मंच पर विराजमान वित्त मंत्री जी, वित्त राज्यमंत्री जी, RBI के गवर्नर, नाबार्ड के चेयरमैन, Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation और देश के विशाल बैंकिंग समूहों के अधिकारीगण, अलग अलग राज्यों में अनेक स्थानों पर उपस्थित मंत्रिपरिषद के मेरे साथी, वहां के सांसद विधायक और वहां रहने वाले सारे Depositors, हमारे सारे जमाकर्ता भाइयों और बहनों,

आज देश के लिए बैंकिंग सेक्टर के लिए और देश के करोड़ों बैंक अकाउंट होल्डर्स के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। दशकों से चली आ रही एक बड़ी समस्या का कैसे समाधान निकाला गया है, आज का दिन उसका साक्षी बन है। आज के आयोजन का जो नाम दिया गया है उसमें Depositors First, जमाकर्ता सबसे पहले की भावना को सबसे पहले रखना, और इसे और सटीक बना रहा है। बीते कुछ दिनों में एक लाख से ज्यादा Depositors को बरसों से फंसा हुआ उनका पैसा उनके खाते में जमा हो गया है। और ये राशि करीब-करीब 1300 करोड़ रुपए से भी ज्यादा है। अभी आज यहां इस कार्यक्रम में और इसके बाद भी 3 लाख और ऐसे Depositors को बैंकों में फंसा उनका पैसा उनके खाते में जमा होने वाला है, पैसा उनको मिलने वाला है। ये अपने आप में छोटी बात नहीं है और मैं खासकर के हमारे देश को हमारे जो मीडिया के साथी हैं। आज मैं उनसे एक request करना चाहता हूं। और मेरा अनुभव है जब स्वच्छता अभियान चला रहा था, मीडिया के मित्रों को request की आज भी उसको वो बराबर मेरी मदद कर रहे हैं। आज मैं फिर से उनसे एक request कर रहा हूं। हम जानते हैं कि बैंक डूब जाये तो कई दिनों तक खबरें फैली रहती हैं टीवी पर अखबारों में, स्वाभाविक भी है, घटना ही ऐसी होती है। बड़ी – बड़ी हेडलाइन्स भी बन जाती हैं। बहुत स्वाभाविक है। देखिये आज जब देश ने एक बहुत बड़ा रिफार्म किया, एक बहुत बड़ी मजबूत व्यवस्था शुरू की है। Depositors को, जमाकर्ताओं को उनका पैसा वापस दिलाया जा रहा है। मैं चाहता हूं उसकी भी उतनी ही चर्चा मीडिया में हो, बार – बार हो। इसलिए नहीं कि मोदी ने किया है इसलिए कर रहा है। ये इसलिए जरूरी है कि देश के Depositors में विश्वास पैदा हो। हो सकता है कुछ लोगों के गलत कारणों से, गलत आदतों से बैंक डूबेगा, हो सकता है, लेकिन जमाकर्ता का पैसा नहीं डूबेगा। जमाकर्ता का पैसा सुरक्षित रहेगा। ये मैसेज से देश के जमाकर्ता में विश्वास पैदा होगा। बैंकिंग व्यव्स्था पर भरोसा होगा, और ये बहुत जरूरी है।

भाइयों और बहनों,

कोई भी देश समस्याओं का समय पर समाधान करके ही उन्हें विकराल होने से बचा सकता है। लेकिन आप भलिभांति जानते हैं। वर्षों तक हमारे यहां एक ही प्रवृत्ति रही की बई समस्या हैं टाल दो। दरी के नीचे डाल दो। आज का नया भारत, समस्याओं के समाधान पर जोर लगाता है, आज भारत समस्यओं को टालता नहीं है। आप जरा याद करिए, कि एक समय था जब कोई बैंक संकट में आ जाता था तो Depositors को जमाकर्ताओं को अपना ही पैसा, ये पैसा उनका खुद का है, जमाकर्ता का पैसा है। उनका खुद का पैसा पाने में नाको दम निकल जाता था। कितनी परेशानी उठानी पड़ती थी। और चारो तरफ जैसे हाहाकार मच जाता था। और ये बहुत स्वाभाविक भी था। कोई भी व्यक्ति बहुत विश्वास के साथ बैंक में पैसा जमा कराता है। खासकर हमारे मध्यम वर्ग के परिवार, जो फिक्सड सैलरी वाले लोग हैं वो, फिक्सड इनकम वाले लोग हैं, उन लोगों के जीवन में तो बैंक ही उनका आसरा होती हैं। लेकिन कुछ लोगों की गलत नीतियों के कारण जब बैंक डूबता था, तो सिर्फ इन परिवारों को सिर्फ पैसा नहीं फसता था, एक तरह से उनकी पूरी जिंदगी ही फंस जाती थी। पूरा जीवन, सारा एक प्रकार से अंधकार सा लगता था। अब क्या करेंगे। बेटे-बेटी की कॉलेज की फीस भरनी है - कहां से भरेंगे? बेटे-बेटी की शादी करनी है- कहां से पैसा आएगें? किसी बुजुर्ग का इलाज कराना है- कहां से पैसा लाएंगें? अभी बहन जी मुझे बता रही थी। कि उनके परिवार में हार्ट का ऑपरेशन कराना था। कैसे दिक्कत आई और अब ये कैसा काम हो गया। इन सवालों का पहले कोई जवाब नहीं होता था। लोगों को बैंक से अपना ही पैसा प्राप्त करने में निकलवाने में बरसों लग जाते थे। हमारे गरीब भाई-बहनों ने, निम्न मध्यम वर्ग के लोगों ने, हमारे मध्यम वर्ग ने दशकों तक इस स्थिति को भोगा है, सहा है। विशेष रूप से को-ऑपरेटिव बैंकों के मामले में समस्याएं और अधिक हो जाती थी। आज जो लोग अलग-अलग शहरों से इस कार्यक्रम में जुड़े हैं, वो इस दर्द, इस तकलीफ को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए ही, हमारी सरकार ने बहुत संवेदनशीलता के साथ फैसले लिए, रिफार्म किया, कानून में बदलाव किया। आज का ये आयोजन, उन फैसलों का ही एक परिणाम है। और मुझे बराबर याद है मैं मुख्यमंत्री रहा हूं और बैंक में उफान खड़ा हो जाता था। तो लोग हमारा ही गला पकड़ते थे। या तो निर्णय भारत सरकार को करना होता था या उन बैंक वालों को करना था लेकिन पकड़ते थे मुख्यमंत्री को। हमारे पैसों को कुछ करो, मुझे काफी परेशानियां उस समय रहती थी, और उनका दर्द भी बहुत स्वाभाविक था। और उस समय मैं भारत सरकार को बार – बार रिक्वेस्ट करता था। कि एक लाख रुपये की राशि हमें पांच लाख बढ़ानी चाहिए ताकि अधिकतम परिवारों को हम satisfy कर सकें। लेकिन खैर, मेरी बात नहीं मानी गई। उन्होंने नहीं किया तो लोगों ने ही किया, मुझे भेज दिया यहां। मैने कर भी दिया।

साथियों,

हमारे देश में बैंक डिपॉजिटर्स के लिए इंश्योरेंस की व्यवस्था 60 के दशक में बनाई गई थी। यानि उसमें भी करीब 60 साल हो गए। पहले बैंक में जमा रकम में से सिर्फ 50 हजार रुपए तक की राशि पर ही गारंटी थी। फिर इसे बढ़ाकर एक लाख रुपए कर दिया गया था। यानि अगर बैंक डूबा, तो Depositors को, जमाकर्ताओं को सिर्फ एक लाख रुपए तक ही मिलता था, लेकिन वो भी गारंटी नहीं कब मिलेगा। 8-8 व 10-10 साल तक मामला लटका रहता था। कोई समय सीमा नहीं थी। गरीब की चिंता को समझते हुए, मध्यम वर्ग की चिंता को समझते हुए हमने इस राशि को 1 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दिया है। यानि आज की तारीख में कोई भी बैंक संकट में आता है, तो Depositors को, जमाकर्ताओं को, 5 लाख रुपए तक तो जरूर वापस मिलेगा। और इस व्यवस्था से लगभग 98 प्रतिशत लोगों के अकाउंट्स पूरी तरह से कवर हो चुके हैं। यानि 2% को ही थोड़ा – थोड़ा रह जाएगा। 98% प्रतिशत लोगों का जितना पैसा उनका है सारा कवर हो रहा है। और आज डिपॉजिटर्स का लगभग, ये आंकडा भी बहुत बड़ा है। आजादी का 75 साल चल रहा है। अमृत महोत्सव चल रहा है। ये जो हम निर्णय कर रहे हैं। इससे 76 लाख करोड़ रुपए पूरी तरह से insured है। इतना व्यापक सुरक्षा कवच तो विकसित देशों में भी नहीं है।

साथियों,

कानून में संसोधन करकेा, रिफार्म करके एक और समस्या का समाधान करने की कोशिश की है। पहले जहां पैसा वापसी की कोई समय सीमा नहीं थी, अब हमारी सरकार ने इसे 90 दिन यानि 3 महीने के भीतर ये करना ही होगा ये कानूनन तय कर लिया है। यानि हमने ही सारे बंधन हम पर डाले हैं। क्योंकि इस देश के सामान्य मानवी, इस देश के मध्यम वर्ग की, इस देश के गरीब की हमे चिंता है। इसका मतलब ये हुआ कि अगर बैंक वीक हो जाती है। बैंक अगर डूबने की स्थिति में भी है, तो 90 दिन के भीतर जमाकर्ताओं को उनका पैसा वापस मिल जाएगा। मुझे खुशी है कि कानून में संशोधन के 90 दिन के भीतर ही, हजारों डिपॉजिटर्स के क्लेम सेटल भी किये जा चुके हैं।

साथियों,

हम सब बड़े विद्वान, बुद्धिमान, अर्थशास्त्री तो बात को अपने – अपने तरीके से बताते हैं। मैं अपनी सीधी साधी भाषा में बताता हूं। हर कोई देश प्रगति चाहता है, हर देश विकास चाहता। लेकिन ये बात हमें याद रखनी होगी। देश की समृद्धि में बैंकों की बड़ी भूमिका है। और बैंकों की समृद्धि के लिए Depositors का पैसा सुरक्षित होना वो भी उतना ही जरूरी है। हमें बैंक बचाने हैं तो Depositors को सुरक्षा देनी ही होगी। और हमने ये काम करके बैंकों को भी बचाया है, Depositors को भी बचाया है। हमारे बैंक, जमाकर्ताओं के साथ-साथ हमारी अर्थव्यवस्था के लिए भी भरोसे के प्रतीक हैं। इसी भरोसे, इसी विश्वास को सशक्त करने के लिए बीते सालों से हम निरंतर प्रयास कर रहे हैं। बीते वर्षों में अनेक छोटे सरकारी बैंकों को बड़े बैंकों के साथ मर्ज करके, उनकी कैपेसिटी, कैपेबिलिटी और ट्रांसपेरेंसी, हर प्रकार से सशक्त की गई है। जब RBI, को-ऑपरेटिव बैंकों की निगरानी करेगा तो, उससे भी इनके प्रति सामान्य जमाकर्ता का भरोसा और बढ़ेगा। हमने को-ऑपरेटिव की एक नई व्यवस्था की है, नई मिनिस्ट्री बनाई है। इसके पीछे भी को-ऑपरेटिव संस्थाओं को ताकतवर बनाने का इरादा है। को-ऑपरेटिव मिनिस्ट्री के रूप में विशेष व्यवस्था बनने से भी को-ऑपरेटिव बैंक अधिक सशक्त होने वाले हैं।

साथियों,

दशकों-दशक तक देश में ये धारणा बन गई थी कि बैंक सिर्फ ज्यादा पैसे वालों के लिए होते हैं। ये अमीरों का घराना है ऐसा लगता था। जिसके पास अधिक पैसा है वही जमा करता है। जिसके पास बड़ा बिजनेस है, उसी को जल्दी और ज्यादा लोन मिलता है। ये भी मान लिया गया था कि पेंशन और बीमा जैसी सुविधाएं भी उसी के लिए हैं, जिसके पास पैसा है, धन है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए ये ठीक नहीं थी। न ये व्यवस्था ठीक है न ये सोच ठीक है। और इसको बदलने के लिए भी हम निरंतर प्रयास कर रहे हैं। आज किसान, छोटे दुकानदार, खेत मज़दूर, कंस्ट्रक्शन और घरों में काम करने वाले श्रमिक साथियों को भी पेंशन की सुविधा से जोड़ा जा रहा है। आज देश के करोड़ों गरीबों को 2-2 लाख के दुर्घटना और जीवन बीमा के सुरक्षा कवच की सुविधा मिली है। पीएम जीवन ज्योति बीमा योजना और पीएम सुरक्षा बीमा योजना के तहत लगभग 37 करोड़ देशवासी इस सुरक्षा कवच के दायरे में आ चुके हैं। यानि एक प्रकार से अब जाकर देश के फाइनेंशियल सेक्टर का, देश के बैंकिंग सेक्टर का सही मायने में लोकतंत्रिकरण हुआ है।

साथियों,

हमारे यहां समस्या सिर्फ बैंक अकाउंट की ही नहीं थी, बल्कि दूर-सुदूर तक गांवों में बैंकिंग सेवाएं पहुंचाने की भी थी। आज देश के करीब-करीब हर गांव में 5 किलोमीटर के दायरे में बैंक ब्रांच या बैंकिंग कॉरस्पोंडेंट की सुविधा पहुंच चुकी है। पूरे देश में आज लगभग साढ़े 8 लाख बैंकिंग टच प्वाइंट्स हैं। डिजिटल इंडिया के माध्यम से हमने देश में बैंकिंग और वित्तीय समावेश को नई बुलंदी दी है। आज भारत का सामान्य नागरिक कभी भी, कहीं भी, सातों दिन, 24 घंटे, छोटे से छोटा लेनदेन भी डिजिटली कर पा रहा है। कुछ साल पहले तक इस बारे में सोचना तो दूर, भारत के सामर्थ्य पर अविश्वास करने वाले लोग इस बात का मज़ाक उड़ाया करते थे।

साथियों,

भारत के बैंकों का सामर्थ्य, देश के नागरिकों का सामर्थ्य बढ़ाए, इस दिशा में हमारी सरकार लगातार काम कर रही है। क्या कभी किसी ने सोचा था कि रेहड़ी, ठेले, फेरी-पटरी वाले को भी, street vendors को भी बैंक से ऋण मिल सकता है? ना उसने कभी सोचा न हम भी सोच सकते। लेकिन आज मुझे बड़े संतोष के साथ कहना है। आज ऐसे लोगों को स्वनिधि योजना से ऋण भी मिल रहा है और वो अपने व्यापार को भी बढ़ा रहे हैं। आज मुद्रा योजना, देश के उन क्षेत्रों, उन परिवारों को भी स्वरोज़गार से जोड़ रहे हैं, जिन्होंने कभी इस बारे में सोचा तक नहीं था। आप सभी ये भी जानते हैं कि हमारे यहां, छोटी ज़मीन वाले किसान, हमारे देश में 85 पर्सेंट किसान छोटे किसान बहुत छोटा सा जीमन का टुकड़ा है उनके पास। इतने बैंकों के होते हुए भी हमारा छोटा किसान बाजार से किसी तीसरे से, महंगे ब्याज़ पर ऋण लेने के लिए मजबूर था। हमने ऐसे करोड़ों छोटे किसानों को भी किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा से जोड़ा और इसका दायरा पशुपालक और मछुआरों तक हमने बढा दिया। आज बैंकों से मिला लाखों करोड़ रुपए का आसान और सस्ता ऋण, इन साथियों का जीवन आसान बना रहा है।

 

साथियों,

अधिक से अधिक देशवासियों को बैंकों से जोड़ना हो, बैंक लोन आसानी से सुलभ कराना हो, डिजिटल बैंकिंग, डिजिटल पेमेंट्स का तेज़ी से विस्तार करना हो,ऐसे अनेक सुधार हैं जिन्होंने 100 साल की सबसे बड़ी आपदा में भी भारत के बैंकिंग सिस्टम को सुचारु रूप से चलाने में मदद की है। मैं बैंक के हर साथी को बधाई देता हूं इस काम के लिए, कि संकट की घड़ी में उन्होंने लोगों को असहाय नहीं छोड़ा। जब दुनिया के समर्थ देश अपने नागरिकों तक मदद पहुंचाने में संघर्ष कर रहे थे, तब भारत ने तेज़ गति से देश के करीब-करीब हर वर्ग तक सीधी मदद पहुंचाई। देश के बैंकिंग सेक्टर में जो सामर्थ्य बीते सालों में हमने विकसित किया है, उसी आत्मविश्वास के कारण देशवासियों का जीवन बचाने के लिए सरकार बड़े फैसले ले पाई। आज हमारी अर्थव्यस्था तेज़ी से सुधरी तो है ही बल्कि भविष्य के लिए बहुत सकारात्मक संकेत हम सब देख रहे हैं।

भाइयों और बहनों,

Financial inclusion और Ease of access to credit का सबसे बड़ा लाभ अगर हुआ है, तो हमारी बहनों को हुआ है, हमारी माताओं को हमारी बेटियों को हुआ है।ये देश का दुर्भाग्य था कि आज़ादी के इतने दशकों तक हमारी अधिकतर बहनें-बेटियां इस लाभ से वंचित रहीं। स्थिति ये थी कि माताएं-बहनें अपनी छोटी बचत को रसोई में राशन के डिब्बों में रखती थीं। उसके लिए पैसा रखने की जगह वोही थी, अनाज के अंदर रखे रखना, कुछ लोग तो इसे भी सेलिब्रेट करते थे। जिस बचत को सुरक्षित रखने के लिए बैंक बनाए गए हैं, उसका उपयोग आधी आबादी ना कर पाए, ये हमारे लिए बहुत बड़ी चिंता थी। जनधन योजना के पीछे इस चिंता के समाधान का भी अहम रोल रहा है। आज इसकी सफलता सबके सामने है। जनधन योजना के तहत खुले करोड़ों बैंक अकाउंट्स में से आधे से अधिक बैंक अकाउंट्स हमारी माताओं – बहनों के हैं, महिलाओं के हैं। इन बैंक अकाउंट्स का महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण पर जो असर हुआ है, वो हमने हाल में आए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में भी देखा है। जब ये सर्वे किया गया, तबतक देश में लगभग 80 प्रतिशत महिलाओं के पास अपना खुद का बैंक अकाउंट था। सबसे बड़ी बात ये है कि जितने बैंक अकाउंट शहरी महिलाओं के लिए खुले हैं, लगभग उतने ही ग्रामीण महिलाओं के लिए भी हो चुके हैं। ये दिखाता है कि जब अच्छी योजनाएं डिलीवर करती हैं तो समाज में जो असमानताएं हैं, उनको दूर करने में भी बहुत बड़ी मदद मिलती है। अपना बैंक अकाउंट होने से महिलाओं में आर्थिक जागरूकता तो बढ़ी ही है, परिवार में आर्थिक फैसले लेने की उनकी भागीदारी में भी विस्तार हुआ है। अब परिवार कुछ निर्णय करता है तो मां – बहनों को बिठाता है, उनका opinion लेता है।

साथियों,

मुद्रा योजना में भी लगभग 70 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएं हैं। हमारा ये भी अनुभव रहा है जब महिलाओं को ऋण मिलता है तो उसको लौटाने में भी उनका ट्रैक रिकॉर्ड बहुत ही प्रशंसनीय है। उनको अगर बुधवार को पैसा जमा करने की आखिरी डेट है तो सोमवार को जाकर के दे आती हैं। उसी प्रकार से self help groups, स्वयं सहायता समूहों का प्रदर्शन, ये भी बहुत बेहतरीन है। एक प्रकार से पांई-पांई जमा करा देते हैं हमारी माताएं-बहनें। मुझे विश्वास है कि सबके प्रयास से, सबकी भागीदारी से, आर्थिक सशक्तिकरण का ये अभियान बहुत तेजी से आगे बढ़ने वाला है। और हम सब इसको बढ़ाने वाले हैं।

साथियों,

आज समय की मांग है कि भारत का बैंकिंग सेक्टर, देश के लक्ष्यों को प्राप्त करने में पहले से ज्यादा सक्रियता से काम करे। आजादी के अमृत महोत्सव में हर बैंक ब्रांच, 75 साल में उन्होंने किए हैं, उन सारे रिकॉर्डों को पीछे छोड़कर के उसको डेढ़ गुणा, दो गुणा करने का लक्ष्य लेकर के चलें। देखिये स्थिति बदलती है कि नहीं बदलती है। पुराने अनुभवों की वजह से, ऋण देने में आपकी जो भी हिचक रही है, उससे अब बाहर निकलना चाहिए। देश के दूर-सुदूर क्षेत्रों में, गांवों-कस्बों में बड़ी संख्या में देशवासी, अपने सपने पूरे करने के लिए बैंकों से जुड़ना चाहते हैं। आप अगर आगे बढ़कर लोगों की मदद करेंगे, तो ज्यादा से ज्यादा लोगों की आर्थिक शक्ति भी बढ़ेगी और इससे आपकी खुद की ताकत में भी वृद्धि होगी। आपके ये प्रयास, देश को आत्मनिर्भर बनाने में, हमारे लघु उद्यमियों, मध्यम वर्ग के युवाओं को आगे बढ़ने में सहायता करेंगे। बैंक और जमाकर्ताओं का भरोसा नई बुलंदी पर पहुंचेगा और आज का ये अवसर कोटि-कोटि डिपोजीटर्स में एक नया विश्वास भरने वाला अवसर है। और इससे बैंको की risk taking capacity अनेक गुणा बढ़ सकती है। अब बैंको के लिए भी अवसर है, डिपॉजिटर्स के लिए भी अवसर है। ऐसे शुभ अवसर पर मेरी आप सबको बहुत –बहुत शुभकामनाएं, बहुत- बहुत शुभकामनाएं ! धन्यवाद !

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