"इस बार 15 अगस्त को हम एक ऐसा स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे, जिसमें देश के राष्‍ट्रपति, उपराष्‍ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, प्रधानमंत्री सभी का जन्म आजादी के बाद हुआ है और वे सभी बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं”
"उपराष्ट्रपति के रूप में, आपने युवा कल्याण के लिए काफी समय दिया है"
"आपके प्रत्येक शब्द को ध्यान से सुना गया, पसंद किया गया, और उसे गंभीरता से लिया गया... और कभी भी उसका विरोध नहीं किया गया"
"श्री एम. वेंकैया नायडु जी के संक्षिप्त वाक्य भी हाजिरजवाबी भरे होते हैं"
“आपने यह साबित किया है कि अगर हमारे भीतर देश के लिए भावनाएं हों, अपनी बातों को कहने की कला हो, भाषायी विविधता में विश्वास हो तो भाषा और क्षेत्र कभी भी आड़े नहीं आते हैं”
"वेंकैया जी के बारे में एक सराहनीय बात उनका भारतीय भाषाओं के प्रति जुनून है"
"आपने कितने ही ऐसे निर्णय लिए हैं जो उच्च सदन की प्रगति के लिए याद किए जाएंगे"
"मैं आपके मानकों में लोकतंत्र की परिपक्वता देखता हूं"

सदन के सभापति और देश के उपराष्ट्रपति आदरणीय श्री वेंकैया नायडू नायडू जी को उनके कार्यकाल की समाप्‍ति पर उन्‍हें धन्‍यवाद देने के लिए उपस्‍थित हुए हैं। ये इस सदन के लिए बहुत ही भावुक पल है। सदन के कितने ही ऐतिहासिक पल आपकी गरिमामयी उपस्थिति से जुड़े हुए हैं। फिर भी अनेक बार आप कहते रहे हैं I have retired from politics but not tired from public life और इसलिए इस सदन को नेतृत्‍व देने की आपकी जिम्‍मेदारी भले ही पूरी हो रही हो लेकिन आपके अनुभवों का लाभ भविष्‍य में सुदीर्घ काल तक देश को मिलता रहेगा। हम जैसे अनेक सार्वजनिक जीवन के कार्यकर्ताओं को भी मिलता रहेगा।

आदरणीय सभापति महोदय,

आजादी के अमृत महोत्सव में आज जब देश अपने अगले 25 वर्षों की नई यात्रा शुरू कर रहा है तब देश का नेतृत्व भी एक तरह से एक नए युग के हाथों में है। हम सब जानते हैं कि इस बार हम एक ऐसा 15 अगस्त मना रहे हैं जब देश के राष्‍ट्रपति, उपराष्‍ट्रपति, स्पीकर, प्रधानमंत्री सबके सब वो लोग हैं जो आजाद भारत में पैदा हुए हैं और सबके सब बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं। मैं समझता हूं इसका अपना एक सांकेतिक महत्व है। साथ में, देश के नए युग का एक प्रतीक भी है।

आदरणीय सभापति महोदय,

आप तो देश के एक ऐसे उपराष्ट्रपति हैं जिसने अपनी सभी भूमिकाओं में हमेशा युवाओं के लिए काम किया है। आपने सदन में भी हमेशा युवा सांसदों को आगे बढ़ाया, उन्‍हें प्रोत्‍साहन दिया। आप लगातार युवाओं के संवाद के लिए यूनिवर्सिटीज और इंस्टीट्यूशंस लगातार जाते रहे हैं। नई पीढ़ी के साथ आपका एक निरंतर कनेक्ट बना हुआ है और युवाओं को आपका मार्गदर्शन भी मिला है और युवा भी आपको मिलने के लिए हमेशा उत्सुक रहे हैं। इन सभी संस्‍थानों में आपकी लोकप्रियता भी बहुत रही है। मुझे बताया गया कि vice president के रूप में आपने सदन के बाहर जो भाषण दिए, उनमें करीब करीब 25 प्रतिशत युवाओं के बीच में रहे हैं, ये भी अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।

आदरणीय सभापति महोदय,

व्यक्तिगत रूप से मेरा ये सौभाग्य रहा है कि मैंने बड़ी निकट से आपको अलग-अलग भूमिकाओं में देखा है। बहुत सारी आपकी भूमिका ऐसी भी रहीं कि जिसमें आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करने का भी मुझे सौभाग्य मिला। पार्टी कार्यकर्ता के रूप में आपकी वैचारिक प्रतिबद्धता रही हो। एक विधायक के रूप में आपका काम काज हो। सांसद के रूप में सदन में आपकी सक्रियता हो। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में आपका सांघ्रणिक कौशल्य और लीडरशिप की बात हो। कैबिनेट मंत्री के रूप में आपकी मेहनत, नवाचार का आपका प्रयास और उससे प्राप्त सफलताएं देश के लिए बहुत उपकारक रही हैं या फिर उपराष्ट्रपति और सदन में सभापति के रूप में आपकी गरिमा और आपकी निष्ठा मैंने आपको अलग अलग जिम्मेदारियों में बड़े लगन से काम करते हुए देखा है। आपने कभी भी किसी भी काम को बोझ नहीं माना। आपने हर काम में नए प्राण फूंकने का प्रयास किया है। आपका जज्‍बा, आपकी लगन हम लोगों ने निरंतर ये देखी है। मैं इस सदन के जरिये प्रत्येक माननीय सांसद और देश के हर युवा से कहना चाहूंगा कि वो समाज, देश और लोकतंत्र के बारे में आपसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। लिसनिंग, लर्निंग, लीडींग, कनेक्टिंग, कम्युनिकेटिंग, चेजिंग और रिफ्लेक्टिंग, रिकनेक्‍टिंग जैसी किताबें आपके बारे में बहुत कुछ बताती हैं। आपके ये अनुभव हमारे युवाओं को गाइड करेंगे और लोकतंत्र को मजबूत करेंगे।

आदरणीय राष्ट्रपति महोदय,

आपकी किताबों का जिक्र मैंने इसलिए किया क्योंकि उनके टाइटल में आपकी वो शब्द प्रतिभा झलकती है जिसके लिए आप जाने जाते हैं। आपके वन लाइनर्स विक लाइनर्स होते हैं और विन लाइनर्स भी होते हैं। यानी उसके बाद कुछ और कहने की जरूरत ही नहीं रह जाती। Your each word is heard, prefer and revert and never countered. कैसे कोई अपनी भाषा की ताकत के रूप में और सहजता से इस सामर्थ्य के लिए जाना जाए और कौशल से स्थितियों की दिशा मोड़ने का सामर्थ्‍य रखे, सचमुच में आपके इस सामर्थ्‍य को मैं बधाई देता हूं।

साथियों,

हम जो भी कहते हैं वो महत्‍वपूर्ण तो होता ही है लेकिन जिस तरीके से कहते हैं उसकी अहमियत ज्यादा होती है। किसी भी संवाद की सफलता का पैमाना यही है कि उसका गहरा इंपैक्‍ट हो, लोग उसे याद रखें और जो भी कहें उसके बारे में लोग सोचने के लिए मजबूर हों, अभिव्‍यक्‍ती की इस कला में वेंकैया जी की दक्षता इस बात से हम सदन में भी और सदन के बाहर देश के सभी लोग भली भांति परिचित हैं। आपकी अभिव्यक्ति का अंदाज जितना बेबाक है, उतना ही बेजोड़ भी है। आपकी बातों में गहराई भी होती है, गंभीरता भी होती है। वाणी में विज भी होता है और वेट भी होता है। Warmth भी होता है और Wisdom भी होता है। संवाद का आपका तरीका ऐसे ही एक किसी बात के मर्म को छू जाता है और सुनने में मधुर भी लगता है।

आदरणीय सभापति महोदय,

आपने दक्षिण में छात्र राजनीति करते हुए अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। तब लोग कहते थे कि जिस विचारधारा से आप जुड़े थे। उसका और उस पार्टी का निकट भविष्य में तो दक्षिण में कोई सामर्थ्य नजर नहीं आता है। लेकिन आप एक सामान्य विद्यार्थी कार्यकर्ता से यात्रा शुरू करके और दक्षिण भारत से आते हुए उस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के शीर्ष पद तक पहुंचे। ये आपकी एक अवीरत विचारनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा और कर्म के प्रति समर्पण भाव का प्रतीक है। अगर हमारे पास देश के लिए भावनाएं हों, बात कहने की कला हो, भाषाई विविधता में आस्था हो, तो भाषा क्षेत्र हमारे लिए कभी भी दिवार नहीं बनती हैं। ये आपने सिद्ध किया है।

आदरणीय सभापति महोदय,

आपकी कही एक बात बहुत लोगों को याद होगी, मुझे तो विशेष रूप से याद है। मैंने हमेश सुना है आप मात्र भाषा को लेकर के बहुत ही touchy रहे हैं, बड़े आग्रही रहे हैं। लेकिन उस बात को कहने का आपका अंदाज भी बड़ा खुबसूरत है। जब आप कहते हैं कि मात्रभाषा आंखों की रौशनी की तरह होती है और आप आगे कहते हैं और दूसरी भाषा चश्मे की तरह होती है। ऐसी भावना हृदय की गहराई से ही बाहर आती है। वैंकेया जी की मौजूदगी में सदन की कार्रवाई के दौरान हर भारतीय भाषा को विशिष्ट अहमियत दी गई है। आपने सदन में सभी भारतीय भाषाओं को आगे बढ़ाने के लिए काम किया। सदन में हमारी सभी 22 Schedule language में कोई भी माननीय सदस्य से बोल सकता है उसका इंतजाम आपने किया। आपकी ये प्रतिभा, आपकी निष्ठा आगे भी सदन के लिए एक गाइड के रूप में हमेशा हमेशा काम करेगी। कैसे संसदीय और शिष्ट तरीके से भाषा कि मर्यादा में कोई भी अपनी बात प्रभावी ढंग से कह सकता है इसके लिए आप प्रेरणापुंज बने रहेंगे।

आदरणीय सभापति महोदय,

आपकी नेतृत्व क्षमता, आपके अनुशासन ने इस सदन की प्रतिबद्धता और प्रोडक्टिविटी को नई ऊंचाई दी है। आपके कार्यकाल के वर्षों में राज्यसभा की प्रोडक्टिविटी 70 पर्सेंट बढ़ी है। सदन में सदस्यों की उपस्थिति बढ़ी है। इस दौरान करीब करीब 177 बिल पास हुए या उन पर चर्चा हुई जो अपने आपमें किर्तिमान हैं। आपके मार्गदर्शन में ऐसे कितने ही कानून बने हैं, जो आधुनिक भारत की संकल्पना को साकार कर रहे हैं। आपने कितने ही ऐसे निर्णय लिए हैं। जो अपर हाऊस की अपर जर्नी के लिए याद किए जाऐंगे। सचिवालय के काम में और अधिक efficiency लाने के लिए भी आपने एक समिति का भी गठन किया। इसी तरह राज्यसभा सचिवालय को सुव्यवस्थित करना, Information Technology को बढ़ावा देना, paperless काम के लिए ई-आफिस सिस्टम को लागु करना, आपके ऐसे कितने ही काम हैं जिनके जरिये उच्च् सदन को एक नई ऊंचाई मिली है।

आदरणीय सभापति महोदय,

हमारे यहां शास्त्रों में कहा गया है। न स सभा यत्र न सन्ति वृद्धा न ते वृद्धा ये न वदन्ति धर्मम् ! अर्थात जिस सभा में अनुभवी लोग होते हैं। वहीं सभा होती है और अनुभव लोग वही हैं जो धर्म यानि कर्तव्य की सिख दें। आपने मार्गदर्शन में राज्यसभा में इन मानकों को पूरी गुणवत्ता से पूरा किया है। आप माननीय सदस्यों को निर्देश भी देते थे और उन्हें अपने अनुभवों का लाभ भी देते थे और अनुशासन को ध्यान में रखते हुए प्यार से डांटते भी थे। मुझे विश्वास है कि किसी भी सदस्य ने आपके किसी भी शब्द को कभी अन्यथा नहीं लिया। ये पूंजी तब पैदा होती है। जब व्यक्तिगत जीवन में आप उन आदर्शों और मानकों का पालन करते हैं। आपने हमेशा इस बात पर बल दिया है कि संसद में व्यवधान एक सीमा के बाद सदन की अवमानना के बराबर होता है। मैं आपके इन मानकों में लोकतंत्र की परिपक्वता को देखता हूं। पहले समझा जाता था कि अगर सदन में चर्चा के दौरान शोरगुल होने लगे तो कार्यवाही को स्थगित कर दिया जाता है। लेकिन आपने संवाद, संपर्क और समन्वय के जरिये न सिर्फ सदन को संचालित किया बल्कि प्रोडक्टिव भी बनाया। सदन की कार्यवाही के दौरान जब सदस्यों के बीच कभी टकराव की स्थिति पैदा होती थी तो आपसे बार – बार सुनने को मिलता था “let the Government propose, let the opposition oppose and let the house dispose.” इस सदन को दूसरे सदन से आए विधेयकों पर निश्चित रूप से सहमति या असहमति का अधिकार है। यह सदन उन्हें पास कर सकता है, रिजेक्ट कर सकता है, या amend कर सकता है। पर उन्हें रोकने की, बाधित करने की परिकल्पना हमारे लोकतंत्र में नहीं है।

आदरणीय सभापति महोदय,

हमारी तमाम सहमतियों असहमतियों के बावजूद आज आपको विदाई देने के लिए सदन के सभी सदस्य एक साथ उपस्थित हैं। यही हमारे लोकतंत्र की खुबसूरती है। ये आपके लिए इस सदन के सम्मान का उदाहरण है। मैं आशा करता हूं कि आपके कार्य, आपके अनुभव आगे सभी सदस्यों को जरूर प्रेरणा देंगे। अपने विशिष्ट तरीके से आपने सदन चलाने के लिए ऐसे मानदंड स्थापित किए हैं जो आगे इस पद पर आसीन होने वालों को प्रेरित करते रहेंगे। जो legacy आपने स्थापित की है, राज्यसभा उसका अनुसरण करेगी, देश के प्रति अपने जवाबदेही के अनुसार कार्य करेगी। इसी विश्वास के साथ आपको पूरे सदन की तरफ से, मेरी तरफ से अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं और आपने देश के लिए जो कुछ भी किया है, इस सदन के लिए जो कुछ भी किया है इसके लिए सबकी तरफ से ऋण स्वीकार करते हुए मैं आपका धन्यवाद करता हूं। बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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