"आज अयोध्या भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के स्वर्णिम अध्याय का प्रतिबिंब है"
"ज्योतियों की ये जगमग और प्रकाश का ये प्रभाव भारत के मूल मंत्र - 'सत्यमेव जयते' की उद्घोषणा है"
"दीपावली के ये दीपक भारत के आदर्शों, मूल्यों और दर्शन के जीवंत ऊर्जापुंज हैं"
"दीये' अंधकार को दूर करने के लिए जलते हैं और समर्पण की एक भावना पैदा करते हैं"

सियावर रामचंद्र की जय,

सियावर रामचंद्र की जय,

सियावर रामचंद्र की जय,

मंच पर विराजमान उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनन्दीबेन पटेल, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी, सभी देवतुल्य अवधवासी, देश और दुनिया में उपस्थित सभी रामभक्त, भारतभक्त, देवियों और सज्जनों,

आज अयोध्या जी, दीपों से दिव्य है, भावनाओं से भव्य है। आज अयोध्या नगरी, भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के स्वर्णिम अध्याय का प्रतिबिंब है। मैं जब रामाभिषेक के बाद यहाँ आ रहा था, तो मेरे मन में भावों की, भावनाओं की, भावुकताओं की लहरें उठ रहीं थीं। मैं सोच रहा था, जब 14 वर्ष के वनवास के बाद प्रभु श्रीराम अयोध्या आए होंगे, तो अयोध्या कैसे सजी होगी, कैसे संवरी होंगी? हमने त्रेता की उस अयोध्या के दर्शन नहीं किए, लेकिन प्रभु राम के आशीर्वाद से आज अमृतकाल में अमर अयोध्या की अलौकिकता के साक्षी बन रहे हैं।

साथियों,

हम उस सभ्यता और संस्कृति के वाहक हैं, पर्व और उत्सव जिनके जीवन का सहज-स्वाभाविक हिस्सा रहे हैं। हमारे यहाँ जब भी समाज ने कुछ नया किया, हमने एक नया उत्सव रच दिया। सत्य की हर विजय के, असत्य के हर अंत के मानवीय संदेश को हमने जितनी मजबूती से जीवंत रखा, इसमें भारत का कोई सानी नहीं है। प्रभु श्रीराम ने रावण के अत्याचार का अंत हजारों वर्ष पूर्व किया था, लेकिन आज हजारों-हजार साल बाद भी उस घटना का एक-एक मानवीय संदेश, आध्यात्मिक संदेश एक-एक दीपक के रूप में सतत प्रकाशित होता है।

साथियों,

दीपावली के दीपक हमारे लिए केवल एक वस्तु नहीं है। ये भारत के आदर्शों, मूल्यों और दर्शन के जीवंत ऊर्जापुंज हैं। आप देखिए, जहां तक नज़र जा रही है, ज्योतियों की ये जगमग, प्रकाश का ये प्रभाव, रात के ललाट पर रश्मियों का ये विस्तार, भारत के मूल मंत्र ‘सत्यमेव जयते’ की उद्घोषणा है। ये उद्घोषणा है हमारे उपनिषद वाक्यों की- “सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः”। अर्थात्, जीत सत्य की ही होती है, असत्य की नहीं। ये उद्घोषणा है हमारे ऋषि वाक्यों की- “रामो राजमणि: सदा विजयते”। अर्थात्, विजय हमेशा राम रूपी सदाचार की ही होती है, रावण रूपी दुराचार की नहीं। तभी तो, हमारे ऋषियों ने भौतिक दीपक में भी चेतन ऊर्जा के दर्शन करते हुये कहा था- दीपो ज्योतिः परब्रहम दीपो ज्योतिः जनार्दन। अर्थात्, दीप-ज्योति ब्रह्म का ही स्वरूप है। मुझे विश्वास है, ये आध्यात्मिक प्रकाश भारत की प्रगति का पथप्रदर्शन करेगा, भारत के पुनरोत्थान का पथप्रदर्शन करेगा।

साथियों,

आज इस पावन अवसर पर, जगमगाते हुए इन लाखों दीयों की रोशनी में देशवासियों को एक और बात याद दिलाना चाहता हूं। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है-“जगत प्रकास्य प्रकासक रामू”। अर्थात्, भगवान् राम पूरे विश्व को प्रकाश देने वाले हैं। वो पूरे विश्व के लिए एक ज्योतिपुंज की तरह है। ये प्रकाश कौन सा है? ये प्रकाश है- दया और करुणा का। ये प्रकाश है- मानवता और मर्यादा का। ये प्रकाश है- समभाव और ममभाव का। ये प्रकाश है- सबके साथ का, ये प्रकाश है- सबको साथ लेकर चलने के संदेश का। मुझे याद है, बरसों पहले शायद लड़कपन में गुजराती में दीपक पर एक कविता लिखी थी। और कविता का शीर्षक था- दीया-, गुजराती में कहते हैं – દીવો। उसकी कुछ पंक्तियां आज मुझे याद आ रही हैं। मैंने लिखा था- દીવા જેવી આશ ને દીવા જેવો તાપ, દીવા જેવી આગ ને દીવા થકી હાશ. ઊગતા સૂરજને હર કોઈ પૂજે, એ તો આથમતી સાંજે’ય આપે સાથ. જાતે બળે ને બાળે અંધાર, માનવના મનમાં ઊગે રખોપાનો ભાવ. अर्थात, दीया आशा भी देता है और दीया ऊष्मा भी देता है। दीया आग भी देता है और दीया आराम भी देता है। उगते सूरज को तो हर कोई पूजता है, लेकिन दीया, अंधेरी शाम में भी साथ देता है। दीया स्वयं जलता है और अंधेरे को भी जलाता है, दीया मनुष्य के मन में समर्पण का भाव लाता है। हम स्वयं जलते हैं, स्वयं तपते हैं, स्वयं खपते हैं, लेकिन जब सिद्धि का प्रकाश पैदा होता है तो हम उसे निष्काम भाव से पूरे संसार के लिए बिखेर देते हैं, पूरे संसार को समर्पित कर देते हैं।

भाइयों और बहनों,

जब हम स्वार्थ से ऊपर उठकर परमार्थ की ये यात्रा करते हैं, तो उसमें सर्वसमावेश का संकल्प अपने आप समाहित हो जाता है। जब हमारे संकल्पों की सिद्धि होती है तो हम कहते हैं- ‘इदम् न मम्’॥ अर्थात्, ये सिद्धि मेरे लिए नहीं है, ये मानव मात्र के कल्याण के लिए है। दीप से दीपावली तक, यही भारत का दर्शन है, यही भारत का चिंतन है, यही भारत की चिरंतर संस्कृति है। हम सब जानते हैं, मध्यकाल और आधुनिककाल तक भारत ने कितने अंधकार भरे युगों का सामना किया है। जिन झंझावातों में बड़ी-बड़ी सभ्यताओं के सूर्य अस्त हो गए, उनमें हमारे दीपक जलते रहे, प्रकाश देते रहे फिर उन तूफानों को शांत कर उद्दीप्त हो उठे। क्योंकि, हमने दीप जलाना नहीं छोड़ा। हमने विश्वास बढ़ाना नहीं छोड़ा। बहुत समय नहीं हुआ, जब कोरोना के हमले की मुश्किलों के बीच इसी भाव से हर एक भारतवासी एक-एक दीपक लेकर खड़ा हो गया था। और, आज, कोरोना के खिलाफ युद्ध में भारत कितनी ताकत से लड़ रहा है, ये दुनिया देख रही है। ये प्रमाण है कि, अंधकार के हर युग से निकलकर भारत ने प्रगति के प्रशस्त पथ पर अपने पराक्रम का प्रकाश अतीत में भी बिखेरा है, भविष्य में भी बिखेरेगा। जब प्रकाश हमारे कर्मों का साक्षी बनता है, तो अंधकार का अंत अपने आप सुनिश्चित हो जाता है। जब दीपक हमारे कर्मों का साक्षी बनता है, तो नई सुबह का, नई शुरुआत का आत्मविश्वास अपने आप सुदृढ़ हो जाता है। इसी विश्वास के साथ, आप सभी को दीपोत्सव की एक बार फिर से बहुत बहुत शुभकामनायें। मेरे साथ पूरे भक्तिभाव से बोलिये

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सियावर रामचंद्र की जय,

सियावर रामचंद्र की जय,

सियावर रामचंद्र की जय।

 

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Prime Minister greets on the occasion of Urs of Khwaja Moinuddin Chishti
January 02, 2025

The Prime Minister, Shri Narendra Modi today greeted on the occasion of Urs of Khwaja Moinuddin Chishti.

Responding to a post by Shri Kiren Rijiju on X, Shri Modi wrote:

“Greetings on the Urs of Khwaja Moinuddin Chishti. May this occasion bring happiness and peace into everyone’s lives.