मेरे प्यारे किसान भाइयो और बहनो, आप सबको नमस्कार!

ये मेरा सौभाग्य है कि आज मुझे देश के दूर सुदूर गाँव में रहने वाले मेरे किसान भाइयों और बहनों से बात करने का अवसर मिला है। और जब मैं किसान से बात करता हूँ तो एक प्रकार से मैं गाँव से बात करता हूँ, गाँव वालों से बात करता हूँ, खेत मजदूर से भी बात कर रहा हूँ। उन खेत में काम करने वाली माताओं बहनों से भी बात कर रहा हूँ। और इस अर्थ में मैं कहूं तो अब तक की मेरी सभी मन की बातें जो हुई हैं, उससे शायद एक कुछ एक अलग प्रकार का अनुभव है।

जब मैंने किसानों के साथ मन की बात करने के लिए सोचा, तो मुझे कल्पना नहीं थी कि दूर दूर गावों में बसने वाले लोग मुझे इतने सारे सवाल पूछेंगे, इतनी सारी जानकारियां देंगे, आपके ढेर सारे पत्र, ढेर सारे सवाल, ये देखकर के मैं हैरान हो गया। आप कितने जागरूक हैं, आप कितने सक्रिय हैं, और शायद आप तड़पते हैं कि कोई आपको सुने। मैं सबसे पहले आपको प्रणाम करता हूँ कि आपकी चिट्ठियाँ पढ़कर के उसमें दर्द जो मैंने देखा है, जो मुसीबतें देखी हैं, इतना सहन करने के बावजूद भी, पता नहीं क्या-क्या आपने झेला होगा।

आपने मुझे तो चौंका दिया है, लेकिन मैं इस मन की बात का, मेरे लिए एक प्रशिक्षण का, एक एजुकेशन का अवसर मानता हूँ। और मेरे किसान भाइयो और बहनो, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, कि आपने जितनी बातें उठाई हैं, जितने सवाल पूछे हैं, जितने भिन्न-भिन्न पहलुओं पर आपने बातें की हैं, मैं उन सबके विषय में, पूरी सरकार में जागरूकता लाऊँगा, संवेदना लाऊँगा, मेरा गाँव, मेरा गरीब, मेरा किसान भाई, ऐसी स्थिति में उसको रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। मैं तो हैरान हूँ, किसानों ने खेती से संबधित तो बातें लिखीं हैं। लेकिन, और भी कई विषय उन्होंने कहे हैं, गाँव के दबंगों से कितनी परेशानियाँ हैं, माफियाओं से कितनी परेशानियाँ हैं, उसकी भी चर्चा की है, प्राकृतिक आपदा से आने वाली मुसीबतें तो ठीक हैं, लेकिन आस-पास के छोटे मोटे व्यापारियों से भी मुसीबतें झेलनी पड़ रही हैं।

किसी ने गाँव में गन्दा पानी पीना पड़ रहा है उसकी चर्चा की है, किसी ने गाँव में अपने पशुओं को रखने के लिए व्यवस्था की चिंता की है, किसी ने यहाँ तक कहा है कि पशु मर जाता है तो उसको हटाने का ही कोई प्रबंध नहीं होता, बीमारी फैल जाती है। यानि कितनी उपेक्षा हुई है, और आज मन की बात से शासन में बैठे हुए लोगों को एक कड़ा सन्देश इससे मिल रहा है। हमें राज करने का अधिकार तब है जब हम इन छोटी छोटी बातों को भी ध्यान दें। ये सब पढ़ कर के तो मुझे कभी कभी शर्मिन्दगी महसूस होती थी, कि हम लोगों ने क्या किया है! मेरे पास जवाब नहीं है, क्या किया है? हाँ, मेरे दिल को आपकी बातें छू गयी हैं। मैं जरूर बदलाव के लिए, प्रामाणिकता से प्रयास करूंगा, और उसके सभी पहलुओं पर सरकार को, जगाऊँगा, चेताऊंगा, दौडाऊंगा, मेरी कोशिश रहेगी, ये मैं विश्वास दिलाता हूँ।

मैं ये भी जानता हूँ कि पिछले वर्ष बारिश कम हुई तो परेशानी तो थी ही थी। इस बार बेमौसमी बरसात हो गयी, ओले गिरे, एक प्रकार से महाराष्ट्र से ऊपर, सभी राज्यों में, ये मुसीबत आयी। और हर कोने में किसान परेशान हो गया। छोटा किसान जो बेचारा, इतनी कड़ी मेहनत करके साल भर अपनी जिन्दगी गुजारा करता है, उसका तो सब कुछ तबाह हो गया है। मैं इस संकट की घड़ी में आपके साथ हूँ। सरकार के मेरे सभी विभाग राज्यों के संपर्क में रह करके स्थिति का बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं, मेरे मंत्री भी निकले हैं, हर राज्य की स्थिति का जायजा लेंगे, राज्य सरकारों को भी मैंने कहा है कि केंद्र और राज्य मिल करके, इन मुसीबत में फंसे हुए सभी किसान भाइयों-बहनों को जितनी ज्यादा मदद कर सकते हैं, करें। में आपको विश्वास दिलाता हूँ कि सरकार पूरी संवेदना के साथ, आपकी इस संकट की घड़ी में, आपको पूरी तत्परता से मदद करेगी। जितना हो सकता है, उसको पूरा करने का प्रयास किया जायेगा।

गाँव के लोगों ने, किसानों ने कई मुददे उठाये हैं। सिंचाई की चिंता व्यापक नजर आती है। गाँव में सड़क नहीं है उसका भी आक्रोश है। खाद की कीमतें बढ़ रही हैं, उस पर भी किसान की नाराजगी है। बिजली नहीं मिल रही है। किसानों को यह भी चिंता है कि बच्चों को पढ़ाना है, अच्छी नौकरी मिले ये भी उनकी इच्छा है, उसकी भी शिकायतें हैं। माताओं बहनों की भी, गाँव में कहीं नशा-खोरी हो रही है उस पर अपना आक्रोश जताया है। कुछ ने तो अपने पति को तम्बाकू खाने की आदत है उस पर भी अपना रोष मुझे व्यक्त करके भेजा है। आपके दर्द को मैं समझ सकता हूँ। किसान का ये भी कहना है की सरकार की योजनायें तो बहुत सुनने को मिलती हैं, लेकिन हम तक पहुँचती नहीं हैं। किसान ये भी कहता है कि हम इतनी मेहनत करते हैं, लोगों का तो पेट भरते हैं लेकिन हमारा जेब नहीं भरता है, हमें पूरा पैसा नहीं मिलता है। जब माल बेचने जाते हैं, तो लेने वाला नहीं होता है। कम दाम में बेच देना पड़ता है। ज्यादा पैदावार करें तो भी मरते हैं, कम पैदावार करें तो भी मरते हैं। यानि किसानों ने अपने मन की बात मेरे सामने रखी है। मैं मेरे किसान भाइयों-बहनों को विश्वास दिलाता हूँ, कि मैं राज्य सरकारों को भी, और भारत सरकार के भी हमारे सभी विभागों को भी और अधिक सक्रिय करूंगा। तेज गति से इन समस्याओं के समाधान के रास्ते खोजने के लिए प्रेरित करूँगा। मुझे लग रहा है कि आपका धैर्य कम हो रहा है। बहुत स्वाभाविक है, साठ साल आपने इन्तजार किया है, मैं प्रामाणिकता से प्रयास करूँगा।

किसान भाइयो, ये आपके ढेर सारे सवालों के बीच में, मैंने देखा है कि करीब–करीब सभी राज्यों से वर्तमान जो भूमि अधिग्रहण बिल की चर्चा है, उसका प्रभाव ज्यादा दिखता है, और मैं हैरान हूँ कि कैसे-कैसे भ्रम फैलाए गए हैं। अच्छा हुआ, आपने छोटे–छोटे सवाल मुझे पूछे हैं। मैं कोशिश करूंगा कि सत्य आप तक पहुचाऊं। आप जानते हैं भूमि-अधिग्रहण का कानून 120 साल पहले आया था। देश आज़ाद होने के बाद भी 60-65 साल वही कानून चला और जो लोग आज किसानों के हमदर्द बन कर के आंदोलन चला रहे हैं, उन्होंने भी इसी कानून के तहत देश को चलाया, राज किया और किसानों का जो होना था हुआ। सब लोग मानते थे कि कानून में परिवर्तन होना चाहिए, हम भी मानते थे। हम विपक्ष में थे, हम भी मानते थे।

2013 में बहुत आनन-फानन के साथ एक नया कानून लाया गया। हमने भी उस समय कंधे से कन्धा मिलाकर के साथ दिया। किसान का भला होता है, तो साथ कौन नहीं देगा, हमने भी दिया। लेकिन कानून लागू होने के बाद, कुछ बातें हमारे ज़हन में आयीं। हमें लगा शायद इसके साथ तो हम किसान के साथ धोखा कर रहे हैं। हमें किसान के साथ धोखा करने का अधिकार नहीं है। दूसरी तरफ जब हमारी सरकार बनी, तब राज्यों की तरफ से बहुत बड़ी आवाज़ उठी। इस कानून को बदलना चाहिए, कानून में सुधार करना चाहिए, कानून में कुछ कमियां हैं, उसको पूरा करना चाहिए। दूसरी तरफ हमने देखा कि एक साल हो गया, कोई कानून लागू करने को तैयार ही नहीं कोई राज्य और लागू किया तो उन्होंने क्या किया? महाराष्ट्र सरकार ने लागू किया था, हरियाणा ने किया था जहां पर कांग्रेस की सरकारें थीं और जो किसान हितैषी होने का दावा करते हैं उन्होंने इस अध्यादेश में जो मुआवजा देने का तय किया था उसे आधा कर दिया। अब ये है किसानों के साथ न्याय? तो ये सारी बातें देख कर के हमें भी लगा कि भई इसका थोडा पुनर्विचार होना ज़रूरी है। आनन–फानन में कुछ कमियां रह जाती हैं। शायद इरादा ग़लत न हो, लेकिन कमियाँ हैं, तो उसको तो ठीक करनी चाहिए।…और हमारा कोई आरोप नहीं है कि पुरानी सरकार क्या चाहती थी, क्या नहीं चाहती थी? हमारा इरादा यही है कि किसानों का भला हो, किसानों की संतानों का भी भला हो, गाँव का भी भला हो और इसीलिए कानून में अगर कोई कमियां हैं, तो दूर करनी चाहिए। तो हमारा एक प्रामाणिक प्रयास कमियों को दूर करना है।

अब एक सबसे बड़ी कमी मैं बताऊँ, आपको भी जानकर के हैरानी होगी कि जितने लोग किसान हितैषी बन कर के इतनी बड़ी भाषणबाज़ी कर रहें हैं, एक जवाब नहीं दे रहे हैं। आपको मालूम है, अलग-अलग प्रकार के हिंदुस्तान में 13 कानून ऐसे हैं जिसमें सबसे ज्यादा जमीन संपादित की जाती है, जैसे रेलवे, नेशनल हाईवे, खदान के काम। आपको मालूम है, पिछली सरकार के कानून में इन 13 चीज़ों को बाहर रखा गया है। बाहर रखने का मतलब ये है कि इन 13 प्रकार के कामों के लिए जो कि सबसे ज्यादा जमीन ली जाती है, उसमें किसानों को वही मुआवजा मिलेगा जो पहले वाले कानून से मिलता था। मुझे बताइए, ये कमी थी कि नहीं? ग़लती थी कि नहीं? हमने इसको ठीक किया और हमने कहा कि भई इन 13 में भी भले सरकार को जमीन लेने कि हो, भले रेलवे के लिए हो, भले हाईवे बनाने के लिए हो, लेकिन उसका मुआवजा भी किसान को चार गुना तक मिलना चाहिए। हमने सुधार किया। कोई मुझे कहे, क्या ये सुधार किसान विरोधी है क्या? हमें इसीलिए तो अध्यादेश लाना पड़ा। अगर हम अध्यादेश न लाते तो किसान की तो जमीन वो पुराने वाले कानून से जाती रहती, उसको कोई पैसा नहीं मिलता। जब ये कानून बना तब भी सरकार में बैठे लोगों में कईयों ने इसका विरोधी स्वर निकला था। स्वयं जो कानून बनाने वाले लोग थे, जब कानून का रूप बना, तो उन्होंने तो बड़े नाराज हो कर के कह दिया, कि ये कानून न किसानों की भलाई के लिए है, न गाँव की भलाई के लिए है, न देश की भलाई के लिए है। ये कानून तो सिर्फ अफसरों कि तिजोरी भरने के लिए है, अफसरों को मौज करने के लिए, अफ़सरशाही को बढ़ावा देने के लिए है। यहाँ तक कहा गया था। अगर ये सब सच्चाई थी तो क्या सुधार होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? ..और इसलिए हमने कमियों को दूर कर के किसानों का भला करने कि दिशा में प्रयास किये हैं। सबसे पहले हमने काम किया, 13 कानून जो कि भूमि अधिग्रहण कानून के बाहर थे और जिसके कारण किसान को सबसे ज्यादा नुकसान होने वाला था, उसको हम इस नए कानून के दायरे में ले आये ताकि किसान को पूरा मुआवजा मिले और उसको सारे हक़ प्राप्त हों। अब एक हवा ऐसी फैलाई गई कि मोदी ऐसा कानून ला रहें हैं कि किसानों को अब मुआवजा पूरा नहीं मिलेगा, कम मिलेगा।

मेरे किसान भाइयो-बहनो, मैं ऐसा पाप सोच भी नहीं सकता हूँ। 2013 के पिछली सरकार के समय बने कानून में जो मुआवजा तय हुआ है, उस में रत्ती भर भी फर्क नहीं किया गया है। चार गुना मुआवजा तक की बात को हमने स्वीकारा हुआ है। इतना ही नहीं, जो तेरह योजनाओं में नहीं था, उसको भी हमने जोड़ दिया है। इतना ही नहीं, शहरीकरण के लिए जो भूमि का अधिग्रहण होगा, उसमें विकसित भूमि, बीस प्रतिशत उस भूमि मालिक को मिलेगी ताकि उसको आर्थिक रूप से हमेशा लाभ मिले, ये भी हमने जारी रखा है। परिवार के युवक को नौकरी मिले। खेत मजदूर की संतान को भी नौकरी मिलनी चाहिए, ये भी हमने जारी रखा है। इतना ही नहीं, हमने तो एक नयी चीज़ जोड़ी है। नयी चीज़ ये जोड़ी है, जिला के जो अधिकारी हैं, उसको इसने घोषित करना पड़ेगा कि उसमें नौकरी किसको मिलेगी, किसमें नौकरी मिलेगी, कहाँ पर काम मिलेगा, ये सरकार को लिखित रूप से घोषित करना पड़ेगा। ये नयी चीज़ हमने जोड़ करके सरकार कि जिम्मेवारी को Fix किया है।

मेरे किसान भाइयो-बहनो, हम इस बात पर agree हैं, कि सबसे पहले सरकारी जमीन का उपयोग हो। उसके बाद बंजर भूमि का उपयोग हो, फिर आखिर में अनिवार्य हो तब जाकर के उपजाऊ जमीन को हाथ लगाया जाये, और इसीलिए बंजर भूमि का तुरंत सर्वे करने के लिए भी कहा गया है, जिसके कारण वो पहली priority वो बने।

एक हमारे किसानों की शिकायत सही है कि आवश्यकता से अधिक जमीन हड़प ली जाती है। इस नए कानून के माध्यम से मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि अब जमीन कितनी लेनी, उसकी पहले जांच पड़ताल होगी, उसके बाद तय होगा कि आवश्यकता से अधिक जमीन हड़प न की जाए। कभी-कभी तो कुछ होने वाला है, कुछ होने वाला है, इसकी चिंता में बहुत नुकसान होता है। ये Social Impact Assessment (SIA) के नाम पर अगर प्रक्रिया सालों तक चलती रहे, सुनवाई चलती रहे, मुझे बताइए, ऐसी स्थिति में कोई किसान अपने फैसले कर पायेगा? फसल बोनी है तो वो सोचेगा नहीं-नहीं यार, पता नहीं, वो निर्णय आ जाएगा तो, क्या करूँगा? और उसके 2-2, 4-4, साल खराब हो जाएगा और अफसरशाही में चीजें फसी रहेंगी। प्रक्रियाएं लम्बी, जटिल और एक प्रकार से किसान बेचारा अफसरों के पैर पकड़ने जाने के लिए मजबूर हो जाएगा कि साहब ये लिखो, ये मत लिखों, वो लिखो, वो मत लिखो, ये सब होने वाला है। क्या मैं मेरे अपने किसानों को इस अफसरसाही के चुंगल में फिर एक बार फ़सा दूं? मुझे लगता है वो ठीक नहीं होगा। प्रक्रिया लम्बी थी, जटिल थी। उसको सरल करने का मैंने प्रयास किया है।

मेरे किसान भाइयो-बहनो 2014 में कानून बना है, लेकिन राज्यों ने उसको स्वीकार नहीं किया है। किसान तो वहीं का वहीं रह गया। राज्यों ने विरोध किया। मुझे बताइए क्या मैं राज्यों की बात सुनूं या न सुनूं? क्या मैं राज्यों पर भरोसा करूँ या न करूँ? इतना बड़ा देश, राज्यों पर अविश्वास करके चल सकता है क्या? और इसलिए मेरा मत है कि हमें राज्यों पर भरोसा करना चाहिये, भारत सरकार में विशेष करना चाहिये तो, एक तो मैं भरोसा करना चाहता हूँ, दूसरी बात है, ये जो कानून में सुधार हम कर रहे हैं, कमियाँ दूर कर रहे हैं, किसान की भलाई के लिए जो हम कदम उठा रहे हैं, उसके बावजूद भी अगर किसी राज्य को ये नहीं मानना है, तो वे स्वतंत्र हैं और इसलिए मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि ये जो सारे भ्रम फैलाए जा रहे हैं, वो सरासर किसान विरोधी के भ्रम हैं। किसान को गरीब रखने के षड्यन्त्र का ही हिस्सा हैं। देश को आगे न ले जाने के जो षडयंत्र चले हैं उसी का हिस्सा है। उससे बचना है, देश को भी बचाना है, किसान को भी बचाना है।

अब गाँव में भी किसान को पूछो कि भाई तीन बेटे हैं बताओ क्या सोच रहे हो? तो वो कहता है कि भाई एक बेटा तो खेती करेगा, लेकिन दो को कहीं-कहीं नौकरी में लगाना है। अब गाँव के किसान के बेटों को भी नौकरी चाहिये। उसको भी तो कहीं जाकर रोजगार कमाना है। तो उसके लिए क्या व्यवस्था करनी पड़ेगी। तो हमने सोचा कि जो गाँव की भलाई के लिए आवश्यक है, किसान की भलाई के लिये आवश्यक है, किसान के बच्चों के रोजगार के लिए आवश्यक है, ऐसी कई चीजों को जोड़ दिया जाए। उसी प्रकार से हम तो जय-जवान, जय-किसान वाले हैं। जय-जवान का मतलब है देश की रक्षा। देश की रक्षा के विषय में हिंदुस्तान का किसान कभी पीछे हटता नहीं है। अगर सुरक्षा के क्षेत्र में कोई आवश्कता हो तो वह जमीन किसानों से मांगनी पड़ेगी।..और मुझे विश्वास है, वो किसान देगा। तो हमने इन कामों के लिए जमीन लेने की बात को इसमें जोड़ा है। कोई भी मुझे गाँव का आदमी बताए कि गाँव में सड़क चाहिये कि नहीं चाहिये। अगर खेत में पानी चाहिये तो नहर करनी पड़ेगी कि नहीं करनी पड़ेगी। गाँव में आज भी गरीब हैं, जिसके पास रहने को घर नहीं है। घर बनाने के लिए जमीन चाहिये की नहीं चाहिये? कोई मुझे बताये कि यह उद्योगपतियों के लिए है क्या? यह धन्ना सेठों के लिए है क्या? सत्य को समझने की कोशिश कीजिये।

हाँ, मैं एक डंके की चोट पर आपको कहना चाहता हूँ, नए अध्यादेश में भी, कोई भी निजी उद्योगकार को, निजी कारखाने वाले को, निजी व्यवसाय करने वाले को, जमीन अधिग्रहण करने के समय 2013 में जो कानून बना था, जितने नियम हैं, वो सारे नियम उनको लागू होंगे। यह कॉर्पोरेट के लिए कानून 2013 के वैसे के वैसे लागू रहने वाले हैं। तो फिर यह झूठ क्यों फैलाया जाता है। मेरे किसान भाइयो-बहनो, एक भ्रम फैलाया जाता है कि आपको कानूनी हक नहीं मिलेगा, आप कोर्ट में नहीं जा सकते, ये सरासर झूठ है। हिंदुस्तान में कोई भी सरकार आपके कानूनी हक़ को छीन नहीं सकती है। बाबा साहेब अम्बेडकर ने हमें जो संविधान दिया है, इस संविधान के तहत आप हिंदुस्तान के किसी भी कोर्ट में जा करके दरवाजे खटखटा सकते हैं। तो ये झूठ फैलाया गया है। हाँ, हमने एक व्यवस्था को आपके दरवाजे तक लाने का प्रयास किया है।

एक Authority बनायी है, अब वो Authority जिले तक काम करेगी और आपके जिले के किसानों की समस्याओं का समाधान उसी Authority में जिले में ही हो जायेगा।..और वहां अगर आपको संतोष नहीं होता तो आप ऊपर के कोर्ट में जा सकते हैं। तो ये व्यवस्था हमने की है।

एक यह भी बताया जाता है कि भूमि अधिग्रहित की गयी तो वो पांच साल में वापिस करने वाले कानून को हटा दिया गया है। जी नहीं, मेरे किसान भाइयो-बहनो हमने कहा है कि जब भी Project बनाओगे, तो यह पक्का करो कि कितने सालों में आप इसको पूरा करोगे। और उस सालों में अगर पूरा नहीं करते हैं तो वही होगा जो किसान चाहेगा। और उसको तो समय-सीमा हमने बाँध दी है। आज क्या होता है, 40-40 साल पहले जमीने ली गयी, लेकिन अभी तक सरकार ने कुछ किया नहीं। तो यह तो नहीं चल सकता। तो हमने सरकार को सीमा में बांधना तय किया है। हाँ, कुछ Projects ऐसे होते हैं जो 20 साल में पूरे होते हैं, अगर मान लीजिये 500 किलोमीटर लम्बी रेलवे लाइन डालनी है, तो समय जाएगा। तो पहले से कागज़ पर लिखो कि भाई कितने समय में पूरा करोगे। तो हमने सरकार को बाँधा है। सरकार की जिम्मेवारी को Fix किया है।

मैं और एक बात बताऊं किसान-भाइयो, कभी-कभी ये एयरकंडीशन कमरे में बैठ करके जो कानून बनाते हैं न, उनको गाँव के लोगों की सच्ची स्थिति का पता तक नहीं होता है। अब आप देखिये जब डैम बनता है, जलाशय बनता है, तो उसका नियम यह है कि 100 साल में सबसे ज्यादा पानी की सम्भावना हो उस हिसाब से जमीन प्राप्त करने का नियम है। अब 100 साल में एक बार पानी भरता है। 99 साल तक पानी नहीं भरता है। फिर भी जमीन सरकार के पास चली जाती है, तो आज सभी राज्यों में क्या हो रहा है की भले जमीन कागज़ पर ले ली हो, पैसे भी दे दिए हों। लेकिन फिर भी वो जमीन पर किसान खेती करता है। क्योंकि 100 साल में एक बार जब पानी भर जाएगा तो एक साल के लिए वो हट जाएगा। ये नया कानून 2013 का ऐसा था कि आप खेती नहीं कर सकते थे। हम चाहते हैं कि अगर जमीन डूब में नहीं जाती है तो फिर किसान को खेती करने का अवसर मिलना चाहिये।..और इसीलिये वो जमीन किसान से कब्ज़ा नहीं करनी चाहिये। ये लचीलापन आवश्यक था। ताकि किसान को जमीन देने के बावजूद भी जमीन का लाभ मिलता रहे और जमीन देने के बदले में रुपया भी मिलता रहे। तो किसान को डबल फायदा हो। ये व्यवस्था करना भी जरूरी है, और व्यावहारिक व्यवस्था है, और उस व्यावहारिक व्यवस्था को हमने सोचा है।

एक भ्रम ऐसा फैलाया जाता है कि ‘सहमति’ की जरुरत नहीं हैं। मेरे किसान भाइयो-बहनो ये राजनीतिक कारणों से जो बाते की जाती हैं, मेहरबानी करके उससे बचिये! 2013 में जो कानून बना उसमे भी सरकार नें जिन योजनाओं के लिए जमीन माँगी है, उसमें सहमती का क़ानून नहीं है।...और इसीलिए सहमति के नाम पर लोगों को भ्रमित किया जाता है। सरकार के लिए सहमति की बात पहले भी नही थी, आज भी नहीं है।..और इसीलिये मेरे किसान भाइयों-बहनो पहले बहुत अच्छा था और हमने बुरा कर दिया, ये बिलकुल सरासर आपको गुमराह करने का दुर्भाग्यपूर्ण प्रयास है। मैं आज भी कहता हूँ कि निजी उद्योग के लिए, कॉर्पोरेट के लिए, प्राइवेट कारखानों के लिए ये ‘सहमति’ का कानून चालू है, है...है।

...और एक बात मैं कहना चाहता हूँ, कुछ लोग कहतें है, PPP मॉडल! मेरे किसान भाइयो-बहनो, मान लीजिये 100 करोड रुपए का एक रोड बनाना है। क्या रोड किसी उद्योगकार उठा कर ले जाने वाला है क्या? रोड तो सरकार के मालिकी का ही रहता है। जमीन सरकार की मालिकी की ही रहती है। बनाने वाला दूसरा होता है। बनाने वाला इसीलिए दूसरा होता है, क्योंकि सरकार के पास आज पैसे नहीं होते हैं। क्योंकि सरकार चाहती है कि गाँव में स्कूल बने, गाँव में हॉस्पिटल बने, गरीब का बच्चा पढ़े, इसके लिए पैसा लगे। रोड बनाने का काम प्राइवेट करे, लेकिन वो प्राइवेट वाला भी रोड अपना नहीं बनाता है। न अपने घर ले जाता है, रोड सरकार का बनाता है। एक प्रकार से अपनी पूंजी लगता है। इसका मतलब ये हुआ कि सरकार का जो प्रोजेक्ट होगा जिसमें पूंजी किसी की भी लगे, जिसको लोग PPP मॉडल कहतें हैं। लेकिन अगर उसका मालिकाना हक़ सरकार का रहता है, उसका स्वामित्व सरकार का रहता है, सरकार का मतलब आप सबका रहता है, देश की सवा सौ करोड़ जनता का रहता है तो उसमें ही हमने ये कहा है कि सहमति की आवश्यकता नहीं है और इसीलिये ये PPP मॉडल को लेकर के जो भ्रम फैलाये जातें हैं उसकी मुझे आपको स्पष्टता करना बहुत ही जरुरी है।

कभी-कभार हम जिन बातों के लिए कह रहे हैं कि भई उसमें ‘सहमति’ की प्रक्रिया एक प्रकार से अफसरशाही और तानाशाही को बल देगी। आप मुझे बताईये, एक गावं है, उस गॉव तक रोड बन गया है, अब दूसरे गॉव के लिए रोड बनाना है, आगे वाले गॉव के लिए, 5 किलोमीटर की दूरी पर वह गॉव है। इस गॉव तक रोड बन गया है, लेकिन इन गॉव वालों की ज़मीन उस गॉव की तरफ है। मुझे बताईये उस गॉव के लोगों के लिए, रोड बनाने के लिए, ये गॉव वाले ज़मीन देंगे क्या? क्या ‘सहमति’ देंगे क्या? तो क्या पीछे जो गॉव है उसका क्या गुनाह है भई? उसको रोड मिलना चाहिए कि नहीं, मिलना चाहिये? उसी प्रकार से मैं नहर बना रहा हूँ। इस गॉव वालो को पानी मिल गया, नहर बन गयी। लेकिन आगे वाले गॉव को पानी पहुंचाना है तो ज़मीन तो इसी गावंवालों के बीच में पड़ती है। तो वो तो कह देंगे कि भई नहीं, हम तो ज़मीन नहीं देंगे। हमें तो पानी मिल गया है। तो आगे वाले गावं को नहर मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए?

मेरे भाइयो-बहनो, ये व्यावहारिक विषय है। और इसलिए जिस काम के लिए इतनी लम्बी प्रक्रिया न हो, हक और किसान के लिए, ये उद्योग के लिए नहीं है, व्यापार के लिए नहीं है, गावं की भलाई के लिए है, किसान की भलाई के लिए है, उसके बच्चों की भलाई के लिए है।

एक और बात आ रही है। ये बात मैंने पहले भी कही है। हर घर में किसान चाहता है कि एक बेटा भले खेती में रहे, लेकिन बाकी सब संतान रोज़ी–रोटी कमाने के लिए बाहर जाये क्योंकि उसे मालूम है, कि आज समय की मांग है कि घर में घर चलाने के लिए अलग-अलग प्रयास करने पड़ते हैं। अगर हम कोई रोड बनाते है और रोड के बगल में सरकार Industrial Corridor बनाती है, प्राइवेट नहीं। मैं एक बार फिर कहता हूँ प्राइवेट नहीं, पूंजीपति नहीं, धन्ना सेठ नहीं, सरकार बनाती है ताकि जब Corridor बनता है पचास किलोमीटर लम्बा, 100 किलोमीटर लम्बा तो जो रोड बनेगा, रोड के एक किलोमीटर बाएं, एक किलोमीटर दायें वहां पर अगर सरकार Corridor बनाती है ताकि नजदीक में जितने गाँव आयेंगे 50 गाँव, 100 गाँव, 200 गाँव उनको वहां कोई न कोई, वहां रोजी रोटी का अवसर मिल जाए, उनके बच्चों को रोजगार मिल जाए।

मुझे बताइये, भाइयों-बहनो क्या हम चाहतें हैं, कि हमारे गाँव के किसानों के बच्चे दिल्ली और मुंबई की झुग्गी झोपड़ियों में जिन्दगी बसर करने के लिए मजबूर हो जाएँ? क्या उनके घर और गाँव के 20-25 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा भी कारखाना लग जाता है और उसको रोजगार मिल जाता है, तो मिलना चाहिये की नहीं मिलना चाहिये? और ये Corridor प्राइवेट नही है, ये सरकार बनाएगी। सरकार बनाकर के उस इलाके के लोगों को रोजगार देने का प्रबंध करेगी। ..और इसीलिए जिसकी मालिकी सरकार की है, और जो गाँव की भलाई के लिए है, गाँव के किसानो की भलाई के लिए है, जो किसानों की भावी पीड़ी की भलाई के लिए हैं, जो गाँव के गरीबों की भलाई के लिए हैं, जो गाँव के किसान को बिजली पानी मोहैया कराने के लिए उनके लिए हैं, उनके लिए इस भूमि अधिग्रहण बिल में कमियाँ थी, उस कमियों को दूर करने का हमारे प्रामाणिक प्रयास हैं।...और फिर भी मैंने Parliament में कहा था की अभी भी किसी को लगता है कोई कमी हैं, तो हम उसको सुधार करने के लिए तैयार हैं।

जब हमने लोकसभा में रखा, कुछ किसान नेताओं ने आ करके दो चार बातें बताईं, हमने जोड़ दी। हम तो अभी भी कहतें कि भाई भूमि अधिग्रहण किसानों की भलाई के लिए ही होना चाहिये। ..और ये हमारी प्रतिबद्धता है, जितने झूठ फैलाये जाते हैं, कृपा करके मैं मेरे किसान भाइयों से आग्रह करता हूँ कि आप इन झूठ के सहारे निर्णय मत करें, भ्रमित होने की जरुरत नहीं है। आवश्यकता यह है की हमारा किसान ताकतवर कैसे बने, हमारा गाँव ताकतवर कैसे बने, हमारा किसान जो मेहनत करता है, उसको सही पैसे कैसे मिले, उसको अच्छा बाज़ार कैसे मिले, जो पैदा करता है उसके रखरखाव के लिए अच्छा स्टोरेज कैसे मिले, हमारी कोशिश है कि गाँव की भलाई, किसान की भलाई के लिए सही दिशा में काम उठाएं।

मेरे किसान भाइयो-बहनो, हमारी कोशिश है कि देश ऐसे आगे बढ़े कि आपकी जमीन पर पैदावार बढ़े, और इसीलिए हमने कोशिश की है, Soil Health Card. जैसे मनुष्य बीमार हो जाता है तो उसकी तबीयत के लिए लेबोरेटरी में टेस्ट होता हैं। जैसा इंसान का होता है न, वैसा अपनी भारत-माता का भी होता हैं, अपनी धरती- माता का भी होता है। और इसीलिए हम आपकी धरती बचे इतना ही नहीं, आपकी धरती तन्दुरूस्त हो उसकी भी चिंता कर रहे हैं।

....और इसलिये भूमि अधिग्रहण नहीं, आपकी भूमि अधिक ताकतवर बने ये भी हमारा काम है। और इसीलिए “Soil Health Card” की बात लेकर के आये हैं। हर किसान को इसका लाभ मिलने वाला है, आपके उर्वरक का जो फालतू खर्चा होता है उससे बच जाएगा। आपकी फसल बढ़ेगी। आपको फसल का पूरा पैसा मिले, उसके लिए भी तो अच्छी मंडियां हों, अच्छी कानून व्यवस्था हो, किसान का शोषण न हो, उस पर हम काम कर रहे हैं और आप देखना मेरे किसान भाइयो, मुझे याद है, मैं जब गुजरात में मुख्यमंत्री था इस दिशा में मैंने बहुत काम किया था। हमारे गुजरात में तो किसान की हालत बहुत ख़राब थी, लेकिन पानी पर काम किया, बहुत बड़ा परिवर्तन आया। गुजरात के विकास में किसान का बहुत बड़ा योगदान बन गया जो कभी सोच नही सकता था। गाँव के गाँव खाली हो जाते थे। बदलाव आया, हम पूरे देश में ये बदलाव चाहते हैं जिसके कारण हमारा किसान सुखी हो।

...और इसलिए मेरे किसान भाइयो और बहनो, आज मुझे आपके साथ बात करने का मौका मिला। लेकिन इन दिनों अध्यादेश की चर्चा ज्यादा होने के कारण मैंने ज़रा ज्यादा समय उसके लिए ले लिया। लेकिन मेरे किसान भाइयो बहनो मैं प्रयास करूंगा, फिर एक बार कभी न कभी आपके साथ दुबारा बात करूंगा, और विषयों की चर्चा करूँगा, लेकिन मैं इतना विश्वास दिलाता हूँ कि आपने जो मुझे लिख करके भेजा है, पूरी सरकार को मैं हिलाऊँगा, सरकार को लगाऊंगा कि क्या हो रहा है। अच्छा हुआ आपने जी भरके बहुत सी चीजें बतायी हैं और मैं मानता हूँ आपका मुझ पर भरोसा है, तभी तो बताई है न! मैं ये भरोसे को टूटने नहीं दूंगा, ये मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ।

आपका प्यार बना रहे, आपके आशीर्वाद बने रहे। और आप तो जगत के तात हैं, वो कभी किसी का बुरा सोचता, वो तो खुद का नुकसान करके भी देश का भला करता है। ये उसकी परंपरा रही है। उस किसान का नुकसान न हो, इसकी चिंता ये सरकार करेगी। ये मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ लेकिन आज मेरी मन की बातें सुनने के बाद आपके मन में बहुत से विचार और आ सकते हैं। आप जरुर मुझे आकाशवाणी के पते पर लिखिये। मैं आगे फिर कभी बातें करूँगा। या आपके पत्रों के आधार पर सरकार में जो गलतियाँ जो ठीक करनी होंगी तो गलतियाँ ठीक करूँगा। काम में तेजी लाने की जरुरत है, तो तेजी लाऊंगा और और किसी को अन्याय हो रहा है तो न्याय दिलाने के लिए पूरा प्रयास करूँगा।

नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। मेरी आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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पिछले दशक में भारत की यात्रा स्केल, स्पीड और सस्टेनेबिलिटी की रही है: गुयाना में पीएम मोदी
November 22, 2024
गुयाना में प्रवासी भारतीयों ने कई क्षेत्रों में प्रभाव डाला है और गुयाना के विकास में योगदान दिया है: प्रधानमंत्री
आप किसी भारतीय को भारत से बाहर ले जा सकते हैं, लेकिन आप किसी भारतीय के अंतर्मन से भारत को नहीं निकाल सकते: प्रधानमंत्री
संस्कृति, व्यंजन और क्रिकेट- ये तीन चीजें विशेष रूप से, भारत और गुयाना को गहराई से जोड़ती हैं: प्रधानमंत्री
पिछले दशक में भारत की यात्रा व्‍यापक, गतिशील और स्थिरता की रही है: प्रधानमंत्री
भारत का विकास न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि समावेशी भी है: प्रधानमंत्री
मैं सदैव अपने प्रवासी लोगों को राष्ट्रदूत कहता हूं, वे भारतीय संस्कृति और मूल्यों के राजदूत हैं: प्रधानमंत्री

Your Excellency President Irfan Ali,
Prime Minister Mark Philips,
Vice President Bharrat Jagdeo,
Former President Donald Ramotar,
Members of the Guyanese Cabinet,
Members of the Indo-Guyanese Community,

Ladies and Gentlemen,

Namaskar!

Seetaram !

I am delighted to be with all of you today.First of all, I want to thank President Irfan Ali for joining us.I am deeply touched by the love and affection given to me since my arrival.I thank President Ali for opening the doors of his home to me.

I thank his family for their warmth and kindness. The spirit of hospitality is at the heart of our culture. I could feel that, over the last two days. With President Ali and his grandmother, we also planted a tree. It is part of our initiative, "Ek Ped Maa Ke Naam", that is, "a tree for mother”. It was an emotional moment that I will always remember.

Friends,

I was deeply honoured to receive the ‘Order of Excellence’, the highest national award of Guyana. I thank the people of Guyana for this gesture. This is an honour of 1.4 billion Indians. It is the recognition of the 3 lakh strong Indo-Guyanese community and their contributions to the development of Guyana.

Friends,

I have great memories of visiting your wonderful country over two decades ago. At that time, I held no official position. I came to Guyana as a traveller, full of curiosity. Now, I have returned to this land of many rivers as the Prime Minister of India. A lot of things have changed between then and now. But the love and affection of my Guyanese brothers and sisters remains the same! My experience has reaffirmed - you can take an Indian out of India, but you cannot take India out of an Indian.

Friends,

Today, I visited the India Arrival Monument. It brings to life, the long and difficult journey of your ancestors nearly two centuries ago. They came from different parts of India. They brought with them different cultures, languages and traditions. Over time, they made this new land their home. Today, these languages, stories and traditions are part of the rich culture of Guyana.

I salute the spirit of the Indo-Guyanese community. You fought for freedom and democracy. You have worked to make Guyana one of the fastest growing economies. From humble beginnings you have risen to the top. Shri Cheddi Jagan used to say: "It matters not what a person is born, but who they choose to be.”He also lived these words. The son of a family of labourers, he went on to become a leader of global stature.

President Irfan Ali, Vice President Bharrat Jagdeo, former President Donald Ramotar, they are all Ambassadors of the Indo Guyanese community. Joseph Ruhomon, one of the earliest Indo-Guyanese intellectuals, Ramcharitar Lalla, one of the first Indo-Guyanese poets, Shana Yardan, the renowned woman poet, Many such Indo-Guyanese made an impact on academics and arts, music and medicine.

Friends,

Our commonalities provide a strong foundation to our friendship. Three things, in particular, connect India and Guyana deeply. Culture, cuisine and cricket! Just a couple of weeks ago, I am sure you all celebrated Diwali. And in a few months, when India celebrates Holi, Guyana will celebrate Phagwa.

This year, the Diwali was special as Ram Lalla returned to Ayodhya after 500 years. People in India remember that the holy water and shilas from Guyana were also sent to build the Ram Mandir in Ayodhya. Despite being oceans apart, your cultural connection with Mother India is strong.

I could feel this when I visited the Arya Samaj Monument and Saraswati Vidya Niketan School earlier today. Both India and Guyana are proud of our rich and diverse culture. We see diversity as something to be celebrated, not just accommodated. Our countries are showing how cultural diversity is our strength.

Friends,

Wherever people of India go, they take one important thing along with them. The food! The Indo-Guyanese community also has a unique food tradition which has both Indian and Guyanese elements. I am aware that Dhal Puri is popular here! The seven-curry meal that I had at President Ali’s home was delicious. It will remain a fond memory for me.

Friends,

The love for cricket also binds our nations strongly. It is not just a sport. It is a way of life, deeply embedded in our national identity. The Providence National Cricket Stadium in Guyana stands as a symbol of our friendship.

Kanhai, Kalicharan, Chanderpaul are all well-known names in India. Clive Lloyd and his team have been a favourite of many generations. Young players from this region also have a huge fan base in India. Some of these great cricketers are here with us today. Many of our cricket fans enjoyed the T-20 World Cup that you hosted this year.

Your cheers for the ‘Team in Blue’ at their match in Guyana could be heard even back home in India!

Friends,

This morning, I had the honour of addressing the Guyanese Parliament. Coming from the Mother of Democracy, I felt the spiritual connect with one of the most vibrant democracies in the Caribbean region. We have a shared history that binds us together. Common struggle against colonial rule, love for democratic values, And, respect for diversity.

We have a shared future that we want to create. Aspirations for growth and development, Commitment towards economy and ecology, And, belief in a just and inclusive world order.

Friends,

I know the people of Guyana are well-wishers of India. You would be closely watching the progress being made in India. India’s journey over the past decade has been one of scale, speed and sustainability.

In just 10 years, India has grown from the tenth largest economy to the fifth largest. And, soon, we will become the third-largest. Our youth have made us the third largest start-up ecosystem in the world. India is a global hub for e-commerce, AI, fintech, agriculture, technology and more.

We have reached Mars and the Moon. From highways to i-ways, airways to railways, we are building state of art infrastructure. We have a strong service sector. Now, we are also becoming stronger in manufacturing. India has become the second largest mobile manufacturer in the world.

Friends,

India’s growth has not only been inspirational but also inclusive. Our digital public infrastructure is empowering the poor. We opened over 500 million bank accounts for the people. We connected these bank accounts with digital identity and mobiles. Due to this, people receive assistance directly in their bank accounts. Ayushman Bharat is the world’s largest free health insurance scheme. It is benefiting over 500 million people.

We have built over 30 million homes for those in need. In just one decade, we have lifted 250 million people out of poverty. Even among the poor, our initiatives have benefited women the most. Millions of women are becoming grassroots entrepreneurs, generating jobs and opportunities.

Friends,

While all this massive growth was happening, we also focused on sustainability. In just a decade, our solar energy capacity grew 30-fold ! Can you imagine ?We have moved towards green mobility, with 20 percent ethanol blending in petrol.

At the international level too, we have played a central role in many initiatives to combat climate change. The International Solar Alliance, The Global Biofuels Alliance, The Coalition for Disaster Resilient Infrastructure, Many of these initiatives have a special focus on empowering the Global South.

We have also championed the International Big Cat Alliance. Guyana, with its majestic Jaguars, also stands to benefit from this.

Friends,

Last year, we had hosted President Irfaan Ali as the Chief Guest of the Pravasi Bhartiya Divas. We also received Prime Minister Mark Phillips and Vice President Bharrat Jagdeo in India. Together, we have worked to strengthen bilateral cooperation in many areas.

Today, we have agreed to widen the scope of our collaboration -from energy to enterprise,Ayurveda to agriculture, infrastructure to innovation, healthcare to human resources, anddata to development. Our partnership also holds significant value for the wider region. The second India-CARICOM summit held yesterday is testament to the same.

As members of the United Nations, we both believe in reformed multilateralism. As developing countries, we understand the power of the Global South. We seek strategic autonomy and support inclusive development. We prioritize sustainable development and climate justice. And, we continue to call for dialogue and diplomacy to address global crises.

Friends,

I always call our diaspora the Rashtradoots. An Ambassador is a Rajdoot, but for me you are all Rashtradoots. They are Ambassadors of Indian culture and values. It is said that no worldly pleasure can compare to the comfort of a mother’s lap.

You, the Indo-Guyanese community, are doubly blessed. You have Guyana as your motherland and Bharat Mata as your ancestral land. Today, when India is a land of opportunities, each one of you can play a bigger role in connecting our two countries.

Friends,

Bharat Ko Janiye Quiz has been launched. I call upon you to participate. Also encourage your friends from Guyana. It will be a good opportunity to understand India, its values, culture and diversity.

Friends,

Next year, from 13 January to 26 February, Maha Kumbh will be held at Prayagraj. I invite you to attend this gathering with families and friends. You can travel to Basti or Gonda, from where many of you came. You can also visit the Ram Temple at Ayodhya. There is another invite.

It is for the Pravasi Bharatiya Divas that will be held in Bhubaneshwar in January. If you come, you can also take the blessings of Mahaprabhu Jagannath in Puri. Now with so many events and invitations, I hope to see many of you in India soon. Once again, thank you all for the love and affection you have shown me.

Thank you.
Thank you very much.

And special thanks to my friend Ali. Thanks a lot.