सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार विजेताओं का अभिनंदन किया
“तुर्किए और सीरिया में भूकंप के बाद पूरी दुनिया ने भारत के आपदा प्रबंधन प्रयासों की भूमिका को समझा एवं सराहा है”
“भारत ने आपदा प्रबंधन से जुड़ी प्रौद्योगिकी और मानव संसाधन को जिस तरह बढ़ाया है, उससे देश में भी अनेक जीवन बचाने में मदद मिली है”
“हमें स्थानीय स्तर पर आवास या नगर नियोजन के मॉडल विकसित करने होंगे, हमें इन क्षेत्रों में उन्नत प्रौद्योगिकी के उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है”
“सटीक समझ और सिस्‍टम विकसित करना आपदा प्रबंधन को मजबूत करने के दो मुख्य घटक हैं”
“स्थानीय भागीदारी से स्थानीय स्‍तर पर मजबूती के मूलमंत्र को अपनाने से ही आपको सफलता मिलेगी”
“घरों के टिकाऊपन, जल निकासी, हमारी बिजली और जल अवसंरचना की मजबूती जैसे पहलुओं पर ठोस जानकारी होने से ही सक्रिय कदम उठाने में मदद मिलेगी”
“एंबुलेंस नेटवर्क को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए एआई, 5जी और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) के उपयोग के बारे में पता लगाएं”
“परंपरा एवं प्रौद्योगिकी हमारी ताकत है, और इसी ताकत से हम केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए आपदा से निपटने के लिए बेहतरीन मॉडल तैयार कर सकते हैं”

सबसे पहले मैं Disaster resilience और disaster management से जुड़े सभी साथियों को बधाई देता हूं। क्योंकि काम ऐसा है कि आप कई बार अपनी जान जोखिम में डालकर भी औरों की जिंदगी बचाने के लिए बहुत ही शानदार काम करते हैं। हाल में तुर्किए और सीरिया में भारतीय दल के प्रयासों को पूरी दुनिया ने सराहा है और ये बात हर भारतीय के लिए गौरव का विषय है। राहत और बचाव से जुड़े ह्यूमन रिसोर्स और टेक्नॉलॉजिकल कैपेसिटी को भारत ने जिस तरह बढ़ाया है, उससे देश में भी अलग-अलग आपदा के समय बहुत सारे लोगों के जीवन बचाने में मदद मिली है। डिज़ास्टर मैनेजमेंट से जुड़ा सिस्टम सशक्त हो, इसके लिए प्रोत्साहन मिले, और देश भर में एक तंदुरुस्त स्पर्धा का भी वातावरण बने इस काम के लिए और इसलिए एक विशेष पुरस्कार की घोषणा भी की गई है। आज यहां दो संस्थानों को नेताजी सुभाष चंद्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार दिया गया है। Odisha State Disaster Management Authority, साइक्लोन से लेकर के सुनामी तक, विभिन्न आपदाओं के दौरान बेहतरीन काम करती रही है। इसी तरह मिजोरम के Lunglei Fire Station ने जंगल में लगी आग को बुझाने के लिए अथक परिश्रम किया, पूरे क्षेत्र को बचाया और आग को फैलने से रोका। मैं इन संस्थानों में काम करने वाले सभी साथियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

इस सेशन के लिए आपने थीम रखी है- “Building Local Resilience in a Changing Climate”. भारत का इस विषय से परिचय एक प्रकार से पुराना है क्योंकि हमारी पुरानी परंपरा का वो एक अभिन्न अंग भी रहा है। आज भी जब हम अपने कुओं, बावड़ियों, जलाशयों, स्थानीय वास्तुशास्त्र, प्राचीन नगरों को देखते हैं, तो ये एलिमेंट साफ-साफ दिखाई देता है। भारत में आपदा प्रबंधन से जुड़ी व्यवस्था हमेशा लोकल रही है, समाधान लोकल रहे हैं, रणनीति भी लोकल रही है। अब जैसे कच्छ के लोग जिन घरों में रहते हैं उन्हें भुंगा कहते हैं। Mud House होते हैं। हम जानते हैं कि इस सदी की शुरुआत में आए भीषण भूकंप का केंद्र कच्छ था। लेकिन इन भुंगा घरों पर कोई असर ही नहीं हुआ। शायद बड़ी मुश्किल से कहीं एकाध कोने में कोई तकलीफ हुई होगी। निश्चित रूप से इसमें टेक्नॉलॉजी से जुड़े हुए बहुत से सबक है ही है। स्थानीय स्तर पर हाउसिंग या टाउन प्लानिंग के जो मॉडल रहे हैं, उन्हें क्या हम नई टेक्नॉलॉजी के हिसाब से evolve नहीं कर सकते? चाहे लोकल कंस्ट्रक्शन मैटेरियल हो, या फिर कंस्ट्रक्शन टेक्नॉलॉजी, इसको हमें आज की ज़रूरत, आज की टेक्नॉलॉजी से समृद्ध करना समय की मांग है। जब हम Local Resilience के ऐसे उदाहरणों से Future Technology को जोड़ेंगे, तभी Disaster resilience की दिशा में बेहतर कर पाएंगे।

साथियों,

पहले की जीवन शैली बड़ी सहज थी और अनुभव ने हमें सिखाया था कि बहुत ज्यादा बारिश, बाढ़ सूखे, आपदाओं से कैसे निपटा जाए। इसीलिए स्वाभाविक तौर पर, सरकारों ने भी हमारे यहां आपदा राहत को कृषि विभाग से ही जोड़कर के रखा था। भूकंप जैसी गंभीर आपदाएं आती भी थीं तो स्थानीय संसाधनों से ही ऐसी आपदाओं का सामना किया जाता था। अब दुनिया छोटी हो रही है। एक दूसरे के अनुभवों से सीख कर निर्माण की तकनीकों में नए नए प्रयोग भी हो रहे हैं। लेकिन वहीं दूसरी ओर आपदाओं का प्रकोप भी बढ़ रहा है। पुराने जमाने में पूरे गाँव में एक वैद्यराज सबका इलाज करते थे और पूरा गाँव स्वस्थ रहता था। अब हर बीमारी के अलग अलग डॉक्टर होते हैं। इसी प्रकार disaster के लिए भी dynamic व्यवस्था विकसित करनी होगी। जैसे पिछले सौ साल के आपदा के अध्ययन से zoning की जा सकती है कि बाढ़ का लेवल कहाँ तक हो सकता है और इसीलिए कहाँ तक निर्माण करना है। समय के साथ इन मापदंडों का review भी होना चाहिए, चाहे material की बात हो या व्यवस्थाओं की।

साथियों,

डिजास्टर मैनेजमेंट को मजबूत करने के लिए Recognition और Reform बहुत जरूरी है। Recognition का मतलब, ये समझना है कि आपदा की आशंका कहां है और वो भविष्य में वो कैसे घटित हो सकती है? Reform का मतलब है कि हम ऐसा सिस्टम विकसित करें जिससे आपदा की आशंका कम हो जाए। डिजास्टर की आशंका को कम करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम सिस्टम में सुधार करें। समय रहते उसे ज्यादा सक्षम बनाएं और इसके लिए शॉर्टकट अप्रोच के बजाय लॉन्ग टर्म थिकिंग की जरूरत है। अब हम साइक्लोन की अगर बात करें तो साइक्लोन के समय भारत की स्थिति का अगर हम उसकी तरफ नजर करें तो ध्यान में आता है। एक समय था, जब भारत में साइक्लोन आता था तो सैकड़ों-हजारों लोगों की असमय मृत्यु हो जाती थी। हमने ओडिशा और पश्चिम बंगाल के तटीय इलाकों में ऐसा कई बार होते देखा है। लेकिन समय बदला, रणनीति बदली, तैयारियां और बेहतर हुईं, तो साइक्लोन से निपटने की भारत की क्षमता भी बढ़ गई। अब साइक्लोन आता है तो जान-माल का कम से कम नुकसान होता है। ये सही है कि हम प्राकृतिक आपदा को रोक नहीं सकते, लेकिन हम उस आपदा से नुकसान कम से कम हो, इसके लिए व्यवस्थाएं तो जरूर बना सकते हैं। और इसलिए ये ज़रूरी है कि reactive होने के बजाय हम proactive हों।

साथियों,

हमारे देश में proactive होने को लेकर पहले क्या स्थिति थी, अब क्या स्थिति है, मैं इसका जिक्र भी आपके सामने करना चाहूँगा। भारत में आजादी के बाद 5 दशक बीत गए थे, आधी शताब्दी बीत गई थी, लेकिन disaster management को लेकर कोई कानून नहीं था। साल 2001 में कच्छ में भूकंप आने के बाद गुजरात पहला ऐसा राज्य था, जिसने Gujarat State Disaster Management Act बनाया। इसी एक्ट के आधार पर साल 2005 में केंद्र सरकार ने भी Disaster Management Act का निर्माण किया। इसके बाद ही भारत में National Disaster Management Authority बनी।

साथियों,

हमें, हमारे स्थानीय निकायों, Urban Local Bodies में Disaster Management Governance को मजबूत करना ही होगा। जब आपदा आए, तभी Urban Local Bodies React करें, इससे बात बनने वाली अब रही नहीं है। हमें planning को institutionalize करना होगा। हमें local planning की समीक्षा करनी होगी। हमें इमारतों के निर्माण के लिए, नए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए आपदा प्रबंधन को ध्यान में रखते हुए नई गाइडलाइंस बनानी होंगी। एक तरह से पूरे सिस्टम की overhauling की ज़रूरत है। इसके लिए हमें दो स्तर पर काम करने की जरूरत है। पहला- यहां जो disaster management से जुड़े एक्सपर्ट्स हैं, उन्हें जनभागीदारी- Local participation पर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए। भारत Local participation से कैसे बड़े लक्ष्य हासिल कर रहा है, ये हम सभी देख रहे हैं। इसलिए जब आपदा प्रबंधन की बात होती है, तो वो भी बिना जनभागीदारी के संभव नहीं है। आपको Local Resilience by Local participation के मंत्र पर चलते हुए ही सफलता मिल सकती है। हमें नागरिकों को भूकंप, साइक्लोन, आग और दूसरी आपदाओं से जुड़े खतरों के प्रति जागरूक करना एक निरंतर प्रक्रिया होनी चाहिए। इससे जुड़े सही नियमों, कायदों और कर्तव्य इन सारे विषयों का बोध निरंतर जगाना जरूरी है। हमें गांव, गली, मोहल्ले के स्तर पर हमारे युवा साथियों की युवा मंडल, सखी मंडल, दूसरे ग्रुप्स को राहत और बचाव की ट्रेनिंग देनी ही पड़ेगी। आपदा मित्रों, NCC-NSS, पूर्व सैनिकों की ताकत उनको भी अगर हम उनको डेटा बैंक बनाकर के उनकी शक्ति का कैसे उपयोग कर सकते हैं, इसके काम्यूनिकेशन की व्यवस्था बनानी होगी। कम्यूनिटी सेंटर्स में फर्स्ट रिस्पॉन्स के लिए ज़रूरी उपकरणों की व्यवस्था, उनको चलाने की ट्रेनिंग भी बहुत आवश्यक है। और मेरा अनुभव है कभी-कभी डेटा बैंक भी कितना अच्छा काम करती है। मैं जब गुजरात में था, तो हमारे यहां खेड़ा डिस्ट्रिक्ट में एक नदी है। उसमें कभी 5-7 साल में एकाध बार बाढ़ आती थी। एक बार ऐसा हुआ कि एक साल में पांच बार बाढ़ आई लेकिन उस समय ये disaster को लेकर के काफी कुछ गतिविधियां डेवल्प हुई थीं। तो हर गांव के मोबाइल फोन अवेलेबल थे। अब उस समय तो कोई लोकल लेंग्वेज में तो मैसेजिंग की व्यवस्था नहीं थी। लेकिन अंग्रेजी में ही गुजराती में लिखकर के मैसेज करते थे, गांव के लोगों को कि देखिए ऐसी स्थिति है, इतने घंटे के बाद पानी आने की संभावना है। और मुझे बराबर याद है 5 बार बाढ़ आने के बावजूद भी इंसान का तो सवाल नहीं, एक भी पशु नहीं मरा था। कोई व्यक्ति नहीं मरा, पशु नहीं मरा। क्योंकि समय पर कॉम्यूनिकेशन हुआ और इसलिए हम इन व्यवस्थाओं का कैसे उपयोग करते हैं। बचाव और राहत कार्य अगर समय रहते शुरु होगा, तो जीवन की क्षति को हम कम कर सकते हैं। दूसरा, टेक्नॉलॉजी का उपयोग करते हुए हमें हर घर, हर गली को लेकर रियल टाइम रजिस्ट्रेशन, मॉनिटरिंग की व्यवस्था बनानी होगी। कौन घर कितना पुराना है, किस गली, किस ड्रेनेज की क्या स्थिति है? हमारे बिजली, पानी जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर का resilience कितना है? अब जैसे मैं अभी कुछ दिन पहले मीटिंग कर रहा था और मेरी मीटिंग का विषय यही था कि भई heat wave की चर्चा है तो कम से कम पिछली बार हमने देखा दो बार हमारे अस्पतालों में आग लगी और वो बहुत दर्दनाक होता है। कोई पेशेंट असहाय होता है। अब पूरे हॉस्पिटल की व्यवस्था को एक बार बारीकी से देखना, हो सकता है एक बहुत बड़ी दुर्घटना से हमें बचा सकता है। मुझे लगता है कि जितनी ज्यादा वहां की व्यवस्थाओं की सटीक जानकारी हमारे पास होगी तभी हम proactive step ले सकते हैं।

साथियों,

आजकल हम देखते हैं, बीते वर्षों में घने शहरी क्षेत्रों में आग लगने की घटनाएं बहुत बढ़ी हैं। गर्मी बढ़ती है तो कभी किसी अस्पताल में, किसी फैक्ट्री में, किसी होटल में या किसी बहुमंजिला रिहायशी इमारत में विकराल आग देखने को मिल जाती है। इससे निपटने के लिए हमें बहुत systematically चाहे वो human resource development हो, चाहे technology हो, चाहे संसाधन हो, व्यवस्था हो हमें कोऑर्डिनेटेड whole of the government approach के साथ काम करना होगा। जो घनी आबादी वाले क्षेत्र हैं, जहां तक गाड़ी से पहुंचना भी मुश्किल होता है, वहां पर आग बुझाने के लिए पहुंचना बहुत बड़ी चुनौती हो जाती है। हमें इसका समाधान खोजना होगा। High rise buildings में लगने वाली आग को बुझाने के लिए हमारे जो fire fighters साथी हैं, उनके स्किल सेट को हमें लगातार बढ़ाना होगा। हमें ये भी देखना होगा कि ये जो industrial fires लगती है, उसे बुझाने के लिए पर्याप्त संसाधान हों।

साथियों,

डिजास्टर मैनेजमेंट के इन प्रयासों के बीच, स्थानीय स्तर पर स्किल और ज़रूरी उपकरण, उन दोनों का आधुनिक होते रहना भी बहुत आवश्यक है। जैसे आजकल ऐसे अनेक उपकरण आ गए हैं, जो forest waste को biofuel में बदलते हैं। क्या हम अपनी women’s self help group है उन बहनों को जोड़कर के उनको अगर ऐसे उपकरण दे दिए तो वे अपना इस जंगल का जो भी waste पड़ा है इकट्ठा करके, उसको प्रोसेस करके, उसमें से चीजें बनाकर के दे दे ताकि जंगल में आग लगने की संभावनाएं कम हो जाए। और इससे उनकी आमदनी भी बढ़ेगी और जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी कम होंगी। इंडस्ट्री और अस्पताल जैसे संस्थान जहां आग, गैस लीक जैसे खतरे अधिक होते हैं, ये सरकार के साथ पार्टनरर्शिप करके, स्पेशलिस्ट लोगों की फोर्स तैयार कर सकते हैं। अपने एंबुलेंस नेटवर्क का हमें विस्तार भी करना होगा और इसे फ्यूचर रेडी भी बनाना होगा। इसको हम 5G, AI और IoT जैसी टेक्नॉलॉजी से अधिक responsive और effective कैसे बना सकते हैं, इस पर भी व्यापक चर्चा करके रोडमैप तैयार करना चाहिए। ड्रोन टेक्नॉलॉजी का राहत और बचाव में अधिक से अधिक उपयोग हम कैसे कर सकते हैं? क्या हम ऐसे गैजेट्स पर फोकस कर सकते है, जो हमें आपदा को लेकर अलर्ट कर सके? ऐसे पर्सनल गैजेट्स जो मलबे के नीचे दबने की स्थिति में लोकेशन की जानकारी दे सकें, व्यक्ति की स्थिति की जानकारी दे सकें? हमें इस तरह के इनोवेशन पर ज़रूर फोकस करना चाहिए। दुनिया के कई देशों में ऐसी सामाजिक संस्थाएं हैं, जो टेक्नोल़ॉजी की मदद से, नई-नई व्यवस्थाएं तैयार कर रही हैं। हमें इनका भी अध्ययन करना चाहिए, वहां की Best Practices को Adopt करना चाहिए।

साथियों,

भारत आज दुनिया भर में आने वाली आपदाओं को लेकर तेज़ी से response करने के लिए कोशिश करता है और resilience infrastructure के लिए पहल भी करता है। भारत के नेतृत्व में बने Coalition for Disaster Resilient Infrastructure से दुनिया के 100 से अधिक देश आज जुड़ चुके हैं। Tradition और technology हमारी ताकत हैं। इसी ताकत से हम भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए disaster resilience से जुड़े बेहतरीन मॉडल तैयार कर सकते हैं। मुझे विश्वास है कि ये चर्चा सुझावों और समाधानों से भरपूर होगी, अनेक नई बातों के लिए हमारे लिए रास्ते खुलेंगे। मुझे पक्का विश्वास है कि इस दो दिवसीय समिट में actionable points निकलेंगे। मुझे विश्वास है कि और समय भी ठीक है बारिश के दिनों के पूर्व इस प्रकार की तैयारी और इसके बाद राज्यों में, राज्यों के बाद महानगर और नगरों में इस व्यवस्था को हम आगे बढाएं, एक सिलसिला चलाए तो हो सकता है कि वर्षा के पहले ही बहुत सारी चीजों को हम एक प्रकार से पूरी व्यवस्था को sensitise कर सकते हैं जहां आवश्यकता है वहां पूर्ति भी कर सकते है और हम कम से कम नुकसान हो उसके लिए सज्ज हो सकते हैं। मेरी तरफ से आपके इस समिट को बहुत-बहुत शुभकामना है।

धन्यवाद।

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