नमस्कार!
मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी, देश के शिक्षामंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक जी, श्री संजय धोत्रे जी, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारूप को तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष डॉ कस्तूरी रंगन जी, उनकी टीम के सम्मानित सदस्य गण, इस विशेष सम्मलेन में भाग ले रहे सभी राज्यों के विद्वान, प्राचार्यगण, शिक्षकगण, देवियों और सज्जनों, आज हम सभी एक ऐसे क्षण का हिस्सा बन रहे हैं जो हमारे देश के भविष्य निर्माण की नींव डाल रहा है। ये एक ऐसा क्षण है जिसमें नए युग के निर्माण के बीज पड़े हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 21वीं सदी के भारत को नई दिशा देने वाली है।
साथियों, पिछले तीन दशकों में दुनिया का हर क्षेत्र बदल गया। हर व्यवस्था बदल गई। इन तीन दशकों में हमारे जीवन का शायद ही कोई पक्ष हो जो पहले जैसा हो। लेकिन वो मार्ग, जिस पर चलते हुए समाज भविष्य की तरफ बढ़ता है, हमारी शिक्षा व्यवस्था, वो अब भी पुराने ढर्रे पर ही चल रही थी। पुरानी शिक्षा व्यवस्था को बदलना उतना ही आवश्यक था जितना किसी खराब हुए ब्लैकबोर्ड को बदलना आवश्यक होता है। जैसे हर स्कूल में पिन-अप बोर्ड होता है। उसमें तमाम जरूरी कागज, स्कूल के जरूरी आदेश, बच्चों की बनाई पेन्टिंग आदि आप लोग लगाते हैं। ये बोर्ड हर कुछ समय में भर भी जाता है। उस पिन-अप बोर्ड पर नई क्लास के नए बच्चों की नई पेन्टिंग्स लगाने के लिए आपको बदलाव करना ही पड़ता है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी नए भारत की, नई उम्मीदों की, नई आवश्यकताओं की पूर्ति का सशक्त माध्यम है। इसके पीछे पिछले चार-पांच वर्षों की कड़ी मेहनत है, हर क्षेत्र, हर विधा, हर भाषा के लोगों ने इस पर दिन रात काम किया है। लेकिन ये काम अभी पूरा नहीं हुआ है। बल्कि अब तो काम की असली शुरुआत हुई है। अब हमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति को उतने ही प्रभावी तरीके से लागू करना है। और ये काम हम सब मिलकर करेंगे। मैं जानता हूं, राष्ट्रीय शिक्षा नीति का ऐलान होने के बाद आप में से बहुत लोगों के मन में कई सवाल आ रहे हैं। ये शिक्षा नीति क्या है? ये कैसे अलग है? इससे स्कूल और कॉलेजों की व्यवस्था में क्या बदलाव आएगा? इस शिक्षा नीति में एक शिक्षक के लिए क्या है? एक छात्र के लिए क्या है? और सबसे अहम, इसे सफलता पूर्वक लागू करने के लिए क्या क्या करना है, कैसे करना है? ये सवाल जायज भी हैं, और जरूरी भी हैं। और इसीलिए ही हम सब यहां इस कार्यक्रम में इकट्ठा हुए हैं ताकि चर्चा कर सकें, आगे का रास्ता बना सकें। मुझे बताया गया है कि कल भी दिन भर आप सभी ने इन्हीं बातों पर घंटों मंथन किया है, चर्चा की है।
Teachers खुद अपने हिसाब से Learning Material तैयार करें, बच्चे अपना Toy म्यूजियम बनाएं, Parents को जोड़ने के लिए स्कूल में कम्यूनिटी लाइब्रेरी हो, तस्वीरों के साथ Multilingual Dictionary हो, स्कूल में भी किचेन गार्डन हो, ऐसे कितने ही विषयों की बात हुई है, अनेक नए Ideas दिए गए हैं। मुझे खुशी है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के इस अभियान में हमारे प्रिंसिपल्स और शिक्षक पूरे उत्साह से हिस्सा ले रहे हैं।
अभी कुछ दिन पहले शिक्षा मंत्रालय ने भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के बारे में देश भर के Teachers से Mygov पोर्टल पर उनके सुझाव मांगे थे। एक सप्ताह के भीतर ही 15 लाख से ज्यादा सुझाव मिले हैं। ये सुझाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति को और ज्यादा प्रभावी तरीके से लागू करने में मदद करेंगे। इस विषय में और अधिक जागरूकता लाने के लिए शिक्षा मंत्रालय अनेक तरह के कार्यक्रम चला रहा है।
साथियों, किसी भी देश के विकास को गति देने में उसकी युवा पीढ़ी और युवा ऊर्जा की बड़ी भूमिका होती है। लेकिन उस युवा पीढ़ी का निर्माण बचपन से ही शुरू हो जाता है। जैसा बचपन होगा, भविष्य का जीवन काफी कुछ उसी पर निर्भर करता है। बच्चों की शिक्षा, उन्हें मिलने वाला वातावरण, काफी हद तक यही तय करता है कि भविष्य में वो as a Person, कैसा बनेगा, उसकी Personality कैसी होगी। इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बच्चों की Education पर बहुत ज्यादा जोर दिया गया है। प्री-स्कूल में तो बच्चा पहली बार माता-पिता की देखभाल और घर के आराम भरे माहौल से बाहर निकलने की शुरूआत करता है .. दूर होता है। ये वो पहला पड़ाव होता है जब बच्चे अपने Senses, अपनी Skills को ज्यादा बेहतर तरीके से समझना शुरू करते हैं। इसके लिये ऐसे स्कूल, ऐसे शिक्षकों की जरूरत है जो बच्चों को Fun Learning, Playful Learning, Activity Based Learning और Discovery Based Learning का Environment दें।
मैं जानता हूं कि आप सोच रहे होंगे कि कोरोना के इस टाइम में, ये सब कैसे होगा? ये बात सोच से ज्यादा अप्रोच की है। और वैसे भी कोरोना से बने हालात हमेशा ऐसे ही तो नहीं रहेंगे। बच्चे जैसे-जैसे क्लास में आगे बढ़ें, उनमें ज्यादा सीखने की भावना का विकास हो, बच्चों का मन, उनका मस्तिष्क वैज्ञानिक और तार्किक तरीके से सोचना शुरू करे, उनमें Mathematical Thinking और Scientific Temperament विकसित हो, ये बहुत आवश्यक है। और Mathematical Thinking का मतलब केवल यही नहीं है कि बच्चे Mathematics के प्रॉब्लम ही सॉल्व करें, बल्कि ये सोचने का एक तरीका है। ये तरीके हमें उन्हें सिखाना है। ये हर विषय को, जीवन के पहलुओं को Mathematical और Logical रूप से समझने का दृष्टिकोण है, ताकि मस्तिष्क अलग-अलग perspective में analyse कर सके। ये दृष्टिकोण, मन और मस्तिष्क का ये विकास बहुत जरूरी है, और इसलिए ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसके तौर-तरीकों पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया गया है। आप लोगों में से बहुत से लोग, बहुत से प्रिंसिपल्स, ये सोच रहे होंगे कि हम तो अपने स्कूल में पहले से ही ऐसा करते हैं। लेकिन बहुत से स्कूल ऐसे भी तो हैं जहां ऐसा नहीं होता। एक समान भाव लाना भी तो जरूरी है। ये भी एक बड़ी वजह है जो आज आपसे मैं इतना विस्तार से, हर बारीकी पर बात कर रहा हूं।
साथियों, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पुरानी 10 Plus 2 की जगह, 5 Plus 3 Plus 3 Plus 4 की व्यवस्था बहुत सोच- समझकर की गई है। इसमें Early Childhood Care and Education को एक बुनियाद के रुप में, नींव के रूप में शामिल किया गया है। आज हम देखें तो प्री स्कूल की Playful Education शहरों में, प्राइवेट स्कूलों तक ही सीमित है। वो अब गाँवों में भी पहुंचेगी, गरीब के घर तक पहुंचेगी, अमीर, गांव-शहर, हर किसी के, हर जगह के बच्चों को मिलेगी। मूलभूत शिक्षा पर ध्यान इस नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत Foundational Literacy and Numeracy के विकास को एक राष्ट्रीय मिशन के रुप में लिया जायेगा। प्रारम्भिक भाषा का ज्ञान, संख्या का ज्ञान, बच्चों में सामान्य लेख को पढ़ने और समझने की क्षमता का विकास, ये बहुत आवश्यक होता है। बच्चा आगे जा कर Read To Learn करें, इसके लिए जरूरी है कि शुरुआत में वो Learn To Read करना सीखे। Learn To Read से Read To Learn की ये विकास यात्रा Foundational Literacy and Numeracy के माध्यम से पूरी की जायगी।
साथियों, हमें ये सुनिश्चित करना है कि जो भी बच्चा तीसरी कक्षा पार करता है, वो एक मिनट में 30 से 35 शब्द तक आसानी से पढ़ पाए। इसे आप लोग Oral Reading Fluency कहते हैं। जिस बच्चे को हम इस लेवल तक ला पाएंगे, shape कर पाएंगे, सिखा पाएंगे, तो भविष्य में उस विद्यार्थी को बाकी subjects का content समझने में और आसानी रहेगी। मैं इसके लिए आपको सुझाव देता हूं। ये जो छोटे-छोटे बच्चे हैं ..उनके साथ उनके 25-30 दोस्त भी होंगे क्लास में। आप उनको कहिए चलो भाई तुम कितनों के नाम जानते हो ... तुम बोलो। फिर कहो अच्छा तुम कितनी तेजी से नाम बता सकते हो, फिर कहिए तुम तेजी से भी बोलो और उसको वहां खड़ा भी करो। आप देखिए कितने प्रकार के talent develop होना शुरू हो जाएंगे और उसका confidence लेवल बढ़ जाएगा… बाद में लिखित रूप में साथियों के नाम रखके ..... चलो तुम इसमें से किस-किस के नाम बोलोगे, पहले फोटो दिखाके लिखा सकते हैं। अपने ही दोस्तों को पहचान कर सीखना ..... इसे लर्निंग की प्रक्रिया कहते हैं। इससे आगे की कक्षाओं में Students पर बोझ भी कम होगा, आप शिक्षकों पर भी burden कम होगा।
साथ ही, बेसिक गणित जैसे, Counting, Addition, Subtraction, Multiplication, Division, ये सब भी बच्चे आसानी से समझ सकेंगे। ये सब तभी होगा जब पढ़ाई किताबों और क्लास की चारदीवारियों से बाहर निकलकर वास्तविक दुनिया से जुड़ेगी, हमारे जीवन से, आस-पास के परिवेश से जुड़ेगी। आस पास की चीजों से, Real World से बच्चे कैसे सीख सकते हैं, इसका एक उदाहरण ईश्वरचंद्र विद्यासागर की एक कहानी में देखने को मिलता है। कहते हैं, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जी जब आठ साल के थे, उन्हें तब तक अंग्रेजी नही पढ़ाई गयी थी। एक बार वो अपने पिता के साथ कोलकाता जा रहे थे, तो रास्ते में सड़क के किनारे उन्हें अंग्रेजी में लिखे Milestones दिखे। उन्होंने अपने पिता से पूछा कि यह क्या लिखा है? उनके पिताजी ने बताया कि इसमें कोलकाता कितनी दूर है, ये बताने के लिए इंग्लिश में गिनती लिखी है। इस उत्तर से ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के बालमन में और जिज्ञासा बढ़ी। वो पूछते रहे और उनके पिताजी उन मील के पत्थरों पर लिखी गिनती बताते रहे। और, कोलकाता पहुँचते-पहुँचते ईश्वर चन्द्र विद्यासागर पूरी English की counting सीख गए। 1,2,3,4…7,8,9,10 ये है जिज्ञासा की पढ़ाई, जिज्ञासा से सीखने और सिखाने की शक्ति!
साथियों, जब शिक्षा को आस-पास के परिवेश से जोड़ दिया जाता है तो उसका प्रभाव विद्यार्थी के पूरे जीवन पर पड़ता है, पूरे समाज पर भी पड़ता है। जैसे कि जापान को देखिए, वहाँ Shinrin-Yoku (शिनरिन योकू) का प्रचलन है। Shinrin का अर्थ है वन या जंगल, और Yoku का मतलब है- नहाना। यानि Forest-Bathing. वहाँ स्टूडेंट्स को जंगलों में, या जहां पेड़-पौधे बहुत हो, ऐसी जगहों पर ले जाया जाता है जहाँ बच्चे प्रकृति को स्वाभाविक रूप से महसूस करें। पेड़-पौधों फूलों को सुनें, देखें, Touch, Taste, Smell करें। इससे बच्चों का प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ाव भी होता है, और उनके Hollistic तरीके से development को बढ़ावा भी मिलता है। बच्चे इसे enjoy भी करते हैं, और एक साथ कितनी सारी चीजें सीख भी रहे होते हैं। मुझे याद है, जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था.. तो एक कार्यक्रम चला था। हमने सूचना दी सभी स्कूलों को .... हमने कहा सभी स्कूलों के बच्चे अपने गांव के अंदर सबसे बड़ी उम्र का पेड़ कौन सा है ....जिस पेड़ की सबसे ज्यादा उम्र हो चुकी है उसे ढूढ़ो। तो उन्हें सब जबह जाना पडा, गांव के आसपास के सारे पेड़ देखने पड़े, टीचर को पूछा पड़ा। और सबने सहमति की कि ये पेड़ बहुत पुराना है और बाद में बच्चों ने स्कूल में आकर के उस पर गीत लिखें, निबंध लिखें…. वक्तत्व कथाएं की .... यानि उस पेड़ का महात्मय क्या है।
लेकिन उसी प्रक्रिया में उन्हें कई पेड़ देखने पड़े, सबसे बड़ा उम्र वाला पेड़ ढूढ़ना पड़ा। बहुत चीजें वो सीखने लग गए और मैं कह सकता हूं, ये प्रयोग बहुत सफल रहा। एक तरफ बच्चों को पर्यावरण की जानकारी मिली, साथ ही साथ उन्हें अपने गांव के विषय में ढेर सारी जानकारियां प्राप्त करने का मौका भी मिला। हमें इसी तरह के आसान और नए-नए तौर-तरीकों को बढ़ाना होगा। हमारे ये प्रयोग, New age learning का मूलमंत्र होना चाहिए- Engage, Explore, Experience, Express और Excel. यानि कि, students अपने रूचि के हिसाब से गतिविधियों में, घटनाओं में, projects में engage हों। इसे अपने हिसाब से explore करें। इन गतिविधियों, घटनाओं, projects को विभिन्न दृष्टिकोण को अपने experience से सीखें। ये उनका personal experience हो सकता है या collaborative experience हो सकता है। फिर बच्चे रचनात्मक तरीके से Express करना सीखें। इन सब को मिला कर ही फिर excel करने का रास्ता बनता है। अब जैसे कि, हम बच्चों को पहाड़ों पर, ऐतिहासिक जगहों पर, खेतों में, सुरक्षित मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स में लेकर जा सकते हैं।
अब देखिए, आप क्लासरूम में रेलवे का इंजन पढ़ाए .... बस पढ़ाए लेकिन कभी तय करें कि गांव के नजदीक में रेलवे स्टेशन है तो चलो जाएंगे ..... बच्चों को इंजन कैसा होता है, दिखाएंगे, फिर कभी बस स्टेशन ले जाएंगे, बस कैसा होता है दिखाएंगे .... वो देखकर ही सीखना शुरू कर लेते हैं। मैं जानता हूं, कई प्रिंसिपल्स और शिक्षक फिर ये सोच रहे होंगे कि वो तो अपने स्कूल या कॉलेज में ऐसा ही करते हैं। मैं मानता हूं बहुत से टीचर innovative होते हैं .... और जी-जान से लगे रहते हैं। लेकिन सब जगह ऐसा नहीं होता। और इस वजह से बहुत से छात्र practical knowledge से दूर रह जाते हैं। हम इन अच्छी चीजों को जितना ज्यादा फैलाएंगे हमारे साथी शिक्षकों को सीखने का मौका मिलेगा। टीचरों का experience जितना ज्यादा शेयर होगा वो बच्चों के लाभ में जाएगा।
साथियों, हमारे देश भर में हर क्षेत्र की अपनी कुछ न कुछ खूबी है, कोई न कोई पारंपरिक कला, कारीगरी, products हर जगह के मशहूर हैं। जैसे कि बिहार में भागलपुर की साड़ियाँ, वहाँ का सिल्क देश भर में फेमस है। स्टूडेंट्स उन करघों, हथकरघों में visit करें, देखें आखिर ये कपड़े बनते कैसे हैं? उनको सीखाया जाए जरा तुम .... उसमें जो काम कर रहे हैं, उनसे सवाल पूछो। क्लासरूम में सवाल सीखाकर के ले जाएं। फिर उनको कहा जाए बताओ तुमने क्या पूछा था ... क्या जवाब मिला। यही तो लर्निंग है। जब वह स्पेसिफिक पूछेगा – आप धागा कहां से लाते हो, धागे का रंग कैसे होता है, साड़ी पर चमक कैसी आती है। वो बच्चा अपनी मर्जी से पूछने लगेगा, आप देखिए उसको बहुत कुछ सीखने को मिल जाएगा।
स्कूल में भी ऐसे skilled लोगों को बुलाया जा सकता है। वहाँ उनकी प्रदर्शनी, workshop लगाई जा सकती है। मान लीजिए गांव में जो मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोग हैं, एक दिन उनको बुला लिया, स्कूल के बच्चे देखें, फिर उनसे सवाल-जवाब करें, आप देखिए वो आराम से सीख लेगा। विद्यार्थियों की जिज्ञासा भी बढ़ेगी और जानकारी भी, सीखने में रुचि भी बढ़ेगी। ऐसे कितने ही प्रोफेशन हैं जिनके लिए deep skills की जरूरत होती है, लेकिन हम उन्हें महत्व ही नहीं देते, कई बार तो उन्हें छोटा समझ लेते हैं। अगर students इन्हें देखेंगे जानेंगे तो एक तरह का भावनात्मक जुड़ाव होगा, skills को समझेंगे, उनकी respect करेंगे।
हो सकता है बड़े होकर इनमें से कई बच्चे ऐसे ही उद्योगों से जुड़ें, हो सकता है वही बड़े मालिक बन जाएं, बड़े उद्योगपति बन जाएं। बच्चों में संवेदना जगाने की बात जब आती है .... अब बच्चे ऑटो-रिक्शा में स्कूल आते हैं। क्या कभी उन बच्चों को पूछा कि उस ऑटो-रिक्शावाले का नाम क्या है, जो तुम्हें रोज ले आता है .... उसका घर कहां है .... क्या उसके जन्मदिन को कभी मनाया था क्या … क्या कभी उसके घर गए थे क्या ... क्या वह आपके मां-बाप को मिला था क्या। फिर बच्चों को कहो तुम्हारे जो रिक्शा ड्राइवर हैं.. उससे 10 सवाल पूछ करके आओ ... फिर क्लास में सबको बताओ कि मेरा रिक्शावाला ऐसा है, वो इस गांव का है, वो यहां कैसे आया। फिर बच्चों को उसके प्रति संवेदना प्रकट होगी। वरना उन बच्चों को मालूम ही नहीं, उनको लगता है मेरे पिताजी पैसे देते हैं इसलिए ऑटो-रिक्शावाला मुझे लेके आता है। उसे मन में वो भाव नहीं जगता है कि ऑटो-रिक्शा वाला मेरी जिंदगी बना रहा है। मेरे जिंदगी को बनाने के लिए वह कुछ कर रहा है, ये संवेदना पैदा होगी।
उसी प्रकार से अगर कोई दूसरा प्रोफेशन भी चुनता है, इंजीनियर भी बनता है तो उसके दिमाग में रहेगा कि फलां पेशे को बेहतर बनाने के लिए क्या इनोवेशन किया जा सकता है? इसी तरह, Hospitals की, फायर Stations की या फिर दूसरी किसी जगह की visit भी learning का हिस्सा हो सकती है। बच्चों को ले जाना चाहिए, दिखाना चाहिए .... उनको पता चलेगा डॉक्टर भी कितने प्रकार के होते हैं। Dentist क्या होता है .... आंख का हॉस्पिटल कैसा होता है। साधन देखेगा, आंख चेक करने का मशीन कैसा होता है .... उसको जिज्ञासा होगी, वह सीखेगा।
साथियों, राष्ट्रीय शिक्षा नीति को इसी तरह तैयार किया गया है ताकि Syllabus को कम किया जा सके और fundamental चीज़ों पर ध्यान केन्द्रित किया जा सके। लर्निंग को Integrated एवं Inter-Disciplinary, Fun based और complete experience बनाने के लिए एक National Curriculum Framework develop किया जायेगा।ये भी तय किया गया है कि 2022 में जब हम आजादी के 75 वर्ष मनाएंगे, तो हमारे Students इस नए करिकुलम के साथ ही नए भविष्य की तरफ कदम बढ़ाएंगे। ये भी forward looking, future ready और scientific curriculum होगा। इसके लिए सभी के सुझाव लिए जाएंगे, और सभी के recommendations और modern education systems को इसमें समाहित किया जायेगा।
साथियों, भविष्य की दुनिया, हमारी आज की दुनिया से काफी अलग होने वाली है। हम इसकी जरूरतों को अभी से देख सकते हैं, सेंस कर सकते हैं। ऐसे में हमें अपने Students को 21St century की skills के साथ आगे बढ़ाना है। ये 21St Century की Skills क्या होंगी? ये होंगी- -Critical Thinking -Creativity -Collaboration -Curiosity और Communication. हमारे students, sustainable future, sustainable science को समझें, उस दिशा में सोचें, ये सब आज समय की मांग है, बहुत जरूरी है। इसलिए, छात्र शुरुआत से ही कोडिंग सीखें, Artificial Intelligence को समझें, Internet of Things, Cloud Computing, Data Science और Robotics से जुड़ें, ये सब हमें देखना होगा।
साथियों, हमारी पहले की जो शिक्षा नीति रही है, उसने हमारे students को बहुत बांध भी दिया था। जैसे उदाहरण के तौर पर लें तो जो विद्यार्थी Science लेता है वो Arts या Commerce नहीं पढ़ सकता था। Arts-Commerce वालों के लिए मान लिया गया कि ये History, Geography, Accounts इसलिए पढ़ रहे हैं क्योंकि ये साइन्स नहीं पढ़ सकते। लेकिन क्या Real World में, हमारे आपके जीवन में ऐसा होता है कि केवल एक ही फील्ड की जानकारी से सारे काम हो जाएँ? हकीकत में सभी विषय एक दूसरे से जुड़े हुये हैं। हर Learning inter-related है। Students कोई एक विषय ले लेते हैं, बाद में उन्हें लगता है कि वो दूसरे किसी क्षेत्र में ज्यादा बेहतर कर सकते हैं। लेकिन वर्तमान व्यवस्था, बदलाव का, नई संभावनाओं से जुडने का अवसर ही नहीं देता। बहुत से बच्चों के ड्रॉप आउट होने का ये भी एक बड़ा कारण रहा है। इसीलिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति छात्रों को कोई भी विषय चुनने की आजादी दी गयी है। मैं इसे बहुत बड़े सुधार के तौर पर देखता हूँ। अब हमारे युवाओं को Science, Humanity या Commerce में से किसी एक ब्रैकेट में फिट नहीं होना पड़ेगा।देश के हर student को, उसकी प्रतिभाओं को अब पूरा मौका मिलेगा।
साथियों, राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक और बहुत बड़ी समस्या को भी address करती है। यहाँ तो बड़े बड़े अनुभवी और जानकर लोग उपस्थित हैं,आपने जरूर महसूस किया होगा कि हमारे देश में learning driven education की जगह Marks और Marks-Sheet education हावी है। Learn तो बच्चे तब भी कर रहे होते हैं जब वो खेल रहे होते हैं, जब वो परिवार में बात कर रहे होते हैं, जब वो बाहर आपके साथ घूमने जाते हैं। लेकिन अक्सर माता-पिता भी बच्चों से ये नहीं पूछते कि क्या सीखा? वो भी यही पूछते हैं कि मार्क्स कितने आए? टेस्ट में नंबर कितने नंबर आए? एक टेस्ट, एक मार्क्सशीट क्या बच्चों के सीखने की, उनके मानसिक विकास की Parameter हो सकती है? आज सच्चाई ये है कि मार्क्सशीट, मानसिक प्रैशरशीट बन गई है और परिवार की प्रेस्टिजशीट बन गयी है। पढ़ाई से मिल रहे इस तनाव को, मेंटल स्ट्रैस से अपने बच्चों को निकालना राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक मुख्य उद्देश्य है।
परीक्षा इस तरह होनी चाहिए कि छात्रों पर इसका बेवजह का दबाव न पड़े। और कोशिश ये है कि केवल एक परीक्षा से छात्र-छात्राओं का मूल्यांकन न किया जाए, बल्कि Self-assessment, Peer-To-Peer assessment से छात्रों के विकास के विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन हो। इसलिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मार्क्सशीट की जगह Holistic report card पे बल दिया गया है। Holistic report card विद्यार्थियों के unique potential, aptitude, attitude, talent, skills, efficiency, competency और possibilities की detailed sheet होगी। मूल्यांकन प्रणाली के संपूर्ण सुधार के लिए एक नये राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र “परख” की स्थापना भी की जाएगी।
साथियों, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आने के बाद से ये भी चर्चा काफी तेज है कि बच्चों को पढ़ाने की भाषा क्या होगी? इसमें क्या बदलाव किया जा रहा है?यहाँ हमें एक ही वैज्ञानिक बात समझने की जरूरत है कि भाषा शिक्षा का माध्यम है, भाषा ही सारी शिक्षा नहीं है। किताबी पढ़ाई में फंसे-फंसे कुछ लोग ये फर्क ही भूल जाते हैं। इसलिए, जिस भी भाषा में बच्चा आसानी से सीख सके, चीजें Learn कर सके, वही भाषा पढ़ाई की भाषा होनी चाहिए। ये देखना जरूरी है कि जब बच्चे को हम पढ़ा रहे हैं, तो जो हम बोल रहे हैं, क्या वो समझ पा रहा है? समझ रहा तो कितनी आसानी से समझ रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि विषय से ज्यादा बच्चे की ऊर्जा भाषा को समझने में खप रही है? इन्हीं सब बातों को समझते हुए ज़्यादातर देशों में भी आरंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही दी जाती है।
आप में से बहुत से लोग ये जानते होंगे कि 2018 में Programme for International Student Assessment- PISA की top ranking वाले जितने देश थे, जैसे कि Estonia, Ireland, Finland, Japan, South Korea, Poland, इन सब देशों में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में दी जाती है। ये बात स्वाभाविक है कि जिस भाषा को सुनते हुये बच्चे पलते हैं, जो भाषा घर की भाषा होती है, उसी में बच्चों की सीखने की गति बेहतर होती है। वर्ना होता ये है कि बच्चे जब किसी दूसरी भाषा में कुछ सुनते हैं, तो पहले वो उसे अपनी भाषा में translate करते हैं, फिर उसको समझते हैं। बाल मन में ये बड़ी उलझन पैदा करती है, बहुत स्ट्रेस देने वाली बात होती है। इसका एक और पहलू है। हमारे देश में, खासकर ग्रामीण क्षेत्र में, पढ़ाई मातृभाषा से अलग होने पर ज़्यादातर parents बच्चों की पढ़ाई से जुड़ भी नहीं पाते। ऐसे में बच्चों के लिए पढ़ाई एक सहज प्रक्रिया नहीं रह जाती, बल्कि पढ़ाई स्कूल की एक duty बन जाती है। पेरेंट्स और स्कूल के बीच में एक लाइन खिच जाती है।
इसलिए, जहां तक संभव हो, कम से कम ग्रेड फाइव, कक्षा पांच तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा, स्थानीय भाषा रखने की बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कही गई है। मैं देखता हूं, कुछ लोग इसे लेकर भ्रम में भी रहते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा के अलावा कोई अन्य भाषा सीखने, सिखाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। अंग्रेजी के साथ साथ जो भी विदेशी भाषाएँ अंतर्राष्ट्रीय पटल पर सहायक हैं, वो बच्चे पढ़ें, सीखें, तो अच्छा ही होगा। लेकिन साथ साथ सभी भारतीय भाषाओं को भी promote किया जाएगा, ताकि हमारे युवा देश के अलग अलग राज्यों की भाषा, वहाँ की संस्कृति से परिचित हो सकें, हर क्षेत्र का एक दूसरे से रिश्ता मजबूत हो।
साथियों, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की इस यात्रा के पथप्रदर्शक आप सभी हैं, देश के शिक्षक हैं। चाहे नए तरीके से learning हो, चाहे ‘परख’ के जरिए नई परीक्षा हो, students को इस नई यात्रा पर लेकर शिक्षकों को ही जाना है। क्योंकि, प्लेन कितना भी advance क्यों न हो, उड़ाता Pilot ही है। इसलिए, ये सभी शिक्षकों को भी काफी कुछ नया Learn करना है, काफी कुछ पुराना Unlearn भी करना है। 2022 में जब आजादी के 75 वर्ष पूरे होंगे, तब भारत का हर student, राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा तय गए दिशा-निर्देशों में पढ़े, ये हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। मैं सभी शिक्षकों, प्रशासकों, स्वयं सेवी संगठनों और अभिभावकों से आह्वान करता हूँ कि वे इस राष्ट्रीय मिशन में अपना सहयोग दें। मुझे पूरा विश्वास है कि आप सभी शिक्षकों के सहयोग से, देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सफलता पूर्वक लागू कर पाएगा।
मैं अपनी बात समाप्त करने से पहले शिक्षकों के माध्यम से एक बात आग्रह से कहना चाहूंगा कि कोरोना के काल में आप भी औरों को जिन मर्यादाओं का पालन करना है – दो गज दूरी की बात हो, मास्क या फेस्क कवर की बात हो, अपने परिवार में बुजुर्गों की पूरा ख्याल रखने की बात हो, स्वच्छता की बात हो, ये सब लड़ाई के लड़ने का नेतृत्व भी हम सबको करना है। और शिक्षक बड़ी आसानी से कर सकते हैं, बड़ी आसानी से बात घर-घर पहुंचा सकते हैं। और शिक्षक जब कोई बात करते हैं तो स्टूडेंट बहुत विश्वास के साथ मानता है। स्टूडेंट के सामने, प्रधानमंत्री ने ये कहा, कहोगे और मेरे शिक्षक ने ये कहा कहोगे, तो मैं दावे से कहता हूं ..... स्टूडेंट प्रधानमंत्री ने कहा है, उस पर चार सवाल करेगा। लेकिन शिक्षक ने कहा है, उस पर एक भी सवाल नहीं करेगा। घर जाकर बताएगा मेरे टीचर ने कहा है। यह श्रद्धा, यह विश्वास बालक के मन में पड़ा हुआ है। ये आपकी बहुत बड़ी पूंजी है, बहुत बड़ी शक्ति है। और इस क्षेत्र से जुड़े हुए कई पीढि़यों ने तपस्या करके इसको विरासत में दिया है। और जब ऐसी चीजें आपको विरासत में मिली हैं तब आपका दायित्व भी बहुत बढ़ जाता है।
मुझे विश्वास है, मेरे देश का शिक्षकगण, भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए इसको एक मिशन के रूप में लेगा, मन लगाकरके करेगा। देश का एक-एक बालक आपकी शिक्षा को ग्रहण करने के लिए तैयार होता है, आपके आदर्शों का पालन करने के लिए तैयार होता है, आपके इरादों को चरितार्थ करने के लिए तैयार होता है। वो दिन-रात मेहनत करने के लिए तैयार होता है। एक बार शिक्षक कह दे तो वो सब कुछ मानने को तैयार होता है। मैं समझता हूं कि मां-बाप, शिक्षक, शिक्षक संस्था, सरकारी व्यवस्था, हम सबको मिल करके इस काम को करना है। मुझे विश्वास है, ये जो ज्ञान यज्ञ चल रहा है, ये जो शिक्षा पर्व चल रहा है, 5 सितम्बर से ले करके लगातार अलग-अलग क्षेत्र के लोग इसको आगे बढ़ाने के काम में लगे हैं। ये प्रयास अच्छे परिणाम लाएगा ... समय से पहले परिणाम लाएगा। और सामूहिक कर्तव्य के भाव के कारण होगा।
इस विश्वास के साथ मैं एक बार फिर आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं। आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं और हमेशा-हमेशा मैं टीचर को नमन करता हूं। आज वर्चुअल माध्यम से भी आप सबको नमन करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।
बहुत बहुत धन्यवाद !!!