Releases commemorative stamp in honor of Late Shri Arvind Bhai Mafatlal
“Coming to Chitrakoot is a matter of immense happiness for me”
“Glory and importance of Chitrakoot remains eternal by the work of saints”
“Our nation is the land of several greats, who transcend their individual selves and remain committed to the greater good”
“Sacrifice is the most effective way to conserve one’s success or wealth”
“As I came to know Arvind Bhai’s work and personality I developed an emotional connection for his mission”
“Today, the country is undertaking holistic initiatives for the betterment of tribal communities”

जय गुरुदेव! मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्रीमान मंगूभाई पटेल, मुख्यमंत्री भाई शिवराज जी, सद्गुरु सेवासंघ ट्रस्ट के सभी सदस्यगण, देवियों और सज्जनों!

आज चित्रकूट की इस पावन पुण्यभूमि पर मुझे पुन: आने का अवसर मिला है। ये वो अलौकिक क्षेत्र है, जिसके बारे में हमारे संतों ने कहा है-चित्रकूट सब दिन बसत, प्रभु सिय लखन समेत! अर्थात्, चित्रकूट में प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ नित्य निवास करते हैं। यहां आने से पहले अभी मुझे श्री रघुबीर मंदिर और श्रीराम जानकी मंदिर में दर्शन का सौभाग्य भी मिला और हेलीकॉप्टर से ही मैंने कामदगिरि पर्वत को भी प्रणाम किया। मैं पूज्य रणछोड़दास जी और अरविंद भाई की समाधि पर पुष्प अर्पित करने गया था। प्रभु श्रीराम जानकी के दर्शन, संतों का मार्गदर्शन, और संस्कृत महाविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा वेदमंत्रों का ये अद्भुत गायन, इस अनुभव को, इस अनुभूति को वाणी से व्यक्त करना कठिन है। मानव सेवा के महान यज्ञ का हिस्सा बनाने का और उसके लिए श्री सद्गुरु सेवासंघ का भी आज मैं सभी पीड़ित, शोषित, गरीब, आदिवासियों की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। मुझे विश्वास है कि जानकीकुंड चिकित्सालय के जिस न्यू विंग का आज लोकार्पण हुआ है, इससे लाखों मरीजों को नया जीवन मिलेगा। आने वाले समय में, सद्गुरु मेडिसिटी में गरीबों की सेवा के इस अनुष्ठान को नया विस्तार मिलेगा। आज इस अवसर पर अरविंद भाई की स्मृति में भारत सरकार ने विशेष स्टैम्प भी रिलीज़ किया है। ये पल अपने आप में हम सबके लिए गौरव का पल है, संतोष का पल है, मैं आप सबको इसके लिए बधाई देता हूँ।

साथियों,

कोई भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में जो उत्तम काम करता है, उसकी सराहना तो होती है। समकालीन लोग सराहना भी करते हैं लेकिन, जब साधना असाधारण होती है, तो उसके जीवन के बाद भी कार्यों का विस्तार होता रहता है। मुझे खुशी है कि अरविंद भाई का परिवार उनकी परमार्थिक पूंजी को लगातार समृद्ध कर रहा है। खासकर, भाई ‘विशद’ बहन ‘रूपल’ जिस तरह उनके सेवा अनुष्ठानों को नई ऊर्जा के साथ ऊंचाई दे रहे हैं, मैं इसके लिए उन्हें और परिवार के सभी सदस्यों को विशेष तौर पर बधाई देता हूँ। अब अरविंद भाई तो उद्योग जगत के व्यक्ति थे। मुंबई का हो, गुजरात का हो, पूरा बड़ा उनका औद्योगिक कॉरपोरेट वर्ल्ड में बहुत बड़ा प्रतिभा, प्रतिष्टा और विशद चाहते तो ये जन्म शताब्दी का कार्यक्रम मुंबई में कर सकते थे। बड़ी आन बान शान से होता, लेकिन सदगुरु के प्रति समर्पण देखिए कि जैसे अरविंद भाई ने अपना जीवन यहीं त्याग किया था, शताब्दी के लिए भी इस जगह को चुना गया, और इसके लिए संस्कार भी होते हैं, सोच भी होती है, समर्पण भी होता है, तब जाकर होता है। पूज्य संतगण यहां बहुत बड़ी तादाद में हमें आशीर्वाद देने आए हैं। यहां अनेक परिवारजन भी बैठे हैं। चित्रकूट के बारे में कहा गया है- कामद भे गिरि राम प्रसादा। अवलोकत अपहरत विषादा॥ अर्थात्, चित्रकूट के पर्वत, कामदगिरि, भगवान राम के आशीर्वाद से सारे कष्टों और परेशानियों को हरने वाले हैं। चित्रकूट की ये महिमा यहाँ के संतों और ऋषियों के माध्यम से ही अक्षुण्ण बनी हुई है। और, पूज्य श्री रणछोड़दास जी ऐसे ही महान संत थे। उनके निष्काम कर्मयोग ने मुझ जैसे लक्षावधी लोगों को हमेशा प्रेरित किया है। और जैसा सब ने उल्लेख किया, उनका ध्येय और बड़ा सरल शब्दों में भूखे को भोजन, वस्त्रहीन को वस्त्र, दृष्टिहीन को दृष्टि। इसी सेवा मंत्र के साथ पूज्य गुरुदेव पहली बार 1945 में चित्रकूट आए थे, और 1950 में उन्होंने यहाँ पहले नेत्र यज्ञ का आयोजन कराया था। इसमें सैकड़ों मरीजों की सर्जरी हुई थी, उन्हें नई रोशनी मिली थी।

आज के समय हमें ये बात सामान्य लगती होगी। लेकिन, 7 दशक पहले, ये स्थान लगभग पूरी तरह से वनक्षेत्र था। यहाँ न सड़कों की सुविधा थी, न बिजली थी, न जरूरी संसाधन थे। उस समय इस वनक्षेत्र में ऐसे बड़े संकल्प लेने के लिए कितना साहस, कितना आत्मबल और सेवा भाव की क्या पराकाष्ठा होगी तब ये संभव होगा। लेकिन जहां पूज्य रणछोड़दास जी जैसे संत की साधना होती है, वहाँ संकल्पों का सृजन ही सिद्धि के लिए होता है। आज इस तपोभूमि पर हम सेवा के ये जितने बड़े-बड़े प्रकल्प देख रहे हैं, वो उसी ऋषि के संकल्प का परिणाम हैं। उन्होंने यहाँ श्रीराम संस्कृत विद्यालय की स्थापना की। कुछ ही वर्ष बाद श्रीसद्गुरु सेवासंघ ट्रस्ट का गठन किया। जहां कहीं भी विपदा आती थी, पूज्य गुरुदेव उसके सामने ढाल बनकर खड़े हो जाते थे। भूकंप हो, बाढ़ हो, सूखे से ग्रस्त इलाकों में उनके प्रयासों से, उनके आशीर्वाद से कितने ही गरीबों को नया जीवन मिला। यही हमारे देश की विशेषता है, जो स्व से ऊपर उठकर समष्टि के लिए समर्पित रहने वाले महात्माओं को जन्म देती है।

मेरे परिवारजनों,

संतों का स्वभाव होता है कि जो उनका संग पाता है, उनका मार्गदर्शन पाता है, वो खुद संत बन जाता है। अरविंद भाई का पूरा जीवन इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है। अरविंद जी वेशभूषा से भले ही एक बिलकुल सामान्य जीवन जीते थे। सामान्य व्यक्ति दिखते थे, लेकिन भीतर से उनका जीवन एक तपे हुये संत की तरह था। पूज्य रणछोड़दास जी की अरविंद भाई से, बिहार में आए भीषण अकाल के दौरान मुलाकात हुई। संत के संकल्प और सेवा की सामर्थ्य कैसे, इस संगम के उससे सिद्धि के कैसे-कैसे आयाम स्थापित हुये, ये आज हमारे सामने है।

आज जब हम अरविंद भाई की जन्मशताब्दी मना रहे हैं, तो ये जरूरी है कि हम उनकी प्रेरणाओं को आत्मसात करें। उन्होंने जो भी ज़िम्मेदारी उठाई, उसे शत-प्रतिशत निष्ठा से पूरा किया। उन्होंने इतना बड़ा औद्योगिक साम्राज्य खड़ा किया। मफ़तलाल ग्रुप को एक नई ऊंचाई दी। ये अरविंद भाई ही थे, जिन्होंने देश का पहला पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स स्थापित किया था। आज देश की अर्थव्यवस्था में और सामान्य मानवी के जीवन में अहम भूमिका निभाने वाली कई कंपनियों की नींव में उन्हीं की दृष्टि, उन्हीं की सोच, उन्ही का परिश्रम है। यहाँ तक कि, कृषि के क्षेत्र में भी उनके काम की काफी सराहना होती है। भारतीय एग्रो-इंडस्ट्रीज़ फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष के तौर पर उनके काम को लोग आज भी याद करते हैं। भारत की टेक्सटाइल जैसी पारंपरिक इंडस्ट्री का गौरव लौटाने में भी उनकी एक बहुत बड़ी भूमिका थी। देश के बड़े-बड़े बैंकों को, बड़ी-बड़ी संस्थाओं को भी उन्होंने नेतृत्व दिया। उनके काम ने, उनके परिश्रम और प्रतिभा ने औद्योगिक जगत के साथ-साथ समाज पर एक अलग छाप छोड़ी है। देश और दुनिया के कितने ही बड़े अवार्ड और सम्मान अरविंद भाई को मिले। द लायंस ह्युमेनीटेरियन अवार्ड, सिटिज़न ऑफ बॉम्बे अवार्ड, सर जहाँगीर गांधी गोल्ड मेडल फॉर इंडस्ट्रियल पीस, ऐसे अनेकों सम्मान देश के लिए अरविंद भाई के योगदान के प्रतीक हैं।

मेरे परिवारजनों,

हमारे यहाँ कहा जाता है- उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम्॥ अर्थात्, हमारी सफलता का,

हमारे कमाए धन का सबसे प्रभावी संरक्षण त्याग से ही होता है। अरविंद भाई ने इस विचार को मिशन बनाकर आजीवन काम किया। आज आपके ग्रुप के द्वारा, श्री सद्गुरु सेवा ट्रस्ट, मफ़तलाल फ़ाउंडेशन, रघुबीर मंदिर ट्रस्ट, श्री रामदास हनुमानजी ट्रस्ट, जैसी कितनी ही संस्थाएं काम कर रही हैं। जेजे ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, ब्लाइंड पीपल एसोसिएशन, चारुतर आरोग्य मण्डल जैसे समूह और संस्थान सेवा के अनुष्ठान को आगे बढ़ा रहे हैं। आप देखिए, रघुबीर मंदिर अन्नक्षेत्र में लाखों लोगों की अन्नसेवा, लाखों संतों को यहाँ मासिक राशन किट की व्यवस्था, गुरुकुल में हजारों बच्चों की शिक्षा-दीक्षा, जानकीकुंड के चिकित्सालय में लाखों मरीजों का इलाज, ये कोई सामान्य प्रयास नहीं है। ये अपने आप में भारत की उस आत्मशक्ति का सबूत है, जो हमें निष्काम कर्म की ऊर्जा देती है, जो सेवा को ही साधना मानकर सिद्धि के अनुपम अनुष्ठान करती है। आपके ट्रस्ट द्वारा यहां ग्रामीण महिलाओं को ग्रामीण उद्योग की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। ये women-led development के देश के प्रयासों को गति देने में मदद कर रहा है।

साथियों

मुझे ये जानकर खुशी होती है कि सद्गुरु नेत्र चिकित्सालय आज देश-दुनिया के बेहतर eye hospitals में अपनी जगह बना चुका है। कभी ये अस्पताल केवल 12 बेडों के साथ शुरू हुआ। आज यहाँ हर साल करीब 15 लाख रोगियों का इलाज होता है। सद्गुरु नेत्र चिकित्सालय के कामों से मैं इसलिए भी विशेष रूप से परिचित हूँ क्योंकि इसका लाभ मेरी काशी को भी मिला है। काशी में आपके द्वारा चलाए जा रहे “स्वस्थ्य दृष्टि-समृद्ध काशी अभियान” इससे कितने ही बुजुर्गों की सेवा हो रही है। सद्गुरु नेत्र चिकित्सालय द्वारा अब तक बनारस और उसके आसपास के करीब साढ़े 6 लाख लोगों की डोर-टु-डोर स्क्रीनिंग हुई है! 90 हजार से ज्यादा मरीजों को स्क्रीनिंग के बाद कैंप के लिए रिफ़र भी किया गया। बड़ी संख्या में मरीजों की सर्जरी भी हुई है। कुछ समय पहले मुझे इस अभियान के लाभार्थियों से काशी में मिलने का भी अवसर मिला था। मैं मेरी काशी के उन सभी लोगों की तरफ से ट्रस्ट और सद्गुरु नेत्र चिकित्सा और सभी डॉक्टर्स और उनके साथियों का, आज जब आपके बीच आया हूं, मैं विशेष रूप से आप सबका आभार व्यक्त करता हूं।

मेरे परिवारजनों,

संसाधन सेवा की आवश्यकता है, लेकिन समर्पण उसकी प्राथमिकता है। अरविंद भाई की सबसे खास बात यही थी कि वो विषम से विषम परिस्थितियों में भी खुद जमीन पर उतरकर काम करते थे। राजकोट हो, अमदाबाद हो, मैंने गुजरात के कोने-कोने में उनका काम देखा है। मुझे याद है, मेरी आयु बहुत छोटी थी। सदगुरू जी के दर्शन करने का तो मुझे सौभाग्य नहीं मिला, लेकिन अरविंद भाई का संबंध मेरा रहा। मैं पहली बार अरविंद भाई को मिला कहां, तो गुजरात के साबरकांठा जिले के आदिवासी क्षेत्र भिलौड़ा, बड़ा भयंकर अकाल था और हमारे एक डॉक्टर मणिकर जी थे जिनका अरविंद भाई से अच्छा परिचय था। और मैं वहां उस आदिवासी भाई-बहनों का अकाल पीड़ितों की सेवा में काम करता था। इतनी भयंकर गर्मी उस क्षेत्र में, अरविंद भाई वहां आए, पूरा दिन रहे और स्वयं ने जाकर के सेवायग्न में हिस्सा लिया और काम को बढ़ाने के लिए जो आवश्यकता थी उसकी जिम्मेदारी भी ली। मैंने स्वयं उनको गरीबों के प्रति उनकी संवेदना, काम करने की उनकी धग्स खुद ने देखा है, अनुभव किया है। हमारे गुजरात में भी आदिवासी क्षेत्र दाहोद में आदिवासी समाज के कल्याण के लिए जो काम किया है, लोग आज भी याद करते हैं। और आपको हैरानी होगी, हमारे यहां normally गुजरात में भी और बाकी जगह भी जहां खेती होती है उसको खेत बोलते हैं। लेकिन दाहोद के लोग उसे फूलवाड़ी बोलते हैं। क्योंकी सदगुरु ट्रस्ट के माध्यम से वहां के किसानों को खेती करने का नया रूप सिखाया गया, वो फूलों की खेती करने लगे, और फूलवाड़ी के रूप में जाने जाते हैं। और आज उनके फूलों की पैदावार मुंबई जाती है। इस सबमें अरविंद भाई के प्रयासों की बड़ी भूमिका है। मैंने देखा था, उनमें सेवा को लेकर एक अलग ही जुनून था। वो कभी अपने आपको दाता कहलाना पसंद नहीं करते थे, और न ही ये जताने देते थे कि वो किसी के लिए कुछ कर रहे हैं। कोई दूसरा भी अगर उनके साथ सहयोग की इच्छा जताता था तो वो कहते थे कि आपको पहले काम देखने के लिए वहां रूबरू आना पड़ेगा। उस प्रोजेक्ट को कितना ही कष्ट क्यों न हो आपको आना पड़ेगा। और तब जाकर के आप सहयोग के लिए सोचिए उसके पहले नहीं। उनके काम को, उनके व्यक्तिव को जितना मैंने जाना है, उससे मेरे मन में उनके मिशन के लिए एक इमोशनल कनेक्ट बन गया है। इसलिए मैं अपने आपको इस सेवा अभियान के एक समर्थक एक पुरस्कृत करने वाला और एक प्रकार से आपका सहयात्री के रूप में अपने आपको मैं देखता हूं।

मेरे परिवारजनों,

चित्रकूट की धरती हमारे नाना जी देशमुख की भी कर्मस्थली है। अरविंद भाई की तरह ही जनजातीय समाज की सेवा में उनके प्रयास भी हम सबके लिए बड़ी प्रेरणा हैं। आज उन आदर्शों पर चलते हुये देश जनजातीय समाज के कल्याण के लिए पहली बार इतने व्यापक प्रयास कर रहा है। भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिवस पर देश ने जनजातीय गौरव दिवस की परंपरा शुरू की है। आदिवासी समाज के योगदान को, उनकी विरासत को गौरव देने के लिए देश भर में ट्राइबल म्यूज़ियम्स भी बनाए जा रहे हैं। जनजातीय बच्चे अच्छी शिक्षा लेकर देश के विकास में योगदान दें, इसके लिए एकलव्य आवासीय विद्यालय खोले जा रहे हैं। वन सम्पदा कानून जैसे नीतिगत फैसले भी आदिवासी समाज के अधिकारों को संरक्षण देने का माध्यम बने हैं। हमारे इन प्रयासों से आदिवासी समाज को गले लगाने और उसके लिए हम सबके लिए प्रेरणा आदिवासियों को गले लगाने वाले प्रभु श्रीराम का आशीर्वाद भी इसके साथ जुड़ा हुआ है। यही आशीर्वाद समरस और विकसित भारत के लक्ष्य तक हमारा मार्गदर्शन करेगा। मैं फिर एक बार इस शताब्दी के पावन अवसर पर अरविंद भाई की इन महान तपस्या को श्रद्धपूर्वक नमन करता हूं। उनका कार्य, उनका जीवन, हम सबको प्रेरणा देता रहे, सदगुरु के आशीर्वाद हम पर बने रहें, इसी एक भाव के साथ, आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद। जय सियाराम।

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