सिविल सेवकों की भूमिका मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस की होनी चाहिए : प्रधानमंत्री मोदी
मेरा यही आग्रह है कि सिविल सर्वेंट जो भी निर्णय लें, वो राष्ट्रीय संदर्भ में हों, देश की एकता-अखंडता को मजबूत करने वाले हों : पीएम
आज ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना, ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना, एक ‘नवीन भारत’ का निर्माण होते हुए देख रही है : प्रधानमंत्री

शासन व्‍यवस्‍था में बहुत बड़ी भूमिका संभालने वाली हमारी युवा पीढ़ी out of the box सोचने के लिए तैयार है। नया करने का इरादा रखती है। मुझे इन बातों में से एक नई आशा का संचार हुआ है और इसलिए मैं आपको बधाई देता हूँ।पिछली बार आज के ही दिन, केवड़ियां में आपसे पहले वाले ऑफिसर्स ट्रेनिंग के साथ मेरी बड़ी विस्‍तार से बातचीत हुई थी। औरतय यही हुआ था कि प्रतिवर्ष इस विशेष आयोजन- आरंभ के लिए यहीं सरदार पटेल का जो स्‍टेच्‍यू है, माँ नर्मदा का जो तट है वहीं पर हम मिलेंगे और साथ रह कर के हम सब चिंतन-मनन करेंगे और प्रारंभिक अवस्‍था में ही हम अपने विचारों को एक शेप देने का प्रयास करेंगे। लेकिन कोरोना की वजह से इस बार ये संभव नहीं हो पाया है।इस बार आप सब Mussoorie में हैं, वर्चुअल तरीके से जुड़े हुए हैं।इस व्यवस्था से जुड़े सभी लोगों से मेरा आग्रह है कि जैसे ही कोरोना का प्रभाव और कम हो, मैं सभी अधिकारियों से भी कह कर रखता हूँ कि आप जरूर सभी एक साथ एक छोटा सा कैम्‍प यहीं सरदार पटेल की इस भव्‍य प्रतिमा के सान्‍निध्‍य में लगाइये, कुछ समय यहाँ बिताइये और भारत के इस अनोखे शहर को यानि कि एक टूरिस्‍ट डेस्‍टिनेशन कैसे डेवलप हो रहा है उसको भी आप जरूर अनुभव करें।

साथियों, एक साल पहले जो स्थितियां थीं, आज जो स्थितियां हैं, उसमें बहुत बड़ा फर्क है। मुझे विश्वास है कि संकट के इस समय में, देश ने जिस तरह काम किया, देश की व्यवस्थाओं ने जिस तरह काम किया, उससे आपने भी बहुत-कुछ सीखा होगा।अगर आपने सिर्फ देखा नहीं होगा ऑब्‍जर्व किया होगा तो आपको भी बहुत कुछ आत्‍मसात करने जैसा लगा होगा। कोरोना से लड़ाई के लिए अनेकों ऐसी चीजें, जिनके लिए देश दूसरों पर निर्भर था, आज भारत उनमें से कई को निर्यात करने की स्थिति में आ गया है।संकल्प से सिद्धि का ये बहुत ही शानदार उदाहरण है।

साथियों, आज भारत की विकास यात्रा के जिस महत्वपूर्ण कालखंड में आप हैं, जिस समय आप सिविल सेवा में आए हैं, वो बहुत विशेष है।आपका बैच, जब काम करना शुरू करेगा, जब आप सही मायने में फील्ड में जाना शुरू करेंगे, तो आप वो समय होगा जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष में होगा,ये बड़ा माइलस्‍टोन है। यानि आपकी इस व्‍यवस्‍था में प्रवेश और भारत का 75वाँ आजादी का पर्व और साथियों, आप ही वो ऑफिसर्स हैं, इस बात को मेरी भुलना मत, आज हो सके तो रूम में जा कर के डायरी में लिख दीजिए साथियों, आप ही वो ऑफिसर्स हैं जो उस समय में भी देश-सेवा में होंगे, अपने करियर के, अपने जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव में होंगे जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष मनाएगा।आजादी के 75 वर्ष से 100 वर्ष के बीच के ये 25 साल, भारत के लिए बहुत ज्यादा अहम हैं औरआप वो भाग्‍यशाली पीढ़ी हो, आप वो लोग हैं, जो इन 25 वर्षों में सबसे अहम प्रशासनिक व्यवस्थाओं का हिस्सा होंगे।अगले 25 वर्षों में देश की रक्षा-सुरक्षा, गरीबों का कल्याण, किसानों का कल्याण, महिलाओं-नौजवानों का हित, वैश्‍विक स्‍तर पर भारत का एक उचित स्‍थान बहुत बड़ा दायित्व आप लोगोंपर हैं। हम में से अनेकों लोग तब आपके बीच नहीं होंगे, लेकिन आप रहेंगे, आपके संकल्प रहेंगे, आपके संकल्पों की सिद्धि रहेगी औरइसलिए आज के इस पावन दिन, आपको अपने से बहुत सारे वायदे करने हैं, मुझे नहीं, खुद से।वो वायदे जिनके साक्षी सिर्फ और सिर्फ आप होंगे, आप की आत्‍मा होगी।मेरा आपसे आग्रह है कि आज की रात, सोने से पहले खुद को आधा घंटा जरूर दीजिएगा।मन में जो चल रहा है, जो अपने कर्तव्य, अपने दायित्व, अपने प्रण के बारे में आप सोच रहे हैं, वो लिखकर रख लीजिएगा।

साथियों, जिस कागज पर आप अपने संकल्प लिखेंगे, जिस कागज पर आप अपने सपनों को शब्‍द दे देंगे,कागज का वो टुकड़ा, सिर्फ कागज का नहीं होगा, आपके दिल का एक टुकड़ा होगा।ये टुकड़ा, जीवन भर आपके संकल्पों को साकार करने के लिए आपके हृदय की धड़कन बनकर आपके साथ रहेगा।जैसे आपका हृदय, शरीर में निरंतर प्रवाह लाता है, वैसे ही ये कागज पे लिखे गए हर शब्‍द आप के जीवन संकल्‍पों को उसका प्रवाह को निरंतर गति देते रहेंगे। हर सपने को संकल्‍प और संकल्‍प से सिद्ध‍िके प्रवाह में आगे लेते चलेंगे। फिर आपको किसी प्रेरणा, किसी सीख की जरूरत नहीं होगी।ये आप ही का लिखा हुआ कागज आपका ह्रदय भाव से प्रकट हुए शब्‍द, आपके मन मंदिर से निकली हुई एक-एक बात आपको आज के दिन की याद दिलाता रहेगा, आपके संकल्पों को याद दिलाता रहेगा।

साथियों, एक प्रकार से सरदार वल्‍लभ भाई पटेल ही, देश की सिविल सेवा के जनक थे।21 अप्रैल, 1947 Administrative Services Officers के पहले बैच को संबोधित करते हुए सरदार पटेल ने सिविल सर्वेंट्स को देश का स्टील फ्रेम कहा था।उन अफसरों को सरदार साहब की सलाह थी कि देश के नागरिकों की सेवा अब आपका सर्वोच्च कर्तव्य है।मेरा भी यही आग्रह है कि सिविल सर्वेंट जो भी निर्णय ले, वो राष्ट्रीय संदर्भ में हों, देश की एकता अखंडता को मजबूत करने वाले हों।संविधान की spirit को बनाए रखने वाले हों। आपका क्षेत्र भले ही छोटा हो, आप जिस विभाग को संभाले उसका दायरा भले ही कम हो, लेकिन फैसलों में हमेशा देश का हित, लोगों का हित होना चाहिए, एक National Perspective होनाचाहिए।

साथियों, स्टील फ्रेम का काम सिर्फ आधार देना, सिर्फ चली आ रही व्यवस्थाओं को संभालना ही नहीं होता।स्टील फ्रेम का काम देश को ये ऐहसास दिलाना भी होता है कि बड़े से बड़ा संकट हो या फिर बड़े से बड़ा बदलाव, आप एक ताकत बनकर देश को आगे बढ़ाने में अपना दायित्‍व निभाएंगे। आप के facilitator की तरह सफलतापूर्वक अपने दायित्‍वों को पूरा करेंगे।फील्ड में जाने के बाद, तरह-तरह के लोगों से घिरने के बाद, आपको अपनी इस भूमिका को निरंतर स्‍मरण रखना है, भूलने की गलती कभी मत करना। आपको ये भी याद रखना है कि फ्रेम कोई भी हो, गाड़ी का, चश्मे का या किसी तस्वीर का, जब वो एकजुट रहता है, तभी सार्थक हो पाता है।आप जिस स्टील फ्रेम का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उसका भी ज्यादा प्रभाव तभी होगा जब आप टीम में रहेंगे, टीम की तरह काम करेंगे।आगे जाकर आपको पूरे-पूरे जिले संभालने हैं, अलग-अलग विभागों का नेतृत्व करना है। भविष्य में, आप ऐसे फैसले भी लेंगे जिनका प्रभाव पूरे राज्य पर होगा, पूरे देश में होगा।उस समय आपकी ये टीम भावना आपके और ज्यादा काम आने वाला है। जब आप अपने व्यक्तिगत संकल्पों के साथ, देशहित के वृहद लक्ष्य को जोड़ लेंगे, भले ही किसी भी सर्विस के हों, एक टीम की तरह पूरी ताकत लगा देंगे, तो आप भी सफल होंगे और मैं विश्‍वास से कहता हूँ देश भी कभी विफल नहीं होगा।

साथियों, सरदार पटेल ने एक भारत-श्रेष्ठ भारत का सपना देखा था। उनका ये सपना ‘आत्मनिर्भर भारत’ से जुड़ा हुआ था।कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान भी जो हमें सबसे बड़ा सबक मिला है, वो आत्मनिर्भरता का ही है।आज ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत' की भावना, ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना, एक ‘नवीन भारत’ का निर्माण होते हुए देख रही है।नवीन होने के कई अर्थ हो सकते हैं, कई भाव हो सकते हैं।लेकिन मेरे लिए नवीन का अर्थ यही नहीं है कि आप केवल पुराने को हटा दें और कुछ नया ले आयें।मेरे लिए नवीन का अर्थ है, कायाकल्प करना, creative होना, fresh होना और energetic होना! मेरे लिए नवीन होने का अर्थ है, जो पुराना है उसे और अधिक प्रासंगिक बनाना,जो कालवाहिय है उसे छोड़ते चले जाना। छोड़ने के लिए भी साहस लगता है और इसलिएआज नवीन, श्रेष्ठ और आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए क्या जरूरतें हैं, वो आपके माध्यम से कैसे पूरी होंगी, इस पर आपको निरंतर मंथन करना होगा।साथियों, ये बात सही है कि आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिए हमें science and technology की जरूरत है, resources और finances की जरूरत है, लेकिन महत्वपूर्ण ये भी है कि, इस vision को पूरा करने के लिए एक civil servant के तौर पर आपका रोल क्या होगा।जन आकांक्षाओं की पूर्ति में, अपने काम की quality में, speed में आपको देश के इस लक्ष्य का चौबीसों घंटे ध्यान रखना होगा।

साथियों, देश में नए परिवर्तन के लिए, नए लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए, नए मार्ग और नए तौर-तरीके अपनाने के लिए बहुत बड़ी भूमिका ट्रेनिंग की होती है, skill-set केdevelopment की होती है।पहले के समय, इस पर बहुत जोर नहीं रहता था। training में आधुनिक अप्रोच कैसे आए, इस बारे में बहुत सोचा नहीं गया।लेकिन अब देश में human resource की सही और आधुनिकtraining पर भी बहुत जोर दिया जा रहा है।आपने खुद भी देखा है कि कैसे बीते दो-तीन वर्षों में ही सिविल सर्वेन्ट्स की ट्रेनिंग का स्वरूप बहुत बदल गया है।ये ‘आरंभ’ सिर्फ आरंभ नहीं है, एक प्रतीक भी है और एक नई परंपरा भी।ऐसे ही सरकार ने कुछ दिन पहले एक और अभियान शुरू किया है- मिशन कर्मयोगी।मिशन कर्मयोगी, capacity building की दिशा में अपनी तरह का एक नया प्रयोग है।इस मिशन के जरिए, सरकारी कर्मचारियों को, उनकी सोच-अप्रोच को आधुनिक बनाना है, उनका Skill-Set सुधारना है, उन्हें कर्मयोगी बनने का अवसर देना है।

साथियों, गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- ‘यज्ञ अर्थात् कर्मणः अन्यत्र लोकः अयम् कर्म बंधनः’।अर्थात, यज्ञ यानि सेवा के अलावा, स्वार्थ के लिए किए गए काम, कर्तव्य नहीं होते। वो उल्टा हमें ही बांधने वाला काम होता है।कर्म वही है, जो एक बड़े विजन के साथ किया जाए, एक बड़े लक्ष्य के लिए किया जाए।इसी कर्म का कर्मयोगी हम सबको बनना है, मुझे भी बनना है, आपको भी बनना है, हम सबको बनना है।साथियों, आप सभी जिस बड़े और लंबे सफर पर निकल रहे हैं, उसमें rules का बहुत योगदान है।लेकिन इसके साथ ही, आपको Role पर भी बहुत ज्यादा फोकस करना है।rule and role,लगातार संघर्ष चलेगा, लगातार तनाव आएगा। rules का अपना महत्‍व है,role की अपनी महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेवारी है। इन दोनों का balance,यही तो आपके लिए tight rope पर चलने वाला खेल है।बीते कुछ समय से सरकार ने भी role based approach पर काफी जोर दिया है।इसके नतीजे भी दिखाई दे रहे हैं।पहला- सिविल सर्विसेस में capacity और competency उसके creation के लिए नया architecture खड़ा हुआ है।दूसरा- सीखने के तौर-तरीके democratiseहुए हैं।और तीसरा- हर ऑफिसर के लिए उसकी क्षमता और अपेक्षा के हिसाब से उसका दायित्व भी तय हो रहा है। इस अप्रोच के साथ काम करने के पीछे सोच ये है कि जब आप हर रोल में अपनी भूमिका अच्छे से निभाएंगे, तो आप अपनी overall life में भी सकारात्मक रहेंगे।यही सकारात्मकता आपकी सफलता के रास्ते खोलेगी, आपको एक कर्मयोगी के रूप में जीवन के संतोष का बहुत बड़ा कारण बनेगी।

साथियों, कहा जाता है कि life एक dynamic situation है। governance भी तो एक dynamic phenomenonहै।इसीलिए, हम responsive government की बात करते हैं।एक civil servant के लिए सबसे पहले जरूरी है कि आप देश के सामान्य मानवी से निरंतर जुड़े रहें। जब आप लोक से जुड़ेंगे तो लोकतंत्र में काम करना और आसान हो जाएगा।आप लोग फ़ाउंडेशन ट्रेनिंग और प्रोफेशनल ट्रेनिंग पूरी होने के बाद फील्ड ट्रेनिंग के लिए जाएंगे।मेरी फिर आपको सलाह होगी, आप फील्ड में लोगों से जुड़िये, cut-off मत रहिए। दिमाग में कभी बाबू मत आने दीजिए। आप जिस धरती से निकले हों, जिस परिवार, समाज से निकले हों, उसको कभी भुलिए मत। समाज से जुड़ते चलिए, जुड़ते चलिए, जुड़ते चलिए। एक प्रकार से समाज जीवन में विलीन हो जाइए, समाज आपकी शक्‍ति का सहारा बन जाएगा। आपके दो हाथ सहस्‍त्र बाहू बन जाएंगे। ये सहस्‍त्र बाहू जन-शक्‍ति होती है,उन्हें समझने की, उनसे सीखने की कोशिश अवश्‍य करिएगा।मैं अक्सर कहता हूँ, सरकार शीर्ष से नहीं चलती है। नीतियाँ जिस जनता के लिए हैं, उनका समावेश बहुत जरूरी है।जनता केवल सरकार की नीतियों की, प्रोग्राम्स की receiver नहीं हैं, जनता जनार्दन ही असली ड्राइविंग फोर्स है।इसलिए हमें government से governance की तरफ बढ़ने की जरूरत है।

साथियों, इस एकेडेमी से निकलकर, जब आप आगे बढ़ेंगे तो आपके सामने दो रास्ते होंगे।एक रास्ता आसानी का, सुविधाओं का, Name and Fame का रास्ता होगा।एक रास्ता होगा जहां चुनौतियाँ होंगी, कठिनाइयाँ होंगी, संघर्ष होगा, समस्याएँ होंगी।लेकिन मैं अपने अनुभव से मैं आज आपसे एक बात कहना चाहता हूं।आपको असली कठिनाई तभी होगी जब आप आसान रास्ता पकड़ेंगे।आपने देखा होगा, जो सड़क सीधी होती है, कोई मोड़ नहीं होते हैं वहां सबसे ज्‍यादा अकस्‍मात होते हैं। लेकिन जो टेड़ी-मेड़ी मोड़ वाली सड़क होती है वहां driver बड़ा cautious होता है, वहां अकस्‍मात कम होते हैं और इसलिए सीधा-सरल रास्‍ता कभी न कभी बहुत बड़ा कठिन बन जाता है। राष्ट्र निर्माण के, आत्मनिर्भर भारत के जिस बड़े लक्ष्य की ओर आप कदम बढ़ा रहे हैं, उसमें आसान रास्ते मिलें, ये जरूरी नहीं है, अरे मन में उसकी कामना भी नहीं करनी चाहिए।इसलिए जब आप हर चुनौती का समाधान करते हुए आगे बढ़ेंगे, लोगों की Ease of Living को बढ़ाने के लिए निरंतर काम करेंगे तो इसका लाभ सिर्फ आपको ही नहीं, पूरे देश को मिलेगाऔर आप ही की नजरों के सामने आजादी के 75 साल से आजादी के 100 साल की यात्रा फलते-फुलते हिन्‍दुस्‍तान को देखने का कालखंड होगा। आज देश जिस mode में काम कर रहा है, उसमें आप सभी bureaucrats की भूमिका minimum government maximum governance की ही है।आपको ये सुनिश्चित करना है कि नागरिकों के जीवन में आपका दखल कैसे कम हो, सामान्य मानवी का सशक्तिकरण कैसे हो।

हमारे यहां उपनिषद में कहा गया है- ‘न तत् द्वतीयम् अस्ति’। अर्थात, कोई दूसरा नहीं है, कोई मुझसे अलग नहीं है। जो भी काम करिए, जिस किसी के लिए भी करिए, अपना समझ कर करिए।और मैं अपने अनुभव से ही कहूंगा कि जब आप अपने विभाग को, सामान्य जनों को अपना परिवार समझकर काम करेंगे, तो आपको कभी थकान नहीं होगी, हमेशा आप नई ऊर्जा से भरे रहेंगे।साथियों, फील्ड पोस्टिंग के दौरान, हम ये भी देखते हैं कि अफसरों की पहचान इस बात से बनती है कि वो एक्सट्रा क्या कर रहा है, जो चलता रहा है, उसमें अलग क्या कर रहा है।आप भी फील्ड में, फाइलों से बाहर निकलकर के, रुटीन से अलग हटकर अपने क्षेत्र के विकास के लिए, लोगों के लिए जो भी करेंगे उसका प्रभाव अलग होगा, उसका परिणाम अलग होगा।उदाहरण के तौर पर, आप जिन जिलों में, blocks में काम करेंगे, वहां कई ऐसी चीजें होंगी, कई ऐसे products होंगे, जिनमें एक ग्लोबल potential होगा।लेकिन उन products को, उन arts को, उनके artists को ग्लोबल होने के लिए लोकल support की जरूरत है।ये support आपको ही करना होगा। ये vision आपको ही देना होगा।इसी तरह, आप किसी एक लोकल innovator की तलाश करके उसके काम में एक साथी की तरह उसकी मदद कर सकते हैं।हो सकता है आपके सहयोग से वो innovation समाज के लिए बहुत बड़े योगदान के रूप में सामने आ जाए! वैसे मैं जानता हूं कि आप सोच रहे होंगे कि, ये सब कर तो लेंगे लेकिन बीच में ट्रांसफर हो गया तो क्या होगा? मैंने जो टीम भावना की बात शुरू में की थी ना, वो इसलिए ही थी।अगर आप आज एक जगह हैं, कल दूसरी जगह हैं, तो भी उस क्षेत्र में अपने प्रयासों को छोड़िएगा नहीं, अपने लक्ष्यों को भूलिएगा नहीं।आपके बाद जो लोग आने वाले हैं उनको विश्‍वास में लिजिए। उनका विश्‍वास बढ़ाइए, उनका हौसला बढ़ाइए। उनको भी जहां हैं वहां से मदद करते रहिए। आपके सपनों को आपके बाद वाली पीढ़ी भी पूरा करेगी। जो नए अधिकारी आएंगे, आप उनको भी अपने लक्ष्यों का साझीदार बना सकते हैं।

साथियों, आप जहां भी जाएँ, आपको एक और बात ध्यान रखनी है।आप जिस कार्यालय में होंगे, उसके बोर्ड में दर्ज आपके कार्यकाल से ही आपकी पहचान नहीं होनी चाहिए।आपकी पहचान आपके काम से होनी चाहिए।हां, बढ़ती हुई पहचान में, आपको मीडिया और सोशल मीडिया भी बहुत आकर्षित करेंगे।काम की वजह से मीडिया में चर्चा होना एक बात है और मीडिया में चर्चा के लिए ही काम करना वो जरा दूसरी बात है।आपको दोनों का फर्क समझकर के आगे बढ़ना है।आपको याद रखना होगा कि सिविल सर्वेंट्स की एक पहचान-अनाम रहकर के काम करने की रही है।आप पिछले आजादी के बाद अपने कालखंड के देखिए कि ओजस्‍वी-तेजस्‍वी चहरे कभी-कभी हम सुनते हैं वे अपने पूरे कार्यकाल में अनाम ही रहे। कोई नाम नहीं जानता था, रिटायर होने के बाद किसी ने कुछ लिखा तब पता चला अच्‍छा ये बाबू इतना बड़ा देश को देकर के गए हैं, आपके लिए भी वही आदर्श है। आपसे पहले के 4-5 दशकों में जो आपके सीनियर्स रहे हैं, उन्होंने इसका बहुत अनुशासन के साथ पालन किया है।आपको भी ये बात ध्यान रखनी है।

साथियों, मैं जब मेरे नौजवान राजनीतिक साथी जो हमारे विधायक है, हमारे सांसद हैं, उनसे से मिलता हूं तो मैं बातों-बातों में जरूर कहता हूँ और मैं कहता हूँ कि ‘दिखास’ और ‘छपास’ ये दो रोग से दूर रहिएगा।में आपको भी यही कहूंगा कि दिखास और छपास टी.वी. पे दिखना और अखबार में छपना दिखास और छपास, ये दिखास और छपास का रोग जिसे लगा, फिर आप वो लक्ष्य नहीं प्राप्त कर पाएंगे जो लेकर आप सिविल सेवा में आए हैं।

साथियों, मुझे भरोसा है, आप सब अपनी सेवा से, अपने समर्पण से देश की विकास यात्रा में, देश को आत्मनिर्भर बनाने में बहुत बड़ा योगदान देंगे।मेरी बात समाप्‍त करने से पहले मैं आप लोगों को एक काम देना चाहता हूँ आप करेंगे, सब हाथ ऊपर करें तो मैं मानूँगा कि आप करेंगे, सबके-सबके हाथ ऊपर होंगे क्‍या, करेंगे, अच्‍छा सुन लिजिए आपको भी vocal for local अच्‍छा लगता होगा सुनना, लगता है ना, पक्‍का लगता होगा, आप एक काम करेंगे, आने वाले दो-चार दिन में आप अपने पास जो चीज हैं जो रोजमर्रा के उपयोग में है उसमें कितनी चीजें वो हैं जो भारतीय बनावट की हैं, जिसमें भारत के नागरिक के पसीने की महक है। जिसमें भारत के नौजवान के talent दिखती है, उस सामान की जरा एक सूची बनाइए और दूसरी वो सूची बनाइए कि आपके जूतों से लेकर के सर के बाल तक क्‍या-क्‍या विदेशी चीजें आपके कमरे में हैं, आपके बैग में है, क्‍या-क्‍या आप उपयोग करते हैं जरा देखिएऔर मन में तय कीजिए कि ये जो बिल्‍कुल अनिवार्य है जो भारत में आज उपलब्‍ध नहीं है, संभव नहीं है, जिसको रखना पड़े मैं मान सकता हूँ लेकिन ये 50 में से 30 चीजें ऐसी हैं वो तो मेरे लोकल में available है। हो सकता है कि में उसके प्रचार के प्रभाव में नहीं आया हूँ, मैं उसमें से कितना कम कर सकता हूँ।

देखिए आत्‍मनिर्भर की शुरूआत आत्‍म से होनी चाहिए। आप vocal for local क्‍या शुरूआत कर सकते हैं। दूसरा- जिस संस्‍था का नाम लाल बहादुर शास्‍त्री से जुड़ा हुआ है उस पूरे कैम्‍पस में भी आपके कमरो में, आपके ऑडिटोरियम में, आपके क्‍लासरूम में, हर जगह पे कितनी चीजें विदेशी हैं जरूर सूची बनाइए और आप सोचिएकि हम जो देश को आगे बढ़ाने के लिए आए हैं जहां से देश को आगे बढ़ाने वाली एक पूरी पीढ़ी तैयार होती है जहां बीज धारण किया जाता है क्‍या उस जगह पर भी vocal for local ये हमारी जीवनचर्या का हिस्‍सा है कि नहीं है आप देखिए आपको मजा आएगा। मैं ये नहीं कहता हूँ कि आप अपने साथियों के लिए भी ये रास्‍ते खोलिए, खुद के लिए है। आपको देखिए आपने बिना कारण ऐसी-ऐसी चीजें आपके पास पड़ी होंगी जो हिन्‍दुस्‍तानकी होने के बाद भी आपने बाहर की ले ली हैं। आपको पता भी नहीं है ये बाहर की है। देखिए भारत को आत्‍मनिर्भर बनाने के लिए हम सबने आत्‍म से शुरू कर-कर के देश को आत्‍मनिर्भर बनाना है।

मेरे प्‍यारे साथियों, मेरे नौजवानों साथियों, देश को आजादी के 100 साल, आजादी के 100 साल के सपने, आजादी के 100 साल के संकल्‍प, आजादी के आने वाली पीढ़‍ियाँ उनको आपके हाथ में देश सुपुर्द कर रहा है। देश आपके हाथ में आने वाले 25-35 साल आपको सुपुर्द कर रहा है। इतनी बड़ी भेट आपको मिल रही है। आपको उसको बड़ी जीवन का एक अहोभाग्‍य मान के अपने हाथ में लीजिए, अपने करकमलों में लीजिए। कर्मयोगी का भाव जगाइए। कर्मयोग के रास्‍ते पर चलने के लिए आप आगे बढ़िए इस शुभकामना के साथ आप सभी को एक बार बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।मैं आपका बहुत-बहुत धन्‍यवाद करते हूँ। और मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूँ मैं प्रतिपल आपके साथ हूँ। मैं पल-पल आपके साथ हॅू। जब भी जरूरत पड़े आप मेरा दरवाजा खटखटा सकते हैं। जब तक मैं हूँ जहां भी हूँ, मैं आपका दोस्‍त हूँ, आपका साथी हूँ, हम सब मिलकर के आजादी के 100 साल के सपने साकार करने का अभी से काम प्रारंभ करें आइए हम सब आगे बढ़ते हैं।

बहुत-बहुत धन्यवाद !

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!