"गुजरात अमृत काल के लक्ष्यों को प्राप्त करने के देश के संकल्प का नेतृत्व कर रहा है"
"प्राकृतिक खेती का सूरत मॉडल पूरे देश के लिए मॉडल बन सकता है"
"सबका प्रयास की भावना नए भारत की विकास यात्रा का नेतृत्व कर रही है"
"हमारे गांवों ने दिखाया है कि गांव न केवल बदलाव ला सकते हैं बल्कि बदलाव का नेतृत्व भी कर सकते हैं"
"भारत प्रकृति और संस्कृति से एक कृषि आधारित देश रहा है"
"अब समय आ गया है कि हम प्राकृतिक खेती की राह पर आगे बढ़ें और वैश्विक अवसरों का पूरा लाभ उठाएं"
"जब किसान निर्यात करते हैं तो प्रमाणित प्राकृतिक कृषि उत्पादों की अच्छी कीमत मिलती है"

गुजरात के राज्यपाल श्रीमान आचार्य देवव्रत जी, गुजरात के लोकप्रिय मृदु एवं मक्कम मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र भाई पटेल, गुजरात सरकार के मंत्रीगण, उपस्थित सांसद और विधायक गण, सूरत के मेयर और जिला परिषद के अध्यक्ष, सभी सरपंचगण, कृषि क्षेत्र के सभी विशेषज्ञ साथी, और भारतीय जनता पार्टी गुजरात प्रदेश के अध्यक्ष श्रीमान सी आर पाटिल और सारे मेरे प्यारे किसान भाइयों और बहनों !

कुछ महीने पहले ही गुजरात में नैचुरल फार्मिंग के विषय पर नेशनल कॉन्क्लेव का आयोजन हुआ था। इस योजन में पूरे देश के किसान जुड़े थे। प्राकृतिक खेती को लेकर देश में कितना बड़ा अभियान चल रहा है, इसकी झलक उसमें दिखी थी। आज एक बार फिर सूरत में ये महत्वपूर्ण कार्यक्रम इस बात का प्रतीक है कि गुजरात किस तरह से देश के अमृत संकल्पों को गति दे रहा है। हर ग्राम पंचायत में 75 किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने के मिशन में सूरत की सफलता पूरे देश के लिए एक उदाहरण बनने जा रही है और इसके लिए सूरत के लोगों का अभिनंदन, सूरत के किसानों को इसके लिए अभिनंदन, सरकार के सभी साथियों को अभिनंदन।

मैं 'प्राकृतिक कृषि सम्मेलन' के इस अवसर पर इस अभियान से जुड़े हर एक व्यक्ति को, अपने सभी किसान साथियों को अनेक-अनेक शुभकामनायें देता हूँ| जिन किसान साथियों को, सरपंच साथियों को आज सम्मानित किया, मैं उन्हें भी हार्दिक बधाई देता हूँ| और खास करके किसानों के साथ-साथ सरपंचों की भी भूमिका बहुत प्रशंसनीय है। उन्होंने ही यह बीड़ा उठाया है और इसलिए हमारे ये सभी सरपंच भाई-बहनें भी उतने ही प्रशंसा के पात्र है। किसान तो है ही।

साथियों,

आज़ादी के 75 साल के निमित्त, देश ने ऐसे अनेक लक्ष्यों पर काम करना शुरू किया है, जो आने वाले समय में बड़े बदलावों का आधार बनेंगे। अमृतकाल में देश की गति-प्रगति का आधार सबका प्रयास की वो भावना है, जो हमारी इस विकास यात्रा का नेतृत्व कर रही है। विशेष रूप से गाँव-गरीब और किसान के लिए जो भी काम हो रहे हैं, उनका नेतृत्व भी देशवासियों और ग्राम पंचायतों को दिया गया है। मैं गुजरात में प्राकृतिक खेती के इस मिशन को लगातार करीब से देख रहा हूँ। और इसकी प्रगति देखकर मुझे सही में मुझे खुशी मिलती है और खास करके किसान भाइयों और बहनों ने इस बात को अपने मन में उतार लिया है और दिल से अपनाया है, इससे अच्छा प्रसंग कोई और हो ही नहीं सकता है। सूरत में हर गाँव पंचायत से 75 किसानों का चयन करने के लिए ग्राम समिति, तालुका समिति और जिला समिति बनाई गईं। गाँव स्तर पर टीमें बनाई गईं, टीम लीडर बनाये गए, तालुका पर नोडल ऑफिसर्स को जिम्मेदारी दी गई। मुझे बताया गया है कि इस दौरान लगातार ट्रेनिंग प्रोग्राम्स और वर्कशॉप्स का आयोजन भी किया गया। और आज, इतने कम समय में साढ़े पांच सौ से ज्यादा पंचायतों से 40 हजार से ज्यादा किसान प्राकृतिक खेती से जुड़ चुके हैं। यानी एक छोटे से इलाके में इतना बड़ा काम, ये बहुत अच्छी शुरूआत है। ये उत्साह जगाने वाली शुरुआत है और इससे हर किसान के दिल में एक भरोसा जगता है। आने वाले समय में आप सभी के प्रयत्नों, आप सभी के अनुभवों से पूरे देश के किसान बहुत कुछ जानेंगे, समझेंगे, सीखेंगे। सूरत से निकल नैचुरल फॉर्मिंग का मॉडल, पूरे हिंदुस्तान का मॉडल भी बन सकता है।

भाइयों और बहनों,

जब किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देशवासी खुद संकल्पबद्ध हो जाते हैं, तो उस लक्ष्य की प्राप्ति से हमें कोई रुकावट नहीं आती है, ना हमें कभी थकान महसूस होती है। जब बड़े से बड़ा काम जनभागीदारी की ताकत से होता है, तो उसकी सफलता खुद देश के लोग सुनिश्चित करते हैं। जल जीवन मिशन का उदाहरण हमारे सामने है। गाँव-गाँव साफ़ पानी पहुंचाने के लिए इतने बड़े मिशन की जिम्मेदारी देश के गाँव और गाँव के लोग, गांव में बनी पानी समितियां यही तो सब लोग संभाल रहे हैं। स्वच्छ भारत जैसा इतना बड़ा अभियान, जिसकी तारीफ आज सभी वैश्विक संस्थाएं भी कर रही हैं, उसकी सफलता का भी बड़ा श्रेय हमारे गांवों को है। इसी तरह, डिजिटल इंडिया मिशन की असाधारण सफलता भी उन लोगों को देश का जवाब है जो कहते थे गाँव में बदलाव लाना आसान नहीं है। एक मन बना लिया था लोगों ने, भाई गांव में तो ऐसे ही जीना है, ऐसे ही गुजारा करना है। गांव में कोई परिवर्तन हो ही नहीं सकता है, ऐसा मानकर बैठे थे। हमारे गांवों ने दिखा दिया है कि गाँव न केवल बदलाव ला सकते हैं, बल्कि बदलाव का नेतृत्व भी कर सकते हैं। प्राकृतिक खेती को लेकर देश का ये जन-आन्दोलन भी आने वाले वर्षों में व्यापक रूप से सफल होगा। जो किसान इस बदलाव से जितनी जल्दी जुड़ेंगे, वो सफलता के उतने ही ऊंचे शिखर पर पहुंचेंगे।

साथियों,

हमारा जीवन, हमारा स्वास्थ्य, हमारा समाज सबके आधार में हमारी कृषि व्यवस्था ही है। अपने यहां कहते ना जैसा अन्न वैसा मन। भारत तो स्वभाव और संस्कृति से कृषि आधारित देश ही रहा है। इसलिए, जैसे-जैसे हमारा किसान आगे बढ़ेगा, जैसे-जैसे हमारी कृषि उन्नत और समृद्ध होगी, वैसे-वैसे हमारा देश आगे बढ़ेगा। इस कार्यक्रम के माध्यम से, मैं देश के किसानों को फिर एक बात याद दिलाना चाहता हूं। प्राकृतिक खेती आर्थिक सफलता का भी एक जरिया है, और उससे भी बड़ी बात यह हमारी मां, हमारी धरती मां हमारे लिए तो यह धरती मां, जिसकी रोज हम पूजा करते हैं, सुबह बिस्तर से उठकर पहले धरती माता से माफी मांगते हैं, ये हमारे संस्कार हैं। यह धरती माता की सेवा और और धरती मां की सेवा का भी ये एक बहुत बड़ा माध्यम है। आज जब प्राकृतिक खेती करते हैं तो खेती के लिए जरूरी संसाधन आप खेती और उससे जुड़े हुए उत्पादों से जुटाते हैं। गाय और पशुधन के जरिए आप 'जीवामृत' और 'घन जीवामृत' तैयार करते हैं। इससे खेती पर खर्च होने वाली लागत में कमी आती है। खर्चा कम हो जाता है। साथ ही, पशुधन से आय के अतिरिक्त स्रोत भी खुलते हैं। ये पशुधन पहले जिससे आय हो रही थी, उससे अंदर आय बढती है। इसी तरह, जब आप प्राकृतिक खेती करते हैं तो आप धरती माता की सेवा करते हैं, मिट्टी की क्वालिटी, जमीन की तबियत उसकी उत्पादकता की रक्षा करते हैं। जब आप प्राकृतिक खेती करते हैं तो आप प्रकृति और पर्यावरण की सेवा भी करते हैं। जब आप प्राकृतिक खेती से जुड़ते हैं तो आपको सहज रूप से गौमाता की सेवा का सौभाग्य भी मिल जाता है, जीव सेवा का आशीर्वाद भी मिलता है। अब मुझे बताया गया कि, सूरत में 40-45 गौशालाओं के साथ अनुबंध करके उन्हें गौ जीवामृत उत्पादन का जिम्मा सौंपा जायेगा। आप सोचिए, इससे कितनी गौमाताओं की सेवा होगी। इस सबके साथ ही, प्राकृतिक खेती से उपजा अन्न जिन करोड़ों लोगों का पेट भरता है, उन्हें कीटनाशकों और केमिकल्स से होने वाली घातक बीमारियों से भी बचाता है। करोड़ों लोगों को मिलने वाले आरोग्य का ये लाभ, और हमारे यहां तो स्वास्थ्य का आहार के साथ प्रत्यक्ष संबंध स्वीकारा गया है। आप किस तरह के आहार को ग्रहण करते हैं, उसके ऊपर आपके शरीर के स्वास्थ्य का आधार होता है।

साथियों,

जीवन की ये रक्षा भी हमें सेवा और पुण्य के अनगिनत अवसर देती है। इसलिए, प्राकृतिक खेती व्यक्तिगत खुशहाली का रास्ता तो खोलती ही है, ये 'सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयः' इस भावना को भी साकार करती है।

साथियों,

आज पूरी दुनिया 'सस्टेनेबल लाइफस्टाइल' की बात कर रही है, शुद्ध खान-पान की बात कर रही है। ये एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें भारत के पास हजारों सालों का ज्ञान और अनुभव है। हमने सदियों तक इस दिशा में विश्व का नेतृत्व किया है। इसलिए, आज हमारे पास अवसर है कि हम प्राकृतिक खेती जैसे अभियानों में आगे आकर कृषि से जुड़ी वैश्विक संभावनाओं का काम सभी तक लाभ पहुंचाएं। देश इस दिशा में पिछले आठ सालों से गंभीरता से काम कर रहा है। 'परंपरागत कृषि विकास योजना' और 'भारतीय कृषि पद्धति' जैसे कार्यक्रमों के जरिए आज किसानों को संसाधन, सुविधा और सहयोग दिया जा रहा है। इस योजना के तहत देश में 30 हजार क्लस्टर्स बनाये गए हैं, लाखों किसानों को इसका लाभ मिल रहा है। 'परंपरागत कृषि विकास योजना' के तहत देश की करीब 10 लाख हेक्टेयर जमीन कवर की जाएगी। हमने प्राकृतिक खेती के सांस्कृतिक, सामाजिक और इकोलॉजी से जुड़े प्रभावों को देखते हुए इसे नमामि गंगे परियोजना से भी जोड़ा है। प्राकृतिक खेती को प्रमोट करने के लिए आज देश में गंगा के किनारे अलग से अभियान चलाया जा रहा है, कॉरिडोर बनाया जा रहा है। प्राकृतिक खेती की उपज की बाजार में अलग से मांग होती है, उसकी कीमत भी ज्यादा मिलती है। अभी मैं दाहोद आया था, तो दाहोद में मुझे हमारी आदिवासी बहनें मिली थीं और वो लोग प्राकृतिक खेती करते हैं और उन्होंने यह कहा कि हमारा तो एक महीने पहले ऑर्डर बुक हो जाता है। और रोज हमारी जो सब्जी होती है, वो रोजाना बिक जाती है, वो ज्यादा भाव से बिकती है। जैसे गंगा के आस-पास पांच-पांच किमी प्राकृतिक खेती का अभियान चलाया गया है। जिससे कि कैमिकल नदी में ना जाएं, पीने में भी कैमिकल युक्त पानी पेट में ना जाएं। भविष्य में हम तापी के दोनों किनारों, मां नर्मदा के दोनों किनारों की ओर ये सभी प्रयोग हम कर सकते हैं। और इसलिए, हमने natural farming की उपज को certify करने के लिए, क्योंकि इसमें से जो उत्पादन होगा, उसकी विशेषता होनी चाहिए, उसकी पहचान होनी चाहिए और इसके लिए किसानों को ज्यादा पैसा मिलना चाहिए, इसलिए हमने इसे सर्टिफाइड करने की व्यवस्था की है। उसे प्रमाणित करने के लिए quality assurance system भी बनाये हैं। इस तरह की सर्टिफाइड फसलें हमारे किसान अच्छी कीमत पर एक्सपोर्ट कर रहे हैं। आज दुनिया के बाजार में केमिकल फ्री उत्पाद यह सबसे बड़ी आकर्षण का केंद्र बना है। हमें ये लाभ देश के ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचाना है।

साथियों,

सरकार के प्रयासों के साथ ही हमें इस दिशा में अपने प्राचीन ज्ञान की तरफ भी देखना होगा। हमारे यहाँ वेदों से लेकर कृषि ग्रंथों और कौटिल्य, वराहमिहिर जैसे विद्वानों तक, प्राकृतिक खेती से जुड़े ज्ञान के अथाह भंडार मौजूद हैं। आचार्य देवव्रत जी हमारे बीच में हैं, वो तो इस विषय के बहुत बड़े जानकार भी हैं और उन्होंने तो अपना जीवन मंत्र बना दिया है खुद ने भी बहुत प्रयोग करके सफलता पाई है और अब वो सफलता का लाभ गुजरात के किसानों को मिले इसलिए वो जी जान से लगे हुए हैं। लेकिन, साथियों, मेरी जितनी जानकारी है, मैंने देखा है कि हमारे शास्त्रों से लेकर लोक-ज्ञान तक, लोक बोली में जो बातें कही गईं हैं, उसमें कितनी गहरे सूत्र छिपे हैं। अपने को जानकारी है कि अपने यहां घाघ और भड्डरी जैसे विद्वानों ने साधारण भाषा में खेती के मन्त्रों को जनसाधारण के लिए उपलब्ध करवाया है। जैसे कि एक कहावत है, अब हर किसान जानता है इस कहावत को- 'गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेत दूनी फली'| यानी, गोबर आदि और नीम की खली अगर खेत में पड़े तो फसल दोगुनी होगी। इसी तरह और एक प्रचलित कथा है, वाक्य है- 'छोड़े खाद जोत गहराई, फिर खेती का मजा दिखाई’। यानी, खेत में खाद छोड़ कर फिर जुताई करने से खेती का मजा दिखाई पड़ता है, उसकी ताकत पता चलती है। मैं चाहूँगा कि यहाँ जो संस्थाएं, जो NGOs और विशेषज्ञ बैठे हैं, वो इस पर अपना ध्यान केंद्रित करें। अपनी मान्यताओं को खुले मन से एक बार टटोलें। यह पुराने अनुभवों से क्या निकल सकता है, हिम्मत करके आप आगे आइए वैज्ञानिकों से मेरा विशेष आग्रह है। हम नए नए शोध करें, हमारे उपलब्ध संसाधनों के आधार पर हमारे किसान को ताकतवर कैसे बनाएं, हमारे खेती को अच्छी कैसे बनाएं, हमारी धरती माता को कैसे सुरक्षित रखें, इसके लिए हमारे वैज्ञानिक हमारे शैक्षिक संस्थाएं जिम्मेवारी निभाने के लिए आगे आए। समय के हिसाब से कैसे किसानों तक इन सारी चीजों को पहुँचाया जा सकता है, लेबोरेटरी में सिद्ध किया हुआ विज्ञान किसान की भाषा में किसान तक कैसे पहुंचे। मुझे विश्वास है कि देश ने प्राकृतिक खेती के जरिए जो शुरुआत की है, उससे न केवल अन्नदाता का जीवन खुशहाल होगा, बल्कि नए भारत का पथ भी प्रशस्त होगा। मैं काशी क्षेत्र से लोकसभा का member हूं, तो मेरा काशी के किसानों से कभी कभी मिलने का जब भी मौका मिलता है, बातें होती है, मुझे आनंद होता है मेरे काशी इलाके के किसान प्राकृतिक खेती के संबंध में काफी कुछ जानकारियां इकट्ठी करते हैं, खुद प्रयोग करते हैं, दिन रात मेहनत करते हैं और उनको लगने लगा है कि अब उनके द्वारा जो पैदावार हुई है, वह दुनिया के बाजार में बिकने के लिए तैयार हो गई है और इसलिए मैं चाहूंगा और सूरत तो ऐसा है शायद ही कोई गांव ऐसा होगा जहां के लोग विदेश में ना हों। सूरज की तो एक पहचान भी विशेष है और इसलिए सूरत का इनिशिएटिव, यह अपने आप में जगमगा उठेगा।

साथियों,

आपने जो अभियान उठाया है हर गांव में 75 किसान और मुझे पक्का विश्वास है कि आज भले 75 का आपने लक्ष्य तय किया है हर गांव में 750 किसान तैयार हो जाएंगे देखना और एक बार पूरा जिला इस काम के लिए हो जाएगा तो दुनिया के जो खरीदार है ना वो हमेशा एड्रेस ढूंढते-ढूंढते आपके पास ही आएंगे कि भाई यहां पर केमिकल नहीं है, दवाइयां नहीं है, सीधा-साधा प्राकृतिक उत्पादन है, तो अपने स्वास्थ्य के लिए लोग दो पैसा ज्यादा देकर के ये माल ले जायेंगे। सूरत शहर में तो सारी सब्जी आप ही के यहां से जाती है, अगर सूरत शहर को पता चलेगा कि आप की सब्जी प्राकृतिक खेती की है, मैं पक्का मानता हूं कि हमारे सूरती लोग इस बार का उद्योग तो इस बार का उंधियू आपकी प्राकृतिक खेती की सब्जी में से ही बनाएंगे। और फिर सूरत वाले बोर्ड लगाएंगे, प्राकृतिक खेती की सब्जी वाला उंधियू। आप देखना एक बाजार इस क्षेत्र में बन रहा है। सूरत की खुद की ताकत है, सूरत के लोग जैसे डायमंड को तेल लगाते हैं, वैसे इसको तेल लगा देंगे, तो सूरत में ये जो अभियान चल रहा है, उसका लाभ उठाने के लिए सभी लोग आगे आएंगे। आप सभी के साथ बात करने का मौका मिला, इतना अच्छा अभियान शुरू किया है और मैं इसके लिए आप सभी को फिर से बधाई देता हूं। और इसी के साथ, आप सभी का एक बार फिर से बहुत बहुत धन्यवाद।

बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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November 24, 2024

Prime Minister Shri Narendra Modi will participate in the ‘Odisha Parba 2024’ programme on 24 November at around 5:30 PM at Jawaharlal Nehru Stadium, New Delhi. He will also address the gathering on the occasion.

Odisha Parba is a flagship event conducted by Odia Samaj, a trust in New Delhi. Through it, they have been engaged in providing valuable support towards preservation and promotion of Odia heritage. Continuing with the tradition, this year Odisha Parba is being organised from 22nd to 24th November. It will showcase the rich heritage of Odisha displaying colourful cultural forms and will exhibit the vibrant social, cultural and political ethos of the State. A National Seminar or Conclave led by prominent experts and distinguished professionals across various domains will also be conducted.