‘उत्‍कल केसरी’ के जबरदस्‍त योगदान को याद किया
स्‍वाधीनता संग्राम में ओडिशा के योगदान के लिए शुक्रिया अदा किया
इतिहास लोगों के साथ विकसित हुआ, विदेशी विचार प्रक्रिया ने राजवंशों और महलों की कहानियों को इतिहास में बदल दिया: प्रधानमंत्री
ओडिशा का इतिहास समूचे भारत की ऐतिहासिक ताकत का प्रतिनिधित्‍व करता है

जय जगन्नाथ!

कार्यक्रम में मेरे साथ उपस्थित लोकसभामेंसिर्फ सांसद ही नहींसांसदीय जीवन में एक उत्तम सांसद किस प्रकार से काम कर सकता है ऐसा एक जीता जागता उदाहरण भाई भर्तृहरि महताब जी, धर्मेंद्र प्रधान जी, अन्य वरिष्ठ महानुभाव, देवियों और सज्जनों! मेरे लिए बहुत आनंद का विषय है कि मुझे ‘उत्कल केसरी’ हरेकृष्ण महताब जी से जुड़े इस कार्यक्रम में उपस्थित होने का अवसर मिला है। करीब डेढ़ वर्ष पहले हम सब ने ‘उत्कल केसरी’ हरेकृष्ण महताब जी की एक सौ बीसवीं जयंतीबहुत ही एक प्रेरणा के अवसर के रूप में मनाई थी। आज हम उनकी प्रसिद्ध किताब‘ओड़ीशा इतिहास’के हिन्दी संस्करण का लोकार्पण कर रहे हैं। ओडिशा का व्यापक और विविधताओं से भरा इतिहास देश के लोगों तक पहुंचे, ये बहुत आवश्यक है। ओड़िया और अँग्रेजी के बाद हिन्दी संस्करण के जरिए आपने इस आवश्यकता को पूरा किया है। मैं इस अभिनव प्रयास के लिएभाईभर्तृहरि महताब जीको, हरेकृष्ण महताब फ़ाउंडेशनकोऔरविशेष रूप सेशंकरलाल पुरोहित जी को, उनका धन्यवाद भी करता हूंऔर हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

साथियों,

भर्तृहरि जी ने इस पुस्तक के विमोचन के अनुरोध के साथ ही मुझे एक प्रति भीवो आकर के देके गये थे।मैं पढ़ तो नहीं पाया पूरी लेकिन जो सरसरी नजर से मैने उसको देखातो मन में विचार आया कि इसका हिन्दी प्रकाशन वाकई कितने सुखद संयोगों से जुड़ा हुआ है! ये पुस्तक एक ऐसे साल में प्रकाशित हुई है जब देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इसी साल उस घटना को भी सौ साल पूरे हो रहे हैं जब हरेकृष्ण महताब जी कॉलेज छोड़कर आज़ादी की लड़ाई से जुड़ गए थे। गांधी जी ने जब नमक सत्याग्रह के लिए दांडी यात्रा शुरू की थी, तो ओड़ीशा में हरेकृष्ण जी ने इस आंदोलन को नेतृत्व दिया था। ये भी संयोग है कि वर्ष 2023 में‘ओड़ीशा इतिहास’के प्रकाशन के भी 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। मुझे लगता है कि, जब किसी विचार के केंद्र में देशसेवा का, समाजसेवा का बीज होता है, तो ऐसे संयोग भीबनते ही चलतेहैं।

साथियों,

इस किताब की भूमिका में भर्तृहरि जी ने लिखा है कि-“डॉ हरेकृष्ण महताब जी वो व्यक्ति थे जिन्होंने इतिहास बनाया भी, बनते हुये देखा भी, और उसे लिखा भी”।वास्तव में ऐसे ऐतिहासिक व्यक्तित्व बहुत विरले होते हैं। ऐसे महापुरुष खुद भी इतिहास के महत्वपूर्ण अध्याय होते हैं। महताब जी ने आज़ादी की लड़ाई में अपना जीवन समर्पित किया, अपनी जवानी खपा दी।उन्होंने जेल कीजिंदगी काटी। लेकिन महत्वपूर्ण ये रहा कि आज़ादी की लड़ाई के साथ-साथ वो समाज के लिए भी लड़े! जात-पात, छूआछूत के खिलाफ आंदोलन में उन्होंने अपने पैतृक मंदिर कोभीसभी जातियों के लिए खोला, और उस जमाने में आज भी एक स्वयं के व्यवहार से इस प्रकार का उदाहरण प्रस्तुत करना आज शायद इसको हम इसकी ताकत क्या है अंदाज नहीं आएगा। उस यु्ग में देखेंगे तो अंदाज आएगा कि कितना बड़ा साहस होगा। परिवार में भी किस प्रकार के माहौल से इस निर्णय की ओर जाना पडा होगा।आज़ादी के बाद उन्होंने ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में बड़े बड़े फैसले लिए, ओडिशा के भविष्य को गढ़ने के लिए अनेक प्रयास किए। शहरों का आधुनिकीकरण, पोर्ट का आधुनिकीकरण, स्टील प्लांट, ऐसे कितने ही कार्यों में उनकीबहुतबड़ी भूमिका रहीहै।

साथियों,

सत्ता में पहुँचकर भी वो हमेशा पहलेअपने आप कोएक स्वाधीनता सेनानी हीमानते थे और वो जीवन पर्यंत स्वाधीनता सेनानी बने रहे।ये बात आज के जनप्रतिनिधियों को हैरत में डाल सकती है कि जिस पार्टी से वो मुख्यमंत्री बने थे, आपातकाल में उसी पार्टी का विरोध करते हुए वो जेल गए थे। यानि वो ऐसे विरले नेता थे जो देश की आज़ादी के लिए भी जेल गए और देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए भीजेल गये। और मेरा ये सौभाग्य रहा कि मैं आपातकाल समाप्त होने के बाद उन्हे मिलने के लिए ओड़िसा गया था। मेरी तो कोई पहचान नहीं थी। लेकिन उन्होंने मुझे समय दिया और मुझे बराबर याद है Prelunch time दिया था। तो स्वाभाविक है कि लंच का समय होते ही बात पूरी हो जायेगी लेकिन मैं आज याद करता हूं मुझे लगता है दो ढाई घंटे तक वो खाने के लिए नहीं गये और लंबे अरसे तक मुझे बहुत सी चीजे बताते रहे। क्योंकि मैं किसी व्यक्ति के लिए सारा रिसर्च कर रहा था। कुछ मेटीरियल कलेक्ट कर रहा था इस वजह से मैं उनके पास गया था। और मेरा यह अनुभव और मैं कभी-कभी देखता हूं के जो बड़े परिवार में बेटे संतान पैदा होते हैं। और उसमें भी खासकर राजनीतिक परिवारों में और बाद में उनकी संतानों को देखते हैं तो कभी कभी प्रशन उठता है कि भई ये क्या कर रहे हैं। लेकिन भर्तृहरि जी को देखने के बाद कभी नहीं लगता है। और उसका कारण हरेकृषण जी ने परिवार में जो शिष्ट, अनुशासन, संस्कार इसको भी उतना ही बल दिया तब जाकर के हमें भर्तृहरि जैसे साथी मिलते हैं।

साथियों,

ये हम भली-भांति जानते हैं कि मुख्यमंत्री के तौर पर ओडिशा के भविष्य की चिंता करते हुए भी ओडिशा के इतिहास के प्रति उनका आकर्षण बहुत अधिक था।उन्होंने इंडियन हिस्ट्री काँग्रेस में अहम भूमिका निभाई, ओडिशा के इतिहास को राष्ट्रीय पटल पर ले गए। ओडिशा में म्यूज़ियम हों, Archives हों, archaeology section हो, ये सब महताब जी की इतिहास दृष्टि और उनके योगदान से ही संभव हुआ।

साथियों,

मैंने कई विद्वानों से सुना है कि अगर आपने महताब जी की ओड़ीशा इतिहास पढ़ ली तो समझो आपने ओड़ीशा को जान लिया, ओडिशा को जी लिया। और ये बात सही भी है। इतिहास केवल अतीत का अध्याय ही नहीं होता, बल्कि भविष्य का आईना भी होता है। इसी विचार को सामने रखकर आज देश अमृत महोत्सव में आज़ादी के इतिहास को फिर से जीवंत कर रहा है। आज हम स्वाधीनता सेनानियों के त्याग और बलिदान की गाथाओं को पुनर्जीवित कर रहे हैं, ताकि हमारे युवा उसे न केवलजानें, बल्कि अनुभव करें।नया आत्मविश्वास के साथ बढ़ जाये। और कुछ कर गुजरने के मकसद से नए संकल्पों के साथ आगे बढ़े।स्वाधीनता संग्राम से जुड़ी ऐसी कितनी ही कहानियाँ हैं, जो देश के सामने उस रूप में नहीं आ सकीं।और जैसे अभी भर्तृहरि जी कह रहे थे। कि भारत का इतिहास राजमहलों का इतिहास नहीं है। भारत का इतिहास राजपथ का इतिहास नहीं है सिर्फ। जन जन के जीवन के साथ इतिहास अपने आप निर्माण हुआ है और तभी तो हजारों साल की इस महान परंपरा को लेकर के हम जिये होंगे। ये बाहरी सोच है कि जिसने राजपापठ और राजघरानों के आसपास की घटनाओं को ही इतिहास मान लिया। हम वो लोग नहीं हैं। पूरी रामायण और महाभारत देखिए। 80 प्रतिशत बातें सामान्य जन की हैं। और इसलिए हम लोगों के जीवन में जनसामान्य एक केंद्र बिंदु में रहा है।आज हमारे युवा इतिहास के उन अध्यायों पर शोधकरें, औरकर रहे हैं, उन्हें नई पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं। इन प्रयासों से कितनी प्रेरणाएं निकलकर सामने आएँगी, देश की विविधता के कितने रंगों से हम परिचित हो पाएंगे।

साथियों,

हरेकृष्ण जी ने आज़ादी की लड़ाई के ऐसे अनेकों अध्यायों से हमें परिचित कराया है, जिनसे ओडिशा को लेकर बोध और शोध के नए आयाम खुले हैं। पाइक संग्राम, गंजाम आंदोलन, और लारजा कोल्ह आंदोलन से लेकर सम्बलपुर संग्राम तक, ओड़ीशा की धरती ने विदेशी हुकूमत के खिलाफ क्रांति की ज्वाला को हमेशा नई ऊर्जा दी। कितने ही सेनानियों को अंग्रेजों ने जेलों में डाला, यातनाएं दीं, कितने ही बलिदान हुए ! लेकिन आज़ादी का जुनून कमजोर नहीं हुआ। संबलपुर संग्राम के वीर क्रांतिकारी सुरेंद्र साय, हमारे लिए आज भी बहुत बड़ी प्रेरणा हैं। जब देश ने गांधी जी के नेतृत्व में गुलामी के खिलाफ अपनी अंतिम लड़ाई शुरू की, तो भी ओडिशा और यहाँ के लोग उसमें बड़ी भूमिका निभा रहे थे। असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञाये एैसे आंदोलन थेजहां से लेकर नमक सत्याग्रह तक पंडित गोपबंधु, आचार्य हरिहर और हरेकृष्ण महताब जैसे नायक ओडिशा को नेतृत्व दे रहे थे। रमा देवी, मालती देवी, कोकिला देवी, रानी भाग्यवती, ऐसी कितनी ही माताएँ बहनें थीं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई को एक नई दिशा दी थी। इसी तरह, ओडिशा के हमारे आदिवासी समाज के योगदान को कौन भुला सकता है? हमारे आदिवासियों ने अपने शौर्य और देशप्रेम से कभी भी विदेशी हुकूमत को चैन से बैठने नहीं दिया।और आपको शायद पता होगामेरी ये कोशिश है कि हिनदुस्तान में आजादी की जंग में आदिवासी समाज का जो नेतृत्व रहा है भूमिका रही है। उससे सम्बंधित उन राज्यों में जहां पर उस प्रकार के भावी पीढ़ी के लिए एक म्यूजियम वहां बनना चाहिए। अनगिनत कहानियां हैं, अनगिनत त्याग और तपस्या की बलिदान की वीर गाथांए पड़ी हैं। कैसे वो जंग लड़ते थे कैसे वो जंग जीतते थे। लंबे अरसे तक अंग्रेजों को पैर नहीं रखने देते थे। अपने बलबुते पर ये बातें हमारे आदिवासी समाज की त्याग तपस्या के गौरव को आने वाली पीढ़ी को बताना बहुत जरूरी है। ये कोशिश है कि पूरे देश में आदिवासी समाज का आजादी की जंग में नेतृत्व उसको अलग से उजागर करके लोगों के सामने लाने की जरूरत है। और कई अनगिनत कहानियां हैं जिसकी ओर शायद इतिहास ने भी अन्याय किया है। जैसा हम लोगों का स्वभाव है जरा तामझाम वाली चीजें आ जाये तो हम उस तरफ लुढ़क जाते हैं। और इसके कारण ऐसी तपस्या की बहुत बातें होती हैं। त्याग की बहुत बातें होती हैं। जो एक दम से उभरकर के सामने नहीं आती हैं। ये तो प्रयास करके लाना होता है।अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के महान आदिवासी नायक लक्ष्मण नायक जी को भी हमेजरूरयाद करना चाहिए। अंग्रेजों ने उन्हें फांसी दे दी थी। आज़ादी का सपना लेकर वो भारत माता की गोद में सो गए !

साथियों,

आज़ादी के इतिहास के साथ साथ अमृत महोत्सव का एक महत्वपूर्ण आयाम भारत की सांस्कृतिक विविधता और सांस्कृतिक पूंजी भी है। ओडिशा तो हमारी इस सांस्कृतिक विविधता का एक सम्पूर्ण चित्र, complete picture है। यहाँ की कला, यहाँ का आध्यात्म, यहाँ की आदिवासी संस्कृति पूरे देश की धरोहर है। पूरे देश को इससे परिचित होना चाहिए, जुड़ना चाहिए।और नई पीढ़ी को पता होना चाहिए।हम ओड़ीशा इतिहास को जितना गहराई से समझेंगे, दुनिया के सामने लाएँगे, मानवता को समझने का उतना ही व्यापक दृष्टिकोण हमें मिलेगा। हरेकृष्ण जी ने अपनी पुस्तक में ओडिशा की आस्था, कला और वास्तु पर जो प्रकाश डाला है, हमारे युवाओं को इस दिशा में एक मजबूत आधार देती है।

साथियों,

ओड़ीशा के अतीत को आप खंगालें, आप देखेंगे कि उसमें हमें ओडिशा के साथ साथ पूरे भारत की ऐतिहासिक सामर्थ्य के भी दर्शन होते हैं। इतिहास में लिखित ये सामर्थ्य वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं से जुड़ा हुआ है, भविष्य के लिए हमारा पथ-प्रदर्शन करता है। आप देखिए, ओडिशा की विशाल समुद्री सीमा एक समय भारत के बड़े बड़े पोर्ट्स और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र हुआ करती थी। इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, म्यांमार और श्रीलंका जैसे देशों के साथ यहाँ से जो व्यापार होता था, वो ओडिशा और भारत की समृद्धि का बहुत बड़ा कारण था। कुछ इतिहासकारों के शोध तो यहाँ तक बताते हैं कि ओडिशा के कोणार्क मंदिर में जिराफ की तस्वीरें हैं, इसका मतलब ये हुआ कि इस बात का सबुत है की उड़ीसा केव्यापारी अफ्रीका तक व्यापार करते थे।तभी तो जिराफ की बात आई होगी।उस समय तो व्हाट्सेप था नहीं।बड़ी संख्या में ओड़ीशा के लोग व्यापार के लिए दूसरे देशों में रहते भी थे, इन्हें दरिया पारी ओड़िया कहते थे। ओड़िया से मिलती जुलती स्क्रिप्ट्स कितने ही देशों में मिलती हैं। इतिहास के जानकार कहते हैंकिसम्राट अशोक ने इसी समुद्री व्यापार पर अधिकार हासिल करने के लिए कलिंग पर आक्रमण किया था। इस आक्रमण ने सम्राट अशोक को धम्म अशोक बना दिया। और एक तरह से, ओडिशा व्यापार के साथ-साथ भारत से बौद्ध संस्कृति के प्रसार का माध्यम भी बना।

साथियों,

उस दौर में हमारे पास जो प्राकृतिक संसाधन थे, वो प्रकृति ने हमें आज भी दिये हुये हैं। हमारे पास आज भी इतनी व्यापक समुद्री सीमा है, मानवीय संसाधन हैं, व्यापार की संभावनाएं हैं! साथ ही आज हमारे पास आधुनिक विज्ञान की ताकत भी है। अगर हम अपने इन प्राचीन अनुभवों और आधुनिक संभावनाओं को एक साथ जोड़ दें तो ओड़ीशा विकास की नई ऊंचाई पर पहुंच सकता है। आज देश इस दिशा में गंभीर प्रयास कर रहा है।और अधिक प्रयास करने की दिशा में भी हम सजग हैं। मैं जब प्रधानमंत्री नहीं बना था चुनाव भी तय नहीं हुआ था। 2013 में शायद मेरा एक भाषण है। मेरी पार्टी का ही कार्यक्रम था। और उसमें मेने कहा था कि मैं भारत के भविष्य को कैसे देखता हूं। उसमें मैनें कहा था कि अगर भारत का संतुलित विकास नहीं होता है। तो शायद हम हमारे पोटेंशियल का पूर्ण रूप से उपयोग नहीं कर पाएंगे। और मैं ये मानकर के चलता हूं उस समय से कि जैसे भारत का पश्चिमी भाग अगर हम हिनदुस्तान का नक्शा लेकर के बीच में एक रेखा बना दें तो पश्चिम में आपको इन दिनो प्रगति समृद्धि सब नजर आएगा। आर्थिक गतिविधि नजर आएगी। नीचे से लेकर के ऊपर तक। लेकिन पूर्व में जहां इतने प्राकृतिक संसाधन हैं। जहां इतने creative minds हैं। अद्धभूत ह्यूमन रिसोर्स है हमारे पास पूर्व में चाहे उड़िया हो, चाहे बिहार हो, चाहे बंगाल हो, असम हो, नॉर्थ ईस्ट हो। ये पूरा एक ऐसी अद्भूत सामर्थ्य की पूंजी पड़ी है। अकेला ही ये इलाकाdevelopहो जाये ना, हिनदुस्तान कभी पीछे नहीं हट सकता। इतनी ताकत पड़ी है। और इसलिए आपने देखा होगी पिछले 6 साल का कोई Analysis करें। तो पूर्वी भारत के विकास के लिए और विकास में सबसे बड़ा Initiatives होता है infrastructure का। सबसे ज्यादा बल दिया गया है पूर्वी भारत पर। ताकि देश एक संतुलित पूर्व और पश्चिम में करीब – करीब 19-20 का फर्क तो मैं प्राकृतिक कारणों से समझ सकता हूं। और हम देखें कि भारत का स्वर्णिम युग तब था। जब भारत का पूर्व भारत का नेतृत्व करता था। चाहे उड़ीसा हो, चाहे बिहार हो even कोलकाता। ये भारत का नेतृत्व करने वाले केंद्र बिंदू थे। और उस समय भारत का स्वर्णिम काल मतलब की यहां एक अद्धभूत सामर्थ्य पडा हुआ है। हमें सामर्थ्य को लेकर के अगर हम आगे बढ़ते हैं तो हम फिर से भारत को उस ऊँचाई पर ले जा सकते हैं।

साथियों,

व्यापार और उद्योगों के लिए सबसे पहली जरूरत है- इनफ्रास्ट्रक्चर ! आज ओडिशा में हजारों किमी के नेशनल हाइवेज़ बन रहे हैं, कोस्टल हाइवेज बन रहे हैं जोकि पॉर्ट्स को कनैक्ट करेंगे। सैकड़ों किमी नई रेल लाइंस पिछले 6-7 सालों में बिछाई गई हैं। सागरमाला प्रोजेक्ट पर भी हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इनफ्रास्ट्रक्चर के बाद अगला महत्वपूर्ण घटक है उद्योग! इस दिशा में उद्योगों, कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए काम हो रहा है। ऑयल और गैस से जुड़ी जितनी व्यापक संभावनाएं ओडिशा में मौजूद हैं, उनके लिए भी हजारों करोड़ का निवेश किया गया है। ऑयल रिफाइनरीज़ हों, एथानॉल बायो रिफाइनरीज़ हों, इनके नए नए प्लांट्स आज ओडिशा में लग रहे हैं। इसी तरह स्टील इंडस्ट्री की व्यापक संभावनाओं को भी आकार दिया जा रहा है। हजारो करोड़ का निवेश ओड़ीशा में किया गया है। ओडिशा के पास समुद्री संसाधनों सेसमृद्धि के अपार अवसर भी हैं। देश का प्रयास है कि blue revolution के जरिए ये संसाधन ओडिशा की प्रगति का आधार बनें, यहाँ के मछुआरों-किसानों का जीवन स्तर बेहतर हो।

साथियों,

आने वाले समय में इन व्यापक संभावनाओं के लिए स्किल की भी बहुत बड़ी जरूरत है। ओडिशा के युवाओं को इस विकास का ज्यादा से ज्यादा लाभ मिले, इसके लिए IIT भुवनेश्वर, IISER बहरामपुर और Indian Institute of Skill जैसे संस्थानों की नींव रखी गई है। इसी साल जनवरी में मुझे ओडिशा में IIM सम्बलपुर के शिलान्यास का सौभाग्य भी मिला था। ये संस्थान आने वाले सालों में ओडिशा के भविष्य का निर्माण करेंगे, विकास को नई गति देंगे।

साथियों,

उत्कलमणि गोपबंधु दास जी ने लिखा है-

जगत सरसे भारत कनल। ता मधे पुण्य नीलाचल॥आज जब देश आज़ादी के 75 सालों के शुभ अवसर के लिए तैयार हो रहा है, तो हमें इस भाव को, इस संकल्प को फिर से साकार करना है।और मेने तो देखा है कि शायदमेरे पास exact आंकडे नहीं हैं।लेकिन कभी कभी लगता है कि कोलकाता के बाद किसी एक शहर में उड़िया लोग ज्यादा रहते होंगे तो शायद सूरत में रहते हैं।और इसके कारण मेरा उनके साथ बड़ा स्वाभाविक संपर्क भी रहता है। ऐसा सरल जीवन कम से कम साधन और व्यवस्थाओं से मस्ती भरी जिंदगी जीना मैने बहुत निकट से देखा है।ये अपने आप में और कहीं उनके नाम पर कोई उपद्रव उनके खाते में नहीं है। इतने शांतिप्रिय हैं। अब जब मैं पूर्वी भारत की बात करता हूं। आज देश में मुंबई, उसकी चर्चा होती है। आजादी के पहले कराची की चर्चा होती थी लाहौर की चर्चा होती थी। धीरे – धीरे करके बैंगलोर और हैदराबाद की चर्चा होने लगी। चैन्नई की होने लगी और कोलकाता जैसे पूरे हिन्दुस्तान की प्रगति और विकास और अर्थव्यवस्था में बहुत याद करके कोई लिखता है। जबकि vibrant कोलकाता एक future को लेकर के सोचने वाला कोलकाता पूरे पूर्वी भारत को सिर्फ बंगाल नहीं पूरे पूर्वी भारत को प्रगति के लिए बहुत बड़ा नेतृत्व दे सकता है। और हमारी कोशिश है कि कोलकाता फिर से एक बार vibrant बने। एक प्रकार से पूर्वी भारत के विकास के लिए कोलकाता एक शक्ति बनकर के उभरे। और इस पूरे मैप को लेकर के हम काम कर रहे हैं। और मुझे विश्वास है कि सिर्फ और सिर्फ देश का ही भला ये सारे निर्णयों को ताकत देता है। मैंआज श्रीमानहरेकृष्ण महताब फ़ाउंडेशन के विद्वानों से अनुरोध करूंगा कि महताब जी के काम को आगे बढ़ाने का ये महान अवसर है। हमें ओडिशा के इतिहास को, यहाँ की संस्कृति को, यहाँ के वास्तु वैभव को देश-विदेश तक लेकर जाना है। आइए, अमृत महोत्सव में हम देश के आवाहन से जुड़े, इस अभियान को जन-जन का अभियान बनाएँ। मुझे विश्वास है ये अभियान वैसी ही वैचारिक ऊर्जा का प्रवाह बनेगा, जैसा संकल्प श्री हरेकृष्ण महताब जी ने स्वाधीनता संग्राम के दौरान लिया था। इसी शुभ-संकल्प के साथ, मैं फिर एक बार इस महत्वपूर्ण अवसर में मुझे भी इस परिवार के साथ जुड़ने का मौका मिला। मैं महताब फाउंडेशन का आभारी हूं। भाई भर्तृहरि जी का आभारी हूं। कि मुझे आप सबके बीच आकर के इन अपने भावों को व्यक्त करने का भी अवसर मिला। और एक जिसके प्रति मेरी श्रद्धा और आदर रहा है, ऐसे इतिहास के कुछ घटनाओं से जुड़ने का मुझे आज मौका मिला है। मैं बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हूं।

बहुत बहुत धन्यवाद!

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PM Modi visits the Indian Arrival Monument
November 21, 2024

Prime Minister visited the Indian Arrival monument at Monument Gardens in Georgetown today. He was accompanied by PM of Guyana Brig (Retd) Mark Phillips. An ensemble of Tassa Drums welcomed Prime Minister as he paid floral tribute at the Arrival Monument. Paying homage at the monument, Prime Minister recalled the struggle and sacrifices of Indian diaspora and their pivotal contribution to preserving and promoting Indian culture and tradition in Guyana. He planted a Bel Patra sapling at the monument.

The monument is a replica of the first ship which arrived in Guyana in 1838 bringing indentured migrants from India. It was gifted by India to the people of Guyana in 1991.