नोमष्कार! खुलुम खा जोतो नोनो! भाईयों बंधुरा, बंग्लादेशेर विशिष्ट अथिति गण, आपना देर सवाईके अमार आंतरिक शुभेच्छा! 

मैं पिछले तीन दिन से North East में भ्रमण कर रहा हूं। शायद देश के किसी प्रधानमंत्री को एकसाथ इतना लंबा समय North East के लोगों के बीच बिताने का सौभाग्य नहीं मिला होगा, जो सौभाग्य मुझे मिला है। मेरी यात्रा का ये आखिरी कार्यक्रम है। North East के नागरिकों ने मुझे जो प्यार दिया, सम्मान दिया, सत्कार दिया, उसके लिए उन सभी राज्यों के नागरिकों का मैं हृदय से अभिनंदन करता हूं, आभार व्यक्त करता हूं। 

North East में मेरा पहला कार्यक्रम था जो गति से जुड़ा हुआ था और आखिरी कार्यक्रम है जो उर्जा से जुड़ा हुआ है। विकास करना है तो उर्जा भी चाहिए, गति भी चाहिए, और दिशा भी चाहिए और इसलिए हमने North East की दिशा को पकड़ा है। Look East Policy की चर्चा - अब वक्त आया है - Look East Policy से आगे Act East Policy का। उसी के तहत इस पूरे North East क्षेत्र के विकास के लिए तेज़ गति से हम आगे बढ़ना चाहते हैं। 

आज त्रिपुरा में भारत सरकार, राज्य सरकार इन सबके सहयोग से पूरे North East का सबसे ज्यादा capital investment वाला ये project 10,000 करोड़ Rs., 726 मेगावाट पॉवर - और ये भी इतने छोटे से राज्य में इतना बड़ा कार्यक्रम, इतना बड़ा पूंजी निवेश, इतना बड़ा बिजली का उत्पादन -लेकिन ये विश्व के नक्शे पर भी जगह बनाने वाला है। क्योंकि पूरा विश्व climate change की परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए जिस दिशा में काम कर रहा है, Kyoto protocol की जो चर्चा हो रही है - उन सारे norms का पालन त्रिपुरा के इस project में हो रहा है और उस प्रकार से विश्व में Green Energy Movment के क्षेत्र में त्रिपुरा आज अपना नाम दर्ज करा रहा है। 

अभी-अभी SAARC Summit हुई थी। बंग्लादेश की प्रधानमंत्री बेगम हसीना जी भी वहां मौजूद थीं। SAARC Summit में एक महत्वपूर्ण निर्णय किया गया है कि सार्क के देश Energy के क्षेत्र में साथ मिल करके, एक दूसरे के लिए उपयोगी हो करके Energy को एक common commodity के रूप में कैसे उपयोग करें, इस पे सहमति हुई है। 

जब सार्क देशों की सहमति हुई है तो मैं आज बंग्लादेश से अनुरोध करता हूं, मैं उनको offer करता हूं कि अगर बंग्लादेश भारत से बिजली खरीदना चाहता है तो भारत बंग्लादेश को बिजली देने के लिए तैयार है। हम उस स्थिति में पहुंचे हैं। और मैं उस जगह से घोषणा कर रहा हूं, ये वो ही जगह है, ये वो ही इलाका है, जहां के लोगों ने 1971 में, बंग्लादेश का जब मुक्ति आंदोलन चलता था, तब उनके दुख के साथ दुखी, उनके सुख के साथ सुखी, ये भूमिका इस क्षेत्र के लोगों ने निभाई थी। हमारे बंग्लादेश के मंत्री श्री मुझे कह रहे थे कि “मैं 41 साल के बाद यहां आ रहा हूं। ‘71 में बंग्लादेश का जब मुक्ति आंदोलन चल रहा था, तब मैंने यहां आकर आश्रय लिया था। आज मैं दोबारा यहां आया हूं”, वो संतोष की अनुभूति कर रहे थे। 

अभी मुख्यमंत्री जी fertilizer के कारखाने के संबंध में petroleum sector की नई नई योजनाओं के संबंध में विषय रख रहे थे। हम भी चाहते हैं कि हम उर्जा के क्षेत्र में गैस पर आधारित हमारी economy को कैसे develop करें। इस बार ओएनजीसी ने गैस उत्पादन के क्षेत्र में अपने बजट को डबल कर दिया है, ताकि उसके कारण, खास करके त्रिपुरा जैसे क्षेत्र, जहां गैस के भंडार पड़े हैं, उसका सर्वाधिक उपयोग करके हम पूरे देश की economy को कैसे बदल सकें। उर्जा के माध्यम से पूरे North East के नौजवानों को रोज़गार मिलने की पूरी संभावनाएं उसमें निहित हैं, और उस पर हम बल देना चाहते हैं। 

उसी प्रकार से कुछ दिन पहले मैं जापान गया था, जापान सरकार के साथ हमने एक एग्रीमेंट किया है। उस एग्रीमेंट का लाभ भी North East के लोगों को होने वाला है, त्रिपुरा के नौजवानों को होने वाला है। हमने जापान के साथ पूरे North East में म्यांमार तक एक economical corridor बनाने का संयुक्त प्रयास करने का निर्णय किया है। इसके कारण यहां पर तेज़ गति से आर्थिक विकास हो, जापान हमारे साथ उसमें सहयोग करे, उस पर हम बल दे रहे हैं। मेरी दृश्टि से अब North East भारत के दूर-सुदूर क्षेत्र का एक उपेक्षित इलाका नहीं रहने वाला है। अब North East, जिसका भविष्य उज्जवल है। 21वीं सदी एशिया की सदी कही जाती है। अगर 21वीं सदी एशिया की सदी है तो North East एशिया का प्रवेश द्वार है और एक प्रकार से समृद्धि का प्रेवश द्वार भी North East में बनने की पूरी संभावनाएं मैं देख रहा हूं। इसलिए, एक लंबी सोच के साथ, यहां infrastructure को कैसे बल मिले, रेल connectivity हो, रोड connectivity हो, digital divide खत्म हो, सामूद्रिक मार्ग का लाभ मिले, जैसा अभी मुख्यमंत्री जी कह रहे थे, इन सारी बातों का एकसूत्री कार्यक्रम ले करके। और वो एकसूत्री कार्यक्रम है - आधुनिक से आधुनिक infrastructure बना करके, पूरे North East के विकास के नए क्षितिजों को खोल देना। 

मैं आज, बंग्लादेश की प्रधानमंत्री का भी आभार व्यक्त करना चाहता हूं क्योंकि इस project को बनाने में, हमें जो मशीनरी यहां लानी थी - अगर बंग्लादेश का हमें जिस तरह से सहयोग मिला, वो न मिलता - तो ये काम करने में बहुत दिक्कत रहती। बंग्लोदश ने जो सहयोग किया, इसके लिए मैं उनका आभारी हूं। ये एक ऐसा project है, जिसमें, दो देश मिल करके कितना काम कर सकते हैं, इसका ये उदाहरण है। और आगे चल करके, सार्क देशों के लिए ये एक संदेश है कि दो पड़ोसी देश मिल करके काम करें तो त्रिपुरा में से कितनी बड़ी उर्जा पैदा हो सकती है, ये सार्क देशों के लिए एक सकारात्मक संदेश देती है, ये घटना। 

इतना ही नहीं, राज्यों के बीच में भी अगर coordination हो, सहयोग की भावना हो, एक दूसरे के साथ मिल करके काम करें तो कितना बड़ा फायदा हो सकता है। ये ऐसा project है, त्रिपुरा का जिसमें North East के सभी राज्यों ने मिल करके transmission काम से लिए एक संयुक्त जिम्मा लिया है। राज्य मिल करके किसी काम की जिम्मेवारी उठाएं, ये अपने आप में विकास के लिए एक नई आशा पैदा करने वाली घटना है। मैं North East के सभी मुख्यमंत्रियों को ये सहयोगपूर्ण निणर्य करने के लिए, उसको आगे बढ़ाने के लिए, मैं हृदय से बहुत बहुत अभिनंदन करता हूं, और इस प्रकार का सहयोग का वातावरण। और हमारा तो मंत्र है- सबका साथ, सबका विकास। इसी को लेकर हम आगे चलें तो हम नई नई सिद्धियों को प्राप्त कर सकते हैं। 

पूरे North East में एक ऐसा क्षेत्र है, जिस पर ध्यान देने की मुझे आवश्यकता लगती है। हमारे देश में हम तिरंगे झंडे का सम्मान करने वाले लोग हैं, तिरंगे झंडे का गौरव करने वाले लोग हैं। लेकिन, मैं तिरंगे झंडे से प्रेरणा ले करके चतुष्क्रांति की चर्चा करना चाहता हूं। चहुंमुखी क्रांति की चर्चा करना चाहता हूं। 

एक है- Green Revolution, हमारे तिरंगे झंडे का color है, green । उस तिरंगे झंडे का एक कलर green, हमें संदेश देता है green revolution का। Second Green Revolution! लेकिन Second Green Revolution में भी North East especially focus करके organic farming की ओर अगर जाएं तो पूरी दूनिया में North East का agriculture product पूरे विश्व के बाज़ार को अपना बना सकता है, इतनी संभावनाएं पड़ी हैं और उस पर हम बल देना चाहते हैं। 

दूसरा है- सफेद रंग। आज भी North East में Milk revolution के लिए बहुत संभावनाएं पड़ी हैं, animal husbandry की बहुत संभावनाएं पड़ी हैं। हम उस दूसरे रंग पर भी बल दें और हम उस milk revolution में कैसे जाएं। 

तीसरा है- भगवा रंग। मैं Saffron Revolution की बात करना चाहता हूं। green revolution, white revolution चाहिए, saffron revolution भी चाहिए। मैं जानता हूं, कुछ लोग, जब saffron revolution की बात करूंगा तो उनके कान खड़े हो गए होंगे। उनको ज़रा परेशानी होती होगी कि मोदी क्या लाया! उर्जा का रंग है- saffron. इसलिए मैं जब saffron revolution की बात करता हूं, मैं उर्जा क्रांति की बात करता हूं। Solar radiation से हम लाभान्वित लोग हैं। हम सोलर एनर्जी को बल कैसे दें? हम renewable energy को बल कैसे दें? हम गैस पेज economy में उर्जा को कैसे ले जाएं हम एक over all solution उर्जा के क्षेत्र में कैसे करें? उसके लिए आगे बढ़ना चाहते हैं। 

और चौथा! चौथा, हमारे तिरंगे के अंदर blue रंग का अशोक चक्र है। ये blue रंग पानी की ताकत को दर्शाता है, सामुद्रिक शक्ति को दर्शाता है। हमारी सामूद्रिक शक्ति कैसे बढ़े? उसी प्रकार से पूरे North East में पानी भरपूर मात्रा में है। बह्मपुत्र से भरा हुआ इलाका है। पहाड़ों में से झरने बहते रहते हैं। हमारी economy को बदलने के लिए, ये Blue revolution हम कैसे करें? उसे एक शक्ति का स्रोत मान करके, हम उसे कैसे आगे ले जाएं? 

ये चहुंमुखी क्रांति को ले करके हम त्रिपुरा के भी भाग्य को बदलें, पूरे North East के भाग्य को बदलें, यहां के नौजवानों को रोज़गार मिले, उस दिशा में हम कैसे आगे बढ़ें। 

हिंदूस्तान में प्राकृतिक संपदा के लिए, tourism के विकास के लिए, जितनी संभावनाएं North East के पास हैं, उतनी शायद हिंदुस्तान के किसी और क्षेत्र के पास नहीं हैं। कितनी bio-diversity से भरा हुआ है! पूरे हिंदुस्तान को हमने आकर्षित करना है। और इसके लिए connectivity पर बल देना है। रेल के माध्यम से connectivity पर बल देना है। रोड के माध्यम से connectivity पर बल देना है। Waterway का उपयोग करते हुए हमें connectivity को बढ़ाना है। और इस प्रकार से, त्रिपुरा समेत ये पूरा क्षेत्र विकास कि नयी ऊँचाइयों को पार करे, उस दिशा में हम आगे बढ़ना चाहते हैं। 

आज 726 MW का ये पॉवर प्रोजेक्ट पूर्ण हो रहा है। प्रथम चरण जब हुआ तब आदरणीय राष्ट्रपति जी यहाँ आये थे, आज सम्पूर्ण होने के समय मुझे यहाँ आने का सौभाग्य मिला है। राष्ट्र की उर्जा को बढ़ाने में त्रिपुरा के योगदान का मैं गौरव से स्वागत करता हूं और राष्ट्र को ये project समर्पित करते हुए मन में बड़े संतोष के भाव के साथ आगे बढ़ रहा हूं और फिर एक बार! बंग्लादेश का आभार व्यक्त करता हूं और बंग्लादेश को offer करता हूं कि बंग्लादेश की जो उर्जा की ज़रूरत है, अब भारत उस स्थिति में है कि हम बंग्लादेश को बिजली बेच सकते हैं। बंग्लादेश को भी उजाला पहुंचाने का काम भी भारत कर सकता है। 

बहुत बहुत धन्यवाद। 

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | 'मन की बात', यानि देश के सामूहिक प्रयासों की बात, देश की उपलब्धियों की बात, जन-जन के सामर्थ्य की बात, ‘मन की बात' यानि देश के युवा सपनों, देश के नागरिकों की आकांक्षाओं की बात | मैं पूरे महीने, 'मन की बात' का इंतजार करता रहता हूँ, ताकि, आपसे सीधा संवाद कर सकूँ । कितने ही सारे संदेश, कितने ही messages ! मेरा पूरा प्रयास रहता है कि ज्यादा- से-ज्यादा संदेश को पढूँ, आपके सुझावों पर मंथन करूँ ।

साथियो, आज बड़ा ही खास दिन है - आज NCC दिवस है | NCC का नाम सामने आते ही हमें स्कूल-कॉलेज के दिन याद आ जाते हैं | मैं स्वयं भी NCC Cadet रहा हूँ, इसलिए, पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इससे मिला अनुभव मेरे लिए अनमोल है | 'NCC' युवाओं में अनुशासन, नेतृत्व और सेवा की भावना पैदा करती है । आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए NCC के cadets जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में NCC को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । 2014 में करीब 14 लाख युवा NCC से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा NCC से जुड़े हैं | पहले के मुकाबले पाँच हजार और नए स्कूल-कॉलेजों में अब NCC की सुविधा हो गई है, और सबसे बड़ी बात, पहले NCC में girls cadets की संख्या करीब 25% (percent) के आस-पास ही होती थी | अब NCC में girls cadets की संख्या करीब-करीब 40% (percent) हो गई है | बॉर्डर किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा NCC से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है । मैं युवाओं से आग्रह करूंगा कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में NCC से जुड़ें | आप देखिएगा आप किसी भी career में जाएं, NCC से आपके व्यक्तित्व निर्माण में बड़ी मदद मिलेगी |

साथियो, विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है | युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं । आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश 'युवा दिवस' मनाता है । अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue’ | भारत-भर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, block, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में 'विकसित भारत Young Leaders Dialogue' के लिए जुटेंगे | आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आहवान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का political background नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे | ‘विकसित भारत Young Leaders Dialogue' भी ऐसा ही एक प्रयास है । इसमें देश और विदेश से experts आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी | मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा | युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने ideas को रखने का अवसर मिलेगा | देश इन ideas को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस roadmap बन सकता है? इसका एक blueprint तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।

मेरे प्यारे देशवासियों, ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं | जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए I मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी address किया है जैसे लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, वो बुजुर्गों को Digital life certificate के काम में मदद करते हैं I आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी Pensioners को साल में एक बार Life Certificate जमा कराना होता है I 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी I अब ये व्यवस्था बदल चुकी है I अब Digital Life Certificate देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता I बुजुर्गों को Technology की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है I वो, अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं I इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को tech savvy भी बना रहे हैं ऐसे ही प्रयासों से आज Digital Life certificate पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है I इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है I

साथियो, कई शहरों में ‘युवा’ बुजुर्गों को Digital क्रांति में भागीदार बनाने के लिए भी आगे आ रहे हैं I भोपाल के महेश ने अपने मोहल्ले के कई बुजुर्गों को Mobile के माध्यम से Payment करना सिखाया है I इन बुजुर्गों के पास smart phone तो था, लेकिन, उसका सही उपयोग बताने वाला कोई नहीं था I बुजुर्गों को Digital arrest के खतरे से बचाने के लिए भी युवा आगे आए हैं I अहमदाबाद के राजीव, लोगों को Digital Arrest के खतरे से आगाह करते हैं I मैंने ‘मन की बात’ के पिछले episode में Digital Arrest की चर्चा की थी I इस तरह के अपराध के सबसे ज्यादा शिकार बुजुर्ग ही बनते हैं I ऐसे में हमारा दायित्व है कि हम उन्हें जागरूक बनाएं और cyber fraud से बचने में मदद करें I हमें बार-बार लोगों को समझाना होगा कि Digital Arrest नाम का सरकार में कोई भी प्रावधान नहीं है - ये सरासर झूठ, लोगों को फ़साने का एक षड्यन्त्र है मुझे खुशी है कि हमारे युवा साथी इस काम में पूरी संवेदनशीलता से हिस्सा ले रहे हैं और दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं I

मेरे प्यारे देशवासियो, आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं | कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े - कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी | मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे share करना चाहता हूं | यहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है | इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है | इस library का idea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है | विदेश में अपने काम के दौरान वे latest technology की दुनिया से जुड़े रहे | लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे | भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया | इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है | किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं | Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है |

साथियो, हैदराबाद में ‘Food for Thought’ Foundation ने भी कई शानदार libraries बनाई हैं | इनका भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें | बिहार में गोपालगंज के ‘Prayog Library’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है | इस library से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, library पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है | कुछ libraries तो ऐसी हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में students के बहुत काम आ रही हैं | ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज library का बेहतरीन उपयोग हो रहा है | आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं | भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘Mini भारत’ बसता है | आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था | आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं | गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं | जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था - जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे share कर रहा हूं | गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं | दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं | क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ share करें | आप इन कहानियों को NaMo App पर या MyGov पर #IndianDiasporaStories के साथ भी share कर सकते हैं |

साथियो, आपको ओमान में चल रहा एक extraordinary project भी बहुत दिलचस्प लगेगा | अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं | इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं | इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण link तैयार किए थे | आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है | ओमान में भारतीय दूतावास और National Archives of India के सहयोग से एक team ने इन परिवारों की history को preserve करने का काम शुरू किया है | इस अभियान के तहत अब तक हजारों documents जुटाए जा चुके हैं | इनमें diary, account book, ledgers, letters और telegram शामिल हैं | इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं | ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं | बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े - ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है | ‘Oral History Project’ ये भी इस mission का एक महत्वपूर्ण आधार है | इस mission में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं | लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है |

साथियो ऐसा ही एक ‘Oral History Project’ भारत में भी हो रहा है | इस project के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं | अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है | ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है |

साथियो, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है | इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक Directory बनाई है | समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है | इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा Museum भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई manuscript हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, National Archives of India की मदद से सहेज सकते हैं |

साथियो, मुझे Slovakia में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है | यहां पहली बार Slovak language में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है | इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है | हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है |

मेरे प्यारे देशवासियो, अब मैं आपसे देश की एक ऐसी उपलब्धि साझा करना चाहता हूं जिसे सुनकर आपको खुशी भी होगी और गौरव भी होगा, और अगर आपने नहीं किया है, तो शायद पछतावा भी होगा | कुछ महीने पहले हमने ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान शुरू किया था | इस अभियान में देश-भर के लोगों ने बहुत उत्साह से हिस्सा लिया | मुझे ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि इस अभियान ने सौ करोड़ पेड़ लगाने का अहम पड़ाव पार कर लिया है | सौ करोड़ पेड़, वो भी, सिर्फ पाँच महीनों में - ये हमारे देशवासियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है | इससे जुड़ी एक और बात जानकर आपको गर्व होगा | ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान अब दुनिया के दूसरे देशों में भी फैल रहा है | जब मैं गयाना में था, तो वहां भी, इस अभियान का साक्षी बना | वहां मेरे साथ गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली, उनकी पत्नी की माता जी, और परिवार के बाकी सदस्य, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान में शामिल हुए |

साथियो, देश के अलग-अलग हिस्सों में ये अभियान लगातार चल रहा है | मध्य प्रदेश के इंदौर में ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत, पेड़ लगाने का record बना है - यहां 24 घंटे में 12 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए गए | इस अभियान की वजह से इंदौर की Revati Hills के बंजर इलाके, अब, green zone में बदल जाएंगे | राजस्थान के जैसलमेर में इस अभियान के द्वारा एक अनोखा record बना - यहां महिलाओं की एक टीम ने एक घंटे में 25 हजार पेड़ लगाए | माताओं ने मां के नाम पेड़ लगाया और दूसरों को भी प्रेरित किया। यहां एक ही जगह पर पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने मिलकर पेड़ लगाए - ये भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है । ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के तहत कई सामाजिक संस्थाएँ स्थानीय जरूरतों के हिसाब से पेड़ लगा रही हैं । उनका प्रयास है कि जहां पेड़ लगाए जाएँ वहाँ पर्यावरण के अनुकूल पूरा Eco System Develop हो । इसलिए ये संस्थाएँ कहीं औषधीय पौधे लगा रहीं हैं, तो कहीं, चिड़ियों का बसेरा बनाने के लिए पेड़ लगा रहीं हैं । बिहार में ‘JEEViKA Self Help Group’ की महिलाओं ने 75 लाख पेड़ लगाने का अभियान चला रहीं हैं । इन महिलाओं का focus फल वाले पेड़ों पर है, जिससे आने वाले समय में आय भी की जा सके ।

साथियो, इस अभियान से जुड़कर कोई भी व्यक्ति अपनी माँ के नाम पर पेड़ लगा सकता है । अगर माँ साथ है तो उन्हें साथ लेकर आप पेड़ लगा सकते हैं, नहीं तो उनकी तस्वीर साथ में लेकर आप इस अभियान का हिस्सा बन सकते हैं । पेड़ के साथ आप अपनी Selfie भी mygov.in पर पोस्ट कर सकते हैं । माँ, हम सबके लिए जो करती है हम उनका ऋण कभी नहीं चुका सकते, लेकिन, एक पेड़ माँ के नाम लगाकर हम उनकी उपस्थिति को हमेशा के लिए जीवंत बना सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया या Sparrow को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा । गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है । हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं । हमारे आसपास Biodiversity को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है । बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है । आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है । ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं । चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए स्कूल के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है । संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है । ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की training देते है । इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा सा घर बनाना सिखाया । इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया । ये ऐसे घर होते हैं जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है । बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे दस हज़ार घोंसले तैयार किए हैं । कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी ।

साथियो, कर्नाटका के मैसुरू की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘Early Bird’ नाम का अभियान शुरू किया है । ये संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की library चलाती है । इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘Nature Education Kit’ तैयार किया है। इस Kit में बच्चों के लिए Story Book, Games, Activity Sheets और jig-saw puzzles हैं । ये संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है । इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं । ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है | आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा | सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं | बरसों-बरस तक ये फाइलें Office में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी - ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और Scrap को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया | आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं | साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है | इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक Ownership का भाव भी आया है | अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है |

सथियो, आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है | हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है | देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं | तरह-तरह के innovation कर रहे हैं | इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं | ये युवा अपने प्रयासों से sustainable lifestyle को भी बढ़ावा दे रहे हैं | मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है | अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं | आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है | अक्षरा और प्रकृति की Team उन्हीं कपड़ों के कचरे को Fashion Product में बदलती है | कतरन से बनी टोपियां, Bag हाथों-हाथ बिक भी रही है |

साथियो, साफ-सफाई को लेकर UP के कानपुर में भी अच्छी पहल हो रही है | यहाँ कुछ लोग रोज सुबह Morning Walk पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले Plastic और अन्य कचरे को उठा लेते हैं | इस समूह को ‘Kanpur Ploggers Group’ नाम दिया गया है | इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी | धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया | शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं | इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं | इस कचरे से Recycle Plant में tree guard तैयार किए जाते हैं, यानि, इस Group के लोग कचरे से बने tree guard से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं|

साथियो, छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है | इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है | इतिशा corporate दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं | पर्यटकों की वजह से वहां काफी plastic waste जमा होने लगा था | वहां की नदी जो कभी साफ थी वो plastic waste की वजह से प्रदूषित हो गई थी | इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है | उनके group के लोग वहां आने वाले tourist को जागरूक करते हैं और plastic waste को collect करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं |

साथियो, ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है | ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है | आपके आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा | आप मुझे ऐसे प्रयासों के बारे में जरूर लिखते रहिए |

साथियो, ‘मन की बात’ के इस episode में फिलहाल इतना ही | मुझे तो पूरे महीने, आपकी प्रतिक्रियाओं, पत्रों और सुझावों का खूब इंतजार रहता है | हर महीने आने वाले आपके संदेश मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देते हैं | अगले महीने हम फिर मिलेंगे, ‘मन की बात’ के एक और अंक में - देश और देशवासियों की नई उपलब्धियों के साथ, तब तक के लिए, आप सभी देशवासियों को, मेरी ढ़ेर सारी शुभकामनाएं |

बहुत-बहुत धन्यवाद |