हिंदुस्तान टाइम्स के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया
भारत के सामान्य आदमी की बुद्धिमत्ता और क्षमता ने भारत के भाग्य को आकार दिया, भारत को दिशा दिखाई : प्रधानमंत्री
लोगों की प्रगति, लोगों द्वारा प्रगति, लोगों के लिए प्रगति नए और विकसित भारत का हमारा मंत्र है : प्रधानमंत्री
आज भारत अभूतपूर्व आकांक्षाओं से भरा है और हमने इन आकांक्षाओं को अपनी नीतियों का आधार बनाया है: प्रधानमंत्री
हमारी सरकार ने नागरिकों को निवेश के माध्यम से रोजगार, विकास के माध्यम से सम्मान का एक अनूठा संयोजन प्रदान किया है : प्रधानमंत्री
हमारी सरकार का दृष्टिकोण है लोगों के लिए अधिक खर्च, लोगों के लिए अधिक बचत: प्रधानमंत्री
यह सदी भारत की सदी होगी: प्रधानमंत्री

आप सबको नमस्कार।
100 साल पहले हिंदुस्तान टाइम्स का उद्घाटन पूज्य बापू ने किया था…वे गुजराती भाषी थे, और 100 साल के बाद एक दूसरे गुजराती को आपने बुला लिया। इस ऐतिहासिक यात्रा के लिए मैं हिंदुस्तान टाइम्स को और 100 साल की यात्रा में जो-जो लोग इसके साथ जुड़े हैं, जिन-जिन लोगों ने खाद-पानी का काम किया है, संघर्ष किया है, संकट झेले हैं, लेकिन टिके रहे हैं...वे सब आज बधाई के पात्र हैं, अभिनंदन के अधिकारी हैं। मैं आप सबको 100 साल की यात्रा बहुत बड़ी होती है जी। आप सब इस अभिनंदन के हकदार हैं, और मेरी तरफ से भविष्य के लिए भी आपको अनेक-अनेक शुभकामनाएं हैं। अभी जब मैं आया तो फैमिली के लोगों से मिलना तो हुआ ही हुआ, लेकिन मुझे 100 साल की यात्रा एक शानदार एग्जीबिशन देखने का अवसर मिला। मैं भी आप सबको कहूंगा कि अगर समय है तो कुछ समय वहां बिताकर ही जाना। यह सिर्फ एक एग्जीबिशन नहीं है, मैं कहता हूं ये एक एक्सपीरियंस है। ऐसा लगा जैसे 100 साल का इतिहास आंखों के सामने से गुजर गया। मैंने उस दिन के अखबार देखें जो देश की स्वतंत्रता और संविधान लागू होने के दिन छपे थे। एक से बढ़कर एक दिग्गज, महानुभाव हिंदुस्तान टाइम्स के लिए लिखा करते थे। मार्टिन लूथर किंग, नेताजी सुभाष बाबू, डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉक्टर एम. एस. स्वामीनाथन। इनके लेखों ने आपके अखबार को चार चांद लगा दिए। वाकई हम बहुत लंबी यात्रा करके यहां तक पहुंचे हैं। स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने से लेकर आजादी के बाद आशाओं के अथाह समंदर की लहरों पर सवार होकर हम आगे बढ़े हैं। ये यात्रा अपने आप में अभूतपूर्व है, अद्भुत है। मैंने आपके अखबार की खबर में उस उत्साह को महसूस किया जो अक्टूबर 1947 में कश्मीर के विलय के बाद हर देशवासी में था। हालांकि उस पल मुझे इसका भी एहसास हुआ कि कैसे अनिर्णय की स्थितियों ने 7 दशक तक कश्मीर को हिंसा में घेर कर रखा। आज आपके अखबार में जम्मू-कश्मीर में हुई रिकॉर्ड वोटिंग जैसी खबरें छपती हैं, ये कंट्रास्ट है। एक और न्यूज़ पेपर प्रिंट एक प्रकार से नजर हर एक की जाएगी वहां, आपकी नजर टिकेगी। उसमें एक तरफ असम को अशांत क्षेत्र घोषित करने की खबर थी, तो दूसरी ओर अटल जी द्वारा बीजेपी की नींव रखे जाने का समाचार था। और ये कितना सुखद संयोग है कि बीजेपी आज असम में स्थाई शांति लाने में बड़ी भूमिका निभा रही है।

अभी कल ही, मैं बोडो क्षेत्र के लोगों के साथ एक शाम शानदार कार्यक्रम में मौजूद था, और मैं हैरान हूं कि दिल्ली की मीडिया ने इस बड़ी घटना को मिस किया है। उन्हें अंदाजा नहीं है कि 5 दशक के बाद बम, बंदूक और पिस्तौल छोड़कर के, हिंसा का रास्ता छोड़कर के दिल्ली की छाती पर बोडो के नौजवान बोडो कल्चरल फेस्टिवल बना रहे हैं। इतिहास की बहुत बड़ी घटना है। मैं कल वहां था, मैं हृदय से फील कर रहा था। बोडो शांति समझौते के कारण इन लोगों का जीवन बदल गया है। एग्जीबिशन के दौरान 26/11 के मुंबई हमले की रिपोर्ट्स पर भी मेरी नजर गई। ये वो समय था जब पड़ोसी देश की आतंकवादी हरकतों की वजह से हमारे लोग अपने घर और शहरों में भी असुरक्षित रहते थे। लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं, अब वहां के आतंकवादी ही अपने घर में सुरक्षित नहीं है।

साथियों,

हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने 100 साल में 25 साल गुलामी के देखे हैं, और 75 साल आजादी के देखें हैं। इन 100 वर्षों में जिस शक्ति ने भारत का भाग्य बनाया है, भारत को दिशा दिखाई है, वो है- भारत के सामान्य मानवी की सूझबूझ, भारत के सामान्य मानवी का सामर्थ्य। भारत के सामान्य नागरिक के इस सामर्थ्य को पहचानने में बड़े-बड़े जानकारों से अक्सर गलतियां हुई है। अंग्रेज जब भारत छोड़कर जा रहे थे तो यह कहा गया कि यह देश बिखर जाएगा, टूट जाएगा…इसका कोई भविष्य नहीं है। जब इमरजेंसी लगी तो कुछ लोगों ने मान लिया था कि अब तो इमरजेंसी हमेशा ही लगी रहेगी, अब लोकतंत्र गया। कुछ लोगों ने, कुछ संस्थानों ने इमरजेंसी थोपने वालों की ही शरण ले ली थी। लेकिन तब भी भारत का नागरिक उठ खड़ा हुआ, और इमरजेंसी को उखाड़ फेंकने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगा था। आप याद कीजिए जब कोरोना का मुश्किल समय आया तो दुनिया को लगता था कि भारत पूरे विश्व समुदाय के लिए बहुत बड़ा बोझ बन जाएगा। लेकिन भारत के नागरिकों ने कोरोना के खिलाफ एक मजबूत लड़ाई लड़ करके दिखाई।

साथियों,

आपको 90 के दशक का वो दौर भी याद होगा जब भारत में 10 साल में 5 चुनाव हुए थे। इतने बड़े देश में 10 साल में 5 चुनाव, देश में कितनी अस्थिरता थी। जानकारों ने, अखबारों में लिखने वालों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि अब भारत को ऐसे ही गुजारा करना है, हिंदुस्तान में सब ऐसे ही चलने वाला है। लेकिन भारत के नागरिकों ने फिर से ऐसे जानकारों को गलत सिद्ध किया। आज दुनिया में चारों तरफ अनसर्टेंटी की, इंस्टेबिलिटी की चर्चा भी है और दिखता भी है। दुनिया के अनेक देश ऐसे हैं जहां पर हर चुनाव में सरकारें बदल रही है, वहीं भारत में लोगों ने तीसरी बार हमारी सरकार को चुना है।

साथियों,

आप में से अनेक साथियों ने लंबे समय तक भारत की पॉलिटिक्स और पॉलिसीज को ट्रैक किया है। पहले हम एक फ्रेज़ अक्सर सुना करते थे- गुड इक्नॉमिक्स इज बैड पॉलिटिक्स। एक्सपर्ट कहे जाने वाले लोग इसे खूब बढ़ावा देते थे। लेकिन इससे पहले की सरकारों को हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने का बहाना मिल जाता था। यह एक तरह से bad governance को, inefficiency को कवर करने का माध्यम बन गया था। पहले सरकार इसलिए चलाई जाती थी कि बस अगला चुनाव जीत लिया जाए। चुनाव जीतने के लिए एक वोट बैंक बनाया जाता था और फिर उस वोट बैंक को खुश करने के लिए योजनाएं बनती थी। इस प्रकार की पॉलिटिक्स ने सबसे बड़ा नुकसान यह किया कि देश में असंतुलित असमानता इसका दायरा बहुत बढ़ता गया। कहने को विकास बोर्ड लग जाता था दिखता नहीं था। असंतुलित अवस्था ने, इस मॉडल ने जनता का सरकारों के प्रति विश्वास तोड़ दिया। हम आज इस विश्वास को वापस लाए हैं। हमने सरकार का एक purpose तय किया है। ये purpose वोटबैंक वाली जो पॉलिटिक्स होती है ना उससे हजारों मील दूर है। हमारी सरकार का purpose, उसका उद्देश्य एक बड़ा है, विराट है, व्यापक है। हम, Progress of the people…Progress by the People…Progress for the People के मंत्र को लेकर चल रहे हैं। हमारा उद्देश्य नया भारत बनाने का है, भारत को विकसित बनाने का है। और जब हम इस विराट लक्ष्य को लेकर निकल पड़े हैं तो भारत की जनता ने भी हमें अपने विश्वास की पूंजी सौंपी है। आप कल्पना कर सकते हैं सोशल मीडिया के इस जमाने में misinformation, disinformation सब कुछ चारों तरफ अपने पैर जमा करके बैठा है। इतने सारे अखबार हैं, इतने सारे चैनल्स हैं, उस दौर में भारत के नागरिक का विश्वास हम पर है, हमारी सरकार पर है।

साथियों,

जब जनता का विश्वास बढ़ता है, आत्मविश्वास बढ़ता है तो देश के विकास पर एक अलग ही प्रभाव दिखता है। आप जानते हैं पुरानी विकसित सभ्यताओं से लेकर आज के विकसित देशों तक एक चीज हमेशा से कॉमन रही है, ये कॉमन चीज है Risk taking का कल्चर। एक समय था जब हमारा देश पूरे विश्व के कॉमर्स और कल्चर का हॉटस्पॉट था। हमारे मर्चेंट्स और सेलर्स एक तरफ साउथ ईस्ट एशिया के साथ काम कर रहे थे, तो दूसरी ओर अरब, अफ्रीका और Roman Empire से भी उनका गहरा नाता जुड़ता था। उस समय के लोगों ने रिस्क लिया और इसलिए भारत के products और services सागर के दूसरे छोर तक पहुंच पाए। आजादी के बाद हमें रिस्क टेकिंग के इस कल्चर को और आगे बढ़ना था। लेकिन आजादी के बाद की सरकारों ने तब के नागरिकों को वो हौसला ही नहीं दिया, इसका परिणाम ये हुआ कि कई पीढ़ियां एक कदम आगे बढ़ाने और दो कदम पीछे खींचने में ही गुजर गई। अब बीते 10 सालों में देश में जो परिवर्तन आए हैं उन्होंने भारत के नागरिकों में रिस्क टेकिंग कल्चर को फिर से नई ऊर्जा दी है। आज हमारा युवा हर क्षेत्र में रिस्क टेकर बनकर उभर रहा है। कभी एक कंपनी शुरू करना रिस्क माना जाता था, 10 साल पहले तक मुश्किल से किसी स्टार्टअप का नाम सुनते थे...आज देश में रजिस्टर्ड स्टार्टअप्स की संख्या सवा लाख से ज्यादा हो गई है। एक जमाना था कि खेलों में और खेलों को प्रोफेशन के रूप में अपनाने में भी रिस्क था, लेकिन आज हमारे छोटे शहरों के नौजवान भी ये रिस्क उठाकर दुनिया में देश का नाम रोशन कर रहे हैं। आप सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़ी महिलाओं का भी उदाहरण लीजिए, आज देश में करीब एक करोड़ लखपति दीदी बनी हैं। ये गांव-गांव में उद्यमी बनकर अपना कुछ बिजनेस चला रही हैं। मुझे कुछ समय पहले एक ग्रामीण महिला से संवाद करने का अवसर आया, उस महिला ने मुझे बताया था कि कैसे उसने एक ट्रैक्टर खरीदा और अपनी कमाई से पूरे परिवार की आय बढ़ा दी। एक महिला ने एक रिस्क लिया और अपने पूरे परिवार का जीवन बदल डाला। जब देश के गरीब और मिडिल क्लास के लोग रिस्क लेना शुरू कर दें तब बदलाव सही मायने में दिखने लगता है। यही हम भारत में आज होते देख रहे हैं।

साथियों,

आज भारत का समाज अभूतपूर्व aspirations से भरा हुआ है। इन aspirations को हमने अपनी पॉलिसीज का बड़ा आधार बनाया है। हमारी सरकार ने देशवासियों को एक बहुत unique combination दिया है...ये combo, investment से employment, development से dignity का है। हम विकास का ऐसा मॉडल लेकर चल रहे हैं जहां इन्वेस्टमेंट हो, इन्वेस्टमेंट से एंप्लॉयमेंट जनरेट हो, डेवलपमेंट हो और वो डेवलपमेंट भारत के नागरिकों की dignity बढ़ाएं, dignity सुनिश्चित करें। अब जैसे देश में टॉयलेट्स बनाने का एक example है। मैं छोटी चीजें इसलिए हाथ पकड़ा रहा हूं कि कभी-कभी हमें लगता है इसका कोई मूल्य ही नहीं है...लेकिन इसकी कितनी बड़ी ताकत होती है मैं आपको उदाहरण से बताना चाहता हूं। हमारे देश में हमने एक मिशन लिया टॉयलेट बनाने का, देश की बहुत बड़ी आबादी के लिए ये सुविधा के साथ-साथ सिक्योरिटी और डिग्निटी का भी माध्यम है। इस योजना की जब बात होती है तो अक्सर कहा जाता है कि इतने करोड़ शौचालय बने हैं… ठीक है बन गए होंगे। लेकिन ये जो शौचालय बने हैं ना उनको बनाने में ईटें लगी हैं, लोहा लगा है, सीमेंट लगा है, काम करने वाले लोग हैं। और ये सारा सामान किसी दुकान से गया है, किसी इंडस्ट्री से बना है। किसी न किसी ट्रांसपोर्टर्स ने किसी के घर तक पहुंचाया है। यानि इससे इकॉनॉमी को भी गति मिली है, बड़ी संख्या में jobs create हुई हैं। जब टॉयलेट बना तो लोगों का जीवन आसान हुआ। लोगों में सम्मान और स्वाभिमान का एक भाव पैदा हुआ। और साथ ही इसने डेवलपमेंट को भी गति दी। यानि Investment से Employment, Development से Dignity इस मंत्र की सफलता जमीन पर दिख रही है।


साथियों,

एक और उदाहरण, एलपीजी गैस सिलेंडर का है। पहले जब किसी के घर में गैस होती थी तो अड़ोस-पड़ोस के लोग ये सोचते थे कि कोई बड़ा व्यक्ति है, उसका बड़ा रुतबा माना जाता, उनके पास गैस का चूल्हा है। जिसके पास गैस कनेक्शन नहीं होता था, वो सोचता था कि काश उसका खाना भी गैस के चूल्हे पर बनता। हालत ये थी कि गैस कनेक्शन के लिए सांसदों से, पार्लियामेंट मेंबर्ससे चिट्ठियां लिखवानी पड़ती थीं, और मैं 21वीं सदी की शुरू की बात कर रहा हूं, ये कोई 18वीं शताब्दी की बात नहीं कर रहा हूं। 2014 से पहले सरकार डिबेट करती थी और डिबेट क्या करती थी? डिबेट ये होती थी कि साल में 6 सिलेंडर देने हैं या फिर 9 सिलेंडर देने हैं...इस पर डिबेट होती थी। हमने सिलेंडर कितने देने हैं, इस डिबेट के बजाय हर घर गैस के चूल्हे का कनेक्शन पहुंचाने को प्राथमिकता बनाया। जितने गैस कनेक्शन आजादी के बाद के 70 साल में दिए गए, उससे ज्यादा हमने पिछले 10 साल में दिए हैं। 2014 में देश में 14 करोड़ गैस कनेक्शन थे, आज 30 करोड़ से ज्यादा हैं। 10 साल में इतने कंज्यूमर बढ़ गए, लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि गैस की किल्लत है? नहीं सुना है, हिंदुस्तान टाइम्स में छपा है कभी...नहीं छपा है...हुआ ही नहीं तो छपेगा कैसे। ये इसलिए नहीं सुनाई देता क्योंकि हमने एक सपोर्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया, उस पर Invest किया। हमने जगह-जगह बॉटलिंग प्लांट लगाए, डिस्ट्रिब्यूशन सेंटर बनाए। बॉटलिंग से लेकर सिलेंडर की डिलीवरी तक इससे हर जगह रोज़गार का निर्माण हुआ।

साथियों,

मैं आपको ऐसे कितने ही उदाहरण दे सकता हूं। मोबाइल फोन का उदाहरण है...रूपे कार्ड का उदाहरण है...पहले डेबिट-क्रेडिट कार्ड रखना, कुछ लोगों को एक अलग गर्व महसूस करवाता था, जेब में से ऐसे निकालता था और लोग देखते थे। और गरीब उसी कार्ड को देखकर सोचता था...काश कभी मेरी जेब में भी। लेकिन रूपे कार्ड आया और आज मेरे देश के गरीब की जेब में भी क्रेडिट-डेबिट कार्ड मौजूद है दोस्तों। अब उसी पल वो उसको बराबरी महसूस करता है, उसका self respect बढ़ जाता है। आज गरीब से गरीब ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करता है। बड़े शॉपिंग मॉल में कोई महंगी कार से उतरकर भी वही UPI इस्तेमाल करता है, जो मेरे देश का रेहड़ी-पटरी पर बैठा हुआ एक सामान्य इंसान भी उसी UPI का उपयोग करता है। ये भी Investment से Employment, Development से Dignity का बेहतरीन उदाहरण है।

साथियों,

भारत आज जिस ग्रोथ ट्रेजेक्टरी पर है...उसे समझने के लिए हमारी सरकार की एक और अप्रोच पर गौर करना ज़रूरी है। ये अप्रोच है- Spending Big For The People लेकिन साथ-साथ दूसरा भी एक अप्रोच है- Save Big For The People. हम ये कैसे कर रहे हैं, ये जानना शायद आपके लिए दिलचस्प होगा। 2014 में हमारा यूनियन बजट 16 लाख करोड़ रुपए के आसपास था। आज ये बजट 48 lakh crore रुपए का है। 2013-14 में हम Capital Expenditure में करीब सवा दो लाख करोड़ रुपये खर्च करते थे। लेकिन आज का Capital Expenditure 11 लाख करोड़ से ज्यादा है। ये 11 लाख करोड़ रुपये आज नए अस्पताल, नए स्कूल, सड़क, रेल, रिसर्च फैसिलिटी, ऐसे अनेक पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च कर रहे हैं। पब्लिक पर खर्च बढ़ाने के साथ ही हम पब्लिक का पैसा भी बचा रहे हैं। मैं आपके सामने कुछ आंकड़े रख रहा हूं और मैं पक्का मानता हूं कि ये आंकड़े सुनकर के आपको लगेगा अच्छा ऐसा भी हो सकता है।

अब जैसे Direct Benefit Transfer, DBT… DBT से जो लीकेज रूकी है, उससे देश के साढ़े 3 लाख करोड़ रुपये बचे हैं। आयुष्मान भारत योजना के तहत मुफ्त इलाज से गरीबों के एक लाख 10 हजार करोड़ रुपए बचे हैं। जनऔषधि केंद्रों में 80 परसेंट डिस्काउंट पर मिल रही दवाइयों से नागरिकों के 30 हजार करोड़ रुपये बचे हैं। स्टेंट और Knee इंप्लांट की कीमतों को नियंत्रित करने से लोगों के हजारों करोड़ रुपए बचे हैं। उजाला स्कीम से लोगों को LED बल्ब से बिजली बिल में 20 हजार करोड़ रुपए की बचत हुई है। स्वच्छ भारत अभियान, स्वच्छ भारत मिशन के कारण बीमारियां कम हुई हैं और इससे गांवों में हर परिवार के करीब 50 हजार रुपये बचे हैं। यूनिसेफ का कहना है कि जिस परिवार के पास अपना टॉयलेट है, उसके भी करीब 70 हजार रुपए बच रहे हैं।

साथियों,

जिन 12 करोड़ लोगों के घर पहली बार नल से जल आया है, WHO ने उन पर भी एक स्टडी कराई है। अब साफ पानी मिलने से ऐसे परिवारों को हर साल 80 हजार रुपये से ज्यादा की बचत हुई है।

साथियों,

10 साल पहले किसी ने नहीं सोचा था कि भारत में इतना बड़ा बदलाव होगा। भारत की सफलता ने हमें और बड़ा सपना देखने और उसे पूरा करने की प्रेरणा दी है। आज एक उम्मीद है, एक सोच है कि ये Century, India की Century होगी। लेकिन ऐसा करने के लिए और तेजी से काम करने के लिए हमें कई सारे प्रयास भी करने होंगे। हम उस दिशा में भी तेजी से काम कर रहे हैं। हमें हर सेक्टर में best करने के लिए आगे बढ़ना होगा। पूरे समाज की ये सोच बनानी होगी कि हमें best से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करना है। हमें अपने प्रोसेस को ऐसा बनाना होगा, कि भारत का स्टैंडर्ड World Class कहा जाए। हमें ऐसे प्रोडक्ट्स बनाने होंगे, कि भारत की चीजें दुनिया में World Class कही जाएं। हमारे constructions पर ऐसे काम हो कि भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर World Class कहा जाए। शिक्षा के क्षेत्र में हमारा काम ऐसा हो कि भारत की Education को World Class स्वीकृति मिले। Entertainment के क्षेत्र में ऐसे काम हो कि हमारी फिल्मों और थिएटरों को दुनिया में World Class कहा जाए। और इस बात को, इस अप्रोच को लगातार जनमानस में बनाए रखने के लिए हिंदुस्तान टाइम्स की भी बहुत बड़ी भूमिका है। आपका 100 साल का अनुभव, विकसित भारत की यात्रा में बहुत काम आएगा।

साथियों,

मुझे पूरा विश्वास है कि हम Development की इस Pace को बरकरार रखेंगे। बहुत जल्द हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनेंगे। और भारत जब शताब्दी मनाएगा आजादी की, भारत की आजादी के 100 साल होंगे तब आप भी करीब-करीब सवा सौ साल के हो जाएंगे, और तब हिंदुस्तान टाइम्स लिखता होगा कि विकसित भारत का ये शानदार अखबार है। इस यात्रा के आप भी साक्षी बनेंगे। लेकिन जब मैं आपके बीच आया हूं तो कुछ काम भी आपको बताना चाहता हूं, और ये भरतीया जी आपकी जिम्मेवारी रहेगी।

देखिए हमारे यहां बड़े-बड़े साहित्यकारों के रचनाओं पर पीएचडी होती है। अलग-अलग शोध पर पीएचडी होती है। शशि जी क्या कोई हिंदुस्तान टाइम्स के 100 साल उस पर ही पीएचडी करें। ये बहुत बड़ी सेवा होगी। उससे रिसर्च होगा यानी एक ऐसी चीज निकल करके आएगी जो हमारे देश की पत्रकारिता की जो जर्नी है, और उसने दोनों कालखंड देखे हैं, गुलामी का कालखंड भी देखा है, आजादी का भी देखा है। उसने अभाव के दिन भी देखें हैं और प्रभाव के दिन भी देखें है। मैं समझता हूं एक बहुत बड़ी सेवा हो सकती है। और बिरला परिवार तो पहले से चैरिटी में विश्वास करने वाला परिवार रहा है। क्यों ना किसी यूनिवर्सिटीज में हिंदुस्तान में भी और हिंदुस्तान के बाहर भी हिंदुस्तान टाइम्स की चेयर हो, और जो भारत को वैश्विक संदर्भ में उसकी सही पहचान के लिए रिसर्च के काम करवाती हो। एक अखबार अपने आप में बहुत बड़ा काम है जो आपने किया है। लेकिन आपके पास इतनी बड़ी पूंजी है 100 साल में आपने जो इज्जत कमाई है, जो विश्वास कमाया है, वो शायद आने वाले पीढ़ियों के लिए हिंदुस्तान टाइम्स के दायरे से बाहर निकाल करके भी उपयोगी हो सकता है। मुझे पूरे विश्वास है कि आप इस 100 वर्ष सेमिनार तक सीमित नहीं रहेंगे, इसको आगे बढ़ाएंगे। दूसरा मैंने जो एग्जीबिशन देखा, वाकई वो प्रभावित करने वाला है। क्या आप इसका एक डिजिटल वर्जन और बहुत अच्छी commentary के साथ, और उसको हमारे देश के सभी स्कूल के बच्चों तक पहुंचा सकते हैं। इससे पता चलेगा कि भारत में यह क्षेत्र कैसा है, कैसे-कैसे भारत के विकास यात्रा में उतार-चढ़ाव आए हैं, किन-किन परिस्थितियों से भारत गुजरा है, यह बहुत जरूरी होता है। और मैं मानता हूं कि आपने इतनी मेहनत तो की है इसका एक डिजिटल वर्जन बनाकर के आप देश के हर स्कूल में पहुंचा सकते हैं, जो बच्चों के लिए भी एक बड़ा आकर्षण का केंद्र बनेगा।

साथियों,

100 साल बहुत बड़ी बात होती है। मैं इन दिनों थोड़े अलग कामों में जरा ज्यादा व्यस्त हूं। लेकिन ये एक ऐसा अवसर था कि मैं छोड़ना नहीं चाहता था आपको, मैं खुद आना चाहता था। क्योंकि 100 साल की यात्रा अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। और इसलिए मैं आपको, आपके पूरे साथियों को सबको हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। धन्यवाद!

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