उपस्थित सभी महानुभाव,

आप सबको क्रिसमस के पावन पर्व की बुहत-बहुत शुभकामनाएं। ये आज सौभाग्य है कि 25 दिसंबर, पंडित मदन मोहन मालवीय जी की जन्म जयंती पर, मुझे उस पावन धरती पर आने का सौभाग्य मिला है जिसके कण-कण पर पंडित जी के सपने बसे हुए हैं। जिनकी अंगुली पकड़ कर के हमें बड़े होने का सौभाग्य मिला, जिनके मार्गदर्शन में हमें काम करने का सौभाग्य मिला ऐसे अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी आज जन्मदिन है और आज जहां पर पंडित जी का सपना साकार हुआ, उस धरती के नरेश उनकी पुण्यतिथि का भी अवसर है। उन सभी महापुरुषों को नमन करते हुए, आज एक प्रकार से ये कार्यक्रम अपने आप में एक पंचामृत है। एक ही समारोह में अनेक कार्यक्रमों का आज कोई-न-कोई रूप में आपके सामने प्रस्तुतिकरण हो रहा है। कहीं शिलान्यास हो रहा है तो कहीं युक्ति का Promotion हो रहा है तो Teachers’ Training की व्यवस्था हो रही है तो काशी जिसकी पहचान में एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि यहां कि सांस्कृतिक विरासत उन सभी का एक साथ आज आपके बीच में उद्घाटन करने का अवसर मुझे मिला है। मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

मैं विशेष रूप से इस बात की चर्चा करना चाहता हूं कि जब-जब मानवजाति ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है तब-तब भारत ने विश्व गुरू की भूमिका निभाई है और 21वीं सदी ज्ञान की सदी है मतलब की 21वीं सदी भारत की बहुत बड़ी जिम्मेवारियों की भी सदी है और अगर ज्ञान युग ही हमारी विरासत है तो भारत ने उस एक क्षेत्र में विश्व के उपयोगी कुछ न कुछ योगदान देने की समय की मांग है। मनुष्य का पूर्णत्व Technology में समाहित नहीं हो सकता है और पूर्णत्व के बिना मनुष्य मानव कल्याण की धरोहर नहीं बन सकता है और इसलिए पूर्णत्व के लक्ष्य को प्राप्त करना उसी अगर मकसद को लेकर के चलते हैं तो विज्ञान हो, Technology हो नए-नए Innovations हो, Inventions हो लेकिन उस बीच में भी एक मानव मन एक परिपूर्ण मानव मन ये भी विश्व की बहुत बड़ी आवश्यकता है।

हमारी शिक्षा व्यवस्था Robot पैदा करने के लिए नहीं है। Robot तो शायद 5-50 वैज्ञानिक मिलकर शायद लेबोरेटरी में पैदा कर देंगे, लेकिन नरकर्णी करे तो नारायण हो जाए। ये जिस भूमि का संदेश है वहां तो व्यक्तित्व का संपूर्णतम विकास यही परिलक्षित होता है और इसलिए इस धरती से जो आवाज उठी थी, इस धरती से जो संस्कार की गंगा बही थी उसमें संस्कृति की शिक्षा तो थी लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण था शिक्षा की संस्कृति और आज कहीं ऐसा तो नहीं है सदियों से संजोयी हुई हमारी शैक्षिक परंपरा है, जो एक संस्कृतिक विरासत के रूप में विकसित हुई है। वो शिक्षा की संस्कृति तो लुप्त नहीं हो रही है? वो भी तो कहीं प्रदूषित नहीं हो रही है? और तब जाकर के आवश्यकता है कि कालवाह्य चीजों को छोड़कर के उज्जवलतम भविष्य की ओर नजर रखते हुए पुरानी धरोहर के अधिष्ठान को संजोते हुए हम किस प्रकार की व्यवस्था को विकसित करें जो आने वाली सदियों तक मानव कल्याण के काम आएं।

हम दुनिया के किसी भी महापुरुष का अगर जीवन चरित्र पढ़ेंगे, तो दो बातें बहुत स्वाभाविक रूप से उभर कर के आती हैं। अगर कोई पूछे कि आपके जीवन की सफलता के कारण तो बहुत एक लोगों से एक बात है कि एक मेरी मां का योगदान, हर कोई कहता है और दूसरा मेरे शिक्षक का योगदान। कोई ऐसा महापुरुष नहीं होगा जिसने ये न कहा हो कि मेरे शिक्षक का बुहत बड़ा contribution है, मेरी जिंदगी को बनाने में, अगर ये हमें सच्चाई को हम स्वीकार करते हैं तो हम ये बहुमूल्य जो हमारी धरोहर है इसको हम और अधिक तेजस्वी कैसे बनाएं और अधिक प्राणवान कैसे बनाएं और उसी में से विचार आया कि, वो देश जिसके पास इतना बड़ा युवा सामर्थ्य है, युवा शक्ति है।

आज पूरे विश्व को उत्तम से उत्तम शिक्षकों की बहुत बड़ी खोट है, कमी है। आप कितने ही धनी परिवार से मिलिए, कितने ही सुखी परिवार से मिलिए, उनको पूछिए किसी एक चीज की आपको आवश्यकता लगती है तो क्या लगती है। अरबों-खरबों रुपयों का मालिक होगा, घर में हर प्रकार का सुख-वैभव होगा तो वो ये कहेगा कि मुझे अच्छा टीचर चाहिए मेरे बच्चों के लिए। आप अपने ड्राइवर से भी पूछिए कि आपकी क्या इच्छा है तो ड्राइवर भी कहता है कि मेरे बच्चे भी अच्छी शिक्षी ही मेरी कामना है। अच्छी शिक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर के दायरे में नहीं आती। Infrastructure तो एक व्यवस्था है। अच्छी शिक्षा अच्छे शिक्षकों से जुड़ी हुई होती है और इसलिए अच्छे शिक्षकों का निर्माण कैसे हो और हम एक नए तरीके से कैसे सोचें?

आज 12 वीं के बीएड, एमएड वगैरह होता है वो आते हैं, ज्यादातर बहुत पहले से ही जिसने तय किया कि मुझे शिक्षक बनना है ऐसे बहुत कम लोग होते हैं। ज्यादातर कुछ न कुछ बनने का try करते-करके करके हुए आखिर कर यहां चल पड़ते हैं। मैं यहां के लोगों की बात नहीं कर रहा हूं। हम एक माहौल बना सकते हैं कि 10वीं,12वीं की विद्यार्थी अवस्था में विद्यार्थियों के मन में एक सपना हो मैं एक उत्तम शिक्षक बनना चाहता हूं। ये कैसे बोया जाए, ये environment कैसे create किया जाए? और 12वीं के बाद पहले Graduation के बाद law faculty में जाते थे और वकालत धीरे-धीरे बदलाव आया और 12वीं के बाद ही पांच Law Faculty में जाते हैं और lawyer बनकर आते हैं। क्या 10वीं और 12वीं के बाद ही Teacher का एक पूर्ण समय का Course शुरू हो सकता है और उसमें Subject specific मिले और जब एक विद्यार्थी जिसे पता है कि मुझे Teacher बनना है तो Classroom में वो सिर्फ Exam देने के लिए पढ़ता नहीं है वो अपने शिक्षक की हर बारीकी को देखता है और हर चीज में सोचता है कि मैं शिक्षक बनूंगा तो कैसे करूंगा, मैं शिक्षक बनूंगा ये उसके मन में रहता है और ये एक पूरा Culture बदलने की आवश्यकता है।

उसके साथ-साथ भले ही वो विज्ञान का शिक्षक हो, गणित का शिक्षक हो उसको हमारी परंपराओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे Child Psychology का पता होना चाहिए, उसको विद्यार्थियों को Counselling कैसे करना चाहिए ये सीखना चाहिए, उसे विद्यार्थियों को मित्रवत व्यवहार कैसे करना है ये सीखाना चाहिए और ये चीजें Training से हो सकती हैं, ऐसा नहीं है कि ये नहीं हो सकता है। सब कुछ Training से हो सकता है और हम इस प्रकार के उत्तम शिक्षकों को तैयार करें मुझे विश्वास है कि दुनिया को जितने शिक्षकों की आवश्यकता है, हम पूरे विश्व को, भारत के पास इतना बड़ा युवा धन है लाखों की तादाद में हम शिक्षक Export कर सकते हैं। Already मांग तो है ही है हमें योग्यता के साथ लोगों को तैयार करने की आवश्यकता है और एक व्यापारी जाता है बाहर तो Dollar या Pound ले आता है लेकिन एक शिक्षक जाता है तो पूरी-पूरी पीढ़ी को अपने साथ ले आता है। हम कल्पना कर सकते हैं कितना बड़ा काम हम वैश्विक स्तर पर कर सकते हैं और उसी एक सपने को साकार करने के लिए पंड़ित मदन मोहन मालवीय जी के नाम से इस मिशन को प्रारंभ किया गया है। और आज उसका शुभारंभ करने का मुझे अवसर मिला है।

आज पूरे विश्व में भारत के Handicraft तरफ लोगों का ध्यान है, आकर्षण है लेकिन हमारी इस पुरानी पद्धतियों से बनी हुई चीजें Quantum भी कम होता है, Wastage भी बहुत होता है, समय भी बहुत जाता है और इसके कारण एक दिन में वो पांच खिलौने बनाता है तो पेट नहीं भरता है लेकिन अगर Technology के उपयोग से 25 खिलौने बनाता है तो उसका पेट भी भरता है, बाजार में जाता है और इसलिए आधुनिक विज्ञान और Technology को हमारे परंपरागत जो खिलौने हैं उसका कैसे जोड़ा जाए उसका एक छोटा-सा प्रदर्शन मैंने अभी उनके प्रयोग देखे, मैं देख रहा था एक बहुत ही सामान्य प्रकार की टेक्नोलोजी को विकसित किया गया है लेकिन वो उनके लिए बहुत बड़ी उपयोगिता है वरना वो लंबे समय अरसे से वो ही करते रहते थे। उसके कारण उनके Production में Quality, Production में Quantity और उसके कारण वैश्विक बाजार में अपनी जगह बनाने की संभावनाएं और हमारे Handicrafts की विश्व बाजार की संभावनाएं बढ़ी हैं। आज हम उनको Online Marketing की सुविधाएं उपलब्ध कराएं। युक्ति, जो अभियान है उसके माध्यम से हमारे जो कलाकार हैं, काश्तकारों को ,हमारे विश्वकर्मा हैं ये इन सभी विश्वकर्माओं के हाथ में हुनर देने का उनका प्रयास। उनके पास जो skill है उसको Technology के लिए Up-gradation करने का प्रयास। उस Technology में नई Research हो उनको Provide हो, उस दिशा में प्रयास बढ़ रहे हैं।

हमारे देश में सांस्कृतिक कार्यक्रम तो बहुत होते रहते हैं। कई जगहों पर होते हैं। बनारस में एक विशेष रूप से भी आरंभ किया है। हमारे टूरिज्म को बढ़ावा देने में इसकी बहुत बड़ी ताकत है। आप देखते होंगे कि दुनिया ने, हम ये तो गर्व करते थे कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने हमें योग दिया holistic health के लिए preventive health के लिए योग की हमें विरासत मिली और धीरे-धीरे दुनिया को भी लगने लगा योग है क्या चीज और दुनिया में लोग पहुंच गए। नाक पकड़कर के डॉलर भी कमाने लग गए। लेकिन ये शास्त्र आज के संकटों के युग में जी रहे मानव को एक संतुलित जीवन जीने की ताकत कैसे मिले। योग बहुत बड़ा योगदान कर सकता है। मैं सितंबर में UN में गया था और UN में पहली बार मुझे भाषण करने का दायित्व था। मैंने उस दिन कहा कि हम एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाएं और मैंने प्रस्तावित किया था 21 जून। सामान्य रूप से इस प्रकार के जब प्रस्ताव आते हैं तो उसको पारित होने में डेढ़ साल, दो साल, ढ़ाई साल लग जाते हैं। अब तक ऐसे जितने प्रस्ताव आए हैं उसमें ज्यादा से ज्यादा 150-160 देशों नें सहभागिता दिखाई है। जब योग का प्रस्ताव रखा मुझे आज बड़े आनंद और गर्व के साथ कहना है और बनारस के प्रतिनिधि के नाते बनारस के नागरिकों को ये हिसाब देते हुए, मुझे गर्व होता है कि 177 Countries Co- sponsor बनी जो एक World Record है। इस प्रकार के प्रस्ताव में 177 Countries का Co- sponsor बनना एक World Record है और जिस काम में डेढ़-दो साल लगते हैं वो काम करीब-करीब 100 दिन में पूरा हो गया। UN ने इसे 21 जून को घोषित कर दिया ये भी अपने आप में एक World Record है।

हमारी सांस्कृतिक विरासत की एक ताकत है। हम दुनिया के सामने आत्मविश्वास के साथ कैसे ले जाएं। हमारा गीत-संगीत, नृत्य, नाट्य, कला, साहित्य कितनी बड़ी विरासत है। सूरज उगने से पहले कौन-सा संगीत, सूरज उगने के बाद कौन-सा संगीत यहां तक कि बारीक रेखाएं बनाने वाला काम हमारे पूर्वजों ने किया है और दुनिया में संगीत तो बहुत प्रकार के हैं लेकिन ज्यादातर संगीत तन को डोलाते हैं बहुत कम संगीत मन को डोलाते हैं। हम उस संगीत के धनी हैं जो मन को डोलाता है और मन को डोलाने वाले संगीत को विश्व के अंदर कैसे रखें यही प्रयासों से वो आगे बढ़ने वाला है लेकिन मेरे मन में विचार है क्या बनारस के कुछ स्कूल, स्कूल हो, कॉलेज हो आगे आ सकते हैं क्या और बनारस के जीवन पर ही एक विषय पर ही एक स्कूल की Mastery हो बनारस की विरासत पर, कोई एक स्कूल हो जिसकी तुलसी पर Mastery हो, कोई स्कूल हो जिसकी कबीर पर हो, ऐसी जो भी यहां की विरासत है उन सब पर और हर दिन शाम के समय एक घंटा उसी स्कूल में नाट्य मंच पर Daily उसका कार्यक्रम हो और जो Tourist आएं जिसको कबीर के पास जाना है उसके स्कूल में चला जाएगा, बैठेगा घंटे-भर, जिसको तुलसी के पास जाना है वो उस स्कूल में जाए बैठेगा घंटे भर , धीरे-धीरे स्कूल टिकट भी रख सकता है अगर popular हो जाएगी तो स्कूल की income भी बढ़ सकती है लेकिन काशी में आया हुआ Tourist वो आएगा हमारे पूर्वजों के प्रयासों के कारण, बाबा भोलेनाथ के कारण, मां गंगा के कारण, लेकिन रुकेगा हमारे प्रयासों के कारण। आने वाला है उसके लिए कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं क्योंकि वो जन्म से ही तय करके बैठा है कि जाने है एक बार बाबा के दरबार में जाना है लेकिन वो एक रात यहां तब रुकेगा उसके लिए हम ऐसी व्यवस्था करें तब ऐसी व्यवस्था विकसित करें और एक बार रात रुक गया तो यहां के 5-50 नौजवानों को रोजगार मिलना ही मिलना है। वो 200-500-1000 रुपए खर्च करके जाएगा जो हमारे बनारस की इकॉनोमी को चलाएगा और हर दिन ऐसे हजारों लोग आते हैं और रुकते हैं तो पूरी Economy यहां कितनी बढ़ सकती है लेकिन इसके लिए ये छोटी-छोटी चीजें काम आ सकती हैं।

हमारे हर स्कूल में कैसा हो, हमारे जो सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, परंपरागत जो हमारे ज्ञान-विज्ञान हैं उसको तो प्रस्तुत करे लेकिन साथ-साथ समय की मांग इस प्रकार की स्पर्धाएं हो सकती हैं, मान लीजिए ऐसे नाट्य लेखक हो जो स्वच्छता पर ही बड़े Touchy नाटक लिखें अगर स्वच्छता के कारण गरीब को कितना फायदा होता है आज गंदगी के कारण Average एक गरीब को सात हजार रुपए दवाई का खर्चा आता है अगर हम स्वच्छता कर लें तो गरीब का सात हजार रुपए बच जाता है। तीन लोगों का परिवार है तो 21 हजार रुपए बच जाता है। ये स्वच्छता का कार्यक्रम एक बहुत बड़ा अर्थ कारण भी उसके साथ जुड़ा हुआ है और स्वच्छता ही है जो टूरिज्म की लिए बहुत बड़ी आवश्यकता होती है। क्या हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाट्य मंचन में ऐसे मंचन, ऐसे काव्य मंचन, ऐसे गीत, कवि सम्मेलन हो तो स्वच्छता पर क्यों न हो, उसी प्रकार से बेटी बचाओ भारत जैसा देश जहां नारी के गौरव की बड़ी गाथाएं हम सुनते हैं। इसी धरती की बेटी रानी लक्ष्मीबाई को हम याद करते हैं लेकिन उसी देश में बटी को मां के गर्भ में मार देते हैं। इससे बड़ा कोई पाप हो नहीं सकता है। क्या हमारे नाट्य मंचन पर हमारे कलाकारों के माध्यम से लगातार बार-बार हमारी कविताओं में, हमारे नाट्य मंचों पर, हमारे संवाद में, हमारे लेखन में बेटी बचाओ जैसे अभियान हम घर-घर पहुंच सकते हैं।

भारत जैसा देश जहां चींटी को भी अन्न खिलाना ये हमारी परंपरा रही है, गाय को भी खिलाना, ये हमारी परंपरा रही है। उस देश में कुपोषण, हमारे बालकों को……उस देश में गर्भवती माता कुपोषित हो इससे बड़ी पीड़ा की बात क्या हो सकती है। क्या हमारे नाट्य मंचन के द्वारा, क्या हमारी सांस्कृतिक धरोहर के द्वारा से हम इन चीजों को प्रलोभन के उद्देश्य में ला सकते हैं क्या? मैं कला, साहित्य जगत के लोगों से आग्रह करूंगा कि नए रूप में देश में झकझोरने के लिए कुछ करें।

जब आजादी का आंदोलन चला था तब ये ही साहित्यकार और कलाकार थे जिनकी कलम ने देश को खड़ा कर दिया था। स्वतंत्र भारत में सुशासन का मंत्र लेकर चल रहे तब ये ही हमारे कला और साहित्य के लोगों की कलम के माध्यम से एक राष्ट्र में नवजागरण का माहौल बना सकते हैं।

मैं उन सबको निमंत्रित करता हूं कि सांस्कृतिक सप्ताह यहां मनाया जा रहा है उसके साथ इसका भी यहां चिंतन हो, मनन हो और देश के लिए इस प्रकार की स्पर्धाएं हो और देश के लिए इस प्रकार का काम हो।

मुझे विश्वास है कि इस प्रयास से सपने पूरे हो सकते हैं साथियों, देश दुनिया में नाम रोशन कर सकता है। मैं अनुभव से कह सकता हूं, 6 महीने के मेरे अनुभव से कह सकता हूं पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है हम तैयार नहीं है, हम तैयार नहीं है हमें अपने आप को तैयार करना है, विश्व तैयार बैठा है।

मैं फिर एक बार पंडित मदन मोहन मालवीय जी की धरती को प्रणाम करता हूं, उस महापुरुष को प्रणाम करता हूं। आपको बहुत-बुहत शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | आज बहुत पावन दिन पर मुझे आपसे ‘मन की बात’ करने का अवसर मिला है | आज चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि है | आज से चैत्र नवरात्र की शुरुआत हो रही है | आज से भारतीय नववर्ष का भी आरंभ हो रहा है | इस बार विक्रम संवत 2082 (दो हजार बयासी) शुरू हो रहा है | इस समय मेरे सामने आपकी ढ़ेर सारी चिट्ठियाँ रखी हुई हैं | कोई बिहार से हैं, कोई बंगाल से, कोई तमिलनाडु से हैं, कोई गुजरात से हैं | इनमें बड़े रोचक तरीके से लोगों ने अपने मन की बातें लिखकर भेजी हैं | कई सारी चिट्ठियों में शुभकामनाएं भी हैं, बधाई संदेश भी हैं | लेकिन आज मेरा मन करता है, कुछ संदेशों को आपको सुनाऊं –

प्रधानमंत्री (कन्नड़ भाषा में) – सभी को उगादि उत्सव की शुभकामनाएं

अगला संदेश है –
प्रधानमंत्री (तेलुगु भाषा में) – सभी को उगादि उत्सव की शुभकामनाएं

अब एक और चिट्ठी में लिखा है –
प्रधानमंत्री (कोंकणी भाषा में) – संसार पाड़वा की शुभकामनाएं

अगले संदेश में लिखा गया है –

प्रधानमंत्री (मराठी भाषा में) – गुड़ी पाड़वा के अवसर पर
हार्दिक शुभेच्छाएं

हमारे एक साथी ने लिखा है –
प्रधानमंत्री (मलयालम भाषा में) – सभी को विषु पर्व की शुभकामनाएं

एक और संदेश है –
प्रधानमंत्री (तमिल भाषा में) – सभी को नववर्ष (पुथांडु)
की शुभकामनाएं

साथियो,

आप ये तो समझ गए होंगे कि अगल-अलग भाषाओं में भेजे गए संदेश हैं | लेकिन क्या आप इसकी वजह जानते हैं? यही तो वो खास बात है, जो आज मुझे आपसे साझा करनी है | हमारे देश के अलग-अलग राज्यों में आज और अगले कुछ दिनों में नववर्ष शुरू हो रहे हैं | और ये सभी संदेश नववर्ष और विभिन्न पर्वों की बधाइयों के हैं | इसीलिए मुझे अलग-अलग भाषाओं में लोगों ने शुभकामनाएं भेजी हैं|

साथियो,

आज कर्नाटका में, आंध्र प्रदेश, तेलंगना में उगादि का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जा रहा है | आज ही महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा मनाया जा रहा है | विविधता भरे हमारे देश में, अलग-अलग राज्यों में अगले कुछ दिन में असम में ‘रोंगाली बिहू’, बंगाल में ‘पोइला बोइशाख’, कश्मीर में ‘नवरेह’ का उत्सव मनाया जाएगा | इसी तरह, 13 से 15 अप्रैल के बीच देश के अलग-अलग हिस्सों में त्योहारों की जबरदस्त धूम दिखेगी | इसे लेकर भी उत्साह का माहौल है और ईद का त्योहार तो आ ही रहा है | यानी ये पूरा महीना त्योहारों का है, पर्वों का है | मैं देश के लोगों को इन त्योहारों की बहुत-बहुत बधाई देता हूं |हमारे ये त्योहार भले ही अलग-अलग क्षेत्रों में हो लेकिन ये दिखाते हैं कि भारत की विविधता में भी कैसे एकता पिरोई हुई है | इस एकता की भावना को हमें निरंतर मजबूत करते चलना है|

साथियो,

जब परीक्षाएं आती हैं, तो युवा साथियों के साथ मैं ‘परीक्षा पे चर्चा’ करता हूं | अब परीक्षाएं हो चुकी हैं | बहुत सारे स्कूलों में तो दोबारा class शुरू होने की तैयारी हो रही है | इसके बाद गर्मी की छुट्टियों का समय भी आने वाला है | साल के इस समय का बच्चों को बहुत इंतजार रहता है | मुझे तो अपने बचपन के दिन याद आ गए जब मैं और मेरे दोस्त दिनभर कुछ-ना-कुछ उत्पात मचाते रहते थे | लेकिन साथ ही हम कुछ constructive भी करते थे, सीखते भी थे | गर्मियों के दिन बड़े होते हैं, इसमें बच्चों के पास करने को बहुत कुछ होता है | यह समय किसी नई hobby को अपनाने के साथ ही अपने हुनर को और तराशने का भी है | आज बच्चों के लिए ऐसे platform की कमी नहीं, जहां वे काफी कुछ सीख सकते हैं | जैसे कोई संस्था technology camp चला रही हो, तो बच्चे वहाँ App बनाने के साथ ही open-source software के बारे में जान सकते हैं | अगर कहीं पर्यावरण की बात हो, theatre की बात हो, या leadership की बात हो, ऐसे भिन्न-भिन्न विषय के course होते रहते हैं, तो, उससे भी जुड़ सकते हैं | ऐसे कई स्कूल हैं जो speech या तो drama सिखाते हैं ये बच्चों को बहुत काम आते हैं | इन सबके अलावा आपके पास इन छुट्टियों में कई जगह चल रहे volunteer activities, सेवा कार्यों से भी जुड़ने का अवसर है | ऐसे कार्यक्रमों को लेकर मेरा एक विशेष आग्रह है | अगर कोई संगठन, कोई स्कूल या सामाजिक संस्थाएं, या तो फिर science centre ऐसी summer activities करवा रहे हों, तो इसे #MyHolidays के साथ जरूर share करें | इससे देश-भर के बच्चे और उनके माता-पिता को इनके बारे में आसानी से जानकारी मिल सकेगी |

मेरे युवा साथियो,

मैं आज आपसे MY-Bharat के उस खास calendar की भी चर्चा करना चाहूंगा, जिसे इस summer vacation के लिए तैयार किया गया है | इस calendar की एक copy अभी मेरे सामने रखी हुई है | मैं इस calendar से कुछ अनूठे प्रयासों को साझा करना चाहता हूं | जैसे MY-Bharat के study tour में आप ये जान सकते हैं कि हमारे ‘जन औषधि केंद्र’ कैसे काम करते हैं | आप vibrant village अभियान का हिस्सा बनकर सीमावर्ती गाँवों में एक अनोखा अनुभव ले सकते हैं | इसके साथ ही वहाँ culture और sports activities का हिस्सा जरूर बन सकते हैं | वहीं अंबेडकर जयंती पर पदयात्रा में भागीदारी कर आप संविधान के मूल्यों को लेकर जागरूकता भी फैला सकते हैं | बच्चों और उनके माता-पिता से भी मेरा विशेष आग्रह है कि वे छुट्टियों के अनुभवों को #HolidayMemories के साथ जरूर साझा करें | मैं आपके अनुभवों को आगे आने वाली ‘मन की बात’ में शामिल करने का प्रयास करूंगा |

मेरे प्यारे देशवासियो,

गर्मी का मौसम शुरू होते ही शहर-शहर, गांव-गांव, पानी बचाने की तैयारियां भी शुरू हो जाती हैं| अनेक राज्यों में water harvesting से जुड़े कामों ने, जल संरक्षण से जुड़े कामों ने नई तेजी पकड़ी है| जलशक्ति मंत्रालय और अलग-अलग स्वयंसेवी संस्थाएं इस दिशा में काम कर रही हैं| देश में हजारों कृत्रिम तालाब, check dam, borewell recharge, community soak pit का निर्माण हो रहा है| हर साल की तरह इस बार भी ‘catch the rain’ अभियान के लिए कमर कस ली गई है| ये अभियान भी सरकार का नहीं बल्कि समाज का है, जनता-जनार्दन का है| जल संरक्षण से ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को जोड़ने के लिए जल संचय जन-भागीदारी अभियान भी चलाया जा रहा है| प्रयास यही है कि जो प्राकृतिक संसाधन हमें मिले हैं, उसे हमें अगली पीढ़ी तक सही सलामत पहुंचाना है|

साथियो,

बारिश की बूंदों को संरक्षित करके हम बहुत सारा पानी बर्बाद होने से बचा सकते हैं| पिछले कुछ सालों में इस अभियान के तहत देश के कई हिस्सों में जल संरक्षण के अभूतपूर्व कार्य हुए हैं| मैं आपको एक दिलचस्प आंकड़ा देता हूँ| पिछले 7-8 साल में नए बने tank, pond और अन्य water recharge structure से 11 billion cubic meter उससे भी ज्यादा पानी का संरक्षण हुआ है| अब आप सोचेंगे कि 11 billion cubic meter पानी कितना पानी होता है ?

साथियो,

भाखड़ा नांगल बांध में जो पानी जमा होता है, उसकी तस्वीरें तो आपने जरूर देखी होगी| ये पानी गोविंद सागर झील का निर्माण करता है| इस झील की लंबाई ही 90 किलोमीटर से ज्यादा है| इस झील में भी 9-10 billion cubic meter से ज्यादा पानी संरक्षित नहीं हो सकता है | सिर्फ 9-10 billion cubic meter! और देशवासियों ने अपने छोटे-छोटे प्रयास से, देश के अलग–अलग हिस्सों में 11 billion cubic meter पानी के संरक्षण का इंतजाम कर दिया है - है ना ये शानदार प्रयास!

साथियो,

इस दिशा में कर्नाटका के गडग जिले के लोगों ने भी मिसाल कायम की है| कुछ साल पहले यहाँ के दो गाँव की झीलें पूरी तरह सूख गईं| एक समय ऐसा भी आया जब वहाँ पशुओं के पीने के लिए भी पानी नहीं बचा| धीरे-धीरे झील घास-फूस और झाड़ियों से भर गई| लेकिन गाँव के कुछ लोगों ने झील को पुनर्जीवित करने का फैसला किया और काम में जुट गए| और कहते हैं ना, ‘जहां चाह-वहाँ राह’| गाँव के लोगों के प्रयास देखकर आसपास की सामाजिक संस्थाएं भी उनसे जुड़ गईं| सब लोगों ने मिलकर कचरा और कीचड़ साफ किया और कुछ समय बाद झील वाली जगह बिल्कुल साफ हो गई| अब लोगों को इंतजार है बारिश के मौसम का| वाकई, ये ‘catch the rain’ अभियान का शानदार उदाहरण है| साथियो, आप भी सामुदायिक स्तर पर ऐसे प्रयासों से जुड़ सकते हैं| इस जन-आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए आप अभी से योजना जरूर बनाइये, और आपको एक और बात याद रखनी है - हो सके तो गर्मियों में अपने घर के आगे मटके में ठंडा जल जरूर रखिए| घर की छत पर या बरामदे में भी पक्षियों के लिए पानी रखिए| देखिएगा ये पुण्य कार्य करके आपको कितना अच्छा लगेगा |

साथियो,

‘मन की बात’ में अब बात हौसलों के उड़ान की! चुनौतियों के बावजूद जज्बा दिखाने की | कुछ ही दिन पहले सम्पन्न हुए Khelo India Para Games में एक बार फिर खिलाड़ियों ने अपनी लगन और प्रतिभा से सबको हैरान कर दिया | इस बार पहले से ज्यादा खिलाड़ियों ने इन खेलों में हिस्सा लिया | इससे पता चलता है कि Para Sports कितना Popular हो रहा है | मैं Khelo India Para Games में हिस्सा लेने वाले सभी खिलाड़ियों को उनके शानदार प्रयासों के लिए बधाई देता हूँ | हरियाणा, तमिलनाडु और यूपी के खिलाड़ियों को पहला, दूसरा और तीसरा स्थान हासिल करने के लिए शुभकामनाएं देता हूँ | इन खेलों के दौरान हमारे दिव्यांग खिलाड़ियों ने 18 राष्ट्रीय Record भी बनाए | जिनमें से 12 तो हमारी महिला खिलाड़ियों के नाम रहे | इस बार के Khelo India Para Games में Gold Medal जीतने वाले Arm Wrestler जॉबी मैथ्यू ने मुझे चिट्ठी लिखी है | मैं उनके पत्र के कुछ हिस्से को पढ़कर सुनाना चाहता हूँ | उन्होंने लिखा है- Medal जीतना बहुत खास होता है, लेकिन हमारा संघर्ष सिर्फ Podium पर खड़े होने तक सीमित नहीं है | हम हर रोज एक लड़ाई लड़ते हैं | जीवन कई तरीके से हमारी परीक्षा लेता है, बहुत कम लोग हमारे संघर्ष को समझ पाते हैं | इसके बावजूद हम साहस के साथ आगे बढ़ते हैं | हम अपने सपनों को पूरा करने में जुटते हैं | हमें ये विश्वास रहता है कि हम किसी से कम नहीं हैं” |

वाह! जॉबी मैथ्यू आपने कमाल लिखा है, अद्भुत लिखा है | इस पत्र के लिए मैं आपका आभार व्यक्त करता हूँ | मैं जॉबी मैथ्यू और हमारे सभी दिव्यांग साथियों से कहना चाहता हूँ कि आपके प्रयास हमारे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है |

साथियो,

दिल्ली में एक और भव्य आयोजन ने लोगों को बहुत प्रेरणा दी है, जोश से भर दिया है | एक Innovative Idea के रूप में पहली बार Fit India Carnival का आयोजन किया गया | इसमें अलग-अलग क्षेत्रों के करीब 25 हजार लोगों ने हिस्सा लिया | इन सभी का एक ही लक्ष्य था - Fit रहना और Fitness को लेकर जागरूकता फैलाना | इस आयोजन में शामिल लोगों को उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ पोषण से जुड़ी जानकारियाँ भी मिलीं | मेरा आग्रह है कि आप अपने क्षेत्रों में भी इस तरह के Carnival का आयोजन करें | इस पहल में MY-Bharat आपके लिए बहुत मददगार बन सकता है |

साथियो,

हमारे स्वदेशी खेल अब Popular Culture के रूप में घुल-मिल रहे हैं | मशहूर Rapper Hanumankind (हनुमान काइन्ड) को तो आप सभी जानते ही होंगे | आजकल उनका नया Song “Run It Up” काफी Famous हो रहा है | इसमें कलारिपयट्टू, गतका और थांग-ता जैसी हमारी पारंपरिक Martial Arts को शामिल किया गया है | मैं Hanumankind (हनुमान काइन्ड) को बधाई देता हूँ कि उनके प्रयास से हमारी पारंपरिक Martial Arts के बारे में दुनिया के लोग जान पा रहे हैं |

मेरे प्यारे देशवासियो,

हर महीने मुझे MyGov और NaMo App पर आपके ढेरों संदेश मिलते हैं | कई संदेश मेरे मन को छू लेते हैं, तो कुछ गर्व से भर देते हैं | कई बार तो इन संदेशों में हमारी संस्कृति और परंपराओं के बारे में अनोखी जानकारी मिलती है | इस बार जिस संदेश ने मेरा ध्यान खींचा, उसे मैं आपसे साझा करना चाहता हूँ | वाराणसी के अथर्व कपूर, मुंबई के आर्यश लीखा और अत्रेय मान ने मेरी हाल की Mauritius यात्रा पर अपनी भावनाएँ लिखकर भेजी हैं | उन्होंने लिखा है इस यात्रा के दौरान गीत गवई की Performance से उन्हें बहुत आनंद आया | पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से आए बहुत सारे पत्रों में मुझे ऐसी ही भावुकता देखने को मिली है | Mauritius में गीत गवई की शानदार Performance के दौरान मैंने वहां जो महसूस किया वो वाकई अद्भुत है|

साथियो,

जब हम जड़ से जुड़े रहते हैं तो कितना ही बड़ा तूफान आए - तूफान हमें उखाड़ नहीं पाता | आप कल्पना करिए, करीब 200 साल पहले भारत से कई लोग गिरमिटिया मजदूर के रूप में Mauritius गए थे | किसी को नहीं पता था कि आगे क्या होगा | लेकिन समय के साथ वे वहाँ रच-बस गए | Mauritius में उन्होंने अपनी एक बड़ी पहचान बनाई | उन्होंने अपनी विरासत को सहेज कर रखा और जड़ों से जुड़े रहे | Mauritius ऐसा अकेला उदाहरण नहीं है | पिछले साल जब मैं Guyana गया था तो वहाँ की चौताल Performance ने मुझे बहुत प्रभावित किया था |

साथियो,

अब मैं आपको एक audio सुनाता हूँ |

आप जरूर सोच रहे होंगे कि ये तो हमारे देश के किसी हिस्से की बात है | लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इसका संबंध फ़िजी से है | यह फ़िजी का बहुत ही लोकप्रिय ‘फगवा चौताल’ है | ये गीत और संगीत हर किसी में जोश भर देता है | मैं आपको एक और audio सुनाता हूँ |

यह audio सूरीनाम का ‘चौताल’ है | इस कार्यक्रम को टीवी पर देख रहे देशवासी, सूरीनाम के राष्ट्रपति और मेरे मित्र चान संतोखी जी को इसका आनंद लेते हुए देख सकते हैं | बैठक और गानों की यह परंपरा Trinidad and Tobago में भी खूब लोकप्रिय है | इन सभी देशों में लोग रामायण खूब पढ़ते हैं | यहाँ फगवा बहुत लोकप्रिय है और सभी भारतीय पर्व-त्योहार पूरे उत्साह के साथ मनाए जाते हैं | उनके कई गाने भोजपुरी, अवधि या मिश्रित भाषा में होते हैं, कभी-कभार ब्रज और मैथिली का भी उपयोग होता है | इन देशों में हमारी परंपराओं को सहेजने वाले सभी लोग सराहना के पात्र हैं |

साथियो,

दुनिया में ऐसे कई संगठन भी हैं, जो वर्षों से भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने का कार्य कर रहे हैं | ऐसा ही एक संगठन है – ‘Singapore Indian Fine Arts Society’ | भारतीय नृत्य, संगीत और संस्कृति को संरक्षित करने में जुटे इस संगठन ने अपने गौरवशाली 75 साल पूरे किए हैं | इस अवसर से जुड़े कार्यक्रम में सिंगापुर के राष्ट्रपति श्रीमान थर्मन शनमुगरत्नम जी Guest of Honour थे | उन्होंने इस organization के प्रयासों की खूब सराहना की | मैं इस टीम को अपनी ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ देता हूँ |

साथियो,

‘मन की बात’ में हम देशवासियों की उपलब्धियों के साथ ही अक्सर सामाजिक विषयों को भी उठाते हैं | कई बार चुनौतियों पर भी चर्चा होती है | इस बार ‘मन की बात’ में, मैं, एक ऐसी चुनौती के बारे में बात करना चाहता हूँ, जो सीधे हम सब से जुड़ी हुई है | ये चुनौती है ‘textile waste’ की | आप सोच रहे होंगे, ये textile waste क्या नई बला आ खड़ी हुई है? दरअसल, textile waste पूरी दुनिया के लिए नई चिंता की एक बड़ी वजह बन गया है | आजकल दुनिया-भर में पुराने कपड़ों को जल्द-से-जल्द हटाकर नए कपड़े लेने का चलन बढ़ रहा है | क्या आपने सोचा है कि जो पुराने कपड़े आप पहनना छोड़ देते हैं, उनका क्या होता है? यही textile waste बन जाता है | इस विषय में बहुत सारी Global Research हो रही है | एक research में यह सामने आया है, सिर्फ एक प्रतिशत से भी कम textile waste को नए कपड़ों में recycle किया जाता है - एक प्रतिशत से भी कम! भारत दुनिया का तीसरा ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा textile waste निकलता है| यानि चुनौती हमारे सामने भी बहुत बड़ी है | लेकिन मुझे खुशी है कि हमारे देश में इस चुनौती से निपटने के लिए कई सराहनीय प्रयास किये जा रहे हैं | कई भारतीय start-ups ने textile recovery facilities पर काम शुरू किया है | कई ऐसी टीमें हैं, जो कचरा बीनने वाले हमारे भाई-बहनों के सशक्तिकरण के लिए भी काम कर रही हैं| कई युवा-साथी Sustainable Fashion के प्रयासों में जुड़े हैं | वे पुराने कपड़ों और जूते-चप्पलों को recycle कर जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं | Textile waste से सजावट की चीजें, handbag, stationery और खिलौने जैसी कई वस्तुएं बनाई जा रही हैं | कई संस्थाएं आजकल ‘circular fashion brand’ को popular बनाने में जुटी हैं | नए-नए rental platform भी खुल रहे हैं, जहां designer कपड़े किराए पर मिल जाते हैं | कुछ संस्थाएं पुराने कपड़े लेकर उसे दोबारा उपयोग करने लायक बनाती हैं और गरीबों तक पहुंचाती हैं |

साथियो,

Textile waste से निपटने में कुछ शहर भी अपनी नई पहचान बना रहे हैं | हरियाणा का पानीपत textile recycling के global hub के रूप में उभर रहा है | बेंगलुरू भी Innovative Tech Solutions से अपनी एक अलग पहचान बना रहा है | यहाँ आधे से ज्यादा Textile waste को जमा किया जाता है, जो हमारे दूसरे शहरों के लिए भी एक मिसाल है | इसी प्रकार तमिलनाडु का Tirupur Waste Water Treatment और renewable energy के माध्यम से textile waste management में जुटा हुआ है |

मेरे प्यारे देशवासियो,

आज fitness के साथ-साथ count का बड़ा role हो गया है | एक दिन में कितने steps चले इसका count, एक दिन में कितनी calories खायी इसका count, कितनी calories burn की इसका count, इतने सारे counts के बीच, एक और countdown शुरू होने वाला है | International Yoga Day का countdown | योग दिवस में अब 100 दिन से भी कम समय रह गया है | अगर आपने अपने जीवन में अब तक योग को शामिल नहीं किया है तो अब जरूर कर लीजिए अभी देर नहीं हुई है | 10 साल पहले 21 जून 2015 को पहला अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया था | अब तो इस दिन ने योग के एक विराट महोत्सव का रूप ले लिया है | मानवता को भारत की ओर से यह एक ऐसा अनमोल उपहार है, जो भविष्य की पीढ़ी के बहुत काम आने वाला है | साल 2025 के योग दिवस की theme रखी गई है, ‘Yoga for One Earth One Health’. यानि हम योग के जरिए पूरे विश्व को स्वस्थ बनाने की कामना करते हैं |

साथियो,

यह हम सबके लिए गर्व करने वाली बात है कि आज हमारे योग और traditional medicine को लेकर पूरी दुनिया में जिज्ञासा बढ़ रही है | बड़ी संख्या में युवा योग और आयुर्वेद को wellness का एक बेहतरीन माध्यम मानकर इसे अपना रहे हैं | अब जैसे South America का देश Chile है | वहां आयुर्वेद तेजी से लोकप्रिय हो रहा है | पिछले साल मैं Brazil की यात्रा के दौरान Chile के राष्ट्रपति से मिला था | आयुर्वेद की इस popularity को लेकर हमारे बीच काफी चर्चा हुई थी | मुझे Somos India नाम की team के बारे में पता चला है | Spanish में इसका अर्थ है - We are India. यह टीम करीब एक दशक से योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देने में जुटी है | उनका focus treatment के साथ-साथ educational programmes पर भी है | वे आयुर्वेद और योग से संबंधित जानकारियों को Spanish language में translate भी करवा रहे हैं | सिर्फ पिछले वर्ष की बात करें, तो उनके अलग-अलग events और courses में करीब 9 हजार लोगों ने हिस्सा लिया था | मैं इस team से जुड़े सभी लोगों को उनके इस प्रयास के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ |

मेरे प्यारे देशवासियो,

‘मन की बात’ में अब एक चटपटा सा, और अटपटा सा सवाल! आपने कभी फूलों की यात्रा के बारे में सोचा है! पेड़ पौधों से निकले कुछ फूलों की यात्रा मंदिरों तक होती है | कुछ फूल घर को सुंदर बनाते हैं, कुछ इत्र में घुलकर हर तरफ खुशबू फैलाते हैं | लेकिन आज मैं आपको फूलों की एक और यात्रा के बारे में बताऊंगा | आपने महुआ के फूलों के बारे में जरूर सुना होगा | हमारे गांवों और खासकर के आदिवासी समुदाय के लोग इसके महत्व के बारे में अच्छी तरह जानते हैं | देश के कई हिस्सों में महुआ के फूलों की यात्रा अब एक नए रास्ते पर निकल पड़ी है | मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में महुआ के फूल से cookies बनाए जा रहे हैं | राजाखोह गांव की चार बहनों के प्रयास से ये cookies बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं | इन महिलाओं का जज्बा देखकर एक बड़ी company ने इन्हें factory में काम करने की training दी | इनसे प्रेरित होकर गांव की कई महिलायें इनके साथ जुड़ गई हैं | इनके बनाए महुआ cookies की मांग तेजी से बढ़ रही है | तेलंगना के आदिलाबाद जिले में भी दो बहनों ने महुआ के फूलों से नया experiment किया है | वो इनसे तरह-तरह के पकवान बनाती हैं, जिन्हें लोग बहुत पसंद करते हैं | उनके पकवानों में आदिवासी संस्कृति की मिठास भी है |

साथियो,

मैंआपको एक और शानदार फूल के बारे में बताना चाहता हूं और इसका नाम है ‘कृष्ण कमल’ | क्या आप गुजरात के एकता नगर में Statue of Unity को देखने गए हैं ? Statue of Unity के आसपास आपको ये कृष्ण कमल बड़ी संख्या में दिखेंगें | ये फूल पर्यटकों का मन मोह लेते हैं | ये कृष्ण कमल एकता नगर के आरोग्य वन, एकता नर्सरी, विश्व वन और Miyawaki forest में आकर्षण का केंद्र बन चुके हैं | यहां योजनाबद्ध तरीके से लाखों की संख्या में कृष्ण कमल के पौधे लगाए गए हैं | आप भी अपने आसपास देखेंगे तो आपको फूलों की दिलचस्प यात्राएं दिखेंगी | आप अपने क्षेत्र में फूलों की ऐसी अनोखी यात्रा के बारे में मुझे भी लिखिएगा |

मेरे प्यारे साथियो,

आप मुझे हमेशा की तरह अपने विचार, अनुभव और जानकारियां साझा करते रहें, हो सकता है, आपके आसपास कुछ ऐसा हो रहा हो जो सामान्य लगे, लेकिन दूसरों के लिए वो विषय बहुत रोचक और नया होगा | अगले महीने हम फिर मिलेंगे और देशवासियों की उन बातों की चर्चा करेंगे जो हमें प्रेरणा से भर देती हैं | आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद, नमस्कार |