“भारत के दुनिया में सबसे प्राचीनतम जीवित सभ्यताओं में से एक होने का श्रेय संत परम्परा और भारत के ऋषियों को जाता है”
“भारत के दुनिया में सबसे प्राचीनतम जीवित सभ्यताओं में से एक होने का श्रेय संत परम्परा और भारत के ऋषियों को जाता है”
“सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास की भावना हमारी महान संत परम्पराओं से ही प्रेरित है”
“दलित, वंचितों, पिछड़ों, आदिवासियों, मजदूरों का कल्याण आज देश की पहली प्राथमिकता है”
“आज जब आधुनिक प्रौद्योगिकी और इन्फ्रास्ट्रक्चर भारत के विकास का पर्याय बन रहे हैं, तो हम यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि विकास और विरासत दोनों साथ-साथ आगे बढ़ें”

नमो सदगुरु, तुकया ज्ञानदीपा। नमो सदगुरु, सच्चिदानंद रुपा॥ नमो सदगुरु, भक्त-कल्याण मूर्ती। नमो सदगुरु, भास्करा पूर्ण कीर्ती॥ मस्तक हे पायावरी। या वारकरी सन्तांच्या॥ महाराष्ट्र के उपमुख्‍यमंत्री श्री अजित पवार जी, प्रतिपक्ष नेता श्री देवेंद्र फडणवीस जी, पूर्व मंत्री श्री चंद्रकांत पाटिल जी, वारकरी संत श्री मुरली बाबा कुरेकर जी, जगतगुरू श्रीसंत तुकाराम महाराज संस्थान के चेयरमैन नितिन मोरे जी, आध्यात्मिक अघाड़ी के प्रेसिडेंट आचार्य श्री तुषार भोसले जी, यहां उपस्थित संत गण, देवियों और सज्जनों,

भगवान विट्ठल और सभी वारकरी संतों के चरणों में मेरा कोटि-कोटि वंदन! हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य जन्म में सबसे दुर्लभ संतों का सत्संग है। संतों की कृपा अनुभूति हो गई, तो ईश्वर की अनुभूति अपने आप हो जाती है। आज देहू की इस पवित्र तीर्थ-भूमि पर मुझे यहां आने का सौभाग्‍य मिला और मैं भी यहां वही अनुभूति कर रहा हूं। देहू, संत शिरोमणि जगतगुरु तुकाराम जी की जन्मस्थली भी है, कर्मस्थली भी है। धन्य देहूंगाव, पुण्यभूमी ठाव। तेथे नांदे देव पांडुरंग। धन्य क्षेत्रवासी लोक ते दैवाचे। उच्चारिती वाचे, नामघोष। देहू में भगवान पांडुरंग का नित्य निवास भी है, और यहाँ का जन-जन स्वयं भी भक्ति से ओत-प्रोत संत स्वरूप ही है। इसी भाव से मैं देहू के सभी नागरिकों को, मेरी माताओं-बहनों को आदरपूर्वक नमन करता हूँ। अभी कुछ महीने पहले ही मुझे पालखी मार्ग में दो राष्ट्रीय राजमार्गों को फोरलेन करने के लिए शिलान्यास का अवसर मिला था। श्रीसंत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग का निर्माण पांच चरणों में होगा और संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग का निर्माण तीन चरणों में पूरा किया जाएगा। इन सभी चरणों में 350 किलोमीटर से ज्यादा लंबाई के हाईवे बनेंगे और इस पर 11 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक का खर्च किया जाएगा। इन प्रयासों से क्षेत्र के विकास को भी गति मिलेगी। आज, सौभाग्य से पवित्र शिला मंदिर के लोकार्पण के लिए मुझे देहू में आने को सौभाग्‍य मिला है। जिस शिला पर स्वयं संत तुकाराम जी ने 13 दिनों तक तपस्या की हो, जो शिला संत तुकाराम जी के बोध और वैराग्य की साक्षी बनी हो, मैं मानता हूँ कि, वो सिर्फ़ शिला नहीं वो तो भक्ति और ज्ञान की आधारशिला स्वरूप है। देहू का शिला मंदिर न केवल भक्ति की शक्ति का एक केंद्र है बल्कि भारत के सांस्कृतिक भविष्य को भी प्रशस्त करता है। इस पवित्र स्थान का पुनर्निमाण करने के लिए मैं मंदिर न्यास और सभी भक्तों का हृदय पूर्वक अभिनंदन करता हूं, आभार व्यक्त करता हूं। जगतगुरू संत तुकाराम जी की गाथा का जिन्होंने संवर्धन किया था, उन संताजी महाराज जगनाडे जी, इनका स्थान सदुंबरे भी पास में ही है। मैं उनको भी नमन करता हूं।

 

 

 

 

 

साथियों,

इस समय देश अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। हमें गर्व है कि हम दुनिया की प्राचीनतम जीवित सभ्यताओं में से एक हैं। इसका श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो भारत की संत परंपरा को है, भारत के ऋषियों मनीषियों को है। भारत शाश्वत है, क्योंकि भारत संतों की धरती है। हर युग में हमारे यहां, देश और समाज को दिशा देने के लिए कोई न कोई महान आत्मा अवतरित होती रही है। आज देश संत कबीरदास की जयंती मना रहा है। ये संत ज्ञानेश्वर महाराज, संत निवृत्तिनाथ महाराज, संत सोपानदेव और बहन आदि-शक्ति मुक्ताबाई जैसे संतों की समाधि का 725वां वर्ष भी है। ऐसी महान विभूतियों ने हमारी शाश्वतता को सुरक्षित रखकर भारत को गतिशील बनाए रखा। संत तुकाराम जी को तो संत बहिणाबाई ने संतों के मंदिर का कलश कहा है। उन्होंने कठिनाइयों और मुश्किलों से भरा जीवन जिया। अपने समय में उन्होंने अकाल जैसी परिस्थितियों का सामना किया। संसार में उन्होंने भूख देखी, भुखमरी देखी। दुःख और पीड़ा के ऐसे चक्र में जब लोग उम्मीद छोड़ देते हैं, तब संत तुकाराम जी समाज ही नहीं बल्कि भविष्य के लिए भी आशा की किरण बनकर उभरे! उन्होंने अपने परिवार की संपत्ति को लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। ये शिला उनके उसी त्याग और वैराग्य की साक्षी है।

साथियों,

संत तुकाराम जी की दया, करुणा और सेवा का वो बोध उनके ‘अभंगों’ के रूप आज भी हमारे पास है। इन अभंगों ने हमारी पीढ़ियों को प्रेरणा दी है। जो भंग नहीं होता, जो समय के साथ शाश्वत और प्रासंगिक रहता है, वही तो अभंग होता है। आज भी देश जब अपने सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर आगे बढ़ रहा है, तो संत तुकाराम जी के अभंग हमें ऊर्जा दे रहे हैं, मार्ग दिखा रहे हैं। संत नामदेव, संत एकनाथ, संत सावता महाराज, संत नरहरी महाराज, संत सेना महाराज, संत गोरोबा-काका, संत चोखामेला, इनके प्राचीन अभंगों से हमें नित नई प्रेरणा मिलती है। आज यहां संत चोखामेला और उनके परिवार द्वारा रचित सार्थ अभंगगाथा के विमोचन का भी मुझे सौभाग्य मिला है। इस सार्थ अभंगगाथा में इस संत परिवार की 500 से ज्यादा अभंग रचनाओं को आसान भाषा में अर्थ सहित बताया गया है।

भाइयों और बहनों,

संत तुकाराम जी कहते थे- उंच नीच काही नेणे भगवंत॥ अर्थात्, समाज में ऊंच नीच का भेदभाव, मानव-मानव के बीच फर्क करना, ये बहुत बड़ा पाप है। उनका ये उपदेश जितना जरूरी भगवद्भक्ति के लिए है, उतना ही महत्वपूर्ण राष्ट्रभक्ति के लिए भी है, समाजभक्‍ति के लिए भी है। इसी संदेश के साथ हमारे वारकरी भाई-बहन हर वर्ष पंढरपुर की यात्रा करते हैं। इसीलिए, आज देश ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास के मंत्र पर चल रहा है। सरकार की हर योजना का लाभ, हर किसी को बिना भेदभाव मिल रहा है। वारकरी आंदोलन की भावनाओं को सशक्त करते हुए देश महिला सशक्तिकरण के लिए भी निरंतर प्रयास कर रहा है। पुरुषों के साथ उतनी ही ऊर्जा से वारी में चलने वाली हमारी बहनें,

पंढरी की वारी, अवसरों की समानता का प्रतीक रही हैं।

साथियों,

संत तुकाराम जी कहते थे- जे का रंज़ले गांज़ले, त्यांसी म्हणे जो आपुले। तोचि साधू ओलखावा, देव तेथे-चि-जाणावा॥ यानी, समाज की अंतिम पंक्ति में बैठे व्यक्ति को अपनाना, उनका कल्याण करना, यही संतों का लक्षण है। यही आज देश के लिए अंत्योदय का संकल्प है, जिसे लेकर देश आगे बढ़ रहा हैं। दलित, वंचित, पिछड़ा, आदिवासी, गरीब, मजदूर, इनका कल्याण आज देश की पहली प्राथमिकता है।

भाइयों और बहनों,

संत अपने आपमें एक ऐसी ऊर्जा की तरह होते हैं, जो भिन्न-भिन्न स्थितियों-परिस्थितियों में समाज को गति देने के लिए सामने आते हैं। आप देखिए, छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे राष्ट्रनायक के जीवन में भी तुकाराम जी जैसे संतों ने बड़ी अहम भूमिका निभाई है। आज़ादी की लड़ाई में वीर सावरकर जी को जब सजा हुई, तब जेल में वो हथकड़ियों को चिपली जैसा बजाते हुए तुकाराम जी के अभंग गाया करते थे। अलग-अलग कालखंड, अलग-अलग विभूतियाँ, लेकिन सबके लिए संत तुकाराम जी की वाणी और ऊर्जा उतनी ही प्रेरणादायक रही है! यही तो संतों की वो महिमा है, जिसके लिए ‘नेति-नेति’ कहा गया है।

साथियों,

तुकाराम जी के इस शिला मंदिर में प्रणाम करके अभी आषाढ़ में पंढरपुर जी की यात्रा भी शुरू होने वाली है। चाहे महाराष्ट्र में पंढरपुर यात्रा हो, या ओड़िशा में भगवान जगन्नाथ की यात्रा, चाहे मथुरा में वृज की परिक्रमा हो, या काशी में पंचकोसी परिक्रमा! चाहे चारधाम यात्रा हो या चाहे फिर अमरनाथ जी की यात्रा, ये यात्राएं हमारी सामाजिक और आध्यात्मिक गतिशीलता के लिए ऊर्जास्रोत की तरह हैं। इन यात्राओं के जरिए हमारे संतों ने ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को जीवंत रखा है। विविधताओं को जीते हुए भी, भारत हजारों वर्षों से एक राष्ट्र के रूप में जागृत रहा है, क्‍योंकि ऐसी यात्राएं हमारी विविधताओं को जोड़ती रही हैं।

भाइयों और बहनों,

हमारी राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए आज ये हमारा दायित्व है कि हम अपनी प्राचीन पहचान और परम्पराओं को चैतन्य रखें। इसीलिए, आज जब आधुनिक टेक्नोलॉजी और इनफ्रास्ट्रक्चर भारत के विकास का पर्याय बन रहे हैं, तो हम ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि विकास और विरासत दोनों एक साथ-साथ आगे बढ़ें। आज पंढरपुर पालकी मार्ग का आधुनिकीकरण हो रहा है तो चारधाम यात्रा के लिए भी नए हाइवे बन रहे हैं। आज अयोध्या में भव्य राममंदिर भी बन रहा है, काशी विश्वनाथ धाम परिसर भी अपने नए स्वरूप में उपस्थित है, और सोमनाथ जी में भी विकास के बड़े काम किए गए हैं। पूरे देश में प्रसाद योजना के तहत तीर्थ स्थानों और पर्यटन स्थलों का विकास किया जा रहा है। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में भगवान राम से जुड़े जिन स्थलों का जिक्र किया है, रामायण सर्किट के रूप में उनका भी विकास किया जा रहा है। इन आठ वर्षों में बाबा साहब अंबेडकर के पंच तीर्थों का विकास भी हुआ है। चाहे महू में बाबा साहेब की जन्मस्थली का विकास हो, लंदन में जहां रहकर वो पढ़ा करते थे, उस घर को स्मारक में बदलना हो, मुंबई में चैत्य भूमि का काम हो, नागपुर में दीक्षाभूमि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित करने की बात हो, दिल्ली में महापरिनिर्वाण स्थल पर मेमोरियल का निर्माण हो, ये पंचतीर्थ, नई पीढ़ी को बाबा साहेब की स्मृतियों से निरंतर परिचित करा रही हैं।

साथियों,

संत तुकाराम जी कहते थे - असाध्य ते साध्य करीता सायास। कारण अभ्यास, तुका म्हणे॥ अर्थात्, अगर सही दिशा में सबका प्रयास हो तो असंभव को भी प्राप्त करना संभव हो जाता है। आज आजादी के 75वें साल में देश ने शत प्रतिशत लक्ष्यों को पूरा करने का संकल्प लिया है। देश गरीबों के लिए जो योजनाएँ चला रहा है, उन्हें बिजली, पानी, मकान और इलाज जैसी जीवन की, जीने की मौलिक जरूरतों से जोड़ रहा है, हमें उन्हें सौ प्रतिशत लोगों तक पहुंचाना है। इसी तरह देश ने पर्यावरण, जल-संरक्षण और नदियों को बचाने जैसे अभियान शुरू किए हैं। हमने स्वस्थ और स्वस्थ भारत का संकल्प लिया है। हमें इन संकल्पों को भी शत प्रतिशत पूरा करना है। इसके लिए सबके प्रयास की, सबकी भागीदारी की जरूरत है। हम सभी देशसेवा के इन दायित्वों को अपने आध्यात्मिक संकल्पों का हिस्सा बनाएंगे तो देश का उतना ही लाभ होगा। हम प्लास्टिक मुक्ति का संकल्प लेंगे, अपने आस-पास झीलों, तालाबों, को साफ रखने का संकल्प लेंगे तो पर्यावरण की रक्षा होगी। अमृत महोत्सव में देश ने हर जिले में 75 अमृत सरोवर बनाने का भी संकल्प लिया है। इन अमृत सरोवरों को आप सभी संतों का आशीर्वाद मिल जाए, उनके निर्माण में आपका सहयोग मिल जाए, तो इस कार्य की गति और बढ़ जाएगी। देश इस समय प्राकृतिक खेती को भी मुहिम के रूप में आगे बढ़ा रहा है। ये प्रयास वारकरी संतों के आदर्शों से जुड़ा हुआ है। हम कैसे प्राकृतिक खेती को हर खेत तक ले जाएं इसके लिए हमें मिलकर काम करना होगा। अगले कुछ दिन बाद अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भी आने वाला है। आज जिस योग की दुनिया में धूम है, वो हमारे संतों की ही तो देन है। मुझे विश्वास है, आप सब योग दिवस को पूरे उत्साह से मनाएंगे, और देश के प्रति इन कर्तव्यों का पालन करते हुए नए भारत के सपने को पूरा करेंगे। इसी भाव के साथ, मैं मेरी वाणी को विराम देता हूं और मुझे जो अवसर दिया, जो सम्‍मान दिया इसलिए आप सबका सर झुकाकर के अभिनंदन करता हूं, धन्‍यवाद करता हूं।

जय-जय रामकृष्ण हरि॥ जय-जय रामकृष्ण हरि॥ हर हर महादेव।

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