Quoteप्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों और शहीदों को उनके बलिदान के लिए नमन किया
Quote"मानगढ़ राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के लोगों की साझी विरासत है"
Quote"गोविन्द गुरु जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी भारत की परंपरा और आदर्शों के प्रतिनिधि थे"
Quote"भारत का अतीत, इतिहास, वर्तमान और भारत का भविष्य जनजातीय समुदाय के बिना कभी पूरा नहीं होता"
Quote"राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को मानगढ़ के संपूर्ण विकास के रोडमैप के लिए साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है"

 


भारत माता की जय।

भारत माता की जय।

कार्यक्रम में उपस्थित राजस्थान के आदरणीय मुख्यमंत्री श्रीमान अशोक गहलोत जी, मध्य प्रदेश के गवर्नर और आदिवासी समाज के बहुत बड़े नेता श्री मंगूभाई पटेल, गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र भाई पटेल, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्रीमान शिवराज सिंह जी चौहान, मंत्रिपरिषद के मेरे सहयोगी श्री फग्गनसिंह कुलस्ते जी, श्री अर्जुन मेघवाल जी, विभिन्न संगठनों के प्रमुख व्यक्तित्व, सांसदगण, विधायकगण और मेरे पुराने मित्र आदिवासी समाज की सेवा में जिन्होंने अपना जीवन समर्पित किया है ऐसे भाई महेश जी और विशाल संख्या में पधारे, दूर-सुदूर से मानगढ़ धाम आए हुए मेरे प्यारे आदिवासी भाइयों और बहनों।

मेरे लिए खुशी की बात है कि मुझे आज फिर एक बार मानगढ़ की इस पवित्र धरती पर आकर के सिर झुकाने का अवसर मिला है। मुख्यमंत्री के नाते अशोक जी और हम साथ-साथ काम करते रहे और अशोक जी हमारी जो मुख्यमंत्रियों की जमात थी, उसमें सबसे सीनियर थे, सबसे सीनियर मुख्यमंत्री अब हैं। और अभी हम जो मंच पर बैठे हैं, उसमें भी अशोक जी सीनियर मुख्यमंत्रियों में से एक हैं। उनका यहां आना इस कार्यक्रम में उपस्थित रहना।

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साथियों,

आजादी के अमृत महोत्सव में हम सभी का मानगढ़ धाम आना, ये हम सबके लिए प्रेरक है, हमारे लिए सुखद है। मानगढ़ धाम, जनजातीय वीर-वीरांगनाओं के तप-त्याग-तपस्या और देशभक्ति का प्रतिबिंब है। ये राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के लोगों की साझी विरासत है। परसों यानि 30 अक्टूबर को गोविंद गुरू जी की पुण्य तिथि थी। मैं सभी देशवासियों की तरफ से गोविंद गुरू जी को पुन: श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। मैं गोविंद गुरू जी की तप-तपस्या, उनके विचारों और आदर्शों को प्रणाम करता हूँ।

भाइयों और बहनों,

गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए मानगढ़ का जो क्षेत्र गुजरात में पड़ता है, मुझे उसकी सेवा का सौभाग्य मिला था। उसी क्षेत्र में गोविंद गुरु ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष भी बिताऐ थे। उनकी ऊर्जा, उनकी शिक्षाएं आज भी इस मिट्टी में महसूस की जा रही हैं। मैं विशेष रूप से हमारे कटारा कनकमल जी का और यहां के समाज का भी आज सिर झुकाकर के नमन करना चाहता हूं। जब मैं पहले आता था, ये पूरा वीरान क्षेत्र था और मैंने आग्रह किया था वन महोत्सव के द्वारा आज मुझे इतना संतोष हुआ चारों तरफ मुझे हरियाली नज़र आ रही है। आपने पूरे श्रद्धाभाव से वन-विकास के लिए जो काम किया है, इस क्षेत्र को जिस प्रकार से हरा-भरा बना दिया है, मैं इसके लिए यहां के सभी साथियों का ह्दय से आज मैं अभिनंदन करता हूं।

साथियों,

उस क्षेत्र में जब विकास हुआ, जब सड़कें बनीं, तो वहाँ के लोगों का जीवन तो बेहतर हुआ ही, गोविंद गुरु की शिक्षाओं का भी विस्तार हुआ।

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साथियों,

गोविंद गुरु जैसे महान स्वतन्त्रता सेनानी भारत की परम्पराओं के, भारत के आदर्शों के प्रतिनिधि थे। वो किसी रियासत के राजा नहीं थे, लेकिन फिर भी वो लाखों-लाखों आदिवासियों के नायक थे। अपने जीवन में उन्होंने अपना परिवार खो दिया, लेकिन हौसला कभी नहीं खोया। उन्होंने हर आदिवासी को, हर कमजो़र-गरीब और भारतवासी को अपना परिवार बनाया। गोविंद गुरु ने अगर आदिवासी समाज के शोषण के खिलाफ अंग्रेजी हुकूमत से संघर्ष का बिगुल फूंका, तो साथ ही अपने समाज की बुराइयों के खिलाफ भी उन्होंने लड़ाई लड़ी थी। वो एक समाज सुधारक भी थे। वो एक आध्यात्मिक गुरु भी थे। वो एक संत भी थे। वो एक लोक-नेता भी थे। उनके जीवन में हमें साहस, शौर्य के जितने महान दर्शन होते हैं, उतना ही ऊंचा उनका दार्शनिक और बौद्धिक चिंतन भी था। गोविंद गुरु का वो चिंतन, वो बोध आज भी उनकी ‘धूणी’ के रूप में मानगढ़ धाम में अखंड रूप से प्रदीप्त हो रहा है। और उनकी ‘संप सभा’ देखिए शब्द भी कितना मार्मिक है ‘संप सभा’ समाज के हर तबके में संप भाव पैदा हो, इसलिए उनके ‘संप सभा’ के आदर्श आज भी एकजुटता, प्रेम और भाईचारा की प्रेरणा दे रहे हैं। उनके भगत अनुयायी आज भी भारत की आध्यात्मिकता को आगे बढ़ा रहे हैं।

साथियों,

17 नवम्बर 1913 को मानगढ़ में जो नरसंहार हुआ, वो अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता की पराकाष्ठा थी। एक ओर आज़ादी में निष्ठा रखने वाले भोलेभाले आदिवासी भाई-बह़न, तो दूसरी ओर दुनिया को गुलाम बनाने की सोच। मानगढ़ की इस पहाड़ी पर अंग्रेजी हुकूमत ने डेढ़ हजार से ज्यादा युवाओं, बुजुर्गों, महिलाओं को घेरकर के उन्हें मौत के घाट उतार दिया। आप कल्पना कर सकते हैं, एक साथ डेढ़ हजार से ज्यादा लोगों की जघन्य हत्या करने का पाप किया गया। दुर्भाग्य से आदिवासी समाज के इस संघर्ष और बलिदान को आज़ादी के बाद लिखे गए इतिहास में जो जगह मिलनी चाहिए थी, वो नहीं मिली। आज़ादी के अमृत महोत्सव में आज देश उस कमी को पूरा कर रहा है। आज देश उस दशकों पहले की भूल को सुधार रहा है।

साथियों,

भारत का अतीत, भारत का इतिहास, भारत का वर्तमान और भारत का भविष्य आदिवासी समाज के बिना पूरा नहीं होता। हमारी आजादी की लड़ाई का भी पग-पग, इतिहास का पन्ना-पन्ना आदिवासी वीरता से भरा पड़ा है। 1857 की क्रांति से भी पहले, विदेशी हुकूमत के खिलाफ आदिवासी समाज ने संग्राम का बिगुल फूंका थे। 1780, आप सोचिए 1857 से भी पहले 1780 में संथाल में तिलका मांझी के नेतृत्व में ‘दामिन सत्याग्रह’ लड़ा गया था ‘दामिन संग्राम’ लड़ा गया था। 1830-32 में बुधू भगत के नेतृत्व में देश ‘लरका आंदोलन’ का गवाह बना। 1855 में आजादी की यहीं ज्वाला ‘सिधु कान्हू क्रांति’ के रूप में जल उठी। इसी तरह, भगवान बिरसा मुंडा ने लाखों आदिवासियों में क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित की। वो बहुत कम आयु में चले गए। लेकिन जो उनकी ऊर्जा, उनकी देशभक्ति और उनका हौसला ‘ताना भगत आंदोलन’ जैसी क्रांतियों का आधार बना।

साथियों,

गुलामी के शुरुआती सदियों से लेकर 20वीं सदी तक, आप ऐसा कोई भी कालखंड नहीं देखेंगे, जब आदिवासी समाज ने स्वाधीनता संग्राम की मशाल को थामे न रखा हो। आंध्र प्रदेश में ‘अल्लूरी सीताराम राम राजू गारू’ के नेतृत्व में आदिवासी समाज ने ‘रम्पा क्रांति’ को एक नई धार दे दी थी। और राजस्थान की ये धरती तो उससे भी बहुत पहले ही आदिवासी समाज की देशभक्ति की गवाह रही है। इसी धरती पर हमारे आदिवासी भाई-बहन महाराणा प्रताप के साथ उनकी ताकत बनकर खड़े हुऐ थे।

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साथियों,

हम आदिवासी समाज के बलिदानों के ऋणी हैं। हम उनके योगदानों के ऋणी हैं। इस समाज के, इस प्रकृति से लेकर पर्यावरण तक, संस्कृति से लेकर परम्पराओं तक, भारत के चरित्र को सहेजा और सँजोया है। आज समय है कि देश इस ऋण के लिए, इस योगदान के लिए आदिवासी समाज की सेवा कर उनका धन्यवाद करे। बीते 8 वर्षों से यही भावना हमारे प्रयासों को ऊर्जा देती रही है। आज से कुछ दिन बाद ही, 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर देश ‘जन-जातीय गौरव दिवस’ मनाएगा। आदिवासी समाज के अतीत और इतिहास को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आज देश भर में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित विशेष म्यूज़ियम बनाए जा रहे हैं। जिस भव्य विरासत से हमारी पीढ़ियाँ वंचित रह रहीं थीं, वो अब उनके चिंतन का, उनकी सोच का और उनकी प्रेरणाओं का हिस्सा बनेगी।

भाइयों-बहनों,

देश में आदिवासी समाज का विस्तार और उसकी भूमिका इतनी बड़ी है कि हमें उसके लिए समर्पित भाव से काम करने की जरूरत है। राजस्थान और गुजरात से लेकर पूर्वोत्तर और ओडिशा तक, विविधता से भरे आदिवासी समाज की सेवा के लिए आज देश स्पष्ट नीतियों के साथ काम कर रहा है। ‘वनबंधु कल्याण योजना’ के जरिए आज जनजातीय आबादी को पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों से जोड़ा जा रहा है। आज देश में वनक्षेत्र भी बढ़ रहे हैं, वन-संपदा भी सुरक्षित की जा रही हैं, और साथ ही आदिवासी क्षेत्र डिजिटल इंडिया से भी जुड़ रहे हैं। पारंपरिक कौशल के साथ-साथ आदिवासी युवाओं को आधुनिक शिक्षा के भी अवसर मिलें, इसके लिए ‘एकलव्य आवासीय विद्यालय’ भी खोले जा रहे हैं। यहां इस कार्यक्रम के बाद मैं जांबूघोड़ा जा रहा हूं जहां गोविंद गुरु जी नाम पर बनी यूनिवर्सिटी के भव्य प्रशासनिक कैंपस का लोकार्पण करूंगा।

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साथियों,

आज आपके बीच आया हूं, तो एक और बात भी मेरा बताने का मन करता है। आपने देखा होगा, कल शाम ही मुझे, अहमदाबाद से उदयपुर ब्रॉडगेज लाइन पर चलने वाली ट्रेन को हरी झंडी दिखाने का अवसर मिला है। 300 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन का ब्रॉड गेज में बदलना राजस्थान के हमारे भाइयों और बहनों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस परिवर्तन से राजस्थान के अनेक आदिवासी क्षेत्र, गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों से जुड़ जाएंगे। इस नई रेल लाइन से राजस्थान के टूरिज्म को भी बड़ा लाभ होगा, यहां के औद्योगिक विकास में भी मदद मिलेगी। इससे युवाओं के लिए रोजगार की भी नई संभावनाएं बनेंगी।

साथियों,

अभी यहां मानगढ़ धाम के संपूर्ण विकास की चर्चा भी हुई है। मानगढ़ धाम के भव्य विस्तार की प्रबल इच्छा हम सभी में है। इसके लिए राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। मेरा यहां चारों राज्य और सरकारों से आग्रह है कि इस दिशा विस्तृत चर्चा करें, एक रोडमैप तैयार करें, ताकि गोविंद गुरू जी का ये स्मृति स्थल भी पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाए। मुझे विश्वास है, मानगढ़ धाम का विकास, इस क्षेत्र को नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का एक जागृत स्थल बनाएगा। और मैं ये विश्वास दिलाता हूं, क्योंकि कई दिनों से हमारी चर्चा चल रही है। जितना जल्दी, जितना ज्यादा क्षेत्र हम निर्धारित करेंगे, तो फिर सब मिलकर के और भारत सरकार के नेतृत्व में हम इसका और अधिक विकास कर सकते हैं। इसको कोई राष्ट्रीय स्मारक कह सकता है, कोई संकलित व्यवस्था कह सकता है, नाम तो कोई भी दे देंगे, लेकिन भारत सरकार और इन चार राज्यों के जनजातीय समाज का सीधा संबंध है। इन चारों राज्यों और भारत सरकार को मिलकर के इसको और नई ऊँचाइयों पर ले जाना है, उस दिशा में भारत सरकार पूरी तरह कमिटेड है। मैं फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। गोविंद गुरू के श्री चरणों में प्रणाम करता हूं, उनकी ध्वनि से मिली हुई प्रेरणा से आदिवासी समाज के कल्याण का संकल्प लेकर के हम सभी निकलें, यही मेरी आप सब से प्रार्थना है।

बहुत-बहुत धन्यवाद!

 

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PM hails India’s 100 GW Solar PV manufacturing milestone & push for clean energy
August 13, 2025

The Prime Minister Shri Narendra Modi today hailed the milestone towards self-reliance in achieving 100 GW Solar PV Module Manufacturing Capacity and efforts towards popularising clean energy.

Responding to a post by Union Minister Shri Pralhad Joshi on X, the Prime Minister said:

“This is yet another milestone towards self-reliance! It depicts the success of India's manufacturing capabilities and our efforts towards popularising clean energy.”