महाराष्ट्र के गवर्नर श्री भगत सिंह कोशियारी जी, मुख्यमंत्री श्री उद्ध्व ठाकरे जी, उप मुख्यमंत्री श्री अजित पवार जी, श्री अशोक जी, नेता विपक्ष श्री देवेंद्र फडणवीस जी, यहां उपस्थित अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों, आज वट पूर्णिमा भी है और संत कबीर की जयंती भी है। सभी देशवासियों को मैं अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं।
एका अतिशय चांगल्या कार्यक्रमासाठी, आपण आज सारे एकत्र आलो आहोत। स्वातंत्र्य-समरातिल, वीरांना समर्पित क्रांतिगाथा, ही वास्तु समर्पित करताना, मला, अतिशय आनंद होतो आहे।
साथियों,
महाराष्ट्र का ये राजभवन बीते दशकों में अनेक लोकतांत्रिक घटनाओं का साक्षी रहा है। ये उन संकल्पों का भी गवाह रहा है जो संविधान और राष्ट्र के हित में यहां शपथ के रूप में लिए गए। अब यहां जलभूषण भवन का और राजभवन में बनी क्रांतिवीरों की गैलरी का उद्घाटन हुआ है। मुझे राज्यपाल जी के आवास और कार्यालय के द्वार पूजन में भी हिस्सा लेने का अवसर मिला।
ये नया भवन महाराष्ट्र की समस्त जनता के लिए, महाराष्ट्र की गवर्नेंस के लिए नई ऊर्जा देने वाला हो, इसी तरह गर्वनर साहब ने कहा कि ये राजभवन नहीं लोकभवन है, वो सच्चे अर्थ में जनता-जनार्दन के लिए एक आशा की किरण बनके उभरेगा, ऐसा मेरा पूरा विश्वास है। और इस महत्वपूर्ण अवसर के लिए यहां के सभी बंधु बधाई के पात्र हैं। क्रांति गाथा के निर्माण से जुड़े इतिहासकार विक्रम संपथ जी और दूसरे सभी साथियों का भी मैं अभिनंदन करता हूं।
साथियों,
मैं राजभवन में पहले भी अनेक बार आ चुका हूं। यहां कई बार रुकना भी हुआ है। मुझे खुशी है कि आपने इस भवन के इतने पुराने इतिहास को, इसके शिल्प को संजोते हुए, आधुनिकता का एक स्वरूप अपनाया है। इसमें महाराष्ट्र की महान परंपरा के अनुरूप शौर्य, आस्था, अध्यात्म और स्वतंत्रता आंदोलन में इस स्थान की भूमिका के भी दर्शन होते हैं। यहां से वो जगह ज्यादा दूर नहीं है, जहां से पूज्य बापू ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। इस भवन ने आज़ादी के समय गुलामी के प्रतीक को उतरते और तिरंगे को शान से फहराते हुए देखा है। अब जो ये नया निर्माण हुआ है, आज़ादी के हमारे क्रांतिवीरों को जो यहां स्थान मिला है, उससे राष्ट्रभक्ति के मूल्य और सशक्त होंगे।
साथियों,
आज का ये आयोजन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि देश अपनी आजादी के 75 वर्ष, आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। ये वो समय है जब देश की आज़ादी, देश के उत्थान में योगदान देने वाले हर वीर-वीरांगना, हर सेनानी, हर महान व्यक्तित्व, उनको याद करने का ये वक्त है। महाराष्ट्र ने तो अनेक क्षेत्रों में देश को प्रेरित किया है। अगर हम सामाजिक क्रांतियों की बात करें तो जगतगुरू श्री संत तुकाराम महाराज से लेकर बाबा साहेब आंबेडकर तक समाज सुधारकों की एक बहुत समृद्ध विरासत है।
यहां आने से पहले मैं देहू में था जहां संत तुकाराम शिला मंदिर के लोकार्पण का सौभाग्य मुझे मिला। महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, समर्थ रामदास, संत चोखामेला जैसे संतों ने देश को ऊर्जा दी है। अगर स्वराज्य की बात करें तो छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति सांभाजी महाराज का जीवन आज भी हर भारतीय में राष्ट्रभक्ति की भावना को और प्रबल कर देता है। जब आज़ादी की बात आती है तो महाराष्ट्र ने तो ऐसे अनगिनत वीर सेनानी दिए, जिन्होंने अपना सब कुछ आज़ादी के यज्ञ में आहूत कर दिया। आज दरबार हॉल से मुझे ये समंदर का विस्तार दिख रहा है, तो हमें स्वातंत्रय वीर विनायक दामोदर सावरकर जी की वीरता का स्मरण आता है। उन्होंने कैसे हर यातना को आज़ादी की चेतना में बदला वो हर पीढ़ी को प्रेरित करने वाला है।
साथियों,
जब हम भारत की आज़ादी की बात करते हैं, तो जाने-अनजाने उसे कुछ घटनाओं तक सीमित कर देते हैं। जबकि भारत की आजादी में अनगिनत लोगों का तप और उनकी तपस्या शामिल रही है। स्थानीय स्तर पर हुई अनेकों घटनाओं का सामूहिक प्रभाव राष्ट्रीय था। साधन अलग थे लेकिन संकल्प एक था। लोकमान्य तिलक ने अपने साधनों से, तो उन्हीं की प्रेरणा पाने वाले चापेकर बंधुओं ने अपने तरीके से आज़ादी की राह को प्रशस्त किया।
वासुदेव बलबंत फडके ने अपनी नौकरी छोड़कर सशस्त्र क्रांति का रास्ता अपनाया, तो वहीं मैडम भीखाजी कामा ने संपन्नता भरे अपने जीवन का त्याग कर आज़ादी की अलख जलाई। हमारे आज के तिरंगे की प्रेरणा का जो स्रोत है, उस झंडे की प्रेरणा मैडम कामा और श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे सेनानी ही थे। सामाजिक, परिवारिक, वैचारिक भूमिकाएं चाहे कोई भी रही हों, आंदोलन का स्थान चाहे देश-विदेश में कहीं भी रहा हो, लक्ष्य एक था - भारत की संपूर्ण आज़ादी।
साथियों,
आज़ादी का जो हमारा आंदोलन था, उसका स्वरूप लोकल भी था और ग्लोबल भी था। जैसे गदर पार्टी, दिल से राष्ट्रीय भी थी, लेकिन स्केल में ग्लोबल थी। श्यामजी कृष्ण वर्मा का इंडिया हाउस, लंदन में भारतीयों का जमावड़ा था, लेकिन मिशन भारत की आज़ादी था। नेता जी के नेतृत्व में आज़ाद हिंद सरकार भारतीय हितों के लिए समर्पित थी, लेकिन उसका दायरा ग्लोबल था। यही कारण है कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन ने दुनिया के अनेक देशों की आज़ादी के आंदोलनों को प्रेरित किया।
लोकल से ग्लोबल की यही भावना हमारे आत्मनिर्भर भारत अभियान की भी ताकत है। भारत के लोकल को आत्मनिर्भर अभियान से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पहचान दी जा रही है। मुझे विश्वास है, क्रांतिवीरों की गैलरी से, यहां आने वालों को राष्ट्रीय संकल्पों को सिद्ध करने की नई प्रेरणा मिलेगी, देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना बढ़ेगी।
साथियों,
बीते 7 दशकों में महाराष्ट्र ने राष्ट्र के विकास में हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मुंबई तो सपनों का शहर है ही, महाराष्ट्र के ऐसे अनेक शहर हैं, जो 21वीं सदी में देश के ग्रोथ सेंटर होने वाले हैं। इसी सोच के साथ एक तरफ मुंबई के इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाया जा रहा है तो साथ ही बाकी शहरों में भी आधुनिक सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं।
आज जब हम मुंबई लोकल में होते अभूतपूर्व सुधार को देखते हैं, जब अनेक शहरों में मेट्रो नेटवर्क के विस्तार को देखते हैं, जब महाराष्ट्र के कोने-कोने को आधुनिक नेशनल हाईवे से जुड़ते हुए देखते हैं, तो विकास की सकारात्मकता का एहसास होता है। हम सभी ये भी देख रहे हैं कि विकास की यात्रा में पीछे रह गए आदिवासी जिलों में भी आज विकास की नई आकांक्षा जागृत हुई है।
साथियों,
आजादी के इस अमृतकाल में हम सभी को ये सुनिश्चित करना है कि हम जो भी काम कर रहे हैं, जो भी हमारी भूमिका है, वो हमारे राष्ट्रीय संकल्पों को मजबूत करे। यही भारत के तेज़ विकास का रास्ता है। इसलिए राष्ट्र के विकास में सबका प्रयास के आह्वान को मैं फिर दोहराना चाहता हूं। हमें एक राष्ट्र के रूप में परस्पर सहयोग और सहकार की भावना के साथ आगे बढ़ना है, एक-दूसरे को बल देना है। इसी भावना के साथ एक बार फिर जलभूषण भवन का और क्रांतिवीरों की गैलरी के लिए भी मैं सबको बधाई देता हूं।
और अब देखें शायद दुनिया के लोग हमारा मजाक करेंगे कि राजभवन, 75 साल से यहां गतिविधि चल रही है लेकिन नीचे बंकर है वो सात दशक तक किसी को पता नहीं चला। यानी हम कितने उदासीन हैं, हमारी अपनी विरासत के लिए कितने उदासीन हैं। खोज-खोज कर हमारे इतिहास के पन्नों को समझना, देश को इस दिशा में आजादी का अमृत महोत्सव एक कारण बने।
मुझे याद है अभी हमने भी शामजी कृष्ण वर्मा के चित्र में भी देखा, आप हैरान होंगे हमने किस प्रकार से देश में निर्णय किए हैं। शामजी कृष्ण वर्मा को लोकमान्य तिलक जी ने चिट्ठी लिखी थी। और उनको कहा था कि मैं स्वातंत्रय वीर सावरकर जैसे एक होनहार नौजवान को भेज रहा हूं। उसके रहने-पढ़ने के प्रबंध में आप जरा मदद कीजिए। शामजी कृष्ण वर्मा वो व्यक्तित्व थे।
स्वामी विवेकानंद जी उनके साथ सत्संग जाया करते थे। और उन्होंने लंदन में इंडिया हाउस जो क्रांतिकारियों की एक प्रकार से तीर्थ भूमि बन गया था, और अंग्रेजों की नाक के नीचे इंडिया हाउस में क्रांतिकारियों की गतिविधि होती थी। शामजी कृष्ण वर्मा जी का देहावसान 1930 में हुआ। 1930 में उनका स्वर्गवास हुआ और उन्होंने इच्छा व्यक्त की थी कि मेरी अस्थि संभाल कर रखी जाएं और जब हिन्दुस्तान आजाद हो तो आजाद हिन्दुस्तान की उस धरती पर मेरी अस्थि ले जाई जाएं।
1930 की घटना, 100 साल होने को आए हैं, सुन करके आपके भी रोंगटे खड़े हो रहे हैं। लेकिन मेरे देश का दुर्भाग्य देखिए, 1930 में देश के लिए मर-मिटने वाले व्यक्ति, जिसकी एकमात्र इच्छा थी कि आजाद भारत की धरती पर मेरी अस्थि जाएं, ताकि आजादी का जो मेरा सपना है मैं नहीं मेरी अस्थि अनुभव कर लें, और कोई अपेक्षा नहीं थी। 15 अगस्त, 1947 के दूसरे दिन ये काम होना चाहिए था कि नहीं होना चाहिए था? नहीं हुआ। और शायद ईश्वर का ही कोई संकेत होगा।
2003 में, 73 साल के बाद उन अस्थियों को हिन्दुस्तान लाने का सौभाग्य मुझे मिला। भारत मां के एक लाल की अस्थि इंतजार करती रहीं दोस्तों। जिसको कंधे पर उठा करके मुझे लाने का सौभाग्य मिला, और यहीं मुंबई के एयरपोर्ट पर मैं ला करके उतरा था यहां। और यहां से वीरांजलि यात्रा ले करके मैं गुजरात गया था। और कच्छ, मांडवी उनका जन्म स्थान, वहां आज वैसा ही इंडिया हाउस बनाया है जैसा लंदन में था। और हजारों की तादाद में स्टूडेंट्स वहां जाते हैं, क्रांतिवीरों की इस गाथा को अनुभव करते हैं।
मुझे विश्वास है कि आज जो बंकर किसी को पता तक नहीं था, जिस बंकर के अंदर वो सामान रखा गया था, जो कभी हिन्दुस्तान के क्रांतिकारियों की जान लेने के लिए काम आने वाला था, उसी बंकर में आज मेरे क्रांतिकारियों का नाम, ये जज्बा होना चाहिए देशवासियों में जी। और तभी जा करके देश की युवा पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है। और इसलिए राजभवन का ये प्रयास बहुत ही अभिनंदनीय है।
मैं खास करके शिक्षा विभाग के लोगों से आग्रह करूंगा कि हमारे स्टूडेंट्स को हम वहां तो ले जाते हैं साल में एक बार दो बार टूर करेंगे तो कोई बड़े-बड़े पिकनिक प्लेस पर ले जाएंगे। थोड़ी आदत बना दें, कभी अंडमान-निकोबार जा करके उस जेल को देखें जहां वीर सावरकर ने अपनी जवानी खपाई थी। कभी इस बंकर में आ करके देखें कि कैसे-कैसे वीर पुरुषों ने देश के लिए अपना जीवन खपा दिया था। अनगिनत लोगों ने इस आजादी के लिए जंग किया है। और ये देश ऐसा है हजार-बारह सौ साल की गुलामी काल में कोई ऐसा दिन नहीं होगा जब हिन्दुस्तान के किसी न किसी कोने में आजादी की अलख न जगी हो जी। 1200 साल तक ये एक दिमाग, ये मिजाज इस देशवासियों का है। हमें उसे जानना है, पहचानना है और उसको जीने का फिर से एक बार प्रयास करना है और हम कर सकते हैं।
साथियो,
इसलिए आज का ये अवसर मैं अनेक रूप से महत्वपूर्ण मानता हूं। मैं चाहता हूं ये क्षेत्र सार्थक अर्थ में देश की युवा पीढ़ी की प्रेरणा का केंद्र बने। मैं इस प्रयास के लिए सबको बधाई देते हुए आप सबका धन्यवाद करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।