचना चाहिए। हमारा मन हमारा cheater नहीं बनना चाहिए। वो कैसे बन जाता है कि जो चीज मन को पसंद आए हम उसी में चले जाते हैं। हमें जो जरूरी है…महात्मा गांधी जी श्रेय और प्रिय की बात करते थे। जो चीज श्रेयस्कर है और जो चीज प्रिय है, व्यक्ति श्रेयस्कर की बजाय प्रिय की तरफ चला जाता है। जो श्रेयस्कर है उस पर हमने चिपक कर रहना चाहिए, ये बहुत आवश्यक होता है और उसी की तरफ अगर मन cheating करता है वहां ले जाता है फिर खींचकर ले आएं। तो आपकी productivity आपका outcome बढ़ेगा, और उसके लिए प्रयास करना चाहिए।
दूसरा, ये जो सोचना कि मैं रात को पढ़ूं तो अच्छा होता है। कोई कहता है मैं सुबह पढ़ूं तो अच्छा होता है। कोई कहे खाना खा करे पढूं तो अच्छा होता है, कोई कहता है भूखा रह करके पढूं। ये हरेक की अपनी-अपनी प्रकृति होती है। आप observe कीजिए अपने-आपको किस चीज में आप comfortable हैं। Actually है आप comfort होने चाहिएं। अगर आप comfort नहीं हैं उस परिसर से, बैठने से, उठने से तो आप शायद उसको नहीं कर पाएंगे। अब कुछ लोग कैसे होते हैं कि एक ही प्रकार की जगह होगी तब नींद आएगी उसको। मुझे याद है मैंने बहुत साल पहले एक मूवी देखी थी। उस मूवी में एक दृश्य आता है, कोई एक व्यक्ति झुग्गी-झोंपडी़ के पास अपनी जिंदगी गुजारता है और फिर अचानक कोई अच्छी जगह पर रहने जाता है। उसको नसीब आता है लेकिन नींद ही नहीं आ रही है। अब नींद क्यों नहीं आती तो वो फिर अपना दिमाग खपाता है, वो जाता है रेलवे स्टेशन पर और रेल की पटरी की जो आवाज खटाखट की आती है उसको टैप करता है और घर में ला करके टैप रिकॉर्डर शुरू करता है फिर सो जाता है, नींद आ जाती है। उसका वो comfort हो जाता है। जब तक उसको वो...अब हरेक के लिए तो ऐसा नहीं होता है कि भई ट्रेन की आवाज आएगी तो तुम्हें नींद आएगी, हरेक के लिए जरूरी नहीं होता, लेकिन उसको वो comfort लगा।
मैं समझता हूं कि हमें भी पता होना चाहिए, इसका प्रेशर बिल्कुल मत रखिए। जिस चीज में आपको आनंद आता है, आपको कम से कम उसके लिए अपने-आपको एडजस्ट करना पड़ता है। वो रास्ता छोड़ने की जरूरत नहीं है, लेकिन उस comfort अवस्था में भी आपका काम है आपकी पढ़ाई। आपका काम है maximum outcome. उसमें से जरा भी हटना नहीं है। और मैंने देखा है लोग कैसे काम करते हैं। कभी-कभी हम सुनने को तो अच्छा लगता है कि फलानां व्यक्ति 12 घंटे काम करता है, 14 घंटे काम करता है, 18 घंटे काम करता है…सुनना अच्छा लगता है। लेकिन actually 18 घंटे काम करना क्या होता है मेरे जीवन में एक बहुत बड़ा lesson है। मैं जब गुजरात में था तो केका शास्त्री जी करके एक बहुत बड़े विद्वान थे। स्वयं तो पांचवीं-सातवीं कक्षा तक ही पढ़े थे लेकिन अनेक ग्रंथ लिखे थे उन्होंने, दर्जनों ग्रंथ लिखे थे और वो पद्म सम्मान से भी सम्मानित थे। वो जीवित रहे थे 103 साल और जब मैं वहां था तो मैंने उनकी शताब्दी का official कार्यक्रम सरकार का किया था।
मेरा उनसे बड़ा निकट रिश्ता जैसा था, बड़ा प्यार रहता था मुझ पर उनका। तो मैं बहुत साल पहले, तब तो मैं मुख्यमंत्री भी नहीं था, तो हमने एक बार कार्यक्रम बनाया कि उनको ले करके राजस्थान के तीर्थ क्षेत्रों पर मैं उनको दर्शन करने के लिए ले जाऊंगा। तो मैं उनको ले करके चला। एक व्हीकल में थे हम सब लोग। मैं देखता था कि उनके पास बहुत कम luggage था, लेकिन उसमें भी ज्यादा luggage उनके लिखने-पढ़ने की चीजें थीं। कहीं रेलवे का क्रॉसिंग आता था तो बंद हो जाता था, रुक जाना पड़ता था, जब तक ट्रेन पारित नहीं होती तो दरवाजा खुलता नहीं था, आगे बढ़ते नहीं थे। अब उस समय हम क्या करते हैं। हम या तो नीचे उतरकर थोड़ा टहलेंगे, या कोई सींग-चना बेचता होगा तो थोड़ा ले करके खाएंगे, हम अपना समय....मैं देखता था कि जैसे ही खड़ी हुई गाड़ी, वो अपने थैले से कागज निकालते थे और एकदम से लिखना शुरू कर देते थे। तब उनकी जो उम्र मैं समझता हूं 80 तक करीब पहुंच गई होगी। यानी समय का कैसे उपयोग करना, outcome किसको कहते हैं, मैं इतनी बारीकी से उनको देख रहा था। और शायद तीर्थयात्रा के समय में रिलेक्स लेना, घूमना, फिरना, देखना, बाकी वो सारा बाजू में, अपना काम करते ही रहना, किसी भी परिस्थिति में करते रहना, मैं समझता हूं ये बहुत आवश्यक होता है। जीवन में इससे बहुत कुछ मिलता है।
प्रस्तुतकर्ता - Honorable Sir, Thank You for making us understand the importance of self analysis and realizing that we should learn joyfully for rising to excellence. Honorable Prime Minister Sir, Erica George, student of class 9th from the beautiful lush green land with eucalyptus forest, Udhampur, Union territory of Jammu & Kashmir seeks your guidance. Erica, please ask you question.
एरिका जॉर्ज- Honorable Prime Minister Sir, I am Erica George from APS Udhampur, Jammu & Kashmir from 9th. Sir the question that I want to ask is that now a days there is a lot of competition especially in academic fields and in a country like India. In this case, there are lot of people who are really very talented and knowledgeable. But due to some reason, they could not appear for the exams. Maybe they could not choose the right path or maybe they did not have the proper counselling. So Sir, in this case what can we do for these people, so that the talent of these people does not go to waste instead can be utilized in a fruitful manner.Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता - Thank You Erica, Honorable Prime Minister Sir, Hariom Mishra, a class 12th student from industrial hub Gautam Buddha Nagar is preparing for his board exams and wishes to ask a similar question that has been invited by a competition organize by Zee TV. Hariom Please ask you question.
हरिओम – नमस्कार मेरा नाम हरिओम मिश्रा है और मैं कैम्ब्रिक स्कूल नोएडा की 12वीं कक्षा का छात्र हूं। मेरा आज प्रधानमंत्री जी से ये सवाल है कि जैसा इस साल कॉलेज में एडमिशन की प्रक्रिया में काफी बदलाव लाए गए हैं और इस साल बोर्ड परीक्षा के पैटर्न में भी काफी बदलाव लाए गए हैं। तो इन सारे बदलावों के बीच में हम विद्यार्थी अभी बोर्ड परीक्षा पर ध्यान दें या फिर हम कॉलेज के एडमिशन की प्रक्रिया पर ध्यान दें। हम किस चीज को, अपनी तैयारी किस प्रकार करें।
प्रस्तुतकर्ता – Thank You Hariom. Honorable Prime Minister Sir, Just like Erica and Hari Om, many students from different parts of the country have expressed their anxiety and concern about whether to focus on studies, competitive exams, board exam preparation or collage admission. We all seek your guidance Honorable Prime Minister Sir.
प्रधानमंत्री जी – वैसे दो अलग-अलग प्रकार के सवाल हैं। एक विषय है कम्पीटीशन का और दूसरा विषय है कि ये exam दूं या वो exam दूं और एक ही समय दो-दो exam हैं तो क्या करूं। मैं नहीं मानता हूं तुमने exam के लिए पढ़ना चाहिए। गलती वहीं हो जाती है। मैं इस exam के लिए पढ़ूंगा, फिर मैं इस exam के लिए पढ़ूंगा, इसका मतलब हुआ कि आप पढ़ नहीं रहे हैं आप उन जड़ी-बूटियों को खोज रहे हैं जो आपका काम आसान कर दें, और शायद इसी के कारण हमारे लिए अलग-अलग exam अलग लगते हैं, कठिन लगते हैं। हकीकत ये है कि जो भी हम पढ़ रहे हैं उसको पूर्ण रूप से, हम पूरी तरह उसको आत्मसात करेंगे फिर वो बोर्ड का exam है या entrance exam है या जॉब के लिए कोई इंटरव्यू या exam है, कहीं पर भी हो सकता है exam.
अगर आपने अपनी शिक्षा का पूर्ण रूप से साक्षात्कार किया है, आत्मसात की है तो आपको exam का रूप क्या है, वो रुकावट नहीं बनता है। और इसलिए अपने-आपको exam के लिए तैयार करने के दिमाग खपाने के बजाय अपने आपको योग्य शिक्षित व्यक्ति बनाने के लिए, विषय के मास्टर बनने के लिए हम मेहनत करें। फिर परिणाम जो मिलेगा सो मिलेगा। जहां पहली आएगी वहां उसको पहले मुकाबला करेंगे, दूसरा आएगा दूसरे से मुकाबला करेंगे। लेकिन मुकाबला इसलिए करते हैं...अब मैंने खिलाड़ी आपने देखा होगा, वो खिलाड़ी खेल के अदंर पारंगत होता है। किस लेवल की गेम के लिए खेलना है उसके लिए नहीं करता मेहनत। फिर वो तहसील में खेलेगा तो वहां अपना करतब दिखाएगा, डिस्ट्रिक्ट में खेलेगा वहां करतब दिखाएगा, नेशनल खेलेगा वहां करतब दिखाएगा, इंटरनेशनल खेलेगा वहां करतब दिखाएगा। और खुद भी evolve होता जाएगा। इसलिए मैं मानता हूं कि हम फलाने exam के लिए ये जड़ी-बूटी, उस exam के लिए ये जड़ी-बूटी, उस चक्कर से निकल करके मेरे पास ये सम्पुट है, मैं ले करके जा रहा हूं। अगर मैं वहां से निकला तो ठीक है, नहीं निकला तो मैं कोई और रास्ता ढूंढूंगा। तो मुझे लगता है कि इसमें ये सोचना चाहिए।
दूसरा, कम्पीटीशन, देखिए दोस्तो कम्पीटीशन को हमें जीवन की सबसे बड़ी सौगात मानना चाहिए। अगर कम्पीटीशन नहीं है तो जिंदगी किस चीज की जी। फिर तो हम ऐसे ही खुश रहेंगे बस, और कुछ नहीं हम ही हम हैं बस। ऐसा नहीं होना चाहिए। सच पूछें तो हमें कम्पीटीशन को invite करना चाहिए। तभी तो हमारी कसौटी होती है। मैं तो कहूंगा घर में भी कभी छुट्टी का दिन है, पढ़ना नहीं, exam नहीं, कुछ नहीं है तो भाई-बहन बैठ करके कम्पीटीशन लगाओ। तुम चार रोटी खाते हो, मैं पांच खाता हूं। तुम पांच खाते हो मैं छह खाता हूं। अरे करो तो कम्पीटीशन। जिंदगी को कम्पीटीशन हमें निमंत्रण देना चाहिए। कम्पीटीशन जिंदगी को आगे बढ़ाने का एक अच्छा माध्यम होता है जो हमें अपना भी evolution करने लगता है।
दूसरा, मैं जिस पीढ़ी का हूं या आपके माता-पिता जिस पीढ़ी के हैं, उनको वो चीजें नसीब नहीं थीं जो आपको नसीब हो रही हैं। आप उस भाग्यवान जेनरेशन में हैं जो भाग्य आपके पहले की किसी भी जेनरेशन को इतनी बड़ी मात्रा में कभी नहीं मिला है और वो है जैसे कम्पीटीशन ज्यादा है तो choice भी ज्यादा है, अवसर भी अनेक हैं। आपके परिवार में इतने अवसर नहीं थे। आपने देखा होगा दो किसान हों, मान लीजिए उसकी भी दो एकड़ भूमि है इसकी भी दो एकड़ भूमि है, लेकिन एक किसान है चलो भाई, गुजारा करना है, गन्ना की खेती करते रहो अपना गुजारा चल जाएगा। दूसरा किसान है, वो सोचता है नहीं-नहीं, दो एकड़ भूमि है, ऐसा करूंगा- वन-थर्ड ये करूंगा, वन-थर्ड ये करूंगा, वन-थर्ड ये करूंगा, पिछले साल ये किया था तो इस बार ये करूंगा, ये दो चीजें नहीं करूंगा।
आप देखेंगे कि वो जो दो एकड़ भूमि में ही ऐसे आराम से बैठा हुआ गुजारा कर लेता है, जिंदगी ठहर जाती है। जो रिस्क लेता है, प्रयोग करता है, नई चीज लेता है, नई चीज जोड़ता है वो इतना आगे बढ़ जाता है कि जिंदगी में कहीं भी रुकने का नाम नहीं लेता है। वैसा ही हमारे जीवन में है। हमें गर्व करना चाहिए कि हम इतनी स्पर्धा के बीच में अपने-आप को प्रूव कर रहे हैं और हमारे पास अनेक choice हैं। ये स्पर्धा नहीं तो वो, वो स्पर्धा नहीं तो वो, वो स्पर्धा नहीं तो वो, ये रास्ता नहीं तो ये रास्ता, ये रास्ता नहीं तो ये रास्ता। मैं समझता हूं कि हम इसको opportunity मानें, एक अवसर मानें। और मैं इन अवसर को छोड़ूंगा नहीं, मैं इस अवसर का कभी न कभी जाने नहीं दूंगा, ये भाव अगर पैदा करेंगे तो मुझे पक्का विश्वास है कि कम्पीटीशन आपके लिए इस युग के सबसे बड़ी सौगात के रूप में आप अनुभव करेंगे।
प्रस्तुतकर्ता – माननीय प्रधानमंत्री जी, आपने हमें ज्ञान को आत्मसात करने की प्रेरणा दी जिससे जीवन में सफलता मिलती है। आपका धन्वाद। श्रद्धेय प्रधानमंत्री जी, नवसारी गुजरात से एक अभिभावक सुश्री सीमा चिंतन देसाई आपके सम्मुख एक प्रश्न रखना चाहती हैं। महोदया, कृपया अपनी बात रखें।
सीमा चिंतन देसाई – जय श्रीराम, प्राइम मिनिस्टर मोदी जी, नमस्ते। I am Seema Chintan Desai from Navsari, A Parent. सर, आप इतनी सारी youngsters के आइकॉन हैं । Reason. आप सिर्फ बोलते नहीं, जो बोलते हो वो करके ही दिखाते हो। सर, एक प्रश्न भारतीय घर में ग्रामीण क्षेत्र की बालिकाओं हेतु अनेक योजनाएं चल रही हैं। इसकी प्रगति के लिए हमारा समाज क्या योगदान दे सकता है। कृपया मार्गदर्शन दें। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता – धन्यवाद महोदया। मान्यवर, सीमा चिंतन देसाई जी ग्रामीण क्षेत्र की बालिकाओं की शिक्षा को लेकर चिंतित हैं, और श्रीमान से जानना चाहती हैं कि इस दिशा में आपके मन्तव्य क्या हैं, माननीय प्रधानमंत्री जी,
प्रधानमंत्री जी – वैसे मैं समझता हूं कि स्थितियां काफी बदली हैं। पहले के समय में जब शिक्षा की बात आती थी तो मां-बाप को लगता था कि बेटे को पढ़ाना चाहिए। अपने लिमिटेड संसाधन से उनको लगता था कि इतनी ही स्थिति है, चलो बच्चा पढ़ेगा तो कुछ कमाएगा और कभी-कभी कुछ मां-बाप ये भी कहते थे अरे बेटी को पढ़ा कर क्या करना है, उसको नौकरी थोड़े करवानी है। और वो तो अपना ससुराल जाएगी अपना जिंदगी का गुजारा कर लेगी। इस मानसिकता का कोई कालखंड था। हो सकता है आज भी कुछ गांव में, कहीं पर इस तरह की मानसिकता बची होगी, लेकिन by and large आज स्थितियां बदली हैं और समाज बेटियों के सामर्थ्य को जानने में अगर पीछे रह गया तो वो समाज कभी आगे नहीं बढ़ सकता। कभी-कभी तो आपने ऐसे परिवार देखे होंगे, जहां पर ये कहते होंगे कि भाई बेटा तो होना ही चाहिए, ताकि बुढ़ापे में काम आएगा। बेटी का क्या है वो तो ससुराल चली जाएगी वो क्या काम की है। ऐसी भी एक सोच हमारे समाज में है।
और कभी तो थी, लेकिन इतिहास इन बातों को अनुभव करता है अब मैं इन चीजों को बड़ी बारीकी से देखता हूं। मैंने ऐसी कई बेटियां देखी हैं, जिन्होने मां बाप कर इकलौती बेटी मां बाप के सुख और उनके बुढ़ापे के चिंता के लिए खुद ने शादी नहीं की और मां बाप की सेवा में जिंदगी खपा दी, जो बेटा नहीं कर सकता वो बेटियों ने किया है। और मैंने ऐसे भी परिवार देखें हैं कि घर में चार बेटे हैं। चार बेटों के पास चार बंगला है। सुख चैन की जिंदगी है। दुख कभी देखा नहीं है। लेकिन मां बाप वृद्धाश्रम में जिंदगी गुजार रहे हैं। ऐसे भी बेटे मैंने देखें हैं। इसलिए पहली बात है, समाज के अंदर बेटे-बेटी एक समान, कोई भेदभाव नहीं। ये आज के युग की अनिवार्यता है और हर युग की अनिवार्यता है। और भारत में कुछ विकृतियां आई हैं। आने के कुछ कारण रहे होंगे। लेकिन ये देश गर्व कर सकता है। अगर गर्वनेंस की बात याद करें तो किसी जमाने में अहिल्या देवी का नाम आता था। बेस्ट गर्वनेंस के रूप में। कभी वीरता की बात आए तो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम आता था वीरता के लिए। बेटियां ही तो
थी। यानि कोई युग ऐसा नहीं होगा और हमारे यहां तो विदूषी ज्ञान का भंडार बेटियों ने करके दिखाया है।
पहले तो हमारी अपनी मानसिकता है। दूसरा आज स्थिति बदली हुई है। आज तो आप देखेंगे नए जो बच्चे स्कूल आते हैं ना तो बेटों से ज्यादा बेटियों की संख्या होती है। ये हिसाब आ रहा है। आज जो बेटियों के aspirations हैं आकांक्षाएं हैं, वो कुछ कर गुजरने को जो जज्बा है। शायद कोई भी हिन्दुस्तानी गर्व करे, ऐसा है और उसको हमने अवसर देना चाहिए और अवसर हमने इंस्टीट्यूशनलाइट करना चाहिए। कोई एक परिवार अपने तरीके से कर ले ऐसा नहीं है, जैसे आपने देखा होगा खेलकूद में। आज खेलकूद में किसी भी स्तर का खेल चलता होगा, भारत की बेटियां हर जगह पर कहीं न कहीं अपना नाम रोशन कर रही हैं। विज्ञान का क्षेत्र देखिए इतने बड़े–बड़े एचीवमेंट विज्ञान के आते हैं तो देखोगे तो उसमें आधे से अधिक तो हमारी बेटियों ने कुछ न कुछ पराक्रम किया है विज्ञान के क्षेत्र में। अब 10वीं-12 वीं के रिजल्ट देख लीजिए बेटों से ज्यादा बेटियां ज्यादा मार्क लाती हैं। पास होने वाली संख्या बेटियों की ज्यादा होती है।
तो आज हर परिवार के लिए बेटी एक बहुत बड़ी एसेट बन गई है, बहुत बड़ा परिवार की शक्ति बन गई है और ये बदलाव अच्छा है ये बदलाव जितना ज्यादा होगा उतना लाभ होगा। अब आप देखिए वो गुजरात से ही हैं जिन्होने सवाल पूछा है। गुजरात में जैसे पंचायती राज व्यवस्था है, अच्छी पंचायती राज व्यवस्था है। 50 प्रतिशत इलेक्टिड बहनें हैं। कानूनन व्यवस्था है की 50 प्रतिशत है। लेकिन actually चुनाव के बाद स्थिति ये बनती है कि चुनी हुई महिलाओं की संख्या 53 प्रतिशत 54 प्रतिशत 55 प्रतिशत है। यानि वो अपनी रिजर्व सीट से तो जितती है। लेकिन वो सामान्य सीट से भी जीतकर के 55 प्रतिशत तक कभी कभी जाता है और पुरुष 45 प्रतिशत पर आ जाते हैं। इसका मतलब समाज का भी माताओं – बहनों पर विश्वास बढ़ा है।
तभी तो जाकर के वो जनप्रतिनिधि बनकर के आते हैं। जब आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। आज हिन्दुस्तान की पार्लियामेंट में सबसे ज्यादा आज तक के कालखंड की सबसे ज्यादा women MP’s हैं और गांव में भी देखा जा रहा है कि जो पढ़ी लिखी बेटियां हैं। उनको लोग ज्यादा चुनना पसंद करते हैं। भले वो पांचवी हैं तो सातवी वाली बहन को चुनाव में जीतनें सात के सामने ग्यारहवी वाली है तो उसको पसंद करेंगे। यानि समाज में भी शिक्षा के प्रति सम्मान का भाव हर स्तर पर नजर आ रहा है। आज आप education field देख लीजिए। शायद कभी न कभी तो पुरुषों की तरफ से मांग आने की संभावना है। मैं किसी को रास्ता नहीं दिखा रहा हूं, पालिटिक्ल पार्टी वालों को। लेकिन कभी – कभी संभावना है। कि पुरुष जुलूस निकालेंगे कि टीचर में हमारा इतना प्रतिशत आरक्षण तय करो। क्योंकि ज्यादातर टीचर हमारी माताएं–बहनें हैं। उसी प्रकार से नर्सिंग में ज्यादातर जो सेवाभाव, मातृभाव होता है। वो आज नर्सिंग के क्षेत्र में भारत का गौरव बढ़ा रहा है।
भारत की नर्सिस दुनियां में जहां जा रही है। भारत की आन-बान-शान बढ़ा रही है। Even पुलिसिंग में, पुलिसिंग के अंदर आज हमारी बेटियां बहुत बड़ी मात्रा में आ रही हैं। अब तो हमने एनसीसी में बेटियां, सैनिक स्कूल में बेटियां, आर्मी में बेटियां, जीवन के हर क्षत्र में और ये सारी चीजें इसलिए institutionalized हो रही है और मुझे समाज से भी यह आग्रह है। कि आप बेटे-बेटी में कोई अंतर मत कीजिए। दोनो को समान अवसर दीजिए। और मैं कहता हूं शायद समान इंवेसटमेंट से ही समान अवसर से ही अगर बेटा उन्नीस करेगा तो बेटी 20 करेगी।
प्रस्तुतकर्ता : श्रद्धेय प्रधानमंत्री जी बेटियां घर, समाज, राष्ट्र की शोभा हैं। उनकी आकांक्षाओं को आपकी प्रेरणा से नई उड़ान मिली है, आपका धन्यवाद। Hon’ble Prime Minister Sir, we are privileged and bless to have received first hand inside and inspiration from you today. Keeping in mind your valuable time I now invite the two final questions. Dumpala Pavitra Rao a class twelve student from Kendriya Vidyalya Sector-8, R.K. Puram, New Delhi is curious to know the answer to have question. Pavitra Rao Kindly ask your Question.
Pavitra Rao: नमस्कार प्रधानमंत्री जी, मैं पवित्रा राव, केंद्रीय विद्यालय, सेक्टर – 8, आर.के. पुरम नई दिल्ली में 12वी कक्षा की छात्रा हूं। माननीय प्रधानमंत्री जी, जैसा की हमारा भारत और तरक्की करने के लिए अग्रसर है इसको कायम रखने के लिए हमारी नई पीढ़ी को ओर क्या कदम उठाने होंगे? आपके मार्गदर्शन से भारत स्वच्छ तो हुआ ही है और आने वाली पीढ़ी इसके पर्यावरण सरंक्षण में और क्या योगदान दें, कृप्या मार्गदर्शन करें, धन्यवाद सर।
प्रस्तुतकर्ता : Thank you Pavitra, मान्यवर नई दिल्ली से 11वी कक्षा के छात्र चैतन्य लेले अपने मन में उठने वाले इसी प्रकार के एक अन्य प्रश्न का समाधान चाहते हैं। चैतन्य कृप्या अपना प्रश्न पूछिये।
चैतन्य: प्रणाम, माननीय प्रधानमंत्री जी, मेरा नाम चैतन्य है। मैं कक्षा 11वीं का डी.ए.वी विद्यालय का छात्र हूं। मेरा आपसे प्रश्न यह है कि हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ और बेहतर कैसे बना सकते हैं? धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता: धन्यवाद चैतन्य, Hon’ble Prime Minister Sir, the youth of India just like Pavitra & Chaitanya want to breath in a clean & Green India. A dream close to your heart we all wish to know how to keep India & our environment pristine and perfect in every sense of the world, we all look forward to your guidance. Sir,
प्रधानमंत्री जी: वैसे ये परीक्षा पे चर्चा से जुड़ा विषय तो नहीं है। लेकिन जैसे परीक्षा के लिए अच्छा environment चाहिए। वैसे पृथ्वी को एक अच्छे environment की जरूरत होती है और हम लोग तो पृथ्वी को मां मानने वाले लोग हैं। मैं सबसे पहले तो आज मुझे अवसर दिया है तो में सार्वजनिक रूप से हमारे देश के बच्चों को बालक बालिकाओं का हृदय से धन्यवाद करना चाहता हूं और मैं अनुभव करता हूं कि मैं प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार जब 15 अगस्त को लाल किले से भाषण कर रहा था। तो मेरे भाषण के बाद ज्यादातर लोगों ने सवालिया निशान लगा डाले थे। कि ठीक है मोदी जी ने कह तो दिया लेकिन हो सकता है क्या? और उस समय मैंने स्वच्छता की बात कही थी। थोड़ा ये भी अचरज था कि देश का प्रधानमंत्री, ये तो जगह ऐसी है वहां स्पेस की बात करनी चाहिए, विदेश नीति की बात करनी चाहिए, सैन्य शक्ति की बात करनी चाहिए। ये आदमी कैसा है स्वच्छता की बात कर रहा है। कईयों को आश्चर्य हुआ था। लेकिन जो भी आशंकाए व्यक्त की गई थीं, उन सबको गलत सिद्ध करने का काम अगर किसी ने किया हो या स्वच्छता के मेरे भावना को चार चांद अगर लगाने का किसी ने काम किया हो तो वो मेरे देश के बालक–बालिकाओं ने किया है। स्वच्छता की इस यात्रा में आज हम जहां भी पहुंचे हैं। अगर उसकी मैं सबसे ज्यादा क्रेडिट अगर किसी को देता हूं तो मेरे देश के बालक–बालिकाओं को देता हूं। मैंने ऐसे सैंकड़ो प्रश्न सुने हैं।
जहां 5–5, 6-6 साल के बच्चों ने अपने दादा–दादी, नाना – नानी को टोका है दिन में 10 बार कि इधर मत डालो मोदी जी ने मना किया है, इधर मत फैंको मोदी जी को अच्छा नहीं लगेगा। ये बहुत बड़ी ताकत है और आप शायद उसी पीढ़ी के होने के कारण आपने भी उसी भावना के साथ सवाल पूछा है। मैं आपके सवाल का स्वागत करता हूं। ये बात सही है कि आज पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग के कारण, एंवायरमेंट के कारण बहुत परेशान है और उसका मूल कारण है कि हमने अपने संसाधनों का मिस यूज किया है। हमारे पास परमात्मा ने जो व्यवस्थाएं दी है उसको हमने बर्बाद कर दिया है। अब हमारा दायित्व है अगर आज मैं पानी पी रहा हूं, या मेरे भाग्य में पानी है, आज अगर मैं कहीं नदीं देख पा रहा हूं, आज अगर मैं किसी पेड़ की छाया में खड़ा हूं। तो उसमें मेरा कोई contribution नहीं है। ये मेरे पूर्वजों ने मेरे लिए छोड़ा हुआ है। जिस चीज का मैं आज उपभोग कर रहा हूं। वो मेरे पूवर्जों ने मेरे लिए दिया है। क्या मेरे बाद की पीढ़ी को मुझे भी कुछ देना चाहिए कि नहीं देना चाहिए? देना चाहिए कि नहीं देना चाहिए? अगर मैं बचाऊंगा नहीं तो दूंगा क्या? और इसलिए जैसे हमारे पूर्वजों ने हमें दिया उनका ऋण स्वीकार करने के लिए और हमारी आगे की पीढ़ी को देने के लिए जिम्मेवारी स्वीकार करते हुए हमें अपना दायित्व निभाना चाहिए। ये हमारा कर्तव्य है। अब ये कोई सरकारी कार्यक्रम से सफल नहीं होता है। जैसे मान लीजिए मैं कहता हूं।
कि भई सिंगल यूज प्लास्टिक, इससे बचना चाहिए। लेकिन हमारे ही परिवार में भाषण भी हम करते हैं सिंगल यूज प्लास्टिक से बचना चाहिए। लेकिन शादी का कार्ड अगर किसी का आता है घर में हम देखते हैं तो उस पर प्लास्टिक का एक बहुत सुंदर रेपर करके आता है। हम निकाल कर उसको फेंक देते हैं। अब ये हम जो सोचते हैं उसके विपरीत है। तो सहज स्वभाव कैसे बने। कम से कम मेरे परिवार में, मैं सिंगल यूज प्लास्टिक बिल्कुल हमारे घर में उपयोग नहीं करने दूंगा। तो हम environment के लिए कुछ कुछ मदद कर रहे हैं और अगर देश के सभी बच्चे इस काम को करने लग जायें तो फिर आज जो हमारे। आपने देखा होगा मैं गुजरात में पशु आरोग्य मेले लगा रहा था। जब मैं मुख्यमंत्री था और पशु आरोग्य मेले लगाता था आपको हैरानी होगी, मैं गुजरात के अंदर पशुओं की दांत की ट्रीटमेंट डेन्टल ट्रीटमेंट करवाता था। पशुओं को मोतियाबिन्द होता है। मोतियाबिन्द का काम करता था और कुछ पशुओं के ऑपरेशन करने पड़ते थे। तो मैंने एक गाय को देखा उसके पेट में कम से कम 40 KG प्लास्टिक निकला था। अब ये मानवता के विरुद्ध का काम है। अगर ये हमारे अंदर संवेदना पैदा होती है कि मैं मुझे तो अच्छा लगता है कि चलो भई हल्की फुल्की थैली है, लेकर जाना अच्छा लगता है। और फिर फेंक देता हूं। हमें अब यूज एंड थ्रो उस कल्चर से बचना पड़ेगा और हमें रियूज, रिसाइकिल और ये भारत में कोई नयापन नहीं है। कि हमारे यहां तो सालों से परिवार में ये आदत रही है। हम जितना ज्यादा संसाधनों का उपयोग करेंगे हम पर्यावरण को बर्बाद करेंगे। हम जितने संसाधनों का optimum utilization करेंगे, हम पर्यावरण की रक्षा करेंगे।
आज देखिये हमारे इलेक्ट्रानिक गैजेट्स, ये भी पर्यावरण के लिए संकट बनते जा रहे हैं। आपने देखा होगा भारत सरकार ने अभी scrap policy निकाली हुई है ताकि पुरानी गाड़ियां है जो प्रदूषण पैदा करती हैं। उनको खत्म करो, उसमें से भी कुछ कमाई करो और नई गाड़ी लाओ। उस दिशा में भी बहुत बड़ी मात्रा में काम चलने वाला है। उसी प्रकार से हम जानते हैं पानी का क्या महत्व है, पौधे का क्या महत्व है, प्रकृति का क्या महत्व है, हम उसके प्रति sensitive हैं क्या? और ये सहज स्वभाव बनाना चाहिए अगर ये स्वभाव बनना है। आपने देखा होगा COP-26 में मैंने एक विषय रखा था। UK में कांफ्रेंस हुई थी मैंने कहा था उसमें कि lifestyle is a problem. हमारी जो लाइफस्टाइल है और कहा गया है कि मिशन लाइफ की आवश्यकता है। और मैंने मिशन लाइफ के लिए वहां शब्द तय किया था। कि lifestyle for environment, मैं समझता हूं कि हम भी अपने जीवन में बहुत छोटी आयु है, चार मंज़िला मकान है और हम भी लिफ्ट में जाते हैं, अरे हम कोशिश करें, हम चढ़ जायेंगे क्या है, तो हमारे हेल्थ को भी फायदा होगा, हम environment को मदद करेंगे। छोटी–छोटी चीजें हम अपने जीवन में लायेंगे और इसलिए मैंने कहा था कि हमें दुनिया में P-3 मूवमेंट चलाने की जरूरत है। Pro-Planet-People. ये P-3 मूवमेंट उससे ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़े और conscious रहकर के इसको प्रयास करेंगे तो मैं समझता हूं कि हम चीजों को ला पाएंगे। दूसरा आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आजादी के 75 साल आज की जो पीढ़ी है। वो अपनी जीवन की सबसे सफल से गुजरती हुई तब देश शताब्दी मनाता होगा।
मतलब ये 25 साल आपकी जिंदगी का है। आपके लिए है, आपका योगदान इस 25 साल में क्या हो ताकि हमारे देश उस जगह पर पहुंचे, हम गर्व के साथ देश की शताब्दी आन-बान-शान के साथ दुनिया के सामने एक चेहरा ऊंचा रखकर के मना सके, हमने अपने जीवन को उससे जोड़ना है। और उसका एक सिंपल सा मार्ग है कर्तव्य पर बल देना। अगर मैं मेरे कर्तव्यों का पालन करता हूं। मतलब कि मैं किसी के अधिकार की रक्षा करता हूं। फिर कभी उसको अधिकार के लिए मांग करने के लिए निकलना ही नहीं पड़ेगा। आज समस्या ये है कि हम कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं। इसलिए अधिकार के लिए उसको लड़ना पड़ता है। हमारे देश में किसी को अपने अधिकारों के लिए लड़ना न पड़े। ये हमारा कर्तव्य है और उस कर्तव्य का उपाय भी हमारे कर्तव्यों का पालन है। अगर हम कर्तव्यों का पालन करते हैं, हमारे लिए जो जिम्मेवारियां है उनको पूरा करते हैं। अब देखिए हमारे देश ने पूरे दुनिया के लोग हमारे यहां तो इन चीजों की चर्चा करते हैं तो लोगों को डर लगता है कहीं मोदी के खाते में हो जाएगा, मोदी का जय-जयकार हो जाएगा इसलिए जरा संकोच करते हैं।
इसका जय–जयकार करने में लेकिन हमारे यहां जो वैक्सीनेशन हुआ है, उसमें भी जब मैंने स्कूली बच्चों के लिए वैक्सीनेशन शुरू किया और जिस तेजी से हमारे देश में बच्चों ने दौड़-दौड़ करके वैक्सीन ले लिया, ये अपने आप में बहुत बड़ी घटना है जी। आप सबका भी किससे वैक्सीनेशन हो गया है, हाथ ऊपर करिए, सबका वैक्सीनेशन हो गया है? अगर दुनिया के किसी देश में ऐसे सवाल कोई पूछने की हिम्मत नहीं कर सकता है, हिंदुस्तान के बच्चों ने भी यह करके दिखाया है मतलब कि हमने अपने कर्तव्य का पालन किया है। यह कर्तव्य का पालन भारत की आन-बान-शान बढ़ाने का कारण बन गया है, उसी प्रकार से हमारे देश को आगे बढ़ाना हो, प्रकृति की रक्षा करनी हो, पर्यावरण की रक्षा करनी हो, तो मुझे पक्का विश्वास है कि हम अपने कर्तव्यों को सजगतापूर्वक अगर लगाएंगे, काम करेंगे तो हम इच्छित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।
प्रस्तुतकर्ता: प्रधानमंत्री जी द्वारा परीक्षा पे चर्चा 2022 में हमारे जैसे करोड़ों बच्चों शिक्षकों अभिभावकों की बेचैनी को उत्साह उमंग और सफलता की ललक में बदल दिया। हम कृतज्ञ हैं माननीय प्रधानमंत्री जी आप के स्वर्णिम उद्बोधन के लिए हम अत्यंत आभारी हैं। This brings us to the end of this splendid morning of inspiration and encouragement of moments that forever will stay in our reminisces. We express our heartful gratitude and thanks to Hon'ble Prime Minister Sh. Narendra Modi ji for having speared his valuable time to be here with us and for inspiring us with his magnetic persona. Thank you so much sir.
प्रधानमंत्री जी: आप सब, आपके एनाउंसर आ जाए यहां सारे, सबको बुला लीजिए। कुछ इधर आ जाएं, कुछ इधर आ जाएं। देखिए आज मैं सबसे पहले तो इन लोगों को बधाई देना चाहता हूं। इन सब ने इतने बढ़िया तरीके से इन सारी चीजों को कंडक्ट किया है, कहीं पर भी आत्मविश्वास की कमी नजर नहीं आई। आपने भी बारीकी से ऑब्जर्व किया होगा मैं बराबर ऑब्जर्व करता था। ऐसा सामर्थ्य यहां बैठे हर एक में होगा, जो टीवी पर देखते होंगे उनमें भी होगा और जो नहीं देखते होंगे, उनमें भी होगा। जीवन में जो सवाल के दायरे में नहीं है मैं फिर भी कहना चाहूंगा कि हम सच में जीवन में आनंद की अनुभूति करनी है तो अपने आप में एक क्वालिटी विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। अगर उस विधा को हम डिवेलप करेंगे तो आप हमेशा आनंदित रहेंगे और वह है गुणों के पुजारी बनना।
किसी में भी हम गुण देखते हैं, क्वालिटी देखते हैं और हम उसके पुजारी बनते हैं। उसे उसको तो ताकत मिलती ही है हमें ताकत मिलती है हमारा स्वभाव बन जाता है कि जहां भी देखें अच्छी चीजों को ऑब्जर्व करें, कैसे अच्छा है वह ऑब्जर्व करें, उसको हम स्वीकार करने का प्रयास करें, खुद को उस में ढालने का प्रयास करें, इनोवेट करने का प्रयास करें, जोड़ने का प्रयास करें अगर हम ईर्ष्याभाव पनपने देते हैं, देखो यार यह तो मेरे से आगे हो गया, देखो उसका कुर्ता तो मेरे से भी ज्यादा अच्छा है, देखिए यार यह इसके परिवार में तो इतना अच्छा वातावरण है, उसको तो कोई तकलीफ ही नहीं है। अगर यही कंपटीशन मन में पड़ी रहती है तो हम धीरे-धीरे-धीरे-धीरे बहुत ही अपने आप को छोटा करते जाते हैं, हम कभी बड़े नहीं बन सकते।
हम औरों के सामर्थ्य को औरों की विशेषताओं को औरों की शक्तियों को जानने समझने का सामर्थ्य विकसित करेंगे तो वह उन विशेषताओं को अपने आप में लाने का सामर्थ अपने आप विकसित होना शुरू हो जाएगा। और इसलिए मैं अपनी जिंदगी में सफल होने के लिए आप सब से आग्रह करूंगा कि जीवन में जहां भी मौका मिले जो विशेष हैं, जो अच्छा है, जो सामर्थ्यवान है, उसके प्रति आपका झुकाव होना चाहिए। उसको जानने का समझने का स्वीकार करने का बहुत ही उम्दा मन होना चाहिए। कभी भी ईर्ष्या का भाव नहीं होगा, कभी भी हमारे मन में प्रतिशोध की भावना पैदा नहीं होगी। हम भी बड़े आनंद और सुख की जिंदगी जी पाएंगे। इस एक अपेक्षा के साथ में फिर एक बार आप सब का बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं,सभी विद्यार्थियों का अभिनंदन करता हूं और मैं अब शिक्षा विभाग का अभिनंदन करता हूं, कितना शानदार कार्यक्रम आप सबने योजना की और अब सब नौजवानों से मुझे मिलने का मौका मिला।
कुछ लोगों को लगता होगा कि मोदी के परीक्षा के चर्चा क्यों करते हैं, एग्जाम में तो ठीक है टीचर ने बहुत कुछ समझा दिया होगा आपको लाभ होता है कि नहीं होता है मुझे मालूम नहीं है मेरा लाभ होता है। मेरा लाभ यह होता है कि जब मैं आपके बीच में आता हूं तो मैं 50 साल छोटा हो जाता हूं। और मैं अपने आपको आपकी उम्र से कुछ सीख करके Grow करने की कोशिश करता हूं, यानी कि मैं मेरी पीढ़ी नहीं बदलती है मैं आपके साथ जोड़ने के कारण हमेशा आपके मन को समझता हूं, आपकी आशा-आकांक्षाओं को समझता हूं, मेरी जिंदगी को उसमें ढालने की कोशिश करता हूं और इसलिए यह कार्यक्रम मुझे बनाने में काम आ रहा है, मेरे सामर्थ्य को बढ़ाने में काम आ रहा है और इसलिए मैं आपके बीच आत हूं, मुझे आज अपने को ढालने के लिए, अपने को गढ़ने के लिए, खुद को कुछ सीखने के लिए, आप सब ने समय दिया, इसलिए मैं आपका आभारी हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद।