उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्रीमान योगी आदित्यनाथ जी, केंद्रीय खेल मंत्री श्री अनुराग ठाकुर जी, मंत्री मंडल में मेरे साथी निशित प्रमाणिक जी, उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक जी, अन्य महानुभाव, और खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में हिस्सा ले रहे सभी खिलाड़ी, आप सभी को बहुत-बहुत बधाई। आज यूपी देशभर की युवा खेल प्रतिभाओं का संगम बना है। खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में जो चार हजार खिलाड़ी आए हैं, उनमें से अधिकांश अलग-अलग राज्यों से हैं, अलग-अलग क्षेत्रों से हैं। मैं उत्तर प्रदेश का सांसद हूं। उत्तर प्रदेश की जनता का जनप्रतिनिधि हूं। और इसलिए, यूपी के एक सांसद के नाते 'खेलो इण्डिया यूनिवर्सिटी गेम्स’ में यूपी आए हुए और आने वाले सभी खिलाड़ियों का मैं विशेष रूप से स्वागत करता हूं।
इन गेम्स का समापन समारोह काशी में आयोजित किया जाएगा।काशी का सांसद होने के नाते, मैं इसे लेकर भी बहुत उत्साहित हूं। आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के तीसरे संस्करण का आयोजन अपने आप में बहुत खास है। ये देश के युवाओं में टीम स्पिरिट को बढ़ाने का, एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना को बढ़ाने का बहुत ही उत्तम माध्यम बना है। इन गेम्स के दौरान युवाओं का एक दूसरे के क्षेत्रों से साक्षात्कार होगा, परिचय होगा। यूपी के अलग-अलग शहरों में होने वाले Matches में उन शहरों से भी युवाओं का एक कनेक्ट बनेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि जो युवा खिलाड़ी खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में हिस्सा लेने आए हैं, वो ऐसा अनुभव लेकर जाएंगे जो जीवनभर उनके लिए यादगार पल बना रहेगा। मैं आप सभी को आने वाली स्पर्धाओं के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।
साथियों,
पिछले 9 वर्षों में भारत में खेल का एक नया युग शुरु हुआ है। ये नया युग विश्व में भारत को सिर्फ एक बड़ी खेल शक्ति बनाने भर का ही नहीं है। बल्कि ये खेल के माध्यम से समाज के सशक्तिकरण का भी नया दौर है। एक समय था जब हमारे देश में खेलों को लेकर एक उदासीनता का ही भाव था। स्पोर्ट्स भी एक करियर हो सकता है, ये कम ही लोग सोचते थे। और इसकी वजह थी कि स्पोर्ट्स को सरकारों से जितना समर्थन और सहयोग मिलना चाहिए था, वो मिलता नहीं था। ना तो स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर पर उतना ध्यान दिया जाता था और ना ही खिलाड़ियों की ज़रूरतों का ध्यान रखा जाता था। इसलिए गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चों के लिए, गांव-देहात के बच्चों के लिए खेल में आगे बढ़ पाना बहुत मुश्किल था। समाज में भी ये भावना बढ़ती जा रही थी कि खेल तो सिर्फ खाली समय बिताने के लिए होते हैं। ज्यादातर माता-पिता को भी लगने लगा कि बच्चे को उस प्रोफेशन में जाना चाहिए जिससे उसकी लाइफ 'settle' हो जाए। कभी-कभी मैं सोचता हूं कि इस 'settle' हो जाने वाली मानसिकता की वजह से न जाने कितने महान खिलाड़ी देश ने खो दिए होंगे। लेकिन आज मुझे खुशी है कि खेलों को लेकर माता-पिता और समाज के दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव आया है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए खेल को एक attractive प्रोफेशन के तौर पर देखा जाने लगा है। और इसमें खेलो इंडिया अभियान ने बड़ी भूमिका निभाई है।
साथियों,
खेलों के प्रति पिछली सरकारों का जो रवैया रहा है, उसका एक जीता-जागता सबूत, कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान हुआ घोटाला था। जो खेल प्रतियोगिता, विश्व में भारत की धाक जमाने के काम आ सकती थी, उसी में घोटाला कर दिया गया। हमारे गांव-देहात के बच्चों को खेलने का मौका मिले, इसके लिए पहले एक योजना चला करती थी- पंचायत युवा क्रीड़ा और खेल अभियान। बाद में इसका नाम बदलकर राजीव गांधी खेल अभियान कर दिया गया। इस अभियान में भी फोकस सिर्फ नाम बदलने पर था, देश में स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर उतना जोर नहीं दिया गया।
पहले गांव हो या शहर, हर खिलाड़ी के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि उसे स्पोर्ट्स की प्रैक्टिस के लिए, घर से बहुत दूर जाना पड़ता था। इसमें खिलाड़ियों का बहुत समय निकल जाता था, कई बार दूसरे शहरों में जाकर रहना पड़ता था। बहुत से युवा तो इस वजह से अपना पैशन तक छोड़ने के लिए मजबूर हो जाते थे। हमारी सरकार, आज खिलाड़ियों की इस दशकों पुरानी चुनौती का भी समाधान कर रही है। Urban sports infrastructure के लिए जो योजना थी, उसमें भी पहले की सरकार ने 6 साल में सिर्फ 300 करोड़ रुपए खर्च किए। जबकि खेलो इंडिया अभियान के तहत हमारी सरकार स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर पर करीब-करीब 3 हजार करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। बढ़ते हुए स्पोर्ट्स इंफ्रा की वजह से अब ज्यादा खिलाड़ियों के लिए खेल से जुड़ना आसान हो गया है। मुझे संतोष है कि अब तक खेलो इंडिया गेम्स में 30 हजार से अधिक एथलीट्स हिस्सा ले चुके हैं। इसमें भी डेढ़ हजार खेलो इंडिया एथलीट्स की पहचान करके उन्हें आर्थिक मदद दी जा रही है। इन्हें आधुनिक sports academies में top class training भी दी जा रही है। 9 वर्ष पहले की तुलना में इस वर्ष का केंद्रीय खेल बजट भी 3 गुणा बढ़ाया गया है।
आज गांवों के पास भी आधुनिक स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित हो रहा है। देश के दूर-सुदूर में भी अब बेहतर मैदान, आधुनिक स्टेडियम, आधुनिक ट्रेनिंग फैसिलिटी बनाई जा रही हैं। यूपी में भी स्पोर्ट्स प्रोजेक्ट्स पर हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लखनऊ में जो पहले से सुविधाएं थीं, उनका विस्तार किया गया है। आज वाराणसी में सिगरा स्टेडियम आधुनिक अवतार में सामने आ रहा है। यहां पर लगभग 400 करोड़ रुपए खर्च करके युवाओं के लिए आधुनिक सुविधाओं का निर्माण किया जा रहा है। खेलो इंडिया प्रोग्राम के तहत ही लालपुर में सिंथेटिक हॉकी मैदान, गोरखपुर के वीर बहादुर सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज में मल्टीपरपज हॉल, मेरठ में सिंथेटिक हॉकी मैदान और सहारनपुर में सिंथेटिक रनिंग ट्रैक के लिए मदद दी गई है। आने वाले समय में खेलो इंडिया प्रोग्राम के तहत ऐसी ही सुविधाओं का और विस्तार किया जाएगा।
साथियों,
हमने इस बात पर भी फोकस किया है कि खिलाड़ियों को ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का अवसर मिले। जितना ज्यादा खिलाड़ी स्पोर्ट्स कंपटीशम्स में हिस्सा लेते हैं, उतना ही उनका लाभ होता है, उनका टैलेंट निखरता है। उन्हें ये भी पता चलता है कि हम कितने पानी में हैं, हमें अपना खेल और कहां सुधारना है। हमारी कमियां क्या हैं, गलतियां क्या है, चुनौतियां क्या हैं, कुछ साल पहले खेलो इंडिया स्कूल गेम्स की शुरुआत के पीछे एक बड़ी वजह ये भी थी। आज इसका विस्तार खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स और खेलो इंडिया विंटर गेम्स तक हो चुका है। देश के हज़ारों खिलाड़ी इस प्रोग्राम के तहत स्पर्धा कर रहे हैं और अपनी प्रतिभा के बल पर आगे बढ़ रहे हैं। और मुझे तो खुशी है भारतीय जनता पार्टी के अनेक सांसद, सांसद खेल प्रतियोगिता चलाते हैं। उसमें हजारों की तादाद में एक-एक संसदीय क्षेत्र में नौजवान, बेटे-बेटियां, खेल-कूद में हिस्सा लेती हैं। आज देश को इसके सुखद परिणाम भी मिल रहे हैं। बीते वर्षों में कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हमारे खिलाड़ियों ने श्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। ये दिखाता है कि भारत के युवा हमारे खिलाड़ियों का आत्मविश्वास आज कितना बुलंद है।
साथियों,
खेल से जुड़ी स्किल हो, या फिर खिलाड़ियों को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए दूसरी विधाएं हों, सरकार कदम कदम पर खिलाड़ियों के साथ खड़ी है। हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्पोर्ट्स को एक विषय के रूप में पढ़ाया जाना प्रस्तावित है। स्पोर्ट्स अब पाठयक्रम का हिस्सा होने जा रहा है। देश की पहली राष्ट्रीय खेल यूनिवर्सिटी के निर्माण से इसमें और मदद मिलेगी। अब राज्यों में भी स्पोर्ट्स स्पेशलाइज्ड हायर एजुकेशन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें उत्तर प्रदेश बहुत प्रशंसनीय काम कर रहा है। मेरठ में मेजर ध्यान चंद खेल विश्वविद्यालय का उदाहरण हमारे सामने है। इसके अलावा आज देशभर में 1000 खेलो इंडिया सेंटर्स की भी स्थापना की जा रही है। करीब 2 दर्जन नेशनल सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस भी खोले गए हैं। इन सेंटर्स पर प्रदर्शन को सुधारने के लिए ट्रेनिंग और स्पोर्ट्स साइंस सपोर्ट दिया जा रहा है। खेलो इंडिया ने भारत के पारंपरिक खेलों की प्रतिष्ठा को भी पुनर्स्थापित किया है। गटका, मल्लखंब, थांग-टा, कलरीपयट्टू और योगासन जैसी विभिन्न विधाओं को प्रोत्साहित करने के लिए भी हमारी सरकार स्कॉलरशिप्स दे रही है।
साथियों,
खेलो इंडिया प्रोग्राम से एक और उत्साहजनक परिणाम हमारी बेटियों की भागीदारी को लेकर आया है। देश के अनेक शहरों में खेलो इंडिया वीमेन्स लीग का आयोजन चल रहा है। मुझे बताया गया है कि इसमें अभी तक अलग-अलग आयुवर्ग की लगभग 23 हज़ार महिला एथलीट्स हिस्सा ले चुकी हैं। खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में भी बड़ी संख्या में महिला एथलीट्स की भागीदारी है। मैं इन खेलो में हिस्सा ले रही बेटियों को विशेष तौर पर अपनी शुभकामनाएं देता हूं।
साथियों,
आप सभी युवा साथियों ने एक ऐसे समय में खेल के मैदान में कदम रखा है, जो निश्चित रूप से भारत का कालखंड है। आपकी प्रतिभा, आपकी प्रगति में भारत की प्रगति निहित है। आप ही भविष्य के चैंपियन हैं। तिरेंगे की शान को बढ़ाने की जिम्मेदारी आप सभी पर है। इसलिए कुछ बातें हमें ज़रूर याद रखनी चाहिए। हम अक्सर खेल भावना-टीम स्पिरिट की बात करते हैं। ये खेल भावना आखिर है क्या? क्या ये सिर्फ हार-जीत को स्वीकार करने तक सीमित है? क्या ये सिर्फ टीम वर्क तक ही सीमित है? खेल भावना के मायने इससे भी विस्तृत हैं, व्यापक हैं। खेल, निहित स्वार्थ से ऊपर उठकर, सामूहिक सफलता की प्रेरणा देता है। खेल हमें मर्यादा का पालन करना सिखाता है, नियमों से चलना सिखाता है। मैदान में बहुत बार परिस्थितियां आपके विरुद्ध हो सकती हैं। संभव है कि कई बार निर्णय भी आपके विरुद्ध हों। लेकिन खिलाड़ी अपना धैर्य नहीं छोड़ता, नियमों के प्रति हमेशा प्रतिबद्ध रहता है। नियम-कानून की मर्यादा में रहते हुए कैसे धैर्य के साथ अपने प्रतिद्वंदी से पार पाया जाए, यही एक खिलाड़ी की पहचान होती है। एक विजेता, तभी महान खिलाड़ी बनता है, जब वो हमेशा खेल भावना का, मर्यादा का पालन करता है। एक विजेता, तभी महान खिलाड़ी बनता है, जब उसके हर आचरण से समाज प्रेरणा लेता है। इसलिए, आप सभी युवा साथियों को अपने खेल में इन बातों का ध्यान ज़रूर रखना चाहिए। मुझे विश्वास है, आप इन यूनिवर्सिटी गेम्स में खेलेंगे भी औऱ खिलेंगे भी। एक बार फिर आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं ! खूब खेलिए, खूब आगे बढ़िए ! धन्यवाद !