जोहार मध्यप्रदेश ! राम राम सेवा जोहार ! मोर सगा जनजाति बहिन भाई ला स्वागत जोहार करता हूँ। हुं तमारो सुवागत करूं। तमुम् सम किकम छो? माल्थन आप सबान सी मिलिन,बड़ी खुशी हुई रयली ह। आप सबान थन, फिर सी राम राम ।
मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्री मंगूभाई पटेल जी, जिन्होंने अपना पूरा जीवन आदिवासियों के कल्याण के लिए खपा दिया। वे जीवनभर आदिवासियों के जीवन के लिए सामाजिक संगठन के रूप में, सरकार में मंत्री के रूप में एक समर्पित आदिवासियों के सेवक के रूप में रहे। और मुझे गर्व है कि मध्यप्रदेश के पहले आदिवासी गर्वनर, इसका सम्मान श्री मंगूभाई पटेल के खाते में जाता है।
मंच पर विराजमान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्रीमान शिवराज सिंह चौहान जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी नरेंद्र सिंह तोमर जी, ज्योतिरादित्य सिंधिया जी, वीरेंद्र कुमार जी, प्रह्लाद पटेल जी, फग्गन सिंह कुलस्ते जी, एल मुरुगन जी, एमपी सरकार के मंत्रिगण, संसद के मेरे सहयोगी सांसद, विधायकगण और मध्य प्रदेश के कोने-कोने से हम सभी को आशीर्वाद देने आए जनजातीय समाज के मेरे भाइयों और बहनों, आप सभी को भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिवस पर बहुत-बहुत शुभकामनाएं !
आज का दिन पूरे देश के लिए, पूरे जनजातीय समाज के लिए बहुत बड़ा दिन है। आज भारत, अपना पहला जनजातीय गौरव दिवस मना रहा है। आज़ादी के बाद देश में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर, पूरे देश के जनजातीय समाज की कला-संस्कृति, स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्रनिर्माण में उनके योगदान को गौरव के साथ याद किया जा रहा है, उन्हें सम्मान दिया जा रहा है। आजादी के अमृत महोत्सव में इस नए संकल्प के लिए, मैं पूरे देश को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मैं आज यहां मध्य प्रदेश के जनजातीय समाज का आभार भी व्यक्त करता हूं। बीते अनेक वर्षों में निरंतर हमें आपका स्नेह, आपका विश्वास मिला है। ये स्नेह हर पल और मज़बूत होता जा रहा है। आपका यही प्यार हमें आपकी सेवा के लिए दिन-रात एक करने की ऊर्जा देता है।
साथियों,
इसी सेवाभाव से ही आज आदिवासी समाज के लिए शिवराज जी की सरकार ने कई बड़ी योजनाओं का शुभारंभ किया है। और आज जब कार्यक्रम के प्रांरभ में मेरे आदिवासी जनजातीय समूह के सभी लोग अलग-अलग मंच पर गीत के साथ, धूम के साथ अपनी भावनाएं प्रकट कर रहे थे। मैंने प्रयास किया उन गीतों को समझने के लिए। क्योंकि मेरा ये अनुभव रहा है कि जीवन का एक महत्वपूर्ण कालखंड मैंने आदिवासियों के बीच में बिताया है और मैंने देखा है कि उनकी हर बात में कोई न कोई तत्वज्ञान होता है। Purpose of life आदिवासी अपने नाच-गान में, अपने गीतों में, अपनी परम्पराओं में बखूबी प्रस्तुत करते हैं। और इसलिए आज के इस गीत के प्रति मेरा ध्यान जाना बहुत स्वाभाविक था। और मैंने जब गीत के शब्दों को बारीकी से देखा तो मैं गीत को तो नहीं दोहरा रहा हूं, लेकिन आपने जो कहा- शायद देशभर के लोगों को आपका एक-एक शब्द जीवन जीने का कारण, जीवन जीने का इरादा, जीवन जीने के हेतु बखूबी प्रस्तुत करता है। आपने अपने नृत्य के द्वारा, अपने गीत के द्वारा आज प्रस्तुत किया- शरीर चार दिनों का है, अंत में मिट्टी में मिल जाएगा। खाना-पीना खूब किया, भगवान का नाम भुलाया। देखिए ये आदिवासी हमें क्या कह रहे हैं जी। सचमुच में वे शिक्षित हैं कि हमें अभी सीखना बाकी है! आगे कहते हैं-मौज मस्ती में उम्र बिता दी, जीवन सफल नहीं किया। अपने जीवन में लड़ाई-झगड़ा खूब किया, घर में उत्पाद भी खूब किया। जब अंत समय आया तो मन में पछताना व्यर्थ है। धरती, खेत-खलिहान, किसी के नहीं हैं- देखिए, आदिवासी मुझे क्या समझा रहा है! धरती, खेत-खलिहान किसी के नहीं हैं, अपने मन में गुमान करना व्यर्थ है। ये धन-दौलत कोई काम के नहीं हैं, इसको यहीं छोड़कर जाना है। आप देखिए- इस संगीत में, इस नृत्य में जो शब्द कहे गए हैं वो जीवन का उत्तम तत्वज्ञान जंगलों में जिंदगी गुजारने वाले मेरे आदिवासी भाई-बहनों ने आत्मसात् किया है। इससे बड़ी किसी देश की ताकत क्या हो सकती है! इससे बड़ी किसी देश की विरासत क्या हो सकती है! इससे बड़ी देश की पूंजी क्या हो सकती है!
साथियो,
इसी सेवाभाव से ही आज आदिवासी समाज के लिए शिवराज जी की सरकार ने कई बड़ी योजनाओं का शुभारंभ किया है। राशन आपके ग्राम योजना हो या फिर मध्य प्रदेश सिकल सेल मिशन हो, ये दोनों कार्यक्रम आदिवासी समाज में स्वास्थ्य और पोषण को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे। मुझे इसका भी संतोष है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त राशन मिलने से कोरोना काल में गरीब आदिवासी परिवारों को इतनी बड़ी मदद मिलेगी। अब जब गांव में आपके घर के पास सस्ता राशन पहुंचेगा तो, आपका समय भी बचेगा और अतिरिक्त खर्च से भी मुक्ति मिलेगी।
आयुष्मान भारत योजना से पहले ही अनेक बीमारियों का मुफ्त इलाज आदिवासी समाज को मिल रहा है, देश के गरीबों को मिल रहा है। मुझे खुशी है कि मध्य प्रदेश में जनजातीय परिवारों में तेज़ी से मुफ्त टीकाकरण भी हो रहा है। दुनिया के पढ़े-लिखे देशों में भी टीकाकरण को लेकर सवालिया निशान लगाने की खबरें आती हैं। लेकिन मेरा आदिवासी भाई-बहन टीकाकरण के महत्व को समझता भी है, स्वीकारता भी है और देश को बचाने में अपनी भूमिका अदा कर रहा है, इससे बड़ी समझदारी क्या होती है। 100 साल की इस सबसे बड़ी महामारी से सारी दुनिया लड़ रही है, सबसे बड़ी महामारी से निपटने के लिए जनजातीय समाज के सभी साथियों का वैक्सीनेशन के लिए आगे बढ़कर आना, सचमुच में ये अपने-आप में गौरवपूर्ण घटना है। पढ़े-लिखे शहरों में रहने वाले लोगों ने मेरे इन आदिवासी भाइयों से बहुत कुछ सीखने जैसा है।
साथियों,
आज यहां भोपाल आने से पहले मुझे रांची में भगवान बिरसा मुंडा स्वतंत्रता सेनानी म्यूज़ियम का लोकार्पण करने का सौभाग्य मिला है। आजादी की लड़ाई में जनजातीय नायक-नायिकाओं की वीर गाथाओं को देश के सामने लाना, उसे नई पीढ़ी से परिचित कराना, हमारा कर्तव्य है। गुलामी के कालखंड में विदेशी शासन के खिलाफ खासी-गारो आंदोलन, मिजो आंदोलन, कोल आंदोलन समेत कई संग्राम हुए। गोंड महारानी वीर दुर्गावती का शौर्य हो या फिर रानी कमलापति का बलिदान, देश इन्हें भूल नहीं सकता। वीर महाराणा प्रताप के संघर्ष की कल्पना उन बहादुर भीलों के बिना नहीं की जा सकती जिन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर राणा प्रताप के साथ लड़ाई के मैदान में अपने-आप को बलि चढ़ा दिया था। हम सभी इनके ऋणी हैं। हम इस ऋण को कभी चुका नहीं सकते, लेकिन अपनी इस विरासत को संजोकर, उसे उचित स्थान देकर, अपना दायित्व जरूर निभा सकते हैं।
भाइयों और बहनों,
आज जब मैं आपसे, अपनी विरासत को संजोने की बात कर रहा हूं, तो देश के ख्यात इतिहासकार, शिव शाहीर बाबासाहेब पुरंदरे जी को भी याद करूंगा। आज ही सुबह पता चला वे हमें छोड़कर चले गए, उनका देहावसान हुआ है। ‘पद्म विभूषण’ बाबासाहेब पुरंदरे जी ने छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन को, उनके इतिहास को सामान्य जन तक पहुंचाने में जो योगदान दिया है, वो अमूल्य है। यहां की सरकार ने उन्हें कालिदास पुरस्कार भी दिया था। छत्रपति शिवाजी महाराज के जिन आदर्शों को बाबासाहेब पुरंदरे जी ने देश के सामने रखा, वो आदर्श हमें निरंतर प्रेरणा देते रहेंगे। मैं बाबासाहेब पुरंदरे जी को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देता हूं।
साथियों,
आज जब हम राष्ट्रीय मंचों से, राष्ट्र निर्माण में जनजातीय समाज के योगदान की र्चा करते हैं, तो कुछ लोगों को ज़रा हैरानी होती है। ऐसे लोगों को विश्वास ही नहीं होता कि जनजातीय समाज का भारत की संस्कृति को मजबूत करने में कितना बड़ा योगदान रहा है। इसकी वजह ये है कि जनजातीय समाज के योगदान के बारे में या तो देश को बताया ही नहीं गया, अंधेरे में रखने की भरपूर कोशिश की गई, और अगर बताया भी गया तो बहुत ही सीमित दायरे में जानकारी दी गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आज़ादी के बाद दशकों तक जिन्होंने देश में सरकार चलाई, उन्होंने अपनी स्वार्थ भरी राजनीति को ही प्राथमिकता दी। देश की आबादी का करीब-करीब 10 प्रतिशत होने के बावजूद, दशकों तक जनजातीय समाज को, उनकी संस्कृति, उनके सामर्थ्य को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। आदिवासियों का दुख, उनकी तकलीफ, बच्चों की शिक्षा, आदिवासियों का स्वास्थ्य, उन लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखता था।
साथियों,
भारत की सांस्कृतिक यात्रा में जनजातीय समाज का योगदान अटूट रहा है। आप ही बताइए, जनजातीय समाज के योगदान के बिना क्या प्रभु राम के जीवन में सफलताओं की कल्पना की जा सकती है? बिल्कुल नहीं। वनवासियों के साथ बिताए समय ने एक राजकुमार को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाने में अहम योगदान दिया। वनवास के उसी कालखंड में प्रभु राम ने वनवासी समाज की परंपरा, रीति- रिवाज, रहन-सहन के तौर-तरीके, जीवन के हर पहलू से प्रेरणा पाई थी।
साथियों,
आदिवासी समाज को उचित महत्व ना देकर, प्राथमिकता ना देकर, पहले की सरकारों ने, जो अपराध किया है, उस पर लगातार बोला जाना आवश्यक है। हर मंच पर चर्चा होना जरूरी है। जब दशकों पहले मैंने गुजरात में अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की थी, तभी से मैं देखता आया हूं कि कैसे देश में कुछ राजनीतिक दलों ने सुख-सुविधा और विकास के हर संसाधन से आदिवासी समाज को वंचित रखा। अभाव बनाए रखते हुए, चुनाव के दौरान उन्हीं अभावों की पूर्ति के नाम पर बार-बार वोट मांगे गए, सत्ता पाई गई लेकिन जनजातीय समुदाय के लिए जो करना चाहिए था, जितना करना चाहिए था, और जब करना चाहिए था, ये कम पड़ गए, नहीं कर पाये। असहाय छोड़ दिया समाज को। गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद मैंने वहां पर जनजातीय समाज में स्थितियों को बदलने के लिए बहुत सारे अभियान शुरू किए थे। जब देश ने मुझे 2014 में अपनी सेवा का मौका दिया, तो मैंने जनजातीय समुदाय के हितों को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा।
भाइयों और बहनों,
आज सही मायने में आदिवासी समाज के हर साथी को, देश के विकास में उचित हिस्सेदारी और भागीदारी दी जा रही है। आज चाहे गरीबों के घर हों, शौचालय हों, मुफ्त बिजली और गैस कनेक्शन हों, स्कूल हो, सड़क हो, मुफ्त इलाज हो, ये सबकुछ जिस गति से देश के बाकी हिस्से में हो रहा है, उसी गति से आदिवासी क्षेत्रों में भी हो रहा है। बाकी देश के किसानों के बैंक खाते में अगर हज़ारों करोड़ रुपए सीधे पहुंच रहे हैं, तो आदिवासी क्षेत्रों के किसानों को भी उसी समय मिल रहे हैं। आज अगर देश के करोड़ों-करोड़ परिवारों को शुद्ध पीने का पानी पाइप से घर-घर पहुंचाया जा रहा है, तो ये उसी इच्छाशक्ति के साथ उतनी ही स्पीड से आदिवासी परिवारों तक भी पहुंचाने का काम तेज गति से चल रहा है। वर्ना इतने वर्षों तक जनजातीय क्षेत्रों की बहनों-बेटियों को पानी के लिए कितना परेशान होना पड़ता था, मुझसे ज्यादा आप लोग इसको भली-भांति जानते हैं। मुझे खुशी है कि जल जीवन मिशन के तहत मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में 30 लाख परिवारों को अब नल से जल मिलना शुरू हो गया है। और इसमें भी ज्यादातर हमारे आदिवासी इलाकों के ही हैं।
साथियों,
जनजातीय विकास के बारे में बात करते हुए एक बात और कही जाती थी। कहा जाता था, जनजातीय क्षेत्र भौगैलिक रूप से बहुत कठिन होते हैं। कहा जाता था कि वहां सुविधाएं पहुंचाना मुश्किल होता है। ये बहाना काम न करने के बहाने थे। यही बहाना करके जनजातीय समाज में सुविधाओं को कभी प्राथमिकता नहीं दी गई। उन्हें अपने भाग्य ही पर छोड़ दिया।
साथियों,
ऐसी ही राजनीति, ऐसी ही सोच के कारण आदिवासी बाहुल्य वाले जिले विकास की बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रह गए। अब कहां तो इनके विकास के लिए कोशिशें होनी चाहिए थीं, लेकिन इन जिलों पर पिछड़े होने का एक टैग लगा दिया गया।
भाइयों और बहनों,
कोई राज्य, कोई जिला, कोई व्यक्ति, कोई समाज विकास की दौड़ में पीछे नहीं रहना चाहता। हर व्यक्ति, हर समाज आकांक्षी होता है, उसके सपने होते हैं। सालों-साल वंचित रखे गए इन्हीं सपनों, इन्हीं आकांक्षाओं को उड़ान देने की कोशिश आज हमारी सरकार की प्राथमिकता है। आपके आशीर्वाद से आज उन 100 से अधिक जिलों में विकास की आकांक्षाएं को पूरा किया जा रहा है। आज जितनी भी कल्याणकारी योजनाएं केंद्र सरकार बना रही है, उनमें आदिवासी समाज बाहुल्य, आकांक्षी जिलों को प्राथमिकता दी जा रही है। आकांक्षी जिले या फिर ऐसे जिले जहां अस्पतालों का अभाव है, वहां डेढ़ सौ से अधिक मेडिकल कॉलेज स्वीकृत किए जा चुके हैं।
साथियों,
देश का जनजातीय क्षेत्र, संसाधनों के रूप में, संपदा के मामले में हमेशा समृद्ध रहा है। लेकिन जो पहले सरकार में रहे, वो इन क्षेत्रों के दोहन की नीति पर चले। हम इन क्षेत्रों के सामर्थ्य के सही इस्तेमाल की नीति पर चल रहे हैं। आज जिस जिले से जो भी प्राकृतिक संपदा राष्ट्र के विकास के लिए निकलती है, उसका एक हिस्सा उसी जिले के विकास में लगाया जा रहा है। डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड के तहत राज्यों को करीब-करीब 50 हजार करोड़ रुपए मिले हैं। आज आपकी संपदा आपके ही काम आ रही है, आपके बच्चों के काम आ रही है। अब तो खनन से जुड़ी नीतियों में भी हमने ऐसे बदलाव किए हैं, जिससे जनजातीय क्षेत्रों में ही रोजगार की व्यापक संभावनाएं बनें।
भाइयों और बहनों,
आज़ादी का ये अमृतकाल, आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का काल है। भारत की आत्मनिर्भरता, जनजातीय भागीदारी के बिना संभव ही नहीं है। आपने देखा होगा, अभी हाल में पद्म पुरस्कार दिए गए हैं। जनजातीय समाज से आने वाले साथी जब राष्ट्रपति भवन पहुंचे, पैर में जूते भी नहीं थे, सारी दुनिया देख करके दंग रह गई, हैरान रह गई। आदिवासी और ग्रामीण समाज में काम करने वाले ये देश के असली हीरो हैं। यही तो हमारे डायमंड हैं, यही तो हमारे हीरे हैं।
भाइयों और बहनों,
जनजातीय समाज में प्रतिभा की कभी कोई कमी नहीं रही है। लेकिन दुर्भाग्य से, पहले की सरकारों में आदिवासी समाज को अवसर देने के लिए जो ज़रूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए, कुछ नहीं था, बहुत कम थी। सृजन, आदिवासी परंपरा का हिस्सा है, मैं अभी यहां आने से पहले सभी आदिवासी समाज की बहनों के द्वारा जो निर्माण कार्य हुआ है, वो देख करके सचमुच में मेरे मन को आनंद होता है। इन उंगलियों में, इनके पास क्या ताकत है। सृजन आदिवासी परम्परा का हिस्सा है, लेकिन आदिवासी सृजन को बाज़ार से नहीं जोड़ा गया। आप कल्पना कर सकते हैं, बांस की खेती जैसी छोटी और सामान्य सी चीज को कानूनों के मकड़जाल में फंसा कर रखा गया था। क्या हमारे जनजातीय भाइयों बहनों के ये हक नहीं था कि वो बांस की खेती कर उसे बेच करके कुछ पैसा कमा सकें? हमने वन कानूनों में बदलाव कर इस सोच को ही बदल दिया।
साथियों,
दशकों से जिस समाज को, उसकी छोटी-छोटी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए लंबा इंतजार करवाया गया, उसकी उपेक्षा की गई, अब उसको आत्मनिर्भर बनाने के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है। लकड़ी और पत्थर की कलाकारी तो आदिवासी समाज सदियों से कर रहा है, लेकिन अब उनके बनाए उत्पादों को नया मार्केट उपलब्ध कराया जा रहा है। ट्राइफेड पोर्टल के माध्यम से जनजातीय कलाकारों के उत्पाद देश और दुनिया के बाज़ारों में ऑनलाइन भी बिक रहे हैं। जिस मोटे अनाज को कभी दोयम नज़र से देखा जाता था, वो भी आज भारत का ब्रांड बन रहा है।
साथियों,
वनधन योजना हो, वनोपज को MSP के दायरे में लाना हो, या बहनों की संगठन शक्ति को नई ऊर्जा देना, ये जनजातीय क्षेत्रों में अभूतपूर्व अवसर पैदा कर रहे हैं। पहले की सरकारें सिर्फ 8-10 वन उपजों पर MSP दिया करती थीं। आज हमारी सरकार, करीब-करीब 90 वन उपजों पर MSP दे रही है। कहां 9-10 और कहां 90? हमने 2500 से अधिक वनधन विकास केंद्रों को 37 हज़ार से अधिक वनधन सेल्फ हेल्प ग्रुपों से जोड़ा है। इनसे आज लगभग साढ़े 7 लाख साथी जुड़े हैं, उनको रोज़गार और स्वरोज़गार मिल रहा है। हमारी सरकार ने जंगल की ज़मीन को लेकर भी पूरी संवेदनशीलता के साथ कदम उठाए हैं। राज्यों में लगभग 20 लाख ज़मीन के पट्टे देकर हमने लाखों जनजातीय साथियों की बहुत बड़ी चिंता दूर की है।
भाइयों और बहनों,
हमारी सरकार आदिवासी युवाओं की शिक्षा और कौशल पर भी विशेष बल दे रही है। एकलव्य मॉडल रेज़ीडेंशियल स्कूल आज जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा की नई ज्योति जागृत कर रहे हैं। आज मुझे यहां 50 एकलव्य मॉडल रेज़ीडेंशियल स्कूलों के शिलान्यास का अवसर मिला है। हमारा लक्ष्य, देशभर में ऐसे लगभग साढ़े 7 सौ स्कूल खोलने का है। इनमें से अनेकों एकलव्य स्कूल पहले ही शुरू हो चुके हैं। 7 साल पहले हर छात्र पर सरकार लगभग 40 हज़ार रुपए खर्च करती थी, वो आज बढ़कर 1 लाख रुपए से अधिक हो चुका है। इससे जनजातीय छात्र-छात्राओं को और अधिक सुविधा मिल रही है। केंद्र सरकार, हर साल लगभग 30 लाख जनजातीय युवाओं को स्कॉलरशिप भी दे रही है। जनजातीय युवाओं को उच्च शिक्षा और रिसर्च से जोड़ने के लिए भी अभूतपूर्व काम किया जा रहा है। आज़ादी के बाद जहां सिर्फ 18 ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट्स बने, वहीं सिर्फ 7 साल में ही 9 नए संस्थान स्थापित किए जा चुके हैं।
साथियों,
जनजातीय समाज के बच्चों को एक बहुत बड़ी दिक्कत, पढ़ाई के समय भाषा की भी होती थी। अब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा में पढ़ाई पर बहुत जोर दिया गया है। इसका भी लाभ हमारे जनजातीय समाज के बच्चों को मिलना तय है।
भाइयों और बहनों,
जनजातीय समाज का प्रयास, सबका प्रयास, ही आज़ादी के अमृतकाल में बुलंद भारत के निर्माण की ऊर्जा है। जनजातीय समाज के आत्मसम्मान के लिए, आत्मविश्वास के लिए, अधिकार के लिए, हम दिन रात मेहनत करेंगे, आज जनजातीय गौरव दिवस पर हम इस संकल्प को फिर दोहरा रहे हैं। और ये जनजातीय गौरव दिवस, जैसे हम गांधी जयंती मनाते हैं, जैसे हम सरदार पटेल की जयंती मनाते हैं, जैसे हम बाबा साहेब अम्बेडकर की जयंती मनाते हैं, वैसे ही भगवान बिरसा मुंडा की 15 नवंबर की जयंती हर वर्ष जनजातीय गौरव दिवस के रूप में पूरे देश में मनाई जाएगी।
एक बार फिर आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं! मेरे साथ दोनों हाथ ऊपर करके पूरी ताकत से बोलिए-
भारत माता की जय !
भारत माता की जय !
भारत माता की जय !