प्रधानमंत्री ने स्मृति वन स्मारक का भी उद्घाटन किया
"स्मृति वन स्मारक और वीर बाल स्मारक गुजरात के कच्छ और पूरे देश के साझा दर्द के प्रतीक हैं"
"ऐसा कहने वाले बहुत थे कि अब कच्छ कभी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाएगा। लेकिन आज कच्छ के लोगों ने यहां की तस्वीर पूरी तरह बदल दी है"
"आप देख सकते हैं कि मृत्यु और आपदा के बीच, हमने 2001 में कुछ संकल्प किए और आज हमने उन्हें हकीकत में बदला। इसी तरह, हम आज जो संकल्प लेंगे, उसे निश्चित रूप से 2047 में हकीकत में बदल देंगे"
"कच्छ ने न केवल खुद को उठाया है बल्कि पूरे गुजरात को नई ऊंचाइयों पर ले गया है"
"जब गुजरात प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा था, तब साजिशों का दौर शुरू हो गया था। गुजरात को देश और दुनिया में बदनाम करने के लिए यहां निवेश को रोकने के लिए एक के बाद एक साजिशें रची गई"
"धौलावीरा की प्रत्येक ईंट हमारे पूर्वजों के कौशल, ज्ञान और विज्ञान को दर्शाती है"
"कच्छ का विकास सबका प्रयास के साथ सार्थक बदलाव का एक आदर्श उदाहरण"

गुजरात के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल जी, संसद में मेरे साथी और गुजरात भाजपा के अध्यक्ष श्रीमान सीआर पाटिल जी, गुजरात सरकार के सभी मंत्रिगण, सांसदगण और विधायकगण और यहां भारी संख्या में आए हुए कच्छ के मेरे प्यारे बहनों और भाइयों !

मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, कैसे हो ? सब ठीक है ना ? कच्छ में बारिश बहुत अच्छी हुई है, उसका आनंद आप सबके चेहरे के उपर दिखाई दे रहा है।

साथियों,

आज मन बहुत सारी भावनाओं से भरा हुआ है। भुजियो डूंगर में स्मृतिवन मेमोरियल और अंजार में वीर बाल स्मारक का लोकार्पण, कच्छ की, गुजरात की, पूरे देश की साझी वेदना का प्रतीक है। इनके निर्माण में सिर्फ पसीना ही नहीं बल्कि कितने ही परिवारों के आंसुओं ने भी इसके ईंट-पत्थरों को सींचा है।

मुझे याद है कि अंजार में बच्चों के परिजनों ने बाल स्मारक बनाने का विचार रखा था। तब हम सभी ने ये तय किया था कि कारसेवा से इसको पूरा करेंगे। जो प्रण हमने लिया था, वो आज पूरा हो गया है। जिन्होंने अपनों को खोया, अपने बच्चों को खोया, मैं आज बहुत भारी मन से इन स्मारकों को उन्हें समर्पित करता हूं।

आज कच्छ के विकास से जुड़े 4 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक के अन्य प्रोजेक्ट्स का भी शिलान्यास और लोकार्पण हुआ है। इनमें पानी, बिजली, सड़क और डेयरी से जुड़े प्रोजेक्ट हैं। ये गुजरात के, कच्छ के विकास के लिए डबल इंजन सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। मां आशापुरा के दर्शन और आसान हों, इसके लिए आज नई सुविधाओं का शिलान्यास भी किया गया है। मातानो मढ़ इसके विकास की ये सुविधाएं जब तैयार हो जाएंगी, तो देशभर से आने वाले भक्तों को नया अनुभव मिलेगा। हमारे लोकप्रिय मुख्‍यमंत्री मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई के नेतृत्व में कैसे कच्छ आगे बढ़ रहा है, गुजरात आगे बढ़ रहा है, ये उसका भी प्रमाण है।

भाइयों और बहनों,

आज भुज की धरती पर आया और स्‍मृतिवन जा रहा था, पूरे रास्‍ते भर कच्‍छ ने जो प्‍यार बरसाया, जो आशीर्वाद दिए, मैं धरती को भी नमन करता हूं और यहां के लोगों को भी नमन करता हूं। यहां आने में मुझे जरा देरी हो गई, मैं भुज तो समय पर आ गया था लेकिन वो रोड शो में जो स्‍वागत चला और बाद में मैं स्मृतिवन मैमोरियल में गया, वहां से निकलने का मन ही नहीं करता था।

दो दशक पहले कच्छ ने जो कुछ झेला और इसके बाद कच्छ ने जो हौसला दिखाया, उसकी हर झलक इस समृतिवन में है। जिस प्रकार जीवन के लिए कहा जाता है वयम अमृतास: के पुत्र: जैसी हमारी कल्‍पना है, चरैवति-चरैवति का मंत्र हमारी प्रेरणा है, उसी प्रकार ये स्मारक भी आगे बढ़ने की शाश्वत भावना से प्रेरित है।

साथियों,

जब मैं स्मृतिवन के अलग-अलग हिस्सों में गुज़र रहा था तो बहुत सारी पुरानी यादें मन-मस्तिष्क में आ रही थीं। साथियो, अमेरिका में 9/11 जो बहुत बड़ा आतंकी हमला हुआ था, उसके बाद वहां एक स्‍मारक बनाया गया है, "Ground Zero", मैंने वो भी देखा है। मैंने जापान में हिरोशिमा की त्रासदी के बाद उसकी स्‍मृति को संजोने वाला एक म्‍यूजि‍यम बना है वो भी देखा है। और आज स्‍मृतिवन देखने के बाद मैं देशवासियों को बड़ी नम्रता के साथ कहना चाहता हूं, पूरे देश के लोगों को कहता हूं कि हमारा स्‍मृतिवन दुनिया के अच्‍छे से अच्‍छे ऐसे स्‍मारकों की तुलना में एक कदम भी पीछे नहीं है।

यहां प्रकति, पृथ्‍वी, जीवन, इसकी शिक्षा-दीक्षा की पूरी व्‍यवस्‍था है। मैं कच्‍छ के लोगों से कहूंगा अब आपके यहां कोई मेहमान आए तो स्‍मृतिवन देखे बिना जाना नहीं चाहिए। अब आपके इस कच्‍छ में मैं शिक्षा विभाग को भी कहूंगा कि जब स्‍कूल के बच्‍चे टूर करते हैं, वो एक दिन स्‍मृतिवन के लिए भी रखें ताकि उनको पता चले कि पृथ्‍वी और प्रकृति का व्‍यवहार क्‍या होता है।

साथियो,

मुझे याद है, भूकंप जब आया था, 26 जनवरी का वो दिन,दिन, मैं दिल्‍ली में था। भूकंप का एहसास दिल्‍ली में भी हुआ था। और कुछ ही घंटों में मैं दिल्‍ली से अहमदाबाद पहुंचा। और दूसरे दिन मैं कच्‍छ पहुंच गया। तब मैं मुख्यमंत्री नहीं था, एक साधारण राजनीतिक भारतीय जनता पार्टी का छोटा सा कार्यकर्ता था। मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे और कितने लोगों की मदद कर पाउंगा। लेकिन मैंने ये तय किया कि मैं इस दुख की घड़ी में आप सबके बीच में रहूंगा और जो भी संभव होगा, मैं आपके दुख में हाथ बंटाने का प्रयास करूंगा।

मुझे पता तक नहीं था, अचानक मुझे मुख्‍यमंत्री बनना पड़ा। और जब मुख्यमंत्री बना, तो उस सेवा कार्यों के अनुभव मेरे बहुत काम आए। उस समय की एक बात और मुझे याद आती है। भूकंप पीड़ितों की मदद के लिए तब विदेशों से भी अनेक लोग यहां आए हुए थे। उनको इस बात की हैरानी होती थी कि कैसे यहां निस्वार्थ भाव से स्वयंसेवक जुटे हुए हैं, उनकी धार्मिक, सामाजिक संस्थाएं राहत और बचाव में लगी हुई हैं। वे मुझे बताते थे कि दुनिया में बहुत जगह पर वो जाते हैं लेकिन ऐसा सेवा भाव शायद हमने पहले कभी नहीं देखा। सामूहिकता की यही शक्ति है जिसने उस मुश्किल समय में कच्छ को, गुजरात को संभाला।

आज मुझे जब कच्‍छ की धरती पर आया, बहुत लंबा नाता रहा है मेरा आपसे, बहुत गहरा नाता रहा है। अनगिनत नामों की स्‍मृतियां मेरे सामने उभर करके आती हैं। कितने ही लोगों के नाम याद आ रहे हैं। हमारे धीरुभाई शाह, ताराचंद छेड़ा, अनंत भाई दवे, प्रताप सिंह जाड़ेज़ा, नरेंद्र भाई जाड़ेज़ा, हीरा लाल पारिख, भाई धनसुख ठक्कर, रसिक ठक्कर, गोपाल भाई, अपने अंजार के चंपक लाल शाह अनगिनत लोग जिनके साथ कंधे से कंधा मिला करके काम करने का सौभाग्‍य मिला था, आज वो इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उनकी आत्‍मा जहां भी होगी, कच्‍छ के विकास के लिए उनको संतुष्टि का भाव होता होगा, वो हमें आशीर्वाद देते होंगे।

और आज, आज भी जब मेरे साथियों को‍ मिलता हूं, चाहे हमारे पुष्पदान भाई हों, हमारे मंगलदादा धनजी भाई हों, हमारे जीवा सेठ जैसे व्‍यक्तित्‍व, आज भी कच्छ के विकास को प्रेरणा दे रहे हैं। कच्छ की एक विशेषता तो हमेशा ही रही है, और जिसकी चर्चा मैं हमेशा करता हूं। यहां रास्ते चलते भी कोई व्यक्ति एक सपना बो जाए तो पूरा कच्छ उसको वटवृक्ष बनाने में जुट जाता है। कच्छ के इन्हीं संस्कारों ने हर आशंका, हर आकलन को गलत सिद्ध किया। ऐसा कहने वाले बहुत थे कि अब कच्छ कभी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाएगा। लेकिन आज कच्छ के लोगों ने यहां की तस्वीर पूरी तरह बदल दी है।

साथियों,

मुख्यमंत्री के रूप में मेरी पहली दीवाली और भूकंप के बाद कच्‍छ के लोगों के लिए भी पहली दीवाली, मैंने उस दीवाली को नहीं मनाया था। मेरी सरकार के किसी मंत्री ने दीवाली नहीं मनाई थी। और हम सब भूकंप के बाद जो पहली दीवाली, अपनों की याद आने की बहुत स्‍वाभाविक स्थिति थी, मैं आपके बीच आकर रहा। और आप जानते हैं मैं वर्षों से दीवाली बॉर्डर पर जाकर, सीमा पर जाकर देश के जवानों के साथ बिताकर आया हूं। लेकिन उस वर्ष मैंने वो मेरी परंपरा को छोड़ करके भूकंप पीड़ितों के साथ दीवाली मनाने के लिए मैं उनके बीच रहने आया था। मुझे याद है मैं पूरा दिन भर चौबारी में रहा था। और फिर शाम को त्रम्बो गांव चला गया था। मेरे साथ मेरी कैबिनेट के सारे सदस्य, गुजरात में जहां-जहां भूकंप की आपदा आई थी, वहीं जा करके उन्‍होंने दीवाली के दिन सब दुख में शरीक हुए थे।

मुझे याद है, मुश्किल भरे उन दिनों में मैंने कहा था और बड़े आतम्‍विश्‍वास के साथ कहा था कि हम आपदा को अवसर में बदलकर रहेंगे। मैंने ये भी कहा था आपको जो रण दिखता है ना, उस रण में मुझे भारत का तोरण दिखता है। और आज जब मैं कहता हूं, लालकिले से कहता हूं, 15 अगस्‍त को कहता हूं कि 2047 भारत developed कंट्री बनेगा। जिन्‍होंने मुझे कच्‍छ में सुना है, देखा है, 2001-02 भूकंप के उसका कालखंड में विपरीत परिस्थिति में मैंने जो कहा था, वो आज आपकी आंखों के सामने सत्‍य बन करके उभरा हुआ है। इसीलिए कहता हूं आज जो हिन्‍दुस्‍तान, आपको बहुत कुछ कमियां नजर आती होंगी, 2047 में, मैं आज सपना देख रहा हूं दोस्‍तों, जैसा 2001-02 में मौत की चादर औढ़ करके वो जो हमारा कच्‍छ था, तब जो सपने देख करके आज करे दिखाया, 2047 में हिन्‍दुस्‍तान भी करके दिखाएगा।

और कच्छ के लोगों ने, भुज के लोगों की भुजाओं ने इस पूरे क्षेत्र का कायाकल्प करके दिखा दिया है। कच्छ का कायाकल्प भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के बड़े शिक्षा संस्थानों के लिए, रिसर्च इंस्टिट्यूट के लिए एक रिसर्च का विषय है। 2001 में पूरी तरह तबाह होने के बाद से कच्छ में जो काम हुआ है, वो अकल्पनीय हैं।

कच्छ में 2003 में क्रांतिगुरू श्यामजी कृष्णवर्मा यूनिवर्सिटी बनी तो वहीं 35 से भी ज्यादा नए कॉलेजों की भी स्थापना की गई है। इतना ही नहीं, इतने कम समय में 1000 से ज्‍यादा अच्‍छे नए स्‍कूल बनाए गए।

भूकंप में कच्छ का जिला अस्पताल पूरी तरह जमीदोंज हो गया था। आज कच्छ में भूकंप-रोधी आधुनिक अस्पताल है, 200 से ज्यादा नए चिकित्सा केंद्र काम कर रहे हैं। जो कच्छ हमेशा सूखे की चपेट में रहता था, जहां पानी जीवन की सबसे बड़ी चुनौती थी, वहां आज कच्छ जिले के हर घर में नर्मदा का पानी पहुंचने लगा है।

हम कभी आस्‍था और श्रद्धा के नाते गंगाजी में स्‍नान करते हैं, यमुनाजी में, सरयु में और नर्मदा जी में भी और यहां तक कहते हैं नर्मदा जी तो इतनी पवित्र हैं कि नाम स्‍मरण से पुण्‍य मिलता है। जिस नर्मदा जी के दर्शन करने के लिए लोग यात्राएं करते थे, आज वो मां नर्मदा कच्‍छ की धरती पर आई है।

कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि कभी टप्पर, फतेहगढ़ और सुवाई बांधों में भी नर्मदा का पानी पहुंच सकता है। लेकिन ये सपना भी कच्छ के लोगों ने साकार करके दिखाया है। जिस कच्छ में सिंचाई परियोजना की कोई सोच नहीं सकता था, वहां हजारों चेक डैम्स बनाकर, सुजलाम-सुफलाम जल अभियान चलाकर हजारों हेक्टेयर जमीन को सिंचाई के दायरे में लाया जा चुका है।

भाइयों और बहनों,

पिछले महीने जब रायण-गांव में मां-नर्मदा का पानी पहुंचा, तो लोगों ने जिस प्रकार उत्सव मनाया उसको देखकर दुनिया में अनेक लोगों को आश्चर्य हुआ। ये आश्चर्य इसलिए था क्योंकि उनको इस बात का आभास नहीं है कि कच्छ के लिए पानी का मतलब क्या होता है। एक जमाना था बच्‍चे के जन्‍म के बाद चार-चार साल की उम्र हो जाए उसने बारिश नहीं देखी होती थी। ये मेरे कच्‍छ ने गुजारा, जिंदगी कठिनाइयों से गुजारी है I कच्छ में कभी नहरें होंगी, टपक सिंचाई की सुविधा होगी, इसके बारे में 2 दशक पहले कोई बात करता था, तो विश्वास करने वाले बहुत कम लोग मिलते थे।

मुझे याद है कि 2002 में जब गुजरात गौरव यात्रा के दौरान मांडवी आया था, तो मैंने कच्छवासियों से आशीर्वाद मांगा था। आशीर्वाद इस बात का कि मैं कच्छ के अधिकतर हिस्सों को मां-नर्मदा के पानी से जोड़ सकूं। आपके आशीर्वाद ने जो शक्ति दी उसी का परिणाम है आज हम इस सारे अच्‍छे अवसर के भागीदार बन रहे हैं। आज कच्छ-भुज नहर का लोकार्पण हुआ है। इससे सैकड़ों गांवों के हज़ारों किसान परिवारों को लाभ हुआ है।

भाइयों और बहनों,

कच्छ के लोगों की भाषा बोली इतनी मीठी है, कि जो एक बार यहां आ गया, वो कच्‍छ को भूल नहीं पाता। और मुझे तो सैकड़ों बार कच्छ आने का सौभाग्य मिला है। यहां की दाबेली, भेलपुरी, हमारी कच्‍छ की पतली छाछ, कच्छ की खारे, केसर का स्वाद, क्‍या कुछ नहीं है। पुरानी कहावत है कि मेहनत का फल मीठा होता है। कच्छ ने इस कहावत को जमीन पर उतारकर दिखाया है।

मुझे खुशी है कि फल उत्पादन के मामले में कच्छ आज पूरे गुजरात का नंबर-वन जिला बन गया है। यहां के ग्रीन डेट्स, केसर आम, अनार और कमलम, ऐसे कितने ही फल देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी अपनी मिठास लेकर जा रहे हैं।

साथियों,

मैं वो दिन भूल नहीं सकता जब कच्छ में रहने वाले लोग ना चाहते हुए भी कभी पशुओं को ले करके मीलों तक पलायन कर जाते थे या कभी पशु छोड़कर खुद जाने के लिए मजबूर हो जाते थे। साधन ना होने की वजह से, संसाधन ना होने की वजह से, पशुधन का त्याग इस पूरे क्षेत्र की मजबूरी बना हुआ था। जिस क्षेत्र में पशुपालन सैकड़ों वर्षों से आजीविका का साधन रहा हो, वहां ये स्थिति बहुत ही चिंता में डालने वाली थी। लेकिन आज इसी कच्छ में किसानों ने पशुधन से धन बढ़ाना शुरू कर दिया है। बीस साल में कच्छ में दूध का उत्पादन तीन गुना से ज्यादा बढ़ गया है।

जब मैं यहां मुख्यमंत्री के रूप में काम करता था, तब साल 2009 में यहां सरहद डेयरी की शुरुआत की गई थी। उस समय में ये डेयरी का एक दिन में 1400 लीटर से भी कम दूध जमा होता था। जब उसका प्रारंभ किया 1400 लीटर से भी कम। लेकिन आज ये सरहद डेयरी हर रोज 5 लाख लीटर तक दूध किसानों से जमा करती है। आज इस डेयरी की वजह से हर साल किसानों की जेब में करीब-करीब 800 करोड़ रुपए उनकी जेब में जा रहे हैं, दोस्‍तों, मेरे कच्‍छ के किसानों की जेब में। आज अंजार तालुका के चंद्राणी गांव में सरहद डेयरी के जिस नए आधुनिक प्लांट का लोकार्पण हुआ है, उससे भी किसानों-पशुपालकों को बहुत फायदा होने वाला है। इसमें जो आधुनिक टेक्नॉलॉजी है, उससे दूध के ऐसे उत्पाद बनेंगे जो किसानों की आय बढ़ाने में मदद करेंगे।

भाइयों और बहनों,

कच्छ ने सिर्फ खुद को ऊपर उठाया, इतना ही नहीं है,लेकिन पूरे गुजरात को विकास की एक नई गति दी है। एक दौर था जब गुजरात पर एक के बाद एक संकट आ रहे थे। प्राकृतिक आपदा से गुजरात निपट ही रहा था, कि साजिशों का दौर शुरु हो गया। देश और दुनिया में गुजरात को बदनाम करने के लिए, यहां निवेश को रोकने के लिए एक के बाद एक साजिशें की गईं। ऐसी स्थिति में भी एक तरफ गुजरात देश में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट बनाने वाला पहला राज्य बना। इसी एक्ट की प्रेरणा से पूरे देश के लिए भी ऐसा ही कानून बना। कोरोना के संकटकाल में इसी कानून ने हर सरकार और प्रशासन की बहुत मदद की।

साथियों,

हर साजिश को पीछे छोड़ते हुए, गुजरात ने नई औद्योगिक नीति लाकर गुजरात में औद्योगिक विकास की नई राह चुनी थी। इसका बहुत अधिक लाभ कच्छ को हुआ, कच्छ में निवेश को हुआ। कच्छ के औद्योगिक विकास के लिए लाखों करोड़ रुपए का निवेश हो चुका है। आज कच्छ में दुनिया के सबसे बड़े सीमेंट प्लांट हैं। वेल्डिंग पाइप मैन्यूफैक्चरिंग के मामले में कच्छ पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर है। पूरी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टेक्सटाइल प्लांट कच्छ में ही है। कच्छ में एशिया का पहला स्पेशल इकॉनॉमिक जोन बना है। कंडला और मुंद्रा पोर्ट में देश का 30 प्रतिशत कार्गो हैंडल होता है। कच्छ वो इलाका है जहां से भारत का 30 प्रतिशत से ज्यादा नमक पैदा होता है, हिन्‍दुस्‍तान का कोई लाल ऐसा नहीं होगा जिसने कच्‍छ का नमक न खाया हो। जहां 30 से ज्यादा सॉल्ट रिफाइनरीज हैं।

भाइयों और बहनों,

एक समय था जब कच्छ में कोई सोलर पावर, विंड पावर के बारे में सोच भी नहीं पाता था। आज कच्छ में गरीब-करीब ढाई हजार मेगावॉट बिजली सोलर और विंड एनर्जी से पैदा होती है। आज कच्छ के खावड़ा में सबसे बड़ा सोलर विंड हाइब्रिड पार्क बन रहा है। देश में आज जो ग्रीन हाइड्रोजन अभियान चल रहा है, उसमें गुजरात की बहुत बड़ी भूमिका है। इसी तरह जब गुजरात, दुनिया भर में ग्रीन हाइड्रोजन कैपिटल के रूप में अपनी पहचान बनाएगा, तो उसमें कच्छ का बहुत बड़ा योगदान होगा।

साथियों,

कच्छ का ये क्षेत्र, भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए उदाहरण है। दुनिया में ऐसी जगहें कम ही होती हैं, जो खेती-पशुपालन में आगे हो, औद्योगिक विकास में आगे हो, टूरिज्म में आगे हो, कला-संस्कृति में आगे हो। कच्‍छ के पास क्‍या नहीं है। कच्छ ने, गुजरात ने अपनी विरासत को पूरे गौरव से अपनाने का उदाहरण भी देश के सामने रखा है।

इस बार 15 अगस्त पर लालकिले से मैंने देश से अपनी विरासत पर और गर्व करने का आह्वान किया है। पिछले 7-8 वर्षों में अपनी विरासत के प्रति गौरव का जो भाव प्रबल हुआ है, वो आज भारत की ताकत बन रहा है। आज भारत उस मनोस्थिति से बाहर निकला है जब अपनी धरोहरों की बात करने वाले को हीनभावना से भर दिया जाता था।

अब देखिए, हमारे कच्छ में क्या नहीं है। नगर निर्माण को लेकर हमारी विशेषज्ञता धौलावीरा में दिखती है। पिछले वर्ष ही धौलावीरा को वर्ल्ड हैरिटेज साइट का दर्जा दिया गया है। धौलावीरा की एक-एक ईंट हमारे पूर्वजों के कौशल, उनके ज्ञान-विज्ञान को दर्शाती है। जब दुनिया की अनेक सभ्यताएं अपने शुरुआती दौर में थीं, तब हमारे पूर्वजों ने धौलावीरा जैसे विकसित शहर बसा दिए थे।

इसी प्रकार मांडवी जहाज़ निर्माण के मामले में अग्रणी था। अपने इतिहास, अपनी विरासत और अपने स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति कितनी बेरुखी रही है, इसका एक उदाहरण हमारे श्यामजी कृष्ण वर्मा से भी जुड़ा है। आज़ादी के बाद दशकों तक उनकी अस्थियां तक विदेश में रखी रही। मुख्यमंत्री के रूप में ये मेरा सौभाग्य था कि उनकी अस्थियों को ला करके मैंने मातृभूमि को सौंपा। आज जब देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तब गुजरात वासी, देशवासी मांडवी में बने क्रांतितीर्थ पर उन्हें श्रद्धांजलि दे पा रहे हैं।

एक भारत, श्रेष्ठ भारत के लिए, किसानों-पशुपालकों का जीवन बदलने के लिए, जिन सरदार साहब ने खुद को खपा दिया, उनकी स्टैच्यु ऑफ यूनिटी भी आज देश की शान बन चुकी है। हर दिन हज़ारों पर्यटक वहां से प्रेरित होकर जाते हैं, राष्ट्रीय एकता का संकल्प लेकर जाते हैं।

साथियों,

बीते 2 दशकों में कच्छ की, गुजरात की इन धरोहरों को सहेजने, उन्हें दुनिया के सामने लाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। कच्छ का रण, धोरड़ो टेंट सिटी, मांडवी बीच, आज देश के बड़े टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन रहे हैं। यहां के कारीगरों, हस्तशिल्पियों के बनाए उत्पाद आज पूरी दुनिया में जा रहे हैं। निरोना, भुजौड़ी और अजरखपुर जैसे गांवों का हैंडीक्राफ्ट आज देश-दुनिया में धूम मचा रहा है। कच्छ की रोगन आर्ट, मड आर्ट, बांधनी, अजरख प्रिटिंग के चर्चे हर तरफ बढ़ रहे हैं। कच्छ की शॉल और कच्छ की कढ़ाई को GI-टैग मिलने के बाद इनकी डिमांड और बढ़ गई है।

इसलिए आज गुजरात में ही नहीं, बल्कि देश-दुनिया में चर्चा होने लगी है कि जिसने कच्छ नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा। इनका बहुत अधिक लाभ कच्छ के, गुजरात के टूरिज्म को हो रहा है, मेरी नौजवान पीढ़ी को हो रहा है। आज नेशनल हाईवे नंबर 41 के चौडीकरण का जो काम शुरू हुआ है उससे टूरिस्टों को तो मदद मिलेगी ही, बॉर्डर एरिया के लिहाज से भी ये बहुत महत्वपूर्ण है।

साथियों,

भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय यहां की माताओं-बहनों-बेटियों का पराक्रम, आज भी श्रेष्ठ वीर-गाथाओं में लिखा जाता है। कच्छ का विकास, सबका प्रयास से सार्थक परिवर्तन का एक उत्तम उदाहरण है। कच्छ सिर्फ एक स्थान नहीं है,, भूभाग का एक हिस्‍सा नहीं है, ये कच्‍छ तो स्पिरिट है, जीती-जागत भावना है, जिंदादिल मनोभाव। ये वो भावना है, जो हमें आज़ादी के अमृतकाल के विराट संकल्पों की सिद्धि का रास्ता दिखाती है।

कच्छ के भाईयो-बहनों फिर से कहता हुँ कि आपका यह प्यार, आपका आशीर्वाद कच्छ का तो भला करता है, लेकिन उसमें से प्रेरणा लेकर हिन्दुस्तान के कोने-कोने में कुछ कर दिखाने कि प्रेरणा भी देता है। यह आपकी ताकत है दोस्तो, इसलिए मैं कहता था, कच्छ का क और ख खमीर का ख। उसका नाम मेरा कच्छी बारह माह।

आपके स्वागत सम्मान के लिए, आपके प्यार के लिए मैं दिल से आपका आभारी हुँ। परंतु यह स्मृतिवन इस दुनिया के लिए महत्व का आकर्षण है। उसे संभालने की जिम्मेदारी मेरे कच्छ की है, मेरे भाईयो-बहनों की है। एक भी कोना ऐसा ना रहे कि जहाँ घना जंगल न बना हो। हमे इस भूजिया डुंगर को हरा-भरा बना देना है।

दोस्तो, आप कल्पना नहीं कर सकते कि, जितनी ताकत कच्छ के रणोत्सव में है, उससे ज्यादा ताकत अपने इस स्मृतिवन में है। यह मौका छोड़ मत देना भाईयों, बहुत सपनों के साथ मैंने यह काम किया है। एक बडे संकल्प के साथ काम किया है, और उसमें मुझे आपकी जीवंत भागीदारी चाहिए। अविरत साथ-सहकार चाहिए। दुनिया में मेरा भुजिया डुंगर गूंजे उसके लिए मुझे आपका साथ चाहिए।

एक बार फिर आप सभी को विकास की तमाम परियोजनाओं के लिए बहुत-बहुत बधाई और बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आज बहुत दिनों के बाद आइए मेरे साथ बोलिए-

मैं कहूंगा नर्मदे-आप कहेंगे सर्वदे-

नर्मदे – सर्वदे !

नर्मदे – सर्वदे !

नर्मदे – सर्वदे !

बहुत-बहुत धन्यवाद !

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PM Modi remembers the unparalleled bravery and sacrifice of the Sahibzades on Veer Baal Diwas
December 26, 2024

The Prime Minister, Shri Narendra Modi remembers the unparalleled bravery and sacrifice of the Sahibzades on Veer Baal Diwas, today. Prime Minister Shri Modi remarked that their sacrifice is a shining example of valour and a commitment to one’s values. Prime Minister, Shri Narendra Modi also remembers the bravery of Mata Gujri Ji and Sri Guru Gobind Singh Ji.

The Prime Minister posted on X:

"Today, on Veer Baal Diwas, we remember the unparalleled bravery and sacrifice of the Sahibzades. At a young age, they stood firm in their faith and principles, inspiring generations with their courage. Their sacrifice is a shining example of valour and a commitment to one’s values. We also remember the bravery of Mata Gujri Ji and Sri Guru Gobind Singh Ji. May they always guide us towards building a more just and compassionate society."