प्रधानमंत्री ने NEIGRIHMS, शिलॉन्ग में 7,500वें जनऔषधि केंद्र को राष्ट्र को समर्पित किया।
जन औषधि योजना सेवा और रोजगार दोनों का माध्यम बन रही है : प्रधानमंत्री मोदी
आज दुनिया हमारी Traditional Medicine का लोहा मानने लगी है : प्रधानमंत्री मोदी
आप मेरे परिवार हैं और आपकी बीमारी मेरे परिवार के सदस्यों की बीमारी है, इसीलिए मैं चाहता हूं कि मेरे सभी देशवासी स्वस्थ रहें : प्रधानमंत्री

इस कार्यक्रम में मेरे साथ जुड़े केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे साथी श्री डी.वी.सदानंद गौड़ा जी, श्री मनसुख मांडविया जी, श्री अनुराग ठाकुर जी, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर जी, मेघालय के मुख्यमंत्री श्री कोर्नाड के. संगमा जी, डिप्टी सीएम श्री प्रेस्टोन तिन्सॉन्ग जी, गुजरात के डिप्टी सीएम भाई नितिन पटेल जी, देशभर से जुड़े जनऔषधि केंद्र संचालक, लाभार्थी महोदय, चिकित्सक और मेरे भाइयों और बहनों!

जनऔषधि चिकित्सक, जनऔषधि ज्योति, और जनऔषधि सारथी, ये तीन प्रकार के महत्‍वपूर्ण award प्राप्‍त करने वाले, सम्मान पाने वाले सभी साथियों को मैं बहुत-बहुत बधाई देता हूं!!

साथियों,

जनऔषधि योजना को देश के कोने-कोने में चलाने वाले और इसके कुछ लाभार्थियों से आज मुझे बातचीत करने का अवसर मिला। और जो चर्चा हुई है, उससे स्पष्ट है कि ये योजना गरीब और विशेष करके मध्यम वर्गीय परिवारों की बहुत बड़ी साथी बन रही है। ये योजना सेवा और रोज़गार दोनों का माध्यम बन रही है। जनऔषधि केंद्रों में सस्ती दवाई के साथ-साथ युवाओं को आय के साधन भी मिल रहे हैं।

विशेषरूप से हमारी बहनों को, हमारी बेटियों को जब सिर्फ ढाई रुपए में सेनिटेरी पैड्स उपलब्ध कराए जाते हैं, तो इससे उनके स्वास्थ्य पर एक सकारात्मक असर पड़ता है। अब तक 11 करोड़ से ज्यादा सैनिटरी नैपकिन्स इन केन्द्रो पर बिक चुके हैं। इसी तरह 'जनऔषधि जननी' इस अभियान के तहत गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी पोषण और सप्लिमेंट्स भी अब जनऔषधि केन्द्रों पर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, एक हजार से ज्यादा जनऔषधि केंद्र तो ऐसे हैं जिन्हें महिलाएं ही चला रही हैं। यानि जनऔषधि योजना बेटियों की आत्मनिर्भरता को भी बल दे रही है।

भाइयों और बहनों,

इस योजना से पहाड़ी क्षेत्रों में, नॉर्थ ईस्ट में, जनजातीय क्षेत्रों में रहने वाले देशवासियों तक सस्ती दवा देने में भी मदद मिल रही है। आज भी जब 7500वें केंद्र का लोकार्पण किया गया है तो वो शिलॉन्ग में हुआ है। इससे स्पष्ट है कि नॉर्थ ईस्ट में जनऔषधि केंद्रों का कितना विस्तार हो रहा है।

साथियों,

7500 के पड़ाव तक पहुंचना इसलिए भी अहम है क्योंकि 6 साल पहले तक देश में ऐसे 100 केंद्र भी नहीं थे। और हम हो सके उतना जल्‍दी, तेज़ी से 10 हज़ार का टारगेट पार करना चाहते हैं। मैं आज राज्‍य सरकारों से, विभाग के लोगों से एक आग्रह करूंगा। आजादी के 75 साल, हमारे सामने महत्‍वपूर्ण अवसर है। क्‍या हम ये तय कर सकते हैं कि देश के कम से कम 75 जिले ऐसे होंगे जहां पर 75 से ज्‍यादा जनऔषधि केन्‍द्र होंगे और वे आने वाले कुछ ही समय में हम कर देंगे। आप देखिए कितना बड़ा फैलाव बढ़ता जाएगा।

उसी प्रकार से उसका लाभ लेने वालों की संख्‍या का भी लक्ष्‍य तय करना चाहिए। अब एक भी जनऔषधि केन्‍द्र ऐसा न हो कि जिसमें आज जितने लोग आते हैं, उसकी संख्‍या दो गुनी-तीन गुनी न हो। इन दो चीजों को ले करके हमें काम करना चाहिए। ये काम जितना जल्दी होगा, देश के गरीब को उतना ही लाभ होगा। ये जनऔषधि केंद्र हर साल गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के लगभग 36 सौ करोड़ रुपए बचा रहे हैं, और ये रकम छोटी नहीं है जो पहले महंगी दवाओं में खर्च हो जाते थे। यानी अब इन परिवारों के 35 सौ करोड़ रुपये परिवार के अच्‍छे कामों के लिए और अधिक उपयोगी होने लगे हैं।

साथियों,

जनऔषधि योजना का तेज़ी से प्रसार हो इसके लिए इन केन्द्रों का incentive भी ढाई लाख से बढ़ाकर 5 लाख कर दिया गया है। इसके अलावा दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और पूर्वोत्तर के लोगों के लिए 2 लाख रुपए का incentive अलग से दिया जा रहा है। ये पैसा उन्हें अपना स्टोर बनाने, उसके लिए जरूरी फ़र्नीचर वगैरह लाने में मदद करता है। इन अवसरों के साथ ही इस योजना से फार्मा सेक्टर में संभावनाओं का एक नया आयाम भी खुला है।

भाइयों और बहनों,

आज made in India दवाइयों और सर्जिकल्स की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से production भी बढ़ रहा है। इससे भी बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं। मुझे खुशी है कि अब 75 आयुष दवाएं जिसमें होम्‍योपेथी होती हैं, आयुर्वेद होता है, उसको भी जनऔषधि केन्द्रों में उपलब्ध कराये जाने का फैसला लिया गया है। आयुष दवाएं सस्ते में मिलने से मरीजों का फायदा तो होगा ही, साथ ही इससे आयुर्वेद और आयुष मेडिसिन के क्षेत्र को भी बहुत बड़ा लाभ होगा।

साथियों,

लंबे समय तक देश की सरकारी सोच में स्वास्थ्य को सिर्फ बीमारी और इलाज का ही विषय माना गया। लेकिन स्वास्थ्य का विषय सिर्फ बीमारी से मुक्ति, इतना नहीं है और इलाज तक भी सीमित नहीं है, बल्कि ये देश के पूरे आर्थिक और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करता है। जिस देश की आबादी, जिस देश के लोग- पुरुष हो, स्‍त्री हो, शहर के हों, गांव के हों, बुजुर्ग हों, छोटे हों, नौजवान हों, बच्‍चे हों- वो जितने ज्‍यादा स्‍वस्‍थ होते हैं, उतना वो राष्‍ट्र भी समर्थ होता है। उनकी ताकत बहुत उपयोगी होती है। देश को आगे बढ़ाने में, ऊर्जा बढ़ाने में काम आती है।

इसलिए हमने इलाज की सुविधा बढ़ाने के साथ ही उन बातों पर भी जोर दिया जो बीमारी की वजह बनती हैं। जब देश में स्वच्छ भारत अभियान चलाते हैं, जब देश में करोड़ों शौचालयों का निर्माण होता है, जब देश में मुफ्त गैस कनेक्शन देने का अभियान चलता है, जब देश में आयुष्मान भारत योजना घर-घर पहुंच रही है, मिशन इंद्रधनुष हो, पोषण अभियान चला, तो इसके पीछे यही सोच थी। हमने हेल्थ को लेकर टुकड़ों-टुकड़ों में नहीं बल्कि एक संपूर्णता की सोच के साथ, एक holistic तरीके से काम किया।

 

हमने योग को दुनिया में नई पहचान दिलाने के लिए प्रयास किए। आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पूरी दुनिया मना रही है और बड़े चाव से मना रही है, जी-जान से मना रही है। आप देखिए कितने बड़े गर्व की बात होती है जब हमारे काढ़े, हमारे मसालों, हमारे आयुष के समाधानों की चर्चा करने से पहले जो कभी हिचकते थे वो आज गर्व के साथ एक-दूसरे को कहते हैं ये लीजिए। आजकल हमारी हल्‍दी का export इतना बढ़ गया है कि कोरोना के बाद दुनिया को लगा कि भारत के पास बहुत कुछ है।

आज दुनिया भारत का लोहा मान रही है। हमारी परंपरागत का traditional medicine का लोहा मानने लगी है। हमारे यहां खाने में जो चीजें कभी बहुत उपयोगी होती थीं जैसे रागी, कोर्रा, कोदा, जवार, बाजरा, ऐसे दर्जनों मोटे अनाजों की हमारे देश में समृद्ध परंपरा है। जब पिछली बार मैं कर्नाटक का मेरा प्रवास था तो हमारे वहां के मुख्‍यमंत्री येदुरप्‍पा जी ने मोटे अनाज का एक बहुत बड़ा शो रखा था। और इतने प्रकार के मोटे अनाज जो छोटे-छोटे किसान पैदा करते हैं, उसकी इतनी पोष्टिकता है, बड़े अच्‍छे से उसको उन्‍होंने प्रदर्शित किया था। लेकिन हम जानते हैं इन पौष्टिक अनाजों को देश में उतना प्रोत्साहित नहीं किया गया। एक प्रकार से ये तो गरीबों का है, ये तो जिसके पास पैसे नहीं वो खाता है, ये मानसिकता बन गई थी।

लेकिन आज अचानक स्थिति बदल गई है। और स्थिति बदलने के लिए हमने लगातार प्रयास किया है। आज मोटे अनाजों को ना सिर्फ प्रोत्साहित किया जा रहा है, बल्कि अब भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को International Year of Millets भी घोषित किया है। ये मोटा अनाज Millets पर फोकस से देश को पौष्टिक अन्न भी मिलेगा और हमारे किसानों की आय भी बढ़ेगी। और अब तो फाइव स्‍टार होटल में भी लोग ऑर्डर करते समय कहते हैं कि हमें वो मोटे अनाज की फलानी चीज खानी है। धीरे-धीरे क्‍योंकि सबको लगने लगा है कि मोटा अनाज शरीर के लिए बहुत उपयोगी है।

और अब तो यूएन ने माना है, दुनिया ने माना है, 2023 में पूरी दुनिया एक वर्ष के रूप में उसको मनाने वाली है। और इसका सबसे बड़ा लाभ हमारे छोटे किसानों को होने वाला है क्‍योंकि मोटा अनाज वहीं पैदा होता है। वही लोग मेहनत करके निकालते हैं।

 

साथियों,

बीते वर्षों में इलाज में आने वाले हर तरह के भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया गया है, इलाज को हर गरीब तक पहुंचाया गया है। ज़रूरी दवाओं को, चाहे हार्ट स्टेंट्स की बात हो, knee सर्जरी से जुड़े उपकरणों की बात हो, उसकी कीमतों को कई गुना कम कर दिया गया है। इससे लोगों को सालाना करीब साढ़े 12 हजार करोड़ रुपए की बचत हो रही है।

आयुष्मान योजना ने देश के 50 करोड़ से ज्यादा गरीब परिवारों को 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज सुनिश्चित किया है। इसका लाभ अब तक डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग ले चुके हैं। अनुमान है कि इससे भी लोगों को करीब 30 हजार करोड़ रुपए की बचत हुई है। यानि जनऔषधि, आयुष्मान, स्टेंट औऱ अन्य उपकरणों की कीमत घटने से हो रही बचत को अगर हम जोड़ें, सिर्फ स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ी हुई बातों की मैं बात कर रहा हूं...तो आज मध्‍यम वर्ग का सामान्‍य परिवार का करीब-करीब 50 हज़ार करोड़ रुपया हर साल बच रहा है।

साथियों,

भारत दुनिया की फार्मेसी है, ये सिद्ध हो चुका हे। दुनिया हमारी Generic दवाएं लेती है, लेकिन हमारे यहां ही उनके प्रति एक प्रकार से उदासीनता रही, प्रोत्साहित नहीं किया गया। अब हमने उस पर बल दिया है। हमने Generic दवाओं पर जितना जोर लगा सकते हैं लगाया ताकि सामान्‍य मानवी का पैसा बचना चाहिए और बीमारी भी जानी चाहिए।

कोरोना काल में दुनिया ने भी भारत की दवाओं की शक्ति को अनुभव किया है। यही स्थिति हमारी वैक्सीन इंडस्ट्री की थी। भारत के पास अनेक बीमारियों की वैक्सीन बनाने की क्षमता थी लेकिन ज़रूरी प्रोत्साहन की कमी थी। हमने इंडस्ट्री को प्रोत्साहित किया और आज भारत में बने टीके हमारे बच्चों को बचाने के काम आ रहे हैं।

 

साथियों,

देश को आज अपने वैज्ञानिकों पर गर्व है कि हमारे पास मेड इन इंडिया वैक्सीन अपने लिए भी है और दुनिया की मदद करने के लिए भी है। हमारी सरकार ने यहां भी देश के गरीबों का, मध्यम वर्ग का विशेष ध्यान रखा है। आज सरकारी अस्पतालों में कोरोना का फ्री टीका लगाया जा रहा है। प्राइवेट अस्पतालों में दुनिया में सबसे सस्ता यानि सिर्फ 250 रुपए का टीका लगाया जा रहा है। हर दिन लाखों साथियों को भारत का अपना टीका लग रहा है। नंबर आने पर मैं भी अपनी पहली डोज लगवा चुका हूं।

साथियों,

देश में सस्ता और प्रभावी इलाज होने के साथ-साथ पर्याप्त मेडिकल स्टाफ की उपलब्धता भी उतनी ही आवश्यक है। इसलिए हमने गांव के अस्पतालों से लेकर मेडिकल कॉलेज और AIIMS जैसे संस्थानों तक, एक integrated approach के साथ काम शुरु किया है। गांवों में डेढ़ लाख Health and Wellness Centre बनाए जा रहे हैं, जिनमें से 50 हज़ार से ज्यादा सेवा देना शुरु भी कर चुके हैं। ये सिर्फ खांसी-बुखार के सेंटर नहीं हैं, बल्कि यहां गंभीर बीमारियों के परीक्षण की सुविधाएं देने का भी प्रयास है। पहले जिन छोटे-छोटे टेस्ट को कराने के लिए शहरों तक पहुंचना पड़ता था, वो टेस्ट अब इन Health and Wellness Centre पर उपलब्ध हो रहे हैं।

साथियों,

 

इस वर्ष के बजट में स्वास्थ्य के लिए अभूतपूर्व बढ़ोतरी की गई है और स्वास्थ्य के संपूर्ण समाधानों के लिए प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वास्थ्य योजना की घोषणा की गई है। हर जिले में जांच केंद्र, 600 से ज्यादा जिलों में क्रिटिकल केयर अस्पताल जैसे अनेक प्रावधान किए गए हैं। आने वाले समय में कोरोना जैसी महामारी हमें इतना परेशान ना करे, इसके लिए देश के Health Infrastructure में सुधार के अभियान को गति दी जा रही है।

हर तीन लोकसभा केंद्रों के बीच एक मेडिकल कॉलेज बनाने पर काम चल रहा है। बीते 6 सालों में करीब 180 नए मेडिकल कॉलेज स्थापित किए गए हैं। 2014 से पहले जहां देश में लगभग 55 हज़ार MBBS सीटें थीं, वहीं 6 साल के दौरान इसमें 30 हज़ार से ज्यादा की वृद्धि की जा चुकी है। इसी तरह PG सीटें भी जो 30 हज़ार हुआ करती थीं, उनमें 24 हज़ार से ज्यादा नई सीटें जोड़ी जा चुकी हैं।

साथियों,

 

हमारे शास्त्रों में कहा गया है-

'नात्मार्थम् नापि कामार्थम्, अतभूत दयाम् प्रति'

अर्थात, औषधियों का, चिकित्सा का ये विज्ञान जीव मात्र के प्रति करुणा के लिए है। इसी भाव के साथ, आज सरकार की कोशिश ये है कि मेडिकल साइंस के लाभ से कोई भी वंचित ना रहे। इलाज सस्ता हो, इलाज सुलभ हो, इलाज सर्वजन के लिए हो, इसी सोच के साथ आज नीतियां और कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं।

 

प्रधानमंत्री जनऔषधि परियोजना का नेटवर्क तेज़ी से फैले, ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे, इसी कामना के साथ मैं आप सभी का बहुत-बहुत आभार व्‍यक्‍त करता हूं और जिन परिवारों में बीमारी है, जिन्‍होंने जनऔषिध का लाभ लिया है, उनसे मैं कहूंगा कि आप अभी अधिकतम लोगों को जनऔषिध का लाभ लेने के लिए प्रेरित करें। हर दिन लोगों को समझाइए। आप भी इस बात को फैलाकर उसकी मदद कीजिए, उसकी सेवा कीजिए। और आप स्‍वस्‍थ रहें, दवाई के साथ-साथ जीवन में कुछ अनुशासन का पालन भी बीमारी में बहुत जरूरी होता है उस पर पूरा ध्‍यान दीजिए।

मेरी आपके स्वास्थ्य लिए हमेशा ये कामना रहेगी, मैं चाहूंगा कि मेरे देश का हर नागरिक, क्‍योंकि आप मेरे परिवार के सदस्‍य हैं, आप ही मेरा परिवार हैं। आपकी बीमारी यानी मेरे परिवार की बीमारी है। और इसलिए मैं चाहता हूं मेरे देश के सभी नागरिक स्‍वस्‍थ रहें। उसके लिए स्‍वच्‍छता की जरूरत है वहां स्‍वच्‍छता रखें, भोजन में नियमों का पालन करना है- भोजन में नियमों का पालन करें। जहां योग की आवश्‍यकता है योग करें। थोड़ा-बहुत एक्‍सरसाइज करें, कोई Fit India Movement से जुड़ें। कुछ न कुछ हम शरीर के लिए करते रहें, जरूर बीमारी से बचेंगे और बीमारी आ गई तो जनऔषिध हमें बीमारी से लड़ने की ताकत देगी।

इसी एक अपेक्षा के साथ मैं फिर से एक बार आप सभी का बहुत-बहुत धन्‍यवाद करता हूं और सभी को बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद !

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!