Quote"पुस्तक मेला नए और युवा लेखकों के लिए एक मंच बन गया है, और यह गुजरात के साहित्य और ज्ञान के विस्तार में भी मदद कर रहा है"
Quote"पुस्तक और ग्रंथ, ये दोनों हमारी विद्या उपासना के मूल तत्व हैं"
Quote"हम स्वतंत्रता संग्राम के भुला दिए गए अध्यायों के महत्व को देश के समक्ष प्रस्तुत करना चाहते हैं"
Quote"तकनीक हमारे लिए निःसन्देह जानकारी का एक महत्वपूर्ण जरिया है, लेकिन यह किताबों और किताबों के अध्ययन का स्थान नहीं ले सकती"
Quote"जब जानकारी हमारे दिमाग में होती है, तो मस्तिष्क उस जानकारी को गहराई से संसाधित करता है, और यह नये आयामों को जन्म देता है। इससे नए शोध और नवाचार के रास्ते खुलते हैं। इसमें किताबें हमारी सबसे अच्छी दोस्त बन जाती हैं"

कलम नो कार्निवल' के इस भव्य आयोजन के लिए आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें। नवभारत साहित्य मंदिर' ने हर वर्ष अहमदाबाद में पुस्तक मेले की जो परंपरा शुरू की है, ये समय के साथ और ज्यादा समृद्ध होती जा रही है। इसके जरिए गुजरात के साहित्य और ज्ञान का विस्तार तो हो ही रहा है, साथ ही नए युवा साहित्यकारों, लेखकों को भी एक मंच मिल रहा है।

मैं इस समृद्ध परंपरा के लिए 'नवभारत साहित्य मंदिर' और उससे जुड़े सभी सदस्यों को बधाई देता हूँ। विशेष रूप से महेंद्र भाई, रोनक भाई, उनको भी शुभकामनायें देता हूँ, जिनके प्रयासों से इस पुस्तक मेले का लाभ गुजरात के लोगों को मिल रहा है।

साथियों,

'कलम नो कार्निवल' गुजराती भाषा के साथ-साथ, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा की किताबों का भी एक बड़ा सम्मेलन है। इस आयोजन का जो उद्देश्य आप लोगों ने रखा है, 'वांचे गुजरात, वांचनने वधावे गुजरात', ये भी अपने-आप में बहुत ही प्रासंगिक है। जब मैं गुजरात में आप सबके बीच काम कर रहा था, तब गुजरात ने भी 'वांचे गुजरात' अभियान शुरू किया था। आज 'कलम नो कार्निवल' जैसे अभियान गुजरात के उस संकल्प को आगे बढ़ा रहे हैं।

साथियों,

पुस्तक और ग्रंथ, ये दोनों हमारी विद्या उपासना के मूल तत्व हैं। गुजरात में पुस्तकालयों की तो बहुत पुरानी परंपरा रही है। हमारे वडोदरा के महाराजा सयाजीराव जी ने अपने क्षेत्र के सभी क्षेत्रों में प्रम्रुख स्‍थानों पर पुस्तकालयों की स्थापना की थी। मेरा जन्‍म उस गांव में हुआ था जहां बहुत अच्‍छी लायब्रेरी रही मेरे गांव वाडनगर में। गोंडल के महाराजा भगवत सिंह जी ने 'भगवत गोमंडल' जैसा विशाल शब्दकोश दिया। मैं तो कभी-कभी सोचता हूं, कभी लोग मुझे कहते हैं कि भई मैं जब गुजरात में था तो परिवारों में बड़ी चर्चा होती थी बच्‍चों के नाम को ले करके और फिर वो किताबें ढूंढते थे कि बच्‍चों के नाम क्‍या रखें। तो एक बार मेरे सामने किसी ने विषय रखा, मैंने कहा आप 'भगवत गोमंडल' देख लीजिए, इतने गुजराती शब्‍द मिलेंगे आपको उसमें से आपके बच्‍चों के लिए नाम के लिए अनुकूल चीज मिल जाएगी। और वाकई इतने reference, इतने अर्थ, ये समृद्ध परपंरा हमारे पास है।

ठीक उसी तरह वीर कवि नर्मद ने 'नर्म कोष' का संपादन किया। और ये परंपरा हमारे केका शास्‍त्री जी तक चली। केका शास्‍त्री जी, जो 100 साल से भी ज्‍यादा समय हमारे बीच रहे, उन्‍होंने भी इस क्षेत्र में बहुत योगदान दिया। पुस्तकों, लेखकों, साहित्य रचना के विषय में गुजरात का इतिहास बहुत समृद्ध रहा है। मैं चाहूँगा कि ऐसे पुस्तक मेले गुजरात के हर कोने में जन-जन तक, हर युवा तक पहुंचे, ताकि उन्हें इस इतिहास का भी पता चले और उन्हें नई प्रेरणा भी मिले।

साथियों,

इस वर्ष ये पुस्तक मेला एक ऐसे समय में आयोजित हो रहा है जब देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। अमृत महोत्सव का एक आयाम ये भी है कि हम हमारी आजादी की लड़ाई के इतिहास को कैसे पुनर्जीवित करें। हमारी भावी पीढ़ी को ये हम कैसे सुपुर्द करें। आजादी के लड़ाई के जो भूले-बिसरे अध्याय हैं, उनके गौरव को हम देश के सामने लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और आप सबके प्रयास से ये संभव भी है।

'कलम नो कार्निवल' जैसे आयोजन देश के इस अभियान को गति दे सकते हैं। पुस्तक मेले में आजादी की लड़ाई से जुड़ी किताबों को विशेष महत्व दिया जा सकता है, ऐसे लेखकों को एक मजबूत मंच दिया जा सकता है। मुझे विश्वास है, ये आयोजन इस दिशा में एक सकारात्मक माध्यम साबित होगा।

साथियों,

हमारे यहाँ कहा शास्‍त्रों में कहा जाता है-

शास्त्र सुचिन्तित पुनि पुनि देखिअ।

अर्थात्, शास्त्रों को, ग्रन्थों और पुस्तकों का बार-बार अध्ययन करते रहना चाहिए, तभी वो प्रभावी और उपयोगी रहते हैं। ये बात इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि आज इंटरनेट के जमाने में ये सोच हावी होती जा रही है कि जब जरूरत होगी तो इंटरनेट की मदद ले लेंगे। तकनीक हमारे लिए निःसन्देह जानकारी का एक महत्वपूर्ण जरिया है, लेकिन वो किताबों को, किताबों के अध्ययन को रिप्लेस करने का एक तरीका नहीं है। जब जानकारी हमारे दिमाग में होती है, तो दिमाग उस जानकारी को गहराई से process करता है, उससे जुड़े हुए नए आयाम हमारे दिमाग में आते हैं।

अब मैं एक छोटा-सा आपको काम देता हूं। हम सबने नरसी मेहता के द्वारा रचित 'वैष्‍णव जन तो तै ने रे कहिए' कितनी ही बार सुना होगा, कितनी ही बार बोला होगा। एक काम कीजिए, आप उसको लिखित रूप में अपने सामने ले करके बैठिए और सोचिए कि इस रचना में वर्तमान के संदर्भ में क्‍या–क्‍या है। कौन-सी बातें अनुकूल हैं। मैं विश्‍वास से कहता हूं कि जिस वैष्‍णव जन को आपने हजारों बार सुना है, लिखित रूप में अपने सामने ले करके जब सोचना शुरू करोगे, वर्तमान के संदर्भ में समझने का प्रयास करोगे, उसमें से भी आपको नए सैंकड़ों अर्थ हर बार मिलते जाएंगे। ये ताकत होती है और इसलिए पुस्‍तक का हमारे पास होना, हमारे साथ होना, हमारे सामने होना, वो नए-नए इनोवेशन के लिए, नए-नए अनुसंधान के लिए सोचने के, तर्क-वितर्क को गहराई तक ले जाने के लिए बहुत बड़ी ताकत देता है।

इसलिए, बदलते समय के साथ किताबों की, किताबों को पढ़ने की हमारी आदत बनी रहे, ये बहुत जरूरी है। फिर किताबें चाहें फ़िज़िकल फॉर्म में हो या डिजिटल फॉर्म में! मैं मानता हूँ, इस तरह के आयोजन युवाओं में किताबों के लिए जरूरी आकर्षण पैदा करने में, उनकी अहमियत को समझाने में भी बड़ी भूमिका अदा करेंगे।

साथियो,

मैं ये भी कहना चाहूंगा और जब आज गुजरात के लोगों के साथ बैठ कर बात कर रहा हुं तब कभी हमने सोचा है की हम नया घर बना रहें हो तब आर्किटेक के साथ बहुत सारी चर्चा करते हैं। यहां आप डाईनिंग रूम बनाना, यहां ड्रोईंग रूम बनाना, कभी कभी कोई ये भी कहता है की यहां पूजा घर बनाएगा, कुछ लोग इससे भी आगे बढ कर कहते है की मेरे कपडें रखने के लिए व्यवस्था यहां करना, लेकिन मेरी आपसे बिनती है की कभी नया मकान बनाते वक्त, हम क्या हमारे आर्किटेक को ऐसा कहते है की भाई, एक एसी जगह बनाना, जहां हमारा पुस्तकों का भंडार रह सके। मैं भी पुस्तको के भंडारवाली जगह पर जाउं, मेरे बच्चों को ले जाउं, आदत डालुं, मेरे घर का एक कोना ऐसा हो, जो पुस्तकों के लिए विशेष रुप से सजाया गया हो। हम ऐसा नहीं कहते हैं।

आपको पता होगा की मैं गुजरात में एक आग्रह बहुत करता था, कोई भी कार्यक्रम हो मैं कहता था मंच पर, भाई, बुके नहीं बुक दिजिए, क्योंकी 100-200 रूपए का बुके ले आएं उसका आयुष्य भी बहुत कम होता है। मैं ऐसा कहता की बुक ले आईएं, मुझे पता था उसकी वजह से किताबों की बिक्री भी बढे, प्रकाशको, लेखको को आर्थिक मदद भी चाहिए कि नहीं। हम कई बार किताब खरीदते ही नहीं है। सही में किताब खरीदना भी एक समाज सेवा है। क्योंकी इस प्रकार के कार्यो के साथ समर्पित जो जीवन है उस जीवनो के लिए हमारा सहयोग स्वाभाविक होना चाहिए। आज किताब खरीदने की आदत डालनी चाहिए। किताब के रखरखाव की, रखने की आदत डालनी चाहिए और मैंने अनेक लोगों को गुजरात में देखा था वो लोग घर घर जाकर किताबें देते और बिनती करते की ये किताब पढना और खरीदने जैसा लगे तो खरीदना नहीं तो मुझे वापिस कर देना। ऐसे बहुत सारे लोग हमने देखें है। मुझे याद है हमारे भावनगर में एक सज्जन किताब की परब चलाते थे। इस प्रकार के कार्यो बहुत सारे लोग करते रहे है। लेकिन हमारी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए की हम परिवार में, और हमारे यहां तो कहते हैना, सरस्वति ये लुप्त है, गुप्त है। विज्ञान से अलग साहित्यिक कार्यक्रमो में मैं अलग तर्क देता हुं। और ये साहित्यवाली दुनिया का तर्क है। ये सरस्वति तो ज्ञान की देवी है। वह लुप्त है, गुप्त है इसका मतलब ये हुआ की ये सरस्वति बीता हुआ कल, आज और भविष्य तीनों को लुप्त अवस्था में जोडती रहती हैं। ये सरस्वति किताबों के माध्यम से इतिहास को, वर्तमान को और उज्जवल भविष्य को जोडने का कार्य करतीं हैं। इसिलिए किताबों के मेले के महात्म्य को समजें, हमारे परिवार के साथ जाना चाहिए, किताबों के मेले में तो परिवार के साथ जाना चाहिए। और किताब को हाथ लगाकर देखें तो लगेगा की अच्छा ये भी है यहां, इसके पर भी विचार किया गया है, अनेक चीजो उपलब्ध होती है। इसलिए मेरे अपेक्षा है मेरे सभी गुजरात के भाईओ-बहनों से की बहुत पढें बहुत विचार करें। और बहुत मंथन करें, आनेवाली पीढियों को बहुत कुछ दें। और गुजरात के जो मूर्धन्य साहित्यकारों है उनके प्रति हमारी एक आदरांजलि भी होगी, शब्द के जो साधकों है, सरस्वति के जो पुजारी है, उन्हें भी इस मेले में हमारी सक्रिय भागीदारी एक प्रकार से आदरांजलि बनेगी। मेरी आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएं है, फिर एक बार विचार को, वाचक को सबको आदरपूर्वक नमन कर के मेरी बात पूर्ण कर रहा हुं।

इसी भावना के साथ, आप सभी को एक बार फिर बहुत-बहुत शुभकामनायें।

धन्‍यवाद!

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Prime Minister condoles passing of Dr. Shankar Rao Tatwawadi Ji
March 13, 2025

The Prime Minister, Shri Narendra Modi condoled passing of Dr. Shankar Rao Tatwawadi Ji, today. Shri Modi stated that Dr. Shankar Rao Tatwawadi Ji will be remembered for his extensive contribution to nation-building and India's cultural regeneration."I consider myself fortunate to have interacted with him on several occasions, both in India and overseas. His ideological clarity and meticulous style of working always stood out" Shri Modi added.

The Prime Minister posted on X :

"Pained by the passing away of Dr. Shankar Rao Tatwawadi Ji. He will be remembered for his extensive contribution to nation-building and India's cultural regeneration. He dedicated himself to RSS and made a mark by furthering its global outreach. He was also a distinguished scholar, always encouraging a spirit of enquiry among the youth. Students and scholars fondly recall his association with BHU. His various passions included science, Sanskrit and spirituality.

I consider myself fortunate to have interacted with him on several occasions, both in India and overseas. His ideological clarity and meticulous style of working always stood out.

Om Shanti