भारत माता की जय, गुजरात के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्रीय मंत्रिमंडल मेरे मेरे सहयोगी अमित भाई शाह, मनसुख भाई मांडविया, संसद में मेरे साथी सीआर पाटिल, गुजरात सरकार में मंत्री जगदीश भाई विश्वकर्मा, सासंदगण, विधायकगण, गुजरात सरकार के सभी मंत्रीगण, सहकारिता आंदोलन से जुड़े सभी वरिष्ठ महानुभाव! इफको premises में भी एक बड़ा कार्यक्रम इसके साथ parallel चल रहा है। यहां उपस्थित इफको के चेयरमैन दिलीप भाई, इफको के सभी साथी, देशभर में लाखों स्थानों पर आज सारे किसान गुजरात के गांधीनगर के महात्मा मंदिर से जुड़े हुए हैं। मैं उन सभी किसानों को भी नमस्कार करता हूं। आज यहां हम सहकार से समृद्धि की चर्चा कर रहे हैं। सहकार गांव के स्वावलंबन का भी बहुत बड़ा माध्यम है, और उसमें आत्मनिर्भर भारत की ऊर्जा है। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए गांव का आत्मनिर्भर होना बहुत आवश्यक है। और इसलिए तो पूज्य बावू और सरदार साहब ने जो रास्ता हमें दिखाया उसके अनुसार आज हम model cooperative village उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। गुजरात के ऐसे 6 गांव चिन्हित भी किए गए हैं, जहां पूरी तरह से cooperative व्यवस्थाएं लागू की जाएंगी।
साथियों,
आज आत्मनिर्भर कृषि के लिए देश के पहले नैनो यूरिया प्लांट का लोकार्पण करते हुए भी मैं सच्चे हृदय से बताता हूं कि मैं एक विशेष आनंद की अनुभूति करता हूं। जरा कल्पना कीजिए आज जब किसान यूरिया लेने जाता है। उस दृश्य को जरा मन में लाइये और होने वाला क्या है उसका मैं वर्णन कर सकता हूं उसको जरा मन को लाइये। अब यूरिया की एक बोरी उसकी जितनी ताकत है। यानि यूरिया की बोरी की ताकत एक बॉटल में समा गई है। यानि नैनो यूरिया की आधा लीटर बोतल किसान की एक बोरी यूरिया की जरूरत को पूरा करेगी। कितना खर्चा कम हो जाएगा Transportation का, बाकी सब चीजों का। और कल्पना कीजिए, छोटे किसानों के लिए ये कितना बड़ा संबल है।
साथियों,
ये जो आधुनिक प्लांट कलोल में लगा है इसकी कैपेसिटी अभी डेढ़ लाख बोतल के उत्पादन की है। लेकिन आने वाले समय में ऐसे 8 और प्लांट देश में लगने वाले हैं। इससे यूरिया पर विदेशी निर्भरता कम होगी, देश का पैसा भी बचेगा। मुझे उम्मीद है ये इनोवेशन सिर्फ नैनो यूरिया तक ही सीमित नहीं रहेगा। मुझे विश्वास है कि भविष्य में अन्य नैनो फर्टिलाइजर भी हमारे किसानों को मिल सकते हैं। हमारे वैज्ञानिक उस पर आज काम कर भी रहे हैं।
साथियों,
फर्टिलाइज़र में इस नैनो टेक्नॉलॉजी में आत्मनिर्भरता की तरफ जो कदम हमने रखा है, वो कितना महत्वपूर्ण है, ये मैं चाहुंगा हर देशवासी ने समझना चाहिए। भारत में फर्टिलाइज़र के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कंज्यूमर है लेकिन उत्पादन के मामले में हम तीसरे नंबर पर है। ऊपर से 7-8 साल पहले तक हमारे यहां ज्यादातर यूरिया खेत में जाने के बजाय कालाबाज़ारी का शिकार हो जाता था और किसान अपनी ज़रूरत के लिए लाठियां खाने को मजबूर हो जाता था। हमारे यहां जो बड़ी यूरिया की फैक्ट्रियां थीं, वो भी नई टेक्नॉलॉजी के अभाव में बंद हो गई थीं और इसलिए 2014 में सरकार बनने के बाद हमने यूरिया की शत-प्रतिशत नीम कोटिंग का बीड़ा उठाया, उसको किया। इससे देश के किसानों को पर्याप्त यूरिया मिलना सुनिश्चत हुआ। साथ ही हमने उत्तर प्रदेश, बिहार,झारखंड, ओडिशा और तेलंगाना वहां जो 5 बंद पड़े खाद के कारखानें थे, उन बंद पड़े हुए खाद के कारखानों को फिर चालू करने का काम शुरु किया। और उसमे यूपी और तेलंगाना की फैक्ट्रियां चालू हो चुकी हैं, उत्पादन हो रहा है। और बाकी चीज भी बहुत ही जल्द अपना काम करना शुरू कर देंगी।
साथियों,
फर्टिलाइजर की अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भारत दशकों से बहुत बड़ी मात्रा में विदेशों पर dependent है, हम इंपोर्ट करते हैं, आयात करते हैं। हम अपनी ज़रूरत का लगभग एक चौथाई इंपोर्ट करते हैं, लेकिन पोटाश और फॉस्फेट के मामले में तो हमें करीब-करीब शतप्रतिशत विदेशों से लाना पड़ता है। बीते 2 सालों में कोरोना लॉकडाउन के कारण इंटरनेशनल मार्केट में फर्टिलाइज़र की कीमतें बहुत अधिक बढ़ गईं। वो शायद कम था तो युद्ध आ धमका। युद्ध से परिस्थितियों ने फर्टिलाइज़र की वैश्विक बाजार में उपलब्धता भी सीमित कर दी और कीमतों को भी कई गुणा और बढ़ा दिया।
साथियों,
किसानों के प्रति संवेदनशील हमारी सरकार ने तय किया कि अंतर्राष्ट्रीय स्थितियां चिंताजनक है। दाम बढ़ रहे हैं, फर्टिलाइजर को प्राप्त करने के लिए दुनियाभर में दौड़ना पड़ रहा है। कठिनाईयां है, मुसिबतें हैं। लेकिन हमने कोशिश ये की है। कि ये सारी मुसिबतें हम झेलते रहेंगे। लेकिन किसान पर इसका असर नहीं पड़ने देंगे। और इसलिए हर मुश्किल के बावजूद भी हमने देश में फर्टिलाइज़र का कोई बड़ा संकट नहीं आने दिया।
साथियों,
भारत विदेशों से यूरिया मंगाता है उसमें यूरिया का 50 किलो का एक बैग 3500 रुपए का पड़ता है। तीन हजार पांच सौ रुपये का एक बैग, याद रखिये। लेकिन देश के गांव में किसान को वही यूरिया का बैग 3500 से खरीदकर सिर्फ 300 रुपए में दिया जाता है, तीन सौ रुपये में। यानि यूरिया के एक बैग पर हमारी सरकार 3200 रुपए से ज्यादा खुद सरकार उस बोझ को वहन कर रही है। इसी प्रकार DAP के 50 किलो के बैग पर पहले हमारे पूर्व जो सरकारें थीं। उनको 500 रुपए वहन करना होता था एक बैग पर। अंतरराष्ट्रीय बाजार में DAP की कीमतों में उछाल आने के बावजूद, हमारी सरकार ने लगातार प्रयास किया है कि किसानों पर इसका बोझ कम से कम हो। अब हमारी सरकार DAP के 50 किलो के बैग पर 2500 रुपए वहन कर रही है। यानि 12 महीने के भीतर-भीतर हर बैग DAP पर 5 गुणा भार केंद्र सरकार ने अपने ऊपर लिया है। भारत के किसान को दिक्कत ना हो इसके लिए पिछले साल 1 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपए की सब्सिडी फर्टिलाइजर में केंद्र सरकार ने दी है। किसानों को मिलने वाली ये राहत इस साल लगभग 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा होने वाली है।
साथियों,
देश के किसान के हित में जो भी ज़रूरी हो, वो हम करते हैं, करेंगे और देश के किसान की ताकत बढ़ाते रहेंगे। लेकिन हमनें सोचना भी चाहिए क्या हम 21वीं सदी में अपने किसानों को सिर्फ विदेशी परिस्थितियों पर निर्भर रख सकते हैं क्या? हर साल ये जो लाखों करोड़ रुपए केंद्र सरकार खर्च कर रही है, ये विदेश क्यों जाएं? क्या ये भारत के किसानों के काम नहीं आना चाहिए? महंगे फर्टिलाइज़र से किसानों की बढ़ती लागत को कम करने का कोई स्थाई सामाधान क्या हमें नहीं ढूंढना चाहिए?
साथियों,
ये सवाल हैं जो हर सरकार के सामने अतीत में रहे हैं। ऐसा नहीं की सारे मामलें सिर्फ मेरे सामने आए हैं। लेकिन पहले सिर्फ तात्कालिक समस्या का ही समाधान तलाशा गया, आगे वो परिस्थितियां ना आएं इसके लिए बहुत सीमित प्रयास हुए। बीते 8 सालों में हमने तात्कालिक उपाय भी किए हैं और समस्याओं के स्थाई समाधान भी खोजे हैं। कोरोना महामारी जैसी परिस्थितियां भविष्य में ना बनें, इसके लिए हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस किया जा रहा है। खाद्य तेल की समस्या कम से कम हो, इसके लिए मिशन ऑयल पाम पर काम चल रहा है। कच्चे तेल पर विदेशी निर्भरता कम करनी है, इसके लिए बायोफ्यूल्स, ग्रीन हाईड्रोजन और दूसरे उपायों पर आज बड़े स्तर पर प्रयास चल रहे हैं। नैनो टेक्नॉलॉजी पर व्यापक निवेश भी इसी अप्रोच का परिणाम है। इसी प्रकार प्राकृतिक खेती की तरफ किसानों को प्रोत्साहन देने के लिए जो अभियान देश में चल रहा है, वो भी परमानेंट सोल्यूशन का हिस्सा है। और मैं गुजरात के किसानों को विशेष रूप से बधाई देता हूं। गुजरात का किसान प्रगतिशील है, छोटा किसान हो तो भी साहस करने का स्वभाव रखता है और जिस प्रकार से मुझे गुजरात से खबरें आ रही हैं। कि प्राकृतिक खेती की तरफ गुजरात का छोटा किसान भी अब मुड़ने लगा है। लाखों की तादाद में गुजरात में किसान प्राकृतिक खेती के मार्ग पर चल पड़े हैं। मैं इन सब किसानों को हृदय से अभिनंदन करता हूं और इस पहल के लिए मैं उनको प्रणाम करता हूं।
साथियों,
आत्मनिर्भरता में भारत की अनेक मुश्किलों का हल है। और आत्मनिर्भरता का एक बेहतरीन मॉडल, सहकार भी है। ये हमने गुजरात में बहुत सफलता के साथ अनुभव किया है और आप सभी साथी इस सफलता के सेनानी हैं। गुजरात के cooperative सेक्टर से जुड़े सभी महारथी बैठे हैं। मैं हर किसी का चेहरा बैठे-बैठे देख रहा था। सब पुराने साथी जो आज सहकारी क्षेत्र में गुजरात की विकास यात्रा को आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे एक से बढ़कर एक दिग्ग्ज मेरे सामने बैठे हैं। आनंद हो रहा है, जिस तपस्या से आप इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। और सहकार स्पिरिट को लेकर के आगे बढ़ा रहे हैं।
साथियों,
गुजरात तो इसलिए भी सौभाग्यशाली रहा है क्योंकि पूज्य बापू और सरदार साहेब का नेतृत्व यहां हमें मिला। पूज्य बापू ने सहकार से स्वाबलंबन का जो मार्ग दिखाया, उसको सरदार साहेब ने ज़मीन पर उतारने का काम किया। और जब सहकारी की बात आती है जैसे अमित भाई ने उल्लेख किया वैंकट भाई मेहता की याद आना बहुत स्वाभाविक है और आज भी भारत सरकार एक बहुत बड़ी इंस्टीट्यूट उनके नाम पर चलाती है। लेकिन वो भी धीरे-धीरे भुला दिया गया था। इस बार हमने बजट में 25 करोड़ का प्रावधान करके उसको और ताकतवर बनाने का काम शुरू किया है। इतना ही नहीं हमारे यहां तो housing के लिए society, cooperative society इसका पहला प्रयोग हमारे यहां हुआ है। ये जो हमारे पालरेडी में प्रीतमनगर है, वो प्रीतमनगर उसी का उदाहरण है। देश की पहली सहकारी आवास योजना को वो जीता जागता उदाहरण है।
साथियों,
सहकारी क्षेत्र में अमूल एक अपनी पहचान बना दी। अमूल जैसे brand ने पूरी दुनिया में गुजरात के cooperative movement की एक ताकत का परिचय कराया है, पहचान बनाई है। गुजरात में डेयरी, चीनी और बैंकिंग सहकारी आंदोलन के सफलता का उदाहरण है। बीते सालों में तो फल-सब्ज़ी सहित दूसरे क्षेत्रों में भी सहकार का दायरा बढ़ा है।
भाइयों और बहनों,
सहकारिता के सफल प्रयोगों में एक बहुत बड़ा मॉडल देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के लिए हमारे सामने है। डेयरी सेक्टर के cooperative model का उदाहरण हमारे सामने है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है जिसमें गुजरात की बहुत बड़ी हिस्सेदारी है। बीते सालों में डेयरी सेक्टर तेज़ी से बढ़ भी रहा है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ज्यादा कंट्रीब्यूट भी कर रहा है। आज भारत एक साल में लगभग 8 लाख करोड़ रुपए का दूध उत्पादन करता है। 8 लाख करोड़ रुपए का दूध और प्रमुखतया ये कारोबार ज्यादातर हमारी माताए-बहनें संभालती हैं। उसकी दूसरी तरफ देखिए गेहूं और धान का बाजार अगर हम मिलाकर के देखें तो वो दूध उत्पादन से भी कम है। यानि दूघ अगर8 लाख करोड़ का है तो गेहूं और धान का टोटल उससे भी कम है। आप देखिए दूध उत्पादन में हमारे देश ने कितनी बड़ी ताकत खड़ी की है। इसी तरह हम पशुपालन के पूरे सेक्टर को देखें तो ये साढ़े 9 लाख करोड़ रुपए से अधिक का है। ये भारत के छोटे किसानों, भूमिहीन, श्रमिकों के लिए बहुत बड़ा संबल है।
साथियों,
बीते दशकों में गुजरात में अगर गांवों में अधिक समृद्धि देखने को मिली है, तो उसका एक बहुत बड़ा कारण डेयरी सेक्टर से जुड़े cooperatives रहे हैं। और आपको हैरानी होगी हम अगर कोइ्र भी कोई चीज याद कराते हैं तो किसी को लगता है कि हम किसी की आलोचना करते हैं। आलोचना नहीं करते हैं। लेकिन कभी कोई चीज को याद इसलिए करना होता है कि पहले क्या होता था। हमारे देश में, हमारे गुजरात में कच्छ सौराष्ट्र में डेयरी करना, डेयरी का निमार्ण करना इस पर रोक लगाने के प्रावधान किए गए थे। यानि एक प्रकार से illegal activity में डाल दिया गया था। जब मैं यहां था तो हमने कहा भई ये अमूल बढ़ रहा है तो कच्छ की डेयरी भी बढ़ सकती है। अमरेली की डेयरी भी बढ सकती है। हम रोककर क्यों बैठे हैं? और आज गुजरात में चारो दिशा में डेयरी का क्षेत्र बहुत ताकत के साथ खड़ा हो गया है। गुजरात में भी दूध आधारित उद्योगों का व्यापक प्रसार इसलिए हुआ क्योंकि इसमें सरकार की तरफ से पाबंदियां कम से कम रहीं। सरकार जितना बचकर के रहे बचने की कोशिश की और सहकारी क्षेत्रों को फलने फूलने की पूरी आजादी दी। सरकार यहां सिर्फ एक facilitator की भूमिका निभाती है, बाकी का काम या तो आप जैसे सारे हमारे सहकारी क्षेत्र को समर्पित सारे हमारे साथी कर रहे हैं, या तो हमारे किसान भाई-बहन कर रहे हैं। दूध उत्पादक और दूध का व्यवसाय करने वाला प्राइवेट और कोऑपरेटिव सेक्टर, दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं और एक बेहतरीन सप्लाई और वैल्यू चेन उन्होंने खड़ी की है।
साथियों,
सबसे बड़ी बात डेयरी सेक्टर में सबसे अधिक हमारे छोटे किसान हैं, और जैसे मैंने पहले कहा हमारी माताएं-बहनें इस काम को संभालती हैं। गुजरात में लगभग 70 लाख बहनें आज इस मूवमेंट का हिस्सा हैं। 70 लाख बहनें, 50 लाख से ज्यादा परिवार होंगे ही होंगे जी। साढ़े 5 हज़ार से अधिक milk cooperative societies आज गुजरात में हमारी माताएं-बहनें चला रही हैं। अमुल जैसे अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड को बनाने में भी गुजरात की हमारी बहनों की बहुत बड़ी भूमिका है। एक प्रकार से सहकारिता ने गुजरात में महिला उद्यमिता को नए आयाम दिए हैं। हम तो लिज्जत पापड़ तो जानते ही हैं, आदिवासी क्षेत्र की गरीब माताओं-बहनों से शुरू किया गया काम आज एक multinational brand बन गया है। दुनियाभर में भारतीय पहुंचा होगा तो लिज्जत पापड़ भी पहुंचा होगा। और पहली बार मुझे गर्व है इस बात का है कि इतने सालों से लिज्जत पापड़ का काम बढ़ रहा है, इतना बढ़ा लेकिन कभी केसी ने उसकी सूं नहीं ली। हमने पिछली बार पद्मश्री का अवार्ड उनको दिया जिन्होंने इस लिज्जत पापड़ को अब तो उनकी आयु 90 से ऊपर हा गई है। मूल गुजराती है मुंबई में रहते हैं। लेकिन वो माताजी आईं और उन्होंने बहुत आर्शीवाद दिए। यानि हमारी सहकारहिता के स्पिरिट और हमारी माताओं बहनों का ये कौशल्य अगर अमूल ब्रांड बन जाता है तो लिज्ज्त भी तो एक ब्रांड बन गया है। हमारी बहनों- बेटियों के मैनेजमेंट कौशल को अगर देखना है तो cooperatives में हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।
साथियों,
सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास इस मंत्र पर हम चल रहे हैं। ये मंत्र अपने आप में सहकार की आत्मा ही है। सहकार की सीमाओं के अंदर ही है ये मंत्र। इसलिए सहकार की स्पिरिट को आज़ादी के अमृतकाल की स्पिरिट से जोड़ने के लिए हम निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। इसी उद्देष्य के साथ केंद्र में सहकारिता के लिए अलग मंत्रालय का गठन किया गया। और कोशिश यही है कि देश में सहकारिता आधारित आर्थिक मॉडल को प्रोत्साहित किया जाए। इसके लिए एक के बाद एक नए कदम उठाए जा रहे हैं। हमारा प्रयास है कि सहकारी समितियों को, संस्थानों को हम मार्केट में competitive बनाएं, उनको बाकी मार्केट प्लेयर्स के साथ लेवल प्लेइंग फील्ड उपलब्ध कराएं। बीते सालों में हमने Cooperative societies से जुड़े टैक्स में भी कटौती करके उन्हें राहत दी है। अमित भाई ने इसका वर्णन कम शब्दों में किया लेकिन बहुत सारे कदम उठाए हैं हमने। surcharge की बात उन्होंने कही और पहले तो शिकायत रहती थी। इसमें भी सुधार करते हुए हमने सहकारी समितियों को किसान उत्पादक संघों के बराबर कर दिया है। इससे सहकारी समितियों को ग्रो करने में बहुत मदद मिलेगी।
साथियों
यही नहीं सहकारी समितियों को, सहकारी बैंकों को आधुनिक डिजिटल टेक्नॉलॉजी से जोड़ने का भी एक बहुत बड़ा प्रयास चल रहा है। गुजरात में इसमें बहुत प्रशंसनीय काम शुरू हो रहा है। इतना ही नहीं मैं जब मुख्यमंत्री था तो सहकारी क्षेत्र में जो अमित भाई ने थोड़ा वर्णन किया इनकम टैक्स लगता था, और मैं भारत सरकार को चिट्ठी लिखता रहता था, और भारत सरकार में भी ये डिपार्टमेंट वो लोग संभालते थे जो खुद सहकारी आंदोलन से जुड़े हुए थे। लेकिन उन्होंने गुजरात की बात मानी नहीं, देश के सहकारिता के क्षेत्र के लोगों की बात मानी नहीं। हमने जाकर के उस समस्या का भी समाधान कर दिया।
साथियों,
मुझे बताया गया है कि डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव बैंकों ने लगभग 8 लाख किसानों को रुपए किसान कार्ड जारी किए हैं। बाकी बैंकों की तरह ही ऑनलाइन बैंकिंग की सुविधाएं भी आज किसानों को मिल रही हैं। जब देश की सभी जिसका अभी अमित भाई ने वर्णन किया 63 हजार Primary Agricultural Credit Society- PACS कंप्यूटरीकृत हो जाएगी, computerization हो जाएगा तो हमारी कॉ-ऑपरेटिव्स की तस्वीर पूरी तरह बदल जाने वाली है। इससे हमारे किसानों को बहुत लाभ होगा क्योंकि इन सोसायटीज के अधिकांश सदस्य किसान ही हैं। मुझे एक और खुशी की बात है मुझे बीच में पता चला कि अब सहकारी क्षेत्र में से कई जुड़े हुए कई लोग भारत सरकार का जो जैम पोर्टल है, कुछ भी खरीदी करनी है तो जैम पोर्टल के माध्यम से करते हैं। उसके कारण एक transparency आई है, गति बढ़ी है और दाम भी कम खर्चे में आवश्यकता पूरी हो रही है। भारत सरकार के जैम पोर्टल को सहकारी क्षेत्र के लोगों ने स्वीकार किया है। इसलिए मैं सहकारी क्षेत्र के लोगों का हृदय से धन्यवाद करता हूं।
साथियों,
सहकार की सबसे बड़ी ताकत भरोसा है, सहयोग है, सबके सामर्थ्य से संगठन के सामर्थ्य को बढ़ाने का है। यही आज़ादी के अमृतकाल में भारत की सफलता की गारंटी है। हमारे यहां जिसको भी छोटा समझकर कम आंका गया, उसको अमृतकाल में बड़ी ताकत बनाने पर हम काम कर रहे हैं।छोटे किसानों को आज हर प्रकार से सशक्त किया जा रहा है। इसी प्रकार लघु उद्योगों- MSMEs को भारत की आत्मनिर्भर सप्लाई चेन का मज़बूत हिस्सा बनाया जा रहा है। जो हमारे छोटे दुकानदार हैं, व्यापारी हैं, उनको भी एक डिजिटल टेक्नॉलॉजी का प्लेटफॉर्म, ONDC- open network for digital commerce उपलब्ध कराया जा रहा है। इससे डिजिटल स्पेस में स्वस्थ स्पर्धा को प्रोत्साहन मिलेगा, देश के छोटे व्यापारियों को भी बराबरी का मौका मिलेगा। ये भारत के e-commerce market की संभावनाओं को बल देगा, जिसका गुजरात के छोटे व्यापारियों को भी निश्चित रूप से लाभ होगा
साथियों,
गुजरात व्यापार-कारोबार की परंपरा से जुड़ा राज्य रहा है। अच्छे व्यापारी की कसौटी ये है कि वो मुश्किल हालात में भी कैसे व्यापार को अच्छे से संभालता है। सरकार की भी यही कसौटी होती है कि चुनौतियों के बीच से वो कैसे समाधान निकालने कि लिए नए-नए तरीके खोजती है। ये जितने भी प्रावधान, जितने भी रिफॉर्म बीते वर्षों से हम देख रहे हैं, ये आपदा को अवसर में बदलने का ही हमारा प्रयास है। मुझे विश्वास है कि सहकार की हमारी स्पिरिट हमें अपने संकल्पों की सिद्धि में मदद करेगी। और अभी एक बहुत बढ़िया वाक्य भूपेन्द्र भाई ने अपने भाषण में कहा कि आजादी का यह पहले आजादी का एक शस्त्र था असहकार। आजादी के बाद समृद्धि का एक शस्त्र है सहकार। असहकार से सहकार तक की ये यात्रा समृद्धि की ऊंचाइयों को प्राप्त करने वाली, सबका साथ, सबका विकास के मंत्र को चरित्रार्थ करने वाली हमारी राह है। इस राह पर आत्मविश्वास के साथ हम चलें, देशभर के लोगों को भी इस पवित्र कार्य से हम जोड़ें, गुजरात की cooperative movement का विस्तार हिन्दुस्तान के और क्षेत्रों में जितना ज्यादा हो उस क्षेत्र के लोगों की भलाई के लिए काम आएगा। मैं गुजरात सरकार का बहुत आभारी हूं कि सहकारी क्षेत्र के इन दिग्गजों के साथ आज मुझे मिलने का अवसर मिला क्योंकि मैं जब गुजरात में था हमेशा उन्हे अपनी शिकायतें लेकर के आना पड़ता था। लेकिन आज वो अपना रिपोर्ट कार्ड लेकर के आते हैं। तो हम इतने कम समय में यहां पहुंच गए, हमने हमारी सोसायटी को यहां ले गए, हमने हमारी संस्था को यहां पहुंचा दिया। पहले हमारा टर्न ओवार इतना था अब हमारा टर्न ओवर इतना हो गया। बड़े गर्व के साथ छोटी छोटी सोसायटी के लोग मिल जाते हैं कहते हैं – हमनें तो साहब सब कम्प्यूटर पर चलाते हैं, साहब हमारे यहां ऑनलाइन होने लगा है। ये जो बदलाव गुजरात के सहकारी क्षेत्र में देखने को मिलता है वो अपनेआप में गर्व करने वाला है। मैं आज आपकी इस तपस्या को प्रणाम करता हूं, इस महान परंपरा को प्रणाम करता हूं और आजादी के इतने 75 साल जब मना रहे हैं तब जिसकी बीज पहले बोए गए थे आज वो वटवृक्ष बनकर के गुजरात के सार्वजनिक जीवन में रचनात्मक प्रभुत्व में आर्थिक व्यवस्था के आधार सहकारी प्रभुत्व के रूप में बढ़ रहा है। वो अपने आप में एक प्रसन्नता के आनंद का विषय में सबको प्रणाम करते हुए, हृदय से आपका धन्यवाद करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं। मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिये, भारत माता की – जय, भारत माता की जय, भारत माता की – जय, धन्यवाद।