प्यारे भाईयों और बहनों

आप सबका उत्साह और उमंग हिंदुस्तान में जो लोग टी.वी. देखते हैं, पूरे हिंदूस्तान को उमंग से भर देता है कि दूर फ्रांस में,पेरिस में,इस प्रकार से भारतीयों का उमंग और उत्साह से भरा हुआ माहौल भारत के सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए भी उमंग और आनंद का कारण बन जाता है। इसके लिए मैं आपका बहुत बहुत अभिनंदन करता हूं। आपका धन्यवाद करता हूं। मैं परसों रात यहां पहुंचा था। यह मेरा एक प्रकार से यहाँ आखिरी सार्वजनिक कार्यक्रम है और कल मैं यहां से जर्मनी जा रहा हूं। फ्रांस मैं पहले भी आया था,एक Tourist के रूप में। लेकिन आज आया हूं यहां से टूरिस्टों का India ले जाने के लिए। पहले आया था, एक जिज्ञासा ले करके, देखना चाहता था,फ्रांस कैसा है। आज आया हूं, एक सपना ले करके कि मेरा देश भी कभी इससे भी आगे कैसे बढ़ेगा।

आज मैं गया था,वीर भारतीयों ने जहां पर शहादत दी, उस युद्ध भूमि पर,उस युद्ध स्मारक को प्रणाम करने के लिए| मैं नहीं जानता हूं कि मेरे पहले भारत से और कौन-कौन वहां गया था। लेकिन, अगर मैं न गया होता, तो मेरे दिल में कसक रह जाती। एक दर्द रह जाता,एक पीड़ा रह जाती। दुनिया को पता नहीं है, हिंदुस्तान, यह त्याग और तपस्या की भूमि कही जाती है। वो त्याग और तपस्या जब इतिहास के रूप में सामने नज़र आती है, मैं उस भूमि पर गया, मेरे रोंगटे खड़े हो गए। पूरे शरीर में, मन में एक अलग-सा भाव जगने लगा और इतना गौरव महसूस होता था कि हमारे पूर्वज क्या महान परंपरा हमारे लिए छोड़ करके गए हैं। अपनों के लिए, खुद के लिए लड़ने वाले, मरने वाले, त्याग करने वाले बहुत हैं। लेकिन औरों के लिए भी कोई मर सकता है, ये तो सिर्फ प्रथम विश्व युद्ध की घटनाओं को याद करें तब पता चलता है। यह वर्ष प्रथम विश्व युद्ध की शताब्दी का वर्ष है। सौ साल पहले कैसा मानवसंहार हुआ था। उन यादों को फिर एक बार इतिहास के झरोखे से देखने की ज़रूरत है। युद्ध कितना भयानक होता है। मानवता के खिलाफ कितना हृदयद्रावक परिणाम होता है। इसलिए प्रथम विश्व युद्ध की शताब्दी हमारे भीतर युद्ध से मुक्त मानवता ,उसके संकल्प का ये वर्ष होना चाहिए। भारत में भी हमारे पूर्वजों के बलिदान की बातें बारीकी से नहीं बताई जातीं। कभी कभार तो इतिहास को भुला दिया जाता है। इतिहास, जो समाज भूल जाता है, वो इतिहास बनाने की ताकत भी खो देता है। इतिहास वो ही बना सकते हैं जो इतिहास को जानते हैं,समझते हैं।

दुनिया इस बात को समझे कि प्रथम विश्वयुद्ध में भारत के 14 लाख जवानों ने अपनी जिंदगी दांव पर लगाई थी। युद्ध के मैदान में उतरे थे। चार साल तक लड़ाई चली, लोग कैसे होंगे, मौसम कैसा होगा, प्रकृति कैसी होगी, पानी कैसा होगा, खान-पान कैसा होगा, कुछ पता नहीं था, लेकिन किसी के लिए वे लड़ रहे थे। अपने लिए नहीं, कोई भारत को अपने भू-भाग का विस्तार करना था, इसलिए नहीं, भारत कोई अपना विजय डंका बजाने के लिए निकला था, वो नहीं और वैसे भारत के पूरे इतिहास में ये नहीं है। हजारों साल का भारत का इतिहास, जिसमें आक्रमण का नामोनिशान नहीं है। फ्रांस के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़े थे। उस समय की अगर तस्वीरें देखें,मैंने आज कुछ तस्वीरें ट्वीट की हैं, जिसमें जब हिंदुस्तान के सैनिक युद्ध के लिए यहां पहुंचे थे तो फ्रांस की कोई महिला उनको फूल दे करके उनका स्वागत कर रही थी, वह उस समय की एक तस्वीर मैंने आज ट्वीट की है। कोई कल्पना करे कि 14 लाख सेना के जवान किसी के लिए बलिदान देने के लिए निकल पड़े | प्रथम विश्व युद्ध में करीब-करीब 75 हजार हिंदुस्तान के सैनिकों ने शहादत दी थी। ये अंक छोटा नहीं है। 75 हजार लागों की शहादत! और 11 तो ऐसे वीर पुरूष थे जिन्होंने Victoria cross का सर्वोपरि सम्मान प्राप्त किया था, अपनी वीरता के लिए, बलिदान की उच्च परंपराओं के लिए। फ्रांस की धरती पर, उसमें से 9 हजार लोग शहीद हुए थे और उनकी स्मृति में ये स्मारक बना हुआ है और आज वहां मैं सर झुकाने गया था। उन वीरों का आशीर्वाद लेने गया था और मैं दुनिया को एक संदेश देना चाहता था कि विश्व भारत को समझे। दुनिया भारत को देखने का नज़रिया बदले। ये कैसा देश है! जो अपने लिए नहीं औरों के लिए भी बलिदान देता है और इतनी बड़ी मात्रा में बलिदान देता है। इतना ही नहीं, United Nations बनने के बाद Peace keeping force बने हैं। आज भी दुनिया में ये बात गौरव से कही जाती है कि Peace keeping forces में सबसे ज्यादा अगर कोई योगदान देता है, तो हिंदुस्तान के सैनिक देते हैं..और Peace keeping force में, जिनके Discipline की, जिनके शौर्य की, जिनकी बुद्धिमता की तारीफ होती है, वो सेना के नायक भारत के होते हैं। वह देश, जिसने कभी कहीं आक्रमण न किया हो, हजारों साल में, जो देश प्रथम विश्व युद्ध में और द्वितीय विश्व युद्ध में, औरों के लिए जिसके लोग शहादत देते हों। जो देश, यूएन बनने के बाद Peace keeping force में लगातार सबसे अधिक अपने सैनिक भेज करके दुनिया में शांति के लिए अपनी पूरी ताकत खपा देता है और दूसरी तरफ दुनिया हमें क्या देती है? शांति का झंडा उठाकर चलने वाला ये देश, शांति के लिए जीने मरने वाला ये देश, United Nations में, Security Council में Seat पाने के लिए तरस रहा है।

दुनिया से मैं आग्रह करूंगा कि आज जब विश्व प्रथम विश्व युद्ध की शताब्दी में गुजर रहा है तब ये अवसर है, शांतिदूतों के सम्मान का। ये अवसर है, गांधी और बुद्ध की भूमि को उसका हक देने का। वो दिन चले गए, जब हिंदुस्तान भीख मांगेगा। ये देश अपना हक मांगता है, और हक, विश्व में शांति का संदेश बुद्ध और गांधी की भूमि जिस प्रकार से दे सकती है, शायद ही और कोई इतनी Moral Authority है, जो दुनिया को ये ताकत दे सके, संदेश दे सके। मैं आशा करता हूं कि यूएन अपनी 70वीं शताब्दी जब मनाएगा तो इन विषयों पर पुर्नविचार करेगा। इसलिए मैं आज विशेष रूप से उन वीर शहीदों को प्रणाम करने गया था, ताकि शांति के लिए हम सर कटा सकते हैं, ये दुनिया को पता चलना चाहिए और ये संदेश हम दुनिया को दें।

मैं आज ये भाषण तो पेरिस में आपके सामने कर रहा हूं, लेकिन मुझे बताया गया कि सैंकड़ों मील दूर, अलग-अलग टापुओं पर, जहां फ्रांस के नागरिक बसते हैं और जिसमें हिंदुस्तानी लोग भी बसते हैं। Reunion में लोग इकठ्ठे हुए हैं, वादालूप में लोग इकठ्ठे हुए हैं, मार्तेनिक में लोग इकठ्ठे हुए हैं, सेमार्ता में लोग इकठ्ठे हुए हैं और वहां करीब करीब ढाई लाख से भी ज़्यादा हिंदुस्तानी लोग बसते हैं। मैं इतनी दूर बैठे हुए आप सबको भी यहां से प्रणाम करता हूं और मैं जानता हूं कि यहां बैठे हुए तो शायद हिंदी समझ लेते हैं, आप भारतीय होने का गर्व करते हैं, लेकिन फ्रैंच भाषा से अधिक किसी भाषा से परिचित नहीं हैं। Simultaneous फ्रैंच भाषा में Translation चल रहा है, वो जो दूर टापुओं पर बैठे हैं, उनको फ्रैंच भाषा में सुनने का अवसर मिला है, ऐसा मुझे बताया गया है। मैं उन सभी भारतवासियों को इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए, उनका अभिनंदन करता हूं और आपको मैं विश्वास दिलाता हूं कि आप अगर हिंदुस्तानी भाषा नहीं जानते हैं, बहुत साल पहले आप हिंदुस्तान से बाहर निकल चुके हैं, पासपोर्ट के रंग बदल गए होंगे, लेकिन मेरे और आपके खून का रंग नहीं बदल सकता। भारत आपकी चिंता पासपोर्ट के रंग के आधार पर नहीं करता, मेरे और आपके डीएनए के आधार पर करता है, मैं आपको यह विश्वास दिलाता हूं। इसको हमने बखूबी शुरू भी किया है। इस बार जो प्रवासी भारतीय दिवस मनाया गया क्योंकि ये वर्ष प्रवासी भारतीय दिवस का वो वर्ष है,जब महात्मा गांधी को साउथ अफ्रीका से हिन्दुस्तान लौटने का शताब्दी वर्ष है। 1915 में गांधी जी साउथ अफ्रीका से भारत वापस लौटे थे और ये 2015 है जो शताब्दी वर्ष है और उस शताब्दी में प्रवासी भारतीय दिवस, गांधी वापस आ करके, जहां उन्होंने आंदोलन की शुरूआत की थी, उस गुजरात के अंदर वो कार्यक्रम हुआ था। हर बार के प्रवासी भारतीय दिवस के अपेक्षा इस बार एक विशेषता थी और ये विशेषता थी, कि पहले भी कई प्रकार के कार्यक्रम होते थे, कई प्रकार की मीटिंग होती थी, लेकिन पहली बार फ्रेंच भाषा जानने वालों का अलग कार्यक्रम किया गया था। उनके साथ अलग विचार विमर्श किया गया था। उनकी समस्याओं को अलग से समझा गया था और उन समस्याओं के समाधान खोजने के प्रयास भी जारी कर दिए गए हैं।

मैं जानता हूं, फ्रांस में कुछ Professionals हैं जो अभी अभी आए हैं। जो हिंदुस्तान की कई भाषा जानते हैं, हिंदुस्तान को भली भांति जानते हैं, कुछ लोग इसके पहले आए, विशेषकरके पांडिचेरी से आए, उनका भी ज्यादा नाता यहां हो गया है, वहां थोड़े बहुत, कम अधिक मात्रा में रहा है। लेकिन कुछ उससे भी पहले आए हैं, जिनके पास कोई Document तक नहीं है। कब आए, कैसे आए, किस जहाज में आए, कहां ठहरे, कुछ पता नहीं है। लेकिन इतना उनको पता है कि वो मूल भारतीय हैं और हमारे लिए इतना रिश्ता काफी है। मैं चाहूंगा कि उन चीज़ों को हम फिर से कैसे अपने आप को जोड़ें। कभी कभार जब भाषा छूट जाती है, परंपराओं से अलग हो जाते हैं, नाम बदल जाते हैं तो सदियों के बाद आने वाली पीढि़यों के लिए परेशानी हो जाती है कि पता नहीं हम कौन थे, कोई हमें स्वीकार क्यों नहीं करता है। यहां वालों को लगता है कि तुम यहां के तो हो ही नहीं, बाहर वाले को हम बता नहीं पाते, हम कहां से हैं। एक बार मेरे साथ एक घटना घटी, गुजरात में वेस्ट इंडीज की क्रिकेट टीम खेलने के लिए आई थी, तो क्रिकेट का मैच था, तो उस जमाने में तो मोबाइल फोन वगैरह नहीं थे। एक सज्जन का मेरे यहां टेलीफोन आया। मैं आरएसएस हेडक्वार्टर पर रहता था और फोन आया कि वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम के मैनेजर आपसे मिलना चाहते हैं। मेरे लिए बड़ा Surprise था। मैं एक बहुत सामान्य, छोटा सा व्यक्ति.. मैं कोई तीस साल पहले की बात कर रहा हूं। 30-35 साल हो गए होंगे। वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम का मैनेजर, उस जमाने में तो क्रिकेटर से हाथ मिलाना, यानी ये भी एक जीवन का सौभाग्य माना जाता था। मैंने तुरंत उनसे संपर्क किया। उन्होंने कहा- मेरा नाम रिखि है, मैं वेस्टइंडीज से आया हूं और वेस्टइंडीज में फलाने फलाने आदमी ने आपका reference दिया है। मैंने कहा, ज़रूर मैं आपसे मिलने आता हूं। उन्होंने रिखि कहा तो मुझे समझ नहीं आया, वो है क्या चीज़, किस परंपरा से हैं, किस समाज से हैं। मैं गया तो वे तो बिल्कुल हिंदुस्तानी जैसे लगते थे और उनकी पत्नी भी साड़ी वगैरह पहन करके बैठी थी। मैंने कहा, ये रिखि ? उन्होंने कहा कि पता नहीं ये नाम हमारा कैसे बना है, लेकिन मेरी पत्नी का नाम बोले, सीता है और बोले हम डेढ़ सौ साल, दो सौ पहले हमारे पूर्वज गए थे, तो हो सकता है, मेरे नाम के साथ ऋषि शब्द होना चाहिए। अपभ्रंश होते होते रिखि हो गया है और बोले मैं वहां Government में Education विभाग में अफसर हूं और टीम मैनेजर के रूप में मैं यहां आया हूं। खैर मैंने दूसरे दिन उनका एक स्वागत समारोह रखा और बड़े वैदिक परंपरा से उनका सम्मान स्वागत किया। लेकिन तब मेरे मन में विचार आया कि अगर हम, हमारी जो मूल परंपरा है, उससे अगर नाता छूट जाता है, अब आप देखिए Mauritius जाएं तो हमें कभी भी वहां कठिनाई महसूस नहीं होती क्योंकि Mauritius जब लोग गए तो साथ में हनुमान चालीसा ले गए और तुलसीकृत रामायण ले गए तो डेढ़ सौ-दो सौ साल उसी के आधार पर वे भारत से जुड़े रहे। उसका गान करते रहे। भाषा को समझते रहे। लेकिन वेस्टइंडीज की तरफ जाओ आप, Guyana वगैरह में तो भाषा भूल चुके हैं, क्योंकि पहुंची नहीं भाषा, लेकिन अंग्रेज़ी के कारण थोड़ी बहुत Connectivity रहती है। आपके नसीब में तो वो भी नहीं है। इसलिए जो भी अपने आप को इस परंपरा की विरासत के साथ जोड़ता है, उसे कोई न कोई संपर्क रखना चाहिए।

मैं इस प्रकार से उत्सुक सभी परिवारों से कहता हूं कि अब तो इंटरनेट का जमाना है, सोशल मीडिया का जमाना है और मैं बहुत easily available हूं, अगर आप इन विषयों में भारत सरकार को अगर लिखेंगे, मेरी website पर अगर आप चिठ्ठी डाल देंगे, तो मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि आपको भाषा की दृष्टि से, परंपराओं की दृष्टि से, भारत से या मूल किस राज्य से आपका संबंध होगा, वो अगर खोजना होगा तो हमारी तरफ से मदद करने का पूरा प्रयास रहेगा क्योंकि ये नाता हमारा बनना चाहिए। मैंने पूछा यहां पर तो बोले कि Movie तो हिंदुस्तान की देखते हैं, लेकिन जब तक नीचे फ्रैंच भाषा में Caption नहीं आता, समझ नहीं आती। एक बार मैं Caribbean countries में एक स्थान पर गया था। जिस दिन मैं वहां पहुंचा, वहां कहीं एक मूल भारतीय परिवार में किसी का स्वर्गवास हुआ था और जिसके यहां मैं रूकने वाला था, वे एयरपोर्ट लेने नहीं आए, कोई और आया, तो मैंने पूछा क्यों भई क्या हुआ? तो बोले कि हमारे परिचित थे, उनका स्वर्गवास हो गया तो वो वहां चले गए हैं, तो मैंने कहा कि ठीक है, मैं भी चलता हूं वहां। हम यहां आए हैं, आपके परिचित हैं तो हम भी चले जाते हैं। हम वहां गए तो, मैंने जो दृश्य देखा बड़ा हैरान था। वहां उनके अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, भारतीय परंपरा से Dead body को ले जाना था, लेकिन एक हिंदी फिल्म का गाना बज रहा था और परिवार के सारे लोग रो रहे थे। गाने के शब्दों को और उस घटना को पूरा 180 डिग्री Contrast था। शोक और मृत्यु से उसका कोई लेना देना नहीं था। लेकिन उस गाने में थोड़ा Sadness थी, गाने में तो उनको लग रहा था कि मृत्यु के बाद ये ठीक है, तो वो वही बजाते थे और वे रो रहे थे। तो मेरे मन में विचार आया कि कम से कम, अब उस जमाने में तो वीडियो था नहीं, लेकिन मुझे लगा कि हिंदी फिल्म Song हो तो उसको अपनी Language में Transliteration भेजना चाहिए, क्योंकि उनको समझ में आना चाहिए शब्द क्या हैं ।कोई मेल नहीं था, पर चूंकि वो भारतीय परंपरा से अग्नि संस्कार वगैरह करने वाले थे, लेकिन उनके लिए ये लिंक टूट जा रहा था। ये अपने आप में बड़ी कठिनाई थी। मैं समझता हूँ कि जो दिकक्त Caribbean countries में अनुभव करते हैं, शायद इस भू-भाग में भी वो समस्याएं हैं और मैं समझता हूँ कि उन समस्याओं का समाधान भारत और आपको मिलकर के प्रयास करना चाहिए और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आगे भी हमारा संबंध और भी गहरा बने, सरल बने और आने वाली पीढ़ियों तक कैसे सरल बने उसके लिए जो कुछ भी करना होगा, विशेषकर के इन टापुओं पर जो मुझे आज सुन रहें हैं उनकी सबसे ज्यादा कठिनाई है। बड़े स्थान पर रहने वालों को शायद इतनी कठनाई नही होती होगी लेकिन जो दूर छोटे-छोटे टापुओं पर बसे भारतीय लोग हैं उनके लिए मेरा यह प्रयास रहेगा कि आने वाले दिनों में उनकी किस रूप में मदद हो सकती है।

आप देख रहें हैं कि पिछले वर्ष भारत में चुनाव हुआ, चुनाव भारत में था लेकिन नतीजों के लिए आप ज्यादा इन्तेजार करते थे | पटाखे यहां फूट रहे थे। मिठाई यहां बांटी जा रही थी, यह जो आनंद था आपके मन में वो आनंद अपेक्षाओं के गर्व में से पैदा हुआ था| उसके साथ अपेक्षाएं जुड़ी है और मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं कि जन आशाओं, आकांक्षाओं के साथ हिंदुस्‍तान की जनता ने भारत में सरकार बनाई है पिछले दस महीने का मैं अनुभव से कह सकता हूं कि यह सारे सपने साकार होंगे। मैं अनुभव से कह सकता हूं.. अब मैं किताबी बात नहीं कर रहा हूं। किसी अखबार के Article के द्वारा प्राप्‍त की हुई जानकारी के आधार पर नहीं कह रहा हूं। मैं अनुभव से कह रहा हूं कि हिंदुस्‍तान को गरीब रहने का कोई कारण ही नहीं है।

स्‍वामी विवेकानंद ने कहा था कि मैं मेरी आंखों के सामने देख रहा हूं कि मेरी भारत माता एक बार जगत गुरू के स्‍थान पर विराजमान होगी और मेरी विवेकानंद में बहुत श्रद्धा है। विवेकानंद जी 1895 में फ्रांस आए थे और दोबारा 1900 में आए थे। दोनों बार आए, एक बात उन्‍होंने बड़े मजेदार कही थी, उन्‍होंने कहा था कि फ्रांस यह यूरोप की सभ्‍यता का नेतृत्‍व उसके हाथ में है और उन्‍होंने कहा कैसा, उन्‍होंने कहा जैसे गंगा की पहचान गौमुख से होती है, वैसे यूरोपीय सभ्‍यता की पहचान फ्रांस से होती है। यह वो भूमि है, जहां स्‍वयं महात्‍मा गांधी 31 में आए थे। यह भूमि है जहां मैडम कामा, श्‍याम जी कृष्‍ण वर्मा, जो आजादी के लड़ाई में नेतृत्‍व करना जो एक बहुत बड़ा तबका था वो इसी धरती पर रहता था लम्‍बे अरसे तक और पहला तिरंगा उसका निर्माण कार्य फ्रांस की धरती पर हुआ था और जर्मनी में फहराया गया था।

मैडम कामा, सरदार श्री राणा और श्‍याम जी कृष्‍ण वर्मा यह त्रिकुटी उस समय हिंदुस्‍तान की क्रांति का नेतृत्‍व करते थे। आज भी मुझे इस बात का गर्व है कि मैं मुख्‍यमंत्री बनने के बाद एक कार्य करने का मुझे सौभाग्‍य मिला। वैसे बहुत से अच्‍छे काम जो है वो मेरे लिए बाकी रहे है, वह मुझे ही पूरे करने है। श्‍याम जी कृष्‍ण वर्मा जिन्‍होंने हिंदुस्‍तान में आजादी की और उसमें भी क्रांतिकारी क्षेत्र में काम करने की दिशा में एक अलख जगाई थी। London में अंग्रेजों की नाक के नीचे उन्‍होंने India House बनाया था और वीर सावरकर, सभी क्रांतिकारियों को वो Scholarship देकर यहां बुलाते थे और उनको तैयार करते थे। बहुत बड़ा उनका काम था। 1930 में उनका स्‍वर्गवास हुआ। आजादी की लड़ाई में बड़ा नेतृत्‍व करने वाले व्‍यक्ति थे। उन्‍होंने एक चिट्ठी लिखी कि मेरे मरने के बाद मेरी अस्थि संभालकर रखी जायें। मैं तो जीते जी आजाद हिंदुस्‍तान देख नहीं पाया, लेकिन मेरे मरने के बाद जब भी हिंदुस्‍तान आजाद हो मेरी अस्थि हिंदुस्‍तान जरूर ले जाई जायें। देखिए देशभक्ति, देशभक्ति करने वालों का दिमाग किस प्रकार से काम करता है और वो सोचते थे। 1930 में उनका स्‍वर्गवास हुआ। 2003 में जब मैं गुजरात में मुख्‍यमंत्री था। 2001 में मुख्‍यमंत्री बना फिर मैंने लिखा-पट्टी शुरू की। स्विट्ज़रलैंड को लिखा, जिनेवा में कोशिश की, भारत सरकार को लिखा। 2003 में मुझे अनुमति मिली। उनकी मृत्‍यु के 70 साल के बाद मैं जिनेवा आया, उनकी अस्थि रखी थीं, देखिए विदेशी लोग भी भारत के एक व्‍यक्ति जिसकी अपेक्षा थी मेरी अस्थि संभालकर रखना, हिंदुस्‍तान को तो 15 अगस्‍त को आजाद होने के दूसरे दिन ही यहां आ जाना चाहिए था, लेकिन भूल गए, हो सकता है कि यह पवित्र काम मेरे हाथ में ही लिखा होगा, तो मैं यहां आया और उनकी अस्थि लेकर के गया और कच्‍छ मांडवी जहां उनका जन्‍म स्‍थान था वहां India House की replica बनाई है और एक बहुत बड़ा उनका शहीद स्‍मारक बनाया है। आपको भी कच्‍छ की धरती पर जाने का सौभाग्‍य मिले तो आप जरूर उस महापुरूष को नमन करके आना। कहने का तात्‍पर्य यह है कि हमारी फ्रांस की धरती पर भारत के लिए काम करने वाले, सोचने वाले आजादी के दीवाने भी इस धरती पर से अपना प्रयास करते रहते थे।

भारत का और फ्रांस का एक विशेष संबंध रहा है। इन दिनों मैं यह अनुभव करता हूं कि फ्रांस में कोई दुर्घटना घटे, अगर आतंकवादी घटना फ्रांस में होती है, तो पीड़ा पूरे हिंदुस्‍तान को होती है और हिंदुस्‍तान के साथ कोई अन्‍याय हो, तो फ्रांस से सबसे पहले आवाज उठती है। फ्रांस का और भारत का यह नाता है। कल से आज तक हमने कई बड़े महत्‍वपूर्ण फैसले किए हैं, बहुत सारे समझौते किए हैं, उसमें रक्षा के क्षेत्र में बहुत महत्‍वपूर्ण किए, विकास के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण किए। और भारत में इन दिनों एक विषय लेकर के चल रहा हूं ‘मेक इन इंडिया’। मैं दो दिन में ज्‍यादा से ज्‍यादा दस बार ‘मेक इन इंडिया’ बोला हूं शायद। लेकिन फ्रांस का हर नेता 25-25 बार ‘मेक इन इंडिया’ बोला है। यहां के राष्‍ट्रपति हर तीसरा वाक्‍य मेक इन इंडिया कहते हैं। यानी कि हमारी बात सही जगह पर, सही शब्दों में पहुंच चुकी है| हर किसी को लग रहा है और इसलिए भारत ने बड़े महत्‍वपूर्ण initiative लिये हैं। Insurance में हमने FDI के लिए 49% open up कर दिया है, रेलवे में 100% कर दिया है। फ्रांस defense के क्षेत्र में बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकता है। भारत के पास आज मानव बल है। मैं आज एयरबस को देखने गया था उसके कारखाने पर, वहां भी मैं देख रहा था सारे Indian लोग काम कर रहे थे। तों मैंने कहा वहां तो बस में काम करते हो, यहां एयरबस में काम करते हो। भारत में बहुत अवसर है मित्रों और इसलिए विश्‍व में जो भी श्रेष्‍ठ है वो हिंदुस्‍तान की धरती पर होना चाहिए और उससे भी आगे जाना चाहिए। फ्रांस में इस बार जो समझौते हुए।

एक जमाना था जब हम रेलवे का वर्णन करते थे, तो यह कहते थे यह देश को जोड़ता है। लेकिन मैं मानता हूं कि रेलवे की ताकत है सिर्फ हिंदुस्‍तान को जोड़ने की नहीं, हिंदुस्‍तान को दौड़ाने की ताकत है। बशर्ते कि हम रेलवे को आधुनिक बनाएं। Technology upgrade करें, speed बढ़ाए, expansion करे, और फ्रांस के पास Technology expertise है। कल मैं यहां रेलवे के अधिकारियों से मिला था। मैंने कहा आइये यहां भारत में बहुत सुविधाएं हैं और मैंने कहा हमारे यहां तो शहर के बीच से रेल निकलती है। सबसे मूल्‍यवान जमीन उस पर से रेल की पटरी चल रही है। तो मैंने कहा नीचे रेल चलती रहे तुम ऊपर पूरा construction करो, सात मंजिला इमारतें खड़ी करो। वहां Mall हो, Hotel हो, क्‍या कुछ न हो। देखिए कितना बड़ा हो सकता है, भारत के रेलवे स्‍टेशनों पर एक-एक शहर बसाया जाए, इतने बड़े-बड़े 20-20 किलोमीटर लंबे स्‍टेशन हैं। और जब मैंने यहां कहा, मैंने कहा मेरे देश की रेलवे इतनी बड़ी है कि 20% फ्रांस एक ही समय रेल के डिब्‍बे में होता है।

दुनिया के लोगों को भारत की जो विशालता है, इसकी भी पहचान नहीं है। उसकी क्षमताओं की पहचान की बात तो बाद की बात है हमारी कोशिश है कि दुनिया हमें जाने, हमें माने और वो दिन दूर नही है दोस्तों विश्वास कीजिए कि विश्व भारत को जानेगा भी और विश्व भारत को मानेगा भी। इन दिनों जितने भी आर्थिक विकास के पैरामीटर की चर्चा आती है, उन सारे पैरामीटर्स में सारी दुनिया यह कह रही है कि भारत की economy विश्व की सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली economy मानी गई है। आप World Bank का record देख लीजिए, आप IMF का record देख लीजिए। अभी-अभी Moody ने बताया, मोदी ने नहीं। हर पैरामीटर, हर जगह से एक ही आवाज उठ रही है कि हिंदुस्‍तान आज दुनिया की सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली economy है। तो फिर मैं दुनिया को इतना ही कहता हूँ कि फिर इंतजार किस बात का? अवसर है और इस अवसर का फायदा उठाने के लिए दुनिया में स्‍पर्धा का माहौल बने वो हमारी कोशिश है। दुनिया के हर प्रकार के लोग आएं कि हां! देखिए हम यह करना चाहते हैं, आइये हम आपको अवसर देंगे। हम भी आगे बढ़ेंगे आप भी आगे बढि़ए। विकास के लिए अनेक संभावनाएं हैं। लेकिन यह विकास के मूल में यह इतने Foreign Direct Investment आएं, हिंदुस्‍तान में रेलवे को काम हो, हिंदुस्‍तान में युद्ध के जहाज बनें, हिंदुस्‍तान के अंदर युद्ध के लिए submarine बने, युद्ध के अंदर Health सेक्टर के लिए equipment manufacturing हो, यह सारा काम जो हम करना चाहते हैं, क्‍यों? इसका मूल कारण है मैं चाहता हूं कि हिंदुस्‍तान के नौजवान को हिंदुस्‍तान की धरती पर रोजगार मिले। उसकी क्षमता, उसकी योग्‍यता के अनुसार उसको काम का अवसर मिले। मैं नहीं चाहता हिंदुस्‍तान के नौजवान को अपने बूढ़े मां-बाप को अपने गांव छोड़कर के रोजी-रोटी के लिए कहीं बाहर जाना पड़े, मैं नहीं चाहता। हम देश ऐसा बनाने चाहते हैं और इसलिए विकास गरीब से गरीब व्‍यक्ति की भलाई के लिए हो। विकास नौजवान के रोजगार के लिए हो।

मैं यहां की कंपनी वालों को समझा रहा था। मैंने कहा देखिए दुनियाभर में आपको कारखाने लगाने के लिए बहुत सारे incentives मिलते होंगे, लेकिन 20 साल के बाद वहां काम करने के लिए आपको कोई इंसान मिलने वाला नहीं है। सारी दुनिया बूढ़ी होती चली जा रही है। एक अकेला हिंदुस्‍तान है जो आज दुनिया का सबसे नौजवान देश है। 65 प्रतिशत जनसंख्‍या Below 35 है। 20 साल के बाद दुनिया को जो work force की जरूरत है वो work force एक ही जगह से मिलने वाला है और उसका पता है हिंदुस्‍तान| तो दुनिया के बड़े-बड़े उद्योगकार विश्‍व के किसी भी कोने में कारखाना क्यों न लगाते हो लेकिन वो दिन दूर नहीं होगा तो उनकों कारखाना चलाने के लिए इंसान के लिए हिंदुस्‍तान को धरती पर आना पड़ेगा, तो मैं उनको समझा रहा हूं, मैं उनको समझा रहा हूं कि 20 साल के बाद खोजने के लिए आओगे उससे पहले अभी आ जाओ भाई। तो हमारे लोग आपके काम के लिए तैयार हो जाएंगे तो दुनिया के किसी भी देश में आपका कारखाना संभाल लेंगे। हमारे पास Demographic dividend है।ये हमारी बहुत बड़ी ताकत है।

भारत और फ्रांस का नाता लोकतांत्रिक मूल्‍यों के कारण भी है। बुद्ध और गांधी की धरती पर पैदा होने वाले हम लोग जन्‍म से एक मंत्र में जुड़े हुए हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ |पूरा विश्‍व एक परिवार है, यह हमारे संस्‍कारों में है... पूरा विश्‍व एक परिवार है। हर किसी को हम अपना मानते हैं| हम किसी को पराया नहीं मानते और यह फ्रांस की धरती है जहां इसका मंत्र आज भी गुनगुनाती है दुनिया, जहां पर स्‍वतंत्रता, समानता और बंधुता की चर्चा हुई है। दोनों मूल्‍यों में एक ही समानता है और इसलिए दोनों मिलकर बहुत कुछ कर सकते हैं। ये ताकत है इसके अंदर है। और हम आने वाले दिनों में इस ताकत के आधार पर आगे बढ़ेंगे।

इस बार एक महत्‍वपूर्ण निर्णय हुआ है कि जो हिंदुस्‍तान के नौजवान यहां पढ़ने के लिए आते हैं और पढ़ाई के बाद बोरिया बिस्तर लेकर जाओ वापस, वो दिन गए। अब आपका मन यहां लग गया है तो आप यहां रह सकते हैं। आपको पढ़ाई के बाद भी कुछ समय मिलेगा यहां पर काम करने के लिए। फ्रांस सरकार के साथ, फ्रांस ने इस बात को माना है, मैं समझता हूं भारतीय नागरिकों के लिए खासकर युवा पीढ़ी के लिए जो पढ़ने के लिए यहां आते हैं, उनके लिए यह बहुत बड़ा अवसर है। यहां पर आने के बाद, पढ़ने के बाद जो कुछ भी उन्‍होंने सीखा है, जाना है उसको Experience करने के लिए और अधिक Practice के लिए, रोजी-रोटी कमाने के लिए, पढ़ाई का खर्चा निकालने के लिए भी ताकि घर पर जाकर कर्ज न ले जाएं, सारी सुविधा बढ़ेगी| मैं समझता हूं इससे आने वाले दिनों में लाभ होने वाला है। तो विकास की नई ऊंचाईयों पर एक बार पहुंचना है | विश्‍व भर में हमारे फैले हुए भारत के भाई बहनों के बारे में उनकी ताकत को भी उपयोग करना है, उनको सुरक्षा भी देनी है। उनके सम्‍मान के लिए भी भारत की जो आज पहुंच है, उसका बारीकी से उपयोग करना है उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं और इस प्रयास को विश्‍व, विश्‍व साहनु को प्रतिषाद दे रहा है।

पिछले दिनों में भारत में ऐसी घटनाएं घटीं हैं जो सामान्‍य तौर पर हमारे देश में सोचा ही नहीं जा सकता और सुने तो भरोसा नहीं हो पाता है। क्‍योंकि दूध का जला जो रहता है न वो छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। हमने इतना बुरा सुना है, इतना बुरा देखा है कि कभी-कभी अच्‍छा पर भरोसा करने में थोड़ी देर लग जाती है। आपने अभी-अभी देखा होगा कोयले का कारोबार, समझ गए, सबको पता है क्‍या-क्‍या हुआ सब मालूम है। अभी क्‍या हुआ है ये मालूम नहीं होगा। देखिए अच्‍छी बात को पहुंचाने के लिए मुझे रु-ब-रू जाना पड़ता है। 204 कोयले की खदान वो ऐसी ही दे दी थी। ऐसे ही, अच्‍छा-अच्छा आज आप आये हैं ठीक है मेरी पेन लेते जाओ, अच्‍छा अच्‍छा आज आप आये हैं ठीक है मेरा यह Handkerchief ले जाओ। अच्‍छा अच्‍छा यह कागज चाहिए ठीक है कोई बात नहीं ले जाओ। आप शायद पेन भी अगर किसी को देंगे तो 50 बार सोचोगे या नहीं सोचोगे। ऐसे ही पैन देते हो क्‍या, 204 कोयले की खदाने ऐसे ही दे दी गई थी, दे दी गई थी। बस !! अरे भई जरा दे देना, कोई पूछने वाला नहीं था कोई। तूफान खड़ा हो गया, Court के मामले बन गए। प्रधानमंत्री तक के नाम की चर्चा होने लगी, पता नहीं क्‍या कुछ हुआ। मैं उस दिशा में जाना नहीं चाहता और न ही मैं यहां किसी की आलोचना करना चाहता हूं लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने डंडा चलाया। लेकिन हमारा नसीब ऐसा कि हमारे आने के बाद चलाया। सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि इन 204 खदानों में से अब आप कोयला नहीं निकाल सकते हैं। अब कोयला नहीं निकलेगा तो बिजली का कारखाना कैसे चलेगा। बिजली का कारखाना नहीं चलेगा तो बिजली कहां से आएगी। बिजली नहीं आएगी तो और कारखानें कैसे चलेंगे| बिजली नहीं आएगी तो बच्‍चे पढ़ेंगे कैसे। सारा अंधेरा छाने की नौबत आ गई। सुप्रीम कोर्ट ने हमें मार्च तक का समय दिया कि ठीक है भले तुम नये आये हो हम कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं 31 मार्च से पहले जो करना है करो, वरना 01 अप्रैल से 01 ग्राम भी कोयला नहीं निकाल सकते हो। हम नए थे, लेकिन जब चुनौतियां आती हैं तो भीतर से एक नई ऊर्जा भी पैदा होती है। जब मैं सोच रहा था कि 01 अप्रैल के बाद मेरे देश का क्‍या हाल हो सकता है, गाड़ियां रूक जाएंगी, बिजली नहीं होगी, कोयला नहीं होगा, कारखाने बंद हो जाएंगे, लोग बेरोजगार हो जाएंगे, अंधेरा छा जाएगा, बच्‍चे पढ़ाई नहीं कर पाएंगे। क्‍या देश को 01 अप्रैल तक इंतजार करते हुए बर्बाद होने देना है। मेहनत करना शुरू किया सितंबर में, रास्‍ते खोजने शुरू किए और 31 मार्च से पहले-पहले हमने प्राथमिक काम पूरा कर दिया। पहले तो मुफ्त में दे दी गई थी ठीक है, ठीक है ले जाओ, अच्‍छा –अच्‍छा आपको चाहिए रख लो , दे दिया ऐसे ही दे दिया था। हमने तय किया कि उसका Auction करेंगे और सीएजी का रिपोर्ट आया था सीएजी ने कहा था कि कोयले में One Lakh 76 Thousand Crore Rupees का घपला हुआ है। तो ये जब आंकड़े आते थे न अखबार में 176000 तो लोग मानने के लिए तैयार नहीं होते थे कि ऐसा भी कोई हो सकता है क्‍या कोई मानता नही था। हम बोलते तो थे लेकिन हमको भी भीतर से होता था कि नही यार पता नहीं लेकिन जब हमने Auction किया 204 कोयले की खदान में से अभी 20 का ही Auction हुआ है, 20 का ही है और 20 के Auction में दो लाख करोड़ रूपये मिले हैं। 204 के लिए एक लाख 76 हजार करोड़ रूपये का आरोप था अभी तो दस percent काम हुआ है और दो लाख करोड़ रूपया देश के खजाने में आया है। मेरे देशवासियों कोई सरकार अपने पूरे कार्यकाल में ये भी काम कर दे न तो भी 25 साल देश कहेगा कि अरे भाई तुम ही देश चलाओ। इतना बड़ा काम हुआ है और इसलिए जिनको कहा था न हां ले जाओ, ले जाओ , वो सब परेशान है। क्‍योंकि अब उनको जेब से पैसा देना पड़ रहा है सरकार के खजाने में जा रहा है और ये पैसा दिल्‍ली की सरकार की तिजोरी में डालने के लिए मैं नहीं सोचा, हमने सोचा यह पैसा राज्‍यों की तिजोरी में जाएगा और राज्‍यों से कहा कि गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए infrastructure का विकास किया जाए। उद्योगों को लगाया जाए, शिक्षा में सुधार किया जाए, आरोग्‍य की सेवाओं में सुधार किया जाए और राज्‍यों पर दबाव डाला हुआ है कि इसको कीजिए और राज्य भी कौन से हैं। गुजरात में कोयले की खदान नहीं है। वरना मैं ये देता तो अखबार वाले लिखते मोदी कोयले के खदान के पैसे राज्‍यों इसलिए देता है क्‍योंकि कोयला गुजरात में था। गुजरात में एक ग्राम कोयला भी नहीं निकलता है। ये कोयले के पैसे जा रहे हैं बिहार को, ओडिशा को, झारखंड को, पश्चिम बंगाल को, उन राज्‍यों में जाएंगे जहां पर विकास की संभावनाएं हैं लेकिन अभी काफी पीछें हैं उनको मुझे आगे ले जाना हैं।

देश का पूरा पूर्वी हिस्‍सा आप हिन्‍दुस्‍तान का नक्‍शा देखिए पश्चिम के तौर पर कुछ न कुछ दिखता है गोवा हो, कर्नाटक हो, महाराष्‍ट्र हो, राजस्‍थान हो, गुजरात हो, हरियाणा हो कुछ न कुछ दिखता है लेकिन जैसे पूरब की ओर जाएं तो हमें दिखता है कि ये इलाका कब आगे बढ़ेगा जो पश्चिम में आगे बढ़ा है, सबसे पहले मेरा मन का सपना है पूरब के इस इलाके को पश्चिम के बराबर में तो ला दूं । फिर आप देखिए पूरब, पश्चिम से भी आगे निकल जाएगा ये इतनी ताकत है पूरब में। सारी प्राकृति सम्‍पदा के वहां भंडार वहां पड़े हुए हैं। एक बार विकास की दिशा में अगर चल पड़े तो फिर गाड़ी अटकने वाली नहीं है। कहने का तात्‍पर्य यह है साथियों कि देश विकास की नई ऊंचाईयों को पार करता हुआ आगे बढ़ता चला जा रहा है।

हमने प्रधानमंत्री जन धन योजना का कार्यक्रम शुरू किया। 15 अगस्‍त को मैंने घोषित किया और हमने कहा था कि 26 जनवरी तक मुझे पूरा करना है। हिन्‍दुस्‍तान में गरीब से गरीब व्‍यक्ति का बैंक का खाता होना चाहिए। बैंकिंग व्‍यवस्‍था आज के युग में Finance की गतिविधि की मुख्‍यधारा है उससे कोई अछूता नहीं रहना चाहिए और मैं बड़े गर्व के साथ कहता हूं डेढ़ सौ दिन के भीतर-भीतर इस देश में ये काम पूरा हो गया । करीब 14 करोड़ लोगों के नए खाते खुल गए। 14 करोड़ लोगों के, यानी फ्रांस की जनसंख्‍या से भी ज्‍यादा। अब आप देखिए कोई काम करना तय करे कि कैसे हो सकता है, उसके बाद हमने कहा कि हिन्‍दुस्‍तान में घर के अंदर जो गैस सिलेंडर जो होते हैं वो सब्सिडी से मिलते हैं। उसमें भी सरकार सब्सिडी देती है। हमने कहा यह सब्सिडी हम सीधी बैंक Account में जमा करेंगे। आप समझ गए ना कि बैंक Account में सीधी क्‍यों दी गई क्‍योंकि पहले कहीं और जाती थी और दुनिया में सबसे बड़ी घटना हैं, दुनिया में सबसे बड़ी घटना है, 13 करोड़ लोगों के बैंक खाते में सीधी गैस सब्सिडी Transfer हो गई उनके खातों में, खाते में जमा हो गई और उसके कारण बिचौलिए बाहर, leakages बंद, Corruption का नामोनिशान नहीं है और सामान्‍य मानविकी को लाभ हुआ या नहीं हुआ।

इसके बाद ये जमाना कैसा है कोई कुछ छोड़ने को तैयार होता है क्‍या, कोई छोड़ता है क्‍या, नहीं छोड़ता। लाल बहादुर शास्‍त्री ने एक बार देश को कहा था जब भारत-पाक की लड़ाई हुई थी तब लाल बहादुरी शास्‍त्री जी ने कहा था कि एक समय खाना छोड़ दीजिए, सप्‍ताह में एक दिन खाना छोड़ दीजिए, एक टाइम। हर सोमवार उन्‍होंने बताया सोमवार को एक समय ही खाना कीजिए, दो समय मत खाइये। और लाल बहादुर शास्‍त्री ने जब कहा था हिंदुस्‍तान की उस पीढ़ी को याद होगा, पूरा हिंदुस्‍तान सप्‍ताह में एक दिन एक समय खाना नहीं खाता था| क्‍यों? क्‍यों‍कि देश लड़ाई लड़ रहा था, अन्‍न बचाना था। और देश ने लाल बहादुर शास्त्री के शब्‍दों पर भरोसा करके खाना छोड़ दिया था। मेरे मन में विचार आया कि इस देश के लोगों में एक अद्भुत ताकत है। इस देश की जनता पर भरोसा करना चाहिए। हिंदुस्‍तान के नागरिकों पर विश्‍वास करना चाहिए। और हमने ऐसे ही बातों-बातों में एक बात कह दी। हमने कहा कि भई जो अभी सम्‍पन्‍न लोग हैं। उन्‍होंने यह गैस सिलेंडर की सब्सिडी लेनी चाहिए क्‍या । यह दो सौ, चार सौ रुपये में क्‍या रखा है। क्‍या छोड़ नहीं सकते क्‍या। ऐसी ही हल्‍की फुल्‍की मैंने बात बताई थी। और मैंने देखा कि करीब-करीब दो लाख लोगों ने स्‍वेच्‍छा से गैस सिलेंडर की सब्सिडी लेने से मना कर दिया, तो हौसला और बुलंद हो गया। मैंने कहा कि भई देखिए यह देश वैसा ही है, जैसा लाल बहादुर शास्‍त्री के जमाने में था। तो मैंने फिर सार्वजनिक रूप से लोगों को कहा कि अगर आप सम्‍पन्‍न है, आप afford कर सकते हैं तो आप गैस सिलेंडर पर जो सब्सिडी मिलती हैं छोड़ दीजिए और परसों तक मुझे पता चला करीब-करीब साढ़े तीन लाख लोगों ने छोड़ दी। अब उसके कारण पैसे बच गए, तो क्‍या करेंगे हमने तय किया इन पैसों को सरकार की तिजोरी में नहीं डालेंगे। लेकिन उन गरीब परिवारों को जिस गरीब परिवार में लकड़ी का चूल्‍हा जलता है, घर में धुंआ होता है, बच्‍चे रोते हैं धुएं में, मां बीमार हो जाती है। लकड़ी के चूल्‍हे से जहां रसोई पकती है। ऐसे परिवारों को यह सिलेंडर वहां Transfer कर दिया जाएगा, सब्सिडी वहां Transfer कर दी जाएगी।

यह जो दुनिया climate change की चिंता करती है न, climate change के उपाय इसमें है। Global Warming का जवाब इसमें है। जंगल कटना बंद तब होगा, जब चूल्‍हे जलाना बंद होगा। धुंआ निकलना तब बंद होगा, जबकि हम smoke free व्‍यवस्‍थाओं को विकसित करेंगे। समाज के सम्‍पन्‍न लोगों को मदद मांग कर के उसको Transfer करने का काम उठाया और देखते ही देखते अभी तो एक हफ्ता हुआ यह बात किए हुए, साढ़े तीन लाख लोग आगे आए और उन्‍होंने surrender कर दिया। मेरा कहने का तात्‍पर्य यह है कि चाहे हिंदुस्‍तान हो या हिंदुस्‍तान के बाहर हर हिंदुस्तानी के दिल में एक जज्‍बा दिखाई दे रहा है कि देश में कुछ करना है, देश के लिए कुछ करना है और करके कुछ दिखाना है। इस सपने को लेकर देश चल रहा है।

मैं फिर एक बार देशवासियों, मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं भारत एक पूरी शक्ति के साथ खड़ा हो चुका है। देश तेज गति से आगे बढ़ने के लिए संकल्‍प कर चुका है। देश ने अब पिछले दिनों में जितने निर्णय किए हैं उन निर्णयों को सफलतापूर्वक सिद्ध कर दिया है। इन बातों के भरोसे मैं कहता हूं आपकी अपनी आंखों के सामने आपने जैसा चाहा है वैसा हिंदुस्‍तान बनकर रहेगा, मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

आपने इतना प्‍यार दिया, इतनी बड़ी संख्‍या में आए और उन टापुओं पर जो नागरिक बैठे हैं उनको भी मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। आप सबको भी बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। पूरी ताकत से मेरे साथ बोलिए,दोनों हाथ ऊपर कर बोलिए – भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 'मन की बात', यानि देश के सामूहिक प्रयासों की बात, देश की उपलब्धियों की बात, जन-जन के सामर्थ्य की बात, ‘मन की बात' यानि देश के युवा सपनों, देश के नागरिकों की आकांक्षाओं की बात | मैं पूरे महीने, 'मन की बात' का इंतजार करता रहता हूँ, ताकि, आपसे सीधा संवाद कर सकूँ । कितने ही सारे संदेश, कितने ही messages ! मेरा पूरा प्रयास रहता है कि ज्यादा- से-ज्यादा संदेश को पढूँ, आपके सुझावों पर मंथन करूँ ।

साथियो, आज बड़ा ही खास दिन है - आज NCC दिवस है | NCC का नाम सामने आते ही हमें स्कूल-कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं | मैं स्वयं भी NCC Cadet रहा हूँ, इसलिए, पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इससे मिला अनुभव मेरे लिए अनमोल है | 'NCC' युवाओं में अनुशासन, नेतृत्व और सेवा की भावना पैदा करती है । आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए NCC के cadets जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में NCC को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । 2014 में करीब 14 लाख युवा NCC से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा NCC से जुड़े हैं | पहले के मुकाबले पाँच हजार और नए स्कूल-कॉलेजों में अब NCC की सुविधा हो गई है, और सबसे बड़ी बात, पहले NCC में girls cadets की संख्या करीब 25% (percent) के आस-पास ही होती थी | अब NCC में girls cadets की संख्या करीब-करीब 40% (percent) हो गई है | बॉर्डर किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा NCC से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है । मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में NCC से जुड़ें | आप देखिएगा आप किसी भी career में जाएं, NCC से आपके व्यक्तित्व निर्माण में बड़ी मदद मिलेगी |

साथियो, विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है | युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं । आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश 'युवा दिवस' मनाता है । अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue’ | भारत-भर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, block, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue' के लिए जुटेंगे | आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आहवान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का political background नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे | ‘विकसित भारत Young Leaders Dialogue' भी ऐसा ही एक प्रयास है । इसमें देश और विदेश से experts आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी | मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा | युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने ideas को रखने का अवसर मिलेगा | देश इन ideas को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस roadmap बन सकता है? इसका एक blueprint तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं | जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए I मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी address किया है जैसे लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, वो बुजुर्गों को Digital life certificate के काम में मदद करते हैं I आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी Pensioners को साल में एक बार Life Certificate जमा कराना होता है I 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी I अब ये व्यवस्था बदल चुकी है I अब Digital Life Certificate देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता I बुजुर्गों को Technology की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है I वो, अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं I इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को tech savvy भी बना रहे हैं ऐसे ही प्रयासों से आज Digital Life certificate पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है I इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है I

साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को Digital क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं I भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को Mobile के माध्यम से Payment करना सिखाया है I इन बुजुर्गों के पास smart phone तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था I बुजुर्गों को Digital arrest के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं I अहमदाबाद के राजीव, लोगों को Digital Arrest के खतरे से आगाह करते हैं I मैंने ‘मन की बात’ के पिछले episode में Digital Arrest की चर्चा की थी I इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं I ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और cyber fraud से बचने में मदद करें I हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि Digital Arrest नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है - ये सरासर झूठ, लोगों को फ़साने का एक षड्यन्त्र है मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं I

मेरे प्यारे देशवासियो, आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं | कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े - कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी | मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे share करना चाहता हूं | यहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है | इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है | इस library का idea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है | विदेश में अपने काम के दौरान वे latest technology की दुनिया से जुड़े रहे | लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे | भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया | इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है | किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं | Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है |

साथियो, हैदराबाद में ‘Food for Thought’ Foundation ने भी कई शानदार libraries बनाई हैं | इनका भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें | बिहार में गोपालगंज के ‘Prayog Library’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है | इस library से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, library पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है | कुछ libraries तो ऐसी हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में students के बहुत काम आ रही हैं | ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज library का बेहतरीन उपयोग हो रहा है | आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं | भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘Mini भारत’ बसता है | आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था | आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं | गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं | जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था - जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे share कर रहा हूं | गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं | दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं | क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ share करें | आप इन कहानियों को NaMo App पर या MyGov पर #IndianDiasporaStories के साथ भी share कर सकते हैं |

साथियो, आपको ओमान में चल रहा एक extraordinary project भी बहुत दिलचस्प लगेगा | अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं | इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं | इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण link तैयार किए थे | आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है | ओमान में भारतीय दूतावास और National Archives of India के सहयोग से एक team ने इन परिवारों की history को preserve करने का काम शुरू किया है | इस अभियान के तहत अब तक हजारों documents जुटाए जा चुके हैं | इनमें diary, account book, ledgers, letters और telegram शामिल हैं | इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं | ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं | बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े - ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है | ‘Oral History Project’ ये भी इस mission का एक महत्वपूर्ण आधार है | इस mission में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं | लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है |

साथियो ऐसा ही एक ‘Oral History Project’ भारत में भी हो रहा है | इस project के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं | अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है | ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है |

साथियो, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है | इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक Directory बनाई है | समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है | इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा Museum भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई manuscript हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, National Archives of India की मदद से सहेज सकते हैं |

साथियो, मुझे Slovakia में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है | यहां पहली बार Slovak language में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है | इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है | हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे देश की एक ऐसी उपलब्धि साझा करना चाहता हूं जिसे सुनकर आपको खुशी भी होगी और गौरव भी होगा, और अगर आपने नहीं किया है, तो शायद पछतावा भी होगा | कुछ महीने पहले हमने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान शुरू किया था | इस अभियान में देश-भर के लोगों ने बहुत उत्साह से हिस्सा लिया | मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि इस अभियान ने सौ करोड़ पेड़ लगाने का अहम पड़ाव पार कर लिया है | सौ करोड़ पेड़, वो भी, सिर्फ पाँच महीनों में - ये हमारे देशवासियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है | इससे जुड़ी एक और बात जानकर आपको गर्व होगा | ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अब दुनिया के दूसरे देशों में भी फैल रहा है | जब मैं गयाना में था, तो वहां भी, इस अभियान का साक्षी बना | वहां मेरे साथ गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली, उनकी पत्नी की माता जी, और परिवार के बाकी सदस्य, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में शामिल हुए |

साथियो, देश के अलग-अलग हिस्सों में ये अभियान लगातार चल रहा है | मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत, पेड़ लगाने का record बना है - यहां 24 घंटे में 12 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए | इस अभियान की वजह से इंदौर की Revati Hills के बंजर इलाके, अब, green zone में बदल जाएंगे | राजस्थान के जैसलमेर में इस अभियान के द्वारा एक अनोखा record बना - यहां महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25 हजार पेड़ लगाए | माताओं ने मां के नाम पेड़ लगाया और दूसरों को भी प्रेरित किया। यहां एक ही जगह पर पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मिलकर पेड़ लगाए - ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है । ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कई सामाजिक संस्थाएँ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पेड़ लगा रही हैं । उनका प्रयास है कि जहां पेड़ लगाए जाएँ वहाँ पर्यावरण के अनुकूल पूरा Eco System Develop हो । इसलिए ये संस्थाएँ कहीं औषधीय पौधे लगा रहीं हैं, तो कहीं, चिड़ियों का बसेरा बनाने के लिए पेड़ लगा रहीं हैं । बिहार में ‘JEEViKA Self Help Group’ की महिलाओं ने 75 लाख पेड़ लगाने का अभियान चला रहीं हैं । इन महिलाओं का focus फल वाले पेड़ों पर है, जिससे आने वाले समय में आय भी की जा सके ।

साथियो, इस अभियान से जुड़कर कोई भी व्यक्ति अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगा सकता है । अगर माँ साथ है तो उन्हें साथ लेकर आप पेड़ लगा सकते हैं, नहीं तो उनकी तस्वीर साथ में लेकर आप इस अभियान का हिस्सा बन सकते हैं । पेड़ के साथ आप अपनी Selfie भी mygov.in पर पोस्ट कर सकते हैं । माँ, हम सबके लिए जो करती है हम उनका ऋण कभी नहीं चुका सकते, लेकिन, एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम उनकी उपस्थिति को हमेशा के लिए जीवंत बना सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया या Sparrow को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा । गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है । हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं । हमारे आसपास Biodiversity को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है । बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है । आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है । ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं । चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए स्कूल के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है । संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है । ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की training देते है । इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा सा घर बनाना सिखाया । इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया । ये ऐसे घर होते हैं जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है । बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे दस हज़ार घोंसले तैयार किए हैं । कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी ।

साथियो, कर्नाटका के मैसुरू की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘Early Bird’ नाम का अभियान शुरू किया है । ये संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की library चलाती है । इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘Nature Education Kit’ तैयार किया है। इस Kit में बच्चों के लिए Story Book, Games, Activity Sheets और jig-saw puzzles हैं । ये संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है । इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं । ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है | आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा | सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं | बरसों-बरस तक ये फाइलें Office में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी - ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और Scrap को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया | आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं | साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है | इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक Ownership का भाव भी आया है | अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है |
सथियो, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है | हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है | देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं | तरह-तरह के innovation कर रहे हैं | इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं | ये युवा अपने प्रयासों से sustainable lifestyle को भी बढ़ावा दे रहे हैं | मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है | अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं | आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है | अक्षरा और प्रकृति की Team उन्हीं कपड़ों के कचरे को Fashion Product में बदलती है | कतरन से बनी टोपियां, Bag हाथों-हाथ बिक भी रही है |

साथियो, साफ-सफाई को लेकर UP के कानपुर में भी अच्छी पहल हो रही है | यहाँ कुछ लोग रोज सुबह Morning Walk पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले Plastic और अन्य कचरे को उठा लेते हैं | इस समूह को ‘Kanpur Ploggers Group’ नाम दिया गया है | इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी | धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया | शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं | इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं | इस कचरे से Recycle Plant में tree guard तैयार किए जाते हैं, यानि, इस Group के लोग कचरे से बने tree guard से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं|

साथियो, छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है | इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है | इतिशा corporate दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं | पर्यटकों की वजह से वहां काफी plastic waste जमा होने लगा था | वहां की नदी जो कभी साफ थी वो plastic waste की वजह से प्रदूषित हो गई थी | इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है | उनके group के लोग वहां आने वाले tourist को जागरूक करते हैं और plastic waste को collect करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं |

साथियो, ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है | ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है | आपके आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा | आप मुझे ऐसे प्रयासों के बारे में जरूर लिखते रहिए |

साथियो, ‘मन की बात’ के इस episode में फिलहाल इतना ही | मुझे तो पूरे महीने, आपकी प्रतिक्रियाओं, पत्रों और सुझावों का खूब इंतजार रहता है | हर महीने आने वाले आपके संदेश मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देते हैं | अगले महीने हम फिर मिलेंगे, ‘मन की बात’ के एक और अंक में - देश और देशवासियों की नई उपलब्धियों के साथ, तब तक के लिए, आप सभी देशवासियों को, मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं | बहुत-बहुत धन्यवाद |