"भारत टेक्स 2024 कपड़ा उद्योग में भारत की असाधारण क्षमताओं को उजागर करने का एक उत्कृष्ट मंच है"
“भारत टेक्स का यह सूत्र भारतीय परंपरा के गौरवशाली इतिहास को आज की प्रतिभा से, परंपराओं के साथ प्रौद्योगिकी को जोड़ता है; और यह स्टाइल, निरंतरता, दायरे और कौशल को एक साथ लाने का सूत्र है”
"हम परंपरा, प्रौद्योगिकी, प्रतिभा और प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं"
"विकसित भारत के निर्माण में टेक्सटाइल सेक्टर का योगदान और बढ़ाने के लिए हम बहुत विस्तृत दायरे में काम कर रहे हैं"
"टेक्सटाइल के अलावा खादी ने भी हमारे भारत की महिलाओं को नई शक्ति दी है"
"आज प्रौद्योगिकी और आधुनिकीकरण विशिष्टता और प्रामाणिकता के साथ समान रूप से रह सकते हैं"
"कस्तूरी कॉटन भारत की अपनी पहचान बनाने की ओर एक बड़ा कदम होने वाला है"
"पीएम-मित्र पार्कों में, सरकार संपूर्ण मूल्य श्रृंखला इको-सिस्टम को एक ही स्थान पर स्थापित करने का प्रयास करती है, जहां प्लग एंड प्ले सुविधाओं के साथ आधुनिक अवसंरचना उपलब्ध कराई जाती है"
आज देश में 'वोकल फॉर लोकल और लोकल टू ग्लोबल' के लिए जन-आंदोलन चल रहा है

कैबिनेट में मेरे सहयोगी पीयूष गोयल जी, दर्शना जरदोश जी, विभिन्न देशों के Ambassadors, सीनियर डिप्लोमैट्स, सेंट्रल और स्टेट गवर्नमेंट्स के ऑफिसर्स, फैशन और टैक्सटाइल वर्ल्ड से जुड़े सभी साथी, युवा Entrepreneurs, Students, हमारे बुनकर और हमारे कारीगर साथी, देवियों और सज्जनों ! आप सभी का भारत मंडपम् में हो रहे भारत टेक्स में अभिनंदन ! आज का ये आयोजन अपने-आप में बहुत खास है। खास इसलिए क्योंकि ये एक साथ भारत के सबसे बड़े दो Exhibition सेंटर्स, भारत मंडपम् और यशोभूमि, एक साथ दोनों में हो रहा है। आज 3 हजार से ज्यादा Exhibitors...100 देशों के करीब 3 हजार खरीदार...40 हजार से ज्यादा Trade Visitors...एक साथ इस आयोजन से जुड़े हैं। ये आयोजन, टेक्सटाइल इकोसिस्टम के सभी साथियों और पूरी वैल्यू चेन के लिए उन लोगों को एक साथ मिलने का प्लेटफॉर्म दे रहा है।

साथियों,

आज का ये आयोजन सिर्फ एक टेक्सटाइल एक्सपो भर नहीं है। इस आयोजन के एक सूत्र से कई चीजें जुड़ी हुई हैं। भारत टेक्स का ये सूत्र भारत के गौरवशाली इतिहास को आज की प्रतिभा से जोड़ रहा है। भारत टेक्स का ये सूत्र Technology को Tradition के संग पिरो रहा है। भारत टेक्स का ये सूत्र Style, Sustainability, Scale और Skill, इन सबको एक साथ लाने का सूत्र है। जिस तरह एक लूम कई धागों को एक साथ जोड़ता है, उसी तरह ये आयोजन भारत और पूरे विश्व के धागों को भी एक साथ जोड़ रहा है। और मैं अपने सामने देख रहा हूं, ये स्थान भारत के विचारों की विविधता और एक सूत्र में जोड़ने वाली सांस्कृतिक एकता का भी स्थल बन गया है। कश्मीर की कानी शॉल, उत्तर प्रदेश की चिकनकारी, जरदोजी, बनारसी सिल्क, गुजरात की पटोला और कच्छ की कढ़ाई, तमिलनाडु की कांजीवरम, ओडिशा की संबलपुरी, और महाराष्ट्र की पैठनी, ऐसी अनेक परंपराएं अपने आप में बहुत अनूठी हैं। मैंने अभी भारत की पूरी वस्त्र यात्रा को दर्शाती एक्जीबिशन को देखा है। ये एक्जीबिशन दिखाती है कि भारत के टेक्सटाइल सेक्टर का इतिहास कितना गौरवशाली रहा है, उसका सामर्थ्य कितना ज्यादा रहा है।

साथियों,

आज यहां, टेक्सटाइल वैल्यू चेन के अलग-अलग Segments से जुड़े Stakeholders मौजूद हैं। आप भारत के Textiles सेक्टर को भी समझते हैं, हमारी Aspirations और Challenges से भी परिचित हैं। यहां बड़ी संख्या में हमारे बुनकर साथी हैं, कारीगर साथी हैं, जो ज़मीनी स्तर पर इस वैल्यू चेन से जुड़े हैं। कई साथियों का तो इसमें अनेक पीढ़ियों का अनुभव है। आप जानते हैं कि, भारत ने आने वाले 25 साल में विकसित राष्ट्र का संकल्प लिया है। विकसित भारत के चार प्रमुख स्तंभ हैं- गरीब, युवा, किसान और महिलाएं। और भारत का Textile Sector इन चारों यानी गरीब, युवा, किसान और महिलाएं, सभी से जुड़ा हुआ है। इसलिए, भारत टेक्स जैसे इस आयोजन का महत्व बहुत बढ़ जाता है।

साथियों,

विकसित भारत के निर्माण में Textile Sector का योगदान और बढ़ाने के लिए हम बहुत विस्तृत दायरे में काम कर रहे हैं। हम Tradition, Technology, Talent और Training पर फोकस कर रहे हैं। हमारी जो पारंपरिक विधाएं हैं, इनको आज के फैशन की डिमांड के हिसाब से कैसे अपडेट किया जाए, डिजाइन को कैसे नयापन दिया जाए, इस पर बल दिया जा रहा है। हम Textile Value Chain के सभी Elements को फाइव F के सूत्र से एक दूसरे से जोड़ रहे हैं। और मुझे लगता है शायद जब तक आपका ये कार्यक्रम चलेगा पचासों लोग होंगे जो आपको बार-बार फाइव F सुनाते रहेंगे। इसलिए भी आपको कंठस्थ हो जाएगा। और वहां जाएंगे एग्‍जीबिशन में तो वहां भी बार-बार फाइव F आपके सामने आएगा। ये फाइव F की यात्रा Farm, Fibre, Fabric, Fashion और Foreign, एक प्रकार से पूरा दृश्य हमारे सामने है। फाइव F के इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए हम किसान, बुनकरों, MSMEs, एक्सपोर्टर्स सभी को प्रोत्साहित कर रहे हैं। MSME’s को आगे बढ़ाने के लिए हमने कई अहम कदम उठाए हैं। हमने इंवेस्टमेंट और टर्नओवर के लिहाज से MSME’s की परिभाषा में भी संशोधन किया है। इससे उद्योगों का स्केल और साइज बड़ा होने के बाद भी उन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ मिल सकेगा। हमने कारीगरों और बाजार के बीच की दूरी कम की है। देश में Direct Sales, Exhibitions और Online Platforms जैसी सुविधाएं बढ़ाई गई हैं।

साथियों,

आने वाले समय में देश के अलग-अलग राज्यों में 7 PM मित्र पार्क बनाए जा रहे हैं। ये योजना आप जैसे साथियों के लिए कितने बड़े अवसर लेकर आने वाली है, इसकी कल्पना आप कर सकते हैं। कोशिश यही है कि वैल्यू चेन से जुड़ा पूरा इकोसिस्टम एक ही जगह पर तैयार हो, जहां एक मॉडर्न, इंटीग्रेटेड और वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर को Plug and Play Facilities के साथ आपको उपलब्ध कराया जाए। इससे ना सिर्फ Scale of Operations बढ़ेंगे, बल्कि Logistics Cost भी कम हो जाएगा।

साथियों,

आप जानते हैं कि Textile और Apparel Sector देश में बड़ी संख्या में रोजगार देता है। इसमें Farm से लेकर MSME’s और Export तक अनेक रोजगार बनते हैं। इस पूरे सेक्टर में रूरल इकोनॉमी से जुड़े लोगों और महिलाओं की भी बड़ी भागीदारी होती है। परिधान बनाने वाले हर 10 साथियों में से 7 महिलाएं हैं और Handloom में तो इससे भी ज्यादा हैं। टेक्सटाइल के अलावा खादी ने भी, हमारे भारत की महिलाओं को नई शक्ति दी है। मैं ये कह सकता हूं कि बीते 10 वर्षों में हमने जो भी प्रयास किए, उसने खादी को विकास और रोजगार दोनों का साधन बनाया है। यानी खादी, गांवों में लाखों रोजगार बना रही है। बीते 10 वर्षों में सरकार ने गरीब कल्याण की जो योजनाएं बनाई हैं...बीते 10 वर्षों में देश में जो इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट हुए हैं, इससे हमारे Textile Sector को काफी लाभ मिला है।

साथियों,

आज भारत, दुनिया में कॉटन, जूट और सिल्क के बड़े उत्पादकों में से एक बना है। लाखों किसान इस काम में जुटे हैं। सरकार आज लाखों कॉटन किसानों को सपोर्ट कर रही है, उनसे लाखों क्विंटल कॉटन खरीद रही है। सरकार ने जो कस्तूरी कॉटन लॉन्च किया है, वो भारत की अपनी पहचान बनाने की ओर एक बड़ा कदम होने वाला है। हम आज जूट किसानों और जूट श्रमिकों के लिए भी काम कर रहे हैं। हम सिल्क सेक्टर के लिए भी लगातार नए Initiative ले रहे हैं। 4A ग्रेड सिल्क के उत्पादन में हम आत्मनिर्भर कैसे हों, इसके लिए प्रयास चल रहा है। परंपरा के साथ-साथ हम ऐसे सेक्टर्स को भी प्रमोट कर रहे हैं, जिसमें भारत को अभी बहुत कुछ हासिल करना बाकी है। जैसे Technical Textiles के क्षेत्र में हम तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। आप जानते हैं कि Technical Textiles Segment का पोटेंशियल कितना अधिक है। इसलिए अपनी कैपेसिटी बढ़ाने के लिए हमने National Technical Textiles Mission को लॉन्च किया है। हम चाहते हैं कि इसके लिए मशीनरी और उपकरण का विकास भी भारत में हो। इसके लिए ज़रूरी गाइडलाइन्स भी जारी की गई हैं। Technical Textiles में स्टार्टअप्स के लिए बहुत स्कोप है। इसके लिए भी गाइडलाइन बनाई गई है।

साथियों,

आज की दुनिया में जहां एक तरफ Technology और Mechanization है, तो दूसरी तरफ Uniqueness और Authenticity की Demand भी है। और दोनों के साथ रहने के लिए पर्याप्त जगह भी है। जब भी Handmade Design या Textiles की बात आती है, अनेकों बार हमारे कलाकारों का बनाया कुछ ना कुछ, दूसरे से कुछ अलग दिखता है। आज जब सारी दुनिया में लोग एक दूसरे से अलग दिखना चाहते हैं, तो ऐसी कला की डिमांड भी और बढ़ जाती है। इसलिए आज भारत में हम स्केल के साथ ही इस सेक्टर में स्किल पर भी बहुत जोर दे रहे हैं। देश में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी यानी NIFT का नेटवर्क 19 संस्थानों तक पहुंच चुका है। इन संस्थानों से आसपास के बुनकरों और कारीगरों को भी जोड़ा जा रहा है। उनके लिए समय-समय पर विशेष प्रोग्राम रखे जा रहे हैं, ताकि उन्हें नए ट्रेंड, नई टेक्नॉलॉजी की जानकारी मिल सके। स्किल डेवलपमेंट और कैपेसिटी बिल्डिंग के लिए हम ‘समर्थ योजना’ चला रहे हैं। इसके तहत ढाई लाख से अधिक व्यक्तियों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। इनमें से अधिकर महिलाएं हैं। और इनमें से पौने 2 लाख से ज्यादा साथी इंडस्ट्री में प्लेस भी हो चुके हैं।

साथियों,

बीते दशक में हमने एक और नया आयाम जोड़ा है। ये आयाम है, वोकल फॉर लोकल का। आज पूरे देश में वोकल फॉर लोकल और लोकल टू ग्लोबल का जन-आंदोलन चल रहा है। आप सभी तो अच्‍छी तरह जानते हैं कि छोटे-छोटे बुनकरों, छोटे-छोटे कारीगरों, लघु और कुटीर उद्योगों के पास राष्ट्रीय स्तर पर Advertisement के लिए, Marketing के लिए बजट नहीं होता है और हो भी नहीं सकता है। इसलिए इनका प्रचार आप करें ना करें मोदी कर रहा है। जिनकी गारंटी कोई नहीं लेता उनकी गारंटी मोदी लेता है। हमारे इन साथियों के लिए भी सरकार देशभर में Exhibition से जुड़ी व्यवस्थाएं बना रही है।

साथियों,

ये स्थिर और गुणकारी नीतियां बनाने वाली सरकार का सकारात्मक प्रभाव, इस सेक्टर की ग्रोथ पर साफ देखा जा सकता है। 2014 में भारत के टेक्सटाइल मार्केट का वैल्यूएशन 7 लाख करोड़ रुपए से भी कम था। आज ये 12 लाख करोड़ रुपए को भी पार कर गया है। पिछले 10 साल में भारत में yarn production, fabric production और apparel production, तीनों में ही 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। सरकार का जोर इस सेक्टर में क्वालिटी कंट्रोल पर भी है। 2014 के बाद से ऐसे 380 के करीब BIS standards बनाए गए हैं जो टेक्सटाइल सेक्टर की गुणवत्ता को सुधारने में मदद कर रहे हैं। सरकार के ऐसे प्रयासों की वजह से ही इस सेक्टर में विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ रहा है। 2014 के पहले के 10 वर्ष में जितना FDI आया था, उससे लगभग दोगुना FDI इस सेक्टर में हमारी सरकार के 10 साल में आय़ा है।

साथियों,

भारत के टेक्सटाइल सेक्टर की ताकत को हमने देखा है और इससे मुझे बहुत अपेक्षाएं हैं। आप सभी क्या कुछ कर सकते हैं, ये हमने कोविड के दौरान अनुभव किया है। जब देश और दुनिया पीपीई किट्स और मास्क की भारी कमी से जूझ रही थी, तो भारत का टेक्सटाइल सेक्टर आगे आया। सरकार और टेक्सटाइल सेक्टर ने मिलकर पूरी सप्लाई चेन को एकुजट कर दिया। रिकॉर्ड समय में देश ही नहीं, बल्कि दुनिया तक पर्याप्त मास्क और किट पहुंचाए। मुझे विश्वास है कि हम भारत को ग्लोबल एक्सपोर्ट हब बनाने के अपने लक्ष्य को जल्द से जल्द हासिल कर सकते हैं। आपको जो भी सहयोग चाहिए, सरकार आपकी पूरी मदद करेगी। इसमें तो ताली बजनी चाहिए भाई। लेकिन अभी भी मुझे लगता है‍ कि आपके जो भी एसोसिएशंस हैं वो भी बिखरे हुए हैं। उनको भी पूरी तरह एक जोड़ करके कैसे बनाया जा सके। वरना क्‍या होता है कि एक सेक्‍टर का लोग आता है वो अपनी मुसीबतें बता करके, रोना रो करके सरकार से ऋण ले करके भाग जाता है। फिर दूसरा आता है, वो उससे बिल्‍कुल contradictory होता है, वो कहता है ये चाहिए। तो इतनी conflict वाली चीजें आप लोगों की तरफ से आती हैं, तो एक को मदद करती हैं तो दूसरे को घाटे में डाल देती हैं। अगर आप सब मिल करके कुछ चीजें ले करके आते हैं तो चीजों को comprehensive way में आगे बढ़ाया जा सकता है। और मैं चाहता हूं कि आप इस तरफ प्रोत्साहन दें।

दूसरा, दुनिया में जो बदलाव आ रहे हैं, हम उन बदलावों में सदियों से आगे हैं। जैसे पूरा विश्व holistic health care, holistic lifestyle, वो खाने में भी back to basic पर जा रहा है। वो रहन-सहन में back to basic पर जा रहा है। और इसलिए वो कपड़ों में भी back to basic की तरफ जा रहा है। वो पचास बार सोचता है कि मैं जो कपड़े पहनूंगा उस पर किस केमिकल वाला कलर है, उसको टेंशन दे देता है। वो चाहता है क्‍या नेचुरल कलर का बना हुआ कपड़ा मिल सकता है क्‍या? उसको लगता है नेचुरल कलर में बनाया गया कपास और उसमें से बनाया हुआ धागा, कोई भी प्रकार का कलर लगाए हुए मुझे मिल सकता है क्‍या? यानी दुनिया बहुत अलग मार्केट है, अलग मांग है। हम क्‍या करते हैं कि भारत स्‍वयं में इतना बड़ा मार्केट है, भले ही लोग कपड़ों का साइज छोटा-मोटा करते रहते हों, लेकिन फिर भी मार्केट तो बड़ा है ही है। दो-तीन इंच कम हो जाएगा। और इसलिए बाहर देखने की इच्‍छा ही नहीं होती है। ये साइकी जो हैं ना, भारत में इतना बड़ा मार्केट है, मुझे क्‍या जरूरत है। मेहरबानी करके आज की इस एग्जीबिशन के बाद उससे बाहर निकलिए।

क्‍या आपमें से किसी ने स्‍टडी किया है, अफ्रीकन मार्केट में किस प्रकार का कपड़ा चाहिए, किस प्रकार का colour combination चाहिए, किस प्रकार का साइज चाहिए? हम नहीं करते हैं। वहां से किसी ने मंगवाया, ऑर्डर दे दिया, कर दिया, और बस। मुझे याद है अफ्रीका के लोगों को जो कपड़े पहनते हैं तो थोड़ी चौड़ाई कपड़े की ज्‍यादा चाहिए। हमारे यहां जो चौड़ाई होती है वो हमारे लोगों के साइज पर होती है। तो हमारा तो कुरता बन जाएगा लेकिन उनका नहीं बनता है। तो हमारे सुरेंद्रनगर के एक व्‍यक्ति ने उस पर कोशिश की। तो उसने, वो हाथ से बनाता था कपड़ा, बुनकर था...उसने अपना साइज बढ़ा दिया। और बड़े width वाला उसने कपड़ा बनाना शुरू किया। और उस पेंटिंग जो उन लोगों को जैसे रंग, भांति-भांति के कलर चाहिए थे, उसने दिया। आपको हैरानी होगी अफ्रीका के मार्केट में उसका कपड़ा बहुत प्रसिद्ध हुआ क्योंकि बीच में सिलाई की जरूरत नहीं थी। एक जगह पर सिर्फ सिलाई कर दी, उसके कपड़े बन जाते थे। अब ये थोड़ी रिसर्च करें।

मैं अभी एक एग्जीबिशन देख रहा था, मैंने कहा दुनिया में, पूरे यूरोप में जिप्सी समाज बिखरा हुआ है। आप अगर जिप्‍सी के लोग जो कपड़े पहनते हैं, उसको बारीकी से देखेंगे तो हमारे यहां natural course में जो पहाड़ों में पहने जाने वाले कपड़े हैं या हमारे यहां राजस्थान के, गुजरात के सीमावर्ती इलाकों में जो, करीब-करीब उससे मिलते-जुलते हैं। उनकी कलर की choice भी वैसी ही है। क्‍या कभी किसी ने कोशिश करके, जिप्‍सी लोगों की requirement के अनुसार कपड़े बना करके बहुत बड़े मार्केट को capture करने के लिए सोचा है क्‍या? ये मैं बिना royalty advice दे रहा हूं। हमें सोचना चाहिए, दुनिया को इन चीजों की जरूरत है। क्‍या हमारे यहां, अब मैंने देखा है‍ कि इसमें केमिकल वाले नहीं हैं इस पूरे एग्‍जीबिशन में। मुझे बताइए कोई भी कपड़ा केमिकल वालों की मदद के बिना बाजार में काम आएगा क्‍या? लेकिन आपकी सप्‍लाई चेन में केमिकल वाला नहीं है। अच्‍छा होता वो भी होता, और कम्‍पीटीशन हो‍ कि नेचुरल कलर कौन provide करता है। वेजिटेबल से बने हुए कलर कौन provide करता है। और हम दुनिया को उसका मार्केट दें। हमारी खादी में दुनिया में जाने की ताकत पड़ी है जी। लेकिन हम आजादी के आंदोलन या नेताजी लोगों के चुनाव की ड्रेस को, वहीं तक सीमित कर दिया खादी को। मुझे याद है 2003 में मैंने एक बहुत बड़ा पराक्रम किया था। पराक्रम मैं कह रहा हूं क्‍योंकि जिन लोगों के बीच में रहा हूं और जिस प्‍लेटफॉर्म पर किया हूं इसको पराक्रम ही कहा जाएगा।

2003 में पोरबंदर में, 2 अक्‍तूबर को मैंने फैशन शो किया। अब हमारे देश में आज भी कहीं फैशन शो करो तो चार-छह लोग झंडा ले करके विरोध करने के लिए आ जाते हैं। 2003 में क्‍या हाल होगा, आप जरा कल्‍पना कर सकते हैं। और मेरे गुजरात के एनआईडी के जो लड़के थे उनको थोड़ा समझाया। मैंने कहा मुझे 2 अक्‍तूबर को ये खादी जो नेताओं का कपड़ा है ना, उसमें से बाहर निकालना है। ये सामान्‍य जनता के कपड़ों में मुझे बदलाव लाना है। थोड़ी मेहनत की और मैंने गांधी एंड विनोबा जी के साथ काम करने वाले सारे Gandhian लोगों को बुलाया। मैंने कहा, बैठो यहां, देखो। और ''वैष्‍णव जन को ते ने रे कहिए'' वो गीत चलता था, ऊपर फेशन शो चलता था। और सारे यंग बच्‍चे आधुनिक खादी के वस्‍त्र पहन करके आए तो मुझे भाव जी विनोबा जी, एक साथी थे भावजी, वो अब तो नहीं रहे, वो मेरे साथ बैठे। बोले हमने तो कभी खादी को ये सोचा ही नहीं पहलू। यही सच्‍चा रास्‍ता है वो। और आप देखिए, नए-नए प्रयोगों का परिणाम क्‍या है खादी आज कहां पहुंच गया है। ये अभी तक ग्‍लोबल तो बना नहीं है, अभी तो हमारे देश में गाड़ी चल रही है। ऐसी बहुत सी चीजें हैं साथियो, जिस पर हमें सोचना चाहिए। दूसरा, क्‍या भारत जैसे देश में जो टैक्‍सटाइल के इतिहास में दुनिया में उसके footprint बहुत ताकतवर हैं। ढाका की मलमल की हम चर्चा करते थे जी। अंगूठी से पूरा थान निकल जाता था, ऐसा यहां समझाते थे। अब क्‍या, क्‍या कथा ही सुनाते रहेंगे क्‍या। क्‍या हम टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी से जुड़े हुए मशीन मैन्‍युफैक्‍चरिंग, उसके लिए रिसर्च; हमारे आईआईटी के स्टूडेंट्स, हमारे इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स, ईवन काफी अनुभवी लोग, बहुत सी चीजें करते हैं।

आपके सामने डायमंड इंडस्ट्री का उदाहरण है। डायमेंड क्षेत्र के लोगों ने जो-जो मशीन requirement थी, उसकी सारी चीजें यहां डिवेलप की हैं। और डायमंड इंडस्‍ट्री का काम, कटिंग एंड पॉलिशिंग के काम में भारत में बनी हुई मशीन काम में आ रही है। क्‍या टेक्‍सटाइल के क्षेत्र में हम उस प्रकार से मिशन मोड पर और एक आपका एसोसिएशन बड़ा कम्‍पीटीशन करे। कोई जो नया मशीन, कम बिजली उपयोग करने वाला, ज्यादा प्रॉडक्‍शन करने वाला, वैरायटी की चीजें बनाने वाला, मशीन लेकर आएगा, उसको इतना बड़ा इनाम देंगे। क्या नहीं कर सकते क्या आप लोग?

पूरी तरह तरह नए सिरे से सोचो दोस्तों। आज हम सोचें कि दुनिया में हमारे मार्केट के लिए उनकी choice का हम पूरा सर्वे करें, स्‍टडी करें, रिपोर्ट ज्‍वाइन करें, कि अफ्रीकन देशों में इस प्रकार के टेक्‍सटाइल की जरूरत है। यूरोपीयन कंट्रीज को इस प्रकार के टेक्‍सटाइल की जरूरत है। जो लोग health conscious हैं उनको इस प्रकार की जरूरत है। हम क्यों न बनाएं? क्या दुनिया में मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े हुए लोगों को, हॉस्पिटल, ऑपरेशन थिएटर वगैरह जो कपड़े पहनने हों, बहुत बड़ी, यानी जो एक बार उपयोग करो फेंक देना होता है। और उसका मार्केट बहुत बड़ा है। क्या कभी दुनिया को कभी हमने brand बनाई कि भारत से बनी हुई ये चीज assured है कि आपको हॉस्पिटल में कितना ही बड़ा ऑपरेशन करना है, ये पहनकर जाइए, पेशेंट को कभी कोई तकलीफ नहीं होगी, क्या हम इतना brand बना सकते हैं? यानी ग्‍लोबल ही सोचिए साथियों। भारत का ये इतना बड़ा क्षेत्र है और भारत के करोड़ों लोगों का रोजगार इससे जुड़ा हुआ है। हम कृपा करके दुनिया से आए हुए फैशन को फॉलो न करें, हम दुनिया को फैशन में भी लीड करें। और हम फैशन की दुनिया में पुराने लोग हैं नए लोग नहीं हैं जी। आप कभी कोर्णाक के सूर्य मंदिर जाएंगे। सैकड़ों साल पहले उस कोर्णाक सूर्य मंदिर की जो मूर्तियां हैं, उन मूर्तियों ने जो कपड़े पहने हैं, आज के मॉडर्न युग में भी जो बहुत मॉडर्न कपड़े लगते हैं, वो सैंकड़ों साल पहले पत्थर पर उकेरे गए हैं।

आज जो हमारी बहनें पर्स ले करके घूमती हैं ना, लगता है बहुत बड़ी फैशनेबल हैं, सैंकड़ों साल पहले कोणार्क के पत्थरों की मूर्तियों में वो आपको दिखाई देगा। हमारे यहां अलग-अलग इलाके की पगड़ी, क्‍यों आई होगी भाई। हमारे यहां कभी कोई महिला वस्‍त्र पहनते समय अपने पैर का एक सें‍टीमीटर भी हिस्‍सा कोई देख ले, पसंद नहीं करती थी। उसी देश में कुछ लोगों का कारोबार ऐसा होता था कि उनको जमीन से छह-आठ इंच ऊंचे कपड़े पहनना जरूरी था तो उनके लिए वो फैशन चलता था हमारे देश में। जो पशुपालन का काम करता था उनके कपड़े देख लीजिए। मतलब भारत में profession के अनुकूल कपड़े, उस पर सैंकड़ों सालों से काम हुआ है। अगर रेगिस्‍तान में है तो उसके जूते कैसे होंगे, शहरी जीवन है तो जूते कैसे होंगे, खेत में काम करने वाला है तो जूते कैसे होंगे, पहाड़ में काम करने वाला है तो जूते कैसे होंगे, आपको सैंकड़ों साल पुराने डिजाइन आज भी इस देश में उपलब्‍ध हैं। लेकिन हम, हमारे इतने बड़े क्षेत्र पर जितनी बारीकी से सोचना चाहिए हम नहीं सोच रहे हैं।

और साथियों,

ये काम सरकार को कतई नहीं करना चाहिए वरना गुड़ का गोबर करने में हम लोग एक्‍सपर्ट हैं। सरकार जितनी बार लोगों की जिंदगी में से सरकार को मैं निकाल देना चाहता हूं। खास करके मध्‍यम वर्ग परिवार की जिंदगी में सरकार टांग अड़ाए, मुझे मंजूर ही नहीं है। हर एक दिन हर कदम पर सरकार, क्‍या जरूरत है? हम ऐसे समाज की रचना करें जहां सरकार का दखल कम से कम हो। हां, गरीब को जरूरत है खड़े रहना चाहिए। उसको पढ़ना है तो पढ़ाना चाहिए। उसको अस्‍पताल की जरूरत है तो देना चाहिए। बाकियों के जो सरकार की टांग अड़ाने वाली आदत है ना, मैं उसके खिलाफ दस साल से लड़ाई लड़ रहा हूं और आने वाले पांच साल में तो पक्‍का करके रहूंगा।

मैं चुनाव की बात नहीं कर रहा हूं भाई। ये मेरा कहने का तात्पर्य है कि आप लोग, हां सरकार एक catalyst एजेंट के रूप में है। आपके जो सपने हैं उनको पूरा करने में जो-जो रुकावटें हैं दूर करने का काम करेगी। उसके लिए हम बैठे हैं, हम करेंगे। लेकिन मैं आपको निमंत्रण देता हूं जी, बहुत हिम्‍मत के साथ आइए, नए विज़न के साथ आइए। पूरी दुनिया को ध्‍यान में रख करके आइए। हिंदुस्तान में माल बिक नहीं रहा है, पहले 100 करोड़ का बेचा, एक बार 200 करोड़ का बेचा, ये इस चक्‍कर में मत पड़िए जी, पहले एक्‍सपोर्ट कितना होता था, अब एक्‍सपोर्ट कितना हो रहा है। पहले सौ देश में जाता था अब 150 देश में कैसे जा रहा है, पहले दुनिया के 200 शहर में जाता था, अब दुनिया के 500 शहर में कैसे जा रहा है, पहले दुनिया के इस प्रकार के मार्केट में जा रहा था अब दुनिया के छह नए मार्केटों को हमने कैसे capture किया, इस पर सोचिए। और आप जो एक्‍सपोर्ट करोगे तो हिंदुस्‍तान के लोग कपड़े के बिना रह जाएंगे ऐसा नहीं होगा, चिंता मत करो। यहां के लोगों को जो चाहिए वो कपड़े मिल ही जाएंगे।

चलिए, बहुत-बहुत धन्यवाद।

धन्यवाद !

 

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