उपस्थित सभी महानुभाव,

मैं अपने आप में गौरव महसूस कर रहा हूं क्योंकि जब हम छोटे थे, तो ज्ञानपीठ पुरस्कार की खबर आती थी तो बड़े ध्यान से उसको पढ़ते थे कि ये पुरस्कार किसको मिल रहा है, जिसको मिला है उसका Background क्या है। बड़ी उत्सुकता रहती थी और जिसके मन की अवस्था यह रही हो, उसको यहां आ करके बैठने का अवलर मिले, इससे बड़ी बात क्या हो सकती है।

आज का दिवस मन को विचलित करने वाला दिन है। भयंकर भूकंप ने मानव मन को बड़ा परेशान किया हुआ है और पता नही कि कितना नुकसान हुआ होगा क्योंकि अभी तो जानकारी आ रही हैं। नेपाल की पीड़ा भी हमारी ही पीड़ा है। मैंने नेपाल के प्रधानमंत्री जी से, राष्ट्रपति जी से बात की और विश्वास दिलाया है कि सवा सौ करोड़ देशवासी आपकी इस मुसीबत में आपके साथ हैं। ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि इस भयंकर हादसे को सहने की परमात्मा ताकत दे। जिन परिवारजनों पर आफत आई है, उनको शक्ति दे। भारत में भी कम-अधिक कुछ-न-कुछ प्रभाव हुआ है। उनके प्रति भी मेरी संवेदना है।

ये Golden Jubilee का अवसर है। 50वां समारोह है। समाज जीवन में तकनीकी विकास कितना ही क्यों न हुआ हो, वैज्ञानिक विकास कितना ही क्यों न हुआ हो लेकिन उसके साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं का भी अगर विस्तार नहीं होता है, ऊंचाइयों को छूने का प्रयास नहीं होता है, तो पता नहीं मानव जाति का क्या होगा? और इसलिए विज्ञान और Technology के युग में साहित्यिक साधना मानवीय संवेदनाओं को उजागर करने के लिए, मानवीय संवेदनाओं को संजोने के लिए एक बहुत बड़ी औषधि के रूप में काम करता है और जो साहित्यिक साहित्य रचना करता है। आजकल आप Computer के लिए Software बना दें और Software के अंदर Programming के साथ एक-दो हजार शब्द डाल दें और Computer को कह दें कि भई उसमें से कुछ बनाकर के निकाल दो, तो शायद वो बना देता है। लेकिन वो Production होगा, वो Assemble करेगा, Creation नहीं कर सकता है और ये creativity जो है, वो अनुभूति की अभिव्यक्ति होती है। वह एक दर्शन के रूप में प्रवाहित होती है और तब जाकर के पीढ़ियों तक सामान्य मानव के जीवन को स्पर्श करती रहती है। हमारे यहां परंपरा से निकली हुई कहावतें हैं। सदियों के प्रभाव से, अनुभव से, संजो-संजो करके बनी हुई होती हैं और हमने देखा होगा कि एक कहावत जीवन की कितना दिशा-दर्शक बन जाती है। एक कहावत कितना बड़ी उपदेश दे जाती है। पता तक नहीं है ये कहावत का रचयिता कौन था, नियंता कौन था, किस कालखंड में निर्माण हुआ था, कुछ पता नहीं है। लेकिन आज भी और समाज के अनपढ़ से अनपढ़ व्यक्ति से लेकर के वैश्विक ज्ञान संपादन करने का जिसको अवसर मिला है, उनको भी वो एक ही कहावत जोड़ पाती है। यानि हम कल्पना कर सकते हैं कि कितना सामर्थ्य होगा कि जो नीचे से लेकर आसमान तक की अवस्था को स्पष्ट कर सकता है, जोड़ सकता है।

इतना ही नहीं वो बीते हुए युग को, वर्तमान को और आने वाले युग को जोड़ने का सामर्थ्य रखता है। मैंने कहावत का उल्लेख इसलिए किया कि हम भली-भांति रोजमर्रा की जिंदगी में इसका उपयोग करते हैं। साहित्य की ताकत उससे अनेकों गुना ज्यादा होती है और सर्जक जब करता है, मैं नहीं मानता हूं कि वो वाचक के लिए कुछ लिखता है, मैं नहीं मानता हूं, न ही वो इसलिए लिखता है कि उसे कुछ उपदेश देना है, न ही वो इसलिए लिखता है कि उसको कोई विवाद कर-करके अपना जगह बनानी है। वो इसलिए लिखता है, वो लिखे बिना रह नहीं सकता है। उसके भीतर एक आग होती है, उसके भीतर एक ज्वाला होती है, उसके भीतर एक तड़प होती है और तब जाकर के स्याही के सहारे वो संवेदनाएं शब्द का रूप धारण करके बहने लग जाती हैं, जो पीढ़ियों तक भिझोती रहती हैं, पथ-दर्शक बनकर के रहती हैं और तब जाकर के वो साहित्य समाज की एक शक्ति बन जाता है। कोई कल्पना कर सकता है, वेद किसने बनाएं हैं, कब बनाएं हैं, कहां पता है लेकिन आज भी मानव जाति जिन समस्याओं से उलझ रही है, उसके समाधान उसमें से मिल रहे हैं।

मैं अभी फ्रांस गया था। फ्रांस के राष्ट्रपति जी से मेरी बात हो रही थी क्योंकि COP-21 फ्रांस में होने वाला है और Environment को लेकर के दुनिया बड़ी चिंतित है। मैंने कहा जब प्रकृति पर कोई संकट नहीं था, सारी पृथ्वी लबालब प्रकृति से भरी हुई थी। किसी ने उस प्रकृति का exploitation कभी नहीं किया था उस युग में, उस युग में वेद की रचना करने वालों ने प्रकृति की रचना कैसे करनी चाहिए, क्यों करनी चाहिए, मनुष्य जीवन और प्रकृति का नाता कैसा होना चाहिए इसका इतना विद्वत्तापूर्ण वर्णन किया है। मैंने कहा ये हैं दुनिया को रास्ता दिखा सकते हैं कि हां, global warming से बचना है तो कैसे बचा जा सकता है? Environment protection करना है तो कैसे किया जा सकता है और पूरी तरह वैज्ञानिक कसौटी से कसी हुई चीजें सिर्फ उपदेशात्मक नही हैं, सिर्फ भावात्मक नहीं हैं, सिर्फ संस्कृत के श्लोकों का भंडार नहीं है। इसका मतलब हुआ कि युगों पहले किसी ने कल्पना की होगी कि जमीन के सामने क्या संभव होने वाला है और उसका रास्ता अभी से उन मर्यादाओं का पालन करेंगे तो होगा लेकिन कोई रचना करने वाला उस जमाने का कोई नेमाड़े तो ही होगा। हो सकता है उस समय ज्ञानपीठ पुरस्कार नहीं होगा, कहने का तात्पर्य यह है कि ये युगों तक चलने वाली साधना है।

मैं नेमाड़े जी के जीवन की तरफ जब देखता हूं, मैं comparison नहीं करता हैं, मुझे क्षमा करें, न ही मैं वो नेमाड़े जी की ऊंचाई को पकड़ सकता हूं और जिनका उल्लेख करने जा रहा हूं उनकी भी नहीं पकड़ सकता हूं। लेकिन श्री अरविंद जी के जीवन की तरफ देखें और नेमाड़े जी की बातों को सुनें तो बहुत निकटता महसूस होती है। उनका भी लालन-पालन, पठन सब अंग्रेजियत से रहा लेकिन जिस प्रकार से ये back to basic और जीवन के मूल को पकड़ कर के हिंदुस्तान की आत्मा को उन्होंने झंझोरने का जो प्रयास किया था। ये देश का दुर्भाग्य है कि वो बातें व्यापक रूप से हमारे सामने आई नहीं है, लेकिन जब उस तरफ ध्यान जाएगा, दुनिया का ध्यान जाने वाला है। जैसे नेमाड़े जी कह रहे हैं न कि इस back to basic की क्या ताकत है, कभी न कभी जाने वाला है और तब मानव जाति को संकटों से बचाने के रास्ते क्या हो सकते हैं, मानव को मानव के प्रति देखने का तरीका क्या हो सकता है, वो सीधा-सीधा समझ आता है और तब जाकर के छद्म जीवन की जरूरत नहीं पड़ती है, छद्मता का आश्रय लेने की जरूरत नहीं पड़ती है, भीतर से ही एक ताकत निकलती है, जो जोड़ती है।

Neil Armstrong चंद्रमा पर गए थे, वैज्ञानिक थे, technology, space science ये ही जीवन का एक प्रकार से जब जवानी के दिन शुरू हुए, वो space में खो गए, अपने-आप को उसमें समर्पित कर दिया और जब वो वापिस आते थे तो उन्होंने अपनी डायरी में लिखा है, मैं समझता हूं कि वो अपने-आप में एक बहुत बड़ा संदेश है। उन्होंने लिखा, मैं गया जब तब मैं astronaut था लेकिन जब मैं आया तो मैं इंसान बन गया। देखिए जीवन में कहां से, कौन-सी चीज निकलती है और यही तो सामर्थ्य होता है। नेमाड़े जी ने अपने कलम के माध्यम से, अपने भाव जगत को आने वाली पीढ़ियों के लिए अक्षर-देह दिया हुआ है। ये अक्षर-देह आने वाली पीढ़ियों में उपकारक होगा, ऐसा मुझे पूरा विश्वास है लेकिन एक चिंता भी सता रही है।

हमारे यहां किताबें छपती हैं, बहुत कम बिकती हैं मैं जब, मराठी साहित्य का क्या हाल है, मुझे पूरी जानकारी नहीं है लेकिन गुजराती में तो ज्यादातर 1250 किताबें छपती हैं, 2250 तो मैं कभी पूछता था कि 2250 क्यों छाप रहे हो, तो बोले paper जो कभी cutting होता है, तो फिर wastage नहीं जाता है, इतने में से ही निकल जाती है। Publisher के दिमाग में paper रहता है, लेखक के दिमाग में युग रहता है, इतना अंतर है और वो भी बिकते-बिकते दस, बारह, पंद्रह साल बीत जाते हैं, उसमें भी आधी तो शायद library में जाती होगी तब जाकर के मेल बैठ जाता है।

मुझे कभी-कभी लगता है कि हम बढ़िया सा मकान जब बनाते हैं, कभी किसी architecture से बात हुआ क्या? उनको ये तो कहा होगा कि bathroom कैसा हो? उसे ये भी कहा होगा कि drawing room कैसा हो? लेकिन कितने लोग होंगे जिन्होंने करोड़ो- अरबों रुपए खर्च करके बंगला बनाते होंगे और ये भी कहा होगा कि एक कमरा, अच्छी library भी हो और कितने architecture होंगे, जिन्होंने ये कहा होगा कि भले ही कम जगह हो लेकिन एक कोना तो किताब रखने के लिए रखिए। हम आदत क्यों न डालें, हम आदत क्यों न डालें? घर में पूजा अगर होगी, जूते रखने के लिए अलग जगह होगी, सब होगा लेकिन किताब के लिए अलग जगह नहीं होगी। मैं lawyers की बात नहीं कर रहा हूं, क्योंकि उनको तो उसी का सहारा है। लेकिन सामान्य रूप से, दूसरा एक जमाने में student को भी guide मिल जाती थी, तो text book क्यों पढ़े ? Guide से चल जाती थी गाड़ी, अब तो वो भी चिंता का विषय नहीं है, पूरी पीढ़ी Google गुरू की शिष्य है। एक शब्द डाल दिया Google गुरू को पूछ लिया, गुरूजी ढूंढकर के ले आते हैं, सारा ब्राहमांड खोज मारते हैं और इसके कारण अध्य्यन ये सिर्फ प्रवृति नहीं अध्य्यन ये वृत्ति बनना चाहिए। जब तक वो हमारा DNA नहीं बनता तब तक हम नएपन से जुड़ ही नहीं सकते, व्यापकता से जुड़ नहीं सकते, हम आने वाले कल को पहचान नहीं सकते हैं।

मैं गुजरात में जब मुख्यमंत्री था, तो मैंने गुजरात का जब Golden jubilee मनाया तो Golden jubilee year में मैंने एक कार्यक्रम दिया था, गुजराती में उसे कहते हैं “वांचे गुजरात” यानी गुजरात पढ़े और बड़ा अभियान चलाया, मैं खुद library में जाकर के पढ़ता था ताकि लोग देखें कि किताब पढ़नी चाहिए और माहौल ऐसा बना कि library की library खाली होने लगी। पहली बार library खाली हुई होगी? वो सौभाग्य कहां है जी? Library में कई पुस्तक ऐसी होंगी, जिसकी 20-20 साल तक किसी ने हाथ तक नहीं लगाया होगा? ये स्थिति भी बदलनी चाहिए। बालक मन को अगर घर में आदत डालें क्योंकि ये एक ज्ञान का भंडार भी तो जीवन जीने के लिए बहुत बड़ी ताकत होती है और इसलिए हम लोगों का प्रयास रहना चाहिए समाज-जीवन में एक आदत बननी चाहिए।

भले हम technology से जुड़ें, Google गुरू के सहारे गुजारा कर लें, फिर भी मूलतः चीजों को और एक बार पढ़ने की आदत शुरू करेंगे न तो फिर मन लगता है। अगला पढ़ा, इसको पढ़ें, उसको पढ़ें, मन लगता है और लेखक बनने के लिए पढ़ने की जरूरत नहीं होती है, कभी-कभी अपने-आप के लिए भी दर्पण की जरूरत होती है और जिस दर्पण में चेहरा दिखता है। अगर किताब वाली दर्पण को देखें तो भीतर का इंसान नजर आता है और उस रूप में किताब वाली दर्पण और मैं मानता हूं नेमाड़े जी, उस दर्पण का काम करना है कि जो हमारे मूल जगत से हटने का क्या परिणाम होते हैं और हम विश्व के साथ जो सोच रहे हैं, हम कहां खड़े हैं? अपने आप को ठीक पाते हैं कि नहीं पाते? उसका दर्शन करा देते हैं और इसलिए मैं आज ज्ञानपीठ पुरस्कार, वैसे मैंने देखा जब नेमाड़े जी को सरस्वती देवी जी की मूर्ति मिली तो प्रसन्न दिखते थे, शॉल मिली प्रसन्न दिखते थे, नारियल मिला प्रसन्न दिखते थे, लेकिन 11 लाख का चैक आया तो वो uncomfortable थे क्यों? क्योंकि हमारे देश में सरस्वती और लक्ष्मी के मिलन की कल्पना ही नहीं है। देश को आगे बढ़ना है तो सरस्वती और लक्ष्मी का भी मिलन आवश्यक है। ईश्वर नेमाड़ें जी को बुहत शक्ति दे। अपार संपदा अभी भी बहुत भीतर पड़ी होगी। अभी तो बहुत कम निकला होगा, इतना विपुल मात्रा में है, हमें परोसते रहें, परोसते रहें ताकि आने वाली पीढ़ियां भी पुलकित हो जाएं।

मैं उनका बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, हृदय से आदर करता हूं और ये जिम्मेवारी बहुत बड़ी होती है, जिस काम को नामवर सिंह जी ने निभाया है। मैं उनका भी अभिनंदन करता हूं और जैन परिवार ने 50 साल तक लगातार इस परंपरा को उत्तम तरीके से निभाया है, पुरस्कृत किया है, प्रोत्साहित किया है, उस परिवार को भी बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद।

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January 06, 2025
जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना और ओडिशा में रेल ढ़ांचा परियोजनाओं के शुभारंभ से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और इन क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास में मदद मिलेगी: प्रधानमंत्री
आज देश विकसित भारत की संकल्प सिद्धि में जुटा है और इसके लिए भारतीय रेलवे का विकास बहुत महत्वपूर्ण है: प्रधानमंत्री
हम भारत में रेलवे के विकास को चार मापदंडों पर आगे बढ़ा रहे हैं। पहला- रेलवे ढ़ांचे का आधुनिकीकरण, दूसरा- रेलवे के यात्रियों को आधुनिक सुविधाएं, तीसरा- रेलवे की देश के कोने-कोने में कनेक्टिविटी और चौथा- रेलवे से रोजगार सृजन और उद्योगों को मददः प्रधानमंत्री
आज भारत रेल लाइनों के शत-प्रतिशत विद्युतीकरण के करीब है, हमने रेलवे की पहुंच का भी निरंतर विस्तार किया है: प्रधानमंत्री

नमस्कार जी।

तेलंगाना के गवर्नर श्रीमान जिष्णु देव वर्मा जी, ओडिशा के गवर्नर श्री हरि बाबू जी, जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा जी, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री श्रीमान उमर अब्दुल्ला जी, तेलंगाना के सीएम श्रीमान रेवंत रेड्डी जी, ओडिशा के मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी अश्विनी वैष्णव जी, जी किशन रेड्डी जी, डॉ. जीतेंद्र सिंह जी, वी सोमैया जी, रवनीत सिंह बिट्टू जी, बंडी संजय कुमार जी, अन्य मंत्रीगण, सांसद, विधायकगण, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

आज गुरु गोविंद सिंह जी की, उनका ये प्रकाश उत्सव है। उनके विचार, उनका जीवन हमें समृद्ध और सशक्त भारत बनाने की प्रेरणा देता है। मैं सभी को गुरू गोविंद सिंह जी के प्रकाश उत्सव की शुभकामनाएं देता हूं।

साथियों,

2025 की शुरुआत से ही भारत, कनेक्टिविटी की तेज रफ्तार बनाए हुए है। कल मैंने दिल्ली-एनसीआर में नमो भारत ट्रेन का शानदार अनुभव लिया, दिल्ली मेट्रो की अहम परियोजनाओं की शुरूआत की। कल भारत ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है, हमारे देश में अब मेट्रो नेटवर्क, एक हजार किलोमीटर से ज्यादा का हो गया है। अभी आज यहाँ करोड़ों रुपए की परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास हुआ है। उत्तर में जम्मू कश्मीर, पूरब में ओडिशा, और दक्षिण में तेलंगाना, आज देश के एक बड़े हिस्से के लिए 'new age connectivity' के लिहाज से बहुत बड़ा दिन है। इन तीनों राज्यों में आधुनिक विकास की शुरुआत, ये बताता है कि पूरा देश अब एक साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहा है। और यही 'सबका साथ, सबका विकास' वो मंत्र है जो विकसित भारत के सपने में विश्वास के रंग भर रहा है। मैं आज इस अवसर पर, इन तीनों राज्यों के लोगों को और सभी देशवासियों को इन प्रोजेक्ट्स की बधाई देता हूं। और ये भी संयोग है कि आज हमारे ओडिशा के मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण माझी जी का जन्मदिन भी है, मैं उनको भी आज सबकी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

साथियों,

आज देश विकसित भारत की संकल्प सिद्धि में जुटा है, और इसके लिए भारतीय रेलवे का विकास बहुत महत्वपूर्ण है। हमने देखा है, पिछला एक दशक भारतीय रेलवे के ऐतिहासिक ट्रांसफॉर्मेशन का रहा है। रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर में एक visible change आया है। इससे देश की छवि बदली है, और देशवासियों का मनोबल भी बढ़ा है।

साथियों,

भारत में रेलवे के विकास को हम चार पैरामीटर्स पर आगे बढ़ा रहे हैं। पहला- रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर का modernization, दूसरा- रेलवे के यात्रियों को आधुनिक सुविधाएं, तीसरा- रेलवे की देश के कोने-कोने में कनेक्टिविटी, चौथा- रेलवे से रोजगार का निर्माण, उद्योगों को सपोर्ट। आज के इस कार्यक्रम में भी इसी विजन की झलक दिखाई देती है। ये नए डिविजन, नए रेल टर्मिनल, भारतीय रेलवे को 21वीं सदी की आधुनिक रेलवे बनाने में अहम योगदान देंगे। इनसे देश में आर्थिक समृद्धि का इकोसिस्टम डवलप करने में मदद मिलेगी, रेलवे के संचालन में मदद मिलेगी, निवेश के ज्यादा मौके बनेंगे और नई नौकरियों का सृजन भी होगा।

साथियों,

2014 में हमने भारतीय रेलवे को आधुनिक बनाने का सपना लेकर काम शुरू किया था। वंदे भारत ट्रेनों की फैसिलिटी, अमृत भारत और नमो भारत रेल की सुविधा, अब भारतीय रेल का नया बेंचमार्क बन रही हैं। आज का Aspirational India, कम समय में बहुत ज्यादा पाने की आकांक्षा रखता है। आज लोग लंबी दूरी की यात्रा को भी कम समय में पूरा करना चाहते हैं। ऐसे में देश के हर हिस्से में हाई स्पीड ट्रेनों की मांग बढ़ रही है। आज 50 से ज्यादा रूट्स पर वंदे भारत ट्रेनें चल रही हैं। 136 वंदे भारत सेवाएं लोगों की यात्रा को सुखद बना रही हैं। अभी मैं दो-तीन दिन पहले ही एक वीडियो देख रहा था, अपने ट्रायल रन में वंदे भारत का नया स्लीपर वर्जन कैसे 180 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ रहा है, और ये देखकर मुझे ही नहीं किसी भी हिन्दुस्तानी को अच्छा लगेगा। ऐसे अनुभव ये तो शुरुआत हैं, वो समय दूर नहीं जब भारत में पहली बुलेट ट्रेन भी दौड़ेगी।

साथियों,

हमारा लक्ष्य है कि- फ़र्स्ट स्टेशन से लेकर डेस्टिनेशन तक, भारतीय रेल से यात्रा एक यादगार अनुभव बने। इसके लिए देश में 1300 से ज्यादा अमृत स्टेशनों का कायाकल्प भी हो रहा है। पिछले 10 वर्षों में रेल कनेक्टिविटी का भी अद्भुत विस्तार हुआ है। 2014 तक देश में सिर्फ thirty five percent, 35 परसेंट रेल लाइनों का electrification हुआ था। आज भारत, रेल लाइनों के शत प्रतिशत electrification के करीब है। हमने रेलवे की reach को भी लगातार expand किया है। बीते 10 वर्षों में 30 हजार किलोमीटर से ज्यादा नए रेलवे ट्रैक बिछाए गए हैं, सैकड़ों रोड ओवर ब्रिज और रोड अंडर ब्रिज का निर्माण किया गया है। अब ब्रॉड गेज लाइनों पर मानव रहित क्रॉसिंग्स खत्म हो चुकी हैं। इससे दुर्घटनाएं भी कम हुई हैं और यात्रियों की सुरक्षा भी बढ़ी है। देश में Dedicated freight corridor जैसे आधुनिक रेल नेटवर्क का काम भी तेजी से पूरा हो रहा है। ये स्पेशल corridor बनने से सामान्य ट्रैक पर दबाव कम होगा और हाई स्पीड ट्रेनों को चलाने के अवसर भी बढ़ेंगे।

साथियों,

रेलवे में आज कायाकल्प का जो अभियान चल रहा है, जिस तरह मेड इन इंडिया को बढ़ावा दिया जा रहा है, मेट्रो के लिए, रेलवे के लिए आधुनिक डिब्बे तैयार किए जा रहे हैं, स्टेशनों को री-डवलप किया जा रहा है, स्टेशनों पर सोलर-पैनल लगाए जा रहे हैं, 'वन स्टेशन, वन प्रोडक्ट' इसके स्टॉल लग रहे हैं, उससे भी रेलवे में रोजगार के लाखों नए अवसर बन रहे हैं। पिछले 10 साल में रेलवे में लाखों युवाओं को पक्की सरकारी नौकरी मिली है। हमें याद रखना है, जिन कारखानों में नई ट्रेनों के डिब्बे बनाए जा रहे हैं, उसके लिए कच्चा माल दूसरी फैक्ट्रियों से आ रहा है। वहां डिमांड बढ़ने का मतलब है, रोजगार के ज्यादा अवसर। रेलवे से जुड़ी विशेष स्किल को ध्यान में रखते हुए देश की पहली गति-शक्ति यूनिवर्सिटी की भी स्थापना की गई है।

साथियों,

आज जैसे-जैसे रेलवे नेटवर्क का विस्तार हो रहा है, उसी हिसाब से नए हेडक्वार्टर और डिवीजन भी बनाए जा रहे हैं। जम्मू डिवीज़न का लाभ जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश और पंजाब के कई शहरों को भी होगा। इससे लेह-लद्दाख के लोगों को भी सुविधा होगी।

साथियों,

हमारा जम्मू-कश्मीर आज रेल इंफ्रास्ट्रक्चर में नए रिकॉर्ड बना रहा है। उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लाइन इसकी चर्चा आज पूरे देश में है। ये परियोजना जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य हिस्सों के साथ और बेहतरी से जोड़ देगी। इसी परियोजना के तहत दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे आर्च ब्रिज, चिनाब ब्रिज का काम पूरा हुआ है। अंजी खड्ड ब्रिज, जो देश का पहला केबल आधारित रेल ब्रिज है, वो भी इसी परियोजना का हिस्सा है। ये दोनों इंजीनियरिंग के बेजोड़ उदाहरण हैं। इनसे इस क्षेत्र में आर्थिक प्रगति होगी और समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।

साथियों,

भगवान जगन्नाथ के आशीर्वाद से हमारे ओडिशा के पास प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है। इतना बड़ा समुद्री तट मिला है। ओडिशा में इंटरनेशनल ट्रेड की प्रबल संभावनाएं हैं। आज ओडिशा में रेलवे के नए ट्रैक से जुड़े लगभग अनेकों प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है। इन पर 70 हजार करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हो रहा है। राज्य में 7 गति शक्ति कार्गो टर्मिनल शुरू किए गए हैं, जो व्यापार और उद्योगों को बढ़ावा दे रहे हैं। आज भी ओडिशा में जिस रायगड़ा रेल मंडल का शिलान्यास किया गया है, इससे प्रदेश का रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर और मजबूत होगा। इससे ओडिशा में पर्यटन, व्यापार और रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। खास तौर पर, इसका बहुत लाभ उस दक्षिण ओडिशा को मिलेगा, जहां जनजातीय परिवारों की संख्या ज्यादा है। हम जनमन योजना के तहत जिन अति-पिछड़े आदिवासी इलाकों का विकास कर रहे हैं, ये इंफ्रास्ट्रक्चर उनके लिए वरदान साबित होगा।

साथियों,

आज मुझे तेलंगाना के चर्लपल्ली न्यू टर्मिनल स्टेशन के उद्घाटन का भी अवसर मिला है। इस स्टेशन के आउटर रिंग रोड से जुड़ने से क्षेत्र में विकास को गति मिलेगी। स्टेशन पर आधुनिक प्लेटफॉर्म, लिफ्ट, एस्केलेटर जैसी सुविधाएं हैं। एक और खास बात है कि ये स्टेशन सोलर ऊर्जा से संचालित हो रहा है। ये नया रेलवे टर्मिनल, शहर के मौजूदा टर्मिनल्स जैसे सिकंदराबाद, हैदराबाद और काचिगुड़ा पर प्रेशर को बहुत कम करेगा। इससे लोगों के लिए यात्रा और सुविधाजनक होगी। यानि ease of living के साथ-साथ ease of doing business को भी बढ़ावा मिलेगा।

साथियों,

आज देश में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण का महायज्ञ चल रहा है। भारत के एक्सप्रेसवे, वॉटरवे, मेट्रो नेटवर्क का तेज गति से विस्तार हो रहा है। आज देश के एयरपोर्ट्स पर सबसे बेहतरीन सुविधाएं मिल रही हैं। 2014 में देश में एयरपोर्ट्स की संख्या 74 थी, अब इनकी संख्या बढ़कर 150 के पार हो चुकी है। 2014 तक सिर्फ 5 शहरों में मेट्रो की सुविधा थी, आज 21 शहरों में मेट्रो है। इस स्केल और स्पीड को मैच करने के लिए भारतीय रेलवे को भी लगातार अपग्रेड किया जा रहा है।

साथियों,

ये सभी विकास कार्य विकसित भारत के उस रोडमैप का हिस्सा हैं, जो आज हर देशवासी के लिए एक मिशन बन चुका है। मुझे विश्वास है, हम सब साथ मिलकर इस दिशा में और भी तेज गति से आगे बढ़ेंगे। मैं एक बार फिर इन परियोजनाओं के लिए देशवासियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद।