केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्री पीयूष गोयल जी, हरदीप सिंह पुरी जी, श्री सोमप्रकाश जी, अनुप्रिया पटेल जी, अन्य जनप्रतिनिधि, अतिथिगण, देवियों और सज्जनों,
मैं दिल्ली के लोगों को, नोएडा-गाजियाबाद के लोगों को, एनसीआर के लोगों को और देशभर से दिल्ली जिनको आने का अवसर मिलता है, उन सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूं। आज दिल्ली को केंद्र सरकार की तरफ से आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर का एक बहुत ही सुंदर उपहार मिला है।
अभी जब मैं टनल से गुजर रहा था तो मन में बहुत सारी बातें आ रही थीं। इतने कम समय में इस इंटीग्रेटेड ट्रांजिट कॉरिडोर को तैयार करना जरा भी आसान नहीं था। जिन सड़कों के इर्द-गिर्द ये कॉरिडोर बना है वो दिल्ली की सबसे व्यस्ततम सड़कों में से एक है। हर रोज लाखों गाड़ियां गुजरती हैं। और ये जो टनल बनी है, उसके ऊपर तो सात रेलवे लाइंस होकर गुजर रही हैं। इन सारी मुश्किलों के बीच कोरोना आ धमका, उसने नई परिस्थितियां पैदा की। और हमारे देश में ऐसा कुछ भी काम करो जो judiciary के दरवाजे खटखटाने वाले लोगों की भी कमी नहीं है। हर चीज में टांग अड़ाने वाले होते ही हैं।
अनेक मुसीबतें पैदा होती हैं देश को आगे ले जाने में। इस प्रोजेक्ट को भी वैसी ही कठिनाइयों से गुजरना पड़ा। लेकिन ये नया भारत है। समस्याओं का समाधान भी करता है, नए संकल्प भी लेता है और उन संकल्पों को सिद्ध करने के लिए अहर्निष प्रयास करता है। जो हमारे इंजिनियर्स, हमारे श्रमिक, मैं इन सबको भी बहुत बधाई देता हूं। उन्होंने जिस जीवटता के साथ, परिश्रम के साथ और बहुत ही coordinated efforts के रूप में और एक project management के उत्तम उदाहरण को प्रस्तुत करते हुए इस प्रोजेक्ट को पूरा किया है। जिन मेरे श्रमिक भाई-बहनों ने अपना पसीना बहाया है वे सब, उन सबको में हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं, उन सबका अभिनंदन करता हूं।
साथियों,
ये इंटीग्रेटेड ट्रांज़िट कॉरिडोर, प्रगति मैदान प्रदर्शनी स्थल को 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुसार ट्रांसफॉर्म करने के अभियान का हिस्सा है। दशकों पहले भारत की प्रगति को भारतीयों के सामर्थ्य, भारत के प्रॉडक्ट्स, हमारी संस्कृति को शोकेस करने के लिए प्रगति मैदान का निर्माण हुआ था। लेकिन उसके बाद भारत बहुत बदल गया है, भारत का सामर्थ्य बदल गया, हमारी ज़रूरतें भी कई गुणा बढ़ गईं, लेकिन ये दुर्भाग्य है कि प्रगति मैदान की ज्यादा प्रगति नहीं हुई, वरना इस प्रगति मैदान की सबसे पहले प्रगति होनी चाहिए थी, वो ही छूट गया है। डेढ़ दशक पहले यहां सुविधाओं के विस्तार का प्लान बना तो था कागज़ पर, अब ये फैशन तो होता ही है, घोषणा करो, कागज पर दिखा दो, दिया जला दो, फीता काट दो, अखबारों में हेडलाइन ले लो और आप अपने काम पर मैं मेरे काम पर, यही चलता रहा।
देश की राजधानी में विश्व स्तरीय कार्यक्रमों के लिए state of the art सुविधाएं हों, एक्जीबिशन हॉल हों, अब इसको ध्यान में रखते हुए आज देश के कई हिस्सों में इन बातों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार निरंतर काम कर रही है। हमारी इस दिल्ली में भी द्वारका में बन रहा International Convention & expo center और प्रगति मैदान में रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट, से अपने-आप में एक उदाहरण बनने वाले हैं।
पिछले वर्ष मुझे यहां 4 प्रदर्शनी हॉल के उद्घाटन करने का अवसर मिला था और आज कनेक्टिविटी की इस आधुनिक सुविधा का लोकार्पण हुआ है। केंद्र सरकार द्वारा कराए जा रहे ये आधुनिक निर्माण, देश की राजधानी की तस्वीर बदल रहे हैं, उसे और आधुनिक बना रहे हैं। और ये तस्वीर बदलने के लिए नहीं सिर्फ है, ये तस्वीर इसलिए बदली जा रही है कि वो तकदीर बदलने का भी एक माध्यम हो सकती है।
साथियों,
दिल्ली में केंद्र सरकार का जितना जोर आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर है, मॉर्डनाइजेशन पर है, इसका सीधा-सीधा परिणाम और इसके पीछे का स्पष्ट उद्देश्य Ease of Living पर है। सामान्य मानवी की असुविधा कम हो, उसके जीवन में सुविधाएं बढ़ें, सहजता, सरलता, स्वाभाविकता…ये व्यवस्थाओं के माध्यम से उसे उपलब्ध हों और साथ-साथ अब जब भी हम विकास करें तो वो environment conscious planning होना चाहिए। Environment के प्रति sensitive होना चाहिए। Climate की चिंता करने वाला होना चाहिए; इन सब बातों को साथ रख करके आगे बढ़ रहे हैं।
पिछले साल मुझे डिफेंस कॉम्प्लेक्स के लोकार्पण का भी अवसर मिला था। हमारे देश का दुर्भाग्य है कि बहुत सी अच्छी चीजें, अच्छे उद्देश्य के लिए की गई चीजें वह ऐसी राजनीति के रंग में फंस जाती हैं और मीडिया की भी मजबूरी हो जाती है कि टीआरपी के कारण उसको भी उसी में घसीटे जाना पड़ता है। मैं ये उदाहरण आपको देता हूं इसलिए आपको समझ आएगा कि क्या हुआ। जो दिल्ली से परिचित हैं वो भली भांति जानते हैं कि डिफेंस से जुड़े सारे अहम काम, दूसरे विश्व युद्ध के बाद, यानी कितने साल हुए आप अंदाज कर सकते हैं। हमारे यहां राष्ट्रपति भवन के उस इलाके में कुछ Hutments बने हुए थे। छोटी-छोटी झोंपड़ी जैसा लगता था, आपने देखा होगा। सारे काम उसी में चलते थे, वो जर्जरित चुके थे और बहुत विशाल जमीन पर वो फैले हुए थे। उसके बाद सरकारें तो बहुत बनीं। क्या हुआ आपको मालूम है, मैं कहना नहीं चाहता हूं।
हमारी सरकार ने केजी मार्ग और अफ्रीका एवेन्यू में इको-फ्रेंडली इमारतें बनाईं और ये जो झुग्गी-झोंपड़ी जैसी अवस्था में डिफेंस का काम 80 साल तक चला, अब वहां से उनको उठा करके एक अच्छे environment में फौज के लिए व्यवस्था खड़ी की हमने। ये दशकों पुराने ऑफिस शिफ्ट करने की वजह से एक तो उनको ऐसा environment मिला है, फौज के लोगों को काम करने की जो सुविधा मिली है, आधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग करने के लिए जिस प्रकार के इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है, उन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए उसको बनाया है और पूरा कंस्ट्रक्शन इकोफ्रेंडली किया गया है।
और इधर क्या परिणाम हुआ, ये सारी ऑफिस में और वहां उनका अगर working environment अगर अच्छा होता है तो outcome भी बहुत रहता है। लेकिन ये ऑफिसेज शिफ्ट करने की वजह से कई एकड़ भूमि, इतनी बड़ी मूल्यवान भूमि, ये फ्री हो गई और जिसमें लोगों के लिए सहूलियत के काम भी चल रहे हैं। मुझे खुशी है कि सेंट्रल विस्टा और देश की नई पार्लियामेंट बिल्डिंग का भी काम भी अब तेज गति से चल रहा है। आने वाले दिनों में भारत की राजधानी की चर्चा होगी, हर हिंदुस्तानी इस बात को गर्व के साथ कहेगा ये मेरा पक्का विश्वास है।
साथियों,
ये जो इंटीग्रेटेड ट्रांजिट कॉरिडोर हमारी सरकार ने बनवाया है, उसमें भी आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर, और इन्वायरन्मेंट का यही विजन है, यही तालमेल है। प्रगति मैदान के आसपास का ये पूरा क्षेत्र दिल्ली के सबसे व्यस्त क्षेत्रों में से एक है। सालों साल यहां लोगों को ट्रैफिक की गंभीर समस्या से जूझना पड़ा है। ITO चौराहे पर कितनी अधिक दिक्कत आती रही है, ये हम सभी बहुत अच्छे तरह जानते हैं।
और मेरे जब कार्यक्रम बनते हैं, में 50 बार सोचता हूं, मेरे एसपीजी वगैरह को कहता हूं कि या तो सुबह 5 बजे मुझे निकाल दो लोगों को परेशानी न हो या रात को देर से निकालो वहां से, दिन में मेहरबानी करके उस रास्ते से मत ले जाएं, लोग परेशान होते हैं। मैं जितना बच सकूं बचने की कोशिश खुद करता रहता हूं। लेकिन कभी-कभी मजबूरियां हो जाती हैं।
आज ये रचना के कारण ये जो डेढ़ किलोमीटर से अधिक लंबी सुरंग बनी है, ये जो टनल बनी है, इससे पूर्वी दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद की तरफ से रोज़ाना आने-जाने वाले हज़ारों साथियों को बहुत बड़ी राहत मिलेगी। इस इंटीग्रेटेड ट्रांजिट कॉरिडोर से दिल्ली के लोगों का समय बचेगा, गाड़ियों का ईंधन बचेगा। अभी मुझे प्रेजेंटेशन दे रहे थे उसमें बताया था, 55 लाख लीटर पेट्रोल की बचत होने वाली है, यानी ये नागरिकों की जेब में पैसे बचने वाले हैं।
अगर मैं किसी को 100 रुपये देने की घोषणा करूं तो मेरे देश में हेडलाइन बन जाती है। लेकिन मैं अगर ऐसी व्यवस्था करूं जिसके कारण उसके दो सौ रुपये बचते हैं, वो खबर नहीं बनती है। उसका महात्मय ही नहीं है क्योंकि उसमें पॉलिटिकल माइलेज नहीं है। लेकिन देश का भला करना है तो हमने स्थाई व्यवस्थाओं को विकसित करते हुए जन सामान्य की सुविधा और उसका बोझ कम करने की दिशा में हम काम कर रहे हैं।
अब ट्रैफिक जाम बचेगा, दिल्ली का पर्यावरण बचेगा। हम आराम से कह देते हैं Time is Money, बड़ी सरलता से कहते हैं। अब ये टनल बनने के कारण टाइम बचेगा तो कितना Money बचेगा ये भी तो सोचना चाहिए। ये कहावत के लिए Time is Money ठीक है, लेकिन यहां भारत सरकार की सुविधा से टाइम बच गया तो Money बच गया, वो बताने के लिए कोई तैयार नहीं है। यानी हमने सोचने के तरीके को भी, हमारी पुरानी आदतें, पुराने वर्सेज में चीजें डाल-डाल कर देखने के बजाय बाहर आने की जरूरत है।
एक अनुमान है कि जितना इस कॉरिडोर की वजह से प्रदूषण कम होगा, वैसा करने के लिए जैसा हमारे पीयूष भाई ने बताया, 5 लाख पेड़ से जो मदद मिलती है वो मदद इस टनल के कारण मिल जाने वाली है। इसका मतलब यह नहीं कि पेड़ लगाने ही नहीं हैं। और मुझे खुशी हुई कि इस प्रोजेक्ट के साथ पेड़ लगाने का कार्यक्रम भी हुआ यमुना के तट पर और वो भी काम पूरा किया यानी डबल benefit ले लिया है। यानि हमारी सरकार द्वारा नए पेड़ लगाने के साथ ही, जिन वजहों से प्रदूषण बढ़ता है, उसमें से कितनी कमी कर सकते हैं, टेक्नोलॉजी का उपयोग करके कैसे कर सकते हैं, उस दिशा में काम कर रहे हैं।
अभी हाल ही में भारत ने पेट्रोल में 10 परसेंट इथेनॉल की ब्लेंडिंग के लक्ष्य को प्राप्त किया है। ये बहुत बड़ा achievement है जी। भारत की requirement का 10 प्रतिशत इथेनॉल गन्ने से बना हुआ, वेस्टेज में से बना हुआ इथेनॉल आज हमारी गाड़ियां दौड़ा रहा है, हमारी गति को ताकत दे रहा है। और ये भी काम हमने हमारा जो targeted timing था उससे भी पहले कर दिया, कई महीने पहले पूरा कर दिया। पेट्रोल में इथेनॉल ब्लेंडिंग का ये अभियान हमारे प्रदूषण कम करता है, हमारे किसान की आय को भी बढ़ाने में भी मदद करता है क्योंकि उसका जो वेस्ट है वो यहां से बेस्ट उपयोग में आ रहा है।
साथियों,
दिल्ली-एनसीआर की समस्याओं के समाधान के लिए बीते 8 सालों में हमने अभूतपूर्व कदम उठाए हैं। बीते 8 सालों में दिल्ली-एनसीआर में मेट्रो सेवा का दायरा 193 किलोमीटर से करीब 400 किलोमीटर तक पहुंच चुका है, डबल से भी ज्यादा। अगर कुछ नागरिक व्रत ले लें कि मैं कम से कम 10 पर्सेंट मेरा जो ट्रैवलिंग के लिए व्हीकल का उपयोग करता हूं, मैं 10 पर्सेंट मेट्रो का उपयोग करूंगा। हो सकता है मेट्रो में थोड़ी भीड़ बढ़ेगी लेकिन इतना छोटा सा कर्तव्य भी हमारी दिल्ली की जिंदगी को कितनी मदद कर सकता है और एक नागरिक के साथ ये कर्तव्य भाव का आनंद कितना मिल सकता है, वो भी एक अनुभव का विषय है।
और कभी-कभार सामान्य जनों के बीच में जा करके ट्रैवल का भी एक अलग आनंद होता है। उनकी जिंदगी को जानने-समझने का उन पांच-दस मिनट में भी थोड़ा-सा अवसर मिल जाता है। यानी multiple benefit हैं। और मेट्रो में अगर पैसेंजर्स की संख्या जरा ज्यादा रही तो economically भी viable बनेगा।बनेगा। हम सब मिल करके ये चीजें चलाएंगे तो कितना बड़ा फायदा होगा। लेकिन दिल्ली-एनसीआर में मेट्रो के बढ़ते नेटवर्क की वजह से हजारों गाड़ियां अब सड़कों पर कम चल रही हैं, वो ज्यादा हो सकती हैं और इससे भी प्रदूषण कम करने में बहुत मदद मिली है।
Eastern और western peripheral expressway से भी दिल्ली को बहुत राहत मिली है। हजारों ट्रक सीधे-सीधे बाहर से निकल जाते हैं। दिल्ली की इंटरस्टेट कनेक्टिविटी पर अभूतपूर्व स्केल, अभूतपूर्व स्पीड आज पहचान बन चुका है काम का। अब देखिए दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे ने दिल्ली-मेरठ के बीच की दूरी को सिर्फ एक घंटे भर में पहुंचा दिया है। पहले लोग जो हरिद्वार, ऋषिकेश जाने की आदत रखते थे और देहरादून जाने की आदत रखते थे, आठ-आठ, नौ-नौ घंटे लगते थे। आज चार घंटे, साढ़े चार घंटे में अब वहां पहुंच जाते हैं दिल्ली से निकल कर।
अब समय की ताकत क्या होती है, मैं अभी काशी रेलवे स्टेशन पर गया था। वहां का सांसद हूं तो जरा और वहां भी लोगों को तकलीफ न हो तो रात में एक-डेढ़ बजे चला जाता हूं। तो मैं काशी रेलवे स्टेशन पर गया, मैंने कहा मैं देखूं क्या-क्या व्यवस्था है नागरिकों के लिए। तो सब देख रहा था फिर मैं वहां के जो रेलवे का काम देखते थे उन लोगों से मैंने पूछा कि ट्रैफिक के संबंध में, ट्रेनों के संबंध में। तो उन्होंने मुझे बताया कि साहब यहां वंदे भारत ट्रेन, उसकी डिमांड बहुत है। मैंने कहा भई वो तो थोड़ा महंगी भी है और...नहीं बड़े साहब, आज गरीब व्यक्ति सबसे ज्यादा वंदे भारत में जाना चाहता है, मजदूर वर्ग के लोग वंदे भारत में जाना चाहते हैं। मैंने कहा क्यों भई...थोड़ा टिकट का पैसा तो ज्यादा लगता है उसमें। बोले साहब हमें भी ये आर्श्चय हुआ। हमने पूछा कि वंदे भारत में इतना रिजर्वेशन कैसे होता है, इतनी भीड़ कैसे होती है। तो उन्होंने पैसेंजर्स से पूछा...उन्होंने कहा देखिए भाई आपकी वंदे भारत ट्रेन में हमें सामान रखने की जगह बहुत मिलती है। और गरीब आदमी है अपने घर से सारा ही उठा करके ले आता है तो फिर उसको जगह मिल जाती है। और दूसरा उसने कहा कि हमारे तीन-चार घंटे हम जल्दी पहुंचते हैं तो उतने घंटे में कोई काम तुरंत करने को मिल जाता है तो कमाई शुरू हो जाती है हमारी।
अब देखिए सामान्य मानवी के सोचने का तरीका कितना बदला है और हम पुरानी सोच से कहते रहेंगे देखो वंदे भारत ट्रेन ले आए। महंगी ट्रेन ले आए। लोगों की सोच के साथ जो disconnected हैं इनको पता ही नहीं चल रहा है बदलाव कैसे आ रहा है। और मेरे लिए प्रसन्नता का विषय था कि एक बदलाव हिन्दुस्तान का सामान्य मानवी ऐसे तो कैसे adopt कर रहा है।
अब आप देखिए दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे, दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे, दिल्ली-अमृतसर एक्सप्रेसवे, दिल्ली-चंडीगढ़ एक्सप्रेसवे, दिल्ली-जयपुर एक्सप्रेसवे, कितने प्रोजेक्ट्स भारत की राजधानी को दुनिया की सबसे बेहतर कनेक्टेड राजधानियों में से एक बनाने का सामर्थ्य रखते हैं और जब ये काम पूरा होगा तब बनेगा।
देश का पहला और स्वदेशी तकनीक से बना रैपिड रेल सिस्टम भी दिल्ली से मेरठ के बीच तेजी से बन रहा है। हरियाणा और राजस्थान को दिल्ली से जोड़ने के लिए भी ऐसे ही रैपिड रेल सिस्टम्स पर काम चल रहा है। ये प्रोजेक्ट जब तैयार हो जाएंगे तो देश की राजधानी के तौर पर दिल्ली की पहचान को और मजबूत करेंगे।
इनका लाभ दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले प्रोफेशनल्स को होगा, हमारे युवा वर्ग, हमारे विद्यार्थी, स्कूल जाने वाले बच्चे, ऑफिस जाने वाले लोग, टैक्सी चलाने वाले हमारे साथी, ऑटो चलाने वाले हमारे साथी, हमारे व्यापारी बंधु, हमारे छोटे दुकानदार, इन सभी को यानी समाज के हर तबके को इसका बहुत फायदा मिलेगा।
साथियों,
आज देश पीएम गतिशक्ति नेशनल मास्टर प्लान के विजन पर चलने पर, उसके कारण आधुनिक मल्टीमोडल कनेक्टिविटी का बहुत तेजी से निर्णय प्रक्रिया बढ़ रही है। मैं अभी धर्मशाला में था, देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों से मेरा मिलना हुआ। अब मेरे लिए इतना सुखद आश्चर्य था जब राज्यों के मुख्य सचिवों ने गतिशक्ति का महात्मय जिस प्रकार उन्होंने समझा है, जिस प्रकार से उन्होंने उपयोग किया है और बड़े से बड़े प्रोजेक्ट का प्लानिंग, वो बता रहे थे कि साहब जिस काम में हमें 6-6 महीने लगते थे, इस गतिशक्ति की टेक्नीकल व्यवस्था के कारण, कॉर्डिनेशन के कारण project for enter approach के कारण 6 महीने का काम 6 दिन में होने लगा है। गतिशक्ति मास्टरप्लान सबको साथ लेकर, सबको विश्वास में लेकर, और सबके प्रयास का ही एक बहुत बड़ा उत्तम माध्यम बन चुका है।
कोई प्रोजेक्ट लटके नहीं, सारे डिपार्टमेंट तालमेल से काम करें, हर विभाग को एक-दूसरे की पूरी जानकारी हो, अल्टीमेट क्या होने वाला है इसका सबको पता हो, इस सोच को ले करके गतिशक्ति का निर्माण हुआ है। सबका प्रयास की ये भावना Urban development के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।
आज़ादी के अमृतकाल में देश के मेट्रो शहरों के दायरे का विस्तार करना, टीयर-2, टीयर-3 शहरों में बेहतर प्लानिंग के साथ काम करना आवश्यक हो गया है। आने वाले 25 साल में भारत के तेज़ विकास के लिए हमें शहरों को green, clean और friendly बनाना पड़ेगा। काम की जगह और निवास जितना नजदीक हो सके, mass transit networks के आसपास हो सके, ये हमारी प्राणी की प्राथमिकता आवश्य है। पहली बार Urban planning को कोई सरकार इतने बड़े स्तर पर महत्व दे रही है। और हम मानकर चलें Urbanization को कोई रोक नहीं पाएगा। अब Urbanization को मुसीबत मानने के बजाय Urbanization को अवसर मानकर हम प्लानिंग करेंगे तो देश की ताकत को अनेक गुना बढ़ाने का सामर्थ्य उसमें पड़ा हआ है। और हमारा फोकस यही है कि हम Urbanization को अवसर मानें, अर्बन्स में प्लानिंग शुरू करें।
साथियो,
शहरी गरीबों से लेकर शहरी मिडिल क्लास तक, हर किसी के लिए बेहतर सुविधाएं देने पर आज तेज गति से काम हो रहा है। बीते 8 साल में 1 करोड़ 70 लाख से ज्यादा शहरी गरीबों को पक्के घर देना सुनिश्चित हुआ है। मध्यम वर्ग के लाखों परिवारों को भी उनके घर के लिए मदद दी गई है। शहरों में अगर आधुनिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर फोकस किया जा रहा है तो CNG आधारित मोबिलिटी, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी उतना ही अधिक फोकस कर रहे हैं। केंद्र सरकार की FAME योजना इसका उत्तम उदाहरण है। इस योजना के तहत दिल्ली सहित देश के दर्जनों शहरों में नई इलेक्ट्रिक बसों का फ्लीट तैयार किया जा रहा है। कुछ दिन पहले ही दिल्ली में भी इस योजना के तहत कुछ नई बसें चलनी शुरू हुई हैं। ये गरीब और मिडिल क्लास दोनों को सुविधा भी देने वाली हैं और प्रदूषण की समस्या को भी कम करेंगी।
देशवासियों के जीवन को आसान बनाने का ये संकल्प ऐसे ही मज़बूत होता रहे, और मैं अभी टनल को देखने के लिए मेरे लिए खुली जीप की व्यवस्था की गई थी। तो मैं भी नियम, कानून, discipline के कारण थोड़ी देर तो जीप में चला, लेकिन बाद में उतर गया। अब यहां आने में जो 10-15 मिनट की देर हुई उसका कारण भी यही है कि मैं पैदल चलने लगा। पैदल इसलिए मैं चला, साइड में जो आर्ट वर्क हुआ है उसको चाव से देखने का मेरा मन कर गया। एक-एक चीज मैं देखता चला गया। मैं कह सकता हूं पीयूष जी ने तो वर्णन किया ये ऋतुओं का उसमें है। ये ठीक है जब हम चर्चा कर रहे थे तब बातें बताई थीं। लेकिन चर्चा के समय हमने जितनी बातें बताई थीं, मुझे यहां उसमें भी value addition लगा, नयापन लगा, अच्छा लगा।
एक मैं जो अंदर टनल्स देख करके आया तो मैं कह सकता हूं कि एक भारत, श्रेष्ठ भारत का उत्तम एजुकेशन सेंटर है। मैं नहीं जानता हूं दुनिया में कहां क्या होगा, लेकिन ये देखने के बाद मैं कह सकता हूं, शायद, टनल के अंदर कहीं पर भी इतनी लंबी आर्ट गैलरी नहीं होगी जितनी लंबी आर्ट गैलरी बन गई है ये।
भारत को सरसरी नजर से अगर समझना है, उसकी विविधताओं को, उसके उमंग, उत्साह के पलों को पाना हो तो ये टनल की यात्रा करके कोई आएगा, वो विदेशी होगा तो भी वो महसूस करेगा- अच्छा नागालैंड ऐसा है, केरल ऐसा है, जम्मू-कश्मीर ऐसा है, यानी इतनी विविधताओं से भरा वो आर्ट वर्क है और वो भी हाथों से तैयार किया हुआ काम है।
ये सब देखने के बाद मैंने जो भाषण दिया अब तक, उससे मैं थोड़ा विपरीत सुझाव देना चाहता हूं। मैं नहीं जानता हूं एक्सपर्ट लोग मेरे सुझाव को कैसे लेंगे। मेरा सुझाव है, वैसे भी संडे को थोड़ा ट्रैफिक कम होता है, क्या संडे चार-छह घंटे जो टनल जिस काम के लिए बनी है, उसके बजाय उलटा काम करने के लिए मैं सुझाव दे रहा हूं। संडे को चार-छह घंटे किसी भी व्हीकल को वहां एंट्री न दी जाए और हो सके तो स्कूल के बच्चों को पैदल ये आर्ट गैलरी दिखाई जाए, बहुत बड़ी सेवा होगी।
और मैं तो कहूंगा विदेश मंत्रालय को, कि सबसे पहले यहां जो ambassadors हैं, उनके मिशन हैं सारे, सारे मिशन के लोगों को ले जाइए और इस टनल में पदयात्रा कराइए। वहां जाते ही पता चलेगा अब ये गांधीजी आए, पता चलेगा हां ये भगवान कृष्ण से जुड़ी हुई कोई चीज है। यहां देखकर पता चलेगा ये असम के नृत्य दिख रहे हैं।
इसके साथ-साथ अच्छी technologically के लिए photo pilot और ये फोन के द्वारा गाईड की व्यवस्था भी हो सकती है। और कभी-कभार तो भले ही कम क्यों न हो, दस पैसे क्यों न हों, लेकिन टिकट दे करके लोगों को भेजेंगे तो उसमें फालतू लोगों का आना बंद हो जाएगा और सही तरीके से उपयोग होगा। उसका काउंटिंग भी होगा।
मैं सच बताता हूं दोस्तों, शायद मुझे ये सौभाग्य नहीं मिलता क्योंकि एक बार शुरू हो जाए तो कोई मुझे उतरने भी नहीं देता लेकिन आज वो खाली था तो मैं पैदल टहल करके आ गया। वाकई-वाकई जिनको आर्ट में रुचि है, आर्ट के माध्यम से चीजों को समझने की रुचि है उनके लिए उत्तम अवसर दिल्ली के सीने पर तैयार हुआ है जी।
कुछ प्लान किया जाए, इसका विशेष और मैं जब गुजरात में था तो मैंने कुछ दिन एक प्रयोग किया था लंबा, तो हमारा नहीं चला। अहमदाबाद में एक बहुत ही ट्रैफिक वाला रास्ता था तो मैंने ये तय किया था कि महीने में फलाना दिवस, आज तो मैं भूल गया, उस रोड पर कोई व्हीकल allow नहीं करेंगे, वो रोड बच्चों के लिए होगा, every child matters. वो बच्चे उसमें क्रिकेट खेलें तो कम से कम लगना चाहिए मेरी भी तो इस शहर में कोई औकात है, उसको लगना चाहिए। कुछ दिन उसका बहुत ही आकर्षण हुआ था। जो रोड भरा-भरा रहता था वहां बच्चों को खेलने के लिए मौका मिले उनके लिए, तब उनका मन भर जाता है।
मैं मानता हूं सप्ताह में एक दिन जब ट्रैफिक कम होता है, हो सकता है संडे मिल जाए, चार छह घंटे इसको purely पैदल चलने के लिए बड़े अभियान के रूप में चलाया जाए और वीआईपी लोग पैदल चलें। मैं तो कहूंगा जब पार्लियामेंट शुरू होगी मैं उसमें सब एमपीज को कहूंगा कि परिवार के साथ अगर ये योजना बनती है तो जरा पैदल टहल करके आ जाइए। और इसकी शुरूआत करनी है तो जो art critics राइटर्स होते हैं मीडिया के, art critics जो राइटर्स होते हैं उनके लिए भी एक दिन स्पेशल कार्यक्रम करके ले जाइए। मैं पक्का मानता हूं वो कुछ तो अच्छा लिखेंगे ही लिखेंगे। इस बात को सही ढंग से पहुंचाने के लिए अच्छा काम हुआ है जी। इसका हम उपयोग करें।
साथियो,
दिल्ली के आसपास ये जो connectivity बन रही है, वो सिर्फ जाने-आने की सुविधा हम न सोचें। ये जो दिल्ली-नोएडा-गाजियाबाद, इन सबके लोगों को साथियो सुविधा मिली है। लेकिन इसका एक बहुत बड़ा लाभ होता है urban burden कम करता है। अगर उसको आने-जाने की सुविधा मिल जाए तो वो सोचता है अब दिल्ली में इतना महंगा जीवन जीने के बजाय मैं गाजियाबाद में रहूंगा, मैं मेरठ में रहूंगा, जरूरत पड़ी चला जाऊंगा। पहले की तुलना में तो आधे घंटे में पहुंच जाता हूं यानी दिल्ली का burden कम करने का सबसे बड़ा काम ये जो connectivity दी जा रही है और जिसके पीछे भारत सरकार इतना धन खर्च कर रही है, वो दिल्ली के बोझ को कम करने का बहुत बड़ा काम कर रही है।
साथियो,
मैं आज लोग यहां आयें हैं, अगर आपको समय हो थोड़ा, अभी ट्रैफिक चालू न कर दिया हो तो मेरा आपसे तो आग्रह है कि जरूर आप थोड़ा पैदल जा करके आइए और मेरी बात में दम है तो लोगों को प्रेरित कीजिए और डिपार्टमेंट को भी मैं कहूंगा, सरकार के सभी अधिकारियों को, जरा इस पर सोचें।
बहुत-बहुत धन्यवाद, आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।