नमस्कार !
शिक्षक पर्व के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में हमारे साथ जुड़ रहे कैबिनेट में मेरे सहयोगी श्री धर्मेंद्र प्रधान जी, श्रीमती अन्नपूर्णा देवी जी ,डॉ. सुभास सरकार जी, डॉ. राजकुमार रंजन सिंह जी, देश के अलग-अलग राज्यों के माननीय शिक्षा मंत्री गण, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप को तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष डॉ. कस्तूरी रंगन जी, उनकी टीम के सभी माननीय सम्मानित सदस्यगण, पूरे देश से हमारे साथ मौजूद सभी विद्वान प्राचार्यगण, शिक्षकगण और प्यारे विद्यार्थियों!
मैं सबसे पहले, राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले हमारे शिक्षकों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। आप सभी ने कठिन समय में देश में शिक्षा के लिए, विद्यार्थियों के भविष्य के लिए जो एक निष्ठ प्रयास किया है, योगदान दिया है, वो अतुलनीय है, सराहनीय है। इस कार्यक्रम में हमारे जो विद्यार्थी उपस्थित हैं, मैं उनके भी चेहरे स्क्रीन पर देख रहा हूँ। डेढ़-दो सालों में पहली बार ये अलग सी चमक आपके चेहरों पर दिख रही है। ये चमक संभवत: स्कूल्स खुलने की लगती है। लंबे समय बाद स्कूल जाना, दोस्तों से मिलना, क्लास में पढ़ाई करना, इसका आनंद ही कुछ और होता है। लेकिन उत्साह के साथ-साथ कोरोना नियमों का पालन भी हम सबको, आपको भी पूरी कड़ाई से करना है।
साथियों,
आज शिक्षक पर्व के अवसर पर अनेक नई योजनाओं का प्रारंभ हुआ है। और अभी हमने एक छोटी सी फिल्म के द्वारा इन सभी योजनाओं के विषय में जानकारी प्राप्त की। ये initiative इसलिए भी अहम है क्योंकि देश अभी आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आज़ादी के 100 वर्ष होने पर भारत कैसा होगा, इसके लिए आज भारत नए संकल्प ले रहा है।आज जो योजनाएं शुरू हुई हैं, वो भविष्य के भारत को आकार देने में अहम भूमिका निभाएंगी। आज विद्यांजलि-2.0, निष्ठा-3.0, talking books और UDL based ISL-Dictionary जैसे नए प्रोग्राम्स और व्यवस्थाएं launch की गई हैं। School Quality Assessment and Assurance Framework, यानी S.Q.A.A.F जैसी आधुनिक शुरुआत भी हुई है, मुझे पूरा भरोसा है कि ये न केवल हमारे education system को globally competitive बनाएँगी, बल्कि हमारे युवाओं को भी future ready बनाने में बहुत मदद करेंगी।
साथियों,
इस कोरोनाकाल में आप सभी दिखा चुके हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था का सामर्थ्य कितना ज्यादा है। चुनौतियाँ अनेक थीं, लेकिन आप सभी ने उन चुनौतियों का तेजी से समाधान भी किया। ऑनलाइन क्लासेस, ग्रुप वीडियो कॉल, ऑनलाइन प्रोजेक्ट्स, ऑनलाइन एक्जाम्स, पहले ऐसे शब्द भी बहुत लोगों ने सुने ही नहीं थे। लेकिन हमारे टीचर्स ने, पैरेंट्स ने, हमारे युवाओं ने इन्हें सहजता से दैनिक जीवन का हिस्सा बना दिया!
साथियों,
अब समय है कि हम अपनी इन क्षमताओं को आगे बढ़ाएँ। हमने इस मुश्किल समय में जो कुछ सीखा है उसे एक नई दिशा दें। सौभाग्य से, आज एक ओर देश के पास बदलाव का वातावरण है तो साथ ही नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसी आधुनिक और futuristic policy भी है। इसीलिए, पिछले कुछ समय से देश लगातार education sector में एक के बाद एक नए निर्णय ले रहा है, एक transformation होते देख रहा है। और इसके पीछे जो सबसे बड़ी शक्ति है, उस ओर मैं आप सभी विद्वानों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। ये अभियान केवल policy based नहीं है, बल्कि participation based है। NEP के formulation से लेकर implementation तक, हर स्तर पर academicians का, experts का, teachers का, सबका योगदान रहा है। आप सभी इसके लिए प्रशंसा के पात्र हैं। अब हमें इस भागीदारी को एक नए स्तर तक लेकर जाना है, हमें इसमें समाज को भी जोड़ना है।
साथियों,
हमारे यहां कहा गया है-
व्यये कृते वर्धते एव नित्यम् विद्याधनम् सर्वधन प्रधानम् ॥
अर्थात्, विद्या सभी संपदाओं में, सभी संपत्तियों में सबसे बड़ी संपत्ति है। क्योंकि विद्या ही ऐसा धन है जो दूसरों को देने से, दान करने से बढ़ती है। विद्या का दान, शिक्षा देने वाले के जीवन में भी बहुत बड़ा परिवर्तन लाता है। इस कार्यक्रम में जुड़े आप सभी शिक्षकों ने भी हृदय से ये महसूस किया होगा। किसी को कुछ नया सिखा देने का जो सुख और संतोष होता है, वो अलग ही होता है। 'विद्यांजलि 2.0, इसी पुरातन परंपरा को अब एक नए कलेवर में मजबूत करेगी। देश ने 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' के साथ 'सबका प्रयास' का जो संकल्प लिया है, 'विद्यांजलि 2.0' उसके लिए एक बहुत ही जीवन्त platform की तरह है। Vibrant Platform की तरह है। इसमें हमारे समाज को, हमारे प्राइवेट सेक्टर को आगे आना है और सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में अपना योगदान देना है।
साथियों,
अनादि काल से भारत में समाज की सामूहिक शक्ति पर भरोसा किया गया है। ये अरसे तक हमारी सामाजिक परंपरा का हिस्सा रहा है। जब समाज मिलकर कुछ करता है, तो इच्छित परिणाम अवश्य मिलते हैं। और आपने ये देखा होगा, और देखा है कि बीते कुछ वर्षों में जन-भागीदारी अब फिर भारत का नेशनल कैरेक्टर बनता जा रहा है। पिछले 6-7 वर्षों में जन-भागीदारी की ताकत से भारत में ऐसे-ऐसे कार्य हुए हैं, जिनकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। चाहे स्वच्छता आंदोलन हो, Give it Up की स्पिरिट से हर गरीब के घर में गैस का कनेक्शन पहुंचाना हो, गरीबों को डिजिटल लेन-देन सिखाना हो, हर क्षेत्र में भारत की प्रगति ने, जन-भागीदारी से ऊर्जा पाई है। अब 'विद्यांजलि' भी इसी कड़ी में एक सुनहरा अध्याय बनने जा रही है। 'विद्यांजलि' देश के हर नागरिक के लिए आह्वान है कि वो इसमें भागीदार बने, देश के भविष्य को गढ़ने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाए! दो कदम आगे आएं। आप एक इंजीनियर हो सकते हैं, एक डॉक्टर हो सकते हैं, एक रिसर्च साइंटिस्ट हो सकते हैं, आप कहीं IAS ऑफिसर बनकर के कहीं कलैक्टर के रूप में कहीं काम करते हों। फिर भी आप किसी स्कूल में जाकर बच्चों को कितना कुछ सिखा सकते हैं!
आपके जरिए उन बच्चों को जो सीखने को मिलेगा, उससे उनके सपनों को नई दिशा मिल सकती है। आप और हम ऐसे कितने ही लोगों के बारे में जानते हैं, जो ऐसा कर भी रहे हैं। कोई बैंक का रिटायर्ड मैनेजर है लेकिन उत्तराखंड में दूर-दराज पहाड़ी क्षेत्रों के स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहा है निवृत्ति के बाद।कोई मेडिकल फील्ड से जुड़ा है लेकिन गरीब बच्चों को ऑनलाइन क्लासेस दे रहा है, उनके लिए संसाधन उपलब्ध करवा रहा है। यानी, आप चाहे समाज में किसी भी भूमिका में हों, सफलता की किसी भी सीढ़ी पर हों, युवाओं के भविष्य निर्माण में आपकी भूमिका भी है, और भागीदारी भी है! अभी हाल ही में संपन्न हुए टोक्यो ओलम्पिक और पैरा-ओलम्पिक में हमारे खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया है। हमारे युवा इनसे कितना प्रेरित हुए हैं। मैंने अपने खिलाड़ियों से अनुरोध किया है कि आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर हर खिलाड़ी कम से कम 75 स्कूलों में जाये। मुझे खुशी है कि इन खिलाड़ियों ने मेरी बात को स्वीकार किया है। और मैं सभी माननीय शिक्षकगण से कहूंगा, आचार्यगण से कहूंगा कि आप अपने इलाके में इन खिलाड़ियों से संपर्क कीजिए। उनको अपने स्कूल में बुलाइये। बच्चों के साथ उनका संवाद करवाइये। देखिए इससे हमारे स्टूडेंट्स को कितनी प्रेरणा मिलेगी, कितने प्रतिभावान स्टूडेंट्स को खेलों में आगे जाने का हौसला मिलेगा।
साथियों,
आज एक और महत्वपूर्ण शुरुआत School Quality Assessment and Assurance Framework यानी S.Q.A.A.F के माध्यम से भी हो रही है। अभी तक देश में हमारे स्कूलों के लिए, education के लिए कोई एक common scientific framework ही नहीं था। कॉमन फ्रेमवर्क के बिना शिक्षा के सभी पहलुओं जैसे कि- Curriculum, Pedagogy, Assessment, Infrastructure, Inclusive Practices और Governance Process, इन सभी के लिए स्टैंडर्ड बनना मुश्किल होता था। इससे देश के अलग अलग हिस्सों में, अलग अलग स्कूलों में स्टूडेंट्स को शिक्षा में असमानता का शिकार होना पड़ता है। लेकिन S.Q.A.A.F अब इस खाई को पाटने का काम करेगा। इसकी सबसे बड़ी खूबी है कि इस फ्रेमवर्क में अपनी जरूरत के हिसाब से बदलाव करने की flexibility भी राज्यों के पास होगी। स्कूल्स भी इसके आधार पर अपना मूल्यांकन खुद ही कर सकेंगे। इसके आधार पर स्कूलों को एक Transformational Change के लिए प्रोत्साहित भी किया जा सकेगा।
साथियों,
शिक्षा में असमानता को खत्म करके उसे आधुनिक बनाने में National Digital Educational Architecture यानी, N-DEAR की भी बड़ी भूमिका होने वाली है। जैसे UPI इंटरफेस ने बैंकिंग सेक्टर को revolutionize कर दिया है, वैसे ही एन-डियर सभी academic activities के बीच एक सुपर कनेक्ट का काम करेगा। एक स्कूल से दूसरे स्कूल में जाना हो या हाइयर एजुकेशन में एड्मिशन, Multiple Entry-Exit की व्यवस्था हो, या अकैडमिक क्रेडिट बैंक और छात्रों की skills का रेकॉर्ड, सब कुछ एन-डियर के जरिए आसानी से उपलब्ध होगा। ये सभी transformations हमारे 'न्यू एज एजुकेशन' का चेहरा भी बनेंगे, और क्वालिटी एजुकेशन में भेदभाव को भी खत्म करेंगे।
साथियों,
आप सभी इस बात से परिचित हैं कि किसी भी देश की प्रगति के लिए education न केवल Inclusive होनी चाहिए बल्कि equitable भी होनी चाहिए। इसीलिए, आज देश Talking बुक्स और Audio बुक्स जैसी तकनीक को शिक्षा का हिस्सा बना रहा है। Universal Design of Learning यानी UDL पर आधारित 10 हजार शब्दों की इंडियन साइन लैंग्वेज डिक्शनरी को भी विकसित किया गया है। असम के बिहू से लेकर भरत नाट्यम तक, सांकेतिक भाषा हमारे यहाँ सदियों से कला और संस्कृति का हिस्सा रही है। अब देश पहली बार साइन लैंग्वेज को एक सब्जेक्ट के रूप में पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रहा है, ताकि जिन मासूम बच्चों को इसकी विशेष जरूरत है, वो किसी से पीछे न रह जाएँ! ये तकनीक दिव्यांग युवाओं के लिए भी एक नई दुनिया का निर्माण करेगी। इसी तरह, निपुण भारत अभियान में तीन वर्ष से 8 साल तक के बच्चों के लिए Foundational Literacy and Numeracy Mission लांच किया गया है। 3 साल के उम्र से ही सभी बच्चे अनिवार्यतः प्री-स्कूल शिक्षा प्राप्त करे, इस दिशा में जरूरी कदम उठाए जाएंगे। इन सभी प्रयासों को हमें काफी आगे तक लेकर जाना है, और इसमें आप सभी की, विशेषकर के हमारे शिक्षक मित्रों की भूमिका बहुत बड़ी महत्वपूर्ण है।
साथियों,
हमारे शास्त्रों में कहा गया है-
"दृष्टान्तो नैव दृष्ट: त्रि-भुवन जठरे, सद्गुरोः ज्ञान दातुः"
अर्थात्, पूरे ब्रह्मांड में गुरु की कोई उपमा नहीं होती, कोई बराबरी नहीं होती। जो काम गुरु कर सकता है वो कोई नहीं कर सकता। इसीलिए, आज देश अपने युवाओं के लिए शिक्षा से जुड़े जो भी प्रयास कर रहा है, उसकी बागडोर हमारे इन शिक्षक भाई-बहनों के ही हाथों में है। लेकिन तेजी से बदलते इस दौर में हमारे शिक्षकों को भी नई व्यवस्थाओं और तकनीकों के बारे में तेजी से सीखना होता है। 'निष्ठा' ट्रेनिंग प्रोग्राम्स से इस ट्रेनिंग प्रोग्राम का एक अच्छा सा निष्ठा आपके सामने अभी प्रस्तुत किया गया है। इस निष्ठा ट्रेनिंग प्रोग्राम के जरिए देश अपने टीचर्स को इन्हीं बदलावों के लिए तैयार कर रहा है। 'निष्ठा 3.0' अब इस दिशा में एक और अगला कदम है और में इसे बहुत महत्वपूर्ण कदम मानता हूं। हमारे टीचर्स जब Competency Based Teaching, Art-Integration, high-Order Thinking, और Creative and Critical Thinking जैसे नए तौर-तरीकों से परिचित होंगे तो वो भविष्य के लिए युवाओं को और सहजता से गढ़ पाएंगे।
साथियों,
भारत के शिक्षकों में किसी भी ग्लोबल स्टैंडर्ड पर खरा उतरने की क्षमता तो है ही, साथ ही उनके पास अपनी विशेष पूंजी भी है। उनकी ये विशेष पूंजी, ये विशेष ताकत है उनके भीतर के भारतीय संस्कार। और मैं आपको मेरे दो अनुभव बताना चाहता हूं। मैं प्रधानमंत्री बनकर के जब पहली बार भूटान गया। तो वहां का राज परिवार हो, वहां के शासकीय व्यवस्था के लोग हों, बड़े गर्व से कहते थे कि पहले हमारे यहां करीब-करीब सभी टीचर्स भारत से आते थे और यहां के दूर-सुदूर इलाकों में पैदल जाकर के पढ़ाते थे। और जब ये शिक्षकों की बात करते थे। भूटान का राज परिवार हो या वहां के शासक, बड़ा गर्व अनुभव करते थे, उनकी आखों में चमक नजर आती थी। वैसे ही जब में साऊदी अरबीया गया और शायद साऊदी अरबीया के किंग से जब बात कर रहा था तो वो इतने गर्व से मुझे उल्लेख कर रहे थे। कि मुझे भारत के शिक्षक ने पढ़ाया है। मेरा शिक्षक भारत का था। अब देखिए शिक्षक के प्रति कोई भी व्यक्ति कहीं पर भी पहुंचे उनके मन में क्या भाव होता है।
साथियों,
हमारे शिक्षक अपने काम को केवल एक पेशा नहीं मानते, उनके लिए पढ़ाना एक मानवीय संवेदना है, एक पवित्र और नैतिक कर्तव्य है। इसीलिए, हमारे यहाँ शिक्षक और बच्चों के बीच professional रिश्ता नहीं होता, बल्कि एक पारिवारिक रिश्ता होता है। और ये रिश्ता, ये संबंध पूरे जीवन का होता है। इसीलिए, भारत के शिक्षक दुनिया में जहां भी कहीं जाते हैं, अपनी एक अलग छाप छोड़ते हैं। इस वजह से आज भारत के युवाओं के लिए दुनिया में अपार संभावनाएं भी हैं। हमें आधुनिक education eco-system के हिसाब से खुद तैयार करना है, और इन संभावनाओं को अवसरों में बदलना भी है। इसके लिए हमें लगातार इनोवेशन करते रहना होगा। हमें Teaching-Learning Process को लगातार Re-Define और Re-design करते रहना होगा। जो स्पिरिट आपने अभी तक दिखाई है, उसे हमें अब और ऊंचाई देनी होगी, और हौसला देना होगा। मुझे बताया गया है कि शिक्षक पर्व के इस अवसर पर आप आज से 17 सितंबर तक, 17 सितंबर हमारे देश मे विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है। ये विश्वकर्मा अपने आप में निर्माता है, सृजनहार है, जो 7 तारीख से 17 तारीख तक अलग-अलग विषयों पर वर्कशॉप, सेमिनार आयोजित कर रहे हैं। ये अपने आपमें एक सराहनीय प्रयास है। देश भर के इतने टीचर्स, एक्स्पर्ट्स, और पॉलिसी मेकर्स जब एक साथ मंथन करेंगे तो इससे और आजादी के अमृत महोत्सव में इस अमृत की अहमियत और ज्यादा है। आपके इन सामूहिक मंथन से राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सफलतापूर्वक लागू करने में भी काफी मदद मिलेगी। मैं चाहूँगा कि इसी तरह आप लोग अपने शहरों में, गाँवों में भी स्थानीय स्तर पर प्रयास करें। मुझे विश्वास है कि इस दिशा में 'सबके प्रयास' से देश के संकल्पों को नई गति मिलेगी। अमृत महोत्सव में देश ने जो लक्ष्य तय किए हैं, उन्हें हम सब मिलकर हासिल करेंगे। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद और बहुत-बहुत शुभकामनाएं।