"खेल में कभी हार नहीं होती, केवल जीत या सीख होती है"
"आपकी सफलता पूरे देश को प्रेरित करती है और नागरिकों में गर्व की भावना भी पैदा करती है"
"आजकल खेलों को भी एक पेशे के रूप में स्वीकार किया जा रहा है"
"किसी दिव्यांग द्वारा खेलों में जीतना केवल खेल में ही प्रेरणा का विषय नहीं है बल्कि यह जीवन में भी प्रेरणा का विषय है"
"पहले का नज़रिया 'सरकार के लिए एथलीट' था, लेकिन अब वह 'एथलीटों के लिए सरकार' है"
"आज सरकार का रवैया एथलीट-केंद्रित है"
“काबिलियत प्लस प्लेटफॉर्म, परफॉर्मेंस के बराबर होता है; जब काबिलियत को ज़रूरी मंच मिल जाता है तो परफॉर्मेंस को गजब बढ़ावा मिलता है”
"हर टूर्नामेंट में आपकी भागीदारी इंसानी सपनों की जीत है"

साथियों,

आप सभी से मिलने का अवसर मैं खोजता ही रहता हूं और इंतजार भी करता हूं, कब मिलूंगा, कब आपके अनुभव सुनुंगा, और मैंने देखा है कि हर बार आप नई उमंग के साथ आते हैं, नए उत्साह के साथ आते हैं। और ये भी अपने आप में एक बहुत बड़ा inspiration बन जाता है। तो सबसे पहले तो मैं आप सबके बीच एक ही काम के लिए आया हूं, और वो है आप सबको बहुत-बहुत बधाई देना। आप लोग भारत के बाहर थे, चीन में खेल रहे थे, लेकिन शायद आपको पता नहीं होगा, मैं भी आपके साथ था। मैं हर पल आपकी हर गतिविधि को, आपके प्रयासों को, आपके कान्फिडेंस को, मैं यहां बैठे-बैठे उसको जी रहा था। आप सभी ने जिस तरह से देश का मान बढ़ाया है, वो वाकई बहुत अभूतपूर्व है। और उसके लिए आपको, आपके कोचेस को, आपके परिवारजनों को जितनी बधाई दें, उतनी कम है। और मैं इस ऐतिहासिक सफलता के लिए आप सबका देशवासियों की तरफ से भी बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

आप लोग तो अच्छी तरह जानते हैं कि Sports, हमेशा से Extremely Competitive होते हैं। आप हर खेल में एक दूसरे से मुकाबला करते हैं, एक दूसरे को कड़ी टक्कर देते हैं। लेकिन मैं जानता हूं, कि एक मुकाबला आपके भीतर भी चलता रहता है। आप हर रोज खुद से भी कम्पीट करते हैं। आपको स्वयं से लड़ना पड़ता है, जूझना पड़ता है, और खुद को बार-बार समझाना भी पड़ता है। कभी-कभी आपने देखा होगा आपका मन करता है कि कल सुबह नहीं उठना है, लेकिन फिर पता नहीं क्या कौन सी ऊर्जा है, एकदम से उठा देती है और दौड़ा देती है। अगर आपको ट्रेनिंग करने की इच्छा न भी हो फिर भी करनी पड़ती है, और चाहे सब ट्रेनिंग सेंटर से घर चले गए हों, लेकिन कभी-कभी आपको कुछ घंटे एक्स्ट्रा पसीना बहाना पड़ता है, और ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। और जैसा कहते हैं ना, सोना जितना तपता है उतना ही निखरता है उतना ही खरा उतरता है। और उसी तरह आप सब तपकर के खरे उतरे हैं। यहां जो-जो लोग इस गेम के लिए सेलेक्ट हुए हैं, कोई वहां से जीतकर आया, कोई वहां से सीखकर आया, आपमें से एक भी हारकर के नहीं आया है। और मेरी तो बहुत simple definition है। खेल में दो ही चीज होती हैं। या तो जीतना, या तो सीखना, हारना वारना होता ही नहीं है। अभी जब मैं आप सबसे बात कर रहा था, तो कुछ कह रहे थे कि इस बार एक कम रह गया, मैं अगली बार और जंप लगाउंगा। यानि वो सीखकर के आता है, नया विश्वास लेकर के आता है। बहुत लोग हैं जो इस बार गए होंगे, कुछ लोग पहली बार गए होंगे। लेकिन 140 करोड़ देशवासियों में से आपका सेलेक्ट होना, ये भी अपने आप में विक्टरी है।

आप इतनी सारी चुनौतियों से जूझकर और मजबूत हो गए हैं। और ये आपके इस ग्रुप के रिजल्ट में, सिर्फ आंकड़ों का हिसाब नहीं है जी, हर देशवासी एक गर्व अनुभव कर रहा है। एक नया विश्वास देश के अंदर भर जाता है। आप सभी ने सिर्फ पिछले रिकॉर्ड ही तोड़े हैं ऐसा नहीं है, लेकिन कुछ क्षेत्र में तो आपने उस रिकॉर्ड को धराशायी कर दिया है, कुछ लोग सोचेंगे कि अब तो दो तीन गेम तक तो यहां पहुंच नहीं पाएंगे, ये स्थिति पैदा कर दी है आप लोगों ने। और आप लोग 111 Medals लेकर घर लौटे हैं...111। ये छोटा आंकड़ा नहीं है। मुझे याद है, मैं जब राजनीति में नया-नया था। पार्टी के संगठन का काम करता था। और लोकसभा के चुनाव में हम 12 सीट लड़ें और 12 की 12 जीत गए गुजरात में। तो हम तो ऐसे ही चलो जीत गए थे हम दिल्ली आए, मेरे लिए आश्चर्य था। उस समय हमारे नेता अटल बिहारी वाजपेयी जी, उन्होंने मुझे गले लगाकर कहा तुझे पता है बारह क्या होता है? बारह की बारह जीतने का मतलब क्या होता है, तुझे पता है? बोले कभी पूरे देश से हम बारह नहीं होते थे, तुम एक राज्य से बारह लेकर आए हो। और बारह जीतने के बाद भी जब तक अटल जी ने मुझे कहा नहीं, मेरा उस दिशा में ध्यान नहीं गया था। आपके लिए भी मैं कहता हूं। ये 111 सिर्फ 111 नहीं हैं। 140 करोड़ सपनें हैं ये। 2014 में Asian Para Games में भारत ने जितने मेडल्स जीते थे, ये उससे भी 3 गुना ज्यादा है। 2014 की अपेक्षा हमें इस बार लगभग 10 गुना ज्यादा Gold Medals मिले हैं। 2014 में हम Overall Performance के 15वें स्थान पर थे, लेकिन आप सब ने इस बार देश को टॉप फाइव में लाकर के रख दिया है। देश पिछले नौ साल में इकॉनोमी में दुनिया में दस पर से पांच पर पहुंचा। और आज आपने भी देश को दस में से पांच पर पहुंचा दिया। ये सब आपकी मेहनत का परिणाम है और इसलिए आप सब बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं।

साथियों,

बीते कुछ महीने भारत में खेलों के लिए बहुत ही अद्भुत रहे हैं। और उसमें आपकी सफलता, ये सोने पर सुहागे की तरह है। अगस्त महीने में हमें बुडापेस्ट की World Athletics Championship में गोल्ड मैडल मिला। भारत की Badminton Men’s Doubles Team ने Asian Games में अपना पहला Gold जीता। भारत की पहली Women's Doubles Pair ने Asian Games में टेबल टेनिस का Medal जीता। Indian Men's Badminton Team ने 2022 का थॉमस कप जीतकर इतिहास बनाया। हमारे एथलीट्स ने Asian Games में इतिहास की सबसे बेहतरीन परफॉर्मेंस देते हुए, 28 Gold Medals के साथ कुल 107 पदक जीते। अब आप ने Asian Para Games में अब तक की सबसे अच्छी परफॉर्मेंस दी है।

साथियों,

आपके इस प्रदर्शन को देखकर सारा देश उत्साहित है। और मैं बताऊं साथियों बाकि गेम्स में जब एक खिलाड़ी मेडल लेकर आता है। तो खेल की दुनिया, और खिलाड़ी, नए खिलाड़ी, इन सबके लिए बड़ी प्ररेणा बनता है, उमंग का कारण बनता है। लेकिन जब एक दिव्यांग विजयी होकर के आता है ना, तो सिर्फ खेल नहीं, जीवन के हर क्षेत्र की वो प्रेरणा बन जाता है। जीवन के हर क्षेत्र के लिए वो एक inspiration बन जाता है। निराशा की गर्द में डूबा हुआ कोई भी इंसान अपकी सफलता को देखकर के खड़ा हो जाता है कि ईश्वर ने तो मुझे सब कुछ दिया है, हाथ पैर, दिमाग, आंख सब दिया है, अरे ये कुछ कमी के बावजूद भी कमाल कर रहा है, और मैं सोया पड़ा हूं, वो खड़ा हो जाता है। आपकी सफलता उसके लिए बहुत बड़ी प्रेरणा बन जाती है। और इसलिए आप जब सफल होते हैं, आपको जब कोई खेलते हुए देखता है तो वो सिर्फ खेल के मैदान तक या खेल की दुनिया तक सीमित नहीं रहता है, जीवन के हर क्षेत्र में हर किसी के लिए वो प्रेरणा का कारण बन जाता है और आप वो काम कर रहे हैं दोस्तों।

साथियों,

ये Sporting Culture और Sporting Society के रूप में भारत की प्रगति दिनों-दिन हम सब देख रहे हैं। एक और कारण है, जिसके चलते भारत में आगे बढ़ने का आत्मविश्वास आया है। अब हम 2030 यूथ ओलंपिक और 2036 ओलंपिक गेम्स का आयोजन करने का प्रयास कर रहे हैं।

साथियों,

आप जानते हैं, Sports में कोई Shortcut नहीं होता है। Sports-person के हिस्से में उसकी मेहनत, अगर आपको जो काम करना वो कोई और नहीं कर सकता है, आपको ही करना पड़ता है। सारा परिश्रम Sports की दुनिया में उसको खुद को ही करना पड़ता है। कोई proxy नहीं होता है, खुद को ही करना पड़ता है। खिलाड़ियों को खेल का सारा Pressure खुद ही Handle करना पड़ता है। अपना धैर्य-अपना परिश्रम ही सबसे ज्यादा काम आता है। हर व्यक्ति खुद के सामर्थ्य से बहुत कुछ कर सकता है। जब उसे किसी का सहयोग मिल जाए, तो उसकी शक्ति अनेक गुना बढ़ जाती है। परिवार, समाज, संस्थाएं और अन्य Supporting Ecosystem खिलाड़ियों को और नई ऊंचाई पर पहुंचने का हौसला देते हैं। ये सभी एक साथ होकर हमारे खिलाड़ियों का जितना ज्यादा साथ देंगे, उनके लिए वो उतना ही अच्छा होगा। आप परिवार को लें, तो हमारे घर के लोग अपने बच्चों को खेलों के प्रति आगे बढ़ने के लिए और Support दे रहे हैं। जब आपमें से और लोग जब शायद आपको थोड़ा मौका मिला होगा, घर से थोड़ा प्रोत्साहन मिलता होगा, लेकिन इसके पहले जो लोग तो नहीं तुझे चोट आ जाएगी, तुझे ये हो जाएगा, फिर कौन देखेगा, तुझे वहां कौन संभालेगा, नहीं जाना है, घर में रहो, बहुत उससे गुजरकर के आए। आज मैं देख रहा हूं, हर परिवार बच्चों को इस क्षेत्र में भी आगे जाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। ये नया कल्चर देश में उभरना बहुत बड़ी बात है। समाज की बात हो तो लोगों में बड़ा बदलाव हुआ है। अब आप भी देखते होंगे, पहले तो खेलकूद में हो तो अच्छा-अच्छा पढ़ते नहीं हो, आप जाकर कहोगे मैं मेडल लेकर आया, अच्छा यही करते हो क्या, पढ़ते नहीं हो क्या, कहां से खाओगे? कहां से कमाओगे? यही पूछते थे, अब अच्छा तुम ले आए, लाओ जरा मैं छू लूं, मैं भी जरा छू कर के देखूं। ये बदलाव आया है।

साथियों,

उस वक्त अगर कोई Sports में होता था, तो उसे सेटल नहीं माना जाता था। उसको पूछा जाता था – लेकिन सेटल होने के लिए क्या करोगे? यही पूछा जाता था, लेकिन अब Sports को भी एक प्रोफेशन के रूप में समाज स्वीकार कर रहा है।

साथियों,

अगर मैं सरकार की बात करूं तो पहले ऐसा कहा जाता था कि खिलाड़ी सरकार के लिए हैं। लेकिन अब कहा जाता है कि सरकार पूरी की पूरी खिलाड़ियों के लिए है। जब सरकार और नीतियां बनाने वाले जमीन से जुड़े होते हैं, जब सरकार खिलाड़ियों के हितों के प्रति संवेदनशील होती है, जब सरकार खिलाड़ियों के संघर्ष, उनके सपनों को समझती है, तो इसका सीधा प्रभाव सरकार की नीतियों में भी दिखाई देता है। अप्रोच में भी दिखाई देता है। सोच में भी दिखता है। देश में बेहतरीन खिलाड़ी पहले भी थे, लेकिन उन्हें सपोर्ट करने वाली नीतियां नहीं थीं। ना अच्छी कोचिंग की व्यवस्था, ना आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर और ना ही जरूरी आर्थिक मदद, तो फिर हमारे खिलाड़ी कैसे अपना परचम लहराते। बीते 9 वर्षों में देश उस पुरानी सोच और पुरानी व्यवस्था से बाहर निकल गया है। आज देश में कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन पर चार-चार पांच-पांच करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। सरकार की अप्रोच अब Athlete Centric है। सरकार अब Athletes के सामने से ऑब्सटैकल्स दूर कर रही है, Opportunities बना रही है। कहा जाता है, Potential+Platform= Performance. जब Potential को उचित Platform मिल जाए तो Performance और बेहतर हो जाती है। ‘खेलो इंडिया’ जैसी योजनाएं खिलाड़ियों के लिए ऐसा Platform बनी हैं, जिनसे हमारे Athletes को Grassroot Level पर खोजने और Support करने का रास्ता खुला है। आप में से कई लोग ये जानते होंगे कि कैसे Tops Initiative हमारे Athletes को उनका प्रदर्शन सुधारने में मदद कर रहा हैं। Para Athletes को मदद करने के लिए हमने ग्वालियर में Disability Sports Training Centre की स्थापना भी की है। और आप में जो लोग गुजरात से परिचित होंगे, उनको मालूम होगा कि इस दुनिया में सबसे पहले प्रवेश करने का प्रयास गुजरात से शुरू हुआ था। और धीरे-धीरे-धीरे करके एक पूरा कल्चर विकसित हो गया। आज भी वो गांधीनगर के इंस्टीट्यूट आपमें से बहुत लोग हैं जो शायद वहां पर ट्रेनिंग के लिए जाते हैं, ट्रेनिंग पर रहते हैं। कहने का तात्पर्य है कि सारे institutions जब आकार लेती हैं तो तब उसका सामर्थ्य पता नहीं होता है। लेकिन जब निरंतर वहां साधना होती है तो सामर्थ्य की अनुभूति देश करने लग जाता है। मुझे विश्वास है कि ये जो सारी Facilities हैं आप जैसे कई और विजेता देश को मिलने वाले हैं, मेरा पूरा भरोसा है।

साथियों,

300 से ज्यादा के आप लोगों के ग्रुप में, मैंने पहले ही कहा कोई भी हारा नहीं है। और मेरा जो मंत्र है मैं दोबारा कहता हूं कुछ जीतकर के आए हैं, कुछ सीखकर के आए हैं। आप Medals से ज्यादा खुद को और अपनी Legacy को देखिए, क्योंकि वही सबसे बड़ी बात है। आप ने जिन कठिनाइयों का सामना किया और जिस तरह उनसे उबरने के लिए अपनी शक्ति का परिचय दिया, वो ही इस देश के लिए आपका सर्वोच्च योगदान है। आप में से कई लोग छोटे शहरों, सामान्य पृष्ठभूमि और मुश्किल परिस्थितियों से निकलकर यहां आए हैं। कई लोगों ने जन्म से शारीरिक परेशानियों का सामना किया है, कई लोग दूर दराज के गाँवों में रहे हैं, किसी के साथ ऐसी दुर्घटना हुई है जिसने उनका पूरा जीवन बदल डाला है, लेकिन आप फिर भी अडिग हैं। आपकी सफलता सोशल मीडिया पर देखिए, शायद किसी खेल को इन दिनों इतनी प्रसिद्धि नहीं मिलती है जितनी आप लोगों को मिलती है। हर कोई, खेल में कोई समझ नहीं है, वो भी देख रहा है। अरे ये बच्चा कर रहा है, इसके शरीर में तकलीफ है तो भी इतना बड़ा कर रहा है, देख रहे हैं लोग, उनके घरों में बच्चों को दिखाता है देखो कैसे कर रहे हैं बच्चें। गांव के बेटे-बेटियां, छोटे शहरों के लोग आपके जीवन के किस्से आज स्कूल, कॉलेज, घर में, मैदान में, हर जगह पर चर्चा हो रही है। आपका संघर्ष और ये सफलता, उनके मन में भी एक नया सपना बुन रही हैं। आज चाहे जो परिस्थितियां हों, लेकिन वो बहुत बड़ा सोच, बहुत बड़ी प्रेरणा पा रहा हैं। उनमें बड़ा बनने की लालसाएं पनप रही हैं। हर टूर्नामेंट में आपकी सहभागिता, मानवीय सपनों की जीत है। और यही आपकी सबसे बड़ी विरासत है।

और इसी कारण मुझे यह विश्वास है कि आप ऐसे ही परिश्रम करेंगे और देश का गौरव बढ़ाते रहेंगे। हमारी सरकार आपके साथ है, देश आपके साथ है। और साथियों, संकल्प का सामर्थ्य बहुत होता है। अगर आप मरी पड़ी सोच से चलते हैं न, ना दुनिया को चला सकते हैं, न ही आप कुछ सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। आपने बहुत लोग देखे होंगे आप कहो कि भई जरा यहां से रोहतक जाकर के आओ तो 50 बार सोचेगा बस मिलेगी की नहीं मिलेगी, ट्रेन मिलेगी की नहीं मिलेगी, कैसे जाऊंगा, क्या करुंगा। और कुछ लोग, अच्छा रोहतक जाना है, ठीक है मैं शाम को जाकर के आ जाता हूं। सोचता नहीं है, वो हिम्मत करता है। सोचने की ताकत होती है। और आपने देखा होगा सौ के पार कहना ऐसे नहीं होता है जी। एक लंबी सोच भी होती है, पूरा परिश्रम का रिकॉर्ड भी होता है और फिर आत्मविश्वास भरकर के संकल्प के साथ निकल पड़ते हैं, इस बार सौ के पार, और फिर 101 पर नहीं रुकते हैं, 111 करके आ जाते हैं। आज जब मैं कहता हूं, साथियों, ये मेरा ट्रैक रिकॉर्ड है और इसलिए मैं कहता हूं कि हम ही हैं जो दस नंबर की इकोनॉमी से पांच पर पहुंचे हैं और डंके की चोट पर कहता हूं इसी दशक में तीन पर पहुंच के रहेंगे। इसी के आधार पर मैं कहता हूं 2047 में ये देश विकसित भारत बनकर रहेगा। अगर मेरे दिव्यांग जन सपने पूरे कर सकते हैं, तो 140 करोड़ की ताकत एक भी सपने को अधूरा नहीं रहने देगी, ये मेरा विश्वास है।

साथियों,

मैं आपको बहुत-बहुत बधाई देता हूं, बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं, लेकिन हमें यहां रूकना नहीं है, और नए संकल्प, और नया आत्मविश्वास, हर सुबह नई सुबह तभी तो जाकर के मंजिल अपने पास आती है दोस्तों।

बहुत-बहुत धन्यवाद, बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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