“लाभार्थियों को सरकार के पीछे भागने की जरूरत नहीं है, बल्कि सरकार को लाभार्थियों तक पहुंचना चाहिए”
“विकसित भारत संकल्प यात्रा मेरे लिए एक परीक्षा है। मैं लोगों से जानना चाहता हूं कि अपेक्षित परिणाम हासिल हुए हैं या नहीं”
"सफल योजनाएं नागरिकों में स्वामित्व की भावना पैदा करती हैं"
"एक बार विकसित भारत के बीज बोए जाने के बाद, अगले 25 वर्षों का परिणाम हमारी आने वाली पीढ़ियों को मिलेगा"
"विकसित भारत, सभी कठिनाइयों से मुक्ति का मार्ग"

सरकार से जुड़े हुए और राजनीतिक और सामाजिक कामों से जुड़े हुए देश के सभी लोग ये विकसित भारत संकल्प यात्रा को सफल बनाने के लिए समय दे रहे हैं, जा रहे हैं, तो यहां के सांसद के नाते मेरा भी दायित्व बनता था कि मुझे भी उस कार्यक्रम में समय देना चाहिए। तो मैं एक सांसद के रूप में, आपके सेवक के रूप में आज सिर्फ इसमें आप ही तरह हिस्सा लेने के लिए आया हूं।

हमारे देश में सरकारें तो बहुत आई, योजनाएं भी बहुत बनीं, बातें भी बहुत हुई, बड़ी-बड़ी बातें हुई और उन सबका जो अनुभव था, जो निचोड़ था जो मुझे लगा कि जो देश का सबसे ध्यान देने वाला काम जो है, वो ये है कि सरकार जो योजना बनाती है, जिसके लिए बनाती है, जिस काम के लिए बनाती है, वो सही समय पर बिना किसी परेशानियों के, वो योजना उस तक पहुंचे। अगर प्रधानमंत्री आवास योजना है, तो जिसकी झ़ुग्गी है, झोपड़ी है, कच्चा घर है, उसका घर बनना चाहिए। और इसलिए उसको सरकार के चक्कर काटने की जरूरत नहीं है, सरकार को सामने से जाकर के काम करना चाहिए। और जब से आपने मुझे ये काम दिया है तो अब तक करीब 4 करोड़ परिवारों को पक्का घर मिल चुका है। लेकिन अभी भी खबर मिलती है कि वहां कोई रह गया है, उस गांव में कोई रह गया है तो हमने तय किया कि भई फिर से हम एक बार देश भर में जाएं, जो सरकार की योजनाएं हैं, जिनको मिला हैं उनसे सुनें कि भई क्या-क्या मिला, कैसे मिला?, प्राप्त करने में कोई कठिनाई तो नहीं हुई, कोई रिश्वत तो नहीं देनी पड़ी, जितना तय था, उतना मिला कि कम मिला। एक बार जाएंगे तो इसका हिसाब-किताब भी हो जाएगा। तो ये विकसित भारत संकल्प यात्रा जो है ना, वो एक प्रकार से मेरी भी कसौटी है, मेरी भी examination है कि मैंने जो कहा था और जो मैं काम कर रहा था, मैं आपके मुंह से सुनना चाहता था और देश भर से सुनना चाहत हूं कि जैसा मैंने चाहा था वैसा हुआ है कि नहीं हुआ है। जिसके लिए होना चाहिए था, उसके लिए हुआ है कि नहीं हुआ है, जो काम होना चाहिए था, हुआ है कि नहीं हुआ है।

अब मैं अभी कुछ साथियों को मिला, जिन्होंने आयुष्मान कार्ड का फायदा उठाकर के गंभीर से गंभीर बिमारियों का इलाज करवाया है, उन्होंने एक्सीडेंट हो गया, हाथ-पैर टूट गए तो अस्पताल में जाकर के, मैंने उनको पूछा तो वो कह रहे थे कि साहब इतना खर्चा हम तो कहा से करते, जी लेते ऐसे ही। लेकिन जब आयुष्मान कार्ड आया तो हिम्मत आ गई, ऑपरेशन करवा दिया अब शरीर काम कर रहा है। अब उससे मुझे तो आशीर्वाद मिलता ही है, लेकिन जो सरकार में बाबू लोग हैं ना, अफसर लोग हैं, जो फाइल पर तो योजना को आगे बढ़ाते हैं, अच्छी योजना भी बनाते हैं, पैसे भी रवाना कर देते हैं, लेकिन वहां उनका काम पूरा हो जाता है कि चलो भई 50 लोगों को मिलना था, मिल गया, 100 लोगों को मिलना था, मिल गया, एक हजार गांव में जाना था, चला गया। लेकिन जब वो ये बात सुनता है कि उसने कभी फाइल पर काम किया था, उसके कारण काशी के फलाने मोहल्ले के, फलाने व्यक्ति की जिंदगी बच गई तो वो जो अफसर होता है, ना उसका भी काम करने का उत्साह अनेक गुना बढ़ जाता है। उसको संतोष मिलता है, जब तब वो कागज पर काम करता है, उसको लगता है मैं सरकारी काम कर रहा हूं। लेकिन जब उस काम का फायदा किसी को मिला है, उसको जब वो खुद देखता है, खुद सुनता है तो उसका काम करने का उत्साह बढ़ जाता है। और इसलिए मैंने देखा है कि विकसित भारत संकल्प यात्रा जहां-जहां गई है, वहां पर सरकारी अफसरों पर इतना सकारात्मक प्रभाव हुआ है, उनको अपने काम का संतोष होने लगा है। अच्छा भई ये योजना बनीं, मैंने तो फाइल बनाई थी, लेकिन क्या एक गरीब विधवा के घर में जीवन ज्योति विवाह का पैसा पहुंच गया, मुसीबत की जिंदगी में उसको इतनी बड़ी सहायता मिल गई, तब उसको लगता है कि अरे मैंने तो कितना बड़ा काम किया है। एक सरकारी मुलाजिम जब ये सुनता है तो उसको जीवन का एक नया संतोष मिलता है।

बहुत कम लोग हैं, जो इसकी ताकत समझते हैं कि ये विकसित भारत संकल्प यात्रा से हो क्या रहा है। जो बाबू लोग इस काम से जुड़े हैं, जब सुनते हैं, जब मैं भी यहां बैठा हूं, सुनता हूं कि मोदी जी मुझे बहुत अच्छा लगा मेरे पति का स्वर्गवास हो गया था, अचानक मुझे खबर आई 2 लाख रूपया मिल गया। कोई बहन कहती है कि बचपन से ही हम तो धुएं में जिंदगी गुजारते थे, गैस आ गई, जिंदगी बदल गई। उससे बड़ा जो सबसे बड़ी बात की बहन ने, उसने कहा गरीब और अमीर का भेद मिट गया। गरीबी हटाओ नारा देना एक बात है, लेकिन एक गरीब कहता है कि मेरे घर में गैस का चूल्हा आते ही गरीबी और अमीरी का भेद खत्म हो गया।

जब वो कहता है कि मैं पक्के घर में रहने गया तो मेरा आत्मविश्वास इतना बढ़ गया कि मेरे बच्चे सम्मान के साथ स्कूल, कॉलेज में अपने दोस्तों के सामने खड़े रहने लगें। झोपड़ी में रहते थे, बच्चे शर्मिंदगी महसूस करते थे, कच्चे घर में रहते थे, बच्चे शर्मिंदगी महसूस करते थे, दबे हुए रहते थे, आत्मविश्वास नहीं था, पक्का घर मिलते ही दीवारें नहीं, पक्की छत नहीं, जिंदगी आत्मविश्वास से भर गई है। अब वो दूर से मकान देखने से पता नहीं चलता है, बैंक से चेक गया इसलिए पता नहीं चलता है, जब उस लाभार्थी के मुंह से सुनते हैं ना, तब पता चलता है चलो भई जीवन धन्य हो गया, किसी की जिंदगी में बदलाव आ गया।

अब मैं देख रहा था, हमारे गुप्ता जी बोलना बंद ही नहीं कर रहे थे, क्यों? उनका मन इतना उत्साह से भर गया था कि इतनी योजनाओं का लाभ मिला सामने से किसी को 10 हजार रूपया बैंक से मिल जाए, साहूकार से भी पैसा लेने में दम उखड़ जाता है, ये बैंक सामने से पैसा दें, तब उसका विश्वास बढ़ जाता है, ये मेरा देश है, ये बैंक मेरी है। और मैं चाहता हूं हिंदुस्तान के हर व्यक्ति को लगना चाहिए कि ये रेलवे मेरी है, ये अस्पताल मेरा है, ये अफसर, ये ऑफिस सब मेरा है, ये देश मेरा है। ये भाव जब जगता है, तो देश के लिए कुछ करने की इच्छा भी जग जाती है। और इसीलिए ये जो प्रयास है, ना वो बीज बो रहा है। बीज इस बात का बोज रहा है कि भई हमारे मां-बाप को मुसीबतें झेलनी पड़ी, हमें भी जिंदगी में मुसीबतें झेलनी पड़ी, लेकिन हमें अपने बच्चों को मुसीबत में जीने के लिए मजबूर नहीं करना है। हम जो मुसीबतों से गुजरे, कोई मां-बाप नहीं चाहता है कि उसके बच्चे भी उसी मुसीबत से गुजरे। खुद पढ़ नहीं पाएं, अशिक्षित रहें, लेकिन कोई मां-बाप नहीं चाहता है कि उसके बच्चे अशिक्षित रहे। और जब इन योजनाओं की सारी जानकारियां, उसको मिलती हैं तो उसको लगता है कि यहीं समय है, यहीं समय है, हम भी कुछ करें। और जब 140 करोड़ लोगों के मन में लगता है ना, ये समय है, तो देश आगे बढ़कर रहेगा।

देश को आजादी कैसे मिली, सारे देश में एक वातावरण बन गया था, कोई चरखा चलाता था, कोई पूछता था, क्यों चला रहे हो चरखा? तो बोले आजादी के लिए, कोई पढ़ाई छोड़कर के भारत माता की जय करके निकल पड़ता था, पुलिस के डंडे खाता था, लोग पूछते थे, यार क्यों मर रहे हो? बोले देश की आजादी के लिए। कोई बुजुर्ग की सेवा करता था, कोई पूछता था, अरे क्या कर रहे हो भई? नहीं बोले आजादी के लिए कर रहा हूं, कोई खादी पहनता था, क्यों कर रहे हो? आजादी के लिए। हिंदुस्तान का हर व्यक्ति कहने लगा कि मैं आजादी के लिए काम कर रहा हूं, उपवास करता हूं तो भी आजादी के लिए, मेहनत करता हूं तो भी आजादी के लिए, बच्चों को पढ़ाता हूं तो भी आजादी के लिए, सफाई का काम करता हूं तो भी आजादी के लिए, तकली चलाता हूं तो भी आजादी के लिए, आजादी का ऐसा बुखार चढ़ गया, हर मन में विश्वास पैदा हो गया, अंग्रेजों को भागना पड़ा।

देश उठ खड़ा हुआ। अगर हम इस समय 140 करोड़ देशवासी, इसी मिजाज से भर जाएं, बस अब, अब हमें देश को हमें आगे ले जाना है, ऐसे नहीं रहना है। हर एक की जिंदगी बदलनी है, हर एक की शक्ति का सम्मान होना चाहिए, शक्ति का उपयोग होना चाहिए, तो देश को आगे बढ़ना चाहिए। एक बार ये मन में ये बीज बो रहे हैं ना आज 25 साल में तो ऐसा वटवृक्ष बनेगा 2047 में विकसित भारत बन जाएगा। और बच्चों को फल मिलना शुरू हो जाएगा। ये वटवृक्ष की छाया आप ही के बच्चों को मिलने वाली है और इसलिए विकसित भारत बनाने के लिए हर नागरिक का मिजाज बनना चाहिए, मन बनना चाहिए, संकल्प बनना चाहिए और अगर मन बन जाता है तो मंजिल दूर नहीं होती है। और यह विकसित भारत संकल्प यात्रा, ये एक प्रकार से देश का काम है ये किसी राजनीतिक दल का काम नहीं है और मैं मानता हूं जो इस काम को करता है ना वो बहुत पवित्र काम करता है, वो दूर से देख रहा है, अखबार में पढ़ रहा है, उसको समझना चाहिए कि मेरी गाड़ी छूट रही है, मैं मौका छोड़ रहा हूं, मैं भले देश का प्रधानमंत्री हूं लेकिन मेरा बड़ा उमंग है आज आपके बीच आने का, मुझे बड़ा आनंद है कि मैं आज विकसित भारत संकल्प यात्रा का हिस्सा बना हूँ।

मैं भी संतोष करूंगा कि हां भई यह काम मैंने भी किया है। आप में से हर किसी को करना चाहिए। अगले गांव में जहां भी यात्रा जाने वाली हो, शहर में जिस वार्ड में जाने वाली हो भव्य स्वागत होना चाहिए, सबके सब लोग आने चाहिए, हर किसी को सुनना चाहिए, योजनाओं का लाभ लेने के लिए आगे आना चाहिए और जिसको योजना का लाभ मिला है, उसको आत्मविश्वास के साथ इसको बताना चाहिए। अच्छी बात बताने से भी अच्छाई का वातावरण पैदा हो जाता है। और इसलिए मैं चाहता हूं कि विकसित भारत यात्रा ये बहुत बड़ा सपना है, बहुत बड़ा संकल्प है और अपने ही प्रयासों से इस संकल्प को हमें सिद्ध करना है। मुझे बहुत अच्छा लगा, सबसे मिलने का मुझे मौका मिला, आपसे भी सुनने का मौका मिला, लेकिन हम सब प्रयास करें, इस यात्रा को और सफल करें। देशवासियों के मन में भाव पैदा करें, आत्मविश्वास पैदा करें। और हमने देखा है, घर में भी जब पैसे नहीं होते हैं, तकलीफ से गुजारा करते हैं, तो कई काम नहीं कर पाते हैं, इच्छा हो तो भी नहीं कर पाते, मन करता है कि चलो बच्चों के लिए अच्छा शर्ट लाकर के दे दूं, नहीं ला सकते हैं क्यों? पैसे कम है। जैसे घर में होता है, ना वैसे ही देश में होता है, देश के पास भी पैसे होने चाहिए, पैसे होंगे तो हर नागरिक इच्छा पूरी करेगा। आज 4 करोड़ गरीबों को घर मिल गया, जो बच गए हैं, उनको भी आगे मोदी देने की गारंटी देता है। जिसको आयुष्मान कार्ड मिल गया, उसकी मुफ्त में दवाई हो गई। जिसको गैस के चूल्हे की जरूरत थी, सरकार सब्सिडी देकर भी गैस का चूल्हा दे रही है क्यों? सरकार के पास देने की ताकत आई है। भारत विकसित हो जाएगा ना, 25 साल में, तो ये मुसीबतों का नामोनिशान नहीं रहेगा, नामोनिशान नहीं रहेगा, हम मुसीबतों से मुक्त हो जाएंगे।

और मुसीबतों से मुक्ति का ये मार्ग है- विकसित भारत का संकल्प पूरा करना। और इसलिए मैं मेरे काशीवासियों को विश्वास दिलाता हूं कि आपके सेवक के नाते, आपके सांसद के नाते तो मैं काम करूंगा, लेकिन आपने मुझे देश का काम दिया है, उसमें भी महादेव के आशीर्वाद से मैं कभी पीछे नहीं रहूंगा। महादेव की हम सब पर कृपा बनी रहे और ये यात्रा हमारे काशी में तो बहुत सफल होनी चाहिए जी, ढीली-ढाली नहीं। कार्यक्रम में ज्यादा से ज्यादा, एक परिवार का एक भी व्यक्ति ऐसा ना हो कि जो यात्रा में ना गया हो। जाए घंटा, दो घंटा, उस कार्यक्रम का हिस्सा बने, इसके लिए आप सब मदद कीजिए और विकसित भारत के संकल्प को और मजबूत कीजिए, आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

नमस्कार।

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!