प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि संस्‍थान छात्रों को नये अवसर प्रदान करेंगे, खेती को अनुसंधान और अत्‍याधुनिक प्रौद्योगिकी से जोड़ने में मदद करेंगे
प्रधानमंत्री ने लोगों से आत्‍मनिर्भर अभियान को सफल बनाने का आग्रह किया
बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए 10,000 करोड़ रूपये की लागत से 500 जल परियोजनाओं को मंजूरी; 3000 करोड़ रूपये की परियोजनाओं पर काम शुरू

हमारे देश के कृषि मंत्री श्रीमान नरेन्‍द्र सिंह तोमर जी , केन्‍द्रीय मंत्रिपरिषद के मेरे अन्‍य साथी, उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ जी, अन्‍य अतिथिगण, सभी विद्यार्थी मित्र और देश के हर कोने से जुड़े हुए इस वर्चुअल समारोह में उपस्थित सभी मेरे प्‍यारे भाइयो और बहनों।

रानी लक्ष्‍मीबाई केन्‍द्रीय कृषि विश्‍वविद्यालय के नए शैक्षणिक और प्रशासनिक भवन के लिए मैं आप सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, बहुत शुभकामनाएं देता हूं। यहां से पढ़कर, बहुत कुछ सीखकर निकलने वाले युवा साथी देश के कृषि क्षेत्र को सशक्‍त करने का काम करेंगे।

छात्र-छात्राओं की तैया‍रियां, उनका उत्‍साह और अभी जो संवाद हो रहा था, और जो मेरी आप लोगों से बात करने का मुझे मौका मिला, मैं उत्‍साह, उमंग, विश्‍वास का अनुभव कर रहा था, ये दिखाई दिया। मुझे विश्‍वास है कि इस नए भवन के बनने से अनेक नई सुविधाएं मिलेंगी। इन सुविधाओं से students को और ज्‍यादा काम करने की प्रेरणा मिलेगी और ज्‍यादा प्रोत्‍साहन मिलेगा।

साथियो, कभी रानी लक्ष्‍मीबाई ने बुन्‍देलखंड की धरती पर गर्जना की थी, ‘’में मेरी झांसी नहीं दूंगी।‘’ हम सबको ये वाक्‍य बराबर याद है, ‘मैं मेरी झांसी नहीं दूंगी’। आज एक नई गर्जना की आवश्‍यकता है और इसी झांसी से, इसी बुन्‍देलखंड की धरती से आवश्‍यकता है। मेरी झांसी, मेरा बुन्‍देलखंड आत्‍मनिर्भर भारत अभियान को सफल बनाने के लिए पूरी ताकत लगा देगा, एक नया अध्‍याय लिखेगा।

इसमें बहुत बड़ी भूमिका कृषि की है, एग्रीकल्‍चर की है। जब हम कृषि में आत्‍मनिर्भरता की बात करते हैं तो ये सिर्फ खाद्यान्‍न तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये गांव की पूरी अर्थव्‍यवस्‍था की आत्‍मनिर्भरता की बात है। ये देश के अलग-अलग हिस्‍सों में खेती से पैदा होने वाले उत्‍पादों में value addition करके देश और दुनिया के बाजारों में पहुंचाने का मिशन है। कृषि में आत्‍मनिर्भरता का लक्ष्‍य किसानों को एक उत्‍पादक के साथ ही उद्यमी बनाने का भी है। जब‍ किसान और खेती उद्योग की भांति आगे बढ़ेंगे तो बड़े स्‍तर पर गांव में और गांव के पास ही रोजगार और स्‍व–रोजगार के अवसर तैयार होने वाले हैं।

साथियो, इस समय और जब हम इस संकल्‍प के साथ ही हाल में कृषि से जुड़े ऐतिहासिक reforms ये सरकार लगातार कर रही है, कई reforms किए गए हैं। भारत में किसान को बंदिशों में जकड़ने वाली कानूनी व्‍यवस्‍थाएं, मंडी कानून जैसा और आवश्‍यक वस्‍तु कानून, इन सबमें बहुत बड़ा सुधार किया गया है। इससे किसान अब बाकी उद्योगों की तरह पूरे देश में मंडियों से बाहर भी जहां उसको ज्‍यादा दाम मिलते हैं, वहां अपनी उपज बेच सकेगा।

इतना ही नहीं, गांव के पास उद्योगों के क्‍लस्‍टर बनाने की व्‍यापक योजना बनाई गई है। इन उद्योगों को बेहतर infrastructure की सुविधा मिले, इसके लिए एक लाख करोड़ रुपए का विशेष फंड बनाया गया है। इस फंड के माध्‍यम से हमारे कृषि उत्‍पादक संघ, हमारे FPOs अब भंडारण से जुड़ा आधुनिक infrastructure भी तैयार कर पाएंगे और प्रोसेसिंग से जुड़े उद्योग भी लगा पाएंगे। इससे कृषि क्षेत्र में पढ़ाई करने वाले युवाओं और उनके सभी साथी, इन सबको नए अवसर मिलेंगे, नए startup के लिए रास्‍ते बनेंगे।

साथियों, आज बीज से लेकर बाजार तक खेती को टेक्‍नोलॉजी से जोड़ने का, आधुनिक रिसर्च के फायदों को जोड़ने का निरंतर काम किया जा रहा है। इसमें बहुत बड़ी भूमिका रिसर्च संस्‍थानों और कृषि विश्‍वविद्यालयों की भी है। छह साल पहले की ही बात करें तो जहां देश में सिर्फ एक केन्‍द्रीय कृषि विश्‍वविद्यालय था, आज तीन-तीन Central Agricultural Universities देश में कार्यरत हैं। इसके अलावा तीन और राष्‍ट्रीय संस्‍थान IARI- झारखंड, IARI-असम, और बिहार के मोतीहारी में Mahatma Gandhi Institute for Integrated farming, इनकी भी स्‍थापना की जा रही है। ये रिसर्च संस्‍थान छात्र-छात्राओं को नए मौके तो देंगे ही, स्‍थानीय किसानों तक टेक्‍नोलॉजी के लाभ पहुंचाने में भी, उनकी क्षमता बढ़ाने में भी मदद करेंगे।

अभी देश में सोलर पंप, सोलर ट्री, स्थानीय जरूरतों के मुताबिक तैयार गए बीज, माइक्रोइरीगेशन, ड्रिप इरीगेशन, अनेक क्षेत्रों में एक साथ काम हो रहा है। इन प्रयासों को ज्‍यादा से ज्‍यादा किसानों तक पहुंचाने के लिए, खासतौर पर बुन्‍देलखंड के किसानों को इससे जोड़ने के लिए आप सभी की बहुत बड़ी भूमिका है। आधुनिक टेक्‍नोलॉजी का उपयोग कृषि और इससे जुड़ी चुनौतियों से निपटने में कैसे काम आ रहा है- हाल में इसका एक और उदाहरण देखने को मिला है।

आपको याद होगा, यहां बुंलेदखंड में मई के महीने में टिड्डी दल का बहुत बड़ा हमला हुआ था। और पहले तो ये टिड्डी दल अपने-आप में, खबर आती है न जब कि टिड्डी दल आने वाला है तो किसान रात-रात भर सो नहीं पाता है, सारी मेहनत मिनटों में तबाह का देता है। कितने ही किसानों की फसल, सब्जियां बर्बाद होना बिल्‍कुल निर्धारित हो जाता है। मुझे बताया गया है कि बुंदेलखंड में करीब-करीब 30 साल बाद टिड्डियों ने हमला किया, वरना र्ना पहले इस क्षेत्र में टिड्डियां नहीं आती थीं।

साथियों, सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के दस से ज्यादा राज्य टिड्डीदल या लॉकस्ट के हमले से प्रभावित हुए थे। जितनी तेज़ी से ये फैल रहा था उस पर सामान्य तौर-तरीकों, पारंपरिक माध्यमों से नियंत्रण पाना मुश्किल था। और जिस प्रकार से भारत ने ये टिड्डी दल से मुक्ति पाई है, इतने बड़े हमले को बहुत वैज्ञानिक तरीके से जिस प्रकार से संभाला है। अगर कोरोना जैसी और चीजें न होतीं तो शायद हिन्‍दुस्‍तान के मीडिया में हफ्ते भर इसकी बहुत सकारात्‍मक चर्चा हुई होती, इतना बड़ा काम हुआ है।

और ऐसे में टिड्डी दल के हमले से किसानों की फसलों को बचाने के लिए जो युद्धस्तर पर काम किया गया। झांसी समेत अनेक शहरों में दर्जनों कंट्रोल रूम बनाए गए, किसानों तक पहले से जानकारी पहुंचे इसका इंतजाम किया गया। टिड्डियों को मारने और भगाने के लिए जो स्प्रे वाली स्पेशल मशीनें होती हैं, वो भी तब हमारे इतनी संख्‍या में नहीं थीं क्‍योंकि ये हमले ऐसे नहीं आते हैं। सरकार ने तुरंत ऐसी दर्जनों आधुनिक मशीनों को खरीदकर जिलों तक पहुंचाया। टैंकर हो, गाड़ियां हों, केमिकल हो, दवाइयां हों, ये सारे संसाधन लगा दिए ताकि किसानों को कम से कम नुकसान हो।

इतना ही नहीं, ऊंचे पेड़ों को बचाने के लिए, बड़े क्षेत्रों में एक साथ दवा का छिड़काव करने के लिए दर्जनों ड्रोन लगा दिए गए, हेलीकॉप्टर तक से दवाई का छिड़काव किया गया। इन सारे प्रयासों के बाद ही भारत, अपने किसानों का बहुत ज्यादा नुकसान होने से बचा पाया।

साथियों, ड्रोन टेक्नॉलॉजी हो, दूसरी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की टेक्नॉलॉजी हो, आधुनिक कृषि उपकरण हों, इसको देश की कृषि में अधिक से अधिक उपयोग में लाने के लिए आप जैसे युवा Researchers को, युवा वैज्ञानिकों को निरंतर एक समर्पित भाव से, one life one mission की तरह काम करना होगा।

बीते 6 साल से ये निरंतर कोशिश की जा रही है रिसर्च का खेती से सीधा सरोकार हो, गांव के स्तर पर छोटे से छोटे किसान को भी साइंटिफिक एडवाइस उपलब्ध हो। अब कैंपस से लेकर फील्ड तक एक्सपर्ट्स के, जानकारों के इस ecosystem को और प्रभावी बनाने के लिए काम किया जाना ज़रूरी है। इसमें आपके विश्विद्यालय की भी बहुत बड़ी भूमिका है।

साथियों, कृषि से जुड़ी शिक्षा को, उसकी practical application को स्कूल स्तर पर ले जाना भी आवश्यक है। प्रयास है कि गांव के स्तर पर मिडिल स्कूल लेवल पर ही कृषि के विषय को introduce किया जाए। इससे दो लाभ होंगे। एक लाभ तो ये होगा कि गांव के बच्चों में खेती से जुड़ी जो एक स्वभाविक समझ होती है, उसका वैज्ञानिक तरीके से विस्तार होगा। दूसरा लाभ ये होगा कि वो खेती और इससे जुड़ी तकनीक, व्यापार-कारोबार, इसके बारे में अपने परिवार को ज्यादा जानकारी दे पाएंगे। इससे देश में Agro Enterprise को भी और बढ़ावा मिलेगा। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसके लिए भी अनेक ज़रूरी reforms किए गए हैं।

साथियों, कितनी ही चुनौतियां क्यों न हों, निरंतर उनका मुकाबला करना, हमेशा से, सिर्फ लक्ष्‍मीबाई के जमाने से नहीं, हमेशा से बुंदेलखंड अगुवाई करता रहा है; बंदेलखंड की यही पहचान रही है कि कोई भी संकट के सामने मुकाबना करना है।

 

कोरोना के खिलाफ बुंदेलखंड के लोग भी डटे हुए हैं। सरकार ने भी प्रयास किया है कि लोगों को कम से कम दिक्कत हो। गरीब का चूल्हा जलता रहे, इसके लिए उत्‍तर प्रदेश के करोड़ों गरीब और ग्रामीण परिवारों को, जैसे देश के अन्‍य भागों में मुफ्त राशन दिया जा रहा है, आपके यहां भी दिया जा रहा है। बुंदेलखंड की करीब-करीब 10 लाख गरीब बहनों को इस दौरान मुफ्त गैस सिलेंडर दिए गए हैं। लाखों बहनों के जनधन खाते में हज़ारों करोड़ रुपए जमा किए गए हैं। गरीब कल्याण रोज़गार अभियान के तहत अकेले उत्‍तर प्रदेश में 700 करोड़ रुपए से अधिक का खर्च अब तक किया जा चुका है, जिसके तहत लाखों कामगार साथियों को रोज़गार उपलब्ध हो रहा है। मुझे बताया गया है कि इस अभियान के तहत यहां बुंदेलखंड में भी सैकड़ों तालाबों को ठीक करने और नए तालाब बनाने का काम किया गया है।

साथियों, चुनाव से पहले जब मैं झांसी आया था, तब मैंने बुंदेलखंड की बहनों से कहा था कि बीते 5 वर्ष शौचालय के लिए थे और आने वाले 5 वर्ष पानी के लिए होंगे। बहनों के आशीर्वाद से हर घर जल पहुंचाने का ये अभियान तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। यूपी और एमपी में फैले बुंदेलखंड के सभी जिलों में पानी के स्रोतों का निर्माण करने और पाइपलाइन बिछाने का काम निरंतर जारी है। इस क्षेत्र में 10 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक की करीब 500 जल परियोजनाओं की स्वीकृति दी जा चुकी है। पिछले 2 महीने में इनमें से करीब-करीब 3 हजार करोड़ रुपए की परियोजनाओं पर काम शुरु भी हो चुका है। जब ये तैयार हो जाएंगी तो इससे बुंदेलखंड के लाखों परिवारों को सीधा लाभ होगा। इतना ही नहीं, बुंदेलखंड में, भूजल के स्तर को ऊपर उठाने के लिए अटल भूजल योजना पर भी काम चल रहा है। झांसी, महोबा, बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट और ललितपुर, इसके साथ-साथ पश्चिम यूपी के सैकड़ों गांवों में जल स्तर को सुधारने के लिए 700 करोड़ रुपए से अधिक की योजना पर काम जारी है।

साथियों, बुंदेलखंड के एक ओर बेतवा बहती और दूसरी और केन नदी बहती है। उत्तर दिशा में माँ यमुना जी हैं। लेकिन स्थितियां ऐसी हैं कि इन नदियों के पानी का पूरा लाभ, पूरे क्षेत्र को नहीं मिल पाता है। इस स्थिति को बदलने के लिए भी केंद्र सरकार निरंतर प्रयास कर रही है। केन बेतवा नदी लिंक परियोजना में इस क्षेत्र के भाग्य को बदलने की बहुत ताकत है। इस दिशा में हम दोनों राज्य सरकारों के साथ लगातार संपर्क में हैं, काम कर रहे है। मुझे पूरा विश्वास है कि एक बार जब बुंदेलखंड को पर्याप्त जल मिलेगा तो यहां जीवन पूरी तरह से बदल जाएगा।

बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे हो या फिर Defence Corridor, हज़ारों करोड़ रुपए के ये project भी यहां रोजगार के हजारों नए अवसर बनाने का काम करेंगे। वो दिन दूर नहीं जब वीरों की ये भूमि, झांसी और इसके आसपास का ये पूरा क्षेत्र देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक बड़ा क्षेत्र विकसित हो जाएगा। यानि एक तरह से बुंलेदखंड में ‘जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान’ का मंत्र चारों दिशाओं में गूंजेगा। केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश की सरकार बुंदेलखंड की पुरातन पहचान को, इस धरती के गौरव को समृद्ध करने के लिए प्रतिबद्ध है।

भविष्य की मंगलकामनाओं के साथ एक बार फिर यूनिवर्सिटी के नए भवन की आप सबको बहुत-बहुत बधाई।

दो गज़ की दूरी, मास्क है ज़रूरी, इस मंत्र को आप हमेशा याद रखिए। आप सुरक्षित रहेंगे, तो देश सुरक्षित रहेगा।

आप सभी का बहुत-बहुत आभार !

धन्‍यवाद।

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!