उपस्थित सभी वरिष्‍ठ महानुभाव एवं साथियों, 

Civil Service Day कई वर्षों से मनाया जाता है। आप लोग भी पहले भी इस अवसर पर रहे होंगे। लेकिन इस बार कुछ बदलाव करने का विचार आया। एक प्रकार से बदलाव की शुरूआत हुई है। धीरे-धीरे यह shape लेगा कि Civil Services Day को कैसे मनाया जाए। जिन महानुभावों ने आज award प्राप्‍त किया है उन सबको मैं हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, उन राज्‍यों को अभिनंदन करता हूं, उन राज्‍य सरकारों को अभिनंदन करता हूं। मैं कभी मसूरी आपके Institute गया नहीं हूं, मैंने देखा नहीं है, लेकिन क्‍या वहां ऐसा है कि बड़े serious रहना, मुरझाए हुए रहना, ऐसे बड़े दुनियाभर का भार लेकर घूमना ऐसा है क्‍या। क्‍यों ऐसा हाल बनाकर बैठे हैं आप लोग? आप चिंता छोड़ दीजिए कोई नये काम मैं कहने वाला नहीं हूं। 

इस Civil Service Day में एक बात तो जरूर होनी चाहिए। किस प्रकार से हो, कैसे हो, आप लोग ज्‍यादा कह सकते हैं, उसमें मैं ज्‍यादा सुझाव नहीं दे सकता। उसमें मैं बेकार हूं। लेकिन कम से कम.. जब शाम को आप नौकरी से घर जा रहे हैं, आपकी पत्‍नी दरवाजे पर इंतजार करती हो, बच्‍चे आपका इंतजार करते हो और बड़े उत्‍सुक हों आपके स्‍वागत के लिए, ऐसा माहौल कैसे बने। वरना क्‍या होता होगा, घड़ी भर अभी आने की Time हो गया चलो, चलो, जल्‍दी करो, बच्‍चा इधर भागे। क्‍यों? क्‍योंकि जो office में जो कुछ भी बोझ पड़ा होगा वो सब घर आकर के वर्षा करे देता है पत्‍नी पर, बच्‍चों पर। एक तनावपूर्ण जिंदगी। मैं नहीं मानता हूं कि इससे हम किसी भी जांच को न्‍याय दे सकते हैं? नहीं दे सकते। और इतना बड़ा देश आपको चलाना है और अगर आप मुरझा गए तो देश का खिलना कैसे संभव होगा। और इसलिए मेरा एक भी साथी मुरझाया हुआ नहीं होना चाहिए। 

आप काफी काम कर चुके होंगे, कभी सोचा है, कहीं ऐसा तो नहीं है कि आपकी जिंदगी फाईलों में बंध चुकी है। आपकी जिंदगी भी फाईल का कागज का एक पन्‍ना बन कर रह गया है। ऐसा तो नहीं हुआ न? सोचिए, मैं सच बताता हूं, सोचिए। अगर आपकी जिंदगी फाईल बन गई है और जब कार्यकाल पूरा होगा तो आपका पूरा जीवन फाईल का एक पन्‍ना बनकर रह जाए, वो जिंदगी क्‍या जिंदगी जीना है जी, ऐसे जिओगे क्‍या? सरकार है तो फाईल है उसके बिना कोई चारा नहीं है। आपका एक दूसरा अर्द्धअंग यही है – फाइल। लेकिन अगर Life की care नहीं की तो यह फाइलें भी वैसी की वैसी रह जाएगी। 

और इसलिए कभी आप सोचिए, आप तो इतनी सारी चीजें पढ़ते होंगे, इतनी चीजें सीखते होंगे। दुनिया के बढि़या से बढि़या लोगों की आपने किताबें पढ़ी होगी, क्‍योंकि मूलत: तो आप इसी प्रकृति के होंगे तभी तो यहां पहुंचें होंगे। कोई जिंदाबाद-मुर्दाबाद वाला यहां नहीं आता है। जो कॉलेज में यूनियन बाजी करता है, वो यहां थोड़ा होता है। जो किताबों में खोया हुआ रहता है, वही तो होता है। बहुत कुछ पढ़ा होगा। Time Management पर, पता नहीं आपको भी कहा जाए तो बहुत बढि़या किताब लिख सकते हैं आप। बहुत अच्‍छी लिख सकते हैं। और आप जीवन में भी इतना बढि़या Time Management करते होंगे कि प्रधानमंत्री के साथ इतने से इतने बजे Meeting, फलाने के साथ इतने से इतने बजे तक Meeting, Chief Secretary के साथ इतने से इतने बजे, अपने सचिव के साथ इतने बजे… सब perfect करते होंगे आप। लेकिन क्‍या कभी परिवार के साथ quality time बिताते हैं क्‍या? और मैं शब्‍द प्रयोग करता हूं quality time, मैं चाहूंगा कि Civil Services Day पर मेरे साथी यह भी सोचें। मैंने कहा मैं इसमें गाइड नहीं कर सकता आपको। मैं इसमें बेकार हूं। लेकिन जो कर सकते हैं वो सोचे। कभी-कभार आप एक छत के नीचे रहते हैं फिर भी आप घर में होते हैं, ऐसा नहीं होता है जी। तब भी फाइलें लेकर चलते हैं, तब भी फोन लेकर चलते हैं, तब भी कोई crises आ जाती है। पता नहीं क्‍या कुछ होता है। और कभी कभार तो ऐसा संकट न आए तो आपका दिन भी अच्‍छा नहीं जाता होगा। यार पता नहीं आज कुछ आया नहीं। आप कल्‍पना कीजिए कहीं आपका जीवन Robot तो नहीं हो गया है। और अगर ऐसा हुआ है तो उसका सीधा असर पूरी सरकार पर पड़ता है, पूरी व्‍यवस्‍था पर पड़ता है। 

हम Robotic नहीं हो सकते। हमारा वो जीवन नहीं हो सकता। और इसलिए हम जब भी Civil Service Day मनाएं तो कुछ पल अपनों का ख्‍याल रखने के लिए भी तो रखा जाए। वो बातें हो, वो experience है, मैं यह इसलिए कह रहा हूं मैं जब मुख्‍यमंत्री था तो मैं कर्मयोगी अभियान चलाता था। कर्मचारी कर्मयोगी बने, that was my कोशिश। तो शुरू में जब मैंने किया तो जैसे हर बार Training यानी Punishment आप सब यही मानते हैं, यहां पहुंचे हुए भी यही मानते होंगे। ठीक, अब वो मुझे क्‍या पढ़ाएंगे, इतने साल.. मैं यहां तक पहुंचा हूं, मैं तो rank holder रहा हूं उसके लिए बोझ लगता है, तो शुरू में मुझे भी ऐसा आया कि यह क्‍या। और 72 hour का कैप्‍सूल था। हरेक के लिए वो शुरू किया था मैंने। जब मैंने शुरू किया तो ऐसा सुनता था कि ऐसा क्‍या आ रहा है। मुझे तो कोई कहता नहीं था, लेकिन कान में बातें आती थी। 

फिर एक दिन मैंने चार महीने हो गए कार्यक्रम चल पड़ा। Friday, Saturday, Sunday हो रहा है तो मैंने एक दिन feedback के लिए meeting रखा था। जिनका एक class हो गया था ऐसे लोगों को बुलाया। एक ने मुझे बहुत बढि़या बताया। वो पुलिसवाला था। उसने कहा कि साहब मैं यहां जब मुझे कहा गया कि जाना है तो मैं बहुत, क्‍या मेरे मन को लगा कि क्‍या यह फिर से आया कि लेकिन बोले कि मैं आज दो बातें बताना चाहता हूं। 

एक ये 72 hours का time है। थोड़ा बढ़ाइए, अधिक समय रखिए। अब ये मेरे लिए surprise था। तो फिर मैंने ये तुम्हारा side posting तो नहीं है। तो उसने कहा नहीं-नहीं साहब मुझे बहुत अच्छे से duty मिली है। फिर दूसरा उसने कहा कि जब 72 hours के बाद जब पहली बार लगा कि मैं पुलिस वाला तो हूं, लेकिन मैं इंसान भी हूं बोले मैं भूल चुका था कि मैं इंसान हूं। मैं चौबीसों घंटे पुलिसवाला बन गया था। जब तक हमारे भीतर का इंसान जिंदा नहीं रहता। हम इंसानों के लिए जीने की ख्वाहिश छोड़ चुके होते हैं। तो और इसलिए हमारी सफलता की सबसे पहली नींव है, हमारे भीतर का इंसान, हमारे भीतर की इंसानियत, अपनापन, अपनों के लिए जीना, जूझना, ये चीजें एक बहुत ताकत देती हैं और इसलिए मैं जब ये civil services day को मनाते हैं तो कुछ तौर-तरीकों पर सोचा जाए तो मैं जरूर चाहूंगा। 

जब ये इस civil services day का प्रारंभ हुआ। सरदार पटेल ने जब पहली बार probationers को संबोधित किया तो उस दिन को उनके साथ जोड़ा है आज 21 अप्रैल को। 1948 का वो दिन था। मुझे बताया गया है कि मसूरी में आप लोगों के लिए एक Motto वहां लिखा हुआ रहता था। मैं ज्यादातर लोगों को पूछता रहता हूं कि मसूरी मैं वो आपका वो Motto है, वो क्या है। जो नए-नए आते हैं उनको तो याद होता है, लेकिन पुराने करीब-करीब सब भूल गए हैं। वहां लिखा हुआ है। ‘शीलं परम भूषणम’ मूसरी में, ये ही हैं न, भूल गए याद है, जो नए हैं उनको तो मालूम है। इस सरकार में जिसने भी इस व्यवस्था की रचना की है। उसे उस दिन भी पता था यानि आज ये कोई संकट आया है ऐसा नहीं है। उस दिन भी पता था कि सारी व्यवस्था के केंद्र बिंदू में एक चीज कहीं छूटनी नहीं चाहिए। वो है ‘शीलं परम भूषणम’। 

मैं चाहूंगा civil service में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए ये वाक्य नहीं है, घोष वाक्य नहीं है, ये शब्द संरचना नहीं है, ये Article of faith है। ये जीवन जीने का एकमात्र सिद्धांत है, एकमात्र मार्ग है और इसलिए जहां से मैं निकला हूं, जहां पहूंचा हूं, वहां से मुझे केवल एक मंत्र की दीक्षा दी गई थी, तो वो दीक्षा थी “शीलं परम भूषणम” और हमारे यहां तो western law हो या ये हो। If character is lost, every thing lost, ये हम सुनते आए हैं, सुनाते भी आए हैं और इसलिए उस बात का बार-बार हमें स्मरण कैसे हो, वहां मुझे बताया गया सरदार वल्लभ भाई की एक प्रतिमा भी है। उस प्रतिमा के नीचे लिखा गया है। आप एक स्वतंत्र भारत की तब तक कल्पना नहीं कर सकते, जब तक आपके पास अपने को स्वतंत्रतापूर्वक अभिव्यक्त करने वाली प्राशसनिक सेवा न हो। मैं समझता हूं ये बहुत सटीक message है सरदार साहब का और सरदार साहब के साथ इस प्रशासनिक सेवा का नाम सर्वदा जुड़ा हुआ है। 

सरदार साहब को जब याद करते हैं तो भारत के एकीकरण, इस बात को हम प्रमुख रूप से याद करते हैं। राजा-रजवाड़ो को जोड़कर के देश को एक नक्शे में जोड़ने का काम सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। लेकिन आजादी के बाद अब तक विशेष रूप से इस सेवा से जुड़ा लोगों का एक बहुत बड़ा काम है और वो है सामाजिक एकीकरण, आर्थिक एककीकरण। इस मकसद की पूर्ति के लिए, जिस सरदार साहब ने हमें उपदेश दिया था। वहां से यह हुई है। वर्तमान में इन दो पहलुओं को लेकर के हम कैसे आगे बढ़ सकते हैं। हम इस सामाजिक एकीकरण के लिए क्योंकि हम एक राष्ट्रीय एकता का प्रतिनिधित्व करते हैं, उस व्यवस्था से है। हम कहां पैदा हुए, किसा भाषा को जानते हैं, क्या है, कुछ नहीं। कभी किसी को उस state में जाना पड़े, कभी किसी को इस state में जाना पड़ा और पूरा हिंदुस्तान अपना घर है, परिवार है, उस भाव से काम करने के लिए यह किया गया है और तब जाकर के हमारे हर काम में से, एकता का मंत्र साकार होता रहे। 

अगर हम digital world में जाते हैं, तो भी वही एकता का मंत्र, हम इस प्रकार से आगे बढ़ेंगे ताकि हमारी society में digital divide न हो। हम विकास का वो रास्ता खोजेंगे कि जिसके कारण गरीब और अमीर का फासला बढ़ता न जाए, हम विकास का वो model तैयार करेंगे, जो शहर और गांव के बीच में भेद पैदा करता न हो, एकता, एकीकरण के रास्ते पर हमें ले जाता हो। उस बात को हम अपने मूल मंत्रों के साथ जोड़ते हुए, अपनी विकास यात्रा को कैसे चला सकते हैं। उस दिशा में हमने प्रयास करना चाहिए। आने वाले दिनों में जिनको award मिला है। उसमें मेरे मन में कुछ सुझाव आते हैं। एक तो हिंदुस्तान के सभी राज्यों से हो सके तो young अफसर, ये award winner भी तो ज्यादा young है। हर राज्य से निश्चित तारीख पर 5 दिन के लिए उस project को देखने के लिए जाए। जहां पर जिसको हमने award दिया है। वो क्या project है, कैसे किया गया है, conceptualize कैसे हुआ, resource क्या थे, कानूनी व्यवस्थाएं क्या की गई, infrastructure क्या खड़ा किया गया। पूरे देश से एक-एक व्यक्ति उस project पर जाए, पूरा देखे। दूसरा project पर दूसरी टोली जाए। मान लीजिए आपके 10 award हुए हैं तो हर राज्य से 10 लोग निकलें और एक प्रकार से जब वो वापिस आएंगे तो दसों जो best award winner project हैं। उस राज्य को पता होगा कि ऐसे हुआ है फिर वो अपने राज्य के अंदर समझाएं कि मैं वहां गया था। नागालैंड में एक अफसर ने इतनी कठिनाइयों के बीच में इतना बड़ा काम किया है, ऐसे-ऐसे किया है। मैं समझता हूं किसी प्रधानमंत्री के भाषण की जरूरत नहीं पड़ेगी वो जाकर के देखकर के आएगा, कठिनाइयों में अपने साथी ने जो achieve किया होगा। वो अपने राज्य में आकर के, अपने जिले में आकर के जरूर लागू करेगा। ये मैं विश्वास से कहता हूं और इसलिए award किताब में छप जाए, ये नहीं चलेगा। जो अच्छा है उसका हमें adopt करना चाहिए, जो अच्छा है उसको modify कर-करके उसे reflect कैसे किया जाए, उसकी व्यवस्था कैसे कि जाए लेकिन हमने इन चीजों का institutionalize किया जाना चाहिए। इस बार से शुरू किया जाए। 

इस award के बाद राज्यों को कहा जाए कि इसमें जिसको रुचि है। किसी को skill development में मिला है award, तो उनको ले जाइए, किसी को child welfare में मिला है तो उनको ले जाइए और मजा देखिए, मजा देखिए। आपको भी मैं कहता हूं जब आप निवृत्त हो जाएंगे। सुब्रहमण्यम जी की age के हो जाएंगे, आपके घर में पोते होंगे और बुढ़ापा ऐसी चीज होती है, album में time गुजारना अच्छा लगता है, स्मृतियों को संजोए रखने में अच्छा लगता है तो आपके पोते को आप कहोगे कि देखिए पहले तो हम ऐसे घर में रहते थे, अब ऐसे मकान में आ गए। देखिए पहले तो मेरे पास स्कूटर था अब देखो ये गाड़ी है। दावे से मैं कहता हूं आपको, आपके पोते को अगर आप ये कहोगे कि पहले ऐसी गाड़ी थी, फिर ऐसी गाड़ी आई, फिर ऐसी गाड़ी आई, पहले किराए का मकान था, फिर फ्लैट आए, फिर बंगला आया, उसके दिल को कभी कोई प्रभाव पैदा नहीं करेगा। लेकिन अगर आप अपने पोते को ये कहोगे कि मैं civil service में काम करता था, उस राज्य के उस जिले में था और नौकरी पर मैंने देखा था। उस एक गांव ऐसा था, उस गांव को पीने का पानी नहीं मिलता था, सात किलोमीटर जाना पड़ता था। मैंने ऐसी योजना बनाई थी और उस गांव को पानी मिला। मैं दावे से कहता हूं वो आपका पोता, अपने पोतो को भी सुनाएगा कि मेरे दादा ने ये काम किया था। ये मत भूलिए कि आपकी गाड़ी, बंगला, पैसे, प्रतिष्ठा, आपके पोते भी याद रखने वाले नहीं है। ये विश्वास कीजिए मेरी बात पर, वे भी उस बात को याद करेंगे, आप जिए कैसे, किसके लिए जिए, समाज और देश ने आपको दिया, आपने उनको क्या दिया। आपका बेटा भी इसी कसौटी पर आपको कसने वाला है और इसलिए इन सबका देखिए कोई award ऐसा नहीं है कि उसने किसी औद्योगिक विकास के लिए क्या काम किया। social sector में क्या काम हुआ वो ही award पा गए हैं। 

इसका मतलब ये नहीं कि competition में और नहीं आए होंगे। कितनी entries आती हैं average, सौ, सवा सौ, डेढ़ सौ entries आती हैं। उसमें से पांच-दस का नंबर लगता है और ऐसा भी नहीं है कि ...बैंक के ज्यूरी बैठी होगी, किसी sector को देती होगी। यही है जो inspire करती है, यही है जो परिणाम लाती है और यही है जो देश चाहता है और हमारे अपने कामों में, अपने निजी विकास में हम इसको कैसे करें और इसलिए award किस प्रकार से उसको लाया जाए, ये मैं समझता हूं। हम ये करें कि जिसको award मिला है, हर जगह पर ले जाकर के भाषण करवाएं तो उससे फायदा नहीं होगा। Actually जहां हुआ है वहां जाकर के study होना चाहिए। उसको कहना चाहिए, report तैयार होना चाहिए तब जाकर के फायदा है। दूसरा फायदा civil service day को हम एक युवा मित्र day के रूप में भी, आप बाहर महीने काम करते हैं, पांच दिन काम नहीं करोगे तो दुनिया अटक नहीं जाएगी, क्योंकि बाकी बहुत लोग हैं। मैं जब नया-नया मुख्यमंत्री बना तो किसी सचिव को बुलाता था, तो पीछे एक बड़ी फौज आती थी। मैंने कहा भई इतने सारे क्यों आए, हम नए थे, हम कुछ ज्यादा जानते नहीं थे, अनुभव नहीं था तो वो क्या होता था। 

तो वो क्‍या होता था मैं उनको कुछ पूछता था न, तो वो यूं देखते थे, तो पीछे वाला यूं कहता था और यह बड़े ऑफिसर एक शब्‍द तो पकड़ लेते थे और वो मुझे समझा देते थे कि मैं समझ गया कि रहस्‍य क्‍या है, तो मैंने मेरे यहां तय किया था कि मैं जिसको बुलाऊंगा वही आएगा, फौज लेकर के नहीं आएगा। उनको फिर काफी मेहनत पड़ती थी, तकलीफ रहती थी। लेकिन उसके कारण institution मैं बहुत बड़ा improvement आया, पूरी institution में improvement आया। कहने का तात्‍पर्य मेरा दूसरा था क्‍या यह हम कर सकते हैं क्‍या? इस सर्विस से जुड़े हुए लोग इस Civil Service Day के कालखंड में छुट्टियां होती हैं तो हमें अवकाश नहीं है। लेकिन कोई एक और समय तय किया जाए, fixed time किया जाए। 

जिस समय कॉलेज में जाकर के हर Civil Service में जुड़ा हुआ व्‍यक्ति at least साल में एक बार student को संबोधित करे, उनसे मिलें, बातचीत करें, उनको समझाए कि मैं इस field में क्‍यों आया। मेरे सामने क्‍या कुछ नहीं था, मैं अमेरिका जा सकता था, मैं यह बन सकता था, मैं वह बन सकता था। मैंने यह सब छोड़ा, मैं क्‍यों यहां आया। और आकर के मेरे इतने साल का अनुभव क्‍या है। हमारी युवा पीढ़ी को यहां पर लाने के लिए प्रेरित करने का समय आ गया है। क्‍योंकि globally इतनी बड़ी competition है top class human resource की कि फिर अच्‍छे-अच्‍छे लोग कहीं और चले जाएंगे, हमारे पास अच्‍छे लोग नहीं आएंगे। लेकिन हम अगर उसको inspire कर पाएं और मैं कर नहीं पाऊंगा, आप कर पाएंगे। क्‍योंकि आप अपने अनुभव से बताएंगे कि मेरे जीवन में इतने-इतने अवसर थे, मैंने छोड़ा मैं यहां चला गया और यहां तो मुझे संतोष क्‍या है। अगर मैं एक डॉक्‍टर होता तो मेरे जीवन काल में 50 लोगों की जिंदगी बचाता। लेकिन डॉक्‍टर होने के बाद IAS बना और Health Secretary बना, तो मैंने यह नीतियां बनाई, पूरी पीढ़ी को बचा लिया। कितनी बड़ी ताकत होती है। और इसलिए यह विश्‍वास हमारी नई युवा पीढ़ी को पैदा करने के लिए। 

हमारे यह जितने साथी है हरेक के लिए तय हो कि कम से कम एक lecture लेना है। और यह भी तय किया जाए Mapping कि भई मानो इस वर्ष 200 colleges हो गई, तो अगली साल दूसरी colleges लीजिए। लेकिन student के पास यह field क्‍या है, ये लोग कौन हैं, ये कैसे काम करते हैं, यह training क्‍या होती है। दिनभर वो रहे, एक भाषण हो, बाकी गप्‍पे-शप्‍पे, चायपान हो एक प्रकार का मिलने-जुलने का कार्यक्रम Civil Service Day के रूप में extend करने की आवश्‍यकता मुझे लगती है, ताकि नई पीढ़ी को पता चले। और मैं मानता हूं यह हमारी institution इतनी ऊंचाई पर न चली जाए, कि समाज से कट हो। यह लगातार उसको समाज से जुड़ने के अवसर खोजने पड़ेंगे। 

तीसरा मेरा एक सुझाव है कि हम 75 plus वाले जितने retired IAS अफसर है यानी जितने भी हमारे Civil Services के अफसर है। 75 plus उनको सम्‍मानित करने का कार्यक्रम कर सकते हैं। हर वर्ष न करें तो दो वर्ष, तीन वर्ष, पांच वर्ष। ऐसा भी किया जा सकता है कि पांच साल में एक बार। सबको इकट्ठा करके और हर साल हर कैडर अपना IPS वाले अपना करे, IFS वाले अपना करे, हर राज्‍य में हो। इससे क्‍या होगा देखिए जो 35 साल, 40 साल तक अफसर देश के महत्‍वपूर्ण निर्णयों का सार्थी रहा हो। वो एक इंसान retired नहीं होता है जी, वो जाता है तो पूरी institution अपने साथ लेकर जाता है। उसे ऐसे जाने नहीं देना चाहिए। उसके अनुभव का निचोड़ हमें लेते रहना चाहिए। सम्‍मान करना चाहिए, बुलाना चाहिए और तीसरा एक काम हर राज्‍य में वीडियो कॉन्‍फ्रेंस की टीम होती है, State Capital जितने IAS अफसर है वो और बाकी सब वीडियो कॉन्‍फ्रेंस में। State में ये जो senior लोग हैं, उनसे कभी गोष्‍ठी का कार्यक्रम रखा जाए, institutional memory सरकार के लिए अनिवार्य होती है जी। institutional memory के बिना सरकारें नहीं चल सकती है। 

सरकारें नहीं चल सकती हैं और इस चीज को हम थीरे-धीरे खो रहे हैं। पहले का जमाना था। आपे जाते समय एक नोट लिखकर के जाते थे, क्या बोलते हैं इसको, successor के लिए, मैने सुना है इन दिनों ये सब, वो आता है आइए-आइए, कुर्सी देकर के चला जाता है। देखिए मैं समझता हूं जिन्होने व्यवस्थाएं विकसित की होंगी इसका बड़ा... देखिए gazette, आप district के gazette देखिए जी, मुझे मालूम नहीं कि नए पीढ़ी के लोग देखते हैं कि नहीं लेकिन, मैं देखता था मुझे अपना शौक था और जब district gazette की चीजें देखता था तो मैं हैरान था कि इस समय कैसे निर्णय महत्वपूर्ण हो गए। 

मुझे मालूम है एक बार क्या हुआ, मैं डाक जिले में गया। डाक जिले की एक विशेषता रही है। एक प्रकार से डाक कभी गुलाम नहीं रहा। ऐसा विशिष्ट प्रकार का एक इलाका है। एक प्रकार से कभी गुलाम नहीं रहा वो, वो अलग से उनकी एक व्यवस्था थी तो मेरी ये रुचि थी, मैं देखने गया, मैं वहां गया। मैं थोड़ा मौका मिलता जंगलों में जाने का, आदत है, अच्छा लगता था। तब मैं मुख्यमंत्री नहीं था, तो मैं ऐसी ही खाली अपना जाता था। मैंने देखा कि इतने guest house बने हुए हैं डाक district में, मैं हैरान था यार कि ये पैसों की बर्बादी, guest house बहुत बढ़िया है और इतना बढ़िया लकड़ी, इतना बढ़िया .... है तो मेरे मन में आया यार इतने। मुझे उस gazette में से पता चला कि अंग्रेज लोग हाथी पर travelling करते थे, जंगल थे। हाथी एक दिन 20 किलोमीटर से ज्यादा चलाते नहीं थे, चलता नहीं था और इसलिए हर 20 किलोमीटर पर guest house था। आज मुझे परेशानी हो रही थी कि इतने guest house क्यों है, कहने का तात्पर्य है कि जो व्यवस्थाएं चलती हैं उनके मूल में कुछ न कुछ कारण है। कभी-कभी हमारा बड़ा उत्साह होता है कि नया कर दें, फलांना कर दे, ढिंक कर दें लेकिन history को हाथ लगाकर बढ़ना चाहिए। कभी-कभी ये इतनी परंपराओं से बनते-बनते व्यवस्थाएं विकसित होती हैं, उन जड़ों को कभी भी उखाड़ फेंककर के हम नई व्यवस्थाओं को नहीं ला सकते हैं और इसलिए institutional memory, मैं समझता हूं कि हमारे लिए बहुत आवश्यक है। उसके लिए अगर वो धीरे-धीरे लुप्त हो रही है तो पुर्नजागृत करनी चाहिए। 

मैंने अभी एक विषय रखा हुआ है। अब वो कितना सफल होगा, नहीं होगा, मुझे मालूम नहीं है। मैं time management में गड़बड़ करूं तो चलेगा न, क्योंकि आप दो दिन से सुन-सुनकर के तंग आ गए होंगे। उसमें मैं ज्यादा ही कुछ कह दूं। मेरे मन में क्या विषय था, छूट गया। हां, मेरे मन में एक विचार चल रहा है। मैंने कहा है, अब देखिए technology का उपयोग कैसे हो सकता है, हमने कहा है हम एक memory cloud हम तैयार करें और शायद हमारे department ने कुछ काम शुरू किया है और एक अनुभव platform बनाएं। जो भी व्यक्ति retire होता है, हिंदुस्तान के किसी भी कोने में, driver हो तो भी, chief secretary हो तो भी, चपरासी से लेकर, chief secretary तक कोई भी जो सरकार में retire हो रहा है, उसको कहा जाए कि भई तुम नौकरी आरंभ की और retire होने तक जो भी अच्छी बातें तुम लिख सकते हो, महत्वपूर्ण घटनाएं लिख सकते हो, लिखो और इसको cloud में डाल दो, फोटो भी डालनी है तो डाल दो, तुम्हारी पहली नौकरी वाली फोटो भी डालनी है तो डाल दो, अब कोई cupboard की, जगह की कोई कमी नहीं रहेगी, पूरी space आपके हवाले है। आप कल्पना कर सकते हैं कि 50 साल के बाद किसी को, किसी राज्य का, किसी देश का administrate reform पर लिखना हो, समाज जीवन पर लिखना हो, इतना बड़ा खजाना कभी उपलब्ध हो सकता है क्या सहज है जी, सहज करने वाला है बड़ा काम है। हम अभी से उनसे कहे कि भी तुम जब retire होंगे तो तुम्हे retire होते समय दो पेज-पांच पेज, जितनी तुम्हारी लिखने की ताकत, बढ़िया सा चीजें। हो सकता है कुछ negative भी होगा, कुछ होंगे जिसकी शिकायत रही होगी मुझे ऐसा posting मिला, मुझे ऐसा posting मिला, सारी दुनिया भर को लिखता रहता होगा। जो भी हो, लेकिन हमारा काम है कि देश चलाना है तो हमें इन व्‍यवस्‍थाओं को विकसित करना चाहिए। Technology का प्रयोग करके हम इसको कर सकते हैं और इसको करने का हमारा प्रयास रहना चाहिए और मैं मानता हूं कि अगर हम इस बात को करते हैं तो कर सकते हैं। 

दूसरा मुझे लगता है जाने अनजाने में भी मैं जानता हूं इसी जमाने में सरकारी व्‍यवस्‍थाओं को काम करने की स्थिति अलग थी। आज ज्‍यादातर pressure priority बन जाता है, यह स्थिति आई है। और इसलिए consistency होनी चाहिए, rhythmical कुछ काम होने चाहिए, internal reform होने चाहिए उसके लिए उसके पास कठिनाईयां है, यह मैं जानता हूं। उसमें आपका कोई दोष नहीं है। कुछ कुछ ऐसी हालत है। लेकिन उसके बावजूद भी, उसके बावजूद भी हमारा सिर्फ department चलाना इतना नहीं है। हमारा काम within department उसको modernize करना है, उसको strengthen करना, innovate करना, यह निरंतर प्रक्रिया होती रहनी चाहिए। निरंतर प्रक्रिया नहीं होगी तो क्‍या होगा, कैसे होता है मैं बता दूं। 

आपको आज जानकार हैरानी होगी देश आजाद हुआ 1947 में 2001 तक हिंदुस्‍तान में disaster.. agriculture department में था, क्‍यों? क्‍योंकि 2001 तक हमारी समझ यह थी कि बाढ़ और सूखा यही disaster होता है। बाढ़ या सूखे के अलावा कोई disaster होता है, यह हमारी सरकारी व्‍यवस्‍था या सोच में ही नहीं था। ऐसा नहीं था कि नहीं होती थी। 2001 में जब गुजरात में भयंकर भूकंप आया और सरकार व्‍यवस्‍थाओं को पुनर्विचार करना पड़ा और पहली बार disaster शब्द को agriculture से बाहर निकाल करके महत्‍वपूर्ण ministries के साथ जोड़ा गया, जिसका सीधा राज्‍यों के साथ संबंध रहे। यह बदलाव लाते लाते इतने साल लग गए और इतने बड़े भूकंप का इंतजार करना पड़ा। अगर हम स्‍वभावत: यह जरूरी नहीं है कि 47 में वो जैसे सरदार पटेल जिस समय Home Minister थे, यह administration भी उन्‍हीं के under में था। आज Administration Department बना तो समय रहते बदलाव आते हैं। मैं मानता हूं कि आप उस टीम के लोग हैं जिनका काम उन institutions को जन्‍म देना भी है, जो institutions आने वाले 25 साल, 50 साल सेवा में अधिक ताकतवर बनती जाए। और इसलिए Civil Services Day पर जब हम काम करते हैं तो हमारा यह काम रहना चाहिए कि हम इस reform को कैसे करें। 

एक report मेरे ध्‍यान में लाया गया है। मैं जानता हूं कि मेरे पूरे भाषण का महत्‍व नहीं है, लेकिन मैं मीडिया के लोगों को प्रार्थना करूंगा कि अब जो मैं कहने जा रहा हूं उसकी पर अटक न जाए वो। यह कठिनाई है जी देश की क्‍या करे। और जो मैं कह रहा हूं वो मेरी सरकार का नहीं है। पर फिर भी मैं चाहता हूं इसका negative उपयोग नहीं होना चाहिए। हर चीज को positive सीखना चाहिए, इसलिए मैं कह रहा हूं। 

Goldman Sachs का एक रिपोर्ट कहता है कि Government और Governance का जो effectiveness है, पूरे एशिया की जो average है, मैं बाहर की बात नहीं बता रहा हूं, मैं western world की बात नहीं बता रहा हूं। एशिया की जो average है, उस level पर हिंदुस्‍तान की Governance की effectiveness को लाना है, तो It will take ten years एक Goldman Sachs ने हमको दर्पण दिखाया है। क्‍या हम ऐसे ही चलेंगे। और जब हम उस average पर पहुंचेंगे, तब तो वो कहां पहुंच गए होंगे फिर तो हम वहीं लुढ़के रहेंगे। Asian Countries की Average के बराबर भी अगर आज हमारा Governance effectiveness नहीं है, तो यह कब की समय की सरकार, से है इस चक्‍कर में मुझे नहीं पड़ना है। और मुझे किसी की आलोचना नहीं करनी है। मैं इसे आत्‍मनिरीक्षण के लिए देखता हूं और हम वो लोग बैठे हैं जिनका सामूहिक दाायित्‍व बनता है। मैं और तुम नहीं हम। हमारा दायित्‍व बनता है। और मैं समझता हूं एक दूसरी बात उन्‍होंने कही है। 

Civil Service Reform के कारण per-capita growth 1 percent बढ़ता है, ये ताकत है। आपको आर्थिक विकास करना हो, infrastructure sector बनाना हो, agriculture sector में प्रगति करनी हो, service sector में प्रगति करनी हो, Effective Governance, Reforms, Administrative system में Reform और ये नीति विषयक बातें बहुत बड़ी नहीं होती हैं, अंदरूनी व्यवस्थाएं होती हैं। जैसे हम कहते हैं कि भई e-governance is not simply a word, अब मैंने तो स्थिति शायद बदली है कि आज लगने लगा, mobile phone पर दुनिया चलाने लगे। वरना पहले सरकारों का ध्यान computer खरीदने पर रहता था, बड़ा कार्यक्रम रहता था computer खरीदना क्यों, दुनिया को लगता था। अब आज भी कोई आए, आपको मिलने को आए और उसके हाथ में i-pad नहीं है तो लगता है ये पुराना आदमी है, ऐसा लगता है। समाज की सोच बदल रही है फिर क्या हुआ। तो जैसे पहले गुलदस्ता रखते थे table पर अब computer रखने लगे हैं, कोई आए तो बड़ा अच्छा लगता है। थोड़ा समय गया तो computer convert in to cup-board, सामान भरने देते हैं। अभी भी ये technology, analysis के लिए सबसे बड़ी ताकत technology है। इस दिशा में अभी पहुंचना तो बाकी है। ज्यादा-ज्यादा cup-board के रूप में माल रखते रहो भाई। file आई scan करो और डाल दो। 

कहने का तात्पर्य ये है कि e-governance is effective governance, economical governance, easy governance और वो दिन दूर नहीं है जब दुनिया mobile governance पर चलने वाली है। लेकिन हम अपने आपको सजग नहीं करेंगे तो फिर मैं समझता हूं कि हम कितने ही ताकतवर क्यों न हो, दुनिया हमसे जो अपेक्षा कर रही है, उसको पूरा नहीं कर पाएंगे और इसलिए हमारे लिए आवश्यक है कि हम reform को बल दें और reform ही हमारी ताकत है और उसमें political leadership का कोई role नहीं है, कोई role नहीं है। हम लोग इस दिशा में आगे बढ़ें, इसको करना चाहिए। 

तीसरी एक महत्व की बात उन्होंने कही है Goldman Sachs ने, उसने कहा कि worldwide governance का जो index है। 2004 में हम 55 देशों से आगे थे, हमारे पीछे 55 थे। 2013 में हम 8 नंबर पीछे चले गए, इसका मतलब ये हुआ, एक बात आप मानकर चलिए, झरना कितना ही प्यारा क्यों न हो, झरने का संगीत कितना बढ़िया ही क्यों न हो, लेकिन उसको आगे जाकर के, विराटता की ओर जाने का अवसर नहीं है तो झरना कहीं सूख जाता है और इसलिए हमारी व्यवस्था भी हम कहीं से भी शुरू करें विराट की तरफ जाने के लक्ष्य की तरह चलनी चाहिए वरना ये सब किया-कराया सूख जाएगा। कितनी ही पीढ़ियों ने हमें यहां तक पहुंचाया है, कितने ही Cabinet Secretary बनकर के गए होंगे, कितने ही Chief Secretary बनकर के गए होंगे, कितने ही Secretary बनके गए होंगे, उन सबके पुरुषार्थ से आज हम पहुंचे हैं, अब हमें उसको तेज गति से आगे ले जाना, ये हमारा दायित्व बनता है। वो उन्होने जो दिया, उसको संभाल के बैठे रहना, ये बात नहीं चलती है। उसमें जो श्रेष्ठ है, उसको आगे लें, जो नया श्रेष्ठ आगे जोड़ सकते हैं, जोड़ते चलें और उस दिशा में हमारा प्रयास होना चाहिए। ये मुझे बहुत आवश्यक लगता है और उसको हम करें। मुझे विश्वास है कि उस दिशा में भी हम चलेंगे तो आने वाले दिनों में फायदा होगा। एक मेरा मत है जब मैं effective governance की बात करता हूं, good governance की बात करता हूं। देखिए without art good governance is impossible, good governance art के बिना चल नहीं सकती और जब मैं art कहता हूं। A for accountability, R for responsibility, T for transparency, A, R, T, ये art चाहिए, good governance के लिए बिना art जीवन भी संभव नहीं होता। 

बिना art जीवन भी संभव नहीं होता तो बिना art Governance भी संभव नहीं होता और इसलिए मैं चाहूंगा कि उस बात को हम करें। कभी-कभार जब हम काम करते हैं इतनी समस्‍याएं होती हैं इतनी चीजें देखते हैं तो हमारे मन में विचार आता है ज्‍यादातर लोगों को आता है, अकेला हूं, क्‍या करूं, कैसे होगा? दोस्‍तों आप अकेले नहीं है। आप विश्‍वास कीजिए आप कभी भी अकेले नहीं है। दुनिया में कोई कभी अकेला नहीं होता है। Plus one होता ही होता है, जो परमात्‍मा में विश्‍वास करता है उसके साथ परमात्‍मा होता है, जो प्रकृति में विश्‍वास करता है उसके साथ प्रकृति होती है। विज्ञान में विश्‍वास करता है, उसके साथ विज्ञान होता है, जो ज्ञान में विश्‍वास करता हूं उसके साथ ज्ञान होता है। हम हमेशा Plus one होते हैं। जब हम जीवनभर यह सोचते रहेंगे कि मैं अकेला नहीं हूं Plus One हूं। आपको कभी अकेलापन महसूस नहीं होगा। कभी-कभार यह लगता है। कभी-कभी कुछ लोग ऐसे भी होते हैं। जिनके दिमाग में यही चलता है मेरा क्‍या। Promotion, ढिकना, फलाना.. मैं और कोई चीज नहीं कह रहा हूं, वो जमाना चला गया। लेकिन मेरा क्‍या और अगर वो नहीं मिल बैठा तो मुझे क्‍या। सारा खेल इन दो शब्‍दों में चलता है। शुरू हुआ तो मेरा क्‍या, नहीं हुआ तो मुझे क्‍या। करो, तुम्‍हारा काम जाने, भगवान जाने मैं समझता हूं हम देश की सेवा के उस जगह पर बैठे हैं, जिसमें मेरा क्‍या और मुझे क्‍या यह नहीं होता है। हमारा तो यही सपना होता है कि सवा सौ करोड़ देशवासियों की सेवा के लिए ईश्‍वर ने मुझे एक ऐसा अवसर दिया है। ऐसा अवसर दिया है कि मैं कुछ कर छोड़कर जाऊं। 

आप भी देखिए जी, मुझे याद है मेरा एक शौक था सीखना जानना, समझना। मैं जब अफसरों से बात करता था, तो वो कभी मुझे बताते थे कि साहब अपने राज्‍य में sixty में, वो फलाने Chief secretary थे न, ऐसा करके गए थे और उनके साथ काम करते थे तो ऐसा होता था। Junior bureaucracy, senior bureaucracy के संबंध में इतना गौरव करती है जी, इतनी चीजों को याद करती है। यह अपने आप में बहुत बड़ी institution है जी। हम इसको कम न आंके। आप भी देखिए कि आज हम वो कर रहे हैं कि हमारे पीछे जो junior पीढ़ी है वो कभी कहे कि भई उस समय मैं तो नया था लेकिन हमारे जो पुराने अफसर थे, उन्‍होंने एक नया बदलाव लिया और आज जो देख रहे हैं न आप यह बदलाव उन्‍होंने जमाने में यह फाइल है देख लेना, उन्‍होंने शुरू किया। साहब देश राजनेताओं से नहीं चला है। देश बनाने के लिए, चलाने के लिए सैकड़ों प्रकार के लोगों ने हजारों प्रकार के काम किए हैं। तब देश चला हैं और उसमें अहम भूमिका करने का अवसर आपके पास आया है। 

आप जब निवृत होंगे तब कहेंगे कि मैंने आठ Chief Minister देख लिए थे, मैंने 10 Chief Minister देख लिए थे। लेकिन कोई Chief Minister यह नहीं कह पाएगा कि मैंने इतनो को देख लिया था। आपके पास यह ताकत है। हम तो अस्थिर है, आप स्थिर है। आप कितनी सेवा कर सकते हैं, इसका आप अंदाज कर सकते हैं। और जब मन में कभी यह आए इतना काम है, मैं क्‍या करूं, मेरे अकेले के करने से क्‍या होगा। मैं मानता हूं इस बात को मन में मत लाइये। एक बार समुद्र तट पर एक बच्‍चा जा रहा था। समुद्र में लहरे आने के कारण मछलियां निकलकर के एकदम से बाहर आ गई एकदम से। हजारों की तादाद में मछलियां बिना पानी के झटपटा रही थी। तो उस बच्‍चे ने मछली को उठाकर के पानी में डाल दिया। एक डाला, दो डाला, तीन डाला। तो कोई सज्‍जन जा रहे थे, उन्‍होंने उस बच्‍चे को कहा कि भई तू पागल है हजारों मछलियां पानी के बाहर तड़प रही है, तुम यह एक दो को डालोगे क्‍या निकलेगा, क्‍या करोगे, क्‍या होगा इससे? उसने बड़ा अच्‍छा जवाब दिया। 

उसने बड़ा अच्छा जवाब दिया उस बच्चे ने, उस अनुभवी व्यक्ति को जवाब दिया, मैं सहमत हूं, कोई फर्क नहीं पड़ेगा, ये हजारों मछलियों की जिंदगी में कोई फर्क नहीं पड़ेगा, मेरी जिंदगी में भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, आपकी जिदंगी में भी। लेकिन जिन तीन मछलियों को मैंने वापस डाला है, उनकी जिंदगी में जरूर फर्क पड़ेगा। ये संतोष होता है इसलिए कभी ये न सोचा कि इतने बड़े में क्या होगा, ये तीन को भी मैंने बचा लिया न तो भी बहुत बात होता है। कोई घास की बड़ी गंजी में आग लग जाए तो बुद्धिमान व्यक्ति क्या करता है। गंजी बोलते हैं, वो घास का ढेर होता है, उसको क्या बोलते हैं, घास को बहुत बड़ा, जो भी मुझे भी शब्द मालूम नहीं है। गुजराती में तो उसको बहुत बड़ा गंजी कहते हैं, घास का ढेर लगा, मानो उसमें आग लग गई तो क्या करेंगे, तो उसमें पानी डालने से घास बचेगा क्या, पानी डालने से उतना ही नुकसान होने वाला है, जितना आग लगने से होने वाला है। करें क्या, कोई मिट्टी डाले, उससे काम होगा क्या, समझदार आदमी क्या करेगा घास के ढेर में से जितना घास खींचकर के ले जा सकता है, ले जाएगा। जितना बच सकता है, बच गया। दोस्तों चारों तरफ आग लगी हुई है तो भी रास्ता है, कुछ तो नया निकालकर के कर सकते हैं, हम कुछ तो बचा सकते हैं, निराशा के माहौल में भी, निराशा के माहौल में भी इस भाव को मन में संजोकर के काम करें, हम भी परिस्थितयों को पलट सकते हैं, परिस्थितियां पलटी जा सकती हैं और इसलिए मैं कहता हूं दोस्तो कि हम अपने जीवन में इन बातों की ओर अगर ध्यान देंगे तो कभी काम का बोझ नहीं लगेगा, संकटों की विराटता नहीं लगेगी और दूसरी बात है administrative reform की एक ताकत होती है, जो संकटों से सीखता है। जो संकटों से सीखता नहीं है और मैं मानता हूं हर आपत्ति एक अवसर होती है और आपत्ति में से अवसर खोज नहीं पाता है वो सबसे ज्यादा नुकसान मोलता है, सबसे ज्यादा घाटा मोलता है। समझदार व्यक्ति का काम है, वो आपत्ति से सीखे। 

मैं अभी कनाडा गया था तो कनाडा के प्रधानमंत्री से गप्पे मार रहा था, तो उनकी पार्लियामेंट देखने गया था तो ऐसी ही मैंने पूछा, आपके यहां आतंकवादियों का हमला हुआ तो, तो उन्होंने बड़ा मजेदार कहा बोले खैर संकट तो बड़ा था, नुकसान हुआ लेकिन हम उसमें से भी सीखे तो मैं जागरुक हो गया। मैंने कहा क्या सीखे, बोले हमारे यहां lower house-upper house, building एक ही है लेकिन दोनों की security अलग-अलग है तो हम बोले पिछले 15 साल से सब सरकार कोशिश करती थी कि lower house-upper house की security arrangement single हो जाए। लेकिन वो हम नहीं कर पाते थे, ये संकट के कारण हो गई तो मुझे तुरंत फड़की मेरे देश में वो ही हाल है। Parliament पर हमला हुआ, हमने मौका खो दिया। आज भी हमारे यहां राज्यसभा की security अलग है, लोकसभा की security अलग है। मैं आलोचना करने के लिए नहीं कह रहा हूं, मैं ये कह रहा हूं कि आपत्तियां भी खोनी नहीं चाहिए कभी। आपत्तियों से भी अमृत निकाला जा सकता है, ये हमारा स्वभाव होना चाहिए तभी जाकर reform होता है जी, तभी जाकर के reform होता है और मैं मानता हूं कि ये अगर व्यवस्था की ताकत बनेगी तो मैं मानता हूं कि ये बहुत बड़ा बदलाव होगा। 

कुछ दो बातें-तीन बातें करके मैं अपनी बात को समाप्त कर दूंगा। कभी-कभार हम स्वंय अपने लिए भी विकास की यात्रा की ओर बल देना चाहिए। मसूरी में जो हमने पढ़ लिया, तो देश उसी पर चलता रहेगा तो संभव नहीं होगा जी, वक्त बदल चुका है। हमें perfection की ओर जाना पड़ेगा, हमें capacity building की ओर जाना पड़ेगा। मैं एक समस्या देख रहा हूं। हमारे देश के सामने, हम लोगों को आदत रही है scarcity में काम करने की मूलतः आज जो 30 साल जिसने सर्विस की होगी, वो जिंदगी में सर्वाधिक समय scarcity में काम किया होगा। पैसे की crunch होगी, तकलीफें होंगी, हर मुसीबत के बीच बेचारे ने चलने की कोशिश की होगी और इसके कारण विपुलता में काम करने की आदत ही नहीं बन पाई और भारत के लिए सबसे बड़ी मुसीबत आने वाली है कि विपुलता में काम कैसे करना है, resource बढ़ने वाले हैं जी, आर्थिक स्थिति सुधरने वाली है। 

आर्थिक स्थिति सुधरने वाली है, लेकिन अगर capacity building नहीं होगा within good तो हम इन रुपयों का सही समय सही उपयोग भी नहीं पाएंगे। हमारे सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है कि जब हम scarcity से plenty की तरफ जा रहे हैं उस कालखंड में हमें अपने आप को सजग करना होगा। आज भी आप किसी Urban Body को पैसे दीजिए, Urban Body को कहो कि reform करो, उसके पास Manpower ही नहीं है। आपने देखा होगा कि हमारे देश में urban body जो कि सबसे ज्‍यादा काम Technical है रोड बनाना, गटर बनानी है, engineering work है लेकिन maximum staff clerical होता है, क्‍योंकि जो body चुनकर के आती है उनको लगता है कि चलों 50 रिश्‍तेदारों को भर दो, तो clerk भर देते हैं। और परिणाम यह होता है कि जो Quality Manpower चाहिए वो नहीं होता है। Quality Manpower नहीं तो हम क्‍या करते हैं फिर ज्‍यादातर सरकार में consultancy क्‍यों घुस गई। capacity building का अभाव था, consultancy घुस गई। 

NGO को काम क्‍यों देना पड़ रहा है। हमारी Last Man तक जो delivery करने का mechanism का काम करना चाहिए था वो big हो गया, NGO को दे दो यार कर लेगा वो Toilet बना देगा। मैं समझता हूं जब plenty की तरफ जा रहे हैं तब capacity building हमारी सबसे बड़ी challenge है। 

आज जब Civil Services Day मना रहे हैं तब यहां बड़ी महत्‍वपूर्ण विषयों की चर्चा हुई है। मैं मानता हूं कि हमने अपनी capacity building पर बल देना पड़ेगा और इसलिए मैंने कहा कि हम Civil Services Day में youth के पास जाए और नये youth को कैसे लाएं, talented youth को इस सर्विस में कैसे लाएं। Government में काम करना यह गर्व कैसे बने, यह वातारण फिर से बनाना होगा। और यह बनाने के लिए मैं मानता हूं हमें इस काम को करना होगा, हमें अपना भी विकास करना होगा। हमने पुराने अपने दायरे, resource को बदलना पड़ेगा। नई चीजों को सीखना पड़ेगा, समझना पड़ेगा। सामान्‍य नागरिक में भी.. आपने देखा होगा आपको घर में बहुत बढि़या अगर ले आए आप Video Player आप 50 बार देखते रहेंगे कि भई कैसे चालू हो, लेकिन आपका 4 साल का बच्‍चा वो बोलेगा कि पापा आपको नहीं आए लाओ मैं कर देता हूं। वो फट से कर देता है। इतना बड़ा change आया है generation में आपको उसको cope-up करना है और इसलिए हम irrelevant नहीं होने चाहिए। As an individual हमारे लिए आवश्‍यक है कि हम व्‍यक्तिगति विकास करते रहे। मनुष्‍य कोई भी हो, हर मनुष्‍य के अंदर अच्‍छी और बुरी चीजें रहती ही, रहती है। 

कोई यह कहे कि मेरे में सब गुण ही गुण भरे हैं, तो उससे बड़ा कोई मूर्ख नहीं हो सकता। हरेक के अंदर गुण और अवगुण होते हैं। हमें तय करना है कि भई इतना बड़ा सामाजिक दायित्‍व मिला है तो मुझे किस रास्‍ते पर चलना है। एक बार एक पिता सोते समय बेटे को कथा सुना रहा था। वार्ता कहकर सोने की आदत थी बच्‍चे की। तो उसने दादा जी को कहा कि दादा जी जरा story सुनाइये। तो दादा जी ने wolf की story सुनाई, भेडि़ए की। उन्‍होंने कहा हरेक इंसान के अंदर दो भेडि़ए होते हैं, तो बच्‍चा कहने लगा, मेरे में तो कोई है ही नहीं तो भेडि़या कहां होगा अंदर। तो बोले हरेक के अंदर दो भेडि़ए होते हैं एक good भेडि़या, एक evil भेडि़या, और दोनों की लड़ाई चलती रहती है। जो evil भेडि़ये होते हैं भीतर में इसके अंदर इतनी-इतनी बुराईयां होती है। good भेडि़या उसके अंदर इतनी इतनी अच्‍छाईयां होती है। तो बच्‍चे ने पूछ लिया अच्‍छा लड़ाई होती है, तो जीता कौन? तो दादा ने जवाब दिया, जिसको तुम ज्‍यादा पोषण करोगे, न वो जीतेगा। अगर good भेडि़या को पोषण ज्‍यादा करोगे तो ultimately वो जीतेगा, evil भेडि़या को करोगे तो वो जीतेगा। और इसलिए हम अगर सार्वजनिक जीवन में इतना बड़ा दायित्‍व लेते हैं। हमारे भीतर, हरेक के अंदर कोई अछूता नहीं है, मैं यहां हूं, तो मैं भी हूं जिम्‍मेवार। मेरे भीतर भी दो भेडि़ए लड़ाई लड़ रहे हैं। हम किस भेडि़ये को खिला रहे हैं ताकि वो ताकतवर बने। ताकि evil भेडि़या जीत न जाए मेरे भीतर का, इस बात को लेकर के हमें चलना होगा। और उसको मैं मानता हूं कि हम चलेंगे तो। 

हमारी सरकार में silo सबसे बड़ी कठिनाई का कारण है, टीम यह अनिवार्य होती है। बिना टीम के काम नहीं होता है। और Leadership हमारी Quality चाहिए हम टीम कैसे create करे, हम टीम कैसे बनाए, टीम को कैसे चलाए। एक अकेला कुछ नहीं कर सकता जी। हर किसी को टीम चाहिए। कृष्‍ण भगवान को भी गोर्बधन उठाना था तो ... गोवर्धन उठाना था तो उन सारे ग्वालियों की लकड़ी लगानी पड़ी थी, राम को भी सेतु बनाना था तो सब बंदरों की जरूरत लग गई थी, हनुमान जी को भी लगा दिया था। आपको भी, अगर कृष्ण को, राम को भी उसकी जरूरत पड़ी तो मैं और आप कौन होते हैं जी। हमें भी team चाहिए, बिना team हम कुछ नहीं कर सकते हैं और इसलिए team creation उस पर हमारा प्रयास रहना चाहिए। हमारी पांच उंगलियां हैं, चार उंगली और एक अंगूठा है। वे अकेले-अकेले रहेंगे तो क्या होगा, बॉय-बॉय करने के सिवाए किसी काम नहीं आएंगे वो लेकिन वो ही team बनके काम करे तो चाहे वो परिणाम दे सकते हैं कि नहीं दे सकते। अब हमें तय करना है कि हमें बॉय-बॉय करना है कि team work करके ताकत दिखानी है और इसलिए मैं चाहूंगा कि हमें team बनाने की दिशा में जाने चाहिए। 

कभी-कभार काम करते-करते निराशा आ जाती है। पता नहीं यार कैसे होगा, दो शब्द-दो शब्द, मैं चर्चा करना चाहूंगा। पता नहीं क्यों कैसे ये शब्द हमारे भीतर घुस गए हैं। एक bureaucratic temperament और दूसरा political interference अब शब्द बाहर से नहीं आए, किसी पत्रकार ने हमारे सिर पर नहीं थोपे हैं। ये हम ही लोगों ने उपयोग किया है। ये हमने अपने ही अंदर, आपने देखा ही होगा। एक department काम कर रहा है, लेकिन कहीं पर रुका हुआ है। उसको पूछोगे क्या हुआ भाई। अरे पता नहीं वहां पर bureaucratic way है, file जल्दी नहीं निकलेगी। यानी हम ही इस system में हैं और एक जगह पर file नहीं निकलती है, तो हम कहते हैं यार उसका bureaucratic way है। उसी प्रकार से कुछ काम अटका है तो जो news leak करने वाले हैं तो यार bureaucratic interference बहुत है। 

लोकतंत्र में bureaucratic system और politics का चोली दामन का नाता है, छुटने वाला नहीं है जी, हकीकत है। लोकतंत्र की यही तो विशेषता है, जनप्रतिनिधि आने वाला है, जनप्रतिनिधि फैसले करने वाला है, जनप्रतिनिधियों के लिए आवश्यक है कि अगर देश चलाना है तो लोकतंत्र की सूझ-बूझ के साथ ये आवश्यक है political interference नहीं चाहिए लेकिन political intervention अनिवार्य रूप से चाहिए, वरना लोकशाही नहीं चल सकती है। political intervention is needed वरना जनसामान्य की आवाज को कैसे पहुंचाएंगे। interference तबाह कर सकता है, intervention अनिवार्य होता है। 

उसी प्रकार से sportsman में देखा होगा आपने खिलाड़ी हारा तो भी sportsman spirit में गर्व होता है। हम ही लोग हैं bureaucracy यानि क्या शब्द का गाली बना दिए हमने, ये हमारी जिम्मेवारी है कि bureaucratic - bureaucratic यानि सब बेकार है। अटकना, रुकना, अड़ंगे डालना मतलब bureaucratic है, ये परिभाषा लोकतंत्र में अच्छी नहीं है, हमें ही बदलनी होगी और उसके कारण जो अच्छे लोग हैं वो भी नहीं कर पाते हैं। इन दोनों शब्दों ने अपनी ताकत खो दी है। फिर से उसको प्राणवान कैसे बनाया जाए, सामर्थ्यवान कैसे बनाया जाए और शब्दों का अपना एक मूल्य होता है। वो अभिव्यक्ति का एक सबसे बड़ा माध्यम होता है और उसके लिए अगर हम कोशिश करें, मैं समझता हूं कि हम परिणाम देंगे। 

कभी-कभार काम करते-करते निराशा आ जाती है, निराशा आ जाती है एक बार, बहुत साल पहले मैं student age की बात कर रहा हूं। Reader digest ने competition रखी थी। वो competition बहुत विशेष थी। उसने लोगों को कहा था कि भई आप अपना experience share कीजिए। लेकिन experience सही होना चाहिए। अपनी जिंदगी का सही घटना होनी चाहिए, काल्पनिक नहीं है और उसने एक प्रश्न पूछा था कि सफलता और विफलता के बीच में फासला कितना होता है, distance between success and failure और सही घटनाएं लिखनी थी तो एक सज्जन ने लिखा, reader digest में छपा, बहुत साल हो गए। उसने लिखा कि जय और पराजय के बीच, सफलता और विफलता के बीच तीन फुट का फासला होता है, फिर आगे उसने वर्णन लिखा, उसने कहा मैं एक engineer था। नौकरी की तलाश कर रहा था अमेरिका में कोशिश करता था कुछ काम मिल जाता था। इतने में मैंने अखबार में एक advertisement पढ़ी कि अफ्रीका में सोने की खदानों की नीलामी होने वाली है और उसमें लिखा गया था कि वो खदानें है, जिसमें से सोना निकाल दिया गया है, निकालने वाली कपंनियां अपना पूरा करके चली गई है, अब यह जो खाली पड़ा है वो हम देने वाले हैं। तो पैसे भी ज्‍यादा लगाने वाले नहीं थे। तो इसने कहा कि मैंने apply किया, बहुत कम पैसे में मुझे खदान मिल गई। और एक बहुत बड़ी कंपनी वहां सोने निकालने का काम करती थी और आगे देखा कि कुछ निकलता नहीं तो फिर वो चले गए। मुझे लगा कि चलों भई मैं कोशिश करूं, मैंने कोशिश शुरू की, मेरे पास कुछ ज्‍यादा साधन नहीं थे। सामान्‍य manual work से मैंने शुरू किया। सिर्फ तीन फुट मैं नीचे गया और मुझे बहुत बड़ा सोने का भंडार नया मिल गया। और मैं दुनिया का अरबों पति हो गया। मेरे लिए विजय-पराजय, सफलता-विफलता के बीच सिर्फ 3 फीट का फासला है। 

मैं मानता हूं दोस्‍तों आप भी जिंदगी में इंतजार में सोचकर चलिए, तीन कदम दूर सफलता आपका इंतजार कर रही है, विजय आपका इंतजार कर रहा है। और इसलिए किसी पल यह नहीं सोचिए कि अब क्‍या, बहुत हो चुका, अब लगता नहीं यह कभी नहीं हो सकता। तीन कदम दूर कोई विजय, कोई सफलता आपकी प्रतीक्षा कर रही है। मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं कि आप अगर इस निष्‍ठा के साथ खुद पर भरोसा रखकर के जिंदगी को चलाने की कोशिश करोगे आप अवश्‍य सफल होंगे। 

मैं फिर एक बार सरदार पटेल को प्रणाम करते हुए इस महान संस्‍था को राष्‍ट्र की आर्थिक एकीकरण, सामाजिक एकीकरण के लिए विकास की नई ऊंचाईयों पर देश को ले जाने के लिए आपको जो अवसर मिला है, आप देश की बहुत बड़ी अमानत हो इस अमानत का उपयोग राष्‍ट्र के कल्‍याण के लिए होता रहे। 

इसी अपेक्षा के साथ मेरी तरफ से आपको हृदय पूर्वक बहुत-बहुत शुभकामनाएं, बहुत बहुत बधाई। 

धन्‍यवाद।

Explore More
140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी

लोकप्रिय भाषण

140 करोड़ देशवासियों का भाग्‍य बदलने के लिए हम कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे: स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी
India’s Biz Activity Surges To 3-month High In Nov: Report

Media Coverage

India’s Biz Activity Surges To 3-month High In Nov: Report
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
हमारे देश में एनसीसी को मजबूत करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं: पीएम मोदी
विकसित भारत यंग लीडर्स डायलॉग एक लाख नए युवाओं को राजनीति से जोड़ने का प्रयास है: पीएम मोदी
यह देखकर खुशी हुई कि युवा वरिष्ठ नागरिकों को डिजिटल क्रांति का हिस्सा बनने में मदद कर रहे हैं: पीएम मोदी
बच्चों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए चेन्नई, हैदराबाद और बिहार में अभिनव प्रयास किए जा रहे हैं: पीएम मोदी
प्रवासी भारतीयों ने विभिन्न देशों में अपनी पहचान बनाई है: पीएम मोदी
लोथल में एक संग्रहालय विकसित किया जा रहा है, जो भारत की समुद्री विरासत को प्रदर्शित करने के लिए समर्पित है: पीएम मोदी
#EkPedMaaKeNaam अभियान ने केवल 5 महीनों में 100 करोड़ पेड़ लगाने का मील का पत्थर पार कर लिया है: पीएम
गौरैया को पुनर्जीवित करने के लिए अद्वितीय प्रयास किए जा रहे हैं: पीएम मोदी

मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 'मन की बात', यानि देश के सामूहिक प्रयासों की बात, देश की उपलब्धियों की बात, जन-जन के सामर्थ्य की बात, ‘मन की बात' यानि देश के युवा सपनों, देश के नागरिकों की आकांक्षाओं की बात | मैं पूरे महीने, 'मन की बात' का इंतजार करता रहता हूँ, ताकि, आपसे सीधा संवाद कर सकूँ । कितने ही सारे संदेश, कितने ही messages ! मेरा पूरा प्रयास रहता है कि ज्यादा- से-ज्यादा संदेश को पढूँ, आपके सुझावों पर मंथन करूँ ।

साथियो, आज बड़ा ही खास दिन है - आज NCC दिवस है | NCC का नाम सामने आते ही हमें स्कूल-कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं | मैं स्वयं भी NCC Cadet रहा हूँ, इसलिए, पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इससे मिला अनुभव मेरे लिए अनमोल है | 'NCC' युवाओं में अनुशासन, नेतृत्व और सेवा की भावना पैदा करती है । आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए NCC के cadets जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में NCC को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । 2014 में करीब 14 लाख युवा NCC से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा NCC से जुड़े हैं | पहले के मुकाबले पाँच हजार और नए स्कूल-कॉलेजों में अब NCC की सुविधा हो गई है, और सबसे बड़ी बात, पहले NCC में girls cadets की संख्या करीब 25% (percent) के आस-पास ही होती थी | अब NCC में girls cadets की संख्या करीब-करीब 40% (percent) हो गई है | बॉर्डर किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा NCC से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है । मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में NCC से जुड़ें | आप देखिएगा आप किसी भी career में जाएं, NCC से आपके व्यक्तित्व निर्माण में बड़ी मदद मिलेगी |

साथियो, विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है | युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं । आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश 'युवा दिवस' मनाता है । अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue’ | भारत-भर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, block, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue' के लिए जुटेंगे | आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आहवान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का political background नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे | ‘विकसित भारत Young Leaders Dialogue' भी ऐसा ही एक प्रयास है । इसमें देश और विदेश से experts आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी | मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा | युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने ideas को रखने का अवसर मिलेगा | देश इन ideas को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस roadmap बन सकता है? इसका एक blueprint तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं | जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए I मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी address किया है जैसे लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, वो बुजुर्गों को Digital life certificate के काम में मदद करते हैं I आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी Pensioners को साल में एक बार Life Certificate जमा कराना होता है I 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी I अब ये व्यवस्था बदल चुकी है I अब Digital Life Certificate देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता I बुजुर्गों को Technology की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है I वो, अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं I इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को tech savvy भी बना रहे हैं ऐसे ही प्रयासों से आज Digital Life certificate पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है I इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है I

साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को Digital क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं I भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को Mobile के माध्यम से Payment करना सिखाया है I इन बुजुर्गों के पास smart phone तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था I बुजुर्गों को Digital arrest के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं I अहमदाबाद के राजीव, लोगों को Digital Arrest के खतरे से आगाह करते हैं I मैंने ‘मन की बात’ के पिछले episode में Digital Arrest की चर्चा की थी I इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं I ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और cyber fraud से बचने में मदद करें I हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि Digital Arrest नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है - ये सरासर झूठ, लोगों को फ़साने का एक षड्यन्त्र है मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं I

मेरे प्यारे देशवासियो, आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं | कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े - कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी | मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे share करना चाहता हूं | यहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है | इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है | इस library का idea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है | विदेश में अपने काम के दौरान वे latest technology की दुनिया से जुड़े रहे | लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे | भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया | इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है | किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं | Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है |

साथियो, हैदराबाद में ‘Food for Thought’ Foundation ने भी कई शानदार libraries बनाई हैं | इनका भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें | बिहार में गोपालगंज के ‘Prayog Library’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है | इस library से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, library पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है | कुछ libraries तो ऐसी हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में students के बहुत काम आ रही हैं | ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज library का बेहतरीन उपयोग हो रहा है | आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं | भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘Mini भारत’ बसता है | आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था | आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं | गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं | जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था - जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे share कर रहा हूं | गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं | दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं | क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ share करें | आप इन कहानियों को NaMo App पर या MyGov पर #IndianDiasporaStories के साथ भी share कर सकते हैं |

साथियो, आपको ओमान में चल रहा एक extraordinary project भी बहुत दिलचस्प लगेगा | अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं | इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं | इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण link तैयार किए थे | आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है | ओमान में भारतीय दूतावास और National Archives of India के सहयोग से एक team ने इन परिवारों की history को preserve करने का काम शुरू किया है | इस अभियान के तहत अब तक हजारों documents जुटाए जा चुके हैं | इनमें diary, account book, ledgers, letters और telegram शामिल हैं | इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं | ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं | बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े - ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है | ‘Oral History Project’ ये भी इस mission का एक महत्वपूर्ण आधार है | इस mission में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं | लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है |

साथियो ऐसा ही एक ‘Oral History Project’ भारत में भी हो रहा है | इस project के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं | अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है | ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है |

साथियो, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है | इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक Directory बनाई है | समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है | इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा Museum भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई manuscript हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, National Archives of India की मदद से सहेज सकते हैं |

साथियो, मुझे Slovakia में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है | यहां पहली बार Slovak language में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है | इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है | हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे देश की एक ऐसी उपलब्धि साझा करना चाहता हूं जिसे सुनकर आपको खुशी भी होगी और गौरव भी होगा, और अगर आपने नहीं किया है, तो शायद पछतावा भी होगा | कुछ महीने पहले हमने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान शुरू किया था | इस अभियान में देश-भर के लोगों ने बहुत उत्साह से हिस्सा लिया | मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि इस अभियान ने सौ करोड़ पेड़ लगाने का अहम पड़ाव पार कर लिया है | सौ करोड़ पेड़, वो भी, सिर्फ पाँच महीनों में - ये हमारे देशवासियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है | इससे जुड़ी एक और बात जानकर आपको गर्व होगा | ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अब दुनिया के दूसरे देशों में भी फैल रहा है | जब मैं गयाना में था, तो वहां भी, इस अभियान का साक्षी बना | वहां मेरे साथ गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली, उनकी पत्नी की माता जी, और परिवार के बाकी सदस्य, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में शामिल हुए |

साथियो, देश के अलग-अलग हिस्सों में ये अभियान लगातार चल रहा है | मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत, पेड़ लगाने का record बना है - यहां 24 घंटे में 12 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए | इस अभियान की वजह से इंदौर की Revati Hills के बंजर इलाके, अब, green zone में बदल जाएंगे | राजस्थान के जैसलमेर में इस अभियान के द्वारा एक अनोखा record बना - यहां महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25 हजार पेड़ लगाए | माताओं ने मां के नाम पेड़ लगाया और दूसरों को भी प्रेरित किया। यहां एक ही जगह पर पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मिलकर पेड़ लगाए - ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है । ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कई सामाजिक संस्थाएँ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पेड़ लगा रही हैं । उनका प्रयास है कि जहां पेड़ लगाए जाएँ वहाँ पर्यावरण के अनुकूल पूरा Eco System Develop हो । इसलिए ये संस्थाएँ कहीं औषधीय पौधे लगा रहीं हैं, तो कहीं, चिड़ियों का बसेरा बनाने के लिए पेड़ लगा रहीं हैं । बिहार में ‘JEEViKA Self Help Group’ की महिलाओं ने 75 लाख पेड़ लगाने का अभियान चला रहीं हैं । इन महिलाओं का focus फल वाले पेड़ों पर है, जिससे आने वाले समय में आय भी की जा सके ।

साथियो, इस अभियान से जुड़कर कोई भी व्यक्ति अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगा सकता है । अगर माँ साथ है तो उन्हें साथ लेकर आप पेड़ लगा सकते हैं, नहीं तो उनकी तस्वीर साथ में लेकर आप इस अभियान का हिस्सा बन सकते हैं । पेड़ के साथ आप अपनी Selfie भी mygov.in पर पोस्ट कर सकते हैं । माँ, हम सबके लिए जो करती है हम उनका ऋण कभी नहीं चुका सकते, लेकिन, एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम उनकी उपस्थिति को हमेशा के लिए जीवंत बना सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया या Sparrow को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा । गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है । हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं । हमारे आसपास Biodiversity को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है । बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है । आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है । ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं । चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए स्कूल के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है । संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है । ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की training देते है । इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा सा घर बनाना सिखाया । इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया । ये ऐसे घर होते हैं जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है । बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे दस हज़ार घोंसले तैयार किए हैं । कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी ।

साथियो, कर्नाटका के मैसुरू की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘Early Bird’ नाम का अभियान शुरू किया है । ये संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की library चलाती है । इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘Nature Education Kit’ तैयार किया है। इस Kit में बच्चों के लिए Story Book, Games, Activity Sheets और jig-saw puzzles हैं । ये संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है । इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं । ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है | आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा | सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं | बरसों-बरस तक ये फाइलें Office में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी - ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और Scrap को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया | आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं | साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है | इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक Ownership का भाव भी आया है | अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है |

सथियो, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है | हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है | देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं | तरह-तरह के innovation कर रहे हैं | इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं | ये युवा अपने प्रयासों से sustainable lifestyle को भी बढ़ावा दे रहे हैं | मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है | अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं | आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है | अक्षरा और प्रकृति की Team उन्हीं कपड़ों के कचरे को Fashion Product में बदलती है | कतरन से बनी टोपियां, Bag हाथों-हाथ बिक भी रही है |

साथियो, साफ-सफाई को लेकर UP के कानपुर में भी अच्छी पहल हो रही है | यहाँ कुछ लोग रोज सुबह Morning Walk पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले Plastic और अन्य कचरे को उठा लेते हैं | इस समूह को ‘Kanpur Ploggers Group’ नाम दिया गया है | इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी | धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया | शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं | इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं | इस कचरे से Recycle Plant में tree guard तैयार किए जाते हैं, यानि, इस Group के लोग कचरे से बने tree guard से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं|

साथियो, छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है | इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है | इतिशा corporate दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं | पर्यटकों की वजह से वहां काफी plastic waste जमा होने लगा था | वहां की नदी जो कभी साफ थी वो plastic waste की वजह से प्रदूषित हो गई थी | इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है | उनके group के लोग वहां आने वाले tourist को जागरूक करते हैं और plastic waste को collect करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं |

साथियो, ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है | ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है | आपके आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा | आप मुझे ऐसे प्रयासों के बारे में जरूर लिखते रहिए |

साथियो, ‘मन की बात’ के इस episode में फिलहाल इतना ही | मुझे तो पूरे महीने, आपकी प्रतिक्रियाओं, पत्रों और सुझावों का खूब इंतजार रहता है | हर महीने आने वाले आपके संदेश मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देते हैं | अगले महीने हम फिर मिलेंगे, ‘मन की बात’ के एक और अंक में - देश और देशवासियों की नई उपलब्धियों के साथ, तब तक के लिए, आप सभी देशवासियों को, मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं |

बहुत-बहुत धन्यवाद |