उपस्थित सभी महानुभाव,

हमारे देश में एक अनुभव ये आता है कि बहुत सी चीजें Perception के आसपास मंडराती रहती है। और जब बारीकी से उसकी और देखें तो चित्र कुछ और ही नजर आता है। जैसे एक सामान्य व्यक्ति को पूछो तो उसको लगेगा कि “भई, ये जो बड़े-बड़े उद्योग हैं, बड़े-बड़े उद्योग घराने हैं, उससे रोजगार ज्यादा मिलता है।“ लेकिन अगर बारीकी से देखें तो चित्र कुछ और होता है, इसमें इतनी ज्यादा पूंजी लगी है। इतने सारे ताम-झांम, हवाबाजी, ये सब हम देखते आए हैं।

लेकिन अगर बारीकी से देखें तो ultimately हम विकास में हैं। रोजगार हमारी प्राथमिकता है और भारत जैसा देश जिसके पास Demographic dividend हो, जहां पर 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 से कम आयु की हो, उस देश ने अपने विकास की जो भी नीतियां बनानी हो, उसके केंद्र में ये युवा शक्ति होना चाहिए। अगर वो बराबर match कर लिया, तो हम नई ऊंचाईयों को पार कर सकते हैं। ये जितने बड़-बड़े उद्योगों की हम चर्चा सुनते आए हैं, उसमें सिर्फ एक करोड़ 25 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। सवा सौ करोड़ देश में सवा करोड़ लोगों को रोजगार, ये जो बहुत बड़े-बड़े लोग जिसके लिए दुनिया में चर्चा रहती है, आधा अखबार जिनसे भरा पडा रहता है, वो देते हैं।

लेकिन इस देश में छोटा-छोटा काम करने वाला व्यक्ति करीब 5 करोड़ 70 लाख लोग, 12 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं। उन सवा करोड़ को रोजगार देने के लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं सक्रिय है। लेकिन 12 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले लोगों के लिेए थोड़ी सी हम मदद करें, तो कितना बड़ा फर्क आ सकता है इसका हम अंदाज कर सकते हैं। और इस 5 करोड़ 75 लाख इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग हैं, जो स्वरोजगार एक प्रकार से हैं - दर्जी होंगे, कुम्हार होंगे, टायर का पंक्चर करने वाले लोग हैं, साइकिल की repairing करने वाले लोग हैं, अपनी एक ऑटो रिक्शा लेकर के काम करने वाले लोग हैं, सब्जी बेचने वाले, गरीब-गरीब लोग हैं। उनका पूरा जो कारोबार है, उसमें ज्यादा से ज्यादा हिसाब लगाएं जाएं, तो 11 लाख करोड़ रुपयों से ज्यादा उसमें पूंजी नहीं लगी है। यानी सिर्फ 11 लाख करोड़ रुपयों की पूंजी लगी है, 5 करोड़ 75 लाख उसका नेतृत्व कर रहे हैं, और 12 करोड़ लोगों का पेट भरते हैं।

ये बातें जब सामने आईं तो लगा कि देश में स्वरोजगारी के अवसर बढ़ाने चाहिए। देश की Economy को ताकत देने वाला जो नीचे पायरी पर जो लोग हैं, उनकी शक्ति को समझना चाहिए। और उनके लिए अवसर उपलब्ध कराने चाहिए और इस मूल चिंतन में से ये मुद्रा की कल्पना आई है। मेरा अपना एक अनुभव इसमें काम कर रहा था, क्योंकि सिर्फ आर्थिक जगत के लोगों के आंकड़ों के आधार पर निर्णय करना, इतना सरल नहीं होता है। लेकिन कभी-कभी अनुभव बहुत काम आता है।

मैं गुजरात में मुख्यमंत्री रहा तो मैंने पतंग उद्योग की तरफ थोड़ा ध्यान दिया। अब गुजरात में पतंग एक बड़ा त्‍योहार के रूप में मनाया जाता है, और ज्‍यादातर, अब वो पूरा Environment Friendly Industry है, Cottage Industry है। और लाखों की तादाद में गरीब मुसलमान उस काम में लगा हुआ है 90 प्रतिशत से ज्‍यादा पतंग बनाने व कबाड़ का काम गुजरात में मुसलमान कर रहा है, लेकिन वो वही पुरानी चीजें करता था। वो पतंग अगर उसको तय तीन कलर का बनाना है तो तीन कलर के कागज लाता था पेस्टिंग करता था और फिर पतंग बनाता था। अब दुनिया बदल चुकी है तीन कलर का कागज प्रिंट हो सकता है, टाइम बच सकता है। तो मैंने चेन्‍नई की एक Institute को काम दिया कि जरा सर्वे किजिए कि इनकी मुसीबत क्‍या है, कठिनाईयां क्‍या है, अनुभव ये आया कि छोटे-छोटे लोगों को थोड़ी मदद दी जाए थोड़ा Skill Development हो जाए, थोड़ी पैकेजिंग सिखा दिया जाए, आप उसमें कितना बड़ा बदलाव ला सकते है। मुझे आज कहने से आनंद होता है कि जो करीब 35 करोड़ का पतंग का बिजनेस था थोड़ी मदद की वो पतंग का उद्योग 500 करोड़ cross कर गया था।

फिर मेरी उसमें जरा रूचि बढ़ने लगी तो मैं कई चीजे नई-नई करने लगा। बांस, बांस वो लाते थे असम से। कारण क्‍या तो पतंग में जिस बांस के पट्टे की जरूरत होती है वो साइज का बांस गुजरात में होता नहीं था तो मैंने ये जेनेटिक इंजीनियरिंग वालों को पकड़ा। मैंने कहा बांस हमारे यहां ऐसा क्‍यों न हो दो गांठ के बीच अंतर ज्‍यादा हो ताकि वो हमारा ही लोकल बांस का product उसको काम आ जाए। बांस वो बाहर से लाता है तो उसको फाइनेंस की व्‍यवस्‍था हो फिर मैंने एडवरटाइजमेंट कम्‍पनी को बुलाया। मैंने कहा जरा पतंग वालों के साथ बैठो पतंग के ऊपर कोई एडवरटाइजमेंट का काम हो सकता है क्‍या उनकी कमाई बढ़ सकती है।

छोटी-छोटी चीजों को मैंने इतना ध्‍यान दिया था और मुझे उतना आनंद आया था उस काम में - I’m Talking about 2003-04 - कहने का मेरा तात्‍पर्य यह था कि जो बिल्‍कुल उपेक्षित सा काम था उसमें थोड़ा ध्‍यान दिया गया, फाइनेंस की व्‍यवस्‍था की गई, उसने तेज गति से आगे बढ़ाया। ये ताकत सब दूर है। आप देखिए हर गांव में दो-चार मुसलमान बच्‍चे ऐसे होंगे, इतनें Innovative होते है technology में ईश्‍वरदत्‍त उनको कृपा है। वो तुरंत चीजों को पकड़ लेते है। आप एक ताला उसको रिपेयर करने को दीजिए वो दूसरे दिन वो ताला वैसा बना के दे देगा। जिनके हाथों में ये परम्‍परागत कौशल है। ऐसे लोगों को अगर हम मदद करें और वो कुछ गिरवी रखें तब मिले तो उसके पास तो गिरवी रखने के लिए कुछ नहीं है - सिवाय कि उसका ईमान। उसकी सबसे बड़ी पूंजी है उसका ईमान। ये गरीब इंसान की जो पूंजी है, ईमान। उस पूंजी के साथ मुद्रा अपनी पूंजी जोड़ना चाहता है, ताकि वो सफलता की कुंजी बन जाए और उस दिशा में हम काम करना चाहते है।

कुम्‍हार है, अब बिजली गांव में पहुंच गई है। वो भी चाहता है कि मैं मटकी बनाता हूं और चीजें बनाता हूं। लेकिन अगर Electric motor लग जाए तो मेरा काम तेज हो जाएगा। लेकिन Electric motor खरीदने के लिए पैसा नहीं है। बैंक के लिए उनके पास इतना समय भी नहीं है और उतना नेटवर्क भी नहीं है। लेकिन मैं आज, यहां बैंक के बड़े-बड़े लोग बैठे है। मेरे शब्‍द लिख करके रखिए। एक साल के बाद बैंक वाले Queue लगाएगें मुद्रा वालों के यहां और कहेंगे भई 50 लाख हमको client दे दीजिए।

क्‍योंकि अब देखिए प्रधानमंत्री जन-धन योजना में हिन्‍दुस्‍तान की बैंक सेक्‍टर ने जो काम किया है, मैं जितना अभिनंदन करूं उतना कम है जी, जितना अभिनंदन करूं उतना कम है। कोई सोच नहीं सकता था, क्‍योंकि बैंक के संबंध में एक सोच बनी हुई थी कि बैंक यानी इस दायरे से नीचे नहीं जा सकते। तो बैंक के लोगों ने गर्मी के दिनों में गांव-गांव घर-घर जा करके गरीब की झोपड़ी में जा करके उसको देश की फाइनेंस की Main Stream में लाने का प्रयास किया और इस देश के 14 करोड़ लोगों को, 14 करोड़ लोगों को बैंक खाते से जोड़ दिया। तो ये ताकत हमने अनुभव की है तो उसका ये अलग एक नया step है।

आज वैसे एक ओर भी अवसर है SIDBI का रजत जयंती वर्ष है SIDBI 25 साल की उम्र हो गई और मूलतः SIDBI का कारोबार इसी काम से शुरू हुआ था, छोटे-छोटे लोगों को... लेकिन जितनी तेजी से क्योंकि भारत देश rhythmic way में progress करे तो अपेक्षाएं पूरी नहीं होंगी। हमने उस rhythm को बदलकर के jump लगाने की जरूरत है। हमने दायरा बढ़ाने की जरूरत है। हमने अधिक लोगों को इसके अंदर जोड़ने की आवश्यकता है और सामान्य मानवी का अपना अनुभव है।

आप देखिए हिंदुस्तान में जहां भी women self help group चलते हैं, पैसों के विषय में शायद ऐसी ईमानदारी कहीं देखने को मिलेगी नहीं। उनको अगर 5 तारीख को पैसा जमा करवाना है तो 1 तारीख को जाकर के जमा करवाकर आ जाती हैं। बचत हमारे यहां स्वभाव है, उसको और जरा ताकत देने की आश्यकता है। हमारी परंपरागत वो शक्ति है।

मुद्रा बैंक के माध्यम से व्यवसाय के क्षेत्र में, स्वरोजगार के क्षेत्र में, उद्योग के क्षेत्र में जो निचले तबके पर आर्थिक व्यवस्था में रहे हुए लोग हैं, वे हमारा सबसे बड़ा client, हमारा सबसे बड़ा target group है। हम उसी पर focus करना चाहते हैं। इन 5 करोड़ 75 लाख जो छोटे व्यापारी हैं... और उनका average कर्ज कितना है? पूरे हिंदुस्तान में 11 लाख करोड़ की उनके पास पूंजी है total पूरे देश में कोई ज्यादा amount नहीं है वो और average कर्ज निकाला जाए तो एक यूनिट का average कर्ज 17 thousand है सिर्फ। 17 thousand हैं, यानि कुछ नहीं है। अगर उसको एक लाख के कर्ज की ताकत दे दी जाए। उसको इतना अगर जोड़ दिया जाए और ये 11 लाख करोड़ है वो एक करोड़ तक अगर पहुंच जाए। हम कल्पना कर सकते हैं देश की economy को GDP को, नीचे से ताकत देने का इतना बड़ा force जो कि कभी untapped था।

और इसलिए जब हम प्रधानमंत्री जन-धन योजना लेकर के आए थे तब हमने कहा था, जहां बैंक नहीं उसको बैंक से जोड़ेंगे। आज जब हम मुद्रा लेकर के आए हैं, तो हमारा मंत्र है जिसको funding नहीं हो रहा है, जो un-funded है, उसको funding करने का हम बीड़ा उठाते हैं।

ये एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें शुरू के समय में सामान्य व्यक्ति जाएगा ये संभव नहीं है क्योंकि बेचारों को अनुभव बहुत खराब है। वो कहता है भई मुझे तो साहूकार से ही पैसा लेना पड़ता है। 24 percent, 30 percent interest देना पड़ता है, वो ही मुझे आदत हो गई है। वो विश्वास नहीं करेगा कि उसको इस प्रकार से ऋण मिल सकता है। हम ये एक नया विश्वास पैदा करना चाहते हैं कि आप देश के लिए काम कर रहे हो, देश के विकास के भागीदार हो, देश आपके लिए चिंता करने के लिए तैयार है। ये message मुझे देना है।

और ये मुद्रा के concept के द्वारा, उसी दिशा में हम आगे बढ़ना चाहते हैं। हमारे देश में agriculture sector में value addition - इतनी बड़ी संभावनाएं हैं। अगर उसकी एक विधा को develop कर दिया जाए तो हमारे किसान को कभी संकटों से गुजरना नहीं पड़ेगा। और ये छोटे-छोटे entrepreneur के माध्यम से ये पूरा network खड़ा किया जा सकता है जो सामान्य किसान, जो सामान्य पैदावार करता है, उसमें value addition का काम करे। और स्थानीय स्तर पर करे। कोई बहुत बड़ी व्यवस्था की आवश्यकता नहीं है। अपने आप उसका काम आगे बढ़ जाएगा।

और हम देखते हैं आम उसको बेचना है, तो बेचारे को बड़ा कम पैसा मिलता है लेकिन एक अगर एक छोटा सा unit भी हो, आम में से अचार बना दे तो ज्यादा पैसा मिलता है और अचार को भी अच्छा बढ़िया bottle में packing करे और ज्यादा पैसा मिलता है और कोई नटी bottle लेकर खड़ी हो जाए तो और ज्यादा पैसा मिलता है advertising होता है तो।

यानि वक्त बदल चुका है, branding, advertising इन सारी चीजों की जरूरत पड़ गई है। हम ऐसे छोटे-छोटे लोगों को ताकत देना चाहते हैं। और उनको अगर ताकत मिलती है तो देश की economy की नीचे की धरातल, जितनी ज्यादा मजबूत होगी, उतनी देश की economy को लाभ होने वाला है। और जब मैंने ये आकड़े बताए तो आप भी चौंक गए होगे कि इतना बड़ा तामझाम सवा करोड़ लोग रोजगार पाते है। और जिसकी ओर कोई देखता नहीं है, वो 12 करोड़ लोगों के पेट भरता है। कितना बड़ा अंतर है। ये जो 12 करोड़ लोग है 25 करोड़ को रोजगार देने की ताकत देते है। वो Potential पड़ा है। और ज्‍यादा कोई शासकीय व्‍यवस्‍था में बड़े बदलाव की भी जरूरत नहीं है। थोड़ी संवदेनशीलता चाहिए, थोड़ी समझ चाहिए और थोड़ा Pro-Active role चाहिए।

मुद्रा एक ऐसा platform खड़ा किया गया है, जिस platform के साथ इसको... आज छोटी-मोटी finance की व्‍यवस्‍थाएं चल पड़ी है। दुनिया में कई जगह पर प्रयोग हुए है Micro finance के। लिए मैं चाहूंगा कि हम पूरे विश्‍व में Micro finance के जो Successful Model है हम भी उसका अध्‍ययन करें। उसकी जो अच्‍छाइयां है जो हमारे लिए suitable है, हम उसको adopt करें। और हिन्‍दुस्‍तान इतना बड़ा देश है कि जो चीज नागालैंड में चलती है वो महाराष्‍ट्र में चलेगी जरूरी नहीं है। विविधता चाहिए। और विविधताओं के अनुसार स्‍थानीय आवश्‍यकताओं के अनुसार अपने मॉडल बनाएं उसकी requirement करें। वरना हम दिल्‍ली में बैठ करके tailor के लिए ये और फिर कहेंगे कि तुमको ये मिलेगा तो मेल नहीं बैठेगा। वो वहां है उसी को पूछना पड़ेगा कि भई बताओं तुम्‍हारे लिए क्‍या जरूरत है? ये अगर हमने कर दिया तो हम बहुत बड़ी मात्रा में समाज के इस नीचे के तबके को मदद कर सकते है।

जिस प्रकार से सामान्‍य व्‍यक्ति की चिंता करना ये हमारा प्रयास है... और आपने इस सरकार के एक-एक कदम देखें होंगे, गतिशीलता तो आप देखते ही होंगे। वरना सामान्‍यत: देश में योजनाओं की घोषणा को ही काम माना जाता था और आप रोज नई योजना की घोषणा करो तो अखबार के आधार पर देश को समझने वाले जो लोग है वो तो यही मानते है कि वाह देश बहुत आगे बढ़ गया। और दो-चार साल के बाद देखते है कि वही कि वही रह गए। हमारी कोशिश है योजनाओं को धरती पर उतारना।

प्रधानमंत्री जन-धन योजना ये सीधा-सीधा दिखता है। पहल योजना - दुनिया में सबसे बड़ा Cash Transfer का काम। गैस सब्सिडी में। 13 करोड़ लोगों के गैस सब्सिडी सिलेंडर, सब्सिडी सीधी उसके बैंक खाते में चली गई। यानी अगर एक बार निर्णय करें कि इस काम पूरा करना है और हर काम को आप देखिए... जब हमने 15 अगस्‍त को प्रधानमंत्री जन-धन योजना की बात कही करीब-करीब सवा सौ दिन के अंदर उस काम को पूरा कर दिया।

जब हम प्रधानमंत्री जन-धन योजना के बाद हम आगे बढ़े सौ दिन के भीतर-भीतर हमने पहल का काम पूरा कर दिया।

और आज जब बजट के अंदर घोषणा हुई, 50 दिन भी नहीं हुए, वो आज योजना आपके सामने रख दी। और ये Functional होगी और उसका परिणाम मैं कहता हूं एक साल मैं ज्‍यादा समय नहीं कहता। एक साल के भीतर-भीतर हमारी जो Established Banking System है, वो मुद्रा के मॉडल की ओर जाएगी मैं दावे से कहता हूं क्‍योंकि इसकी ताकत इसकी ताकत पहचान में आने वाली है। वे अपना एक लचीली बैंकिंग व्‍यवस्‍था खड़ी करेंगे, एक बहुत बड़ी ऑफिस चाहिए, कोई एयरकंडीशन चाहिए कोई जरूरत नहीं है। ऐसे Bare footed बैंकरर्स तैयार हो सकते है जो मुद्रा के मॉडल पर बड़ी-बड़ी बैंकों का काम भी कर सकते है।

आने वाले दिनों में कम से कम धन लगा करके भी ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों को रोजगार देने का काम इसके साथ सरलता से हो सकता है और ये लोग जो संकट से गुजरते है, ब्‍याज के चक्‍कर में गरीब आदमी मर जाता है। उसको बचाना है और उसकी जो ताकत है उसके लिए अवसर देना है उस अवसर की दिशा में काम कर रहे है, जिस प्रकार से देश में ये जो वर्ग है उसकी जितनी चिंता करते है, उतनी ही देश के किसान की चिंता करना उतना ही जरूरी है।

किसी न किसी कारण से देश का किसान प्राकृतिक संकटों से जूझ रहा है। गत वर्ष, वर्षा कम हुई। वर्षा कम होने के कारण वैसे ही किसान मुसीबत से गुजारा कर रहा था और इस बार जितनी मात्रा में बेमौसमी वर्षा और ओले गिरना। इतनी तबाही हुई है किसान की। हमने मंत्रियों को भेजा था। खेतों में जा करके किसानों से बात करके परिस्थिति का जायजा लिया। कल इन सारे मंत्रियों से मैंने डिटेल में रिपोर्ट ली थी। इन किसानों को हम क्या मदद कर सकते हैं। और मैंने पहले दिन कहा था कि किसान को इस मुसीबत से बचाना, उसका साथ देना, उसको संकटों से बाहर लाना। ये सरकार की, समाज की, हम सबकी जिम्मेवारी है और किसान की चिंता करना ये आवश्यक है।

Natural calamity पहले भी आई है। लेकिन सरकार के जो parameter रहे हैं, उन parameters में आज के संकट में किसान को ज्यादा मदद नहीं मिल सकती है। और इसलिए ये संकट की व्यापकता इतनी है और उस समय है जबकि उसको फसल लेकर के बाजार में जाना था। एक प्रकार से उसके नोटों का बंडल ही जल गया, इस प्रकार से हम कह सकते हैं। इतना बड़ा उसका, उसका पूरा पसीना बहाया हुआ उसका, ये हालत हुई है। और इसलिए हमने insurance company को भी आदेश किया है कि बहुत ही proactive होकर के उनकी मदद की जाए। बैंकों को हमने आदेश किया है कि बैंक उनके जो कर्ज हैं, उनके संबंध में किस प्रकार से restructure करे ताकि उनको इस संकट से बाहर लाया जाए।

सरकार की तरफ से भी एक बहुत बड़ा अहम निर्णय हम करने जा रहे हैं। अब तक खेत में 50 प्रतिशत से ज्यादा अगर नुकसान हुआ हो, तभी वो उस मदद पाने की list में आता है। 50 प्रतिशत से ज्यादा अगर नुकसान हुआ होगा तभी आपको मदद मिल सकती है। अगर 50 प्रतिशत से कम हुआ है तो मदद नहीं मिल सकती है। राज्यों के मुख्यमंत्रियों का भी ये एक सुझाव था कि साहब ये norms बदलना चाहिए। हमारे मंत्री अभी जाकर के आए, उन्होंने प्रत्यक्ष देखा, और ये सब देखने के बाद एक बहुत बड़ा हमने एक महत्वपूर्ण निर्णय किया है कि अब किसान के वो जो 50 प्रतिशत के नुकसान वाला दायरा था उसको बदलकर के 33 percent भी अगर नुकसान हुआ है तो भी वो किसान हकदार बनेगा।

उसके कारण मुझे मालूम है बहुत बड़ा बोझ आने वाला है, बहुत बड़ा बोझ आने वाला है लेकिन किसान को 50 प्रतिशत वाले हिसाब में रखने से उसको ज्यादा लाभ नहीं मिलेगा। 33 percent जो कि कईयों की मांग थी, उसको हमने स्वीकार किया है।

दूसरा विषय है उसको जो मुआवजा दिया जाता है। देश में आजादी के बाद सबसे बड़ा निर्णय पहली बार हुआ है 50 प्रतिशत को 33 प्रतिशत लाना। और दूसरा महत्वपूर्ण आजादी के बाद इतना बड़ा jump नहीं लगाया है, किसानों को मदद करने में हम इतना बड़ा jump इस बार लगा रहे हैं। और आज उसको जो मदद करने के सारे parameters हैं, उसको अब डेढ़ गुना कर दिया जाएगा। अगर उसको नुकसान में पहले 100 रुपया मिलता था, 150 मिलेगा, लाख मिलता था तो डेढ़ लाख मिलेगा, उसकी मदद डेढ़ गुना कर दी जाएगी।

कभी हमारे यहां incremental होता था 5 percent, 2 percent, 50 प्रतिशत वृद्धि। और ये किसान को तत्काल मदद मिले। राज्यों ने सर्वे का काम किया है। भारत सरकार और राज्य सरकार मिलकर के उसको आगे बढ़ाएगी लेकिन मैं चाहता हूं हमारे देश के किसानों को जितनी मदद हो सके, उतनी मदद करने के लिए ये सरकार संकल्पबद्ध है। क्योंकि आर्थिक विकास की यात्रा में किसान का भी बहुत बड़ा योगदान है और हमारी जीवन नैया चलाने में भी किसान का बहुत बड़ा योगदान है। बैंक हो, insurance company हो, भारत सरकार हो, राज्य सरकार हो, हम सब मिलकर के किसान को इस संकट की घड़ी से हम बाहर लाएंगे। ऐसा मुझे पूरा विश्वास है।

फिर एक बार मैं SIDBI की इस रजत जयंती वर्ष के प्रारंभ पर उनको मैं बहुत-बहुत शुभकामना देता हूं और SIDBI आने वाले दिनों में नए लक्ष्य को लेकर के और नई ऊंचाइयों को पार करने में सफल होगा, ऐसी मेरी शुभकामनाएं हैं।

और मुद्रा platform प्रधानमंत्री मुद्रा योजना आने वाले दिनों में देश की आर्थिक, जो पक्की धरोहर है उसको जानदार बनाना, शानदार बनाने के काम में मुद्रा बहुत बड़ा role play करेगी। और ये पूंजी उसकी सफलत की कुंजी बने, ये मंत्र को हम चरितार्थ करेंगे। इसी एक शुभ आशय के साथ आज इस महत्वपूर्ण योजना को प्रारंभ करते हुए मुझे खुशी हो रही है, मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

धन्यवाद।

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'विकसित भारत' के संकल्प की पूर्ति में टेक्सटाइल सेक्टर का अहम योगदान: 'भारत टेक्स' में पीएम
February 16, 2025
Quoteभारत टेक्स दुनिया भर के नीति निर्माताओं, सीईओ और उद्योग जगत के नेताओं के लिए व्‍यवसाय, सहयोग और साझेदारी का एक मजबूत मंच बन रहा है: प्रधानमंत्री
Quoteभारत टेक्स हमारे पारंपरिक परिधानों के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करता है: प्रधानमंत्री
Quoteपिछले साल भारत ने कपड़ा और परिधान निर्यात में 7 प्रतिशत की वृद्धि देखी, और वर्तमान में यह दुनिया में कपड़ा और परिधानों का छठा सबसे बड़ा निर्यातक है: प्रधानमंत्री
Quoteकोई भी क्षेत्र उत्‍कृष्‍टता तभी हासिल करता है जब उसके पास कुशल कार्यबल हो और कपड़ा उद्योग में कौशल की महत्वपूर्ण भूमिका है: प्रधानमंत्री
Quoteप्रौद्योगिकी के युग में हथकरघा कारीगरों की प्रामाणिकता बनाए रखना महत्वपूर्ण है: प्रधानमंत्री
Quoteदुनिया पर्यावरण और सशक्तिकरण के लिए फैशन की दूरदर्शिता को अपना रही है, और भारत इस संबंध में अग्रणी भूमिका निभा सकता है: प्रधानमंत्री
Quoteभारत का कपड़ा उद्योग ‘फास्ट फैशन वेस्ट’ को अवसर में बदल सकता है, कपड़ा रीसाइक्लिंग और अप-साइक्लिंग में देश के विविध पारंपरिक कौशल का लाभ उठा सकता है: प्रधानमंत्री

कैबिनेट में मेरे सहयोगी श्रीमान गिरिराज सिंह जी, पबित्रा मार्गरिटा जी, विभिन्न देशों के राजदूत, वरिष्ठ राजनयिक, केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारी, फैशन और टेक्सटाइल्स वर्ल्ड के सभी दिग्गज, entrepreneurs, छात्र-छात्राएं, मेरे बुनकर और कारीगर साथी, देवियों और सज्जनों।

आज भारत मंडपम्, Bharat Tex के दूसरे आयोजन का साक्षी बन रहा है। इसमें हमारी परम्पराओं के साथ ही विकसित भारत की संभावनाओं के दर्शन भी हो रहे हैं। ये देश के लिए संतोष की बात है कि हमने जो बीज रोपा है, आज वो वट वृक्ष बनने की राह पर तेज गति से बढ़ रहा है। Bharat Tex अब एक मेगा ग्लोबल टेक्सटाइल्स इवेंट बन रहा है। इस बार वैल्यू चेन का पूरा spectrum, इससे जुड़े 12 समूह एक साथ यहाँ हिस्सा ले रहे हैं। Accessories, garment, machinery, chemicals और dyes का भी प्रदर्शन किया गया है। Bharat Tex, दुनियाभर के पॉलिसी मेकर्स, सीईओ, और इंडस्ट्री लीडर्स के लिए engagement, collaboration और partnership का एक बहुत ही मजबूत मंच बन रहा है। इस आयोजन के लिए सभी stakeholders का प्रयास बहुत सराहनीय है, मैं इसके काम में जुटे हुए सब लोगों को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

आज Bharat Tex में 120 से ज्यादा देश हिस्सा ले रहे हैं, जैसा गिरिराज जी ने बताया 126 countries, यानि यहां आने वाले हर entrepreneurs को 120 देशों का exposure मिल रहा है। उन्हें अपने बिज़नेस को लोकल से ग्लोबल बनाने का अवसर मिल रहा है। जो entrepreneurs नए बाजारों की तलाश में हैं, उन्हें यहां विभिन्न देशों की cultural needs की जानकारी मिल रही है। थोड़ी देर पहले मैं प्रदर्शनी में लगे स्टॉल्स को देख रहा था, ज्यादा तो नहीं देख पाया, अगर पूरा देखता तो शायद मुझे दो दिन लगते और इतना समय तो आप मुझे परमिट भी नहीं करेंगे। लेकिन जितना समय में निकाल सका, इस दौरान मैंने इन स्टॉल्स के कई representatives से भी बहुत सारी बातें की, चीजों को समझने का मैंने प्रयास किया। कई साथी बता रहे थे कि पिछले साल Bharat Tex से जुड़ने के बाद उन्हें बड़े स्केल पर नए buyers मिले, उनके बिजनेस का विस्तार हुआ। और मैं तो देख रहा था एक बड़ी, यानी मधुर कंप्लेंट मेरे सामने आई, उन्होंने कहा कि साहब डिमांड इतनी है कि हम पहुंच नहीं पाते हैं। और कुछ साथियों ने मुझे कहा कि साहब एक फैक्ट्री लगानी है तो एवरेज हमें 70-75 करोड़ रुपया खर्च लगता है और 2000 लोगों को काम देते हैं। मैं बैंकिंग क्षेत्र के लोगों को सबसे पहले कहूंगा कि इन सबकी क्या मांग है, प्रायोरिटी समझो और दो।

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साथियों,

इस आयोजन से टेक्सटाइल सेक्टर में investments, exports और overall growth को जबरदस्त बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

भारत टेक्स के इस आयोजन में हमारे परिधानों के जरिए भारत की सांस्कृतिक विविधता के भी दर्शन होते हैं। पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण, हमारे यहाँ कितने तरह के पारंपरिक परिधान हैं, एक-एक परिधान के कितने-कितने प्रकार हैं। लखनवी चिकन, राजस्थान और गुजरात की बांधनी, गुजरात का पटोला और मेरी काशी का बनारसी सिल्क, दक्षिण में कांजीवरम सिल्क, जम्मू कश्मीर का पश्मीना, ये सही समय है, ऐसे आयोजनों के जरिए हमारी ये विविधता और विशेषता वस्त्र उद्योग के विस्तार का भी माध्यम बने।

साथियों,

पिछले साल मैंने टेक्सटाइल इंडस्ट्री में farm, fiber, fabric, fashion और foreign, इन five ‘F’ factors की बात की थी। Farm, Fiber, Fabric, Fashion और Foreign का ये विज़न अब भारत के लिए एक मिशन बनता जा रहा है। ये मिशन किसान, बुनकर, डिज़ाइनर और व्यापारी, हर किसी के लिए ग्रोथ के नए रास्ते खोल रहा है। पिछले वर्ष भारत के textile और apparel exports में 7 परसेंट की बढ़ोतरी हुई है। अब आप 7 परसेंट में ताली बजाओगे तो मेरा होगा क्या, अगली बार 17 परसेंट हो तो फिर ताली हो जाए। आज हम दुनिया के छठे सबसे बड़े textiles और apparels exporter हैं। हमारा टेक्सटाइल निर्यात 3 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच चुका है। अब हमारा लक्ष्य है- 2030 तक हम इसे 9 lakh crore रुपए तक लेकर जाएंगे। मैं भले बोलता यहां हूं ये 2030 की बात, लेकिन आज जो मैंने वहां जो मिजाज देखा है, तो मुझे लगता है कि शायद आप ये मेरा आंकड़ा गलत सिद्ध कर देंगे, और 2030 के पहले ही काम पूरा कर देंगे।

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साथियों,

इस सफलता के पीछे पूरे एक दशक की मेहनत है, एक दशक की consistent पॉलिसी हैं। इसीलिए, पिछले एक दशक में हमारे टेक्सटाइल सेक्टर में विदेशी निवेश दोगुना हुआ है। और आज मुझे कुछ साथी बता रहे थे कि साहब बहुत सारी विदेशी कंपनियां भारत में इन्वेस्टमेंट करने के लिए आना चाहती है, तो मैंने उनसे कहा कि देखिए आप हमारे सबसे बड़े एंबेसडर है, जब आप कहेंगे तो कोई भी बात मान लेगा, सरकार कहेगी तो जांच करने जाएगा, ये सही है, गलत है, ठीक है, नहीं है, लेकिन अगर उसी फील्ड का व्यापारी जब कहता है तो मान लेता है कि हां यार मौका है, चलो।

साथियों,

आप सब जानते हैं, टेक्सटाइल देश में सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर देने वाली इंडस्ट्रीज़ में से एक महत्वपूर्ण इंडस्ट्री है। भारत की मैन्युफैक्चरिंग में ये सेक्टर 11 परसेंट का योगदान दे रहा है। और इस बार आपने बजट में देखा होगा, हमने मिशन मैन्युफैक्चरिंग पर बल दिया है, उसमें आप सब भी आ जाते हैं। इसलिए, जब इस सेक्टर में निवेश आ रहा है, ग्रोथ हो रही है, तो उसका फायदा करोड़ों textile workers को मिल रहा है।

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साथियों,

भारत के टेक्सटाइल सेक्टर की समस्याओं का समाधान, और संभावनाओं का सृजन, ये हमारा संकल्प है। इसके लिए हम दूरदर्शी और long term ideas पर काम कर रहे हैं। हमारे इन प्रयासों की झलक इस बार के बजट में भी दिखती है। हमारे देश में कॉटन सप्लाइ reliable बने, भारतीय कॉटन globally competitive बने, इसके लिए हमारी वैल्यू चेन मजबूत हो, इंडस्ट्री की ऐसी सभी जरूरतों को ध्यान में रखते हुये हमने Mission for Cotton Productivity का एक ऐलान किया है। हमारा फोकस technical textile जैसे सन-राइज़ सेक्टर्स पर भी है। और मुझे याद है, मैं जब गुजरात में था, मुख्यमंत्री के नाते मुझे सेवा करने का अवसर मिला था, तो आपके टेक्सटाइल वालों से मेरा मिलना-जुलना होता था, और उस समय जब मैं उनको टेक्निकल टैक्सटाइल की बातें करता था, तो वो मुझे पूछते थे, आप क्या चाहते हैं, आज मुझे खुशी है कि भारत इसमें अपनी पहचान बना रहा है। हम स्वदेशी कार्बन फाइबर और उससे बने उत्पादों को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत high-grade carbon fibre बनाने की दिशा में भी आगे बढ़ रहा है। इन प्रयासों के साथ ही, टेक्सटाइल सेक्टर के लिए जो नीतिगत फैसले चाहिए, हम वो भी ले रहे हैं। जैसे कि, इस साल के बजट में MSMEs के classification criteria में बदलाव करके इसका विस्तार किया गया है। साथ ही credit availability बढ़ाई गई है। हमारा टेक्सटाइल सेक्टर, जिसमें 80 परसेंट योगदान हमारे MSMEs का ही है, उसको इसका बहुत बड़ा लाभ मिलने वाला है।

साथियों,

कोई भी सेक्टर एक्सेल तब करता है, जब उसके लिए skilled workforce उपलब्ध हो। वस्त्र उद्योग में तो सबसे बड़ा रोल ही स्किल यानी हुनर का होता है। इसीलिए, हम टेक्सटाइल इंडस्ट्री के लिए skilled talent pool बनाने के लिए भी काम कर रहे हैं। हमारे National Centres of Excellence for Skilling इस दिशा में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। वैल्यू चेन के लिए जो स्किल्स चाहिए, उसमें हमें समर्थ योजना से मदद मिल रही है। और मैं आज समर्थ से trained हुई कई बहनों के साथ बात कर रहा था, और उन्होंने जो 5 साल, 7 साल, 10 साल में जो प्रगति की है, यानी गर्व से मन भर गया मेरा सुनकर के। हमारी ये भी कोशिश है कि टेक्नोलॉजी के इस दौर में hand-loom की authenticity को, हाथ के कौशल को भी उतना ही महत्व मिले। हथकरघा कारीगरों का हुनर दुनिया के बाज़ारों तक पहुंचे, उनकी क्षमता बढ़े, उन्हें नए अवसर मिलें। हम इस दिशा में भी काम कर रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में हैंडलूम्स को बढ़ावा देने के लिए 2400 से ज्यादा बड़े मार्केटिंग इवेंट्स का आयोजन किया गया, 2400 से ज्यादा। हैंडलूम प्रोडक्ट्स की ऑनलाइन मार्केटिंग को बढ़ावा देने के लिए India-hand-made नाम से ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म भी बनाया गया है। इस पर हजारों हैंडलूम ब्रांड रजिस्टर भी कर चुके हैं। हैंडलूम प्रोडक्ट्स की GI tagging इसका भी बहुत बड़ा लाभ इन ब्रांड्स को हो रहा है।

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साथियों,

पिछले वर्ष Bharat Tex के आयोजन के दौरान Textiles Startup Grand Challenge को लॉन्च किया गया था। उसमें युवाओं से टेक्सटाइल सेक्टर के लिए innovative sustainable solutions मांगे गए थे। इस चैलेंज में देशभर के युवाओं ने बढ़-चढ़कर के हिस्सा लिया। इस चैलेंज के विजेता युवाओं को यहाँ invite भी किया गया है। वो यहां हमारे बीच में बैठे भी हैं। आज यहां ऐसे स्टार्ट-अप्स को भी बुलाया गया है, जो इन युवाओं को आगे बढ़ाना चाहेंगे। ऐसे pitch fest को IIT Madras, अटल इनोवेशन मिशन और कई बड़े private textile organizations का सपोर्ट मिल रहा है। इससे देश में स्टार्ट-अप कल्चर को बढ़ावा मिलेगा।

मैं चाहूँगा, हमारे युवा नए techno-textile स्टार्ट-अप्स लेकर आयें, नए ideas पर काम करें। एक सुझाव हमारी इंडस्ट्री को भी है। हमारी टेक्सटाइल इंडस्ट्री भी IIT जैसे इंस्टीट्यूट्स के साथ नए टूल्स develop करने के लिए collaborate कर सकती है। आजकल हम सोशल मीडिया और ट्रेंड्स में देख रहे हैं, नई पीढ़ी अब आधुनिकता के साथ-साथ पारंपरिक परिधानों को भी पसंद कर रही है। इसलिए, आज tradition और innovation के fusion का महत्व भी काफी बढ़ गया है। हमें ऐसे पारंपरिक परिधानों से inspired ऐसे products लॉन्च करने चाहिए, जो न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में नई पीढ़ी को आकर्षित करें। एक और अहम विषय टेक्नोलॉजी की बढ़ती भूमिका का भी है। नए ट्रेंड्स discover करने में, नए styles create करने में अब AI जैसी technology की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है। अभी जब मैं निफ्ट के स्टॉल पर गया तो वो मुझे बता रहे थे कि हम AI के माध्यम से 2026 का ट्रेंड क्या होगा, हम उसको अब प्रमोट कर रहे हैं। वरना पहले दुनिया के और देश ही हमें कहते थे काला पहनो, हम पहन लेते थे, अब हम दुनिया को कहेंगे, क्या पहनना है। इसीलिए, आज एक ओर पारंपरिक खादी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, साथ ही AI के जरिए फैशन के ट्रेंड्स को भी analyze किया जा रहा है।

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मुझे याद है, मैं जब नया-नया मुख्यमंत्री बना था, तो गांधी जयंती पर शायद 2003 होगा, मैंने पोरबंदर में, गांधी जी का जहां जन्म स्थान है, वहां फैशन शो ऑर्गेनाइज किया था और खादी का फैशन शो। और निफ्ट के स्टूडेंट्स और हमारे एनआईडी के स्टूडेंट्स मिलकर के उस काम को आगे बढ़ाया था। और वैष्णव भजन तो तेरे रे कहिए, वो बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ वो फैशन शो हुआ था। और उस समय विनोबा जी के कुछ अनन्य साथी जो थे, उनको मैंने इनवाइट किया था, तो वो मेरे साथ बैठे थे क्योंकि फैशन शो भरके शब्द ऐसे हैं कि पुरानी पीढ़ी के लोगों को जरा कान खड़े हो जाते हैं कि ये क्या सब तूफान चल रहा है। लेकिन मैंने उनसे बड़ा आग्रह किया, उनको मैंने बुलाया, वो आए और बाद में उन्होंने मुझे कहा कि खादी को अगर हमें पॉपुलर करना है, तो यही रास्ता है। और मैं बताता हूं आज खादी जिस प्रकार से प्रगति कर रही है और दुनिया के लोगों का आकर्षण का कारण बन रही है, हमने इसको और बढ़ावा देना चाहिए। और पहले जब आजादी का आंदोलन चला, तब खादी फोर नेशन था, अब खादी फोर फैशन होना चाहिए।

साथियों,

कुछ दिनों पहले, जैसे अभी एनाउंसर बता रहे थे, मैं विदेश दौरे पर से ही आया हूं, मैं पेरिस में था, और पेरिस को Fashion capital of world कहा जाता है। इस यात्रा के दौरान विभिन्न मुद्दों पर दोनों देशों के बीच अहम साझेदारी हुई। हमारी चर्चा के मुख्य बिंदुओं में environment और climate change का विषय भी शामिल रहा। आज पूरी दुनिया sustainable lifestyle के महत्व को समझ रही है। Fashion world भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है। आज दुनिया Fashion for Environment और Fashion for Empowerment के लिए इस विजन को अपना रही है। इस संबंध में भारत दुनिया को रास्ता दिखा रहा है। Sustainability हमेशा से भारतीय टेक्सटाइल्स की परंपरा का अभिन्न हिस्सा रही है। हमारी खादी, tribal textiles, natural dyes का उपयोग, ये सभी सस्टेनेबल लाइफ स्टाइल के ही उदाहरण हैं। अब भारत की पारंपरिक sustainable techniques को cutting-edge technologies का साथ मिल रहा है। इससे इंडस्ट्री से जुड़े कारीगरों, बुनकरों और करोड़ों महिलाओं को सीधा-सीधा लाभ हो रहा है।

साथियों,

मैं समझता हूं, संसाधनों का पूरा उपयोग और कम से कम waste generation, टेक्सटाइल इंडस्ट्री की पहचान बननी चाहिए। आज दुनिया में करोड़ों कपड़े हर महीने इस्तेमाल से बाहर हो जाते हैं। इनमें बहुत बड़ा हिस्सा ‘फ़ास्ट फ़ैशन वेस्ट’ का होता है। यानी, वो कपड़े जिन्हें फ़ैशन या ट्रेंड चेंज होने के कारण लोग पहनना छोड़ देते हैं। इन कपड़ों को दुनिया के कई हिस्सों में डंप किया जाता है। इससे environment और ecology के लिए भी बड़ा खतरा पैदा हो रहा है।

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एक आंकलन के मुताबिक, 2030 तक फ़ैशन वेस्ट 148 मिलियन टन तक पहुँच जाएगा। आज टेक्सटाइल वेस्ट का एक चौथाई हिस्सा भी recycle नहीं हो रहा है। हमारी टेक्सटाइल इंडस्ट्री इस चिंता को अवसर में बदल सकती है। आपमें से अनेक साथी जानते हैं, हमारे भारत में textile recycling, और ख़ासकर, up-cycling का बहुत diverse traditional skill मौजूद है। जैसे कि, हमारे यहाँ पुराने या बचे हुये कपड़ों से दरियां बनाई जाती हैं। बुनकर लोग, और यहाँ तक कि घर की महिलाएं भी ऐसे कपड़ों से कितने तरह के mats, rugs और coverings बनाती हैं। महाराष्ट्र में पुराने, और यहाँ तक कि फटे कपड़ों तक से अच्छे-अच्छे गोधडी बनाए जाते हैं। हम इन पारंपरिक आर्ट्स में नए इनोवेशन करके इन्हें ग्लोबल मार्केट तक पहुंचा सकते हैं। टेक्सटाइल मिनिस्ट्री ने up-cycling को प्रमोट करने के लिए Standing Conference of Public Enterprises और e-Marketplace के साथ MoU भी साइन किया है। देश के कई up-cyclers ने इसमें रजिस्टर भी किया है। नवी मुंबई और बैंग्लोर जैसे शहरों में टेक्सटाइल वेस्ट के door to door कलेक्शन के लिए पायलट प्रोजेक्ट्स भी चलाये जा रहे हैं। मैं चाहूँगा, हमारे स्टार्ट-अप्स इन प्रयासों से जुड़ें, इन अवसरों को explore करें, और early steps लेकर इतने बड़े ग्लोबल मार्केट में lead लें। अगले कुछ वर्षों में भारत की textile recycling market 400 million डॉलर तक पहुँचने की संभावना है। जबकि, ग्लोबल recycled textile market करीब साढ़े 7 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। अगर हम सही दिशा में आगे बढ़ें, तो भारत इसमें और बड़ा शेयर हासिल कर सकता है।

साथियों,

सैकड़ों वर्ष पहले जब भारत समृद्धि के शिखर पर था, हमारी उस समृद्धि में टेक्सटाइल इंडस्ट्री की बहुत बड़ी भूमिका थी। आज जब हम विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं, तो एक बार फिर टेक्सटाइल सेक्टर का इसमें बहुत बड़ा योगदान होने वाला है। Bharat Tex जैसे आयोजन इस सेक्टर में भारत की स्थिति को मजबूत बना रहे हैं। मुझे विश्वास है, ये आयोजन इसी तरह हर वर्ष सफलता के नए कीर्तिमान गढ़ेगा, नई ऊंचाइयों को छुएगा। मैं एक बार फिर इस आयोजन के लिए आप सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद। नमस्कार।