मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान अमित शाह, नेशनल कोआपरेटिव यूनियन के प्रेसिडेंट श्रीमान दिलीप संघानी, डॉक्टर चंद्रपाल सिंह यादव, देश के कोने-कोने से जुड़े कोऑपरेटिव यूनियन के सभी सदस्य, हमारे किसान भाई-बहन, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों, आप सभी को सत्रहवें भारतीय सहकारी महासम्मेलन की बहुत-बहुत बधाई। मैं आप सभी का इस सम्मेलन में स्वागत करता हूं, अभिनंदन करता हूं।
साथियों,
आज हमारा देश, विकसित और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य पर काम कर रहा है। और मैंने लाल किले से कहा है, हमारे हर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सबका प्रयास आवश्यक है और सहकार की स्पिरिट भी तो सबका प्रयास का ही संदेश देती है। आज अगर हम दूध उत्पादन में विश्व में नंबर-1 हैं, तो इसमें डेयरी को-ऑपरेटिव्स का बहुत बड़ा योगदान है। भारत अगर दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देशों में से एक है, तो इसमें भी सहकारिता का बड़ा योगदान है। देश के बहुत बड़े हिस्से में को-ऑपरेटिव्स, छोटे किसानों का बहुत बड़ा संबल बनी हैं। आज डेयरी जैसे सहकारी क्षेत्र में लगभग 60 प्रतिशत भागीदारी हमारी माताओं-बहनों की है। इसलिए, जब विकसित भारत के लिए बड़े लक्ष्यों की बात आई, तो हमने सहकारिता को एक बड़ी ताकत देने का फैसला किया। हमने पहली बार जिसका अभी अमित भाई ने विस्तार से वर्णन किया, पहली बार सहकारिता के लिए अलग मंत्रालय बनाया, अलग बजट का प्रावधान किया। आज को-ऑपरेटिव्स को वैसी ही सुविधाएं, वैसा ही प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया जा रहा है जैसा कॉरपोरेट सेक्टर को मिलता है। सहकारी समितियों की ताकत बढ़ाने के लिए उनके लिए टैक्स की दरों को भी कम किया गया है। सहकारिता क्षेत्र से जुड़े जो मुद्दे वर्षों से लंबित थे, उन्हें तेज़ गति से सुलझाया जा रहा है। हमारी सरकार ने सहकारी बैंकों को भी मजबूती दी है। सहकारी बैंकों को नई ब्रांच खोलनी हो, लोगों के घर पहुंचकर बैंकिंग सेवा देनी हो, इसके लिए नियमों को आसान बनाया गया है।
साथियों,
इस कार्यक्रम से इतनी बड़ी संख्या में हमारे किसान भाई-बहन जुड़े हैं। बीते 9 वर्षों में जो नीतियां बदली हैं, निर्णय लिए गए हैं, उनसे क्या बदलाव आया है, ये आप अनुभव कर रहे हैं। आप याद कीजिए, 2014 से पहले अक्सर किसानों की मांग क्या होती थी? किसान कहते थे कि उन्हें सरकार की मदद बहुत कम मिलती थी। और जो थोड़ी सी मदद भी मिलती थी, वो बिचौलियों के खाते में जाती थी। सरकारी योजनाओं के लाभ से देश के छोटे और मझोले किसान वंचित ही रहते थे। पिछले 9 वर्षों में ये स्थिति बिल्कुल बदल गई है। आज देखिए, करोड़ों छोटे किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि मिल रही है। और कोई बिचौलिया नहीं, कोई फर्ज़ी लाभार्थी नहीं। बीते चार वर्षों में इस योजना के तहत ढाई लाख करोड़ रुपए, आप सब सहाकारी क्षेत्र का नेतृत्व करने वाले लोग हैं, मैं आशा करूंगा कि इन आंकड़ों पर आप गौर करेंगे, ढाई लाख करोड़ रुपए सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजे गए हैं। ये कितनी बड़ी रकम है, इसका अंदाज़ा आप एक और आंकड़े से अगर मैं तुलना करूंगा कि तो आप आसानी से लगा सकेंगे। 2014 से पहले के 5 वर्षों के कुल कृषि बजट ही मिला दें, 5 साल का एग्रीकल्चर बजट, तो वो 90 हज़ार करोड़ रुपए से कम था, 90 हज़ार से कम। यानि तब पूरे देश की कृषि व्यवस्था पर जितना खर्च तब हुआ, उसका लगभग 3 गुणा, हम सिर्फ एक स्कीम यानि पीएम किसान सम्मान निधि पर खर्च कर चुके हैं।
साथियों,
दुनिया में निरंतर महंगी होती खादों, कैमिकल्स का बोझ किसानों पर ना पड़े, इसकी भी गारंटी और ये मोदी की गारंटी है, केंद्र की भाजपा सरकार ने आपको दी है। आज किसान को यूरिया बैग, एक बैग का करीब-करीब 270 रुपए से भी कम कीमत पर यूरिया की बैग मिल रहा है। यही बैग बांग्लादेश में 720 रुपए का, पाकिस्तान में 800 रुपए का, चीन में 2100 रुपए का मिल रहा है। औऱ भाइयों और बहनों, अमेरिका जैसे विकसित देश में इतना ही यूरिया 3 हजार रुपए से अधिक में किसानों को मिल रहा है। मुझे नहीं लगता है कि आपके गले बात उतर रही है। जब तक ये फर्क समझेंगे नहीं हम, आखिरकार गारंटी क्या होती है? किसान के जीवन को बदलने के लिए कितना महाभगीरथ प्रयास जरूरी है, इसके इसमें दर्शन होते हैं। कुल मिलाकर अगर देखें तो बीते 9 वर्षों में सिर्फ फर्टिलाइज़र सब्सिडी पर, सिर्फ सब्सिडी फर्टिलाइज़र की मैं बात कर रहा हूं। भाजपा सरकार ने 10 लाख करोड़ से अधिक रुपए खर्च किए हैं। इससे बड़ी गारंटी क्या होती है भाई?
साथियों,
किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत मिले, इसे लेकर हमारी सरकार शुरू से बहुत गंभीर रही है। पिछले 9 साल में MSP को बढ़ाकर, MSP पर खरीद कर, 15 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा किसानों को दिए गए हैं। यानि हिसाब लगाएं तो हर वर्ष, हर वर्ष केंद्र सरकार आज साढ़े 6 लाख करोड़ रुपए से अधिक, खेती और किसानों पर खर्च कर रही है। जिसका मतलब है कि प्रतिवर्ष, हर किसान तक सरकार औसतन 50 हज़ार रुपए किसी ना किसी रूप में उसे पहुंचा रही है। यानि भाजपा सरकार में किसानों को अलग-अलग तरह से हर साल 50 हजार रुपए मिलने की गारंटी है। ये मोदी की गारंटी है। और मैं जो किया है वो बता रहा हूं, वादे नहीं बता रहा हूं।
साथियों,
किसान हितैषी अप्रोच को जारी रखते हुए, कुछ दिन पहले एक और बड़ा निर्णय लिया गया है। केंद्र सरकार ने किसानों के लिए 3 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपए का एक पैकेज घोषित किया है। यही नहीं, गन्ना किसानों के लिए भी उचित और लाभकारी मूल्य अब रिकॉर्ड 315 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया है। इससे 5 करोड़ से अधिक गन्ना किसानों को और चीनी मिलों में काम करने वाले लाखों श्रमिकों को सीधा लाभ होगा।
साथियों,
अमृतकाल में देश के गांव, देश के किसान के सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए अब देश के कॉपरेटिव सेक्टर की भूमिका बहुत बड़ी होने वाली है। सरकार और सहकार मिलकर, विकसित भारत, आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को डबल मजबूती देंगे। आप देखिए, सरकार ने डिजिटल इंडिया से पारदर्शिता को बढ़ाया, सीधा लाभ हर लाभार्थी तक पहुंचाया। आज देश का गरीब से गरीब व्यक्ति भी मानता है कि ऊपरी स्तर से भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद अब खत्म हो गया। अब जब सहकारिता को इतना बढ़ावा दिया जा रहा है, तब ये आवश्यक है कि सामान्य जन, हमारा किसान, हमारा पशुपालक भी रोजमर्रा की जिंदगी में इन बातों को अनुभव करे और वो भी यही बात कहे। ये आवश्यक है कि सहकारिता सेक्टर, पारदर्शिता का, करप्शन रहित गवर्नेंस का मॉडल बने। देश के सामान्य नागरिक का को-ऑपरेटिव्स पर भरोसा और अधिक मज़बूत हो। इसके लिए आवश्यक है कि जितना संभव हो, डिजिटल व्यवस्था को सहकारिता में बढ़ावा मिले। कैश लेनदेन पर निर्भरता को हमें खत्म करना है। इसके लिए अगर आप अभियान चलाकर प्रयास करेंगे और आप सब सहकारी क्षेत्र के लोग, मैंने आपका एक बहुत बड़ा काम कर दिया है, मंत्रालय बना दिया। अब आप मेरा एक बड़ा काम कर दीजिए, डिजिटल की तरफ जाना, कैशलेस, पूरा ट्रांसपेरेंसी। अगर हम सब मिलकर के प्रयास करेंगे, तो ज़रूर तेज़ी से सफलता मिलेगी। आज भारत की पहचान दुनिया में अपनी डिजिटल लेनदेन के लिए होती है। ऐसे में सहकारी समितियां, सहकारी बैंकों को भी इसमें अब अग्रणी रहना होगा। इससे ट्रांसपेरेंसी के साथ-साथ मार्केट में आपकी efficiency भी बढ़ेगी और बेहतर प्रतिस्पर्धा भी संभव हो सकेगी।
साथियों,
प्राथमिक स्तर की सबसे अहम सहकारी समिति यानि पैक्स, अब पारदर्शिता और आधुनिकता का मॉडल बनेंगी। मुझे बताया गया है कि अभी तक 60 हजार से ज्यादा पैक्स का कंप्यूटराइजेशन हो चुका है और इसके लिए मैं आपको बधाई देता हूं। लेकिन बहुत आवश्यक है कि सहकारी समितियां भी अपना काम और बेहतर करें, टेक्नोलॉजी के प्रयोग पर बल दें। जब हर स्तर की सहकारी समितियां कोर बैंकिंग जैसी व्यवस्था अपनाएंगी, जब सदस्य ऑनलाइन ट्रांजेक्शन को शत प्रतिशत स्वीकार करेंगे, तो इसका देश को बहुत बड़ा लाभ होगा।
साथियों,
आज आप ये भी देख रहे हैं कि भारत का निर्यात एक्सपोर्ट लगातार नए रिकॉर्ड बना रहा है। मेक इन इंडिया की चर्चा भी आज पूरी दुनिया में हो रही है। ऐसे में आज सरकार का प्रयास है कि सहकारिता भी इस क्षेत्र में अपना योगदान बढ़ाए। इसी उद्देश्य के साथ आज हम मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी सहकारी समितियों को विशेष रूप से प्रोत्साहित कर रहे हैं। उनके लिए टैक्स को भी अब बहुत कम किया गया है। सहकारिता सेक्टर, निर्यात बढ़ाने में भी बड़ी भूमिका निभा रहा है। डेयरी सेक्टर में हमारे को-ऑपरेटिव्स बहुत शानदार काम कर रहे हैं। मिल्क पाउडर, बटर और घी, आज बड़ी मात्रा में एक्सपोर्ट हो रहा है। अब तो शायद Honey में भी प्रवेश कर रहे हैं। हमारे गांव देहात में सामर्थ्य की कमी नहीं है, बल्कि संकल्पबद्ध होकर हमें आगे बढ़ना है। आज आप देखिए, भारत के मोटे अनाज, Millets, मोटे अनाज, जिसकी पहचान दुनिया में बन गई है। श्री अन्न, ये श्री अन्न लेकर के उसकी भी चर्चा बहुत बढ़ रही है। इसके लिए विश्व में एक नया बाजार तैयार हो रहा है। और मैं तो अभी अमेरिका गया था, तो राष्ट्रपति जी ने जो भोज रखा था, उसमें भी ये मोटे अनाज को, श्री अन्न की वैरायटी रखी थी। भारत सरकार की पहल के कारण पूरी दुनिया में इस वर्ष को इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया जा रहा है। क्या आप जैसे सहकारिता के साथी देश के श्रीअन्न को विश्व बाज़ार तक पहुंचाने के लिए प्रयास नहीं कर सकते? और इससे छोटे किसानों को आय का एक बड़ा साधन मिल जाएगा। इससे पोषक खान-पान की एक नई परंपरा शुरू होगी। आप ज़रूर इस दिशा में प्रयास कीजिए और सरकार के प्रयासों को आगे बढाइए।
साथियों,
बीते वर्षों में हमने दिखाया है कि जब इच्छाशक्ति हो तो बड़ी से बड़ी चुनौती को भी चुनौती दी जा सकती है। जैसे मैं आपसे गन्ना को-ऑपरेटिव्स की बात करूंगा। एक समय था जब किसानों को गन्ने की कीमत भी कम मिलती थी और पैसा भी कई-कई सालों तक फंसा रहता था। गन्ने का उत्पादन ज्यादा हो जाए, तो भी किसान दिक्कत में रहते थे और गन्ने का उत्पादन कम हो, तो भी किसान की ही परेशानी बढ़ती थी। ऐसे में गन्ना किसानों का को-ऑपरेटिव्स पर भरोसा ही समाप्त हो रहा था। हमने इस समस्या के स्थाई समाधान पर फोकस किया। हमने गन्ना किसानों के पुराने भुगतान को चुकाने के लिए चीनी मिलों को 20 हजार करोड़ रुपए का पैकेज दिया। हमने गन्ने से इथेनॉल बनाने और पेट्रोल में इथेनॉल की ब्लेंडिंग पर जोर दिया। आप कल्पना कर सकते हैं, बीते 9 साल में 70 हजार करोड़ रुपए का इथेनॉल चीनी मिलों से खरीदा गया है। इससे चीनी मिलों को गन्ना किसानों को समय पर भुगतान करने में मदद मिली है। पहले गन्ने के ज्यादा दाम देने पर जो टैक्स लगा करता था, उसे भी हमारी सरकार ने खत्म कर दिया है। टैक्स से जुड़ी जो दशकों पुरानी समस्याएं थीं, उसे भी हमने सुलझाया है। इस बजट में भी 10 हज़ार करोड़ रुपए की विशेष मदद सहकारी चीनी मिलों को पुराना क्लेम सेटल करने के लिए दी गई है। ये सारे प्रयास, शुगरकेन सेक्टर में स्थाई बदलाव ला रहे है, इस सेक्टर की कॉपरेटिव्स को मजबूत कर रहे हैं।
साथियों,
एक तरफ हमें निर्यात को बढ़ाना है, तो वहीं दूसरी तरफ आयात पर अपनी निर्भरता को निरंतर कम करना है। हम अक्सर कहते हैं कि भारत अनाज में आत्मनिर्भर है। लेकिन सच्चाई क्या है, केवल गेहूं, धान और चीनी में आत्मनिर्भरता काफी नहीं है। जब हम खाद्य सुरक्षा की बात करते हैं तो ये सिर्फ आटे और चावल तक सीमित नहीं है। मैं आपको कुछ बातें याद दिलाना चाहता हूं। खाने के तेल का आयात हो, दाल का आयात हो, मछली के चारे का आयात हो, फूड सेक्टर में Processed और अन्य उत्पादों का आयात हो, इस पर हम हर वर्ष आप चौंक जाएंगे, मेरे किसान भाई-बहनों को जगाइये, हर वर्ष दो से ढाई लाख करोड़ रुपए हम खर्च करते हैं जो पैसा विदेश जाता है। यानि ये पैसा विदेश भेजना पड़ता है। ये भारत जैसे अन्न प्रधान देश के लिए क्या सही बात है क्या? इतने बड़े होनहार सहकारी क्षेत्र के यहां नेतृत्व मेरे सामने बैठा है, तो मैं स्वाभाविक रूप से आपसे अपेक्षा करता हूं कि हमें एक क्रांति की दिशा में जाना पड़ेगा। क्या ये पैसा भारत के किसानों के जेब में जाना चाहिए कि नहीं चाहिए? क्यों विदेश जाना चाहिए?
साथियों,
हम ये समझ सकते हैं कि हमारे पास तेल के बड़े कुएं नहीं हैं, हमें पेट्रोल-डीजल बाहर से मंगाना पड़ता है, वो हमारी मजबूरी है। लेकिन खाने के तेल में, उसमें तो आत्मनिर्भरता संभव है। आपको जानकारी होगी कि केंद्र सरकार ने इसके लिए मिशन मोड में काम किया है, जैसे एक मिशन पाम ऑयल शुरू किया है। पामोलिन की खेती, पामोलिन का तेल उससे उपलब्ध हो। उसी प्रकार से तिलहन की फसलों को बढ़ावा देने के लिए बड़ी मात्रा में इनिशिएटिव लिये जा रहे हैं। देश की कॉपरेटिव संस्थाएं इस मिशन की बागडोर थाम लेंगी तो देखिएगा कितनी जल्दी हम खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएंगे। आप किसानों को जागरूक करने से लेकर, प्लांटेशन, टेक्नॉलॉजी और खरीदी से जुड़ी हर प्रकार की जानकारी, हर प्रकार की सुविधाएं दे सकते हैं।
साथियों,
केंद्र सरकार ने एक और बहुत बड़ी योजना फिशरीज सेक्टर के लिए शुरू की है। पीएम मत्स्य संपदा योजना से आज मछली के उत्पादन में बहुत प्रगति हो रही है। देशभर में जहां भी नदियां हैं, छोटे तालाब हैं, इस योजना से ग्रामीणों को, किसानों को आय का अतिरिक्त साधन मिल रहा है। इसमें लोकल स्तर पर फीड उत्पादन के लिए भी सहायता दी जा रही है। आज 25 हजार से ज्यादा सहकारी समितियां फिशरीज़ सेक्टर में काम कर रही हैं। इससे फिश प्रोसेसिंग, फिश ड्राइंग और फिश क्योरिंग, फिश स्टोरेज, फिश कैनिंग, फिश ट्रांसपोर्ट जैसे अनेक काम, उनको आज organised way में बल मिला है। मछुआरों का जीवन बेहतर बनाने में और रोज़गार निर्माण में मदद मिली है। पिछले 9 वर्षो में इनलैंड फिशरीज में भी दोगुनी वृद्धि हुई है। और जैसे हमने सहकारिता मंत्रालय अलग बनाया, उससे एक नई ताकत खड़ी हुई है। वैसे ही लंबे समय से एक मांग थी, देश को फिशरीज के लिए अलग मंत्रालय बनाना चाहिए। वो भी हमने बना दिया, उसकी भी अलग बजट की हमने व्यवस्था की और उस क्षेत्र के परिणाम नजर आने लगे हैं। इस अभियान को सहकारिता सेक्टर और विस्तार कैसे दे सकता है, इसके लिए आप सभी साथी आगे आएं, यही मेरी आपसे अपेक्षा है। सहकारिता सेक्टर को अपनी पारंपरिक अप्रोच से कुछ अलग करना होगा। सरकार अपनी तरफ से हर प्रयास कर रही है। अब मछली पालन जैसे अनेक नए सेक्टर्स में भी PACS की भूमिका बढ़ रही है। हम देश भर में 2 लाख नई Multipurpose societies बनाने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं। और जैसा अमित भाई ने कहा अब सब पंचायतों में जाएंगे तो ये आंकड़ा और आगे बढ़ेगा। इससे उन गांवों, उन पंचायतों में भी सहकारिता का सामर्थ्य पहुंचेगा, जहां अभी ये व्यवस्था नहीं है।
साथियों,
बीते वर्षों में हमने किसान उत्पादक संघों यानि FPOs उसके निर्माण पर भी विशेष बल दिया है। अभी देशभर में 10 हज़ार नए FPOs के निर्माण पर काम चल रहा है और इसमें से करीब–करीब 5 हज़ार बन भी चुके हैं। ये FPO, छोटे किसानों को बड़ी ताकत देने वाले हैं। ये छोटे किसानों को मार्केट में बड़ी फोर्स बनाने के माध्यम हैं। बीज से लेकर बाज़ार तक, हर व्यवस्था को छोटा किसान कैसे अपने पक्ष में खड़ा कर सकता है, कैसे बाज़ार की ताकत को चुनौती दे सकता है, ये उसका अभियान है। सरकार ने PACS के द्वारा भी FPO बनाने का निर्णय लिया है। इसलिए सहकारी समितियों के लिए इस क्षेत्र में अपार सम्भावनाएं हैं।
साथियों,
को-ऑपरेटिव सेक्टर किसान की आय बढ़ाने वाले दूसरे माध्यमों को लेकर सरकार के प्रयासों को भी ताकत दे सकते हैं। शहद का उत्पादन हो, ऑर्गेनिक फूड हो, खेत की मेड पर सोलर पैनल लगाकर बिजली पैदा करने का अभियान हो, सॉयल की टेस्टिंग हो, सहकारिता सेक्टर का सहयोग बहुत आवश्यक है।
साथियों,
आज कैमिकल मुक्त खेती, नेचुरल फार्मिंग, सरकार की प्राथमिकता है। और मैं अभी दिल्ली की उन बेटियों को बधाई देता हूं कि उन्होंने अपने दिल को झकझोर दिया। धरती मां पुकार-पुकार करके कह रही है कि मुझे मत मारो। बहुत उत्तम तरीके से नाट्य मंचल के द्वारा उन्होंने हमें जगाने का प्रयास किया है। मैं तो चाहता हूं कि हर को-ओपरेटिव संस्था इस प्रकार की टोली तैयार करें जो टोली हर गांव में इस प्रकार से मंचन करे, लोगों को जगाए। हाल में ही एक बहुत बड़ी योजना, पीएम-प्रणाम को स्वीकृति दी गई है। लक्ष्य ये कि ज्यादा से ज्यादा किसान कैमिकल मुक्त खेती अपनाएं। इसके तहत वैकल्पिक खादों, ऑर्गेनिक खाद के उत्पादन पर बल दिया जाएगा। इससे मिट्टी भी सुरक्षित होगी और किसानों की लागत भी कम होगी। इसमें सहकारिता से जुड़े संगठनों का योगदान बहुत अहम है। मेरा सभी सहकारी संगठनों से आग्रह है कि इस अभियान के साथ ज्यादा से ज्यादा जुड़िए। आप तय कर सकते हैं कि अपने जिले के 5 गांवों को कैमिकल मुक्त खेती के लिए शत-प्रतिशत हम करके रहेंगे, 5 गांव और 5 गांवों में किसी भी खेत में एक ग्राम भी कैमिकल का प्रयोग नहीं होगा, ये हम सुनिश्चित कर सकते हैं। इससे पूरे जिले में इसको लेकर जागरूकता बढ़ेगी, सबका प्रयास बढ़ेगा।
साथियों,
एक और मिशन है जो कैमिकल मुक्त खेती और अतिरिक्त आय, दोनों सुनिश्चित कर रहा है। ये है गोबरधन योजना। इसके तहत देशभर में वेस्ट से वेल्थ बनाने का काम किया जा रहा है। गोबर से, कचरे से, बिजली और जैविक खाद बनाने का ये बहुत बड़ा माध्यम बनता जा रहा है। सरकार ऐसे प्लांट्स का एक बहुत बड़ा नेटवर्क आज तैयार कर रही है। देश में अनेक बड़ी-बड़ी कंपनियों ने 50 से ज्यादा बायो-गैस प्लांट्स तैयार किए हैं। गोबर्धन प्लांट्स के लिए सहकारी समितियों को भी आगे आने की आवश्यकता है। इससे पशुपालकों को तो लाभ होगा ही, जिन पशुओं को सड़कों पर छोड़ दिया गया है, उनका भी सदुपयोग हो पाएगा।
साथियों,
आप सभी डेयरी सेक्टर में, पशुपालन के सेक्टर में बहुत व्यापक रूप से काम करते हैं। बहुत बड़ी संख्या में पशुपालक, सहकारिता आंदोलन से जुड़े हैं। आप सभी जानते हैं कि पशुओं की बीमारी एक पशुपालक को कितने बड़े संकट में डाल सकती है। लंबे समय तक फुट एंड माउथ डिजीज़, मुंहपका और खुरपका, हमारे पशुओं के लिए बहुत बड़े संकट का कारण रही है। इस बीमारी के कारण हर साल हज़ारों करोड़ रुपए का नुकसान पशुपालकों को होता है। इसलिए, पहली बार केंद्र सरकार ने भारत सरकार ने इसके लिए पूरे देश में एक मुफ्त टीकाकरण अभियान चलाया है। हमें कोविड का मुफ्त वैक्सीन तो याद है, ये पशुओं के लिए उतना ही बड़ी मुफ्त वैक्सीन का अभीयान चल रहा है। इसके तहत 24 करोड़ जानवरों का टीकाकरण किया जा चुका है। लेकिन अभी हमें FMD को जड़ से खत्म करना बाकी है। टीकाकरण अभियान हो या फिर जानवरों की ट्रेसिंग हो, इसके लिए सहकारी समितियों को आगे आना चाहिए। हमें ये याद रखना होगा कि डेयरी सेक्टर में सिर्फ पशुपालक ही स्टेकहोल्डर नहीं हैं, मेरी ये भावना का आदर करना साथियों, सिर्फ पशुपालक ही स्टेकहोल्डर नहीं हैं बल्कि हमारे पशु भी उतने ही स्टेकहोल्डर हैं। इसलिए इसे अपना दायित्व समझकर हमें योगदान देना होगा।
साथियों,
सरकार के जितने भी मिशन हैं, उनको सफल बनाने में सहकारिता के सामर्थ्य में मुझे कोई संदेह नहीं है। और मैं जिस राज्य से आता हूं, वहां की मैंने सहकारिता की ताकत को देखा है। सहकारिता ने आज़ादी के आंदोलन में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसलिए, एक और बड़े काम से जुड़ने के आग्रह से मैं खुद को नहीं रोक पा रहा। मैंने आह्वान किया है कि आज़ादी के 75 वर्ष के अवसर पर हर जिले में 75 अमृत सरोवर बनाएं। एक वर्ष से भी कम समय में करीब 60 हज़ार अमृत सरोवर देशभर में बनाए जा चुके हैं। बीते 9 वर्षों में सिंचाई हो, या पीने का पानी हो, उसको घर-घर, खेत-खेत पहुंचाने के लिए जो काम सरकार ने किए हैं, ये उसका विस्तार है। ये पानी के स्रोत बढ़ाने का रास्ता है। ताकि किसानों को, हमारे पशुओं को पानी की कमी ना आए। इसलिए सहकारी सेक्टर से जुड़े साथियों को भी इस पावन अभियान से ज़रूर जुड़ना चाहिए। आपकी किसी भी क्षेत्र की सहकारिता में एक्टिविटी हो, लेकिन आपकी क्षमता के अनुसार आप तय कर सकते हैं कि भई हमारी मंडली है, एक तालाब बनाएगी, दो बनाएगी, पांच बनाएगी, दस बनाएगी। लेकिन हम पानी की दिशा में काम करें। गांव-गांव में अमृत सरोवर बनेंगे तो भावी पीढ़ियां हमें बहुत आभार के साथ याद करेंगी। आज जो हमें पानी उपलब्ध हो रहा है ना, वो हमारे पूर्वजों के प्रयासों का परिणाम है। हमें हमारी भावी संतानों के लिए, उनके लिए भी हमें कुछ छोड़ के जाना है। पानी से जुड़ा ही एक और अभियान Per Drop More Crop का है। स्मार्ट सिंचाई को हमारा किसान कैसे अपनाए, इसके लिए जागरूकता बहुत आवश्यक है। ज्यादा पानी, ज्यादा फसल की गारंटी नहीं है। माइक्रो इरिगेशन का कैसे गांव-गांव तक विस्तार हो, इसके लिए सहकारी समितियों को अपनी भूमिका का भी विस्तार करना होगा। केंद्र सरकार इसके लिए बहुत मदद दे रही है, बहुत प्रोत्साहन दे रही है।
साथियों,
एक प्रमुख विषय है भंडारण का भी। अमित भाई ने उसका काफी वर्णन किया है। अनाज के भंडारण की सुविधा की कमी से लंबे समय तक हमारी खाद्य सुरक्षा का और हमारे किसानों का बहुत नुकसान हुआ। आज भारत में हम जितना अनाज पैदा करते हैं, उसका 50 प्रतिशत से भी कम हम स्टोर कर सकते हैं। अब केंद्र सरकार दुनिया की सबसे बड़ी भंडारण योजना लेकर आई है। बीते अनेक दशकों में देश में लंबे अर्से तक जो भी काम हो उसका परिणाम क्या हुआ। करीब-करीब 1400 लाख टन से अधिक की भंडारण क्षमता हमारे पास है। आने वाले 5 वर्ष में इसका 50 प्रतिशत यानि लगभग 700 लाख टन की नई भंडारण क्षमता बनाने का हमारा संकल्प है। ये निश्चित रूप से बहुत बड़ा काम है, जो देश के किसानों का सामर्थ्य बढ़ाएगा, गांवों में नए रोज़गार बनाएगा। गांवों में खेती से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए पहली बार एक लाख करोड़ रुपए का स्पेशल फंड भी हमारी सरकार ने बनाया है। मुझे बताया गया है कि इसके तहत बीते 3 वर्षों में 40 हज़ार करोड़ रुपए का निवेश हो चुका है। इसमें बहुत बड़ा हिस्सा सहकारी समितियों का है, PACS का है। फार्मगेट इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में, कोल्ड स्टोरेज जैसी व्यवस्थाओं के निर्माण में सहकारी सेक्टर को और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
साथियों,
मुझे विश्वास है, नए भारत में सहकारिता, देश की आर्थिक धारा का सशक्त माध्यम बनेगी। हमें ऐसे गांवों के निर्माण की तरफ भी बढ़ना है, जो सहकारिता के मॉडल पर चलकर आत्मनिर्भर बनेंगे। इस ट्रांसफॉर्मेशन को और बेहतर कैसे किया जा सकता है, इस पर आपकी चर्चा बहुत अहम सिद्ध होगी। को-ऑपरेटिव्स में भी को-ऑपरेशन को और बेहतर कैसे बनाएं, आप इस पर भी जरूर चर्चा करिए। को-ऑपरेटिव्स को राजनीति के बजाय समाज नीति और राष्ट्रनीति का वाहक बनना चाहिए। मुझे विश्वास है, आपके सुझाव देश में सहकार आंदोलन को और मजबूती देंगे, विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में मदद करेंगे। एक बार फिर आप सबके बीच आने का अवसर मिला, आनंद हुआ। मेरी तरफ से भी आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं!
धन्यवाद !